2010 से होगी नई शुरूआत
इंटरनेट पर हिन्दी का जोर धीरे-धीरे बढ़ रहा है। अब डोमेन नाम भी हिन्दी में आने वाले हैं। इसी पर मैंने एक स्टोरी लिखी थी। कृपया आप भी पढ़ें....सचिन
(स्टोरी को पढ़ने के लिए कृपया इमेज पर क्लिक करें)
November 28, 2009
November 21, 2009
हमारा विश्वास तोड़ते कोड़ा और रेड्डी बंधु
भारत नहीं है लोकतंत्र के लायक
दोस्तों, इस विषय पर थोड़ा देर से लिख पा रहा हूँ, इसलिए माफी चाहता हूँ। यह काम तो तुरंत होना चाहिए था लेकिन काम की व्यस्तता के कारण देरी हुई, ये भी कह सकते हैं कि शब्द ही मुंह में घुल कर रह गए थे। समझ नहीं आ रहा था कि अपने देश की किस बात पर सिर पीटें....???? नेताओं को गालियाँ देते-देते जनता की जबान थक कर चूर हो गई है लेकिन वो हैं कि सुधरने का नाम ही नहीं ले रहे। दूसरी ओर जनता के पास कोई ऑप्शन भी नहीं है, वो चोरों के बीच में से ही कम चोर को मौका देने की सोचती रहती है। लेकिन अब तो कौन सा चोर बाद में जाकर कितना बड़ा चोर साबित होगा यह भी पता नहीं चल पा रहा है।
मित्रों, मधु कोड़ा ने कमाल किया है। यह दो कोड़ी का आदमी जमीन के इतने अंदर से आया है, इसे देखकर लगता ही नहीं था कि यह आकाश में पहुँचने की इतनी जल्दीबाजी करेगा। यह जब मुख्यमंत्री बना था तब मैं इस्तेफाक से झारखण्ड की राजधानी राँची में ही था। मैं वहाँ अपने संस्थान की ओर से किसी रिपोर्टिंग कार्य पर गया था। उस समय वहाँ अर्जुन मुंडा की सरकार गिरकर चुकी थी और कोड़ा के मुख्यमंत्री बनते समय लोग इसकी तारीफ में कसीदे पढ़ रहे थे। जब यह मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहा था तब इसके पिता राँची के पास ही एक गाँव में अपने खेत में घास खोद रहे थे। जब टीवी चैनल के एक रिपोर्टर ने उनसे पूछा कि क्या आपको पता है कि आपका बेटा आज प्रदेश का मुख्यमंत्री बन रहा है तब उन्होंने कहा था कि वो उसके बारे में ज्यादा नहीं जानते क्योंकि वो कई वर्षों से घर से बाहर है। लेकिन उन वर्षों में उनके बेटे ने राजनीति की चीढ़ियाँ चढ़ते हुए तमाम संस्कार भी भुला दिए। उसने भ्रष्टाचार जैसे नासूर के साथ मिलकर अपने उस छोटे और गरीब राज्य के ऊपर इस कदर हमला किया कि सभी दंग रह गए। उसने झारखंड को तबाह कर दिया। उस राज्य का सालाना बजट 8000 करोड़ होता है। कोड़ा कुल दो वर्ष (23 महीने) वहाँ का मुख्यमंत्री रहा और उसने कुल 4000 करोड़ रुपए का हवाला घोटाला किया। मतलब दो साल के 16000 करोड़ का चौथाई हिस्सा वो अकेला आदमी अपने चमचों के साथ खा गया। यह वही आदमी है जिसको निर्दलीय रूप में भी कांग्रेस ने समर्थन दिया था और मुख्यमंत्री बनवाया था। अब कांग्रेस को समझ आ रहा होगा कि उसके समर्थन से मुख्यमंत्री बने मधु कोड़ा ने विष घोला और झामुमो का शिबू सोरेन धोखेबाज-हत्यारा निकला।
