May 29, 2009

ये कैसी मंदी..??

भारत में झूठ तथा फरेब सबसे ज्यादा है

दोस्तों, आज का मुद्दा गंभीर है। आपसे और मुझसे ये सीधे ही जुड़ा हुआ है। जो दोस्त मुझे दूर देश रहकर पढ़ते हैं उनके लिए भी यह प्रासंगिक रहेगा लेकिन भारतीय साथियों के मन की कुछ बातें मैं कहूँगा। यह सही है कि इस मुद्दे पर मुझे बहुत पहले ही लिख डालना था लेकिन हर चीज की एक अति होती है और भारत में मुझे यह अति अब होती हुई दिखाई दे रही है। इसलिए मैं अपने कुछ विचार आप लोगों के समक्ष रखूँगा। जाहिर है टॉपिक आप समझ ही गए होंगे और यहाँ बात अब मंदी पर होने वाली है। वैश्विक कम और भारतीय ज्यादा...तो साथ में पढ़िए।

दोस्तों, आज अपने ही अखबार में छपने वाली एक खबर पढ़ रहा था। इसमें भारतीय रिटेल समूह के किंग किशोर बियाणी का बयान था। वे कह रहे हैं कि भारत में मंदी नहीं है, सिर्फ तेजी कम हुई है। मतलब लोगों ने खर्च करना कम कर दिया है इस वजह से मंदी दिखाई दे रही है। अब आप किशोर बियाणी के बारे में तो जानते ही होंगे। इन्होंने देश में बिग बाजार, पेंटालून और ई-जोन जैसी रिटोल चेन की स्थापना की। अब ये देश भर में सेन्ट्रल मॉल के नाम से आलीशान मॉल्स की श्रृंखला खोलने में व्यस्त हैं। काफी शानदार मॉल्स हैं ये। एक इंदौर में भी खुला है। सबसे बड़ी पहचान कि बियाणी साहब अरबपति ग्रुप, फ्यूचर ग्रुप के सीईओ हैं। तो दोस्तों, मैंने फिलहाल बियाणी जी के कंधे पर रखकर बंदूक चलाई है लेकिन मेरा खुद का भी यही मानना है कि देश में कोई मंदी नहीं है और जो लोग अपने कर्मचारियों के वेतन में इस मंदी के नाम पर कटौती कर रहे हैं या उन्हें नौकरी से निकाल रहे हैं ऐसी सभी लोग और कंपनियाँ धूर्त हैं।

मित्रों, भारत के संदर्भ में मंदी को समझना चाहिए। जिस आईटी सेक्टर में मंदी की सबसे बड़ी मार हुई उसका भारतीय जीडीपी में मात्र 5 प्रतिशत का हिस्सा है। 20 प्रतिशत हिस्सा तो कृषि क्षेत्र का है। और अगर इंद्र देवता की इस बार मेहरबानी हुई और देश में बारिश अच्छी हो गई तो ये 20 प्रतिशत हिस्सा तो आप मजबूत समझिए। अब बात उसकी करते हैं जिससे मंदी की शुरूआत हुई। यानी भारतीय शेयर बाजार की। मैं पिछले पाँच साल से भारतीय शेयर बाजार को वॉच कर रहा हूँ। बहुत पहले तो यह (बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज) 3-4 हजार के अंक के आस-पास ही झूलता रहता था। फिर ये धीरे-धीरे सरक-सरककर 10 हजार के अंक तक पहुँचा। और उसके बाद यह घोड़े की चाल से दौड़ने लगा। हर दिन कुछ सैंकड़ा का उछाल और बाद में तो एक-डेढ़ हजार भी आसानी से भागता रहता था। तब किसी ने सोचा कि ये इतना क्यों उछाल मार रहा है। ये नकली तेजी थी। फिर अचानक मंदी आ गई। ये 21 हजार से गिरकर 7 हजार के अंक तक पहुँच गया। हाँ, उस समय शेयर बाजार में मंदी थी। लेकिन आप देखिए कि पिछले कुछ महीनों में यह सफर करता हुआ फिर से 14500 तक के आँकड़े तक पहुँच गया। यानी जो इसकी असलियत थी या कहें ये डिसर्व करता था वहाँ तक यह फिर पहुँच गया। दिवाली तक यह 17 हजार के आँकड़े तक पहुँच जाएगा ऐसे अनुमान हैं। कुल मिलाकर ये तथाकथित मंदी भारत से स्वतः दूर हो रही है और वैसे भी शेयर बाजार कोई पैमाना नहीं होता। लेकिन मैं इस मंदी के दौर में एक क्षेत्र विशेष की बात करता हूँ।

