
दोस्तों, कल एक खबर पढ़ी। शीर्षक था 'भारतीय सेना जूझ रही है अफसरों की कमी से'...इसी खबर के पास एक और खबर थी। उसमें बताया गया था कि बीएसएफ के जवान लगातार नौकरियाँ छोड़ रहे हैं। वे परिवार से दूर रहकर लंबे समय तक दूसरे देशों से लगी भारत की 7 हजार किमी लंबी सीमा रेखा की चौकसी करते रहते हैं, लगभग 30 साल। फिर वो रिटायर हो जाते हैं और उनके हाथ में कुछ नहीं रहता। उनकी पेंशन स्कीमें हमारे नेताओं जैसी नहीं हैं इसलिए वो नौकरी के 20 साल पूरे होते ही उसे छोड़ रहे हैं क्योंकि इसके बाद वो पेंशन लेने के लिए पात्र हो जाते हैं। बाद में वे अपने और अपने परिवार को समय देते हैं। ऐसी ही कुछ कहानी आईटीबीपी यानी इंडो-तिब्बत बार्डर पुलिस के जवानों की भी है। कुल मिलाकर हमारे देश की सेना को कर्तव्यनिष्ठ जवानों और अफसरों की कमी का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि युवा दूसरे अवसरों की ओर दौड़े चले जा रहे हैं और इसी कारण सेना में 45 हजार अफसरों के पद खाली पड़े हैं। हालांकि सेना यह बात लंबे समय से कहती आ रही है, वो यह दावा भी करती रही है कि युवाओं का रुझान देशसेवा से इतर जा रहा है, लेकिन मैं सेना की इस बात से इत्तेफाक ना रखते हुए इस विषय पर अपना अलग ही पक्ष रखना चाहता हूँ।
दोस्तों, बात ठीक वैसी ही नहीं है जैसा सेना बता रही है। हमारे देश की सेना भी कोई कम झक्की नहीं है। उसे ये दुर्दिन यूँ ही नहीं देखने पड़ रहे हैं, इसके लिए हमें बात का थोड़ा विश्लेषण करना होगा और थोड़ा पीछे मुड़कर देखना होगा। सबसे पहले मैं अपने से ही बात शुरू करूँगा। मैं सेना में जाने के लिए हमेशा से दीवाना रहा। मैंने कॉलेज टाइम में एनसीसी ली और उसमें पहले साल नेवल विंग और बाद के दो सालों में एयरविंग लेकर सी सर्टिफिकेट लिया। मैंने 12वीं पास करते ही एनडीए (नेशनल डिफेंस अकादमी) के एक्जाम देना शुरू कर दिए थे। बाद में ग्रेजुएशन के बाद मैं सीडीएस (कम्बाइंड डिफेंस सर्विसेज) की परीक्षा देने लगा। कलेज में पढ़ने के दौरान ही मैंने एनसीसी ली थी। एनडीए एक्जाम मेरा एक बार भी क्लीयर नहीं हुआ जबकि सीडीएस में मैं कई बार क्लीयर हुआ और एसएसबी (सर्विस सलेक्शन बोर्ड) देने कई बार इलाहाबाद गया। हर बार वहाँ से लौटना पड़ा। कभी किसी टेस्ट में, तो कभी किसी टेस्ट में बाहर होकर। एक बार आखिरी स्टेज तक गया, सोचा अब तो बदन पर वर्दी आ ही जाएगी, लेकिन फिर से अपनी दुनिया में लौटना पड़ा और 'सिविलयन' बनकर रहना पड़ा।
दोस्तों, जब 12वीं के बाद दिल्ली में यूपीएससी भवन में एनडीए की परीक्षा देने गया था तब वहाँ आए नौजवानों को देखकर लगा था कि देश के सभी बाँके जवान सेना में ही जाना चाहते हैं। उनका उत्साह देखते ही बनता था। उनमें तब मैं भी शामिल था। यह कोई 15 साल पुरानी बात है, 1994 की। जब रिजल्ट आया तो कई लड़कों (जो लड़ाके बनना चाहते थे) की उम्मीदें धूल में मिल गईं और वो रिटन एक्जाम में ही खारिज हो गए, ठीक मेरी तरह। बाद के वर्षों में मन लगातार खिन्न होता रहा क्योंकि मैंने सेना की परीक्षा के अलावा अन्य किसी भी सरकारी नौकरी के लिए कभी प्रयास ही नहीं किया, मेरी अन्य सरकारी नौकरियों में जाने की कभी इच्छा ही नहीं होती थी। सीडीएस तक यह सिलसिला चलता रहा। हम प्रयास करते रहे और रिजेक्ट होते रहे। जब 