वैसे, कांग्रेस की छोड़ें, तो हालत तो भाजपा की भी अच्छी नहीं है। संस्कारों की बात करने वाली इस पार्टी की जितनी खुदड़ पिछले कुछ महीनों में हुई है उतनी पहले कभी नहीं हुई। कर्नाटक संकट ने बता दिया है कि इस देश में, यहाँ की राजनीति में और यहाँ की राजनीतिक पार्टियों में पैसे से बढ़कर और कुछ नहीं है। येदुरप्पा को जिस तरह से जलालत का सामना करना पड़ा है वो अपने आप में एक मिसाल है। बदमाश और चरित्रहीन रेड्डी बंधुओं ने यह बता दिया है कि वो रुपए के बल-बूते किसी को भी खरीद सकते हैं और एक तथाकथित राष्ट्रवादी पार्टी को घुटनों के बल ला सकते हैं। उन बेशर्म रेड्डियों ने अपनी काली कमाई के रुपयों से वहाँ के 54 विधायकों को खरीद लिया और सरकार पर सीधे तौर से दबाव बनाया कि उन्हें भ्रष्टाचार करने की पूरी और खुली छूट मिलनी चाहिए अन्यथा वो सरकार गिरा देंगे। सब लोग दिल्ली से लेकर बेंगलौर के बीच दौड़ लगाते रहे लेकिन किसी के कान पर जूँ नहीं रेंगी। भाजपा के शीर्ष नेता उस समय शीर्षासन में दिखे और उन आतातायी भ्रष्टों के सामने गिड़गिड़ाते भी दिखे। आखिरकार एक दिन खबर आई कि येदुरप्पा मीडिया के सामने आँसुओं से रो दिए। उन्होंने कहा कि कर्नाटक संकट हल करने के लिए उन्होंने अपने कुछ सबसे प्रिय पात्रों की बलि दी है। वो प्रिय पात्र उनकी सरकार के वो ईमानदार अफसर थे जो रेड्डियों को गड़बड़ और भ्रष्टाचार नहीं करने दे रहे थे। उन सबकी छुट्टी करवाकर यह संकट हल हुआ और रेड्डियों को कर्नाटक में खुलेआम भ्रष्टाचार करने का लाइसेंस दे दिया गया। यह सब सरकार बचाए रखने की कवायद के लिए हुआ।
लेकिन दोस्तों, हमारा देश का चरित्र यहाँ गिर गया, हम किसी पर भी विश्वास करने लायक नहीं रहे। ना तो मधु कोड़ा जैसे जमीन से जुड़े आदमी पर और ना ही रेड्डी बंधुओं जैसे हवा में उड़ने वाले आदमियों पर। ना तो देश पर 50 साल राज करने वाली कांग्रेस पार्टी पर और ना ही अपने को राष्ट्रवादी पार्टी कहने वाली भाजपा पर। हम हिन्दुस्तानी दिनोंदिन इस लोकतंत्र से हार रहे हैं और इससे खिलौंनों की तरह खेलने वाले ये कलुषित नेता जीत रहे हैं। हिन्दुस्तान का लोकतंत्र मर रहा है, धीमी मौत, हम इसे मरता हुआ देख रहे हैं लेकिन अपने बीच में से एक भी ऐसा ईमानदार नेता नहीं ढूँढ पा रहे जो अपनी जेबें भरने की नहीं बल्कि अपने देशवासियों के दिल में जगह बनाने की सोचे। भारत माँ का स्थान संसार के नक्शे पर सुदृढ़ बनाने की सोचे। सचमुच ये देश लोकतंत्र के लायक नहीं है।
आपका ही सचिन.....।
दोस्तों, इस विषय पर थोड़ा देर से लिख पा रहा हूँ, इसलिए माफी चाहता हूँ। यह काम तो तुरंत होना चाहिए था लेकिन काम की व्यस्तता के कारण देरी हुई, ये भी कह सकते हैं कि शब्द ही मुंह में घुल कर रह गए थे। समझ नहीं आ रहा था कि अपने देश की किस बात पर सिर पीटें....???? नेताओं को गालियाँ देते-देते जनता की जबान थक कर चूर हो गई है लेकिन वो हैं कि सुधरने का नाम ही नहीं ले रहे। दूसरी ओर जनता के पास कोई ऑप्शन भी नहीं है, वो चोरों के बीच में से ही कम चोर को मौका देने की सोचती रहती है। लेकिन अब तो कौन सा चोर बाद में जाकर कितना बड़ा चोर साबित होगा यह भी पता नहीं चल पा रहा है।
