December 31, 2008

युद्ध की तैयारी के नाम पर जनता के रुपयों की बर्बादी

हमें पता है कि कुछ नहीं होने वाला
दोस्तों, अब तो कान पक गए हैं ये सुन-सुनकर की भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ने वाला है। चलो ये मान लेते हैं कि हम (भारतीय, मैं नहीं) युद्ध वगैरह में विश्वास नहीं करते। तो फिर ये दिखावा करना बंद करो भाई, पूरी दुनिया में हँसी उड़ रही है हमारी। मालूम है पाकिस्तान हमारे बारे में क्या कह रहा है..?? वहाँ के मीडिया में खबर आई है कि भारत के तेज-तर्रार तेवरों के बीच पाकिस्तान ने जो दमखम दिखाया है उससे भारत की हिम्मत पस्त हो गई है और उसने आतंकी ठिकानों की शल्यक्रिया (आपरेशन) करने का इरादा त्याग दिया है। मतलब भारत पाकिस्तान से डर गया है। हालांकि पाकिस्तान का ये सोचना सही है क्योंकि भारत पिछले एक महीने से सिर्फ बयानबाजी ही कर रहा है और कल तो पाक विदेशमंत्री महमूद कुरैशी के बयान पर तो हमारे विदेशमंत्री प्रणब मुखर्जी ने ये तक कह दिया कि हमने तो कोई सेना पाक सीमा पर लगाई ही नहीं तो उसे हटाने का सवाल कहाँ उठता है..? 
दोस्तों, मेरे अखबार समेत देश के सारे अखबारों में ये खबरें और फोटो छपी हैं कि भारत ने अपनी वायुसेना को हाईअलर्ट कर दिया है। इस आशय के फोटो भी छपे हैं जिनमें टैंकों और अन्य सैनिक साजों सामान को ट्रेनों पर लदकर सीमा पर जाते दिखाया गया है। तो फिर विदेशमंत्री बात से क्यों मुकर रहे हैं। उधर पाक विदेशमंत्री की हिम्मत देखिए कि वो कह रहा है कि भारत तनाव कम करे। अरे मुंबई हमला करवाकर तनाव किसने पैदा किया......उसे कम करने की जिम्मेदारी अब हमारी नहीं पाकिस्तान की है। आज तो यह भी साफ हो गया है कि ये हमला लश्कर-ए-तैयबा ने करवाया था जिसकी जिम्मेदारी अब उसके एक शीर्ष कमांडर जरार शाह ने ले ली है। तो भारत को अपनी किसी भी बात को कहने के लिए अमेरिका का सहारा क्यों लेना पड़ता है। जैसे कि बुधवार को अमेरिका ने पाकिस्तान से कहा कि वो लखवी (मुंबई हमले का मास्टरमाइंड) को भारत के हवाले करे। ये बात हम क्यों नहीं कह सकते, और कहते भी हैं तो वो मानी क्यों नहीं जाती..??
भारत सरकार जनता की गाढ़ी कमाई को बर्बाद कर रही है। यह काम भाजपा सरकार भी २००१ में संसद पर हमले के बाद कर चुकी है। मतलब समझे आप....यानी भारतीय सेना को सीमा पर तैनात करने का सिर्फ खर्चा ही १३५०० करोड़ है। इतना रुपया किसलिए बर्बाद करना जबकि हमारे नेताओं में इच्छाशक्ति ही नहीं है। अगर आपको सैन्य कार्रवाई नहीं करनी तो जनता को क्यों हैरान कर रखा है.....हमें क्यों इस भरोसे में रख रखा है कि इस बार उन कमीने आतंकियों की खाल खींच ली जाएगी जो हर बार हमारी इज्जत लेकर चले जाते हैं। 
पिछले २० सालों में भारत में अब तक हुए आतंकी हमलों में जितनी जानें गई हैं उससे कई गुणा कम जानें भारत द्वारा पाकिस्तान के साथ लड़े गए चारों युद्धों में गई हैं। तो फिर अगर हम पाक पर हमला करना नहीं चाहते तो कम से कम पाक अधिकृत कश्मीर में स्थित आतंकी शिविरों पर ही हमला करें। उन्हें नेस्तानाबूद करें। हमें अपनी विराट शक्ति का तो प्रदर्शन करना ही चाहिए ना, नहीं तो कौन डरेगा हमसे..?? लेकिन सरकार के बयानों से तो ऐसा कुछ नहीं लग रहा। 


भारत-पाकिस्तान के बीच हुए युद्धों में मारे गए सैनकों का लेखा-जोखा

१९४७ में - पाकिस्तान के २६३३ सैनिक मारे गए जबकि भारत के ११०४ सैनिक शहीद हुए।
१९६५ में - पाकिस्तान के ३८०० सैनिक मारे गए जबकि भारत के ३२६४ सैनिक शहीद हुए।
१९७१ में - पाकिस्तान के ७९०० सैनिक मारे गए जबकि भारत के ३८४३ सैनिक शहीद हुए। 
१९९९ में - पाकिस्तान के ६९६ सैनिक मारे गए जबकि भारत के ५२७ सैनिक शहीद हुए। 

जबकि पिछले २० सालों में भारत के ७० हजार से ज्यादा नागरिक आतंकवाद की भेंट चढ़ चुके हैं। अगर हम युद्ध लड़ते तो इतनी संख्या में लोगों को हमें कभी नहीं गँवाना पड़ता।

आपका ही सचिन.....।

December 30, 2008

अगला विश्वयुद्ध धर्म के आधार पर लड़ा जाएगा!!



और इसकी तस्वीर विश्व में बनने लगी है
दोस्तों, आपने सैमुअल हटिंगटन का नाम तो सुना ही होगा। ये प्रसिद्ध राजनीति विज्ञानी और भविष्यवेत्ता थे। इनका इस रविवार को निधन हो गया। इन्होंने दशकों पहले इस्लाम और ईसाइयत के टकराव की भविष्यवाणी कर दी थी। हटिंगटन ने १९९६ में अपनी पुस्तक द क्लेशेज आफ सिविलाइजेशंस एंड द रिमेकिंग आफ वर्ल्ड आर्डर में उक्त बात लिखी थी। यह पुस्तक १९९३ में अंतरराष्ट्रीय मामलों की एक पत्रिका में उनके लिखे लेख का विस्तार ही थी। इस किताब में उन्होंने विश्व को प्रतिदंद्वी संस्कृतियों के आधार पर वर्गीकृत किया था। उन्होंने इस पुस्तक में घोषणा की थी कि इन संस्कृतियों के बीच भविष्य में प्रतिद्वंद्विता और टकराव होना अवश्यंभावी है। उन्होंने यह भी लिखा था कि दुनिया धार्मिक आधार पर बँट चुकी है, लोग कट्टर हो रहे हैं और अगला विश्वयुद्ध बहुत संभव है कि धार्मिक आधार पर ही हो। 

दोस्तों, जब मैं छोटा था तब हरेक बच्चे की तरह नहीं समझता था कि धर्म क्या होता है या इस आधार पर भी आपस में लड़ा जा सकता है। अब जब बातें समझ आनी लगी हैं तो लगता है कि ओह...सबकुछ कितना साफ है फिर भी हम नहीं समझते थे। मसलन.....भारत बहुसंस्कृति वाला देश है। यहाँ हिन्दू और मुसलमान आपस में बहुत भाईचारे के साथ रहते हैं। ये मैंने हमेशा अपने बड़े-बुर्जुगों और किताबों से सुना-पढ़ा। मैंने बचपन से सुना कि पाकिस्तान भारत का दुश्मन है। इसराइल के बारे में सुना कि ये देश भारत का मित्र है। हमने यहूदियों को उनके निर्वासन काल में सहयोग दिया इसलिए वो हमारा एहसान मानते हैं। हमने पारसियों को भी उनके निर्वासन काल में सहयोग दिया। और आज वे हमारे देश में दूध में शक्कर की तरह रहते हैं। हमारे समाज को समृद्ध कर रहे हैं। टाटा, गोदरेज, वाडिया, केडिया आदि उदाहरण हमारे सामने हैं। 
लेकिन तभी मैंने देखा कि जिस पाकिस्तान को हम हिन्दू अपना दुश्मन मानते हैं उसी पाकिस्तान में मेरे कई पहचान वाले मुसलमानों की लड़कियों की शादी हुई। मैं भौंचक्का रह जाता था कि दुश्मन देश में यहाँ के लोग अपनी बेटियाँ क्यों ब्याह देते हैं। क्या वे पाकिस्तान को दुश्मन नहीं मानते..?? फिर मैंने देखा कि मेरे पहचान वाले मुसलमान बच्चे पाकिस्तानी क्रिकेटरों के फैन हैं। उनके कमरों में पाक क्रिकेटरों की तस्वीरें लगी रहती थीं। वो पाकिस्तान के मैच जीतने पर खुश होते थे फिर भले ही वो भारत के खिलाफ मैच क्यों ना जीता हो....ओफ...मुझे समझ आया कि भारत की टीम तो हिन्दुओं की टीम है, यहाँ के मुसलमान इसका साथ क्यों देने लगे....???? फिर मैंने देखा कि भारत के मुसलमान बच्चे और युवा भी शाहरुख खान, सलमान खान, आमिर खान, सैफ अली खान के इसलिए फैन हैं क्योंकि ये सब फिल्म स्टार मुसलमान हैं...इसलिए नहीं कि ये अच्छे कलाकार हैं। मै और ज्यादा भौंचक रह जाता था। अब मैं देख रहा हूँ कि मुझे जानने वाले मुसलमान बुद्धिजीवी और कलाकार सिर्फ उन्हीं कलाकारों, संगीतकारों आदि की तारीफ करते हैं जो मुसलमान हैं....मैं और अधिक भौंचक्का होता जाता हूँ.......दोस्तों, मेरा भौंचक्का होना जारी है। क्योंकि बचपन से मैं अपनी इच्छाशक्ति के कारण मैदान में डटे हुए इसराइल का फैन हूँ......सच बताऊँ तो मैं एक इसराइली लड़की से शादी करना चाहता था कि मैं वहाँ का नागरिक बन सकूँ....लेकिन मुझे पता चला कि इसराइल तो मुस्लिम दुनिया और यहाँ तक की भारत के मुसलमानों का भी सबसे बड़ा दुश्मन है। ये सब लोग तो उसे मिट्टी में मिला देना चाहते हैं। उफ, मैं फिर से परेशान हो उठता हूँ कि ये कैसे संभव है कि एक देश में रहते हुए दो तबके बिल्कुल ही भिन्न तरीके से सोंचे। 

तो दोस्तों, यही धर्म है जो दुनिया को कई फाड़ कर चुका है। बात चूँकी इसराइल की हुई है तो देखिए कि हमारे देश के हिन्दू और मुसलमान वर्तमान में गाजा पट्टी पर हो रहे इसराइली हमलों को किस तरह देख रहे हैं। इससे आपको समझ आ जाएगा कि भट्टी में आग सुलग रही है। टोन देखिए...आपको लगेगा कि वाकई अगला विश्वयुद्ध एक महायुद्ध होने के साथ-साथ धर्मयुद्ध भी साबित होने वाला है। इसराइल की एक खबर पर लोगों द्वारा दी गई प्रतिक्रियाओं को मैं दे रहा हूँ.........ये प्रतिक्रियाएँ आईबीएन की साइट पर इसराइल संबंधी एक खबर पर आई हैं। इन्हें दोनों धर्मों के पाठकों ने विश्वभर से भेजा है।