मंदी के दौर में मैं मीडिया को भी इसी मामले में रोता हुआ सुनता रहता हूँ। यहाँ मैंने मीडिया की बात इसलिए छेड़ी क्योंकि मैं इसी लाइन से आता हूँ। तो मीडिया ने भी भारी छंटनियाँ की हैं। बहुत सारे चैनल और अखबार के एडिशन बंद हो गए इसी मंदी की दुहाई देकर। लेकिन मैं जब भी टीवी चैनलों को देखता हूँ या थोड़े बहुत भी चलने वाले अखबार देखता हूँ तो वो मुझे विज्ञापनों से पूरी तरह से रंगे हुए नजर आते हैं। इतने-इतने विज्ञापन की मन ही ऊब जाए। कई बार तो मैं इन विज्ञापनों से तंग आकर हिन्दी टीवी न्यूज चैनल बदलकर अंतरराष्ट्रीय अंग्रेजी न्यूज चैनलों पर चला जाता हूँ। लेकिन मुझे तब एकदम से आश्चर्य होता है जब मैं वहाँ तस्वीर का दूसरा रुख देखता हूँ। मंदी ने सबसे ज्यादा अपनी चपेट में योरप और अमेरिका को ही लिया है। बावजूद इसके आप कभी भी बीबीसी या सीएनएन पर पागलों की तरह विज्ञापनों की बाढ़ को नहीं पाओगे। तो क्या कारण है कि हम लोग रोए जा रहे हैं और वो लोग स्थिर है। किसी भी भारतीय न्यूज चैनल या अखबार की क्षमताएँ विदेशियों के सामने कुछ भी नहीं हैं। उन चैनलों के संवाददाता सारे संसार में तैनात हैं, जबरदस्त संसाधन हैं तो फिर वे ये सब कैसे मैनेज कर रहे हैं और हम क्यों नहीं कर पा रहे या उनसे यह सब क्यों नहीं सीख पा रहे। आपने सुना होगा कि गूगल संसार की सबसे तेज बढ़ती हुई कंपनियों में से एक है। बीच में चर्चा चली थी कि वो न्यूयार्क टाईम्स अखबार समूह को खरीदने जा रही है। बाद में खुद गूगल ने उसका खंडन कर दिया था लेकिन आपने कभी गूगल की किसी सुविधा पर विज्ञापनों की बाढ़ देखी? मैं खुद गूगल की तमाम सेवाओं का उपयोग करता हूँ लेकिन मैंने कभी वहाँ झिलाऊ विज्ञापनों को नहीं झेला। विकिपीडिया मेरे ज्ञान में हमेशा वृद्धि करता रहता है। मेरे लिए वो ज्ञान का कोष है। आपने भी उसका उपयोग किया होगा। क्या कभी आपने उसमें विज्ञापनों की भरमार देखी।

इसी प्रकार आप विदेशी नामचीन अखबारों को उठाकर देखिए...वे विज्ञापनों के लिए उस प्रकार से पागल नहीं दिखेंगे जैसे ये हिन्दी या भारतीय अंग्रेजी के अखबार दिखते हैं। विदेशी अखबारों में पढ़ने के लिए बहुत कुछ होगा जबकि कीमत कम होगी। वहीं हमारे यहाँ मामला उल्टा है। अखबारों को अब आप कुछ ही मिनट में फैंक देते हैं। हमारे देश में खबरों के लिए अखबार शुरू हुए थे और समाजसेवा के लिए स्वयंसेवी संगठन (एनजीओ या कहें गैर सरकारी संगठन) लेकिन ये दोनों ही अपने रास्ते से भटक गए। आज अखबार खबरों को छोड़कर विज्ञापन के पीछे लगे हुए हैं और एनजीओ समाजसेवा को छोड़कर फंड कलेक्टिंग के पीछे लगी हुई है। कम से कम भारत में तो ये अपने मूल उद्देश्य से भटक गए हैं। आज कोई अखबार खुलता है तो पहले वहाँ विज्ञापनों की जुगाड़ की बात होती है। पन्ने विज्ञापनों से भरे होते हैं और बची जगह पर खबरें लग जाती हैं। हद तो तब है, जब उसके बाद भी मंदी की बातें होती हैं। अगर ऐसा ही है तो अखबार मालिकों को पहले ये देखना चाहिए कि विदेशी अखबार अपने पाठकों को विज्ञापनों से ज्यादा खबर कैसे दे पा रहे हैं। मैंने कई विदेशी कंपनियों खासकर मीडिया कंपनियों को भारतीय कंपनियों से ज्यादा ईमानदार पाया। अगर उन्हें भ्रष्ट होना भी पड़ता हो तो वो एकाध बार ही ऐसा करती हैं नहीं तो ज्यादातर वो ईमानदारी से अपना डंका संसार में बजाती हैं। मुझे नहीं लगता कि वैश्विक धंधे में इतनी कम भूमिका रखने वाला भारत मंदी से इतना ग्रस्त है कि अपने यहाँ काम करने वाले लोगों को उसे खाना पड़ रहा है। हमें धंधे के साथ जीवन में भी ईमानदार होना सीखना होगा। नहीं तो इस देश में एक व्यक्ति तो रईस होता चला जाएगा जबकि दूसरा सिर्फ गरीब। इस चीज की परिणिती अच्छी नहीं होगी। ये भारतीय व्यापारियों और उद्योगों के मालिकों को समझना होगा। बाकी आने वाला समय ही बताएगा।

