December 13, 2009

पेट की भूख बुझाने के लिए जंगलों की बलि!

खाद्यान्न, बॉयोफ्यूल और कागज बन रहे विनाश का कारण

मित्रों, धरती के पर्यावरण को बचाने के लिए सिर्फ बैठकों से ही बात नहीं बनेगी। हमें खुद कुछ करना होगा। सबसे पहले पेड़ और जंगल बचाने होंगे जो हमारे बचे रहने के लिए निहायत ही जरूरी हैं और इसकी शुरुआत हमें अपने आस-पास से ही करनी होगी। कोपेनहेगन में सम्मेलन चल रहा है, इसी परिप्रेक्ष्य में मैंने भी कुछ लिख दिया है, आशा है आपको पसंद आएगा। -सचिन
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December 12, 2009

प्रिंट मीडिया के विज्ञापनों में नए 'ट्रेन्ड्स'

दुनिया की सबसे महंगी स्पेस है 'एड स्पेस'

दोस्तों, विज्ञापन की दुनिया अथाह है, इसमें आजकल क्वालिटी और क्वांटिटि दोनों ही देखने को मिल रही हैं। भारत में विज्ञापनों के क्षेत्रों में बहुत प्रयोग हो रहे हैं। मैं यहाँ उन्हीं प्रयोगों की चर्चा कर रहा हूँ लेकिन यह चर्चा सिर्फ प्रिंट विज्ञापनों के लिए है, तो पढ़िए और बताइए कि यह आपको कैसा लगा..?? - सचिन
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December 11, 2009

ठिठुरते दिनों में पक्षियों के बीच

मेरे साथ कीजिए केवलादेव (घना) अभयारण्य की सैर

जो लोग प्रकृति, वन्यजीव, पक्षियों और पेड़-पौधों के शौकीन हैं उनका यहाँ स्वागत है। मैंने यहाँ विश्वप्रसिद्ध केवलादेव (घना) पक्षी अभयारण्य, भरतपुर में की गई सैर का विवरण किया है। मेरे साथ आप लोग भी घूमिए और बताइए कि आपको यह अनुभव कैसा लगा..। -सचिन
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November 28, 2009

अब हिन्दी में होंगे इंटरनेट के डोमेन नाम

2010 से होगी नई शुरूआत
इंटरनेट पर हिन्दी का जोर धीरे-धीरे बढ़ रहा है। अब डोमेन नाम भी हिन्दी में आने वाले हैं। इसी पर मैंने एक स्टोरी लिखी थी। कृपया आप भी पढ़ें....सचिन
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November 21, 2009

हमारा विश्वास तोड़ते कोड़ा और रेड्डी बंधु

भारत नहीं है लोकतंत्र के लायक

दोस्तों, इस विषय पर थोड़ा देर से लिख पा रहा हूँ, इसलिए माफी चाहता हूँ। यह काम तो तुरंत होना चाहिए था लेकिन काम की व्यस्तता के कारण देरी हुई, ये भी कह सकते हैं कि शब्द ही मुंह में घुल कर रह गए थे। समझ नहीं आ रहा था कि अपने देश की किस बात पर सिर पीटें....???? नेताओं को गालियाँ देते-देते जनता की जबान थक कर चूर हो गई है लेकिन वो हैं कि सुधरने का नाम ही नहीं ले रहे। दूसरी ओर जनता के पास कोई ऑप्शन भी नहीं है, वो चोरों के बीच में से ही कम चोर को मौका देने की सोचती रहती है। लेकिन अब तो कौन सा चोर बाद में जाकर कितना बड़ा चोर साबित होगा यह भी पता नहीं चल पा रहा है।

मित्रों, मधु कोड़ा ने कमाल किया है। यह दो कोड़ी का आदमी जमीन के इतने अंदर से आया है, इसे देखकर लगता ही नहीं था कि यह आकाश में पहुँचने की इतनी जल्दीबाजी करेगा। यह जब मुख्यमंत्री बना था तब मैं इस्तेफाक से झारखण्ड की राजधानी राँची में ही था। मैं वहाँ अपने संस्थान की ओर से किसी रिपोर्टिंग कार्य पर गया था। उस समय वहाँ अर्जुन मुंडा की सरकार गिरकर चुकी थी और कोड़ा के मुख्यमंत्री बनते समय लोग इसकी तारीफ में कसीदे पढ़ रहे थे। जब यह मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहा था तब इसके पिता राँची के पास ही एक गाँव में अपने खेत में घास खोद रहे थे। जब टीवी चैनल के एक रिपोर्टर ने उनसे पूछा कि क्या आपको पता है कि आपका बेटा आज प्रदेश का मुख्यमंत्री बन रहा है तब उन्होंने कहा था कि वो उसके बारे में ज्यादा नहीं जानते क्योंकि वो कई वर्षों से घर से बाहर है। लेकिन उन वर्षों में उनके बेटे ने राजनीति की चीढ़ियाँ चढ़ते हुए तमाम संस्कार भी भुला दिए। उसने भ्रष्टाचार जैसे नासूर के साथ मिलकर अपने उस छोटे और गरीब राज्य के ऊपर इस कदर हमला किया कि सभी दंग रह गए। उसने झारखंड को तबाह कर दिया। उस राज्य का सालाना बजट 8000 करोड़ होता है। कोड़ा कुल दो वर्ष (23 महीने) वहाँ का मुख्यमंत्री रहा और उसने कुल 4000 करोड़ रुपए का हवाला घोटाला किया। मतलब दो साल के 16000 करोड़ का चौथाई हिस्सा वो अकेला आदमी अपने चमचों के साथ खा गया। यह वही आदमी है जिसको निर्दलीय रूप में भी कांग्रेस ने समर्थन दिया था और मुख्यमंत्री बनवाया था। अब कांग्रेस को समझ आ रहा होगा कि उसके समर्थन से मुख्यमंत्री बने मधु कोड़ा ने विष घोला और झामुमो का शिबू सोरेन धोखेबाज-हत्यारा निकला।

वैसे, कांग्रेस की छोड़ें, तो हालत तो भाजपा की भी अच्छी नहीं है। संस्कारों की बात करने वाली इस पार्टी की जितनी खुदड़ पिछले कुछ महीनों में हुई है उतनी पहले कभी नहीं हुई। कर्नाटक संकट ने बता दिया है कि इस देश में, यहाँ की राजनीति में और यहाँ की राजनीतिक पार्टियों में पैसे से बढ़कर और कुछ नहीं है। येदुरप्पा को जिस तरह से जलालत का सामना करना पड़ा है वो अपने आप में एक मिसाल है। बदमाश और चरित्रहीन रेड्डी बंधुओं ने यह बता दिया है कि वो रुपए के बल-बूते किसी को भी खरीद सकते हैं और एक तथाकथित राष्ट्रवादी पार्टी को घुटनों के बल ला सकते हैं। उन बेशर्म रेड्डियों ने अपनी काली कमाई के रुपयों से वहाँ के 54 विधायकों को खरीद लिया और सरकार पर सीधे तौर से दबाव बनाया कि उन्हें भ्रष्टाचार करने की पूरी और खुली छूट मिलनी चाहिए अन्यथा वो सरकार गिरा देंगे। सब लोग दिल्ली से लेकर बेंगलौर के बीच दौड़ लगाते रहे लेकिन किसी के कान पर जूँ नहीं रेंगी। भाजपा के शीर्ष नेता उस समय शीर्षासन में दिखे और उन आतातायी भ्रष्टों के सामने गिड़गिड़ाते भी दिखे। आखिरकार एक दिन खबर आई कि येदुरप्पा मीडिया के सामने आँसुओं से रो दिए। उन्होंने कहा कि कर्नाटक संकट हल करने के लिए उन्होंने अपने कुछ सबसे प्रिय पात्रों की बलि दी है। वो प्रिय पात्र उनकी सरकार के वो ईमानदार अफसर थे जो रेड्डियों को गड़बड़ और भ्रष्टाचार नहीं करने दे रहे थे। उन सबकी छुट्टी करवाकर यह संकट हल हुआ और रेड्डियों को कर्नाटक में खुलेआम भ्रष्टाचार करने का लाइसेंस दे दिया गया। यह सब सरकार बचाए रखने की कवायद के लिए हुआ।

लेकिन दोस्तों, हमारा देश का चरित्र यहाँ गिर गया, हम किसी पर भी विश्वास करने लायक नहीं रहे। ना तो मधु कोड़ा जैसे जमीन से जुड़े आदमी पर और ना ही रेड्डी बंधुओं जैसे हवा में उड़ने वाले आदमियों पर। ना तो देश पर 50 साल राज करने वाली कांग्रेस पार्टी पर और ना ही अपने को राष्ट्रवादी पार्टी कहने वाली भाजपा पर। हम हिन्दुस्तानी दिनोंदिन इस लोकतंत्र से हार रहे हैं और इससे खिलौंनों की तरह खेलने वाले ये कलुषित नेता जीत रहे हैं। हिन्दुस्तान का लोकतंत्र मर रहा है, धीमी मौत, हम इसे मरता हुआ देख रहे हैं लेकिन अपने बीच में से एक भी ऐसा ईमानदार नेता नहीं ढूँढ पा रहे जो अपनी जेबें भरने की नहीं बल्कि अपने देशवासियों के दिल में जगह बनाने की सोचे। भारत माँ का स्थान संसार के नक्शे पर सुदृढ़ बनाने की सोचे। सचमुच ये देश लोकतंत्र के लायक नहीं है।

आपका ही सचिन.....।

November 16, 2009

पालतू जानवरों से भी हो सकती हैं बीमारियाँ!

अपने पेट्स को स्वस्थ रखिए खुद भी स्वस्थ रहिए

दोस्तों, आज के समय में स्वास्थ्य सबसे बड़ी चीज है। हालांकि हमारे शौक हमारे साथ-साथ चलते रहते हैं लेकिन हमें स्वस्थ रहने के लिए सावधानी बरतनी चाहिए। इसी विषय को उठाते हुए अपने घरों में पालतू जानवरों को पालने के शौकीन लोगों और उससे उनके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर मैंने यह लेख लिखा है। आप भी पढ़े...
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November 14, 2009

किसी लुटेरे की हो सकती है ये 'आवाज'!

चीनी मोबाइल हैंडसेट्स के दुरुपयोग का मामला

दोस्तों, यह पोस्ट मैंने कुछ उन अनुभवों पर लिखी है जिसमें तकनीक आदमी को सुविधा प्रदान करने की बजाए उसकी दुश्मन बनकर प्रकट होती है...आप भी पढ़े
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November 07, 2009

वर्चुअल दुनिया में 'अपनों' को ढूँढता युवा

सोशल नेटवर्किंग साइट्स के जरिए रहते हैं सबके कॉन्टेक्ट में

दोस्तों, आजकल के युवाओं की मानसिकता थोड़ी अलग है। अपने दोस्तों से रूबरू संपर्क में रहने की बजाए वे मोबाइल फोन या कम्प्यूटर का सहारा लेते हैं। वे 'अपनों' को सोशल नेटवर्किंग साइट्स के जरिए संदेश भेजते हैं, और वहीं से उनसे संदेश लेते भी हैं। उनके पास समय की कमी है लेकिन वे फिर भी एक्टिव हैं। इस विषय पर मैंने एक लेख लिखा है, आशा है आपको पसंद आएगा। -सचिन

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November 02, 2009

देखभाल कर खाएँ ब्रेड!

इसे खाना हानिकारक भी हो सकता है

ब्रेड तो आप सभी लोग खाते होंगे। लेकिन आपने कभी यह नहीं सोचा होगा कि उसे खाना इस कदर हानिकारक भी हो सकता है। लोगों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए मैंने यह लिखा है। आशा है आप पसंद करेंगे। -सचिन
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October 30, 2009

शिक्षा नहीं, ये काला धंधा है

हजारों-लाखों के झुंड में मूर्ख बनाए जा रहे हैं युवा

दोस्तों, शुक्रवार 30 अक्टूबर को इंदौर के दैनिक भास्कर में एक खबर पढ़ रहा था। यह खबर अखबार की एंकर स्टोरी (यानी बॉटम में लगने वाली खबर) बनाई गई थी। इसमें जो लिखा था वो दरअसल मेरे मन की बात थी जिसे मैं कई दिनों से सोच रहा था। इस स्टोरी ने जैसे मेरी सोच को शब्द दिए। यह सोच इस साल जुलाई से शुरू होने वाले नए शैक्षणिक सत्र से ही चल रही थी जब मैं काले मन के व्यापारियों को कॉलेज खोले बैठे हुए देख रहा था। वो कॉलेज मुझे सुरसा के मुंह जैसे दिखाई दे रहे थे जिनमें किसी छात्र का प्रवेश लेना उसके कैरियर के लिए काल जैसा ही दिख रहा था। इस समय भारत में शिक्षा ने जिस कदर काली चादर ओढ़ रखी है वैसी इससे पहले वह कभी नहीं दिखी। अब प्रोफेशनल और टेक्नीकल इंस्टीट्यूट्स में आने वाला छात्र शिष्य कम और ग्राहक अधिक होता है जिससे ये तथाकथित शिक्षा के मंदिर ज्यादा से ज्यादा रुपए लूटने की फिराक में रहते हैं और दो या चार साल के बाद एक ऐसी डिग्री पकड़ा देते हैं जिसकी कहीं कोई कीमत नहीं होती।

तो बात शुरू की जाए। असल में मैंने पिछले साल पढ़ा था कि मध्यप्रदेश में इंजीनियरिंग के इतने कॉलेज हैं कि पिछले वर्ष उसमें सीटें बच गईं। मतलब पूरे प्रदेश में इंजीनियरिंग कॉलेजों में सीटें 60 हजार थीं जबकि बच्चे सिर्फ 53 हजार। पीईटी (प्री इंजीनियरिंग टेस्ट) में शून्य अंक लाने वालों को भी इन कॉलेजों ने एडमिशन दे दिया, उसके बाद भी सात हजार सीटें बच गईं। इस बार स्थिति और अधिक रोचक हो गई। इस बार हमारे प्रदेश की एबली सरकार ने और अधिक कॉलेज खोलने के लिए लाइसेंस दे दिए, नतीजतन इस साल इंजीनियरिंग कॉलेजों में 29 हजार सीटें खाली रह गईं। ओफ, कमाल हो गया। ये कॉलेज हैं या रेवड़ी बाँटने के सेंटर। इन्होंने इंजीनियरिंग डिग्री की यह गत कर दी है कि अगर आप बीच बाजार आसमान में पत्थर उछालें और अगर वो नीचे किसी युवक के सिर पर जाकर गिरे, तो यकीन मानिए वो युवक इंजीनियरिंग ही कर रहा होगा।

लेकिन मैंने लेख के शुरू में जिस खबर का जिक्र किया था वो मेरी अपेक्षा से एक कदम आगे की निकली। इस खबर में बताया गया था कि प्रदेश भर में इंजीनियरिंग के साथ-साथ अन्य प्रोफेशनल कोर्सेस की भी बुरी हालत है। एक समय कैरियर के लिए इंजन माने जाने वाले एमबीए और एमसीए कोर्से भी इसमें शामिल हैं। इसके साथ-साथ फार्मेसी जैसा विषय भी शामिल है जो एक समय बहुत पॉपुलर था। इसका सिर्फ एक ही मुख्य कारण है, कि हमारे बाकी सरकारी विभागों की तरह ही एआईसीटी (ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन) जैसे संस्थान भी भ्रष्ट हो गए हैं। वो काली कमाई वाले ताकतवर लोगों को अपनी कमाई को सफेद करने का मौका दे रहे हैं और इसके लिए एआईसीटी और आरजीपीवी (मध्यप्रदेश की टेक्नीकल यूनिवरसिटी) जैसे संस्थान उनको मदद कर रहे हैं। अब जब इस देश की शिक्षा ही बिगड़ने लगी है, नाकाबिलों को डिग्री बाँट रही है तो ऐसे युवाओं से देश के निर्माण की क्या अपेक्षा की जा सकती है?