Dec 30, 2008
आखरी इश् दूत मुहम्मद सलल्लाहू अलैही वस्सलाम ने फ़ार्माया है की " एक ऐसा वक़्त आईगा जब दुनिया के सारे यहूदी मारे जाएँ गे और उन को कोई बचाने वाला नही हो गा यहाँ तक की अगर कोए यहूदी पेड़ के पीछे भी छुपे आ अपनी जान बचाने के लिए तो वो पेड़ पुकार पुकार के कहे ग गी यहाँ एक यहुद छिपा है इसे मार दो " इसराइल ने इतास के पन्नो को ख़ून से जिस तरह से रंगा है और बेक़सूर और मासूम का खू बहाने मे ज़रा सा भी संकोच नही किया उस से प्रतीत होता है की वोह दिन शायद बहुत नज़दीक आ गया है जब मुहम्मद सलल्लाहू अलैही वस्सलाम का कहा हुआ फ़ार्मन सच साबित हो जाए.
sufyan abu Dahbi
Dec 30, 2008
अर्रे हिजडो, इस देश से सीखो, वो अपने एक आदमी को कुछ भी होता है तो वो दुश्मनो को मिट्टी मे मिला देता है, और एक हुमारे लेडेर है जो सिर्फ़ बियान के इलवा कुछ नही करते. हराममखोरो कुछ सीखो.
parminder ludhiana
Dec 30, 2008
पूरा अरब क्या पूरे दुनिया का आत्नकी भी इजराइल का कुच्छ बिगार नही सकता, अरे वो तो उसके घर में घुसकर मार रहा है, कहाँ है अरब के ख़लीफ़ा लोग, जो जेहाद की बात कर मासूम को मरते है वो अब दुनिया से दया की गुहार लगा रहे है............
BRAJESH KUMAR BIHAR
Dec 30, 2008
मुसलमानों को अपने उपर होता हुआ ज़ुल्म ही दिखता है तभी अल्लाह के नाम पर दुहाई देने लगते हैं जब इस्लाम के नाम पर आतंकवादी मासूमों को और बच्चो को मारते हैं तब ये किस श्रेणी में आता है. जिहाद? पाकिस्तान ने आतंकवाद की फ़ैक्टरी खोल रखी है. हर साल बेगुनाहों को मरवाता है. तब कोई नहीं कहता की पाकिस्तान को ये नहीं करना चाहिए . विश्व भर में अगर कोई आतंकवाद है तो वो इस्लाम के नाम पर ही फैलाया जा रहा है. इसको तो अब ख़त्म होना ही पड़ेगा चाहे इसराएल हो, भारत हो या कहीं और. किसी किस्म के आतंकवाद की अब दुनिया में कोई जगह नहीं है अगर फैला तो उसे सज़ा मिलेगी साथ में उसका समर्थन करने वालों को भी.
Pathak Jaipur
Dec 30, 2008
भाई लोगो आपस मैं क्यो लड़े कई भी कोई मरता तो उसके परिवार के लोगो से पूछो की उसपे क्या बीतती हे आज तक कीसी को मारने से कोई हाल नीकला हे तो उसका कोई साक्ष हे तो बाताओ इं .प
imran delhi
Dec 30, 2008
हम सब को इसराइल का विरोध करना चाहिए,इसराइल फ़िलिस्तिनियों पर ज़ुल्म कर रह है,यहूदियों को जैसे हिटलर ने दूसरे महायूद्ध में आग की भट्टी मे झोंक दिया था वैसा ही कोई दूसरा हिटलेर मिलना चाहिए जो इन इसरायली योहूदियों को फिर से आग मे झोंका जाए. पूरे अरब देस को चाहिए की मिलकर इसराइल पर धावा बोल दें उसके होष्ठिकाने आ जायेंए,मिस्र और ईरान चुप कियों बैठें हैं,इस वक्त़ सद्दाम हुसैन होना चाहिए था. हम सब को फ़िलिस्तिनियों का समर्थन करना चाहिए,
usman mumbai
Dec 30, 2008
इजराइल को इसका ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ेगा. फ़िलिस्तीन की ज़मीन पर क़ब्ज़ा कर उन्ही के बच्चो को मार रहा है. मुस्लिम कभी आतंकवादी नही होता लेकिन अन्याय और ज़ुल्म उसको यह करने पर मजबूर करते है. यह वह क़ौम ही जो अल्लाह के लिए आखरी ख़ून तक लड़ेगी.
inam muskat
Dec 30, 2008
किस ने घर से निकाला यहूदी को? हितलेर ने नही, ज़रुसलेम की का था पहले? हिस्टोर्य को आप अपने चसमे से नही देख सकते. मुसलमान को अब अंधकर उयुग से बाहर आ के समाज ना चाहिए के मुस्लिम के अलावा और कई धर्मा है. आप लोगो को यहूदी को नफ़रत से देखना बाँध करना चाहिए.
Jiten Pune
Dec 30, 2008
अरे वजूद तो पहले इस्लाम का भी नही था और ना ही पाकिस्तान का . इसराइल को किसी ने ज़मीन -वमींन नही दी, यहूदियो को मानवता का साथ देने के लिए दूसरे विश्व युढ़ के बाद अमेरिका आदि देशो ने इनाम के तौर पर इजरायल दिया था . जब इतने दिन से संघर्ष विराम का वो पालन कर रहा था तो हमास ने उसके उपर रोकेट क्यों दागे ? अब करनी का फल तो भुगतना ही पड़ेगा . काश भारत भी पहले एसा ही कर देता तो आज ये दिन नही देखना पड़ता . जै हिंद
abhya ahmedavad
Dec 30, 2008
यह इजराइल निहतथे शहरियो पर हमला कर रहा है और बच्चो को मार रहा है. ईरान को तुरंत इजराइल पर हमला करना चाहिए. यह सब अमरीका की शाह पर कर रहा है. बुश जूते खाकर बौखला गया है. यहूदियो को एक और हिटलर चाहिए.
malik Bareilly
Dec 30, 2008
अरे भारत के नेताओ इसराइल से कुछ सीखो सालो. क्मीनो भारत की जनता फ़ाल्तू नही है की जब चाहो मार दो........... कुछ सीखो एक बंदे के बदले मे वो 50 बंदे मरता है .... अबे कम से कम 10 तो तुम भी मारो पाकिस्तानियों को...
Dev Delhi
Dec 30, 2008
इन यहूदियो को एक और हिटलर चाहिए.
sam Bombay
Dec 30, 2008
कुछ तो सिख हमरेय नेताओ को लेनी चाहिए इन लोगो से इस को कहतेय है क़रारा जवाब एक हुमारेय नेता है जो नपुसंक बनकेर तमाशा और बयानबाज़ी के अल्वा कुछ नही केर रहे
saccha hindustani indore
Dec 30, 2008
ये इसराइली जब अपने घर से निकाले गए थे उस वक़्त हिटलर था, तो उनको पनाह फ़िलिस्तिनियों ने दी थी और कहा यहां पर रहो। अब उनके घर में जब रहने लगे तो उनको ही घर से निकाल दिया जबकी घर उनका है और वो लोग अपना घर मांगते हैं तो उनको आतंकवादी की भयानक नाम देकर मार देना चाहते हैं। ये कहां का इंसाफ़ है। इंसाफ़ करो लोगों नहीं तो कल आने वाला दिन बड़ा ही घातक होगा जब मासूम मारे जाएंगे। तब इंतकाम के लिए लोग उठेंगे और ये ग़ैर मुस्लिम समझते हैं की मुसलमान को मारकर के इस्लाम का नाम मिटा देंगे। ये उनकी ग़लत फ़हमी है। इस्लाम तब तक रहेगा जब तक दुनिया रहेगी और मैं जानता हूं की यहूदी और दूसरे लोग चाहते हैं की इस्लाम को बदनाम करके और प्रसिद्ध हो जाएं।
abdul mumbai
Dec 30, 2008
जिसके कहर से आतंकियों की रूह काँप जाए, उस वीर क़ौम [इयज़राल] को भारत का सलाम ..... जय हिंद
BRAJESH KUMAR BIHAR
Dec 30, 2008
भारत को कुछ सीखना चाहिए और पाकिस्तान पे हमला करना चाहिए.
XYZ Mumbai
Dec 30, 2008
इसराइल बेक़सूर नहीं है। वही कसूरवार है क्योंकि इसराइल ब्रिटेन की तरह है और फ़िलिस्तीनी भारत की आज़ादी के क्रांतिकारियों की तरह हैं, जो अपने देश को विदेशी ताकतों से मुक्त कारवाना चाहते हैं।
danisj pali
Dec 30, 2008
क्या ये आतंकवाद नही हे ?
GUFRAN INDORE
Dec 30, 2008
इजराइल को अपनी आत्मरक्षा का पूरा अधिकार है, हमास बेक़सूर यहूडीओ को अपनी रोकेट से निशाना बना रहे है. इस समय पूरी दुनिया एक हो कर इजराइल को समर्थन देना होगा . तब हमास और अरब अपना सैतानी ज़ुबान बंद करेंगे. भारत सरकार को इजराइल का समर्थ कर के वहा तनाव काम करने की क़ोसिश करनी चाहिए...
shyam pandey sydney australia

December 29, 2008

बिना नाड़े का पजामा पहने हैं हम हिन्दुस्तानी!!

ये पजामा बिना शर्म हर वक्त सरकता रहता है, लेकिन हमें तो शर्म आनी चाहिए

दोस्तों, आज आप लोगों को कुछ पैराग्राफ पढ़ाउँगा...उसके बाद चाहूँगा कि आप लोग बोलें-लिखें और मैं पढ़ूँ...देखते हैं कि आप लोगों का कितना समर्थन मिल पाता है मुझे इस बार...ये सभी खबरें आज ही की हैं और जान जलाने वाली हैं...आप पढ़िए..

पाक ने खारिज किए सबूत
नई दिल्ली। मुंबई आतंकी हमले के संबंध में अमेरिका व ब्रिटेन द्वारा दिए गए सबूतों को पाकिस्तान ने सबूत मानने से इंकार कर दिया है। भारत के द्वारा दिए गए सबूतों को वह पहले ही खारिज कर चुका है। इस पर भारत के नेता सिर्फ चिल्लाते रहे लेकिन पाकिस्तान ने इसपर कोई ध्यान नहीं दिया। उल्लेखनीय है कि अमेरिकी जाँच एजेंसी एफबीआई ने जीवित पकड़े गए आतंकवादी कसाब के साथ ९ घंटे तक पूछताछ व अन्य जाँच के आधार पर सबूत जमा किए थे। इसी तरह ब्रिटेन ने भी अपने स्त्रोत व भारत सरकार के माध्यम से जुटाई गई जानकारियाँ पाकिस्तान को उपलब्ध कराई थीं जिन्हें खारिज कर दिया गया। 

नहीं दिया कोई अल्टीमेटमः मुखर्जी
कोडरमा (झारखंड)। भारत ने पाकिस्तान को उसके वादों की याद दिलाते हुए फिर कहा है कि वह अपनी जमीन पर चल रहे आतंकी शिविरों को नष्ट करे। लेकिन साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि इसके लिए भारत ने पाक को कोई अल्टीमेटम नहीं दिया है। पहले मीडिया में इस काम के लिए एक महीने के अल्टीमेटम की खबर आ रही थी जो २६ दिसंबर को खत्म हो गया था। इस पर भारतीय विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा कि हमने कभी कोई अल्टीमेटम नहीं दिया। इसका तो कोई सवाल ही नहीं है। पाकिस्तान ने हमसे वादा किया है कि वो आतंकी शिविरों को अपनी धरती से नहीं चलने देगा। 

पाक ने नहीं की कार्रवाई
इस बीच अमेरिका और ब्रिटेन ने भी पाकिस्तान की आलोचना की है कि उसके द्वारा मुहैया कराए गए पुख्ता सबूतों को बावजूद उसने अपेक्षित कार्रवाई नहीं की है। 

गाजा पर दूसरे दिन भी कहर
गाजा। इसराइल के रक्षामंत्री एहुद बराक ने कहा है कि शांति और लड़ाई का समय अलग-अलग होता है और अब लड़ाई का समय आ गया है। इसराइल पर हमास लड़ाकों के लगातार बढ़ रहे रॉकेट हमलों ने हमें इन हमलों के लिए उकसाया है। ये हमले जारी रहेंगे। दूसरी ओर गाजा में इसराइली हमलों में मरने वालों की संख्या ३५० से ज्यादा हो गई है। १००० से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। इसराइल का कहना है कि वो गाजा से हमास द्वारा किए जा रहे रोज-रोज के हमलों से परेशान था और कोई ठोस कार्रवाई करना चाहता था। उल्लेखनीय है कि १९६७ के बाद से ये इसराइल का सबसे बड़ा सैन्य अभियान माना जा रहा है। 

दोस्तों, मेरी बात समाप्त हुई...आप लोगों से बस इतना ही कहना चाह रहा हूँ कि आप समझ गए होंगे कि विश्व में हमारी यानी भारत की हैसियत क्यों एक लूले-लंगड़े वाले की सी है। हम सिर्फ धोती पहने नेताओं की छत्र-छाया में हैं जिनमें वाकई दम नहीं है। मेरे पास शब्द (या कहें अपशब्द) नहीं हैं इन्हें कोसने के लिए.... बस मैं इतना जरूर समझ गया हूँ कि इंदौर से दोगुणी आबादी वाले देश इसराइल (जनसंख्या ७२ लाख) की हैसियत और औकात हम ११० करोड़ आबादी वाले देश से क्यों पूरी दुनिया में ज्यादा है। हम कैसे बचा पाएँगे अपना अस्तित्व....शांतिकाल में रहकर.....?????
बाकी अब आप लोग बोलिए...???

आपका ही सचिन...।

डर कर रहते हैं बांग्लादेश में हिन्दू ..!!

रेणु अगाल, बीबीसी संवाददाता, ढाका से

बांग्लादेश की राजधानी का पुराना इलाका बिल्कुल दिल्ली के चाँदनी चौक जैसा दिखाई देता है। वही सँकरी गलियाँ और छोटी-छोटी दुकानें। यहाँ के ताते बाजार और शाखारी बाजार में कई हिंदू रहते हैं। जगह-जगह हिंदू देवी-देवताओं की तस्वीरें दिख जाती हैं। यहाँ के जगन्नाथ मंदिर के कर्ता-धर्ता और पेशे से सुनार बाबुलचंद्र दास का कहना है कि अल्पसंख्यक, खासकर हिंदुओं की स्थिति यहाँ बहुत खराब है।

BBC
उन्होंने कहा कि पिछले चुनावों के बाद भड़की हिंसा को हम नहीं भूल सकते। हमें आज भी डर है कि हम वोट डालने जाएँ या नहीं, क्योंकि बाद में हम पर हमले भी हो सकते हैं। हमें कहा जाता है कि आप हिंदू हो, भारत चले जाओ। हमने भी 1971 की आजादी के आंदोलन में हिस्सा लिया और अब हमारे पास कोई अधिकार नहीं हैं। बांग्लादेश में करीब 8-10 प्रतिशत हिंदू हैं, लेकिन सामाजिक कार्यकर्ताओ की मानें तो ये संख्या काफी ज्यादा है और सरकारी आँकड़े पूरी सच्चाई बयाँ नहीं करते। लेखक, पत्रकार और फिल्मकार शहरयार कबीर कहते हैं खेद की बात है कि बांग्लादेश में हिंदू हाशिए पर हैं। उनका संसद में, प्रशासन में सही प्रतिनिधित्व नहीं है। 
इस्लामी राष्ट्र : वे कहते हैं संविधान को जिया उर रहमान ने धर्मनिरपेक्ष से बदलकर इस्लामी रूप दे दिया था और फिर जनरल इरशाद ने इस्लाम को राष्ट्रधर्म का दर्जा दे दिया। इसके बाद हिंदू, बौद्ध, ईसाई सब दूसरे दर्जे के नागरिक हो गए। हिंदुओं से भेदभाव और उनका दमन जारी है। वर्ष 2001 के चुनाव के बाद हुई हिंसा आज भी दहशत फैला रही है। कबीर के अनुसार देश में भय का माहौल है और जैसे-जैसे इस्लामी चरमपंथ उभर रहा है, धर्मनिरपेक्ष ताकतों की जगह कम होती जा रही है। हालाँकि यहाँ के हिंदू स्वयं को अल्पसंख्यक नहीं मानते और अपने को मुख्यधारा के हिस्से के रूप में देखते हैं। काजोल देवनाथ हिंदू बौद्ध ईसाई एकता परिषद से जुड़े हैं। वे बताते हैं जब पूर्वी पाकिस्तान था, राष्ट्रीय असेंबली की 309 में से 72 सीटें अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित थीं। उनका कहना है अल्पसंख्यकों ने अलग सीटों के बजाय सम्मिलित सीटों की माँग की, पर आज हालत यह है कि अवामी लीग ने 15 करीब तो बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने केवल चार से पाँच अल्पसंख्यक उम्मीदवार खड़े किए हैं। देबनाथ के मुताबिक जिस भी हिंदू से बात करते हैं, वे 2001 के चुनावों के बाद हुई हिंसा की याद से सिहर उठता है। शिराजपुर में पूर्णिमा नाम की 15 साल की लड़की से सामूहिक बलात्कार हुआ। बारीसाल, बागेरहाट, मानिकगंज और चिट्टागोंग समेत दक्षिण और उत्तर बांग्लादेश में अत्याचार का दौर चला। घर, मंदिर, धान की फसलें जला दी गईं। ये हिंसा महीनों चली। 