आपका ही सचिन...।

May 28, 2009

राहुल के युवा चेहरों का गणित..!!

हम और आप कभी नहीं हो सकते इन युवा चेहरों में

दोस्तों, आज मनमोहन मंत्रिमंडल का विस्तार हो गया। ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, सचिन पायलट मंत्रिमंडल में शामिल हैं। पीए संगमा की बेटी अगाथा संगमा भी शामिल हैं। ओमर अब्दुल्ला दिखे नहीं क्योंकि वे पहले ही जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बन चुके हैं और राहुल गाँधी भी नहीं दिखे क्योंकि वे सीधे ही प्रधानमंत्री बनेंगे....क्योंकि गाँधी परिवार में किसी को भी प्रधानमंत्री से नीचे का पद सक्रिय राजनीति में स्वीकार नहीं है। अगर विश्वास ना हो तो खुद जाँच कर देख लीजिए।

दोस्तों, यहाँ मेरा विषय दूसरा है। इस बार कांग्रेस ने बहुत ढोल पीटे कि कांग्रेस के पास युवा चेहरे हैं जबकि भाजपा जो एक समय जवाँ पार्टी थी, वो अब बुढ़ा रही है, उसके पास कोई भी सेकण्ड लाइन नहीं है और ना ही कोई चमकदार युवा नेता है जैसे कि कांग्रेस के पास हैं, और जिनका की मैंने ऊपर उल्लेख किया। इन युवाओं चेहरों या कहें नेताओं को राहुल की किचन कैबीनेट कहा गया। राहुल पिछले पाँच सालों की तरह इस बार भी संगठन को मजबूत करने का कार्य करेंगे। हाँ अगर इस बार मनमोहन सिंह को कुछ हो गया (भगवान ऐसा ना करे लेकिन उनकी बायपास सर्जरी हुई है इसलिए कह दिया) तो राहुल इसी टर्म में प्रधानमंत्री बन सकते हैं। वैसे उनका 2014 के आम चुनावों के बाद प्रधानमंत्री बनने का है लेकिन मुझे नहीं लगता कि कांग्रेस लगातार तीसरी बार रिपीट करेगी। वैसे राजनीति में कुछ कहा नहीं जा सकता लेकिन फिर भी सोनिया गाँधी इतनी बड़ी रिस्क नहीं लेंगी और इसी टर्म में कभी ना कभी राहुल को प्रधानमंत्री बनवाएँगी क्योंकि 2014 का टारगेट ये सोच कर रखा गया था कि इस बार कांग्रेस सत्ता में नहीं आ पाएगी। ये तो उसका तुक्का लग गया और सोनिया इस बात को समझती हैं, तो आप देखिएगा कि 2011 तक राहुल प्रधानमंत्री बन सकते हैं और 2014 का आम चुनाव जनता को राहुल का चेहरा दिखाकर ही लड़ा जाएगा।