25 साल के पूरे हुए तब जाकर लगा कि भगवान अब कभी सेना में नहीं जा पाऊँगा, उस आखिरी बार रिजेक्ट होने के बाद इलाहाबाद के नजदीक नैनी में अपने मौसेरे भाई के घर जाकर मैं खूब रोया था। उसी दिन तेज बुखार भी चढ़ा। बाद में ठीक होने के बाद बनारस और सारनाथ गया। गंगाजी में नहाया, काशीविश्वनाथ जी के दर्शन किए और प्रण किया कि अब पत्रकारिता को गंभीरता से लूँगा क्योंकि अभी तक तो सेना में जाने की झक सवार थी मुझे। लेकिन यकीन मानिए जिस प्रकार सेना की ओर से बिना कारण बताए होशियार से होशियार लड़कों को इंटरव्यू से निकाल दिया जाता है वो काबिले गौर बात है। इसी प्रकार मेरा एक मित्र लगातार सेना से खारिज होने के बाद लॉ (विधि) की ओर मुड़ा और बाद में उसने सिविल जज का एक्जाम निकाला और वर्तमान में मध्यप्रदेश के एक जिले में सिविल जज है। ऐसे कई उदाहरण हैं मेरे पास जिनमें मेरे साथ सेना में जाने के इच्छुक लड़के दूसरे क्षेत्रों की ओर मुड़ गए और उनमें से ज्यादातर अपने जीवन में खूब सफल हुए हैं।
सोचने वाली बात है, कि आज के जमाने में किसे फुर्सत है कि कोई 25 साल तक सेना की नौकरी में जाने के लिए यूँ ही लगातार प्रयार करता रहे। क्योंकि अगर वो सफल नहीं हुआ तो कही भी जाने के लायक नहीं रहेगा। आजकल 25 साल के बाद तो सबकुछ हाथ से निकल जाता है। आज जब 20 साल की उम्र पूरी करते-करते युवाओं की शानदार नौकरियाँ लग रही हों, उन्हें बाहर जाने और काम करने के मौके मिल रहे हों, तो ऐसे में कौन बार-बार जलील होने सेना की ओर जाना चाहेगा। आपमें से कुछ लोगों को यह मेरा भड़ास निकालना लग रहा होगा..तो चलिए मैं यहाँ एक तर्क देना चाहता हूँ। अगर आपका गणित अच्छा नहीं है (जैसे की मेरा) तो मैं भारतीय सेना के नेवी और एयरफोर्स के लिए एप्लाई ही नहीं कर सकता। सेना की जासूसी विंग में भी नहीं जा सकता। सिर्फ ग्राउण्ड फोर्स के लिए एप्लाई कर सकता हूँ। मतलब अगर मेरा गणित अच्छा नहीं है (जो मेरे हाथ में नहीं है) तो मैं देश सेवा से वंचित हुआ समझो। इसी प्रकार अगर मेरे बाप-दादा में से कोई सेना में रहा है तो अच्छा, उसे इंटरव्यू में उसका फायदा मिलता है लेकिन ना रहा हो तो मेरा क्या कसूर, सिर्फ इसी कारण भी वहाँ कई रिजेक्ट हो जाते हैं। हमारे कई बैच जिनमें 100-100 लड़के थे, एकसाथ बाहर कर दिए गए। बिना कारण बताए, यह कहकर कि हम उनके बनाए खाँचे में फिट नहीं बैठते। इतने सारे लड़कों में से कोई भी नहीं..!!!
मेरा मानना है कि अगर इसराइल या अमेरिका में भी ऐसा होता तो क्या होता..?? इसराइल में सभी युवाओं (लड़के और लड़कियाँ भी) को सेना में कम से कम तीन से पाँच वर्ष देना अनिवार्य हैं। ठीक ऐसा ही अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी में भी था, अब वहाँ थोड़ी छूट मिली है। तो भारत में क्यों नहीं यह अनिवार्य किया जाता, बिना ये देखे कि किसके पास गणित रहा है और किसके पास नहीं। किसके बाप-दादा सेना में रहे हैं और किसके नहीं..। मेरे जैसे कई युवा हैं जिन्होंने अपनी शुरूआती युवावस्था के 5 से 10 वर्ष सेना की वर्दी में अपने को देखने के इच्छुक रहते हुए गुजारे, वो सेना के ख्वाबों में जिए लेकिन अब उनके सपने दूसरे हैं। ऐसे में सेना के अगर 45 हजार अफसरों के पद खाली हैं तो इसमें आश्चर्य कैसा...?????
आपका ही सचिन....।