भारत का असर : ढाका विश्वविद्यालय के रिटायर्ड प्रोफेसर अजय राय कहते हैं और तो और लड़कियों के साथ बदसलूकी होती है। सिंदूर और बिंदी लगाने पर फिकरे कसे जाते हैं। भारत की घटनाओं का असर भी बांग्लादेश के हिंदू झेलते हैं। राय का कहना है कि जब भारत में कुछ घटनाएँ होती हैं, जैसे गुजरात या बाबरी मस्जिद विध्वंस, यहाँ प्रतिक्रिया बहुत तीव्र होती है। बाबरी विध्वंस के बाद यहाँ हिंदू पूजा स्थलों पर कई हमले हुए। अल्पसंख्यकों की जमीन पर कब्जा कर लेने की समस्या लगातार बनी रहती है, क्योंकि वे कमजोर हैं और सरकार और प्रशासन का भी साथ उन्हें नहीं मिलता। अजय राय एक गैरसरकारी संस्था संपृति मंच के जरिये कानून-व्यवस्था पर नजर रख रहे हैं और अल्पसख्यकों से चुनाव में बेखौफ हिस्सा लेने का आह्वान कर रहे हैं। साथ ही किसी भी हिंसक घटना या डराने-धमकाने की कोशिश को चुनाव आयोग तक पहुँचा रहे हैंलेकिन हिंदू समुदाय चुनाव के बाद और सरकार गठन के दौर में संभावित हिंसा से अब भी चिंतित है।

December 27, 2008

भारत के ५० करोड़ लोग मारना चाहते हैं पाक कट्टरपंथी..!!

पाकिस्तानियों की लफ्फाजी, लेकिन हमें गंभीरता से लेना होगा

दोस्तों, आज पाक की कई वैबसाइट्स (अखबारी) में पाकिस्तान के उत्पादन मंत्री सरदार अब्दुल कयूम जतोई के हवाले से एक खबर छपी है। इसे न्यूज एजेंसी एएनआई ने भी जारी किया है। कयूम कह रहे हैं कि अगर भारत ने पाक के ऊपर आक्रमण किया तो हम उसका जवाब परमाणु बम से देंगे। और भारत को ये याद रखना चाहिए कि हम भारत की ११० करोड़ आबादी में से ५०-६० (पचास-साठ) करोड़ लोग मार देंगे जबकि वो हमारे १२ करोड़ लोग ही मार सकता है। इससे अधिक नुकसान भारत हमारा नहीं कर सकता। भारत को ये नहीं भूलना चाहिए हम उसे ज्यादा नुकसान पहुँचा सकते हैं। 

वाह, बहुत नेक विचार हैं। पाकिस्तान के मुसलमान वैसे भी चाहते हैं कि दुनिया से हिन्दुओं का नामो-निशान मिट जाए। वो ये भी चाहते हैं कि संसार से यहूदियों और ईसाइयों (इसमें अमेरिका भी शामिल है) को भी मिटा दिया जाए। वे प्रयास भी करते हैं जैसे उन्होंने मुंबई में कुछ अमेरिकी और यहूदियों को मारकर किया (जैसे कि मात्र इससे अमेरिकी और यहूदी संसार से खत्म हो जाएँगे) .... जहाँ एक ओर पाक प्रधानमंतत्री गिलानी भारत के सामने गिड़गिड़ा रहे हैं कि वो युद्ध नहीं चाहते वहीं उस देश का छक्का मंत्री अपने बिल में से चिल्ला रहा है कि वो हमारे ५० करोड़ लोग मार देगा। चलो मान लेते हैं कि ऐसा हो जाता है और पाकिस्तान अपने सभी परमाणु बम भारत के ऊपर छोड़ देता है। ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए...??? (हालांकि ये असंभव है फिर भी मैं विश्लेषण करना चाहता हूँ) 

आज यानी शनिवार को नई दुनिया इंदौर के पहले पेज पर एक खबर छपी है। हालांकि ये अतिवादिता पूर्ण खबर है लेकिन मैं उक्त अतिवादी स्टेटमैन्ट के साथ इसका उल्लेख यहाँ करना चाहता हूँ। इस खबर की हैडिंग है हिन्दू परमाणु बम से बदलेंगे भूगोल... इसमें किसी कालकी गौर नामक कट्टरवादी हिन्दू लेखक की एक पुस्तक अमेरिकन न्यूक्लियर वैपन डोक्टराइन का जिक्र है।
 खबर में किताब के अंदर की कुछ बातें मैं यहाँ दे रहा हूँ। 
... भारत संभावित तीसरे विश्वयुद्ध में अमेरिका तथा पश्चिमी देशों का साथ देकर विश्व का भूगोल बदलेगा। विश्व में धर्मों और सभ्यताओं के युद्ध में देशों का विभाजन, विलय तथा कई नए देशों का उदय होगा। भारत कनाडा को परमाणु छतरी दे सकता है। इसी तरह तिब्बत को स्वतंत्र कराने में भी भारत को अहम भूमिका निभानी है। आतंकवादियों के हाथों में परमाणु बम ना पहुँचे इसके लिए भारत को ईरान और कजाकिस्तान के साथ मिलकर चलना होगा। हिन्दू परमाणु बम के बल पर लैटिन अमेरिका, एशिया, अफ्रीकी देशों का भविष्य बनेगा-बिगड़ेगा। ....

दोस्तों, उक्त खबर और उसमें किताबों के उल्लेखित अंशों की भाषा उग्र व वैमन्यपूर्ण लग सकती है लेकिन अगर पाकिस्तान में उग्र सोचने वाले लोग हैं तो भारत में भी हो सकते हैं जो पूरे विश्व का नक्शा बदलने की सोच रहे हैं। दूसरे ये कि भारत को अगर ये बात कंफर्म हो जाती है कि उसकी ५० करोड़ आबादी मारी जाने वाली है तो वाकई इस सोच में फिर कोई बुराई नहीं है कि उसके बाद भारत को अधिक बड़ी जिम्मेदारी के लिए तैयार होना चाहिए। अगर पाकिस्तान को लगता है कि वो अपनी से तीन गुणा ज्यादा आबादी को यहाँ मार देगा तो हमें उस देश से आगे की सोचनी ही होगी। ठीक उसी तरह जैसे एक अकेला इसराइल अपने आस-पास २२ अरब देशों से लड़ रहा है। कह सकते हैं कि अपना अस्तित्व और धर्म बचाने की खातिर। हम पर फिलहाल वैसा खतरा नहीं है लेकिन अगर हुआ तो हमें इसराइल से १५० गुणा अधिक तेजी से सोचना और करना होगा क्योंकि उसकी आबादी ७५ लाख है जबकि हमारी ११० करोड़। हम शक्ति में भी पीछे नहीं, हाँ इच्छाशक्ति में जरूर पीछे हैं। हालांकि कहा जा सकता है कि ऊपर कही गई ज्यादातर बातें लफ्फाजी हैं और इनके पीछे कोई तर्क नहीं...तो मैं यहाँ उदाहरण देना चाहता हूँ कि किसने सोचा था कि प्रथम विश्वयुद्ध में एक करोड़ लोग मारे जाएँगे, या द्वितीय विश्वयुद्ध में पाँच करोड़ लोग मारे जाएँगे, कि जापान के दो शहरों में परमाणु बम फैंककर लाखों लोगों को मौत के घाट उतार दिया जाएगा, कि प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्धों ने वाकई संसार का नक्शा बदल दिया था, कि जब से मानव सभ्यता अस्तित्व में आई है तब से अभी तक साठ हजार बड़ी लड़ाईयाँ लड़ी जा चुकी हैं, कि अभी तक लड़ाईयों ने ही महामानवों और महादेशों-महाशक्तियों को जन्म दिया है। अस्तित्व लड़ाईयों से ही बचता और बिगाड़ा जाता है। याद रहे कि हमारे देश में महाभारत हुआ था। राम और कृष्ण दोनों ने ही युद्ध लड़े हैं। जबकि युद्ध तो वे दोनों भी नहीं चाहते थे। अहिंसा की बात करने वाले बुद्ध को देखिए...उनके अनुयायी ही संसार की सबसे बर्बर कौम हैं....जापान, चीन, कोरिया और वियतनाम इसके उदाहरण हैं। ये कौम सबकुछ खाने वाली और बर्बरता से लड़ने वाली हैं। गोरखा और मंगोल भी इसके उदाहरण हैं। अगर मरना ही है तो डरना कैसा...युद्ध को अंतिम समय तक हम टालेंगे लेकिन जब शुरू होगा तो इतिहास बनाने की सोचना ही होगा.......और हाँ, बात अभी खत्म नहीं हुई है...।

आपका ही सचिन....। 

December 26, 2008

मुस्लिम इतिहासकारों की हमारे प्रति सोच..!!

सुनकर खड़े हो जाएँगे रोंगटे
दोस्तों, किसी के मन में हमारे लिए क्या है ये बात हमारे मुंह पर कभी नहीं कही जाती। लेकिन पीठ पीछे ऐसी बातें होने से सच्चाई का पता चल जाता है। भारत या कहें हिन्दुस्तान के बारे में इस्लाम और पाकिस्तान की सोच क्या है ये हमें उन्हीं के मुंह से पता चल सकता है और वो भी तब जब वो आपस में हमारे बारे में बातें कर रहे हों। इसी प्रकार का वाक्या कुछ दिन पहले हुआ। यू-ट्यूब पाकिस्तान के कुछ इतिहासकारों और इस्लामिक विद्वानों के भारत के बारे में विचार दिखा रहा था। ये वीडियो एक पाकिस्तानी चैनल पर चल रहे एक प्रोग्राम की रिकार्डिंग थी। ये चर्चा वर्तमान में चल रहे भारत-पाक के बीच तनाव को लेकर थी। पुराने युद्धों को लेकर भी थी जो आजादी के बाद लड़े गए। हालांकि मैं उन पाक इतिहासकारों और इस्लामिक विद्वानों के नाम भूल रहा हूँ लेकिन मैंने जितनी बातें सुनीं वो रोंगटे खड़ी करने वाली थीं। उन लोगों की भयंकर सोच को जाहिर करने वाली थीं। मैं उन्हें हूबहू यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ...उसके बाद आपके सामने अपने मन के कुछ विचार रखूँगा।
चर्चा में भाग ले रहे एक मुस्लिम इतिहासकार का भारत के इतिहास और हिन्दुओं के ऊपर कमेन्ट देखिए.......ये हिन्दू कौम बिल्कुल डरपोक कौम है। मुसलमानों के अधीन रहने वाली कौम है। ना जाने इस समय ये इतनी दम कहाँ से दिखा रहे हैं। हमने भारत और वहाँ रहने वाले हिन्दुओं पर ९०० (नौ सौ) साल राज किया। इन ९०० सालों में ये हिन्दू हमारे अधीन या कहें हमारी गुलामी में रहने के इस कदर आदी हो गए थे कि इन्हें इस्लाम के अलावा और कुछ अच्छा लगता ही नहीं था। इनमें से कई हिन्दुओं ने तो हमारी भाषा अरबी-फारसी और उर्दू भी सीखी। कई हिन्दुओं ने अपने घरों में अपने बच्चों के लिए इन भाषाओं को पढ़ाने का इंतजाम किया था। इसके लिए मौलवी लगवाए जाते थे। कई हिन्दू अपने बच्चों को पढ़ने के लिए मदरसों में भी भेजते थे। हमारा तो ये कहना है कि हिन्दुओं को बिगाड़ा तो सिर्फ अंग्रेजों ने....उन्होंने इनकी आदत बिगाड़ कर रख दी। १८५७ के गदर में भी अंग्रेजों के खिलाफ जब हिन्दुओं ने खड़े होने की सोचा तो उन्हें एक मुसलमान राजा की जरूरत महसूस हुई। उसके बिना उनका काम चल ही नहीं सकता था। तो उन्होंने उस बहादुर शाह जफर को अपना राजा बनाया जो ठीक से खड़ा भी नहीं हो पाता था। जफर के राजा बनते ही हिन्दुओं में जान आ गई। उन्हें एक मुसलमान राजा की जरूरत थी जो उनपर राज कर सके। इससे उन्हें शक्ति मिलती थी। हालांकि उस गदर में हिन्दुओं के कुछ राजा जैसे तात्या टोपे और एक रानी (लक्ष्मीबाई) भी शामिल थीं लेकिन फिर भी उन्हें एक मुसलमान राजा की जरूरत थी फिर भले ही वो चल ही क्यों ना पाता हो।लेकिन इन हिन्दुओं में कोई एक आचार्य चिनक्य (चाणक्य की एक बड़ी सी तस्वीर सामने आती है) भी हुआ था। ये बड़ा ही बदमाश आदमी था। इसने हिन्दुओं को पीठ के पीछे से वार करना सिखाया था। इसके समय जो भी हिन्दू राजा लड़ाइयाँ जीतने में कामयाब हुए वो सभी पीछे से वार करने से ही जीत पाए। हालांकि यह सब इस्लाम आने के बहुत पहले की बात है। बाद में तो पीछे से वार करने की स्ट्रेटेजी भी नहीं चली हिन्दुओं की। तो हमारे ९०० साल राज करने के दौरान ही ये अंग्रेज हिन्दुस्तान में आ गए। ये जानते थे कि उन्हें इन दब्बू हिन्दुओं से तो कोई डर है नहीं, उन्हें जब भी खतरा होगा तो मुसलमानों से ही होगा क्योंकि सिर्फ मुसलमान ही इन्हें मारकर भगा सकते थे इसलिए इन्होंने मुसलमानों को पीछे करने के लिए इन हिन्दुओं को बढ़ावा देना शुरू किया। हिन्दुओं ने इस मौके को लपक लिया क्योंकि ये वफादारी नहीं जानते। अंग्रेजों ने इन्हें सरकारी नौकरियों और अन्य सभी महत्वपूर्ण जगहों पर स्थापित किया और अंत में जाते-जाते ये हिन्दुस्तान भी इन्हें दे गए जबकि इन्होंने ये मुल्क लिया हमसे था। हमारी इसी बात की लड़ाई है कि जिस सरजमीं पर हमने ९०० साल राज किया उसे इन हिन्दुओं को क्यों सौंपा, और हमें पाकिस्तान जैसा एक टुकड़ा देकर अंग्रेजों ने सोचा कि हम संतुष्ट बैठ जाएँ। ये कैसे संभव है...??
दोस्तों, ये सारी बातें उन पाकिस्तानी इतिहासकारों ने कहीं। इन बातों से हमें ये पता चलता है कि कोई मुसलमान या पाकिस्तानी हमारे और हमारे धर्म के लिए क्या सोचता है...क्योंकि ये सारे लोग विद्वान (?) थे। इस बीच हालांकि वे एक भी बार नहीं कबूले कि अंग्रेजों ने उन्हें कैसे धुन कर रख दिया लेकिन हम ये समझ लें कि भारत में हमें जो ये पढ़ाया जाता है कि अंग्रेजों ने हमें गुलाम बनाकर २०० साल तक रखा तो हमें ये भी पढ़ाया जाना चाहिए कि मुसलमानों ने हमें ९०० सालों तक गुलाम बनाकर रखा, क्योंकि वो लोग ऐसा ही मानते हैं। अगर अंग्रेज आंक्राता थे तो मुगल भी आक्रांता थे। हमें ये भी पढ़ाना चाहिए कि हम मुसलमानों की गुलामी से निकलकर अंग्रेजों की गुलामी में गए और ये भी कि दोनों ही गुलामी थीं लेकिन अंग्रेजों का शुक्रिया कि उन्होंने हमें सत्ता सौंपी नहीं तो सत्ता लेने के मूड में तो यही लोग दिख रहे थे। और आखिर में ये कि अगर हम अपने घटिया नेताओं के चलते इस बार अगर अपनी आजादी खोते हैं तो फिर से बात १००० सालों के लिए जाएगी.....हमारी कई पीढ़ियाँ गुलाम बनकर जिएँगी...क्या आपको ये मंजूर है...??
आपका ही सचिन.....।