मित्रों, असल में मेरा मुद्दा यह भी नहीं था, सबसे पहली बात कि लोग मुझे कांग्रेस के प्रति बहुत अधिक बायस ना समझें। कई मामलों में मैं भी राहुल का प्रशंसक हूँ और मानता हूँ कि उन्होंने इस बार कई नए प्रयोग किए जिस वजह से उन्हें सफलता मिली। इतना ही नहीं उन्होंने कई ऐसी बातों को भी स्वीकारा जो उन्हें नहीं स्वीकारनी थीं, मसलन उन्होंने मान लिया कि वो परिवारवाद की पैदाइश हैं और कांग्रेस में इतने बड़े पद पर इसलिए ही हैं। लेकिन मैं राहुल से ज्यादा यहाँ उनकी युवा टीम या कहें युवा चेहरों के बारे में बात करना चाहता हूँ। राहुल के करीबी युवाओं के बारे में यूँ तो मैं बहुत कुछ जानता हूँ लेकिन थोड़े में बस इतना ही बताना चाहता हूँ कि राहुल की किचन कैबीनेट में या कांग्रेस के मंत्रिमंडल में हम और आप जैसों के लिए कोई जगह नहीं है। वहाँ एक भी ऐसा चेहरा नहीं है जो अपनी दम पर वहाँ पहुँचा हो। सब के सब बाप कमाई पर वहाँ राष्ट्रपति के बगल में खड़े होकर शपथ पढ़ रहे थे। मुझे इस आँकड़ें पर भी गहन क्षोभ हुआ कि इस बार आधे से ज्यादा सांसद करोड़पति हैं और युवा चेहरे तो सभी करोड़पति हैं। वैसे तो मैं मानता हूँ कि सभी सांसद करोड़पति हैं और अपनी आय को बहुत कम करके घोषित करते हैं लेकिन मेरा सिर्फ यह प्रश्न है कि अगर मैं राजनीति में जाना चाहूँ तो मुझे पहले क्या करना होगा। करोड़पति बनना होगा या माधवराव सिंधिया, राजेश पायलट, फारुख अब्दुल्ला, जितेन्द्र प्रसाद या मुरली देवड़ा जैसा बाप ढूँढना होगा। मैं जानना चाहता हूँ कि इन तथाकथित युवा चेहरों ने क्या तोप मारी है कि हम क्यों इनसे इंप्रेस होकर इन्हें जिताएँ और संसद में पहुँचाएँ। माफ करना, यहाँ मैं बात उन जाहिलों की नहीं कर रहा हूँ जो परिवार या शक्ल देखकर अपना वोट देते हैं। जाहिर है संसार का सबसे परिपक्व लोकतंत्र मैं भारत को नहीं अमेरिका को मानता हूँ, जिसने हाल ही में एक ऐसे युवा बराक ओबामा को देश का राष्ट्रपति बना दिया जो वाकई पिछले दशक तक राजनीति में ही नहीं आया था। या फिर सड़कों पर भटकने वाले एक युवा लेकिन जुझारू युवा नेता बिल क्लिंटन को उस देश ने संसार का सिरमौर बना दिया था।

दोस्तों, मेरे शहर इंदौर में राहुल ने एक युवा को विधानसभा का टिकट दे दिया। उसने बहुत प्रोपेगण्डा किया कि राहुल ने उसकी क्षमताओं को देखकर और परखकर उसे टिकट दिया। जब मैंने उस युवा को एक बार अपना चुनाव प्रचार करते देखा तो वह मित्सीबुशी की पजेरो कार में घूम रहा था। वो कार उसी की थी। अब बताईए एक युवा जो 20-25 लाख की कार से चल रहा है उसे टिकट देकर राहुल ने क्या जताया। बाद में जब उस युवा ने अपनी संपत्ति घोषित की तो वो भी करोड़ों में थी। हालांकि बाद में वो युवा विधानसभा का चुनाव हार गया लेकिन मेरी नजर में इतना तय हो गया है कि आप कैसे भी युवा हों, राहुल के मार्फत आना चाहते हों या सोनिया के। अगर आप देश की संसद की ओर देख रहे हैं तो सर्वप्रथम करोड़पति हो जाइए, नहीं तो माधवराव सिंधिया, राजेश पायलट, फारुख अब्दुल्ला, जितेन्द्र प्रसाद या मुरली देवड़ा जैसे बाप लाइए और बाद में फिर आगे की जुगाड़ कीजिए....और अगर आपके पास यह सब नहीं है तो माफ कीजिए, लाइन में से हट जाइए, और थोड़ी सी हवा आने दीजिए....।

आपका ही सचिन.....।

May 27, 2009

आपके और आपके बच्चों के लिए रणथम्भौर की सैर

एक बार जाकर देखिए जरा, मजा आ जाएगा
लेख को पढ़ने के लिए दी गई दोनों इमेज (फोटो) पर क्लिक कीजिए.