मित्रों, मधु कोड़ा ने कमाल किया है। यह दो कोड़ी का आदमी जमीन के इतने अंदर से आया है, इसे देखकर लगता ही नहीं था कि यह आकाश में पहुँचने की इतनी जल्दीबाजी करेगा। यह जब मुख्यमंत्री बना था तब मैं इस्तेफाक से झारखण्ड की राजधानी राँची में ही था। मैं वहाँ अपने संस्थान की ओर से किसी रिपोर्टिंग कार्य पर गया था। उस समय वहाँ अर्जुन मुंडा की सरकार गिरकर चुकी थी और कोड़ा के मुख्यमंत्री बनते समय लोग इसकी तारीफ में कसीदे पढ़ रहे थे। जब यह मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहा था तब इसके पिता राँची के पास ही एक गाँव में अपने खेत में घास खोद रहे थे। जब टीवी चैनल के एक रिपोर्टर ने उनसे पूछा कि क्या आपको पता है कि आपका बेटा आज प्रदेश का मुख्यमंत्री बन रहा है तब उन्होंने कहा था कि वो उसके बारे में ज्यादा नहीं जानते क्योंकि वो कई वर्षों से घर से बाहर है। लेकिन उन वर्षों में उनके बेटे ने राजनीति की चीढ़ियाँ चढ़ते हुए तमाम संस्कार भी भुला दिए। उसने भ्रष्टाचार जैसे नासूर के साथ मिलकर अपने उस छोटे और गरीब राज्य के ऊपर इस कदर हमला किया कि सभी दंग रह गए। उसने झारखंड को तबाह कर दिया। उस राज्य का सालाना बजट 8000 करोड़ होता है। कोड़ा कुल दो वर्ष (23 महीने) वहाँ का मुख्यमंत्री रहा और उसने कुल 4000 करोड़ रुपए का हवाला घोटाला किया। मतलब दो साल के 16000 करोड़ का चौथाई हिस्सा वो अकेला आदमी अपने चमचों के साथ खा गया। यह वही आदमी है जिसको निर्दलीय रूप में भी कांग्रेस ने समर्थन दिया था और मुख्यमंत्री बनवाया था। अब कांग्रेस को समझ आ रहा होगा कि उसके समर्थन से मुख्यमंत्री बने मधु कोड़ा ने विष घोला और झामुमो का शिबू सोरेन धोखेबाज-हत्यारा निकला।
वैसे, कांग्रेस की छोड़ें, तो हालत तो भाजपा की भी अच्छी नहीं है। संस्कारों की बात करने वाली इस पार्टी की जितनी खुदड़ पिछले कुछ महीनों में हुई है उतनी पहले कभी नहीं हुई। कर्नाटक संकट ने बता दिया है कि इस देश में, यहाँ की राजनीति में और यहाँ की राजनीतिक पार्टियों में पैसे से बढ़कर और कुछ नहीं है। येदुरप्पा को जिस तरह से जलालत का सामना करना पड़ा है वो अपने आप में एक मिसाल है। बदमाश और चरित्रहीन रेड्डी बंधुओं ने यह बता दिया है कि वो रुपए के बल-बूते किसी को भी खरीद सकते हैं और एक तथाकथित राष्ट्रवादी पार्टी को घुटनों के बल ला सकते हैं। उन बेशर्म रेड्डियों ने अपनी काली कमाई के रुपयों से वहाँ के 54 विधायकों को खरीद लिया और सरकार पर सीधे तौर से दबाव बनाया कि उन्हें भ्रष्टाचार करने की पूरी और खुली छूट मिलनी चाहिए अन्यथा वो सरकार गिरा देंगे। सब लोग दिल्ली से लेकर बेंगलौर के बीच दौड़ लगाते रहे लेकिन किसी के कान पर जूँ नहीं रेंगी। भाजपा के शीर्ष नेता उस समय शीर्षासन में दिखे और उन आतातायी भ्रष्टों के सामने गिड़गिड़ाते भी दिखे। आखिरकार एक दिन खबर आई कि येदुरप्पा मीडिया के सामने आँसुओं से रो दिए। उन्होंने कहा कि कर्नाटक संकट हल करने के लिए उन्होंने अपने कुछ सबसे प्रिय पात्रों की बलि दी है। वो प्रिय पात्र उनकी सरकार के वो ईमानदार अफसर थे जो रेड्डियों को गड़बड़ और भ्रष्टाचार नहीं करने दे रहे थे। उन सबकी छुट्टी करवाकर यह संकट हल हुआ और रेड्डियों को कर्नाटक में खुलेआम भ्रष्टाचार करने का लाइसेंस दे दिया गया। यह सब सरकार बचाए रखने की कवायद के लिए हुआ।