December 25, 2008

आंतरिक और बाहरी हमलावरों से हम कितने सुरक्षित?








भारत में तीन करोड़ अवैध बांग्लादेशी, देश में गंभीर खतरे की आशंका

दोस्तों, हमारे देश के लिए कुछ चिंता की बातें हैं लेकिन हमेशा की तरह हम सब इसकी तरफ से आँखे मूँदे रहते हैं। आखिर हमारा घर तो सुरक्षित है...बस यही सोच है हमारी.....और यही सोच किसी दिन ले भी डूबेगी हमें....। तो आप लोग उन बांग्लादेशी मुसलमानों की सुनते तो रहते ही होंगे जो रोजी-रोटी के चक्कर में हमारे देश में आ गए हैं। तो स्थिति अब विकट हो गई है। जरा बानगी देखिए....
देश में पूर्वोत्तर राज्यों की सीमाओं पर पर्याप्त चौकसी का अभाव होने से बांग्लादेश से प्रवेश करने वाले घुसपैठिए असम, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल और बिहार तक ही नहीं, बल्कि राजधानी दिल्ली के अलावा कई अन्य प्रमुख शहरों तक पहुँच गए हैं और आज हालत यह है कि पूरे देश में घुसपैठियों की संख्या तीन करोड़ को पार कर चुकी है। सिर्फ दिल्ली में ही बाग्लादेशी मुसलमानों की संख्या २० से ३० लाख के बीच है और इनकी हलचल में मैंने खुद अपनी आँखों से देखी है जब मैं दिल्ली में रहा करता था। बांग्लादेशियों के देश में बे-रोकटोक घुसपैठ के कारण सीमावर्ती जिले मुस्लिम बहुल हो गए हैं और इन प्रांतों का जनसंख्या संतुलन बिगड़ गया है। असम के पूर्व राज्यपाल अजयसिंह ने भी केंद्र सरकार को सौंपी रिपोर्ट में स्पष्ट किया था कि हर दिन छह हजार बांग्लादेशी देश में घुसपैठ करते हैं। दूसरी तरफ संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछली जनगणना में बांग्लादेश से एक करोड़ लोग गायब हैं। इन घुसपैठियों के चोरी, लूटपाट, डकैती, हथियार एवं पशु तस्करी, जाली नोट एवं नशीली दवाओं के कारोबार जैसी आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने के कारण कानून व्यवस्था पर गंभीर खतरा पैदा हो गया है। इसके अलावा बांग्लादेशी घुसपैठ आतंकवादी संगठनों एवं पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई की गतिविधियों के लिए एक हथियार के रूप में उभरकर देश की सुरक्षा के समक्ष खतरा पैदा कर रही है।

गत 17 दिसंबर को बिहार के किशनगंज में आयोजित एक रैली के दौरान संघ की प्रशाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने इन घुसपैठियों के खिलाफ जंग का ऐलान करते हुए घुसपैठियों की पहचान और उनकी नागरिकता समाप्त करने के लिए स्वतंत्र टास्क फोर्स के गठन और चिकन नेक पट्टी को विशेष सुरक्षित क्षेत्र घोषित कर इसे सेना के हवाले करने की प्रधानमंत्री से माँग की। परिषद की माँगों में 1951 की भारतीय नागरिक पंजीयन के आधार पर बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान कर उनका नाम मतदाता सूची से हटाने और उनकी नागरिकता समाप्त करने के लिए तथा घुसपैठ संबंधी मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए सभी राज्यों में त्वरित अदालतों का गठन करने की माँग भी शामिल थी। परिषद ने आरोप लगाया कि वोट बैंक की राजनीति के कारण सत्ता में बैठे कुछ लोग देश की एकता और अखंडता के साथ समझौता कर रहे हैं। गौरतलब है कि पूर्वोत्तर राज्यों को शेष भारत से जोड़ने वाले 32 किमी लंबे और 21 से 24 किमी चौडे़ सिलीगुड़ी कॉरिडोर को चिकन नेक पट्टी के नाम से जाना जाता है। बाग्लादेशियों की इस घुसपैठ को रोकने के लिए भारत-बांग्लादेश सीमा को पूरी तरह सील करने, तारबंदी का काम जल्द से जल्द पूरा कर उसमें विद्युत प्रवाह की व्यवस्था करने, सीमावर्ती क्षेत्र में सभी मस्जिदों, मदरसों अन्य धार्मिक स्थलों तथा नए बसे गाँवों की जाँच करने और देश की सुरक्षा के लिए अवैध निर्माणों को हटाने तथा सीमा सुरक्षा बल को आधुनिक उपकरण हथियार और व्यापक अधिकार देने की भी माँग भी की गई है।
उल्लेखनीय है कि चार साल पहले केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने भी डेढ़ करोड़ बांग्लादेशियों का घुसपैठ की बात स्वीकार की थी। इसके अलावा वैध तरीके से वीजा लेकर आए करीब 15 लाख बांग्लादेशी भी देश में गायब हैं। छह मई 1997 में संसद में दिए बयान में तत्कालीन गृह राज्यमंत्री इंद्रजीत गुप्ता ने भी स्वीकार किया था कि देश में एक करोड़ बांग्लादेशी हैं। ऐसी सूचना है कि पश्चिम बंगाल के 52 विधानसभा क्षेत्रों में 80 लाख और बिहार के 35 विधानसभा क्षेत्रों में 20 लाख बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं। दोस्तों, ये मेरी रिपोर्ट नहीं है, ये संयुक्त राष्ट्र और न्यूज एजेंसियों की रिपोर्ट है।
दोस्तों, हालांकि हमारे देश की सरकारों और नेताओं को इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन ये सही है कि मुस्लिम कट्टरपंथी हमेशा कुछ और ही जुगाड़ में रहते हैं। आपको यहाँ दो नक्शे दे रहा हूँ इन कट्टरपंथियों की योजनाओं को दर्शाने के लिए जिसमें ये भारत को इस्लामिक स्टेट बनाना चाहते हैं। हालांकि बांग्लादेशी मुसलमानों (घुसपैठियों) को हमारे देश के वामपंथियों का वरदहस्त मिला हुआ है लेकिन मुझे कम्युनिस्ट नेताओं और मुस्लिमों का कॉम्बिनेशन कभी समझ में नहीं आता। कम्युनिस्ट धर्म को दरकिनार करते हैं और मुसलमानों के लिए धर्म से बढ़कर और कुछ नहीं है। संसार के ५६ मुस्लिम देशों में से कहीं भी कम्युनिस्ट पार्टी अस्तित्व में नहीं है और ना ही कोई कम्युनिस्ट वहाँ मिलता है। दूसरा अगर किसी भी देश पर मुसलमानों का कब्जा होगा या हो जाता है तो सबसे पहले वो इन्हीं कम्युनिस्टों को अपने यहाँ से मारकर भगाएँगे क्योंकि इनका वहाँ फिर कोई काम नहीं बचेगा।
बांग्लादेश से भागकर यहाँ आ रहे करोड़ों मुसलमानों को देखकर हमें डर नहीं लग रहा ये आश्चर्य की बात है क्योंकि इनकी संख्या आस्ट्रेलिया (एक पूरा देश) की संख्या से भी ज्यादा है भाई। वो लेबनान का गृहयुद्ध याद है ना आपको। जो कुछ दशक पहले हुआ था। फ्रांस से १९४१ में कब्जा छुड़ाने के बाद लैबनान अरब लीग में शामिल हुआ और इसराइल से उलझ गया। फिर १९७१ से ७५ तक वहाँ गृहयुद्ध भी चला। इस गृहयुद्ध में लैबनान की राजधानी बैरूत के बाहरी क्षेत्रों में रह रहे ईसाईयों पर स्थानीय मुसलमान आदतानुसार हमला करने पहुँच गए। लेकिन ईसाई युवाओं ने उनका दृढ़ता के साथ मुकाबला किया और उन्हें पीछे हटने के लिए मजबूर किया। लेकिन हमारे यहाँ स्थिति बिल्कुल उलट है। हम आज तक नहीं मानते कि हमारे यहाँ गृहयुद्ध हो सकता है जबकि हम भारत-पाक बँटवारे के समय वैसी भयावह स्थिति से दो-चार हो चुके हैं। हमारे सरकारी तंत्र के पास ना तो हमें बचाने के इंतजाम हैं और ना ही खुद को। ऐसे में हम बाहर से आने वाले खतरनाक घुसपैठियों का मुकाबला कैसे करेंगे। शायद ये कम्युनिस्ट बेहतर बता पाएँगे।
आपका ही सचिन...।

December 24, 2008

आखिर कैसी होती है सेक्युलर शादी..??