खबर के अनुसार मध्यप्रदेश में एमबीए, एमसीए और फार्मेसी की कुल सीटों की लगभग आधी खाली रह गई हैं। यह हालात शर्मनाक हैं। जिन कोर्सेस के लिए मारा-मारी मची रहती थी वो कोर्सेस अपनी साख खोते जा रहे हैं और मर रहे हैं। यह सब सिर्फ निजी इंस्टीट्यूट्स की वजह से ही हो रहा है। अब ऐसे फर्जी कॉलेज अपने स्टाफ पर दबाव बना रहे हैं और कह रहे हैं कि वो कहीं से भी कॉलेज में भर्ती के लिए छात्र ढूँढकर लाएँ नहीं तो उनकी नौकरी गई समझो। मध्यप्रदेश के ग्वालियर शहर का एक रोचक किस्सा है मेरे पास। वहाँ के ऐसे ही एक निजी कॉलेज में मेरे एक परिचित काम करते हैं। कुछ रोज पहले उनके यहाँ पूरे स्टॉफ को बुलाकर कह दिया गया कि कॉलेज की 750 सीटों में से सिर्फ 250 सीटें भरी हैं। ऐसे में आप लोगों को वेतन देना मुश्किल हो सकता है इसलिए आप सब लोग कैसे भी करके 2-2 छात्रों का कॉलेज में एडमिशन करवाइए। अगर नहीं करवा पाते हैं तो आप लोगों की नौकरी चलना मुश्किल हो जाएगी। अब उस कॉलेज का पूरा स्टाफ परेशान है कि कैसे छात्रों को ढूँढा जाए क्योंकि कॉलेज की प्रति सेमेस्टर फीस ही 45000 रुपए है और किसी से हर छह माह में इतनी बड़ी रकम खर्च करवाना कोई आसान काम नहीं है। अब कई लोग उस कॉलेज को मजबूरी में छोड़ने की योजना बना रहे हैं।

कमोबेश ऐसी ही हालत कई शहरों के कई इंजीनियरिंग कॉलेजों की है। एक-एक शहर में 70-80 कॉलेजों का जमावड़ा लग गया है। जिसे देखो वो अपनी काली कमाई को सफेद करने के लिए शिक्षा में धन लगा रहा है। कुछ साल पहले पता चला था कि मध्यप्रदेश सरकार के कई मंत्रियों ने नर्सिंग कॉलेज खोल लिए थे। फिर गाज बीएड कॉलेजों पर गिरी और उनके गिरे हुए स्तर को देखकर हाईकोर्ट ने कई बार उन कॉलेजों को परीक्षा लेने पर ही बैन लगा दिया। कुल मिलाकर जिस विषय की जितनी ज्यादा माँग होती है उसके पीछे ये काली कमाई वाले मक्कार उतने ही ज्यादा पड़ जाते हैं और उस कोर्स की दम निकालकर ही दम लेते हैं। अब बारी इंजीनियरिंग और प्रोफेशनल कोर्सेस की चल रही है।

देश के पूर्व मानव संसाधन मंत्री माननीय अर्जुन सिंह ने जहाँ आईआईटी-आईआईएम जैसे संस्थानों में कोटा सिस्टम लागू करके उनकी जो दुर्गति की थी वही काम अब बाकी नेता और अन्य रैकेटियर्स निजी संस्थानों द्वारा कर रहे हैं और हमारी शिक्षा का कबाड़ा किए दे रहे हैं। ये संस्थान अपने यहाँ पढाने वालों की भी दुर्गति करके रखते हैं। उनसे 20000 वेतन पर साइन लेते हैं और देते 8000 रुपए हैं। इन संस्थानों में शिक्षकों की हालत चपरासियों जैसी होती हैं और रुतबे वाले छात्र उन्हें कुछ नहीं समझते क्योंकि वो जानते हैं कि उन्हीं की दी हुई फीस से वो कॉलेज चल रहा है और इन शिक्षकों का वेतन निकल रहा है। अब बाजार बनते जा रहे इन कॉलेजों के आगे बहुत बड़ा गड्ढा खुद चुका है। वो अपने ही बनाए मायाजाल में फँसते जा रहे हैं। येन केन प्रकारेण संबंद्धता बेची जा रही है, कॉलेजों के झुंड खुल रहे हैं और छात्रों के जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। कुल मिलाकर शिक्षा का ये काला धंधा गहरी धुंध में बदलता जा रहा है और ऐसा सिर्फ हमारे मध्यप्रदेश में ही नहीं बल्कि देश के हर उस राज्य में है जहाँ शिक्षा देना कर्तव्य नहीं सिर्फ धंधा समझा जा रहा है।

आपका ही सचिन...।

जब मुझे 'ऑस्कर' मिला

नन्ही नयोनिका और ऑस्कर की कहानी

यह मेरी बेटी की तरफ से लिखा गया है। जब उसने अपना पहला डॉगी पाला तो उसे लेकर उसे तथा हम लोगों को क्या-क्या महसूस हुआ ये आप मित्रों के लिए...। पढ़कर बताइयेगा कि यह प्रयास आपको कैसा लगा..?? धन्यवाद
-सचिन


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October 28, 2009

भारत पर हर तरह से हावी खानदानवाद

महाराष्ट्र के चुनावों ने यह जता दिया है

दोस्तों, कल आईबीएन-7 पर एक कार्यक्रम देख रहा था। उस कार्यक्रम का नाम था 'एजेण्डा'। उसमें बताया जा रहा था कि कैसे इस बार महाराष्ट्र के चुनावों में जीतकर आने वाले विधायकों में युवाओं की भरमार है। उनमें से कई युवा खूबसूरत थे। फल-फूल रहे थे और उनके चेहरे से रईसी टपक रही थी। उन्हें टीवी पर किसी स्टार की तरह दिखाया जा रहा था। ऐसा क्यों था इसके लिए आप अगला पेरा पढ़े, उन युवाओं के नाम के साथ-साथ उनके माँ-बाप के नाम भी पढ़े। तब ही बात थोड़ी क्लीयर हो पाएगी और आगे बढ़ पाएगी।

तो हमारे इस महान लोकतंत्र में जिसने राजशाही का चोगा कोई 62 साल पहले उतारकर फैंक दिया था, में महाराष्ट्र के ये चुनाव हुए। इनमें जो यंग ब्रिगेड आई है वो इस प्रकार है। चुने गए विधायकों में विलासराव देशमुख के पुत्र अमित देशमुख, सुशीलकुमार शिंदे की बेटी प्रणिती शिंदे, राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील के बेटे राव साहेब शेखावत, पूर्व केन्द्रीय मंत्री माणिकराव गावित की बेटी निमर्ला गावित, सांसद एकनाथ गायकवाड की बेटी वर्षा गायकवाड, पूर्व सांसद रामशेठ ठाकुर के बेटे प्रशांत ठाकुर आदि शामिल हैं। मजे की बात यह है कि इनमें से कई पहली बार ही मंत्री बनने की फिराक में हैं, अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं और मंत्रिमंडल में इनकी जगह पक्की कराने के लिए इनके माँ-बाप ने पूरा जोर लगा रखा है।

कई बार मुझे अपने देश के लोकतंत्र पर गुस्सा आता है। जब जनता ही सुधरना नहीं चाहती तो क्या किया जा सकता है। राज ठाकरे ने महाराष्ट्र चुनावों में सफलता पाई। मुझे लगता था कि ऐसा नहीं होगा लेकिन उसपर लिखे गए एक लेख और उसपर आई टिप्पणियों में मराठियों से गालियाँ खाने के बाद पढ़ें इसे मुझे लग गया था कि वो जरूर जीतेगा क्योंकि वहाँ का मानस उसके साथ था और भारतीयता के तमाम तर्क महाराष्ट्र के लोगों ने अपने-अपने तर्कों के साथ ठुकरा दिए थे। जब लोग ही लोकतंत्र को दुत्कार कर राजशाही, जात-पात में फँस जाएँ तो सिर्फ लेख लिखने भर से क्या हो जाएगा..?? अब इस खानदानवाद और नफरत की राजनीति का विस्तार हो रहा है। लेकिन हम यहाँ सिर्फ खानदानवाद की ही बात करेंगे।

पहले हमारे देश में राजा सत्ता हस्तांतरण किया करता था। अपने बेटे या कहें राजकुमार या युवराज को। राजकुमार अधिकृत रहता था अपने पिता से राज गद्दी लेने के लिए। बाद में वह राज करता था, फिर उसका बेटा, फिर उसका भी बेटा। यही नियम था। हिन्दू राजाओं ने भी यही नियम चलाया और बाद में आने वाले मुगल राजाओं ने भी। लोकतंत्र से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती। लेकिन आप भारत के लोकतांत्रिक इतिहास की ओर जरा नजर डालकर देखिए। देश के ऊपर ज्यादातर किस खानदान का राज रहा है..?? बीच-बीच में कुछ छुटभैये आ गए लेकिन वो गाँधी-नेहरू परिवार की छाँव में ही पले-बढ़े। अन्यथा यह खानदान ही पिछले 60 बरसों से देश पर राज कर रहा है। पिछले दस वर्षों से देश पर पार्श्व में रहकर सोनिया गाँधी राज कर रही हैं। बीच में छह सालों के लिए भाजपा आई लेकिन अटलजी के बाद उसका कोई खेवनहार नहीं रहा और वो पूरे भारत में इस समय कमजोरी और हार का सामना कर रही है। उसके कमजोर होने से पहले से ही चरमराई और खत्म सी हो रही हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था भी धीरे-धीरे खत्म हो रही है। बाकी क्षेत्रीय पार्टियाँ तो चल ही खानदानों के बूते रही हैं। उनमें शुरूआत भले ही किसी कद्दावर नेता ने की हो लेकिन वो आखिरी में सत्ता का हस्तांतरण अपने बेटे-बेटियों को ही करता है। मैं यहाँ नाम नहीं गिनाना चाहता लेकिन आप सभी क्षेत्रीय पार्टियों के बारे में सोच कर देख लीजिए बात अपने आप प्रूव हो जाएगी।

आप ताकतवर परिवारों की बात करें। देश के सारे बिजनिस हाउस अपने परिवारों के तले अपना साम्राज्य स्थापित करते हैं और उसे विस्तार भी देते हैं। इसके ढेरों उदाहरण हैं, बताने की जरूरत नहीं। खैर ठीक भी है, वो पूँजीवादी व्यवस्था है इसलिए बिजनिस एंपायरों के मालिकों के बेटे-बेटियाँ ही सबकुछ संभालते हैं। लेकिन फिल्म इंडस्ट्री को देखिए..वो कला से संबंधित होते हुए भी सिर्फ परिवार के लोगों के बलबूते ही चल रही है। पुराने एक्टर का बेटा पैदा होते ही स्टार बन जाता है, उसके बड़े होने का निर्माता इंतजार करते हैं, जबकि स्ट्रगल करने वाले प्रतिभाशाली युवा एड़ियाँ घिसते-घिसते ही बूढ़े हो जाते हैं। महाराष्ट्र चुनावों में मंत्रियों के बेटे-बेटियाँ युवाओं को मौका मिलने की बात कहकर आगे आना चाहते हैं लेकिन उनका क्या जो मौके की तलाश करते-करते बूढ़े हो गए। मतलब जब वो युवा थे तब उनसे अनुभव की अपेक्षा की गई थी और अब जब वे अनुभवी हैं तो उनसे युवा होने की अपेक्षा है। बेचारे, अब वो ना इधर के रहे ना उधर के।

ऐसा ही आपके और हमारे साथ भी है। अगर आपका 'बैक' नहीं है तो मजे करिए, आपके लिए कहीं कोई जगह खाली नहीं। लेकिन अगर है तो आप भी युवा हैं और आपको भी निश्चित ही मौका मिलेगा, बाकी अपने को तो कोई युवा ही मानने को तैयार नहीं। कुल मिलाकर अगर हम देश की राजनीति में जाना चाहें तो हमें दुआ करनी होगी कि अगले जन्म में भगवान हमें किसी सक्षम राजनीतिक परिवार में पैदा करे और किसी बड़े नेता की संतान बनाए...आमीन..।

आपका ही सचिन....।

October 27, 2009

इसलिए है भारतीय सेना में अफसरों की कमी..!!

युवाओं को लंबे समय तक दुत्कारा है सेना ने

दोस्तों, कल एक खबर पढ़ी। शीर्षक था 'भारतीय सेना जूझ रही है अफसरों की कमी से'...इसी खबर के पास एक और खबर थी। उसमें बताया गया था कि बीएसएफ के जवान लगातार नौकरियाँ छोड़ रहे हैं। वे परिवार से दूर रहकर लंबे समय तक दूसरे देशों से लगी भारत की 7 हजार किमी लंबी सीमा रेखा की चौकसी करते रहते हैं, लगभग 30 साल। फिर वो रिटायर हो जाते हैं और उनके हाथ में कुछ नहीं रहता। उनकी पेंशन स्कीमें हमारे नेताओं जैसी नहीं हैं इसलिए वो नौकरी के 20 साल पूरे होते ही उसे छोड़ रहे हैं क्योंकि इसके बाद वो पेंशन लेने के लिए पात्र हो जाते हैं। बाद में वे अपने और अपने परिवार को समय देते हैं। ऐसी ही कुछ कहानी आईटीबीपी यानी इंडो-तिब्बत बार्डर पुलिस के जवानों की भी है। कुल मिलाकर हमारे देश की सेना को कर्तव्यनिष्ठ जवानों और अफसरों की कमी का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि युवा दूसरे अवसरों की ओर दौड़े चले जा रहे हैं और इसी कारण सेना में 45 हजार अफसरों के पद खाली पड़े हैं। हालांकि सेना यह बात लंबे समय से कहती आ रही है, वो यह दावा भी करती रही है कि युवाओं का रुझान देशसेवा से इतर जा रहा है, लेकिन मैं सेना की इस बात से इत्तेफाक ना रखते हुए इस विषय पर अपना अलग ही पक्ष रखना चाहता हूँ।

दोस्तों, बात ठीक वैसी ही नहीं है जैसा सेना बता रही है। हमारे देश की सेना भी कोई कम झक्की नहीं है। उसे ये दुर्दिन यूँ ही नहीं देखने पड़ रहे हैं, इसके लिए हमें बात का थोड़ा विश्लेषण करना होगा और थोड़ा पीछे मुड़कर देखना होगा। सबसे पहले मैं अपने से ही बात शुरू करूँगा। मैं सेना में जाने के लिए हमेशा से दीवाना रहा। मैंने कॉलेज टाइम में एनसीसी ली और उसमें पहले साल नेवल विंग और बाद के दो सालों में एयरविंग लेकर सी सर्टिफिकेट लिया। मैंने 12वीं पास करते ही एनडीए (नेशनल डिफेंस अकादमी) के एक्जाम देना शुरू कर दिए थे। बाद में ग्रेजुएशन के बाद मैं सीडीएस (कम्बाइंड डिफेंस सर्विसेज) की परीक्षा देने लगा। कलेज में पढ़ने के दौरान ही मैंने एनसीसी ली थी। एनडीए एक्जाम मेरा एक बार भी क्लीयर नहीं हुआ जबकि सीडीएस में मैं कई बार क्लीयर हुआ और एसएसबी (सर्विस सलेक्शन बोर्ड) देने कई बार इलाहाबाद गया। हर बार वहाँ से लौटना पड़ा। कभी किसी टेस्ट में, तो कभी किसी टेस्ट में बाहर होकर। एक बार आखिरी स्टेज तक गया, सोचा अब तो बदन पर वर्दी आ ही जाएगी, लेकिन फिर से अपनी दुनिया में लौटना पड़ा और 'सिविलयन' बनकर रहना पड़ा।