May 26, 2009

प्रभाकरण के मरने पर अफसोस क्यों..??

पिछले दस दिनों में कुछ महत्वपूर्ण घटना हुईं जिनका मैं चाहते हुए भी उल्लेख नहीं कर पाया। कई बार काम की व्यस्तता इतनी ज्यादा होती है कि आप अपने सामने कम्प्यूटर को रखे देखते रहते हैं और कुछ नहीं कर पाते। यानी पंगु हो जाते हैं। समय निकालना मुश्किल हो जाता है। लेकिन आज मैंने निकाल ही लिया दोस्तों से अपनी मन की बात कहने के लिए समय। लेकिन उन सब घटनाओं में से यहाँ मैं सिर्फ एक घटना के ऊपर आपसे बात करूँगा।

कुछ दिनों पहले मैंने प्रभाकरण का वो चित्र देखा जिसमें उसके भेजे को चीरकर निकली गोली का निशान बना हुआ था। उस फोटो के आसपास कई खबरों को मैंने देखा। कईयों को मैंने सजा (डेकोरेट) हुआ भी पाया। इनमें से कई को तो मैंने ही सजाया था अपने अखबार के पन्ने पर। मेरा मन इस दौरान काफी कुछ सोच रहा था। मैं बचपन से प्रभाकरण का नाम सुन रहा था। मुझे लगता था कि वो हीरो है। तमिलों के लिए लड़ रहा है जो मूल रूप से हिन्दू हैं और हमारे देश से ही उनकी उपज है। फिर जब मैं थोड़ा बड़ा हुआ तो पता चला कि हमारे देश के एक युवा प्रधानमंत्री (जो वाकई कई मायनों में अच्छे थे) राजीव गाँधी को इस प्रभाकरण ने मरवा दिया। मुझे इस प्रभाकरण से चिढ़ हो गई। लेकिन मैं खबरों में लगातार पढ़ता रहा कि वो सिंहलियों के खिलाफ संघर्षरत तमिलों का सर्वमान्य नेता है और उनके अत्याचार के विरोध में डटा हुआ है। लेकिन मेरी बुद्धि फिर भी इतनी कार्य नहीं करती थी कि मैं ये सोच पाऊँ कि मैं प्रभाकरण से संवेदना क्यों रखूँ। एक भारतीय होने के नाते या एक हिन्दू होने के नाते। फिर मैंने तमिलनाडु के काला चश्मा पहनने वाले उस पागल मुख्यमंत्री एम करुणानिधी के बयानों पर गौर करना शुरू किया। वो टुकड़ों-टुकड़ों में जहर उगलता है। वो हिन्दी और हिन्दूओं का विरोध करता है। वह कहता है कि क्या राम कोई इंजीनियर थे जो उन्होंने रामसेतु का निर्माण करा दिया। और अगर वाकई इंजीनियर थे तो कौन से इंजीनियरिंग कॉलेज से उन्हें डिग्री मिली थी? कई बार वो बोला कि अगर हिम्मत है तो तमिलनाडु में आकर हिन्दी बोलकर दिखाओ। मैं चकरा गया। सोचा कि ये तो हमारे ही देश और धर्म का है फिर ये ऐसी बातें क्यों कर रहा है? लेकिन वो असल में द्रविड़ है और बकौल करुणानिधी उसका हमारे धर्म से और हमारे देवताओं से कोई ताल्लुक नहीं। खैर, ठीक है भाई...