ऐसी शादियों के मामले में एक धर्म नरम है दूसरा गरम
आज सुबह एक खबर पढ़ी। हालांकि मामला काफी पुराना है लेकिन आज सामने आया तो सोचा कुछ बातें आप लोगों के साथ शेयर करूँ। खबर कलकत्ता की थी।... कि प्रियंका तोड़ी के प्रेमी और बाद में बने पति रिजवान उर रहमान के हत्याकांड के मामले में प्रियंका के पिता अशोक तोड़ी के छोटे भाई की जमानत याचिका खारिज हो गई है। इस केस से मुझे याद आया कि कैसे उस रिजवान उर रहमान ने कलकत्ता के हाई प्रोफाइल बिजनेस मैन अशोक तोड़ी के घर में हाथ मारा था और उनकी बेटी प्रियंका तोड़ी से बहला-फुसला कर शादी कर ली थी। प्रियंका भी आम हिन्दू लड़कियों की तरह रिजवान के बहकावे में गई थी जो उसका कम्प्यूटर शिक्षक था। इस बेमेल शादी के बाद अशोक तोड़ी ने रिजवान की हत्या करवा दी। हालांकि मामला बहुत उछला लेकिन मुझे इसमें कुछ अलग एंगल नजर आते हैं।
रिजवान की प्रियंका से शादी के बाद हत्या कर दी गई। इस मामले पर पूरे पश्चिम बंगाल के मुसलमान एक हो गए और उन्होंने कलकत्ता समेत जगह-जगह पर रैलियाँ निकालकर कहा कि ये एक प्रेम विवाह था। अपना प्रेम चुनने का हक सभी को है। अपने प्रेम से शादी करने का हक भी सभी को है। रिजवान को मारना गलत था। दोषियों (प्रियंका के पिता जिन्होंने अपनी लड़की को पढ़ा-लिखाकर बड़ा किया ताकि वो एक टुच्चे कम्प्यूटर शिक्षक मुस्लिम लड़के के साथ भाग जाए) को कड़ी से कड़ी सजा दी जाए आदि-आदि। दोस्तों, बंगाल के मुस्लिम समाज ने उस समय प्रेम को लेकर कई बातें कहीं। मामले की सीबीआई जाँच चली, अब मुकदमा कोर्ट में है। लेकिन मैं यहाँ कहना चाहता हूँ कि मैंने अपने ३१ वर्ष के जीवन में आजतक कोई ऐसा प्रेम विवाह नहीं देखा जिसमें लड़का गरीब हिन्दू हो और लड़की करोड़पति मुस्लिम घराने की हो। इतना ही नहीं मैंने आजतक ऐसा प्रेम विवाह भी नहीं देखा जिसमें लड़का अमीर हिन्दू हो और लड़की गरीब मुसलमान। मैंने तो आज तक दोनों गरीब भी नहीं देखे, यानी गरीब हिन्दू लड़का और गरीब मुसलमान लड़की ने शादी की हो। लेकिन इन्हीं तीनों कॉम्बिनेशन्स में मैंने इस जोड़ को उलटा हजारों बार देखा है। मेरे ही कई मुसलमान मित्रों, प्रोफेसरों और अन्य पेशे से सरोकार रखने वालों (मुसलमानों) को भी मैंने हिन्दू लड़कियों से विवाह करते हुए देखा है और जाहिर है कि वे भागकर किए गए प्रेम विवाह होते थे और ऐसा करने वाले ज्यादातर मुसलमान युवक या आदमी जिन्दा बचे हुए थे क्योंकि हरेक हिन्दू लड़की का पिता प्रियंका तोड़ी के पिता की तरह दुस्साहसी नहीं होता।
अब तस्वीर का दूसरा रुख भी देख लीजिए। मेरे सामने कई ऐसे उदाहरण हैं कि कोई हिन्दू लड़का मुस्लिम लड़की को लेकर भागा और बाद में लड़की के घरवालों ने या तो उस लड़के को जान से मार डाला और कई बार साथ में धर्म का नाम खराब करने वाली उस लड़की को भी जान से मार दिया। ऐसे उदाहरण हजारों हैं। कुछ समय पूर्व कुक्षी (धार) में ऐसा ही केस सामने आया था जब एक मुसलमान लड़की से एक हिन्दू लड़के ने शादी कर ली। जब काफी बुलाने के बाद भी वो भूमिगत जोड़ा सामने नहीं आया तो लड़की के घरवालों ने यह कहकर उसे अपने हिन्दू पति के साथ बुलाया कि वो इस शादी को स्वीकार करते हैं और इसके लिए एक समारोह करना चाहते हैं। इन बातों में आकर जब वो भोला युगल लड़की के घरवालों के पास गया तो लड़के और लड़की दोनों को कई टुकड़ों में काट दिया गया। ऐसे मामलों के इतर दूसरे मामले इस तरह से हैं, कि हिन्दू लड़कियाँ मुस्लिम लड़कों के साथ शादी करने के बाद अपना धर्म बदलकर इस्लाम कर लेती हैं...लेकिन अगर कोई हिन्दू लड़का किसी मुस्लिम लड़की के साथ शादी करता है तो या तो वो अपना धर्म बदलकर इस्लाम करता है या फिर मार दिया जाता है।
दोस्तों, मैं मूल रूप से आगरा का रहने वाला हूँ। वो भी ठेठ मुस्लिम इलाके का। मैंने इन सब बातों को बहुत पास से देखा-समझा है। शुरू में तो मैं समझता रहा कि ये (मुस्लिम लड़का-हिन्दू लड़की) सेक्युलर शादी है लेकिन बाद में समझ आया कि इन सेक्युलर शादियों में लड़की हमेशा हिन्दू धर्म की होती है और मुस्लिम लड़की होना यानी लड़की या लड़के में से किसी एक की हत्या होना अवश्यंभावी है। मेरे एक परिचित मुस्लिम ने तो इन बातों पर कहा कि हाँ, ये सही है कि मुस्लिम लड़का किसी हिन्दू या अन्य किसी धर्म की लड़की से शादी कर सकता है लेकिन हम अपनी लड़की किसी को दें, ये असंभव है, ऐसा तो शरीयत में लिखा ही नहीं है।
दोस्तों, हमारे देश के महान (?) धर्मनिरपेक्ष लोग उक्त सेक्युलर शादियों के पक्षधर होते हैं लेकिन वो भी किसी ऐसी शादी का पक्ष लेते हुए मुझे आज तक नहीं दिखे जिसमें लड़का हिन्दू और लड़की मुस्लिम हो। ठीक उसी तरह जैसे मैंने हजारों ऐसे कम्युनिस्ट हिन्दू देखें हैं जो अपने धर्म को गाली देते हैं लेकिन आज तक एक भी ऐसा मुस्लिम कम्युनिस्ट नहीं देखा जो इस्लाम के खिलाफ कुछ बोलता हो। मैंने एक भी ऐसा हिन्दू कम्युनिस्ट भी नहीं देखा जो इस्लाम के खिलाफ बोल पाता हो...क्योंकि वो जानता है कि हमारे धर्म को गाली देने से उसका कुछ नहीं होगा लेकिन इस्लाम के खिलाफ कुछ भी बोला तो वो अपनी गली के नुक्कड़ पर मार दिया जाएगा। ऐसे सेक्लुलर लोगों के लिए हिन्दू धर्म ही ठीक है क्योंकि वे मुसलमान होकर ना तो किसी सेक्युलरिज्म की बात कर पाएँगे और ना ही किसी सेक्युलर शादी को अंजाम दे पाएँगे। लेकिन हम ऐसे सेक्युलरों से कैसे पार पा पाएँगे ये हम नहीं जानते क्योंकि ये दुर्लभ प्रजाति तो पूरे संसार में सिर्फ हमारे देश में ही पाई जाती है, और वो भी बहुतायत में......!!!!!!
आपका ही सचिन....।

December 23, 2008

8 things Indian govt. must do against Pakistan

R Vaidyanathan

The three-day-long terror strike on the country's financial capital was devastating in terms of its reach and impact। It has left Corporate India badly shaken and the elites numb।It is no more about bombs being thrown at bus stations or trains getting blasted। It is no longer about only Nagpada or Govindpuri residents losing limbs and lives। Terror has now climbed up the value chain।As the new age entrepreneur Kiran Majumdar Shaw told a Bangalore newspaper, "So far, the terrorists targeted common people. Now the society's elite, the business sector, is the target. What happened in Mumbai is a loud wake-up call for all of us to do something to protect ourselves."Corporate India did not bat an eyelid when Mumbai train blasts took place, or when Sarojini Nagar was burning on a Diwali day, or Hyderabad was weeping two years before.But today, every corporate captain is angry, and so are the celebrities who people Page 3 of newspapers, due largely because the attacks on the three top hotels were directly aimed at those who frequent these places, for business or pleasure (contrast this with the scant coverage of the carnage at the Chhatrapati Shivaji Terminus, for example, where commoners were involved).All the same, the bleeding-heart liberals would be back to their routine ways after a few days. They will lament that the captured terrorist has not been given his favourite food and not allowed to watch TV or use his cell phone; they will say his human rights are violated. Just wait for the chorus. Of course, this time it will be between Page 3 and the jholawalas (activists) and that should be an interesting match to watch, but that's another story.In the last ten years, not a single session of any seminar sponsored by the CII or Ficci or business/general journals has focussed on terrorism. When this writer once broached the importance of talking about it, a senior business captain said it is for the government to deal with.Many of those seminars gave importance to Musharraf and now Zardari, as if they are going to provide any solution when they are a part of the problem.Now, at least, terrorism is being realised as a problem facing the country.Let us summarise what the real situation is and what the corporate sector should do if we are serious in fighting terrorism on our soil.1. Recognise and treat Pakistan as a terrorist state. The state policy of Pakistan is terrorism and their single-point programme is to destroy India. This needs to be internalised by every business baron including the owners of media.2. Now, the elite of Pakistan are more angry, since India is growing at 7% and they are given CCC rating and stiff conditions for borrowing from the IMF. Many an academic from that country, who I have met in global conferences, has openly lamented that nobody talks about Indo-Pak relations anymore, but only Indo-China or Indo-American, etc. They want to be equal but they are in deep abyss.3. Pakistan is the only territory in the world where an army has a whole country under its control. This is an important issue since studies have found that a large number of corporates in Pakistan are ultimately owned by the Fauji Foundation (FF), Army Welfare Trust (AWT) Bahria Foundation (BF), Shaheen Foundation (SF) all owned by different wings of armed forces (See paper presented by Dr Ayesha Siddiqa-Agha on 'Power, Perks, Prestige And Privileges: Military's Economic Activities In Pakistan' in The International Conference on Soldiers in Business -- Military as an Economic Actor; Jakarta, October 17-19, 2000).Hence, do not try to think of Pakistan without its army, irrespective of who rules that country temporarily and nominally. At least 70% of the market capitalisation of the Karachi stock exchange is owned by the army and related groups.4. There are three groups in India, who are obsessed with friendship with Pakistan. One is the oldies born in that part before partition and who are nostalgic about the Lahore havelis, halwas and mujras. The second is the Bollywood and other assorted groups, who look at it as a big market. The Dawood gang has financed enough of these useful idiots. The third is the candle light holding bleeding heart liberals (BHLs) who cannot imagine India doing well without its younger brother taken care of.All three have been proved wrong hundreds of times, but they are also opinion makers. Shun them, avoid them and ridicule them.5. We should categorically, unambiguously, unequivocally boycott Pakistan in all aspects for a decade or more. Be it art, music, economy, commerce, or other hand-holding activities. That army-controlled state has to realise that it has done enough damage to global civilisation. More than 100 acts/attempts of terror recorded in the world since 9/11 have had their roots in Pakistan. More than 40% of the prisoners in Guantanamo are Pakistanis.6. We should recognise that it is our war and nobody in the world is going to wage it on our behalf. What the Americans are thinking, or what the Britishers are going to do, will not help. A determined country should have a sense of dignity and independence to fight its war.We should stop interviewing leaders from that country who mouth the same inanities that "you have not produced any proof." The Government of India should perhaps create a museum of proof between India Gate and North Block.I am amazed that a country of a billion is required even to furnish proof. If one-sixth of humanity says that the terrorist state of Pakistan is the root cause of global terrorism -- it is factual. Let us not fall into the trap of providing proof to the culprits.7. We should realise that a united Pakistan is a grave threat to the existence of India. Hence, we should do everything possible to break up Pakistan into several units. This is required to be done not only for our interest, but for world peace.8. We have made a grave blunder by suggesting in the international fora that "Pakistan is also a victim of terror." That is a grave error and it will haunt us for decades. They are perpetrators and our government is in deep illusion if it tries to distinguish between organs of power in that country thinking it is like India.There is only one organ, namely its army (with ISI as a sub-organ) in that country, which owns and controls at least 70% of the GDP in that country.If we want the world to treat Pakistan for what it is, then we should start practising it. Always call it the 'terrorist state of Pakistan' and never have any illusion that it is going to be any different.If corporate India, including electronic/ print media, starts practising this, we should see results in a few years. Are the elites listening?

The author is professor of finance and control, Indian Institute of Management-Bangalore, and can be contacted at vaidya@iimb.ernet.in.

December 22, 2008

क्यों हैं अमेरिका भारत के साथ..??

आतंकवाद के मुद्दे पर अमेरिका और अमीरों का रवैया स्वार्थसिद्धी वाला
मुंबई आतंकी हमले के बाद अमेरिका लगातार भारत के साथ पाकिस्तान को धमका रहा है। इतना ही नहीं भावी अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी भारत के पक्ष में स्वप्रेरित बयान दे दिया कि अपनी अस्मिता की रक्षा करने का भारत को पूरा हक है। वो चाहे तो पाक अधिकृत कश्मीर में स्थित आतंकी शिविरों पर हमला कर सकता है। ओबामा के बाद कोडेंलिजा राइस भारत और फिर इस्लामाबाद गईं। उन्होंने ने भी वहीं जुबान बोली। मैं पहले तो अमेरिका के इस रवैए से खुश हो रहा था। फिर बाद में सोचा कि जिस अमेरिका ने सभी युद्धों में पाकिस्तान का साथ दिया वो इस बार हमारे साथ इतनी दृढ़ता के साथ कैसे खड़ा है..?? फिर सोचने पर तो कई कड़ियाँ एक दूसरे से जुड़ गईं..।। इस बात को हालांकि आप लोगों ने भी सोचा होगा लेकिन मेरा एंगल भी देख लीजिए..

अमेरिका के सामने भारत आतंकवाद का रोना पिछले दो दशकों से रो रहा है लेकिन अमेरिका को उसकी आवाज ठीक १२ साल बाद २००१ में न्यूयार्क के वर्ल्ड ट्रेड टॉवरों के गिरने के साथ-साथ सुनाई दी। अपने ४००० नागरिकों को खोने के बाद अमेरिका को पता चला कि आतंकवाद क्या होता है?? ये करतूत अमेरिका द्वारा खड़े किए गए उसी तालिबान द्वारा की गई थी जिसे अमेरिका ने रूस के खिलाफ शह पर चढ़ाया था....उन तालिबानियों को महिमामंडित करते हुए रैम्बो-३ फिल्म बनाई थी। अमेरिका ने तुरत-फुरत विश्व भर में आतंकवाद के खिलाफ युद्ध करने का एलान कर दिया और उसमें बुरी तरह फ्लाफ रहा। तो दोस्तों, बात मुंबई हमले की चल रही है। मुंबई में आतंकियों ने ताज और ओबेराय होटल में चुन-चुनकर अमेरिकियों और ब्रिटिश नागरिकों को मारा। इस बात से अमेरिका के कान खड़े हो गए। उसने सोचा कि मैं अपने नागरिकों को अपनी भूमि यानी अमेरिका में तो बचा लूँगा लेकिन विदेशों या बाहरी जगह पर उनकी सुरक्षा का क्या होगा...?? बस इसी प्रश्न ने अमेरिका और ब्रिटेन को मजबूरन हमारे साथ खड़े रहने के लिए प्रेरित किया, नहीं तो ये वही अमेरिका है जिसने पिछले ६० साल से पाकिस्तान को अपना बगलबच्चा बना रखा है और उसे वो भारत के खिलाफ इस्तेमाल करता रहा है। कह सकते हैं कि आतंकवाद ही अमेरिका को भारत के करीब लाया है।

आतंकवाद ने एक काम और किया है। वो ताज होटल याद है ना आपको। एक बार मैं मुंबई गया था। करीब १२ साल पहले, अपने छात्र जीवन में। तब हमने ताज होटल की लॉबी देखने की कोशिश की थी डरते-डरते। हम कुछ दोस्तों को वहाँ के दरबान द्वारा भगा दिया गया। वो क्या है कि वहाँ गरीबों को या कहें कि उनकी परछाई को भी दूर से भगा दिया जाता है....तो ये भारत के हम जैसे गरीब ही हैं जिन्होंने ताज होटल में मरने वाले रईसों के लिए आँसू बहाए...नहीं तो आज तक जितने भी आतंकी हमलों में गरीब मारे गए उनमें कभी इन रईसों ने आँसू नहीं बहाए। तो आतंकवाद इस मामले (आँसू बहाने) में भी अमीरों और गरीबों को पास लाया। ठीक अमेरिका और भारत की तरह। अब अमीर भी अमेरिका की तरह समझ गए हैं कि वे सुरक्षित नहीं....किसी फाइव स्टार होटल में अपने परिवार के साथ खाना खाते हुए भी नहीं....बस यही कारण है कि इस बार ये चिकने रईस मोमबत्ती, पोस्टर और मशालें लेकर नेताओं के विरोध में उतर गए..और उन्हें देखकर भाजपा नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने लिपिस्टिक-पाउडर वाली टिप्पणी कर दी और बेचारे फँस गए, देशभर में उन्होंने गालियाँ खाईं...जबकि उस समय उनका इस हिसाब से प्वाइंट सही था। तो दोस्तों, हमें वर्तमान के हिसाब से चीजों को नहीं सोचना चाहिए....ये भी देखना चाहिए कि पहले इन्हीं लोगों या देशों का हमारे प्रति क्या रुख रहा करता था......आतंकवाद और डर ने अमेरिका को भारत के और रईसों को गरीबों के करीब कर दिया है.....लेकिन यह रिश्ता स्थाई तो कतई नहीं हो सकता क्योंकि ये मजबूरी में बना रिश्ता है......क्योंकि अमेरिका हो या होटल ताज गरीबों को कौन देखना चाहता है....????