दोस्तों, जब 12वीं के बाद दिल्ली में यूपीएससी भवन में एनडीए की परीक्षा देने गया था तब वहाँ आए नौजवानों को देखकर लगा था कि देश के सभी बाँके जवान सेना में ही जाना चाहते हैं। उनका उत्साह देखते ही बनता था। उनमें तब मैं भी शामिल था। यह कोई 15 साल पुरानी बात है, 1994 की। जब रिजल्ट आया तो कई लड़कों (जो लड़ाके बनना चाहते थे) की उम्मीदें धूल में मिल गईं और वो रिटन एक्जाम में ही खारिज हो गए, ठीक मेरी तरह। बाद के वर्षों में मन लगातार खिन्न होता रहा क्योंकि मैंने सेना की परीक्षा के अलावा अन्य किसी भी सरकारी नौकरी के लिए कभी प्रयास ही नहीं किया, मेरी अन्य सरकारी नौकरियों में जाने की कभी इच्छा ही नहीं होती थी। सीडीएस तक यह सिलसिला चलता रहा। हम प्रयास करते रहे और रिजेक्ट होते रहे। जब 25 साल के पूरे हुए तब जाकर लगा कि भगवान अब कभी सेना में नहीं जा पाऊँगा, उस आखिरी बार रिजेक्ट होने के बाद इलाहाबाद के नजदीक नैनी में अपने मौसेरे भाई के घर जाकर मैं खूब रोया था। उसी दिन तेज बुखार भी चढ़ा। बाद में ठीक होने के बाद बनारस और सारनाथ गया। गंगाजी में नहाया, काशीविश्वनाथ जी के दर्शन किए और प्रण किया कि अब पत्रकारिता को गंभीरता से लूँगा क्योंकि अभी तक तो सेना में जाने की झक सवार थी मुझे। लेकिन यकीन मानिए जिस प्रकार सेना की ओर से बिना कारण बताए होशियार से होशियार लड़कों को इंटरव्यू से निकाल दिया जाता है वो काबिले गौर बात है। इसी प्रकार मेरा एक मित्र लगातार सेना से खारिज होने के बाद लॉ (विधि) की ओर मुड़ा और बाद में उसने सिविल जज का एक्जाम निकाला और वर्तमान में मध्यप्रदेश के एक जिले में सिविल जज है। ऐसे कई उदाहरण हैं मेरे पास जिनमें मेरे साथ सेना में जाने के इच्छुक लड़के दूसरे क्षेत्रों की ओर मुड़ गए और उनमें से ज्यादातर अपने जीवन में खूब सफल हुए हैं।

सोचने वाली बात है, कि आज के जमाने में किसे फुर्सत है कि कोई 25 साल तक सेना की नौकरी में जाने के लिए यूँ ही लगातार प्रयार करता रहे। क्योंकि अगर वो सफल नहीं हुआ तो कही भी जाने के लायक नहीं रहेगा। आजकल 25 साल के बाद तो सबकुछ हाथ से निकल जाता है। आज जब 20 साल की उम्र पूरी करते-करते युवाओं की शानदार नौकरियाँ लग रही हों, उन्हें बाहर जाने और काम करने के मौके मिल रहे हों, तो ऐसे में कौन बार-बार जलील होने सेना की ओर जाना चाहेगा। आपमें से कुछ लोगों को यह मेरा भड़ास निकालना लग रहा होगा..तो चलिए मैं यहाँ एक तर्क देना चाहता हूँ। अगर आपका गणित अच्छा नहीं है (जैसे की मेरा) तो मैं भारतीय सेना के नेवी और एयरफोर्स के लिए एप्लाई ही नहीं कर सकता। सेना की जासूसी विंग में भी नहीं जा सकता। सिर्फ ग्राउण्ड फोर्स के लिए एप्लाई कर सकता हूँ। मतलब अगर मेरा गणित अच्छा नहीं है (जो मेरे हाथ में नहीं है) तो मैं देश सेवा से वंचित हुआ समझो। इसी प्रकार अगर मेरे बाप-दादा में से कोई सेना में रहा है तो अच्छा, उसे इंटरव्यू में उसका फायदा मिलता है लेकिन ना रहा हो तो मेरा क्या कसूर, सिर्फ इसी कारण भी वहाँ कई रिजेक्ट हो जाते हैं। हमारे कई बैच जिनमें 100-100 लड़के थे, एकसाथ बाहर कर दिए गए। बिना कारण बताए, यह कहकर कि हम उनके बनाए खाँचे में फिट नहीं बैठते। इतने सारे लड़कों में से कोई भी नहीं..!!!

मेरा मानना है कि अगर इसराइल या अमेरिका में भी ऐसा होता तो क्या होता..?? इसराइल में सभी युवाओं (लड़के और लड़कियाँ भी) को सेना में कम से कम तीन से पाँच वर्ष देना अनिवार्य हैं। ठीक ऐसा ही अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी में भी था, अब वहाँ थोड़ी छूट मिली है। तो भारत में क्यों नहीं यह अनिवार्य किया जाता, बिना ये देखे कि किसके पास गणित रहा है और किसके पास नहीं। किसके बाप-दादा सेना में रहे हैं और किसके नहीं..। मेरे जैसे कई युवा हैं जिन्होंने अपनी शुरूआती युवावस्था के 5 से 10 वर्ष सेना की वर्दी में अपने को देखने के इच्छुक रहते हुए गुजारे, वो सेना के ख्वाबों में जिए लेकिन अब उनके सपने दूसरे हैं। ऐसे में सेना के अगर 45 हजार अफसरों के पद खाली हैं तो इसमें आश्चर्य कैसा...?????

आपका ही सचिन....।

October 26, 2009

ये नहीं हैं असली हीरो-हिरोइन..!!

हमें इन शब्दों का सच्चा अर्थ ही नहीं पता

पिछले दो दिनों में दो खबरें पढ़ने को मिलीं। पहली खबर बॉलीवुड की हिरोइन शिल्पा शेट्टी की थी। उन्होंने राज कुन्द्रा से सगाई कर ली है। इससे पहले वो इस कुन्द्रा की पहली शादी तुड़वा चुकी है और राज के लंदन में चल रहे बिजनेस से कमाए गए रुपयों पर जमकर ऐश कर रही हैं। इसमें आईपीएल की राजस्थान टीम की मालकिन बनना भी शामिल है। एक ऐसी मालकिन जिसकी इस टीम को खरीदने में अठन्नी भी नहीं लगी। दूसरी खबर हीरो सलमान खान से संबंधित है। वो इंदौर आए। प्रशंसक उन्हें देखने के लिए टूट पड़े। इस धक्का मुक्की में उन्हें किसी के नाखून लग गए और वो इंदौर के नेहरू स्टेडियम से बिना किसी से मिले वापस चले गए।

दोस्तों, मैं इन खबरों के बारे में आप लोगों को नहीं पढ़ाना चाहता था। बस मैंने उक्त लाइनों को लिखने में शिल्पा के लिए हिरोईन और सलमान के लिए हीरो खब्द का उपयोग किया है। बस यही मेरी बात का मूल है क्योंकि हम फिल्मों में काम करने वालों को हीरो और हिरोइन ही कहते हैं। मैं जब भी इस तरह की खबरों में फिल्मों में काम करने वालों के लिए हीरो-हिरोइन शब्द का इस्तेमाल देखता हूँ तो सोच में पड़ जाता हूँ. दरअसल भारत में हम लोगों को हीरो-हिरोइन का सच्चा अर्थ ही नहीं पता। हम फिल्मों में काम करने वाले लोगों को हीरो-हिरोईन कह देते हैं जबकि देश में काम कर रहे असली हीरो-हिरोइनों को पूछते तक नहीं हैं। हमने उनकी दुर्गति कर रखी है। अगर आप डिक्शनरी उठाकर देखें तो अंग्रेजी के हीरो शब्द का अर्थ होता है वीर और हिरोइक शब्द का मतलब होता है वीरोच्चित। इसी प्रकार हिरोइन शब्द का अर्थ होता है वीरांगना। योरप और अमेरिकी देशों में (जहाँ अंग्रेजी बोली जाती है) वहाँ वीरों को नेशनल हीरो या लीजेन्ड्री हीरो कहा जाता है। कोई बहुत बहादुरी या समाज हित में बड़ा काम कर देता है तो उसे हीरो कहा जाता है जबकि हम इन नचईयों और भांडो के लिए हीरो और हिरोइन जैसे महान शब्दों का उपयोग कर रहे हैं। हमें पश्चिम की तर्ज पर ही इन्हें अभिनेता या अभिनेत्री(एक्टर-एक्ट्रेस) ही कहना चाहिए नहीं तो आपके और हमारे बच्चे कभी नहीं जान पाएँगे कि हीरो और हिरोइन का असली अर्थ क्या होता है।

आपका ही सचिन...।

October 25, 2009

बम विस्फोट आखिर पाकिस्तान में क्यों..??


दहशतगर्दी का दर्द समझ आ रहा होगा पाकिस्तान को

पिछले कुछ दिनों से लगातार कुछ खबरें सुन रहा हूँ। यह खबरें वैसे तो हम मानसिक सुकून देने वाली कह सकते हैं लेकिन फिर भी मैं इनपर कुछ सोचने के लिए विवश हुआ। आप दोस्तों से शेयर करना चाहता हूँ जैसी कि मेरी आदत है। यहाँ मैं बात कर रहा हूँ पाकिस्तान में लगातार हो रहे बम विस्फोटों की। कई बार तो इन विस्फोटों की भयावहता देखकर लगता है कि ओफ..अगर यह सब भारत में हुआ होता तो कितना भयानक मंजर होता...!!!! भारत की आशंका इसलिए जागी क्योंकि जिस तरह से पाकिस्तान में विस्फोट किए जा रहे हैं और जो लोग विस्फोट कर रहे हैं वो वही लोग हैं जो भारत में आतंक फैलाते रहे हैं। यहाँ की तर्ज पर ही वहाँ भी विस्फोट हो रहे हैं। कारण भी वही है....बहुचर्चित धर्म.....।

दोस्तों, जब पाकिस्तान में विस्फोट होते हैं तो वहाँ के मुस्लिम बाशिंदों के भी उसी तरह फटे हुए बदन आसमान में उड़ते हैं जैसे यहाँ हिन्दुओं के उड़े थे। दोनों ही इंसान हैं लेकिन दहशतगर्दों को यह नहीं दिखाई देता। उन्हें दिखता है कि उनकी धर्मांधता और उसके फैलाव में रोड़ा कौन बन रहा है। पाकिस्तान ने आतंकवाद को लंबे समय तक प्रशय दिया। उसे पाला पोसा। बहुचर्चित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (खुदा की पवित्र फौज) का कई एकड़ों में फैला मुख्यालय पाक राजधानी इस्लामाबाद से कुछ ही सौ किमी दूर है। ऐसे में पाकिस्तानी आवाम को माँस के लोथड़ों में तब्दील होता हुआ देख आश्चर्य होता है। हालांकि इसके स्पष्ट कारण हैं जो आपको और हमको दोनों को पता हैं लेकिन असमंजस की स्थिति देखिए कि खुदा (?) के लिए काम करने वाली दो फौजें आपस में लड़ रही हैं और मर रही हैं। पाकिस्तान फौज और उसकी इंटेलीजेंस एजेंसी आईएसआई ने लंबे समय तक (लगभग दो दशक) आतंकियों का साथ दिया। उन्हें इतना मजबूत बनाया कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार अरब से पनपे अल कायदा से ज्यादा धन-संपदा और संसाधन पाकिस्तान और अफगानिस्तान से पनपे तालीबान के पास है। अमेरिकी वर्ल्ड ट्रेड टॉवरों को ध्वस्त करने के बाद अमेरिका ने पाकिस्तान को पुचकारने और लताड़ने का काम शुरू किया। पुचकारने का ऐसे कि उसे भरपूर आर्थिक सहायता दी गई जिससे उसकी सामाजिक जरूरतें पूरी हो सकें। लताड़ने का ऐसे कि पाकिस्तान को इसके एवज में तालीबान के खिलाफ जंग छेड़नी थी। उसी तालीबान के खिलाफ जो पाकिस्तानी फौज का बच्चा था। अब यह बच्चा बड़ा हो गया है और बाप को टक्कर दे रहा है।

तालीबान के पास कभी निर्दोषों की जान लेने के अलावा कोई विकल्प रहा ही नहीं। वो डराकर अपने धर्म को दूसरों के ऊपर हावी करना चाहता है। लेकिन उसे यह समझ नहीं आता कि आधुनिक दुनिया में यह काम उतना आसान नहीं रहा जितना 500 या 1000 साल पहले था। आज तालीबान के पास जितने संसाधन या धन होगा उतने समूचे धन की तो अमेरिका, जापान या चीन में एक अकेली अत्याधुनिक इमारत होगी। जहाँ तक हथियारों की बात है तो एके-47 या रूस से लूटे हुए टैंकों के बल पर दुनिया भी फतह नहीं की जा सकती। हाँ, एक यक्ष प्रश्न जरूर हमारे सामने खड़ा है कि पाकिस्तान के परमाणु बमों पर तालीबान कहीं कब्जा करके उन्हें भारत या अन्य योरपीय या अमेरिकी देशों के लिए इस्तेमाल ना कर दे। तो यह आशंका समूचे विश्व के मानस पर अंकित है और आए दिन अमेरिकी सैन्य विशेषज्ञ यह आशंका जाहिर करते भी रहते हैं और पाकिस्तान उस आशंका पर अपना यह कहकर स्पष्टीकरण भी देता रहता है कि उसके कंट्रोल में सबकुछ है और उसके परमाणु बम पूरी तरह सुरक्षित हैं। दूसरी एक आशंका यह भी है कि चीन तालीबान को उन परमाणु हथियारों को हड़पने या बनाने में मदद करे क्योंकि उसके दुश्मन लगभग वही देश हैं जिन्हें मुस्लिम दुनिया अपना दुश्मन मानती है। हालांकि इस्लामिक दुनिया के कई राष्ट्र प्रोग्रेसिव हैं और आतंकवाद की निंदा करते हैं लेकिन तालीबान को लगता है कि वो राष्ट्र अंततः उसी का साथ देंगे और अगर नहीं देंगे तो धर्म के फैलाव के आड़े आने के कारण उनका हर्ष भी वही किया जाएगा जो वर्तमान में पाकिस्तान का किया जा रहा है।

पाकिस्तान में हो रहे लगातार धमाके और चिंदे-चिंदे हो रहे वहाँ के नागरिक और मानवता को लेकर यह अब साफ हो गया है कि तालीबान किसी का नहीं है। जिस देश के लोगों के रूपयों से उसने संसाधन जुटाए उसी देश के लोगों (जो उसके समान धर्म के भी हैं) का नाश करने से वो नहीं चूक रहा। अब उसकी प्रायरोरिटी पर भारत नहीं बल्कि पाकिस्तान है और अब वहाँ के आत्मघाती लड़ाकों को यह बताया जा रहा है कि अगर अल्लाह की बनाई जन्नत में जाना है तो अमेरिका का साथ देने वाले पाकिस्तान के लोगों को लाशों में बदलो। पाकिस्तान दुविधा में है, वो ना चाहते हुए भी तालीबानी आतंकवादियों के खिलाफ बड़ी लड़ाई लड़ रहा है और हजारों तालीबानियों को मौत के घाट उतार चुका है। उसके कई सैनिक और कई मासूम बाशिंदे भी इस लड़ाई में मारे जा रहे हैं लेकिन पीओके और अफगानिस्तान से सटी पाकिस्तानी सीमा पर बसे गाँव के लोग मानते हैं कि इस धर्मांध तालीबान का नाश होना ही चाहिए। वो त्रस्त हो चुके हैं ऐसे वातावरण से जिसमें वो सिर्फ नमाज पढ़ने वाले बनकर रह गए हैं। उन्हें सिर्फ वही करने की इजाजत है जो 1400 पहले थी। आधुनिक दुनिया में उनको झाँकने तक की इजाजत नहीं है। ऐसे में उनका दम घुट रहा है। पाकिस्तान के लोगों को यह अहसास हो रहा होगा कि दहशतगर्दी में जीने पर कैसा महसूस होता है।

आपका ही सचिन....।

October 13, 2009

कान में छुपा है 'चक्कर' का असली कारण

दोस्तों, आप और हम में से कई लोग 'चक्करों' के चक्कर में पड़े रहते हैं। कई प्रकार के इलाज करवाते रहते हैं। बहुत सी जाँचे करवाते हैं लेकिन इन चक्करों के चक्कर से बाहर नहीं निकल पाते। मैं भी पिछले माह कुछ ऐसी ही परेशानी में फँस गया था और मेडिकल कॉलेज के कई विभागों में कई प्रकार की जाँचे करवाने के बाद ये बीमारी मेरी पकड़ में आई। मैंने अपने अखबार में इस पर एक लेख लिख मारा है। मैं आप लोगों से इसे साझा कर रहा हूँ ताकि अगर आपमें से कोई इन 'चक्करों' में उलझा हो तो उसे इनसे बाहर निकलने में थोड़ी मदद मिल सके। आशा है आपको यह पसंद आएगा।
लेख को पढ़ने के लिए इमेज पर क्लिक किजिए....।


October 11, 2009

गूगल का डूडलर डेनिस ह्वांग

गूगल के विभिन्न लोगो के पीछे का चेहरा

आप भी पढ़िए और बताइए कि कहीं ये जानकारी भी आपके लिए पुरानी तो नहीं है.?

बड़ा करके पढ़ने के लिए इमेज पर क्लिक करें



October 10, 2009

नक्सलियों को खोद कर उखाड़ फैंकना चाहिए


हत्याएँ करने वाले इन दरिंदों से हम क्यों सहानुभूति रखें?