लेकिन दोस्तों, हमारा देश का चरित्र यहाँ गिर गया, हम किसी पर भी विश्वास करने लायक नहीं रहे। ना तो मधु कोड़ा जैसे जमीन से जुड़े आदमी पर और ना ही रेड्डी बंधुओं जैसे हवा में उड़ने वाले आदमियों पर। ना तो देश पर 50 साल राज करने वाली कांग्रेस पार्टी पर और ना ही अपने को राष्ट्रवादी पार्टी कहने वाली भाजपा पर। हम हिन्दुस्तानी दिनोंदिन इस लोकतंत्र से हार रहे हैं और इससे खिलौंनों की तरह खेलने वाले ये कलुषित नेता जीत रहे हैं। हिन्दुस्तान का लोकतंत्र मर रहा है, धीमी मौत, हम इसे मरता हुआ देख रहे हैं लेकिन अपने बीच में से एक भी ऐसा ईमानदार नेता नहीं ढूँढ पा रहे जो अपनी जेबें भरने की नहीं बल्कि अपने देशवासियों के दिल में जगह बनाने की सोचे। भारत माँ का स्थान संसार के नक्शे पर सुदृढ़ बनाने की सोचे। सचमुच ये देश लोकतंत्र के लायक नहीं है।
आपका ही सचिन.....।
November 16, 2009
पालतू जानवरों से भी हो सकती हैं बीमारियाँ!
अपने पेट्स को स्वस्थ रखिए खुद भी स्वस्थ रहिए
दोस्तों, आज के समय में स्वास्थ्य सबसे बड़ी चीज है। हालांकि हमारे शौक हमारे साथ-साथ चलते रहते हैं लेकिन हमें स्वस्थ रहने के लिए सावधानी बरतनी चाहिए। इसी विषय को उठाते हुए अपने घरों में पालतू जानवरों को पालने के शौकीन लोगों और उससे उनके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर मैंने यह लेख लिखा है। आप भी पढ़े...
(लेख को पढ़ने के लिए कृपया इमेज पर क्लिक करें)
दोस्तों, आज के समय में स्वास्थ्य सबसे बड़ी चीज है। हालांकि हमारे शौक हमारे साथ-साथ चलते रहते हैं लेकिन हमें स्वस्थ रहने के लिए सावधानी बरतनी चाहिए। इसी विषय को उठाते हुए अपने घरों में पालतू जानवरों को पालने के शौकीन लोगों और उससे उनके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर मैंने यह लेख लिखा है। आप भी पढ़े...
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November 14, 2009
किसी लुटेरे की हो सकती है ये 'आवाज'!
November 07, 2009
वर्चुअल दुनिया में 'अपनों' को ढूँढता युवा
सोशल नेटवर्किंग साइट्स के जरिए रहते हैं सबके कॉन्टेक्ट में
दोस्तों, आजकल के युवाओं की मानसिकता थोड़ी अलग है। अपने दोस्तों से रूबरू संपर्क में रहने की बजाए वे मोबाइल फोन या कम्प्यूटर का सहारा लेते हैं। वे 'अपनों' को सोशल नेटवर्किंग साइट्स के जरिए संदेश भेजते हैं, और वहीं से उनसे संदेश लेते भी हैं। उनके पास समय की कमी है लेकिन वे फिर भी एक्टिव हैं। इस विषय पर मैंने एक लेख लिखा है, आशा है आपको पसंद आएगा। -सचिन
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दोस्तों, आजकल के युवाओं की मानसिकता थोड़ी अलग है। अपने दोस्तों से रूबरू संपर्क में रहने की बजाए वे मोबाइल फोन या कम्प्यूटर का सहारा लेते हैं। वे 'अपनों' को सोशल नेटवर्किंग साइट्स के जरिए संदेश भेजते हैं, और वहीं से उनसे संदेश लेते भी हैं। उनके पास समय की कमी है लेकिन वे फिर भी एक्टिव हैं। इस विषय पर मैंने एक लेख लिखा है, आशा है आपको पसंद आएगा। -सचिन
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November 02, 2009
देखभाल कर खाएँ ब्रेड!
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