आपका ही सचिन....।

December 20, 2008

देश को कमजोर कर रहा है अंतुले का बयान

दिग्विजय, लालू, मुलायम नहीं छोड़ पा रहे मुस्लिम राजनीति

केन्द्र सरकार में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री एआर अंतुले ने जो कहा वो सिर्फ पूरे देश ने ही नहीं बल्कि पूरे विश्व ने सुना। हम जानते हैं कि हमने (भारत ने) अपने आस्तीन में कई साँप पाल रखे हैं लेकिन हम यह भी अपेक्षा करते हैं कि जिन साँपों को हम दूध पिला रहे हैं वो कम से कम ऐसे समय तो हमारे साथ रहें जब उनकी वाकई जरूरत है लेकिन क्या करें साँप तो साँप है, वो अपनी आदत से कहाँ बाज आने वाला है। सो उसने हमें इस बार भी डस लिया। जब साँप अपना काम कर रहा था तो उसके संगी साथी अन्य संपोले भी उसके साथ हो लिए....क्या करें, ये उनकी आदत है या कह सकते हैं मजबूरी....दोस्तों, मैं देश में मुस्लिमों के नाम पर होने वाली राजनीति की बात कर रहा हूँ. ये तब भी जारी है जब इस देश को वाकई एक रहने की जरूरत है। अंतुले का घटिया बयान और उनके साथियों की हाँ में हाँ मिलाना इस देश को बहुत भारी पड़ रहा है।
दोस्तों, अंतुले को लग रहा है कि महाराष्ट्र के एटीएस प्रमुख हेमन्त करकरे को आतंकियों ने नहीं बल्कि नरेन्द्र मोदी या आरएसएस ने मरवाया है। इन्हीं लोगों के किसी कारिन्दे ने करकरे को कामा अस्पताल जाने की सलाह दी और वो वहाँ शहीद हो गए। अंतुले चाहते हैं कि मामले की जाँच हो कि किस ने करकरे एंड पार्टी को कामा अस्पताल पहुंचने के लिए फोन किया था। उल्लेखनीय है कि करकरे मालेगाँव मामले की जाँच कर रहे थे और हिन्दू संगठनों के निशाने पर थे। अब अंतुले के इस बयान पर कांग्रेस के पूर्व भ्रष्ट मुख्यमंत्री और वर्तमान महासचिव दिग्विजय सिंह भी साथ आ गए हैं। बीच में सुधरे-सुधरे से लग रहे लालू और वो बेसिरपैर की बातें करने वाले अमरसिंह भी अंतुले के बाजू में आ गए हैं। इन सब लोगों का भी यही मानना है जो अंतुले का।
दोस्तों, इस मामले से मुझे समझ आता है कि चूँकी मोदी के निंदक जगत भर में मौजूद हैं (गुजरात को छोड़कर जहाँ वे लगातार तीसरी बार जोरदारी से मुख्यमंत्री बने) तो जो चाहे, जहाँ चाहे उनपर निशाना साध लेता है। मैंने तो किसी जगह पढ़ा कि मुंबई हमलों की योजना आरएसएस और नरेन्द्र मोदी ने ही मिलकर बनाई। इस योजना में रतन टाटा को भी शामिल किया गया क्योंकि रतन टाटा के मोदी से बहुत अच्छे संबंध हैं ( टाटा आखिर नैनो को गुजरात जो लेकर गए)। तो टाटा मान गए कि उनके शानदार होटल को तहस-नहस कर दिया जाए। तो आरएसएस के आतंकी पोरबंदर से नौकाओं पर सवार हुए और मुंबई समेत पूरे देश को हिला दिया।
वाह, बहुत खूब....। इस देश में सब लोग बहुत दूरदर्शी हैं लेकिन किसी को भी यह समझ नहीं आ रहा है कि मुस्लिम राजनीति करने वाले नेता इस देश का कितना नुकसान कर रहे हैं। अंतुले के बयान के साथ इस देश के ९० प्रतिशत मुस्लिम हैं ( एक सर्वे के अनुसार)। लेकिन किसी ने ये सोचा है कि अंतुले के इस बयान को पाकिस्तान खूब बढ़ा-चढ़ाकर बता रहा है क्योंकि हम आतंकियों को पाकिस्तानी सिद्ध करने की कूटनीतिक कोशिश में लगे हुए हैं जबकि उक्त नेता आरएसएस और मोदी से जुड़ा हुआ बताने में लगे हैं। तो भारत का पक्ष दुनिया भर में इस ओछी राजनीति के चलते कमजोर पड़ रहा है। क्या हम कभी किसी मुद्दे पर एकजुट रह पाएँगे। अब तो शक होने लगा है.....!!!!!!
आपका सचिन....।

December 16, 2008

आतंक के खिलाफ ये कैसी तैयारी!

संघीय जाँच एजेंसी को मंजूरी, लेकिन राज्यों का क्या होगा??

दोस्तों, आप में से किसी को भी लग सकता है कि मैं कांग्रेस या सत्ता में आसीन यूपीए सरकार को आतंकवाद के मुद्दे पर कोसता रहता हूँ। लेकिन सिर्फ ऐसा नहीं है। जो लोग मुझे पहले से पढ़ रहे हैं वे जानते होंगे कि जब भाजपा का शासन काल था और उसमें संसद पर हमला हुआ था तब मैंने भाजपा को खूब कोसा था। कंधार विमान अपहरण मामले में भी एनडीए सरकार के लचर रवैए को कोसा था। लेकिन तब चूँकी ब्लॉग नहीं थे इसलिए मुझे पत्र-पत्रिकाओं का सहारा लेना पड़ता था। अब ये इंटरनेशनल सहारा है। लेकिन कांग्रेस से मेरे चिढ़ने की एक वजह ये है कि ये उन जगहों पर माइल्ड हो जाती है जहाँ इसे बिल्कुल नहीं होना चाहिए।बकौल इंडियाटुडे यूपीए सरकार के एक वरिष्ठ सदस्य ने कहा था कि संसद पर हमले के आरोपी अफजल गुरू को केन्द्र ने फाँसी इसलिए नहीं दी क्योंकि उसे डर था कि इससे एक समुदाय विशेष की भावनाओं को ठेस पहुँचती॥। वाह, बहुत खूब सोच है यूपीए सरकार की। इस सरकार को ये क्यों लगा कि अफजल जैसे आदमी को फाँसी दी गई तो इस देश के मुस्लिम नाराज हो जाएँगे। इतना ही नहीं कांग्रेस को यह भी लगता है कि अगर किसी भाजपा (या एनडीए) शासित राज्य को आतंकरोधी कानून की मंजूरी दे दी गई तो वो राज्य के सारे मुसलमानों को पकड़कर जेल में ठूँस देगी। अरे भाई, ऐसा नहीं होता....क्यों एक समुदाय के लिए पूरे देश की सुरक्षा को तार-तार किया जा रहा है। खबर मिली कि सोमवार रात केन्द्र सरकार की कैबिनेट ने आतंक के खिलाफ संघीय जाँच एजेंसी बनाने के लिए हरी झंडी दे दी है। अब मामला संसद में जाएगा। हम भी तो यही कह रहे थे लेकिन तब मामला समझ नहीं आ रहा था। अब जब घाव लगा है तो आह कर रहे हैं। लेकिन सिर्फ इतने भर से क्या होगा....राज्यों को भी आतंकवाद से लड़ने के लिए नाखून और दाँत देने होंगे। यूपीए सरकार ने राज्यों को किसी प्रकार आंतकवाद के खिलाफ लड़ने से बाँध रखा है जरा इसकी बानगी देखिए....केन्द्र सरकार ने राज्य सरकारों के अपराध निरोधक कानूनों को मंजूरी देने में सुस्त रवैया अपना रखा है। पाइन्टवाइज देखिए..
गुजरात- गुजरात संगठित अपराध नियंत्रण विधेयक राज्य विधानसभा ने पारित किया था और २००३ में विधेयक के मसौदे को केन्द्र सरकार ने मंजूरी दी थी। यूपीए सरकार के सत्ता में आने के बाद जून, २००४ से यह राष्ट्रपति की मंजूरी का इंतजार कर रहा है।
राजस्थान- राजस्थान संगठित अपराध नियंत्रण विधेयक को मंजूरी के लिए जनवरी, २००६ में भेजा गया। केन्द्र की आपत्तियों के बाद विधेयक में संशोधन किए गए। इसमें संदिग्ध को हिरासत में लेने का प्रावधान है। गिरफ्तारी एसपी रैंक के अधिकारी के लिखित आदेश पर।
उत्तरप्रदेश- हाईकोर्ट के निर्देश पर मायावती सरकार ने राज्य में आतंकवाद और माफिया को रोकने के लिए उत्तरप्रदेश संगठित अपराध नियंत्रण विधेयक पेश किया। यह विधेयक राष्ट्रपति की राह देख रहा है।
मध्यप्रदेश- आतंकवादी एवं उच्छेदक गतिविधियाँ तथा संगठित अपराध नियंत्रण विधेयक का मसौदा पिछले साल से केन्द्र की मंजूरी की बाट जोह रहा है। किसी राज्य सरकार द्वारा पारित सभी आपराधिक कानूनों के लिए मंजूरी जरूरी है।
आंध्रप्रदेश- चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली सरकार ने २००१ में ही आंध्र प्रदेश संगठित अपराध नियंत्रण विधेयक का मसौदा राज्य की विधानसभा से पारित करवाया था। लेकिन इस विधेयक को २००६ से ही केन्द्र सरकार की मंजूरी का इंतजार है।
आपने बानगी देखी...आज सुबह जब इस मुद्दे पर टीवी देख रहा था तो देश की एक और गद्दार कम्युनिस्ट मानसिकता वाली अरुंधति राय का बयान चल रहा था। वो दुखी थी कि एक पोटा जैसा कानून फिर से अस्तित्व में आ जाएगा और देश की धर्मनिरपेक्ष छवि खतरे में पड़ जाएगी। तो मैडम राय मैं आपसे ये कहना चाहता हूँ कि संसार का कोई भी देश धर्मनिरपेक्ष नहीं है...और अगर भारत धर्मनिरपेक्ष होकर आतंकवाद के थपेड़े खा रहा है, रोज अपने मासूम नागरिकों को खो रहा है तो हमें नहीं चाहिए यह देश धर्मनिरपेक्ष....सुन रही है आपकी जमात, जिसे इस के नागरिकों से नहीं, बल्कि उन्हें मारने वाले आतंकवादियों से प्यार है...सिर्फ धर्मनिरपेक्षता की खातिर......!!!!!!

December 14, 2008

इन मानवाधिकारियों को मारो जूते!