भारत के नक्सली आतंकवादी हैं। वामपंथ विचारधारा वाले लोगों को सुनकर यह बुरा लग सकता है लेकिन मैं इस बात का पक्षधर हूँ कि इस समस्या को मूल रूप से खत्म कर देना चाहिए क्योंकि इन लोगों ने जिन छोटे किसानों को अधिकार दिलवाने के नाम पर ये खतरनाक आंदोलन शुरू कर रखा है उसे कई दशकों तक चलाने के बाद भी ये उन किसानों के लिए कुछ नहीं कर पाए हैं। इन्होंने सिर्फ हत्याएँ की हैं और उन निरीह पुलिस के हवलदारों को अपना निशाना बनाया है जो ना तो पूँजीवादी व्यवस्था के परियाचक थे और ना ही उन्होंने किसी किसान की कोई जमीन हड़पी थी। कई मामलों में तो नक्सलियों ने वाकई दुस्साहस दिखाया है। उन्होंने कई नेताओं, उनके पुत्रों को मार डाला, कई आईपीएस और आईएएस अफसरों की हत्या की और मुख्यमंत्रियों के काफिलों तक पर हमले किए जिनमें चंद्रबाबू नायडू शामिल हैं। अब ये नक्सली कह रहे हैं कि भारत सरकार उनके खिलाफ युद्ध छेड़ सकती है.....तो और क्या करेगी भाई, आरती उतारेगी तुम्हारी..??

दोस्तों, पिछलों दिनों भारत के वायुसेना प्रमुख नाइक साहब ने जब कहा कि सेना तो सीमा पर चौकसी के लिए होती है और वे इस बात के पक्षधर नहीं हैं कि नक्सलियों पर सेना कार्रवाई करे, तब मेरा मन खट्टा हो गया था। नाइक साहब के लिए बस इतना ही कि जब आप सीमा पर चौकसी कर रहे हैं और अंदर मासूम नागरिक मारे जा रहे हैं तब उस सीमा की चौकसी का फायदा ही क्या, क्योंकि उस सीमा के भीतर ही हमारे देश के नागरिकों के सिर काटे जा रहे हैं। देश के गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने हाल ही में कहा कि नक्सली समस्या राज्य सरकारों की निजी जिम्मेदारी है। हालांकि बाद में उन्होंने अपने बयान में थोड़ा सुधार किया और कहा कि नक्सलियों से मिलजुलकर निपटा जाएगा, लेकिन सवाल यह है कि चिदंबरम जी ऐसे-कैसे गृहमंत्री हैं...!!!!! ये साहब पहले भी कह चुके हैं कि देश के हर नागरिक की रक्षा केन्द्र सरकार नहीं कर सकती। अब कह रहे हैं कि नक्सलवाद से राज्य सरकारें निपटें। उनके ही मंत्रीमंडल के एक साथी शरद पवार सूखे की समस्या पर ठीक इसी प्रकार की उलट बयानी कर चुके हैं। वो कह चुके हैं कि सूखा राज्य सरकारों का निजी मामला है और केन्द्र उसमें कुछ नहीं करेगा। तो भईया वो सारा टैक्स कहाँ जाएगा जो हम केन्द्र सरकार को हर साल चुकाते हैं और छतरी की तरह सैंकड़ों प्रकार के टैक्स आम आदमी के ऊपर लगाए जा चुके हैं। तो पूरा देश एक है चिदंबरम साहब, और आपको इन नक्सलियों को जड़ से उखाड़ फैंकना ही होगा नहीं तो आपको भारत का गृहमंत्री बने रहने का कोई अधिकार नहीं है।

यहाँ मैं एक चिरपरिचित उदाहरण देना चाहूँगा। श्रीलंका के एक बड़े भूभाग पर लिट्टे ने कई दशकों तक शासन किया। उन्होंने श्रीलंका के कई मंत्री, प्रधानमंत्री और यहाँ तक की राष्ट्रपति तक को मार डाला। उनकी हिम्मत इतनी बढ़ गई थी कि वो कई हमलों के लिए हवाई जहाज का इस्तेमाल करते थे। लेकिन महिन्द्रा राजपक्षे ने दिखा दिया कि अगर कोई लड़ाई जीतनी ही है तो थोड़ा घाटा तो उठाना ही पड़ेगा। सबसे पहले मातृभूमि की खातिर उन्होंने लिट्टे के खिलाफ आपरेशन शुरू करवाया और अंत तक लड़ाई लड़ी। पूरी दुनिया ने इस खूनखराबे को रोकने के लिए राजपक्षे पर दबाव डाला, लेकिन वो पीछे नहीं हटे। आखिर में प्रभाकरण के सिर में सूराख कर घुसी गोली वाली तस्वीर संसार भर में दिखी और राजपक्षे ने दिखा दिया कि अगर तबीयत से पत्थर उछाला जाए तो आसमान में भी सुराख हो सकता है।

तो चिदंबरम साहब, हम में भी वो दम है कि हम आसमान में सुराख कर सकते हैं। लेकिन आप पत्थर तो उछालिए, जब हम अपनी ही धरती पर कार्रवाई करने में इतना हिचकेंगे तो पाकिस्तान और चीन को आँखे दिखाने की कभी सोच भी नहीं सकेंगे (हालांकि अब भी नहीं सोचते हैं)। क्या आप भी यह इंतजार कर रहे हैं कि नक्सली भारत सरकार के भवनों और प्रतिष्ठानों पर हवाई जहाज से आक्रमण करे। भारत अगर अंदर से कमजोर हुआ तो चारों ओर दुश्मनों से घिरे हम कैसे उनका मुकाबला कर पाएँगे। राज्य सरकारें बिचारी इस सबमें क्या करेंगी जबकि उनके पास संसाधनों की विकट कमी है। भारतीय सेना पर केन्द्र सरकार इस साल एक लाख पाँच हजार करोड़ रुपए खर्च कर रही है फिर उस खर्चे का क्या फायदा जब घर के अंदर ही फफूँद लग रही है। चिदंबरम साहब ने स्वीकारा है देश के 20 राज्यों के 223 जिलों में नक्सली जम चुके हैं और उन्होंने वहाँ प्रभाव जमा रखा है। नक्सली हिंसा से देश में सबसे अधिक लोग मारे जा रहे हैं। तो अब क्यों देरी की जाए। भारतीय सेना को केन्द्र सरकार के आदेश से राज्यों की पुलिस के साथ संयुक्त कार्रवाई कर नक्लियों के खिलाफ ठीक वैसी ही कार्ऱवाई करनी चाहिए जैसी इसराइल अपने विरोधियों के खिलाफ करता है। हर जंग निर्णायक नजरिए से देखी जानी चाहिए और लड़ी जानी चाहिए, कई बार छोटी जीत भी बड़ी साबित होती है और यह जंग तो बहुत बड़ी है। हमारे देश को अंदर से कमजोर बिल्कुल नहीं होने देना चाहिए।

और अंत में चलते-चलते नक्सलियों के लिए...
नक्लियों को लगता है कि उनके साथ सहानुभूति रखी जाए, उनकी विचारधारा को समझा जाए, सरकार उनके खिलाफ दुष्प्रचार कर रही है। उनके पास ज्यादा हथियार भी नहीं है। उन्हें डर है कि सरकार उनके खिलाफ लिट्टे वाली स्टाइल में लड़ाई ना छेड़ दे। तो नक्सली भाईयों (माफ करना क्योंकि तुम हमारे देश के हो इसलिए कहना पड़ा) तुम बंदूक उठाए रहो और लोगों के मन में खौफ पैदा कर दो तो ऐसे में इस देश के लोगों को तुम्हारी विचारधारा के बारे में कैसे पता चलेगा। अगर तुम्हें वाकई केन्द्र सरकार से बातचीत करनी है तो कंधे से बंदूक उतारकर बात करनी होगी। देश में चंबल के डाकूओं की बात हो या कश्मीर में आतंकवादियों की...अगर बात नहीं की जाएगी तो गोली दोनों ओर से चलेगी, कभी हमारे सीने पर लगेगी तो कभी तुम्हारे सीने पर लगेगी, लेकिन ये याद रखना कि जीत हमारी ही होगी। भारत में लाल गलियारा नहीं बनने दिया जाएगा। सरकार कठोर कदम उठाए, उसे देश की जनता का समर्थन और स्वागत जरूर मिलेगा।


आपका ही सचिन...।

October 07, 2009

October 05, 2009

मराठी नहीं है राज ठाकरे..!!

देश को तोड़ने वाला गुंडा मराठी नहीं हो सकता

दोस्तों, करण जौहर के राज ठाकरे से माफी माँगने की खबर लगभग हर अखबार और समाचार चैनल ने दी। पढ़कर बड़ा क्षोभ हुआ। क्योंकि करण पर आरोप था कि उनकी फिल्म वेकअप सिड में बंबई या बॉम्बे शब्द का 11 बार इस्तेमाल हुआ था। राज ठाकरे को यह बुरा लगा था कि उसकी मुंबई को किसी ने बंबई क्यों बोल दिया। हालांकि इस इश्यू पर अपना बयान देते हुए उनकी पार्टी महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के ही एक नेता ने बंबई (बॉम्बे) शब्द का प्रयोग कई बार कर दिया लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। दरअसल, ऐसा नहीं है कि मैं करण जौहर को पसंद करता हूँ, ऐसा भी नहीं है कि मैं उसकी सभी फिल्में देखता हूँ। मुझे करण जौहर या उसकी एनआरआई टाइप फिल्मों से कोई मतलब नहीं है। बल्कि मैं करण की फिल्मों के विषयों को पसंद नहीं करता, लेकिन एक हिन्दुस्तानी होने के नाते मैं इस मामले में करण जौहर के साथ खड़ा हूँ। इसका कारण साफ है कि जब आस्ट्रेलिया में दिनोंदिन भारतीयों के पिटने की खबर आती है तो मेरा खून खौल जाता है, लेकिन राज ठाकरे के बारे में सोचकर ठंडा भी हो जाता है। अरे, हम या हमारी सरकार किसी दूसरे देश को भारतीयों को पीटने से रोकने के लिए कैसे बाध्य कराएगी जब हमारे खुद के ही देश में भारतीय पिट रहे हैं, जलील हो रहे हैं और राज्य तथा केन्द्र सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है।

साथियों, राज ठाकरे दरअसल एक बहुत बड़ा नासूर है हमारे देश के लिए, हमारे समाज के लिए। मैं उसे मराठी नहीं मानता क्योंकि जिस महाराष्ट्र ने हिन्दुत्व की अवधारणा रची, जिस महाराष्ट्र ने वीर शिवाजी और बाल गंगाधर तिलक जैसे लोग निकाले। जहाँ से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसा देशभक्त और क्रांतिकारी मूवमेंट शुरू हुआ उस महाराष्ट्र से कैसा जानवर निकल आया जो अपने भाईयों को ही एक दूसरे से लड़वा रहा है, झगड़वा रहा है। मुंबई हमले के समय राज ठाकरे की असलियत सबसे सामने आ गई थी जब उसके समेत उसके दल के सारे चूहे दुम दुबाकर आठ दिन तक अपने-अपने बिलों में छुपे रहे। लेकिन आश्चर्य है कि उस घटना के बाद, और उसकी असलियत सामने आने के बाद भी उसकी घातक राजनीति चल रही है। मुझे इस बात का भी आश्चर्य है कि मराठी लोग उसे कैसे सहन कर रहे हैं। मैं मराठियों को हमेशा बहुत ऊँची नजर से देखता हूँ। मैंने जिस स्कूल से पढ़ाई की है वो मराठी स्कूल था। स्कूल का पूरा स्टाफ मराठी था। हम लोग अपनी टीचर को ताई बुलाते थे। उस स्कूल में हमें बहुत अच्छे संस्कार दिए गए। इतने अच्छे कि हम सब दोस्त उन दिनों को 16 साल बाद आज तक याद करते हैं। आज हम दोस्तों में से कई विदेश में हैं, कई दूसरे देश के कोने-कोने में हैं लेकिन हम उन संस्कारों को नहीं भूले। मेरे सभी मराठी मित्रों ने अपने परिवार और देश के साथ पूरी ईमानदारी से अपना रिश्ता और जिम्मेदारी निभाई है। संगीत और कला के प्रति समझ और प्रेम मराठियों में जन्मजात होता है। वे संस्कृति प्रेमी, देशभक्त और वीर होते हैं। अपनी मातृभाषा के प्रति उनके मन में गजब का सम्मान होता है। भारत के सभी बौद्धिक मूवमेंट या तो महाराष्ट्र से शुरू हुए या बंगाल से। बंगाली लेफ्टिस्ट निकले तो मराठी राइटिस्ट लेकिन दोनों बौद्धिक लोग हैं। लेकिन पहली बार मैं एक गुंडे को मराठियों का प्रतिनिधित्व करते हुए देख रहा हूँ। यह प्रतिनिधित्व उसे किसने दिया यह मैं नहीं जानता लेकिन इतना जानता हूँ कि वो लगातार ये काम कर रहा है।

दोस्तों, मराठियों की ऐसी ओछी सोच के बारे में मैं सोच भी नहीं सकता जिसमें वे सिर्फ अपने लोगों और अपने प्रदेश के बारे में सोचें लेकिन राज ठाकरे को रोकने के लिए ना तो महाराष्ट्र की कांग्रेस सरकार कुछ कर रही है, ना ही कोई दल कुछ कर रहा है और वहाँ की जनता भी शांत है। शिवसेना जो कह रही है वो इसलिए ज्यादा मायने नहीं रखता क्योंकि उसने भी अपनी जमीन इसी नफरत पर तैयार की है। लेकिन है यह सब बहुत घातक। हम बिहार को पिछड़ा प्रदेश कहते हैं क्योंकि वहाँ जातिवाद इतना हावी हो गया है कि वहाँ सीधे ही वर्ण व्यवस्था को निशाना बनाया जाता है। वहाँ दलितों के गैंग सवर्णों को मार डालते हैं और सवर्णों के गैंग दलितों की हत्या कर देते हैं। क्या राज ठाकरे द्वारा तैयार की गई जमीन पर भी भविष्य में ऐसा ही होगा और मराठी गैर मराठियों की हत्या कर देंगे और जब गैर मराठियों की बारी आएगी तो वे मराठियों को जिंदा नहीं छोंड़ेंगे।

आपमे से जो विद्वान हैं वो अफ्रीका के बारे में जरूर कुछ ना कुछ पढ़े होंगे। वहाँ सिविल वॉर से घिरे देशों में वही हालात हैं जो राज ठाकरे हमारे देश में करने की सोच रहा है। अफ्रीका में रेबेल्स ग्रुप ऐसे ही एक दूसरे के सिर काटते रहते हैं। क्या राज ठाकरे महाराष्ट्र को अफ्रीका के ऐसे ही किसी देश जैसा बनाना चाह रहा है। मुझे नहीं लगता कि महाराष्ट्र कभी गैर मराठियों से खाली हो पाएगा, तो ऐसे मामले में क्या होगा..?? राज ठाकरे की शक्ल धीरे-धीरे शैतान की शक्ल जैसी होती जा रही है और उसकी गुंडों-मवालियों की सेना महाराष्ट्र का नवनिर्माण नहीं बल्कि उसका नाश करने जा रही है। राज जानता है कि उससे नफरत करने वालों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है लेकिन उसे फिर भी यकीन है कि मराठियों का साथ उसे मिल रहा है, शायद यह सच हो लेकिन अगर ऐसा है और राज ठाकरे अपनी इस शैतानी मुहिम में कामयाब हो गया तो पूरे देश के हर राज्य में ऐसी मुहिमें चलेंगी और देश की अस्मिता दाव पर लग जाएगी।

अब जबकि हमारे देश में नियम-कायदे और कानून की पालना में सरकारें और नेता फेल हो चुके हैं, ऐसे में हमें महाराष्ट्र के मराठी बाशिंदों से ही उम्मीद करनी होगी कि वे इस शैतानी मुहिम को खत्म करें। राज हमेशा लाइमलाइट में आने के लिए फिल्म और फिल्म से जुड़े लोगों को निशाना बनाता है। बच्चन परिवार के बाद अब बारी करण जौहर की है। महाराष्ट्र की कांग्रेस सरकार हमेशा की तरह चुप है क्योंकि उसे लग रहा है कि इन घटनाओं से राज का जनाधार बढ़ेगा और वो आगामी विधानसभा चुनावों में शिवसेना और भाजपा के वोट काटेगा जो कांग्रेस के लिए फायदे का सौदा होगा। ऐसा इसी देश में हो सकता है कि तुच्छ चुनावों और सत्ता सुख के कारण देश को बाँट-काट-छाँट भी दो तो चलता है। यह देशद्रोही मुहिम सिर्फ और सिर्फ मराठियों की वजह से ही रुक पाएगी, जब वे राज ठाकरे का समर्थन करना बंद कर देंगे और ओछी राजनीति को एक तरफ कूड़े में फैंक देंगे। पूरा देश महाराष्ट्र के मराठियों की ओर देख रहा है। उन्हें यह साबित करना होगा कि राज ठाकरे मराठी नहीं है और मराठी संस्कारों में ऐसी देशद्रोही राजनीति नहीं आती, तभी यह विष बेल फैलने से रुकेगी अन्यथा भविष्य में हम सबको इस जहरीली बेल के फैलने की कीमत चुकानी होगी।

आपका ही सचिन...।

October 01, 2009

खोखला चीन..!!


शक्ति प्रदर्शन से रौब जमाना चाहता है मानसिक रूप से दिवालिया चीन

दोस्तों, आज का दिन (1 अक्टूबर 2009, गुरूवार ) चीन का था। उससे संबंधित कई खबरें इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर थीं। उसने आज अपनी स्थापना (माओ के नए चीन या कहें साम्यवादी शासन) के 60 वर्ष जो पूरे कर लिए थे। उसने आज बीजिंग की विख्यात (बदनाम) थ्येनआनमन चौक पर पुख्ता प्रबंध कर रखे थे। वहाँ आस-पास रहने वाले लोगों को घरों में बंद कर दिया गया था, उन्हें शुक्रवार को ही बाहर निकलने की इजाजत थी। चीनी सरकार ने कई एंगलों पर कैमरे फिट करवाए थे और इस परेड की विभिन्न कोणों से शूटिंग हो रही थी जो पूरे संसार में दिखाई जाने वाली थी। चीन ने इस परेड के लिए अपने सैनिकों को विशेष आदेश दे रखे थे जिनमें वे 40 सेकेण्ड में सिर्फ एक बार अपनी पलकें झपका सकते थे। बीजींग ओलंपिक की तर्ज पर इन इंतजामों को भव्यतम बनाने के लिए प्रयास किए गए थे जिससे पूरी दुनिया चीन का लोहा माने, अमेरिका उससे चमके और भारत खौफ खाए। चीन ने इस अवसर पर 52 अत्याधुनिक हथियारों का प्रदर्शन भी किया जो उसी के देश में निर्मित हैं। इनमें कई लड़ाकू विमान भी शामिल थे जिन्हें चीन ने खुद ही विकसित किया है।

चीन ने इतना ही नहीं किया, उसने आज के इस विशेष दिन एक और कमाल कर दिया। उसने बता दिया कि वो कश्मीरियों को भारतीय नहीं मानता है। ताजा मामला वीजा से जुड़ा है, जिसमें चीनी दूतावास द्वारा कश्मीरियों के लिए अलग आवेदन प्रक्रिया अपनाने की बात सामने आई है। समाचार चैनल एनडीटीवी इंडिया की मानें तो चीनी दूतावास में वीजा के लिए कश्मीरियों से अलग से आवेदन पत्र लिए जा रहे हैं। उन्हें दूतावास में पासपोर्ट पर स्टाम्प लगाने को भी कहा गया है। वीजा का आवंटन दूसरे पेपर किया जा रहा है। भारत सरकार ने इस पूरे मामले पर कड़ी आपत्ति जताई है। उसका कहना है कि चीन द्वारा जारी ऐसे किसी भी वीजा को वैधानिक नहीं माना जाएगा। सरकार ने इस संबंध में सारे एयरपोर्ट को अलर्ट कर दिया है, ताकि किसी भी प्रकार की गैरकानूनी गतिविधि को रोका जा सके।

हालांकि भारत की कड़ी आपत्ति मुझे कोरी बात ही लगती है क्योंकि चीन के 60वें राष्ट्रीय दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह ने चीन सरकार और वहां की जनता को बधाई देते हुए आज एक बार फिर दोहराया कि भारत अपने इस मित्र पडोसी देश के साथ अपने संबंधों को और बढाने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। डॉ. सिंह ने चीनी प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ को भेजे एक बधाई संदेश में कह दिया कि पिछले चार वर्षो में शांति और समृद्धि के लिए दोनों देशों के बीच सामरिक और सहयोग की साझेदारी बनी है और वैश्विक तथा अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दो पर दोनों देशो के बीच सहयोग और समन्वय भी हुआ है। उन्होंने कहा- “हमारे बीच संबंधों को और मजबूत बनाने के लिए भारत पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। “चीन के लोगों के लिए यह महत्वपूर्ण मौका है। पिछले 60 वर्षों में आपके इस महान देश ने कई उपलब्धियां हासिल की है। अच्छे पडोसी और विकासशील देश होने के नाते भारत में हम इस महत्वपूर्ण मौके पर आपके खुशी के पलों को बांट रहे है।”
अब हमारे प्रधानमंत्री के यह हाल हैं कि वो आँखें दिखा रहा है और हम गिड़गिड़ा रहे हैं जबकि हम जानते हैं कि शक्ति प्रदर्शन और एग्रेशन से ही शक्ति संतुलन बनता है नहीं तो पिछले 1000 सालों में हमने देख लिया है कि सज्जन और सहृदय बनने से क्या होता है..!!!!

दोस्तों, मैंने आज दरअसल अपनी पोस्ट का हैडिंग कुछ अलग रखा था। मैंने चीन को खोखला यूँ ही नहीं कहा। चीन के इतिहास में झाँकें तो हम कुछ ये बातें पाएँगे...

- जो लोग चीन को अच्छी तरह से जानते हैं उनके अनुसार चीन ने भले ही विकास किया हो, परंतु अब भी वहाँ पर लोकतंत्र नहीं है। लोगों पर आदेश थोपे जाते हैं।
- 1949 से 79 तक चीन में माओवाद छाया रहा। इस दौरान चीन ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी राजनीतिक पहचान बनाई और अमेरिका व नाटो से दोस्ती बढ़ाकर रूस का विरोध किया।
- माओ ने अपने समय केवल सांस्कृतिक क्रांति के नाम पर अरबों रुपए खर्च कर दिए थे। 1979 में स्थिति यह थी कि एक-तिहाई चीन अनपढ़ था तथा गरीबी बहुत थी। 1959-62 में पड़े सूखे से लाखों लोग मारे गए तथा उसमें माओ सरकार ने कितना पैसा खर्च किया इसका कोई हिसाब ही नहीं था।
- माओ के समय बेरोजगारी चरम पर थी तथा अर्थव्यवस्था ग्रामीण आधारित ही थी।
- चीन में टेक्नोलॉजी के बारे में मदद ताईवान द्वारा की गई। ताईवान ने चीन को कई प्रकार की विश्व टेक्नोलॉजियों से अवगत करवाया।
- 1979 से अब तक डेंग जियाओपिंग ने समाजवाद के चीनी तरीके को अपनाया तथा कानून व्यवस्था से लेकर आर्थिक सुधार कानून लागू किए।
- चीन के ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार की अनुमति के बाद किसान अपने लिए फसल का कुछ हिस्सा रखने लगे।
- शहरी क्षेत्रों में 'स्पेशल इकोनॉमिक जोन" बनाए गए जहाँ सस्ते मजदूर उपलब्ध थे और पर्यावरण की चिंता करने जैसी कोई बात नहीं थी। साथ ही टेक्स हॉलिडे भी दिए गए।
- चीन में पर्यावरण की अनदेखी की गई तथा वहाँ पर ऐसी टेक्नोलॉजी से उत्पादन किया गया जो कि विश्व में कही पर भी उपयोग नहीं की जाती थी। इससे प्रदूषण काफी फैला। आज भी चीन में जंगल साफ हैं और वन्यजीवों के नाम पर कुछ नहीं है। चीनी सबकुछ खा गए। मारकर और पकाकर। वहाँ से बाघों का सफाया कर दिया गया और अब चीनी लोग भारत के बाघों को मरवा रहे हैं। यहाँ के मरे हुए बाघ वहीं जाकर बेचे जाते हैं। वहाँ उनकी हड्डियों और अन्य अंगों को यौन उत्तेजक दवाइयों के रूप में काम में लिया जाता है।
- आज चीन भारत से 2.5 गुना ज्यादा तथा जापान से 7 गुना ज्यादा ऊर्जा का उपभोग कर रहा है।
- चीन की गिनती विश्व के सबसे प्रदूषित देशों में होती है। क्योंकि वहाँ पेड़ नहीं है, बहुत बड़ा रेगिस्तान है और पर्यावरण संरक्षण की चिंता ना के बराबर है।
- एक अनुमान के मुताबिक चीन को प्रदूषण के कारण अब तक 60 बिलियन डॉलर्स का नुकसान हो चुका है।
- सामाजिक और आर्थिक दोनों स्तरों पर चीन के ग्रामीण व शहरी क्षेत्र में काफी अंतर है। वहाँ ग्रामों में व्यवस्था बहुत खराब है। सब गाँव आबादी की समस्या से जूझ रहे हैं और महानगरों में भी स्लम एरिया बहुत हैं। इन्हीं सबको छुपाने के लिए चीन ने ओलंपिक और स्थापना दिवस पर विशेष इंतजाम किए थे।
- चीन में सामाजिक पतन काफी तेजी से हो रहा है और लाखों की संख्या में परिवारों में विघटन देखने में आ रहा है। यह सब पश्चिम के प्रभाव से हो रहा है क्योंकि समाज का मॉर्डनाइजेशन बहुत तेजी से बढ़ा है।


कुल मिलाकर चीन ऊपर से खूबसूरत लेकिन अंदर से बदसूरत है। इस देश से संसार में चिढ़ने वाले देशों की संख्या भी बहुत अधिक है क्योंकि पीठ में खंजर घोंपने का इसका इतिहास काफी पुराना है। ताइवान की मदद का सिला भी इसने इसी प्रकार दिया कि उस पूरे देश पर ही अपना अधिकार जताने लगा। आज चीन के बने नकली और सस्ते सामान पर ज्यादातर देश प्रतिबंध लगा रहे हैं और सिर्फ इस्लामी देश ही चीन के साथ मित्रता निभा रहे हैं क्योंकि यूएई और सऊदी अरब के ज्यादातर बड़े कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट्स जो अरबों डॉलर के हैं, सिर्फ चीन को दिए जा रहे हैं। पहले ये अमेरिका और योरपीय देशों को दिए जाते थे लेकिन विश्व के धर्म के आधार (मुस्लिम, ईसाई, यहूदी) पर बँटने के बाद इसका सीधा फायदा चीन को मिला है। अब चीन अपना शक्ति प्रदर्शन कर रहा है। अपने लोगों की जबरन आँखें खुली रख रहा है, उन्हें पलकें नहीं झपकाने दे रहा है। लेकिन अब चीन को समझना चाहिए कि वो बंधन में अपने समाज को कब तक बाँधकर रखेगा। कब तक खूबसूरत चेहरों को संसार के सामने लाता रहेगा (वो बीजिंग ओलंपिक वाली घटना याद है आपको जिसमें उदघाटन अवसर पर एक खूबसूरत लड़की को गाना गाते दिखाया गया था जबकि आवाज एक दूसरी लड़की की थी जो दिखने में उतनी सुंदर नहीं थी इसलिए चीन ने उसे पार्श्व में रखा था, बाद में ये मामला खुला था)। चीन को अब अपने नागरिकों को सुपरपॉवर वाले दिग्भ्रम से बाहर निकालना चाहिए क्योंकि वो आजादी चाहते हैं, जो हर समाज का सपना होता है। चीन को मानवाधिकारों के लिए कुछ करना चाहिए क्योंकि वहाँ की जनता का दम घुट रहा है। इस जनता में चीन, हांगकांग और तिब्बत की जनता शामिल है ।जिस दिन वहाँ इन अर्थों में आजादी होगी उसी दिन यह माना जाएगा कि वाकई चीन सुपरपॉवर बन गया है क्योंकि वहाँ की जनता तब अपने को स्वतंत्र मान सकेगी, और वो स्वतंत्रता जबरदस्ती की नहीं होगी।
(नोटः यहाँ जब भी चीन का उल्लेख किया गया है वह वहाँ की सरकार के संदर्भ में माना जाए क्योंकि किसी देश की एकमुश्त जनता कभी खराब हो ही नहीं सकती, वो तो सरकार की नीतियाँ ही होती हैं जो उस देश की छवि को बनाती और बिगाड़ती हैं)

आपका ही सचिन....।

September 30, 2009

हड़ताल बड़ी या देश..??


सिर्फ वेतन बढ़वाने की चिंता

अभी पिछले साल की ही तो बात है जब मनमोहन सरकार ने छठवाँ वेतन आयोग लागू करके केन्द्रीय कर्मचारियों की वाह-वाही लूटी थी और हम निजी फर्मों में काम करने वाले लोगों का मुँह लटक कर पेट तक आ गया था क्योंकि सरकारी कर्मचारियों के वेतन अब हमसे कई गुना ज्यादा हो गए थे जबकि उनके पास काम कौड़ी का नहीं था। केन्द्र के इस फैसले के बाद राज्य सरकारों की शामत आ गई और उनपर भी छठवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करने का दबाव बन गया। लेकिन इस बीच कुछ खबरें भी आईं। वो खबरें थी लोकतांत्रिक अस्त्र कही जाने वाली हड़तालों की, जिनकी एकाएक झड़ी लग गई थी। इस हड़ताल से हुए नुकसान की बात तो करना छोड़िए, हड़ताली अपने को इस तरह से प्रदर्शित करते हुए प्रतीत हुए जैसे वे किसी जंग पर लड़ने निकले हों। इन हड़तालियों के लिए देश कोई मायने नहीं रखता, समाज कोई मायने नहीं रखता, सिर्फ अपना वेतन मायने रखता है।

मेरी इस पोस्ट को पढ़कर कुछ सरकारी नौकरी करने वाले लोगों को बुरा लग सकता है। हालांकि यह बात सभी पर लागू नहीं होती लेकिन अधिसंख्य पर लागू होती है। यकीन मानिए, मैंने सरकारी कर्मचारियों के काम करने के ढर्रे को बहुत करीब से देखा है (पत्रकारिता में रहते हुए), उनके ढीलेपने की हद इतनी होती है कि ना चाहते हुए भी चिढ़ और गुस्सा आने लगे। भ्रष्टाचार इतना की कुछ बार तो मुझसे भी रिश्वत माँग ली गई जबकि कुछ मामलों में तो रिश्वत माँगने वाले को पता भी था कि मैं अखबार या कहें पत्रकारिता से जुड़ा हुआ हूँ। दुस्साहस की ऐसी मिसाल मुझे कम ही देखने को मिली है और यह भी कि जब हमारी यह स्थिति है तो आम आदमी का क्या होता होगा, यह समझा जा सकता है। तो बात शुरू करते हैं मध्यप्रदेश से, क्योंकि मैं यहीं रहता हूँ, तो यहाँ कुछ दिनों से विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के प्राध्यापकों की हड़ताल चल रही थी। यह हड़ताल फिलहाल 12 अक्टूबर तक स्थगित की गई है क्योंकि हाईकोर्ट ने इसे एक जनहित याचिका की सुनवाई के बाद तत्काल बंद करने को कहा था। इस हड़ताल के कारण प्राध्यापकों ने कॉलेजों में पढ़ाई बंद कर दी और यह लगभग एक पखवाड़े तक चली। मजे की बात है कि प्राध्यापक अपना वेतन 25000 से बढ़ाकर 50000 करवाना चाह रहे हैं। हालांकि ये प्रोफेसर एक दिन में एक पीरियड भी नहीं लेते (यह मैंने इसलिए कहा क्योंकि मैं खुद कई कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में पढ़ा हूँ और सब जगह यही हाल देखा) और इनका टाइम सिर्फ पॉलिटिक्स करने में बीतता है। तो सरकार ने मना कर दिया कि भईया इतना रुपया मत माँगों की खर्च भी करते ना बने। इस ग्रेड के चलते तो सीनियर प्रोफेसर का वेतन 90000 पर पहुँचने वाला था।
इन प्रोफेसरों की देखा-देखी मध्यप्रदेश की ग्रामीण शालाओं के सवा लाख अध्यापकों ने भी 1 अक्टूबर से हड़ताल का ऐलान कर दिया है। इस हड़ताल की वजह से प्रदेश की 50 हजार से ज्यादा ग्रामीण शालाओं पर ताले डले रहेंगे। अब भाईसाहब क्योंकि खरबूजा खरबूजे को देखकर रंग बदलता है इसलिए ऊपर एक उल्लेख करना भूल गया था जो यहाँ कर रहा हूँ, कि प्रोफेसरों की हड़ताल से ठीक पहले स्कूली शिक्षकों ने आंदोलन एवं हड़ताल का दौर चलाया था और पुलिस की लाठियाँ खाईं थीं, इसके बाद प्रोफेसरों ने रंग बदला, अब सबसे छोटी इकाई ये ग्रामीण शालाओं के शिक्षकों ने हड़ताल की रूपरेखा तैयार की है।