मदद करने से पहले भी कारण खोजना चाहिए

दोस्तों, कल शाम जब कुछ वैबसाइट्स सर्च कर रहा था तो दो बातों ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया। ये दोनों बातें आप लोगों ने आज सुबह के अखबारों में पढ़ ली होंगी। मुझे लगता है कि हमारे देश में जयचंदों ने आज भी पैदा होना नहीं छोड़ा है और एक जयचंद ने हमें १००० साल की गुलामी दिलवाई लेकिन इस समय भारत में इतने जयचंद हैं कि इस बार हम गुलाम हुए तो फिर कभी आजाद नहीं हो पाएँगे। तो शुरू करता हूँ......
पहली बात यह की हैदराबाद में पुलिस ने उन तीन लड़कों का एनकाउंटर कर दिया जिन्होंने हैदराबाद के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ने वाली दो छात्राओं पर तेजाब फैंक दिया था। छात्राएं अब गंभीर अवस्था में अस्पताल में भर्ती हैं। मैं इस बात से खुश था कि तीनों भेड़िए (लड़कों के वेष में) मारे गए। क्योंकि ये उन लड़कियों और उनके माता-पिता से पूछो कि उनकी आगे की जिंदगी कितनी दूभर होनी वाली है.....क्योंकि हमारे महान भारत देश में आज भी लड़कियों के रंग और शक्ल की बहुत अहमियत है। तो दोस्तों, कुछ मानवाधिकार संगठन तुरंत आगे आ गए कि इन लड़कों को क्यों मारा...हालांकि पुलिस का कहना है कि लड़कों ने पुलिस पर हमला करने की कोशिश की थी....लेकिन मेरा कहना है कि अगर कोशिश ना भी की हो तो भी क्या फर्क पड़ता है....?? खैर, तो हमारे देश के द्रोही मानवाधिकार संगठन फिर से अपनी खाल से बाहर निकल आए हैं.....लड़कों के अभिभावकों का कहना है कि मामला कोर्ट में जाना चाहिए था (क्योंकि उन्हें पता है कि कोर्ट में जाने के बाद लड़के छूट जाते) और मानवाधिकारवादी (जो संसार में इतनी तादाद में और कहीं नहीं पाए जाते जितनी की भारत में) ऐसे मामलों में अचानक इसलिए सक्रिय हो जाते हैं क्योंकि उनके पास करने को इस बेगारी के अलावा कोई और काम भी नहीं होता।
लेकिन सबसे ज्यादा मुझे एक खबर ने चौंकाया कि मुंबई में अंधाधुंध गोलियाँ चलाकर कई लोगों की जान लेने वाले उस हरामी पाकिस्तानी आतंकी कसाब ने कानूनी मदद माँगी है। शायद कसाब को किसी ने बताया होगा कि इस भारत देश में कितनी भी हत्याएँ करके बचा जा सकता है। उसकी मदद के लिए तैयारी भी हो गई है और एक वकील अशोक सरावगी उसका केस लड़ने के लिए राजी बताया गया है। ये सरावगी फिलहाल देशद्रोही अबू सलेम का केस लड़ रहा है। वो अबू सलेम जिसकी इतनी हिम्मत बढ़ गई थी कि वो चुनाव लड़ने का सपना देखने लगा था, ये तो भला हो कि उसे इजाजत नहीं मिली, नहीं तो हमारे देश में कुछ भी संभव है। तो दोस्तों, ये सरावगी की माँ कौन होगी ये तो मुझे नही पता लेकिन ये मैं जानना चाहता हूँ कि कहीं वो ........ तो नहीं थी। (खाली जगह में आप अपनी पसंद का कोई सा भी शब्द लगा सकते हैं क्योंकि मैं कन्फ्यूज हूँ)। दोस्तों, ये सरागवी भी मानवाधिकारवादी है। इस खबर ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया। जिस कसाब की खाल के हमें जूते बनाकर पहनने चाहिए उसे यह देश कानूनी मदद देगा। आपको वो ए.आर.गिलानी याद है। वही जेएनयू का हरामी प्रोफेसर जो संसद पर हमले के प्रमुख चार अभियुक्तों में से एक था। जब कोर्ट में उसके खिलाफ केस लड़ा जा रहा था तो वो मुस्लिम टोपी लगाकर पाकिस्तान जिंदाबाद और भारत मुर्दाबाद के नारे लगाता था। आज वो गिलानी जेएनयू में फिर से पढ़ा रहा है। कमाल है इस देश का। अरे, अगर उसपर संसद पर हमले का आरोप सिद्ध नहीं हुआ था तो भी क्या उसे सिर्फ जेल के अंदर इसलिए नहीं सड़ा देना चाहिए था कि वो भारत मुर्दाबाद के नारे लगा रहा था......?????
दोस्तों, ऐसे कई उदाहरण हैं। मानवाधिकार संगठनों पर इस देश में प्रतिबंध लगा देना चाहिए क्योंकि ये देशद्रोहियों और आतंकियों को बचाते रहते हैं। चूँकी हमारे कानून लचर हैं इसलिए पुलिस को हैदराबाद का उदाहरण लेकर पहली फुर्सत में ही अपराधी को मार देना चाहिए, नहीं तो उसके छूटने का अंदेशा हमेशा बना रहेगा। अगर मानवाधिकारवादी उसे नहीं छुड़ाएँगे तो कंधार विमान अपहरण जैसी घटना उन्हें छुड़वा देगी। क्या भारत सरकार को ये समझ नहीं आता कि जब तक अपराधियों के मन में कानून या सजा का भय नहीं होगा वो आखिर क्यों रुकेगा अपराध करने से....????सऊदी अरब, योरप या अमेरिका में अपराध क्यों कम हैं क्योंकि अपराधियों की वहाँ ऐसी की तैसी कर दी जाती है। अमेरिका ने पहले सोचा था कि मुस्लिम छात्रों को पढ़ा-लिखाकर वो उन्हें आतंकवाद से दूर कर सकता है लेकिन जब उसने देखा कि सॉफ्टवेयर इंजीनियर या पॉयलट बनकर भी ये आतंकवादी ही बन रहे हैं तो उसने पाकिस्तानी छात्रों को वीजा देना ही बंद कर दिया। लेकिन हम हैं कि अपराधियों को भी गले से लगा रहे हैं कि आओ हमारी पीठ में खंजर घोंपो। आखिर कब तक हम इन देशद्रोही मानवाधिकार संगठनों, मानवाधिकारवादियों और जयचंदों को सहेंगे....... हमें याद रखना होगा कि अगर हम इस बार गुलाम हुए तो फिर कोई रास्ता नहीं बचेगा.... अगर हमें देश बचाना है तो हमें कठोर नहीं कठोरतम होना पड़ेगा। इन मानवाधिकारियों को जूतों से मारना होगा...।
आपका ही सचिन....।