दोस्तों, अभी कुछ दिन पहले की खबर है जब देश के फाइव स्टार शिक्षण संस्थान आईआईटी के 15000 प्रोफेसरों ने भी वेतन बढ़वाने के नाम पर हड़ताल कर दी थी। तब देश के एचआरडी मंत्री कपिल सिब्बल को कहना पड़ा था कि हम आपको इससे ज्यादा वेतन नहीं दे सकते। (विदित हो कि आईआईटी में प्रोफेसरों का वेतन पहले से ही 50000 से 1 लाख रुपए के बीच है) सिब्बल का कहना था कि आप विदेशों से रुपया लाइए तब कुछ बात बन सकती है क्योंकि हम विदेशों की स्टाइल में आप लोगों को 2 लाख रुपए महीना वेतन नहीं दे सकते। अगर आप बाहर से रुपया लाएँगे तो हम आपको अधिक स्वायत्ता दे सकते हैं, विकासशील देशों में इतना वेतन संभव नहीं है।
दोस्तों, यहाँ यह बताना भी ठीक रहेगा कि आईआईटी ने एक दूसरे सेवन स्टार संस्थान आईआईएम को देखकर रंग बदला था जब आईआईएम के प्रोफेसरों ने वेतन बढ़वाने को लेकर सरकार के ऊपर दबाव बनाया था और अहमदाबाद के आईआईएम ने अपने वेतन विदेशों की तर्ज पर बढ़वा भी लिए थे। ये सभी संस्थान छात्रों की फीस में तो पहले ही बेतहाशा वृद्धि कर चुके हैं और अब आपके या हमारे जैसे मध्यम वर्गीय परिवार के लोग तो अपने बच्चों को इन फाइव स्टार और सेवन स्टार संस्थानों में पढ़ावाने की सोच भी नहीं सकते।

दोस्तों, बात अभी खत्म नहीं हुई है। कुछ दिन पहले जब जेट एयरवेज के पायलट बीमारी का बहाना बनाकर सामूहिक रूप से छुट्टी पर चले गए थे तब सरकारी विमानन कंपनी एयर एंडिया ने खूब मुनाफा कूटा था। उसकी फ्लाइट फुल चल रहीं थीं और बूढ़े विमान, बूढ़ी परिचायिकाओं और बूढ़े स्टाफ को ढोने वाली ये एयरलाइन अचानक मुनाफा कूटने लगी थी। लेकिन सरकारी मूढ़ (या कहें कूढ़) मगज स्टाफ को यह कैसे सहन होता, तो जहाँ जेट एयरवेज के पायलटों की हड़ताल खत्म हुई वहीं एयर इंडिया के पायलटों की हड़ताल शुरू हो गई, उसी घटिया बहाने के साथ जिसमें 200 पायलटों ने एकसाथ बीमारी का नोटिस देकर नहीं आने की घोषणा कर दी। एयर इंडिया की 240 फ्लाइट रद्द हो गईं और उसे लगभग 100 करोड़ रुपए का घाटा उठाना पड़ा। यानी जो चार दिन चाँदनी के एयर इंडिया ने काटे थे वो उसके पायलटों से सहन नहीं हुए और भत्तों की कटौती का विरोध करते हुए उन्होंने इस पहले से ही ढीली चाल चल रही विमान कंपनी की वाट लगा दी।

मित्रों, मंदी के दौरान किसी भी सरकारी नौकरी में कोई छँटनी नहीं हुई है। निजी नौकरियों की तरह वहाँ टेंशन भी सिर पर सवार नहीं रहती और केन्द्रीय कर्मचारियों की पहले से ही दसों अंगुलियाँ घी में और सिर कढ़ाई में है। ऐसे में हड़ताल कर-करके देश को नुकसान पहुँचाने की यह नीति समझ नहीं आती। जहाँ एक ओर निजी क्षेत्र में काम करने वाले लोग अपना सिर नीचे किए हुए काम कर रहे हैं, अपनी कंपनियों से यह सुन रहे हैं कि भाई मंदी है, वेतन नहीं बढ़ सकता और भला मानो कि हमने तुम्हें नौकरी से नहीं निकाला, चुपचाप इसी वेतन में काम करो। कई कंपनियों ने अपने ढेर कर्मचारियों को मंदी के नाम पर नौकरी से निकाल दिया, उनके परिवार बिखर गए, सपने टूट गए, जिंदगी तबाह हो गई लेकिन कहीं कोई हड़ताल या आंदोलन की खबर नहीं आई, वहीं दूसरी ओर ये सरकारी कर्मचारी हैं, नासूर बने हुए हैं, वेतन को लेकर देश को कई सौ करोड़ रुपयों का झटका दे चुके हैं।
अगर एक बार सरकारी नौकरी करने वाले निजी नौकरी करने वालों से अपनी तुलना करेंगे तो पाएँगे कि वो कहाँ हैं। उनको दिवाली पर जो भत्ते मिलने वाले हैं उतने में कई निजी नौकरी करने वाले (बेचारे) लोग अपना वर्ष भर का राशन भरवाते हैं। अपने बच्चों की फीस जमा करवाते हैं। 2-3 हजार रुपए महीने में अपने घर का खर्च चलाने वाले कई लोगों को मैं जानता हूँ। इस महंगाई का सामना वे कैसे कर रहे हैं बस वो ही लोग जानते हैं...अभी झाबुआ में एक पिता ने सिर्फ इसलिए आत्महत्या कर ली क्योंकि वो अपने बीमार बेटे का इलाज रुपए की तंगी के कारण नहीं करवा पा रहा था, लेकिन सरकारी कर्मचारियों को यह सब नहीं दिखता, लालच के मारे मरे जा रहे हैं वो...अरे, जो निजी नौकरियों में हैं जरा उनकी सूरत भी तो देखो यार....यह कैसी हड़ताल जो देश को खोखला कर रही है सिर्फ इसलिए कि उनके वेतन बढ़ते जाएँ....देश को बर्बाद करने वाले इन हड़तालियों का स्थाई इलाज खोजा जाना चाहिए।

आपका ही सचिन....।

September 17, 2009

क्या करें हम इस थरूर और मायावती का?

ये लोग देश और यहाँ की जनता को कुछ नहीं समझते

मित्रों, हमारे देश के गिरगिट नेता रोज नए-नए रंगों में सामने आते हैं। मैं खुद भी अचंभित रह जाता हूँ कि क्यों कोई डिसकवरी या एनिमल प्लेनेट चैनल यहाँ आकर इनपर फिल्में नहीं बनाता..?? अरे भाई, ये तो अनोखे जीव हैं...इनकी रंग बदलने की क्षमता का क्या कहना, गिरगिट भी शरमा जाए। तो सबसे पहले बात शशि थरूर पर..।

शशि थरूर ने क्या कहा ये बताने की जरूरत नहीं...आप सब लोग सुधिजन हैं और सब लोग अखबार, इंटरनेट और न्यूज चैनल देखते हैं। लेकिन ब्रीफ में बस इतना ही कि पिछले तीन माह से फाइव स्टार होटल में टिके (जिसे बाद में उन्होंने वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के कहने पर छोड़ा) भारतीय राजनीति के नवे-नवे राजनीतिज्ञ शशि थरूर का दिमाग अचानक फिर गया। वो जानते हैं कि जबान से निकले शब्द कभी वापस नहीं लौटते, बावजूद इसके उनकी जबान फिसल गई और जो फिसली तो उसके घेरे में भारत की जनता के साथ-साथ सर्वशक्तिमान सोनिया गाँधी और युवराज राहुल गाँधी भी आ गए। ऐसा क्या कह दिया था थरूर ने...?? तो एक अंग्रेजी पत्रकार ने शशि थरूर से सोशल नेटवर्किंग साइट “ट्विटर” पर व्यंग्य में पूछा कि क्या वे भी अब हवाई सफर की “कैटल क्लास” (इकोनोमिक क्लास) में यात्रा करेंगे जिसके जवाब में थरूर ने सार्वजनिक जवाब दिया-“ हां बिल्कुल, अपने साथ की सभी पवित्र गायों के साथ एकता दिखाते हुए अब मैं भी ‘मवेशी श्रेणी’ में यात्रा करूंगा। इन पवित्र गायों से उनका मतलब उनके साथी मंत्री थे और इत्तेफाक से सोनिया और राहुल भी पवित्र गायों की श्रेणियों में आ गए। कांग्रेस ने इसपर कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर की और इस बयान से अपने को अलग कर लिया। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस ने ही अपने मंत्रियों को इकोनॉमी क्लास में सफर करने की सलाह दी थी। फिलहाल थरूर अफ्रीकी देशों लाइबेरिया और घाना की यात्रा पर हैं और लौटने पर ही पता चलेगा कि उनका क्या हश्र होगा। लेकिन इन बातों से कुछ तथ्य तो बिल्कुल साफ हो गए हैं।

सबसे पहला यह कि यह थरूर भूरी चमड़ी में एक गोरा शख्स है जिसे अपने भारतीय होने पर ठीक उसी प्रकार से अफसोस है जैसा कि पंडित जवाहर लाल नेहरू को हुआ करता था। फटाफट अंग्रेजी बोलने वाले थरूर के साथ दूसरी दिक्कत यह है कि उसने हमेशा से विदेशों में काम किया है, लंबे समय तक संयुक्त राष्ट्र का अंडर सेक्रेटरी रहा है और वो भारत तथा यहाँ की जनता को नहीं समझता। मुझे लगता है कि यह आदमी जब किसी भारतीय ट्रेन की जनरल बोगी में सफर करेगा तो वहाँ सफर कर रहे लोगों को क्या कहेगा..?? इनसेक्ट (कीट) क्लास..??
क्योंकि हवाई सफर तो पहले से ही एलीट वर्ग के लिए माना जाता है और इकोनोमिक क्लास के लोगों को यह मवेशी बोल कर जतला चुके हैं कि वो भारतीय जनता को क्या समझते हैं। मुझे कुछ पुरानी बातें याद आ रही हैं। जब ये शख्स संयुक्त राष्ट्र में अंडर सेक्रेटरी था तब मैं इसके इंटरव्यू सुनकर बड़ा आल्हादित हुआ करता था। मुझे लगता था कि वाह, एक भारतीय संयुक्त राष्ट्र के इतने ऊँचे ओहदे पर है। फिर पिछली बार जब यह संयुक्त राष्ट्र के महासचिव पद पर लड़ने के लिए नामांकित हुआ तब भी मुझे लगता था कि हमें इसका सपोर्ट करना चाहिए। कांग्रेस सरकार की वजह से इन्हें पर्याप्त समर्थन नहीं मिल पाया और ये महासचिव बनने से रह गया और दक्षिण कोरिया के बान की मून महासचिव बने तब मुझे बहुत निराशा हुई थी। लेकिन आज मैं खुश हूँ कि अच्छा ही है जो ये आदमी उस पद तक नहीं पहुँच सका। जो व्यक्ति अपनी मातृभूमि और वहाँ के बाशिंदों का आदर करना नहीं जानता वो दुनिया से क्या प्यार करेगा और उस पद पर रहते हुए भारत का क्या भला करेगा। थरूर को उसके किए की सजा मिलनी चाहिए। हमें भूरी चमड़ी के नीचे छिपे हुए गोरे आदमी नहीं चाहिए। हमें प्योर भारतीय व्यक्ति ही अपने देश में शासन चलाने के लिए चाहिए। थरूर को उसके बोले की सजा मिलनी चाहिए। वो भारत का कतई भला नहीं कर सकता।

... दोस्तों, इसी संदर्भ में मुझे एक भारतीय राजकुमारी की भी अचानक याद हो आई। यह राजकुमारी अमर होने के अथक प्रयास कर रही है। करोड़ों रुपए खर्च करके अपनी मूर्तियाँ बनवा और लगवा रही है। ये हमारे देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती है। अरे, आप लोग सोच रहे होंगे कि मैंने मायावती का इंट्रोडक्शन इतने ड्रामेटिक अंदाज में क्यों करा, तो पहले यह पढ़िए..

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी अध्यक्ष मायावती ने समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव को चेतावनी दी और कहा कि बसपा के सत्ता से जाने के बाद भी कांशीराम समेत अन्य (खुद मायावती) दलित महापुरुषों की मूर्तियों को तोड़ने की गलती न करें नहीं तो इसके गम्भीर परिणाम होंगे। उन्होंने कहा कांग्रेस के कुछ नेता और सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव कह रहे हैं कि उनकी सत्ता आई तो मूर्तियों पर बुलडोजर चला दिया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा, “भूल से ऐसी गलती कोई न करें नहीं तो देश में गृहयद्ध की स्थिति हो जाएगी।” उन्होंने कहा कि मूर्तियों से छेड़छाड़ होने पर पूरे देश में कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ेगी। देश में आग लग जाएगी।”
अम्बेडकर पार्क समेत अन्य स्मारकों और मूर्तियों के निर्माण पर उच्चतम न्यायालय के रोक के बाद सपा और कांग्रेस ने इस मामले में मायावती पर हमले तेज कर दिए थे। गौरतलब है कि सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि उनकी पार्टी सत्ता में आई तो मूर्तियों पर बुलडोजर चला दिया जाएगा।


पढ़ा दोस्तों, तो देश में गृहयुद्ध के लिए अन्य हालातों की जरूरत ही नहीं है। मायावती अपनी मूर्तियाँ तुड़वाने पर ही देश को गृहयुद्ध की आग में झोंक देंगी। देश में आग लगवा देंगी। मैं कहता हूँ कि ऐसी महिला पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलना चाहिए। इसे सार्वजनिक रूप से जेल में डाल देना चाहिए और इससे भी सब्र ना हो तो इसे ही क्यों नहीं जिंदा आग में झोंक देना चाहिए? देश को ऐसे नालायक नेताओं की जरूरत ही नहीं है। और यहाँ मैं माफी माँगकर कहना चाहूँगा कि उत्तरप्रदेश के नागरिकों को भी इस नालायक महिला के साथ सजा देना चाहिए जो इसे हर बार चुन लेते हैं। क्या उन्हें नहीं पता कि अमर होने वाले व्यक्तियों की मूर्तियाँ दुनिया सदियों तक खुद ही बनवाती रहती है। उन्हें खुद अपनी मूर्तियाँ बनवानी की जरूरत नहीं पड़ती। जनता की गाढ़ी कमाई से ये महिला जो खिलवाड़ कर रही है उसकी सार्वजनिक निंदा की जानी चाहिए और हर बसपा नेता और कार्यकर्ता को जनता को कटघरे में खड़ा करके पूछना चाहिए कि भईया ये तुम्हारी बहनजी हमारी जान लेंगी क्या, वो पागल हो गई हैं क्या, नहीं देखनी हमें उनकी मनहूस शक्ल और मूर्तियों के रूप में दशकों तक उसे कौन झेलेगा...बंद करो ये अंधेरगिर्दी....अगर यह सब अभी बंद नहीं हुआ तो अंदर से कमजोर समझकर हमारे ताकतवर दुश्मन तुरंत हमारा सफाया कर देंगे फिर देखते हैं कि कहाँ जाती हैं तुम्हारी मूर्तियाँ और 'कैटेल क्लास' कहने वाली एलिट मैंनटेलिटी...!!!!!!!

आपका ही सचिन....।

September 07, 2009

हमारे दुश्मनों के हाथों में हथियार पहुँचाता अमेरिका!

ओबामा प्रशासन से अब अमेरिकी-यूरोपीय ही असंतुष्ट

आज जब चीन हमारी सीमा में डेढ़ किलोमीटर अंदर तक घुस आया और वहाँ हमारी चट्टानों को लाल रंग से रंग गया, इसके साथ ही हमारे इलाके में कई जगह कैंटोनी भाषा में चीन शब्द लिख गया, तो ऐसे में हमें उसकी मंशा समझनी चाहिए क्योंकि चीन के साथ युद्ध के बाद से इस प्रकार की घटना पहली बार ही हुई है। यह इलाका हिमाचल से लगी चीनी सीमा में 22420 फीट की ऊँचाई पर है जहाँ चीन ने यह दुस्साहसी कार्रवाई की। माउंट ग्या के उस इलाके को फेयर प्रिसेंस आफ स्नो (बर्फ की गोरी राजकुमारी) भी कहा जाता है। यह घटना हाल ही में हुई है तथा खबरों में तो आज ही आई है। भारतीय सेना फिर से इस मामले में कुछ भी कहने से बच रही है क्योंकि हमारे तीन जनरल फिलहाल चीन की यात्रा पर हैं। भारतीय सेना का कहना है कि हम मामले को बातचीत से सुलझाएँगे, अब ये तो हमें भी नहीं पता कि ये बातचीत कब तक चलेगी..??
....लेकिन दोस्तों, यहाँ आज मेरा विषय चीन नहीं है। क्योंकि चीन पर पिछले कुछ दिनों में मैंने काफी कुछ लिखा है और आपने उसे पढ़ा और सराहा भी है इसलिए आज दूसरा एंगल..। ये एंगल अमेरिका, अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और कुछ मुस्लिम राष्ट्रों के इर्द-गिर्द घूमता है...फिलहाल तो मैं आपको कुछ खबरें पढ़वाऊँगा...फिर थोड़ी सी बात होगी, इन लिंक्स पर खबरें पढ़ने के बाद ही अपनी आगे की बात हो पाएगी...तो पढ़े..

हथियार बेचने में अव्वल रहा अमेरिका
दाल बना लेता हूं,लेकिन क्रिकेट नहीं आता: ओबामा
Obama's remarks at White House iftar

दोस्तों, मुझे लगता है कि आपने तीनों खबरें पढ़ ली होंगी। संभवतः पहले भी पढ़ी होंगी लेकिन इन तीनों के बीच की कहानी या कहें लिंक बड़ी मजेदार हैं। मेरे एक परिचित (वे पाकिस्तान के हैं) ने कुछ दिन पहले बताया था आज से 9 महीने पहले ओबामा के अमेरिकी राष्ट्रपति के तौर पर शपथ लेने को वहाँ जश्न के तौर पर मनाया गया था। वहाँ के अखबारों की लीड हैडलाइन थी कि बराक हुसैन ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति बने। एक मुसलमान अमेरिका का राष्ट्रपति बना। अखबारों ने वहाँ के कुछ मौलवियों के हवाले से खबरें भी छापीं कि अगले कुछ सालों में एक प्योर मुसलमान अमेरिका का राष्ट्रपति होगा क्योंकि ओबामा तो हाइब्रिड हैं।

मित्रों, इन खबरों में से पहली तो वही है जिसका मैंने पूर्व में अपनी एक पोस्ट में उल्लेख किया था कि अमेरिका हथियारों का संसार में सबसे बड़ा विक्रेता है और यह खबर यही बताती है कि उसका वैश्विक हथियार बाजार के 68 प्रतिशत पर कब्जा है। लेकिन खबर साथ ही यह भी बताती है कि विकासशील देशों में संयुक्त अरब अमीरात हथियार खरीदने वाले देशों में पहले स्थान पर है जिसने पिछले साल नौ अरब 70 करोड़ डॉलर के हथियार खरीद थे। दूसरे स्थान पर सउदी अरब ने आठ अरब 70 करोड़ डॉलर के हथियार खरीदे तो पांच अरब 40 करोड़ डॉलर के हथियार खरीद करके मोरक्को तीसरे स्थान पर रहा। ये तीनों की मुल्क इस्लामी हैं और ये लोग हथियारों का क्या करेंगे ये हमें पता है। हालांकि यूएई और सऊदी अरब ने हथियार खरीदे ये तो समझ आता है क्योंकि वहाँ तेल की खेती होती है और वहाँ पेट्रो डॉलर उग रहे हैं लेकिन भिखमंगे मोरक्को को इतने हथियारों की क्या जरूरत पड़ने वाली है यह समझ नहीं आता है।
दूसरी खबर से भी आप समझ ही गए होंगे कि ओबामा के घनिष्ट पाकिस्तानी मित्र रहे हैं, ओबामा खुद भी पाकिस्तान रहे हैं और ऊर्दू, कीमा, शायरी आदि से उनकी नजदीकियाँ भी रही हैं। तीसरी खबर से यह स्पष्ट है कि वाइट हाउस की उनकी इफ्तार पार्टी का अल-अरेबिया चैनल ने क्या मतलब निकाला है। ओबामा का यह भाषण योरप के कई देशों के लोगों ने अपने ब्लॉग पर चढ़ाया है और ओबामा को गालियाँ दी हैं। कई अमेरिकी लोगों ने भी यह काम किया है। देखिए बानगी.. Celebrating a Great Religion at 1600 Pennsylvania Avenue

यह भी आपको पता ही होगा कि ओबामा की लोकप्रियता अमेरिका में तेजी से कम हुई है और इसका सीधा सा कारण है कि अमेरिकियों को उनसे जितनी आशाएँ थीं पिछले 9 माह के दौरान वे उनमें से ज्यादातर को पूरा नहीं कर पाए हैं। इसके अलावा बुश प्रशासन के कई आलोचक भी अब ओबामा के खिलाफ उतरते हुए यह कह चुके हैं कि इससे बेहतर समय तो बुश के समय था क्योंकि तब अमेरिका अपनी स्वाभाविक नीति पर था जिससे आज वो सरकता हुआ प्रतीत हो रहा है।

दोस्तों, हम जिस ताकतवर चीन के सामने अमेरिका को अपना हितैषी तथा दोस्त मान रहे हैं वो हमारे दुश्मनों (अरब देश जो आतंकवाद के प्रायोजक हैं) को हथियारों से लाद रहा है वो भी सिर्फ अपने निजी हित के कारण...ऐसे में भारत कितनी लंबी रेस का घोड़ा सिद्ध हो पाएगा...??

आपका ही सचिन....।

September 05, 2009

फिर कौन करेगा जनता की सुरक्षा?

ऐसे गृहमंत्री और कृषि मंत्री से तो भगवान बचाए


दोस्तों, आजकल जब भी मैं देश के गृह मंत्री पी. चिदंबरम और कृषि मंत्री शरद पवार की तस्वीर देखता हूँ या टीवी पर उनकी फुटेज देखता हूँ तो मुझे उनके बोले गए दो अनमोल वचन अचानक याद आ जाते हैं। मुझे लगने लगता है कि हाँ, हमारे देश को ऐसे बहादुर और जीवट वाले नेताओं की ही तो जरूरत है...!!!!!!!!!!
ये दोनों वचन या कहें बयान क्या थे, वो आप भी जानिए...कुछ समय पहले गृहमंत्री चिदंबरम ने कह दिया था ऐसा संभव नहीं है कि देश के हरेक नागरिक की सुरक्षा की जा सके। केन्द्र सरकार या गृह मंत्रालय ऐसा नहीं कर सकता। लोगों को खुद भी अपनी सुरक्षा का ख्याल रखना चाहिए।
दूसरे बयान में केन्द्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने कह दिया था कि अगर देश के प्रदेशों (राज्यों) में सूखे की स्थिति है तो यह राज्यों का निजी मामला है और राज्य सरकारों को इससे निपटने के लिए विस्तृत तैयारियाँ करनी चाहिए। दोस्तों, इसमें मेरा मत है, कि वाह...बहुत अच्छे, हमें ऐसे नेताओं की ही तो जरूरत है.....!!!!!!!!!!

वैसे तो इस मुद्दे पर आप लोग मेरा पक्ष समझ ही गए होंगे क्योंकि मेरा पक्ष भी वही है जो आप लोगों का है। मतलब हमें इस बात से पता चल गया कि हम कितने सुरक्षित हैं। चिदंबरम जी ने हमें यह समझा दिया है कि हमें अपनी सुरक्षा खुद ही करनी चाहिए और बंदूकें, तलवारें, तोप, गोले आदि भी खरीद लेने चाहिए क्योंकि भारत में आतंकवाद का खतरा दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है और भारत सरकार उसके खिलाफ कुछ भी प्रभावी कदम नहीं उठा पा रही है। क्या आपने इतना नाकारा गृहमंत्री कहीं देखा है जो संकट के समय अपने देश के नागरिकों को अकेला छोड़ दे..?? भई, मैंने तो नहीं देखा, देखना भी नहीं चाहता, क्योंकि अगर सुरक्षा के नाम पर भारत के हर घर में हथियारों का जखीरा रहने लगा तो फिर अपराध कैसे रुकेंगे..?? दूसरा, देश में हथियारों का लाइसेंस और हथियार खरीदने की प्रक्रिया इतनी टेढ़ी और महंगी है कि हम और आप बिना सुरक्षित ही रह लेंगे और यूँ ही आतंकी हमलों में मारे जाते रहेंगे। अपने देश में एक रिवाल्वर लाइसेंस समेत कम से कम 1 लाख रुपए में आती है। तो हम कैसे करेंगे अपनी सुरक्षा..?? मतलब, सरकार हमें अपनी सुरक्षा के लिए हथियार भी नहीं लेने देती और सुरक्षा भी मुहैया नहीं कराती। फिर मुझे किसी भी संदर्भ में यह भी याद नहीं आया कि किसी और देश के गृहमंत्री ने इतनी हल्की बात की हो। अमेरिका में अगर 9/11 के बाद वहाँ का डिफेंस मिनिस्टर इस प्रकार का बयान दे देता तो लोग उस देश से ही भाग जाते। अरे, ऐसी जगह रहने से भी क्या फायदा जहाँ की सरकार को आपसे मतलब ही नहीं और वो पहली फुरसत में ही आपसे पल्ला झाड़ना चाहती हो...!!!!!!!

दोस्तों, शरद पवार भी कम नहीं हैं। वो मराठा नेता फिलहाल सिर्फ रुपए कमाने में लगा है और देश में किसी से भी पूछ लीजिए उनकी पहचान कृषि मंत्री से ज्यादा बीसीसीआई अध्यक्ष के रूप में है। भारत का किसान तो उन्हें जानता ही नहीं....तो, पवार साहब ने कह दिया कि हमें राज्यों में पड़ने वाले सूखे से मतलब नहीं....!!!!!!!! अरे, तो आप केन्द्रीय कृषि मंत्री क्यों हैं..?? आपको तो सिर्फ दिल्ली का कृषि मंत्री होना चाहिए था...और आपकी सरकार क्या सिर्फ वोट कबाड़ने के लिए किसानों का कर्ज माफ करेगी.....कभी ऐसी स्थिति पैदा नहीं करेगी जिसमें किसानों को कर्ज लेने की जरूरत ही ना पड़े....!!!!!! और फिर देश की जनता जो लाखों, करोड़ों, अरबों रुपए टैक्स के रूप में देती है वो किसलिए हैं...?? क्या ये राज्य भारत देश के अंग नहीं हैं और अगर हैं तो केन्द्रीयकृत लोकतांत्रिक सरकार यह कहकर कैसे पीछे हट सकती है कि सूखा या बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएँ राज्य सरकारों का अपना मामला है। अब तो ये कांग्रेस सरकार लोगों को वक्त की दलील भी नहीं दे सकती जो हमेशा भाजपा देकर बचती रहती है। कांग्रेस को इस बार देश की जनता ने लगातार दूसरी बार चुना है और भारतीय लोकतंत्र के 63 में से 50 से ज्यादा सालों तक उसने ही देश पर शासन किया है। तो अब उसे क्या समय देना, किसी राजनीतिक पार्टी को शताब्दियों का समय दिया जाता है क्या..?? अरे भाई दशकों का भी नहीं दिया जाना चाहिए लेकिन हमने तो कांग्रेस को पूरी आधी शताब्दी से ज्यादा समय दिया और देश फिर भी वहीं का वहीं है, जहाँ सूखे-बाढ़ के कारण आज भी लोग संकट में आ जाते हैं एवं नागरिकों की सुरक्षा की कोई जिम्मेदारी नहीं उठाई जाती...अब आप ही बताईए कि हम अपनी सरकार पर कितना भरोसा करें, उससे क्या आशा रखें और यह भी कि अपनी सुरक्षा के लिए क्या बंदोबस्त करें...??
क्योंकि हमारे देश का गृहमंत्री तो अपनी धोती संभालने में ही व्यस्त रहता है जबकि कृषि मंत्री को आईपीएल, फिल्मी सितारें और कमाई से फुरसत नहीं है।

आपका ही सचिन.......।

September 04, 2009

भारत को समेटने के प्रयास में एकजुट दुश्मन

हमें पड़ोसियों की हर चाल पर नजर रखनी होगी


दोस्तों, कुछ दिनों से भारत को लेकर कुछ मनहूस खबरें सामने आ रही हैं। सबसे पहले पता चला कि हमारे दुश्मन नंबर 1 चीन ने भारत के खिलाफ अपनी कूटनीतिक चालें तेज कर दी हैं। फिर पता चला कि पाकिस्तान ने अमेरिका से मिली हारपून मिसाइलों में कुछ छेड़छाड़ कर उन्हें भारत के खिलाफ प्रभावी बनाने के लिए तैयार किया है। बाद में इसी टुच्चे पाकिस्तान की ओर से एक खबर यह भी आई कि वह अपने परमाणु हथियारों का जखीरा बढ़ाने में लगा है। वह अपने परमाणु कार्यक्रम का विस्तार कर रहा है और यह भी कि वह अपने परमाणु हथियारों की तैनाती की तैयारी में भी जुटा हुआ है। साथ ही यह भी कि वह सोमालियाई लुटेरों का भी साथ दे रहा है और हिन्द महासागर में जहाजों को लुटवाने में मदद कर रहा है और हाल ही में इस मामले में 12 पाकिस्तानी नागरिकों को पकड़ा भी गया है। सबसे बड़ा तुर्रा यह कि पकड़े गए जहाजों को छुड़वाने या अपने जहाजों को लूट से बचाने वाली बात कहकर चीन अपने नौसेना बेड़े की हिन्द महासागर में तैनाती कर चुका है और कुल मिलाकर बात भारत को घेरने की है। एक अनुमान के मुताबिक पाकिस्तान के पास 70-80 परमाणु बम हैं जबकि चीन के पास कितने हैं उनकी तो गिनती ही नहीं है और यह सिर्फ उसे ही पता है। उसकी सब बातों की तरह यह भी एक रहस्य ही है। इनमें से ज्यादातर बातों का खुलासा दूर बैठे अमेरिका ने किया है। आखिर हम क्यों मेहनत करें जब अमेरिका खुद ही सबकुछ पता करके हमें बता देता है (!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!)...