December 13, 2008

निरपराध पर दंडितः कश्मीरी पंडित



अपने ही देश में शरणार्थी बन चुके कश्मीरी पंडितों की जम्मू-कश्मीर में हो रहे विधानसभा चुनावों में कोई चर्चा ही नहीं. इस समुदाय की हालत और हिम्मत की टोह ले रहे हैं विजय सिम्हा
गोली सिर्फ शरीर को भेदती है जबकि सोच एक समूची नस्ल को. 1990 में जब कश्मीर में अलगाववाद शुरू हुआ तो माहौल में गोलियों के अलावा एक सोच भी घुलने लगी थी. फुसफुसाहटें, पोस्टर और लाउडस्पीकरों से गूंजते नारे इसका अहसास कराते थे.
हम क्या चाहते? आजादी, आजादी
सरहद पार जाएंगे, क्लैश्निकोव लाएंगे
और सबसे ज्यादा भयावह..बटो रोअस ते बटनियो सान, इस बनाओ पाकिस्तान (पंडित के बिना, पंडितानियों के साथ, हम बनाएंगे पाकिस्तान.)
इस सोच को कई बार शब्दों के बिना भी महसूस किया जा सकता था. कभी बदली हुई नजरों से तो कभी बदलते हुए बर्ताव से..
तभी से एक नस्ल के लिए बुरे दिनों की शुरुआत हो गई थी. पहली चोट थी टीका लाल टपलू की हत्या. पेशे से वकील और भाजपा की जम्मू-कश्मीर इकाई के उपाध्यक्ष टपलू चरमपंथियों की गोली का पहला शिकार बने थे. 14 सितंबर 1989 को श्रीनगर में कश्मीरी पंडितों की बस्ती हब्बा कदल के पास उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. जब टपलू की शवयात्रा, जिसमें लालकृष्ण आडवाणी भी शामिल हुए थे, निकल रही थी तो नकाब पहने अलगाववादियों ने उस पर पत्थरबाजी की और जबर्दस्ती बंद दुकानें खुलवाईं.
तब से लेकर आज तक कोई चार लाख कश्मीरी पंडित कश्मीर से गायब हो चुके हैं. ‘बुद्धि ही बल है’, इस सिद्धांत को पूजने वाले कश्मीरी पंडितों को जब घाटी छोड़ने के लिए मजबूर किया गया तो बल के आगे उनकी बुद्धि ने घुटने टेक दिए. उन्हें भागकर जम्मू आना पड़ा. खुली वादियों के बाशिंदों को यहां मिली तंग बस्तियां और अपने ही देश में शरणार्थी होने का दर्द.
18 साल बीत चुके हैं. धूलभरी इन बस्तियों में कश्मीरी पंडितों के उस धूल-धूसरित गर्व को आज भी महसूस किया जा सकता है जो कभी उन्हें अपनी नस्ल पर था. चुनाव का दौर है मगर उनके वोटों की चिंता लगभग किसी को नहीं. जो ये चिंता करने का कष्ट उठाते हुए इन शरणार्थी कैंपों की तरफ आते भी हैं उन्हें ये नजारा दिखता है.
पंडितों, जिन्हें बाकी लोग माइग्रेंट्स यानी शरणार्थी कहते हैं, की दुनिया में जिंदगी कुल जमा दो कदमों का खेल है. उनकी दुनिया एजबेस्टस की छत और चार दीवारों के मेल से बने एक कमरे में सिमटी हुई है. अगर आप इस दुनिया के बीचों-बीच खड़े हों तो दो कदम इधर टॉयलेट है और दो कदम उधर रसोई. दो कदम इस तरफ दीवार पर बना पूजाघर है और दो कदम उस तरफ टीवी. मां-बाप, बहू-बेटा, पोता-पोती सब एक कमरे में रहते हैं. जवान बहू-बेटे को कुछ एकांत मिल सके, इसके लिए बूढ़ी मां या बाप को जबर्दस्ती या तो रिश्तेदारों के यहां जाना पड़ता है या फिर कमरे के बाहर. पर घर में कोई बच्चा हो तो फिर कोई चारा नहीं. बाहर निकलने पर गली नाम की जो चीज दिखती है उससे एक बार में बस एक ही आदमी आराम से गुजर सकता है. अगर दो लोग आमने-सामने से रहे हों तो अगल-बगल से गुजरने के लिए उन्हें मुड़कर आमने-सामने होना पड़ता है.
सुबह होने के साथ-साथ बस्ती में रहने वाले बूढ़े एक हाथ में स्टूल और दूसरे हाथ में बांस का पंखा लेकर घर से चलते हैं और बस्ती से लगती सड़क के किनारे बैठ जाते हैं. सपाट चेहरे के साथ आती-जाती गाड़ियों और लोगों को देखती इन जिंदगियों को देखकर लगता है जसे मौत के इंतजार में वो बस किसी तरह वक्त काट रही हैं. दोपहर में घर से खाने का बुलावा आता है और इसके बाद फिर वही इंतजार शुरू हो जाता है. तब तक जब तक कि दिन की रोशनी पूरी तरह ढल नहीं जाती.
24 साल की बबीता रैना जवान है और खूबसूरत भी. जब वो यहां आई थी तो उसकी उम्र महज छह साल थी. बबीता को लगने लगा है कि उसका समय खत्म हो रहा है. वो कहती है, ‘मेरी जिंदगी में कुछ भी अच्छा नहीं. अपने चारों तरफ देखिए. एक कमरे में मैं क्या कर सकती हूं? कुछ सोच नहीं सकती, नाराज नहीं हो सकती. लड़के मुझ में दिलचस्पी नहीं लेते क्योंकि मैं कैंप में रहती हूं. पिछले हफ्ते फोन पर एक लड़के से बात कर रही थी तो कैंप में बात उड़ गई कि मेरा चक्कर चल रहा है.’
बात खत्म करने के बाद बबीता कुछ मिनटों तक दीवार को ताकती रहती है फिर उसकी आंखों से आंसू झरने लगते हैं. वो बहुत भावुक है. जिंदगी से उसे ज्यादा कुछ नहीं चाहिए. उसकी सबसे बड़ी चाह यही है कि कोई नौकरी मिले तो इस जगह से छुटकारा हो. बबीता कंप्यूटर्स से एक पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स कर रही है. वो कहती है, ‘मैं डॉक्टर बनना चाहती थी. मगर जानती हूं कि ज्यादा से ज्यादा मुङो दिल्ली में कोई कंप्यूटर जॉब ही मिल सकता है. उस दिन मेरा दूसरा जन्म होगा जिस दिन पते की जगह मुङो 117, मुथि कैंप नहीं लिखना होगा.’
18 साल बहुत लंबा वक्त होता है. और कभी-कभी जब घर पहुंचने में ज्यादा लंबा वक्त लग जाए तो आप अनचाहे भी हो सकते हैं. कश्मीर में आग अब भी धधक रही है. कट्टरपंथी मुस्लिम नेताओं की पंडितों की वापसी में कोई दिलचस्पी नहीं है. पंडितों के मुसलमान दोस्त अपनी जान का खतरा मोल नहीं लेना चाहते और जम्मू में स्थानीय हिंदू उन पर तानाकशी करते हैं.
राजनाथ डार 44 साल के हैं. छह साल पहले ही उन्हें एक प्राइवेट फाइनैंस कंपनी में नौकरी मिली थी. तनख्वाह 6000 रुपये महीना है. जब तक वो 50 के होंगे तब तक ये आंकड़ा ज्यादा से ज्यादा 8000 तक पहुंचेगा. उन्हें अपनी बेटी की शादी की फिक्र है. डार कहते हैं, ‘कम से से कम अब मैं सुबह नौकरी पर जाने के लिए बस तो पकड़ता हूं. इससे पहले 12 साल तक तो मैं सुबह छह बजे उठता था और अपने दोस्तों के दरवाजों पर कंकड़ मारकर उन्हें जगाता था. इसके बाद दोपहर के खाने तक हम गप्पें मारते थे, अखबार पढ़ते थे और कैरम, वॉलीबॉल और क्रिकेट खेलते थे. उसके बाद टीवी पर खबरें देखना होता था. कई साल तक दिन यूं ही गुजरे.’
कभी-कभी प्रशासन और सरकार को उनकी सुध आई भी. कुछ समय पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कैंप में आए थे. उनसे मुलाकात के दौरान 80 साल के एक बूढ़े ने अपने छोटे से कमरे के छोटे से दरवाजे की ओर इशारा करते हुए पूछा, ‘जब मैं मरूंगा तो लोग मेरी लाश कैसे बाहर निकालेंगे.’ सिंह भावुक हो गए. उन्हें अहसास हुआ कि नाम के ये घर लोगों को सर्दी, गर्मी और बरसात से भले ही बचा लेते हों मगर रहने वालों से उनका आत्मविश्वास छीन लेते हैं. शायद इसी घटना की प्रतिक्रिया में उन्होंने पंडितों के लिए करोड़ों रुपये के पैकेज का एलान कर दिया. उन्होंने कहा कि पंडितों को जम्मू से कुछ दूर एक नए शहर में फिर से बसाया जाएगा. एक प्रधानमंत्री ज्यादा से ज्यादा यही कर सकता है. वो राहत पैकेज दे सकता है. मगर पंडितों के दिमाग में बसा डर और शक और अतिवादी मुसलमान के मन में सुलग रहा गुस्सा दूर नहीं कर सकता.
जख्म भले ही भर जाते हों मगर उनकी टीस रह-रहकर सालती है. खासकर तब जब आप चाहकर भी किसी के लिए कुछ कर पाएं. 1989 में जब शरणार्थी जम्मू पहुंचने लगे तो विजय बकाया वहां के जिला कलेक्टर थे. कश्मीरी पंडित समुदाय से ही ताल्लुक रखने वाले बकाया के पास उनके लिए कोई जवाब था, पैसा और जगह. बकाया याद करते हैं, ‘वे अपने ट्रक मेरे घर के बाहर खड़े कर देते थे. नौजवान, जिंदगी में पहली बार अपने गांवों से बाहर निकली बूढ़ी औरतें..सबके चेहरों पर सवाल. पेशेवर नौकरशाह होने की वजह से मैं उनके साथ घुलमिल नहीं पा रहा था. मेरी बीवी और मां ने मुझसे झगड़ना शुरू कर दिया कि मैं उनके लिए कुछ कर क्यों नहीं रहा.’
खदेड़े जाने से पहले पंडित वादी की ठंडी आबोहवा में रहते थे. जम्मू इस मामले में बिल्कुल अलग ही दुनिया थी - गर्म, धूलभरी और डरावनी. जम्मू में पंडितों की भीड़ बढ़ रही थी. जिस जगह वे जमा हो रहे थे वो सांपों का इलाका था. कुछ पंडित उनके काटने से मारे गए. कुछ और लू की भेंट चढ़ गए. बकाया कहते हैं, ‘जम्मू में हमारे पास एंटी वेनम सीरम नहीं था. हमें ये दिल्ली से मंगवाना पड़ा.’ दूसरी समस्या गर्मी की थी. पंडितों को राहत पहुंचाने के लिए बड़ी संख्या में बर्फ की सिल्लियां कैंपों में रखी गईं.
प्रशासन चकराया हुआ था. वरिष्ठ अधिकारी इस समस्या का कोई हल निकालने की उधेड़बुन में लगे थे. अचानक उन्हें एक हल सूझ. हल ये था कि शरणार्थियों को वापस भेज दिया जाए. ये काम जबर्दस्ती नहीं हो सकता था इसलिए अधिकारियों को लगा कि यदि पंडितों के लिए जम्मू में हालात कश्मीर से भी बदतर कर दिए जाएं तो वो वादी में लौट जाएंगे.
प्रशासन ने एक कमरे के कामचलाऊ मकानों की योजना बनाई जो सिर्फ सर्दी, गर्मी और बरसात से बचाने का जुगाड़ थे. इसके पीछे सोच ये थी कि पंडितों को लगे कि इनमें जिंदगी बस किसी तरह ही गुजर सकती है और उनके पास वापस लौटने के अलावा कोई रास्ता नहीं है. बकाया कहते हैं, ‘एक कमरे में 10 लोग होते थे. आप समझ सकते हैं हालात कितने दयनीय रहे होंगे.’
अखबारों में प्रशासन की काफी आलोचना हुई. इससे अधिकारी गुस्से में गए. उन्होंने शरणार्थियों पर कायर होने का ताना मारते हुए कहा कि पंडितों को वादी छोड़ने की जरूरत नहीं थी और उन्होंने जम्मू में भी मुश्किलें पैदा कर दी हैं. बकाया कहते हैं, ‘मेरे मन में हमेशा एक ही सवाल होता था, आखिर उन्हें भागने की जरूरत क्या थी?’
बकाया को इसका जवाब कुछ साल बाद मिल गया. वो याद करते हैं, ‘ये 1990 में चरार--शरीफ के जलने के समय की बात है. मैं श्रीनगर में था और शहर में कर्फ्यू लगा हुआ था. रात 12 बजे के बाद की बात रही होगी. अचानक पास की मस्जिद से एक जोर का शोर उठा. मैं भागकर बालकनी में आया. मैंने देखा कि मस्जिद के बाहर लोगों की भारी भीड़ जमा थी और मस्जिद के लाउडस्पीकर से नारे गूंज रहे थे. कश्मीर में अगर रहना है, अल्लाह हो अकबर कहना है. यहां क्या चलेगा, निजाम--मुस्तफा. मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा. सिर्फ नारे सुनकर मेरा ये हाल था. उन पंडितों का क्या हुआ होगा जो ऐसे लोगों से घिरे थे. पंडितों की बात सही थी. हमारे पड़ोसी वहां नहीं थे. कोई सुरक्षा थी गश्त होती थी. मुझे अपने सवाल का जवाब मिल गया था.’
मगर शरणार्थी पंडितों के सवाल अब भी अनसुलझे हैं. प्रत्येक परिवार को हर महीने अधिकतम 4000 रुपये, नौ किलो चावल, एक किलो चीनी और प्रति व्यक्ति दो किलो आटा मिलता है. ये गुजर-बसर के लिए मिलने वाली राहत है. 39 साल के संजय राजदान अपनी मां, पत्नी और दो बेटों के साथ मुथि कैंप में रहते हैं. 33 साल की उम्र में उनकी शादी हुई और 35 साल की उम्र में उन्हें नौकरी मिली. तीन साल पहले उन्होंने Þाीनगर का अपना घर पांच लाख रुपये में बेच दिया. उन्हें नहीं लगता कि उनकी जिंदगी कभी कैंप से बाहर निकल पाएगी. राजदान कहते हैं, ‘बहुत लंबा वक्त हो गया है. घाटी में रह रहे पंडित भी अब हमसे घुलमिल नहीं पाते. लगता यही है कि मेरी कहानी एक शरणार्थी के रूप में ही खत्म हो जाएगी.’
28 साल के अशोक पंडिता उन कुछ शरणार्थियों में से हैं जिन्हें बाकी के बनिस्बत कामयाब कहा जा सकता है. वो दिल्ली में एक अच्छी कंपनी में सीनियर इंजीनियर हैं. पंडिता के लिए कामयाबी का ये सफर काफी मुश्किलों भरा रहा. वो बताते हैं, ‘कुपवाड़ा में हमारा समृद्ध परिवार था. अखरोट का बगीचा था. बचपन में गांव के कुछ लोग दो-तीन महीने के लिए गायब होकर फिर लौट आते थे. मुझे ये जानने की उत्सुकता होती थी कि आखिर ये लोग कहां जाते हैं. धीरे-धीरे मुझे अहसास होने लगा कि कुछ बदल रहा है. टीचर मुझसे मेरे देश का नाम पूछते तो मैं हिंदुस्तान कहता और मुसलमान बच्चे पाकिस्तान. हालांकि मुझे पता नहीं था कि इनमें क्या फर्क है. फिर एक दिन जिया-उल-हक की मौत हो गई और सरकारी प्राइमरी स्कूल होने पर भी वहां दो दिन की छुट्टी का एलान कर दिया गया. मुङो इंदिरा गांधी की मौत का दिन भी याद है. हमारे स्कूल में खुशियां मनाई जा रहीं थीं. उन्होंने एक महीने की छुट्टी घोषित कर दी थी.
एक दिन कुपवाड़ा में मुस्लिम नेताओं ने एक बैठक की. बैठक के बाद लोगों ने पुलिस और सेना पर हमला शुरू कर दिया. उन्होंने एक सिपाही को मार दिया. सेना ने जवाब में फायरिंग की जिसमें कई मुसलमान मारे गए. इससे पूरे इलाके में तनाव फैल गया.’
पंडिता के पिता में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वो बेटे को सच बता पाते इसलिए एक दिन उन्होंने कहा कि वो कुछ दिन के लिए जम्मू घूमने जा रहे हैं. पंडिता कहते हैं, ‘मैं बहुत खुश था क्योंकि मैंने जम्मू नहीं देखा था. मैंने अपना क्रिकेट का सामान वहीं छोड़ दिया. हमने अपनी गाय भी छोड़ दी. शायद मैं थोड़ा बड़ा होता तो विरोध करता. जम्मू में हमें बहुत दिक्कतें हुईं. पढ़ाई में तेज होने की वजह से स्कूलों में हमें ज्यादा तरजीह मिलने लगी. इससे स्थानीय लोग हमारे दुश्मन हो गए. हिंदू ही हमसे लड़ने लगे थे. शुरुआती दिनों में हम यहां कहीं ज्यादा असुरक्षित थे. हम पर दबाव बहुत ज्यादा था. कश्मीर के आतंकवादियों से कहीं ज्यादा नफरत में जम्मू के लोगों से करता हूं. जम्मूवालों ने मुसीबत में हमें लात मारी. मेरा बस एक ही मकसद थाखूब पढ़ना और वहां से बाहर निकलना. जिंदगी मुश्किलों भरी थी. आंधी-तूफान के दौरान हमें सारी रात जगे रहकर अपने तंबू को उड़ने से बचाना होता था. स्थानीय हिंदू हमें कायर कहते थे. हम कुछ नहीं कर सकते थे. मुङो अपने समुदाय की नपुंसकता पर झल्लाहट होती थी. फिर अचानक बाल ठाकरे ने महाराष्ट्र में कश्मीरी पंडितों के लिए शिक्षा कोटे का एलान कर दिया. इस कोटे की वजह से ही मैं जलगांव से इंजीनिय¨रग कर पाया. मैं बाल ठाकरे का बड़ा अहसानमंद हूं.’
हालांकि पंडिता अब भी खुश नहीं हैं. वजह है जम्मू में रह रहे पंडितों में पड़ती आपसी फूट. अपने लिए बन रहे अपार्टमेंट्स के चक्कर में पंडित आपस में ही झगड़ रहे हैं. उनमें से कुछ इस चक्कर में हैं कि उन्हें अच्छा घर अलॉट हो जाए और ऐसा करने के लिए वो सरकारी अधिकारियों को घूस दे रहे हैं. पंडिता कहते हैं, ‘इतना कुछ झेलने के बाद उन्हें ऐसा करते देख कर बहुत बुरा लगता है.’
हालांकि कुछ लोग ऐसे भी हैं जो हालात से निपटने के उपाय खोजने की कोशिश कर रहे हैं. उदाहरण के लिए जम्मू में बनी सबसे नई राजनीतिक पार्टी जम्मू एंड कश्मीर नेशनल यूनाइटेड फ्रंट. चार अगस्त 2008 को चुनाव आयोग इसका पंजीकरण भी कर चुका है. पार्टी की पहली सदस्य हिंदू देवी माता रानी हैं जिनके नाम पर पार्टी नेतृत्व ने पांच रुपये की सदस्यता शुल्क की रसीद काटी है. 57 वर्षीय विजय छिकन इसके कोषाध्यक्ष हैं. उनके मुताबिक पार्टी के 10,000 सदस्य हैं जिनमें 6000, चालीस साल से कम उम्र के हैं. पार्टी का चिन्ह दफोदिल (उर्दू में नरगिस) है और उसका एजेंडा है कश्मीरी पंडितों का पुनर्वास, पंडित समुदाय के नौजवानों को उनके अधिकार और कश्मीरी हिंदुओं के लिए आरक्षण.
कभी छिकन की कश्मीर में अपनी फैक्ट्री हुआ करती थी. उनके कई मुसलमान दोस्त थे जिनमें एक नौजवान बिजली मिस्त्री भी था. एक दिन छिकन को लगा कि वो उनका पीछा कर रहा है. वो बताते हैं, ‘मुझे शक हुआ कि कुछ गड़बड़ है. मैं डर गया. मुङो याद आया कि किस तरह मेरे एक दोस्त की हत्या से पहले उसका ऐसे पीछा किया गया है. मैं एक दुकान में घुस गया और दुकानदार को बातों में उलझकर वक्त काटता रहा. इस दौरान वो भी कुछ दूर स्थित एक दुकान में इंतजार कर रहा था. जब मैं दुकान से बाहर निकला. वो भी बाहर निकल आया. जब वह बहुत करीब गया तो मैंने अचानक मुड़कर उससे पूछा कि क्या वो मुझसे कुछ कहना चाहता है. उसने कहा कि उसे किसी मसले पर मुझसे बात करनी थी. मैंने उससे सुबह आने को कहा. रात को मैं घर में रहकर अपनी ससुराल में रहा फिर वहां से जम्मू चला आया. बाद में पता चला कि उसे मेरी हत्या की जिम्मेदारी दी गई थी.
शरणार्थी की जिंदगी ने छिकन की सोच को जमा दिया है. हर चीज से पहले अब वो कश्मीरी पंडित को रखते हैं. वो कहते हैं, ‘अब जम्मू से भी पंडित बड़ी संख्या में बाहर निकल रहे हैं और मुङो इससे चिंता होती है. जल्द ही दूसरे समुदायों में शादियां होने लगेंगी और हमारा अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा. हमारे भीतर 5000 साल पुरानेप्योर जीन्सहैं. हमें इसे इसी तरह कायम रखना चाहिए. हमें अपनी संस्कृति को बचाना होगा. जसा आजकल चल रहा है उसे देखते हुए तो लगता नहीं कि भविष्य में कोई बुजुर्ग पंडितों से सलाह-मशविरा लेगा. कंप्यूटर से मैचमेकिंग होने लगेगी और ये नस्ल तबाह हो जाएगी.’
पंडितों को किसी पर भरोसा नहीं. एक समय था जब वो इस बात पर हैरान होते थे कि उनका देश उन्हें बचाने के लिए आगे क्यों नहीं आया. अब उन्हें इसकी वजह मालूम है. पंडित अब अपने वोट को हथियार बनाना चाहते हैं. इसका एक तरीका ये है कि वो एक ही जगह पर रहें. इसीलिए वो अपने लिए अलग से एक शहर की मांग कर रहे हैं.
संजय राजदान के घर में उनका बेटा पहाड़े का सबक सीख रहा है, पांच इकम पांच, पांच दूने सात..एक दिन उसकी गणित सही हो जाएगी और तब वो हिसाब मांगेगा. बेहतर होगा कि कोई जवाब तैयार कर ले.
(उल्लेखनीय है कि विजय तहलका अखबार और पोर्टल के संवाददाता हैं और उनकी ये रिपोर्टिंग यहाँ जनहित में दी जा रही है)सभी फोटो: उज्मा मोहसिन