दोस्तों, यह खबरें तब आई हैं जब हमारे यहाँ राजनीतिक हल्ला मचा हुआ है। भाजपा में घमासान मचा हुआ है, जसवंत सिंह आडवाणी की पोलें खोले जा रहे हैं और कांग्रेस ने हाल ही में अपना एक प्रभावी मुख्यमंत्री खो दिया है। इससे पहले एक और घमासान मच चुका था। लेकिन यह दूसरे मगर रिलेटेड टॉपिक पर था। भारत के रज्ञा वैज्ञानिक संथानम जी ने यह मुद्दा उछाला था। उनका कहना है कि भारत द्वारा किया गया फ्यूजन बम या कहें हाईड्रोजन बम फुस्स था। इसे इस तरह से भी कह सकते हैं कि वो उतनी शक्ति का नहीं था जितना की दावा किया गया था। भारत को अपनी शक्ति सुनिश्चित करने के लिए और विस्फोट करने चाहिए। उल्लेखनीय है कि फिजन तकनीक से अणु बम (एटम बम) बनाया जाता है जबकि फ्यूजन तकनीक हाईड्रोजन बम में काम आती है। इस खबर से जहाँ भारत में हंगामा मच गया वहीं हमारे दुश्मनों की बाँछें खिल गईं। वो नई तैयारियों में लग गए जबकि हमारे यहाँ सफाई देने का सिलसिला चल पड़ा। संथानम के इस दावे को पूर्व राष्ट्रपति डॉ. कलाम और विख्यात परमाणु वैज्ञानिक डॉ. अनिल काकोड़कर ने तुरंत खारिज किया। लेकिन मीन-मेख निकालने वाले तत्कालीन भाजपा सरकार को घेरे में लेने लगे, बिना ये सोचे कि इससे दुनिया में हमारी क्या छवि प्रस्तुत होगी और ये भी कि हमारे बनाए हुए बमों की ताकत पर फिर कौन विश्वास करेगा और क्योंकर हमसे डरेगा..?? इस बीच हमारे वित्तीय दिमाग के रक्षामंत्री चिदंबरम ने तो यह तक कह दिया कि संथानम के इस दावे की जाँच कराई जाएगी जबकि हमारे प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह बात को संभाला और कहा कि इस बात पर बहस नहीं होनी चाहिए और डॉ. कलाम के बोलने के बाद इस बहस को समाप्त माना जाना चाहिए।

दोस्तों, इस पूरे घटनाक्रम को मैं दुर्भाग्यपूर्ण मानता हूँ लेकिन संथानम की एक बात का मैं समर्थक हूँ। मुझे लगता है कि भारत को और अधिक परमाणु विस्फोट करने चाहिए। उसे अपनी ताकत लगातार बढ़ाते रहना चाहिए और उसे समय-समय पर जाँचते भी रहना चाहिए क्योंकि हम चारों ओर दुश्मनों से घिरे हुए हैं। इस ताकत की कब जरूरत पड़ जाए यह कहा नहीं जा सकता। दूसरे, हमारे चारों ओर अमेरिका भी अपना शिकंजा कस रहा है। ठीक रेटीक्युलेटेड पाइथन (अजगर की संसार का सबसे बड़ी प्रजाति जो 10 मीटर तक लंबी होती है) की तरह। हालांकि फिलहाल हमारे उससे संबंध अच्छे चल रहे हैं लेकिन वो हमारी तरफ सिर्फ दो कारणों से झुका हुआ है। एक तो उसे चीन से खतरा है और दूसरे इस्लामिक आतंकवाद से। ये दोनों ही हमारे आस-पास हैं। पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश जहाँ इस्लामिक आतंकवाद का गढ़ हैं वहीं चीन तो हमारे सिर से ही लगा हुआ है। ऐसे में अमेरिका का हमारे साथ रहना लाजिमी है। लेकिन परमाणु समझौते के बाद हमारे सभी परमाणु रिएक्टर उसकी नजरों में आ जाएँगे और एक बार इन रिएक्टरों का काम शुरू होने के बाद हमारा आगे परमाणु विस्फोट करने का रास्ता मुश्किल भरा या कहें असंभव हो जाएगा। ऐसे में हमें ये कदम तुरंत उठाना होगा।

हालांकि भारत जैसे सघन आबादी वाले देश में मैं परमाणु संयंत्रों को लगाने का विरोधी हूँ। इसके कुछ अपने कारण भी हैं। मैंने हमारे हिन्दी वैब पोर्टल पर इस विषय पर तीन विस्तृत लेख लिखें हैं। आप भी इन्हें पढ़ सकते हैं और इसके बाद अपनी राय भी जाहिर कर सकते हैं। ये रहीं इनकी लिंक्स..।
परमाणु समझौते के पीछे का काला सच
पहले भारत के परमाणु संयंत्र तो सुधरें
परमाणु ऊर्जा से पीछा छुड़ा रहा है अमेरिका

दोस्तों, अमेरिका पाकिस्तानी मंसूबों को भाँपकर उसे जल्दी ही दी जाने वाली 7.5 अरब डॉलर की सहायता को रोक सकता है लेकिन इससे क्या हो जाएगा..?? वो पहले ही पाकिस्तान के पाले में 20 अरब डॉलर की मदद फैंक चुका है और इससे पाक ने दो नए प्लूटोनियम रिएक्टर और उपयोग में आने वाले रासायनिक पदार्थों का निमार्ण शुरू कर दिया है। उसके विनाशक हथियारों का जखीरा उसकी राजधानी इस्लामाबाद के नजदीक ही जमा हो रहा है। वो इन्हें बंकरों में जमा कर रहा है और अमेरिका ने तो इन बंकरों की उपग्रह से ली गई तस्वीरें भी जारी कर दी हैं। इसके अलावा पाक शाहीन-2 का विकास, बैलेस्टिक मिसाइल वाली पनडुब्बी निर्माण, दो नई परमाणुचालित क्रूज मिसाइल और बाबर व राड मिसाइलों के उन्नतीकरण में लगा हुआ है। पाकिस्तान किस कदर दोगला है यह तो हम पिछले 60 सालों से जान-समझ रहे हैं। उसके लिए तैयारी भी कर रहे हैं लेकिन दिन पर दिन वह फिर भी नए उदाहरण पेश करता रहता है। हाल ही उसने अपने 15 मोस्ट वांडेट आतंकियों की सूची तैयार की है। लेकिन इसमें लश्कर-ए-तयैबा का सर्वेसर्वा वो हाफिज सईद शामिल नहीं है जिसने पिछले वर्ष मुंबई पर हमला करवाया था। इसके भी दो कारण हैं। पहला तो यह कि सईद को पाकिस्तान में धर्म गुरू समझा जाता है ना कि आतंकवादी सरगना। दूसरे, सईद ने फिलहाल अमेरिका का कुछ नहीं बिगाडा़ है इसलिए वो लिस्ट से बाहर है क्योंकि इस लिस्ट में वही आतंकी शामिल हैं जो अमेरिका और उसकी फौजों के लिए खतरा बने हुए हैं।

हम इस समय इतिहास के सबसे मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं जब हमारे चारों ओर शुत्रओं का जमावड़ा है और जिसमें से दो शत्रु परमाणु शस्त्रों से लैस हैं। भारत और यहाँ की राजनीतिक पार्टियों और अपनी दैनंदिन राजनीति से ऊपर आकर हाल फिलहाल भारत और उसके भविष्य के बारे में सोचना चाहिए क्योंकि हर बार हमें खतरे के प्रति अमेरिका ही आगाह नहीं करेगा......!!!!!!!!!!!!!

आपका ही सचिन....।

September 03, 2009

भारत की घेराबंदी में जुटा चीन!

वाईसी हालन
चीन हमेशा सुर्खियों में रहता है। दुनिया का कोई भी राष्ट्र चीन की अनदेखी नहीं कर सकता, यहाँ तक कि सबसे बड़ी ताक़त संयुक्त राज्य अमेरिका भी नहीं। इसीलिए अमेरिका, चीन की गतिविधियों और राजनीति पर हमेशा कड़ी निगाह रखता है। हाल ही में पेंटागन द्वारा जारी 2009 की सालाना रपट में चीन की बढ़ती सैन्य शक्ति के प्रति आगाह किया गया है।

रपट में बताया गया है कि सैन्य शक्ति में भारी निवेश के अलावा चीन अत्याधुनिक हथियार हासिल करने में भी तेजी से प्रगति कर रहा है, जिसके चलते इस इलाके में वह बाकी देशों को बहुत पीछे छोड़ देगा। इस रपट में चेतावनी दी गई है कि चीन नाभिकीय, अंतरिक्ष और साइबर युद्ध हेतु नई तकनीकों का विकास कर रहा है। इससे क्षेत्रीय सैन्य संतुलन बदल जाएगा और इसके परिणाम एशिया-प्रशांत क्षेत्र से भी परे जाकर विश्व को प्रभावित करेंगे।

इस रपट का भारत के संदर्भ में विशेष महत्व है, इसलिए इसे गंभीरता से लेना चाहिए। सन्‌ 1949 में कम्युनिस्ट सरकार आते ही चीन ने विस्तारवादी नीतियों पर अमल शुरू किया। पश्चिमी और दक्षिण पूर्वी देशों को उसने अपना लक्ष्य बनाया। हालाँकि यदाकदा चीन भारत से गहरी मित्रता प्रदर्शित करता रहता है। 1950 में आरंभ हुए भारत-चीन संबंधों में बीजिंग का उद्देश्य हमेशा यह रहा है कि भारत को दक्षिण एशिया तक ही सीमित रखा जाए, यहाँ तक कि भारत अपने पड़ोसी देशों को भी प्रभावित न कर सके। इसके लिए चीन ने पाकिस्तान, नेपाल, म्यांमार, बांग्लादेश और श्रीलंका को सैन्य संसाधन मुहैया कराए हैं। यदि वर्तमान स्थितियों का विश्लेषण किया जाए तो श्रीलंका, म्यांमार व नेपाल में चीन का प्रभाव बढ़ रहा है।

म्यांमार व कजाकिस्तान में हाइड्रोकार्बन संसाधनों के ठेके हासिल करने के भारत के रास्ते में भी चीन जानबूझकर आड़े आ रहा है। चीन, म्यांमार, पाकिस्तान और अफ्रीका में प्राकृतिक संसाधनों पर काबू पाने के लिए भारी निवेश कर रहा है। ऐसा लगता है की भारत की दृष्टि कमजोर है जो वह इन संकेतों को पढ़ नहीं पा रहा है और आर्थिक, कूटनीतिक व राजनीतिक रूप से कोई कदम नहीं उठा रहा है।

पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था में चीन की दिलचस्पी और उसका नियंत्रण चिंताजनक है। चीन को पाकिस्तान की रणनीतिक अहमियत तब समझ आई, जब 2001 में तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ ने माकरान में ग्वादार पोर्ट को विकसित करने का ठेका चीन को दिया। तब चीनी नेताओं ने केन्द्रीय एशिया, जिंगजियांग तथा चीन के लगते इलाकों में कारोबार करने के लिए ग्वादार बंदरगाह की अहमियत पर गौर किया।

इस जगह से न केवल चीनी नौसेना ईंधन व अन्य सुविधाएँ हासिल कर सकेगी बल्कि महत्वपूर्ण होरमुज जलडमरूमध्य के लिए भी यह खास रास्ता होगा। चीन ने तुरंत ग्वादार में आधुनिक बंदरगाह बनाने का काम अपने हाथों में ले लिया। निर्माण का प्रथम चरण 29.80 करोड़ डॉलर की लागत से पूरा हो चुका है। इस खर्च का एक बड़ा हिस्सा चीन ने वहन किया है। फिलहाल यह केवल कारोबारी कामों के लिए इस्तेमाल होगा।

निर्माण का दूसरा चरण 86.50 करोड़ डॉलर का होगा। इसमें चीन 50 करोड़ डॉलर लगाएगा। 2010 में इसके पूरा होने के बाद दोनों देशों की नौसेनाएँ इसका प्रयोग कर सकेंगी। बंदरगाह बन जाने के साथ ही पाकिस्तानी जल सेना भारत के खिलाफ काफी मजबूती हासिल कर लेगी। चीन हिन्द महासागर में अपनी जल सेना की ताकत दिखा चुका है, बहाना था अपने जहाजों की सोमालियाई लुटेरों से रक्षा करना।

अब चीन ग्वादार से जिंगजियांग तक कच्चे तेल की पाइपलाइन बिछाने की योजना बना रहा है। इसके अलावा एक और पाइपलाइन विकसित की जाएगी जो अराकान के समुद्र तट से म्यांमार में स्थित युन्नान तक होगी। चीन, श्रीलंका के दक्षिण में एक अरब डॉलर वाला व्यापारिक पत्तन भी बना रहा है।

बलूचिस्तान में चल रही अन्य परियोजनाएँ हैं- ग्वादार में एक रिफाइनरी कॉम्प्लेक्स बनेगा, जो पाकिस्तान एवं चीन के जिंगजियांग क्षेत्र में इस्तेमाल किया जाएगा। ग्वादार को कराकोरम हाइवे से जोड़ने वाली एक सड़क बनाई जाएगी। ग्वादार एवं जिंगजियांग के बीच रेलमार्ग बनेगा। ग्वादार में एक स्पेशल इकॉनॉमिक जोन बनाया जाएगा जो सिर्फ चीनी कंपनियों के लिए होगा। इसकी मदद से चीनी कंपनियाँ पश्चिम एशियाई व अफ्रीकी देशों में कम लागत से अपना माल निर्यात कर सकेंगी।

बांग्लादेश को छोटे हथियार देने वाला चीन सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है, लेकिन वह यहीं तक सीमित नहीं रहना चाहता। वह बांग्लादेश को और भी उच्च किस्म के हथियार देना चाहता है। चीन ने बांग्लादेश में बिजली उत्पादन के लिए परमाणु संयंत्र लगाने में मदद की पेशकश भी की है। पिछले वर्ष जब चीनी विदेश मंत्री यांग जियेची बांग्लादेश गए थे तो द्विपक्षीय आर्थिक एवं कारोबारी रिश्तों पर सहमति बनाकर आए थे।

चीन अपना शिकंजा श्रीलंका तक भी फैला रहा है। चीन ने श्रीलंका को वित्तीय, सैन्य तथा कूटनीतिक सहयोग व समर्थन दिया है। इसके अलावा लिट्टे पर अंतिम हमले के समय पश्चिम से उठे विरोध से निपटने में भी मदद की थी। चीन ने सदैव श्रीलंका का बचाव किया, उसने संयुक्त राष्ट्र में वहाँ की संकटपूर्ण स्थिति को एजेंडे से बाहर रखने में श्रीलंका की मदद की ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि श्रीलंका के विरुद्ध कोई कड़ा प्रस्ताव पास न हो। चीन ने हिन्द महासागर में महत्वपूर्ण शिपिंग लेन का रणनीतिक अधिग्रहण कर लिया है जो मध्य एशिया से तेल लेकर आती है।

चीन, म्यांमार को अपना एक महत्वपूर्ण सहयोगी मानता है। दोनों देशों ने मार्च में एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए जिसका मसौदा था- दोनों देशों के बीच तेल व गैस की पाइप लाइन बिछाना ताकि चीन को तेल के जहाज ले जाने के लिए मलक्का जलडमरूमध्य का लंबा रास्ता न अख्तियार करना पड़े। म्यांमार की सैनिक सरकार अपने विरोधियों को दबाने के लिए चीन से हथियार लेती है। जब संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद ने म्यांमार में मध्यस्थता और राहत का प्रस्ताव रखा तो चीन ने वीटो का इस्तेमाल करते हुए इसका विरोध किया और कहा कि संयुक्त राष्ट्र को म्यांमार के अंदरूनी मामलों में दखलअंदाज़ी नहीं करनी चाहिए।

चीन न केवल भारत की पश्चिमी और पूर्वी सीमाओं को कमजोर करने में लगा है बल्कि अन्य देशों में भारत की छवि भी बिगाड़ने की साजिश कर रहा है। इसकी सबसे ताज़ा मिसाल है अफ्रीकी देशों में 'मेड इन इंडिया' के टैग के साथ नकली दवाओं की खेप का पकड़ा जाना, जो कि चीन में बनाकर भेजी गई थी। भारत सरकार को काफी पहले से चीन की हरकतों पर शक था, यह घटना इस शक को पुख्ता करती है।

यह सच्चाई तब उजागर हुई, जब नेशनल एजेंसी फॉर फूड एंड ड्रग ऐडमिनिस्ट्रेशन एंड कंट्रोल (एनएएफडीएसी) ऑफ नाइजीरिया ने जून के आरंभ में एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की जिसमें बताया गया कि मलेरिया की जिन नकली दवाओं को 'मेड इन इंडिया' टैग के साथ पकड़ा गया है, वे वास्तव में चीन में बनी हैं। चीन की ऐसी हरकतें भारतीय उत्पादों की विश्वसनीयता को बहुत नुकसान पहुँचा रही हैं। इससे न सिर्फ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमारी छवि बिगड़ती है बल्कि भारतीय कंपनियों का मार्केट शेयर भी मारा जाता है।

वर्तमान अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में जब अमेरिका, चीन और पाकिस्तान के नजदीक आ रहा है और उन्हें लुभाने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार है, भारत को भी कूटनीतिक प्रयास करने होंगे। भारत को विनम्रता की भाषा बोलते हुए अपनी प्राथमिकताओं पर केन्द्रित रहना होगा। कड़वा सच यही है कि भारत कई क्षेत्रों में चीन से मुकाबला नहीं कर सकता। अंतरराष्ट्रीय प्रभाव, सकल राष्ट्रीय शक्ति और आर्थिक पैमाने पर चीन हमसे कहीं ज्यादा ताकतवर है।
(लेखक फाइनेंशियल एक्सप्रेस के पूर्व संपादक हैं) (साभार- वैबदुनिया)