जिस प्रकार प्रभाकरण श्रीलंका में अलग से तमिल-ईलम की माँग करता आ रहा था ठीक उसी प्रकार से अलगाववादी बयान करुणानिधी और उसके मंत्रियों के भी आते हैं। एक ने इसी झोंक में कह दिया कि प्रभाकरण मारा गया तो भारत में खून की नदियों बह जाएँगी। कमाल है। हमारा देश और यहाँ की सरकार नाकारा है., क्यों???...कोई कहीं भी मरे यहाँ रहने वाले पहले पागल हो जाते हैं। पंजाब और हरियाणा में सिख ग्रंथी के मरने के बाद सिखों ने जो किया मैं उसका खुले मंच से विरोध करता हूँ। आखिर हमारे देश की संपत्ति को नुकसान पहुँचाने की उनकी हिम्मत कैसे हुई। वो संपत्ति सार्वजनिक थी किसी के बाप की नहीं थी। इसी प्रकार मैं डेनमार्क में नबी मोहम्मद के ऊपर बने कार्टून के विरोध में भारत में मुसलमानों द्वारा की गई हिंसा और विरोध का भी खुले तौर पर सार्वजनिक मंच से विरोध करता हूँ। उनके द्वारा मचाया गया दंगा गलत था और सार्वजनिक संपत्ति को पहुँचाया गया नुकसान भी गलत था। इन्हीं दोनों प्रकार की घटनाओं को मैं तमिलनाडु के संदर्भ में भी देखता हूँ कि जिन द्रमुक नेताओं ने ऐसी गलतबयानी की उन्हें उसी प्रकार उनकी धोती उतरवाकर पिटवाया जाना चाहिए जैसे जयललिता ने इस करुणानिधी को पिटवाया था। आखिर क्यों हम ऐसे किसी नेता को स्वीकार करें जिसे इस देश की राष्ट्रभाषा, सर्वमान्य भगवान और सर्वप्रथम इस देश और यहाँ के लोगों से प्यार नहीं है। मैं धिक्कारता हूँ करुणानिधी को, उसके मंत्रियों को और सबसे बड़े उस प्रभाकरण को जो कुत्ते की मौत मरा क्योंकि उसने हमारे देश का एक युवा तथा स्वप्नदर्शी प्रधानमंत्री छीन लिया था। हालांकि हम भारतीय किस्मत को मानने वाले हैं और हम प्रभाकरण को कभी नहीं पकड़ सकते थे वो तो श्रीलंकाई सेना ने उसे मार दिया तो हम खुश हो रहे हैं। लेकिन कांग्रेस ने इस पूरे मामले पर चुप्पी साधे रखी और धीरे से यह बतला दिया कि प्रभाकरण से मरने पर उसे कतई दुख नहीं है। इस मामले में मैं कांग्रेस के साथ हूँ।

श्रीलंका के राष्ट्रपति महिन्द्रा राजपक्षे कैसे भी हों लेकिन वो बाहर कहीं से जब भी आते हैं तो विमान से उतरने के बाद सबसे पहले घुटनों के बल बैठकर अपनी मातृभूमि को प्रणाम करते हैं। उनकी इस भावना का मैं सम्मान करता हूँ और इस बात का भी कि उन्होंने दिखा दिया है कि आंतकवाद से कैसे निपटा जाता है। 26 साल पुराने आतंकवाद को उन्होंने कुछ महीनों में ही निपटा दिया और एक हम हैं कि आतंकवादियों का सफाया करने से पहले कई सारे गणित करने में उलझे रहते हैं, मसलन फलाँ धर्म के लोगों को तो बुरा नहीं लग जाएगा या हमारी फलाँ सहयोगी राजनीतिक पार्टी को तो बुरा नहीं लग जाएगा। भारत सरकार को महिन्द्रा राजपक्षे से कुछ सीखना चाहिए और यह भी कि जब आप कुछ करने की ठान लें तो दुनिया की कोई भी शक्ति आपको रोक नहीं सकती। श्रीलंका तो भारत के मुकाबले बहुत छोटा है लेकिन उसने असीम दृढ़ता का परिचय दिया है। हमें उससे कुछ सीख लेनी होगी। मैं प्रभाकरण के मरने से खुश हूँ।

आपका ही सचिन......।

May 16, 2009

बोलो सोनिया मैया की जय!

दोस्तों, मेरे साथ बोलो सोनिया मैया की जय, गाँधी परिवार की जय...सब लोग अपने हाथ ऊँचे करें और बोलें ऊँ..ssssss

दोस्तों, यूपीए क्लीयर तौर पर आ गई है। उसे ना मायावती की जरूरत है, ना मुलायम की और ना लेफ्ट की...आडवाणी, नरेन्द्र मोदी, अरुण जेटली सब एक तरफ गए। ....कांग्रेस को समर्थन करने वाले सब खुश हैं लेकिन मैं चिंतित हूँ कि कहीं पेट्रोल, दाल, चावल, आटा कहीं 100 रुपए लीटर या किलो ना हो जाएँ, चिदंबरम-मनमोहन कुछ और टैक्स ना लाद दें, लेकिन गलती हमारी ही है.....कम वोट प्रतिशत लगभग 50 फीसदी (भारत भर में) से ही समझ आ गया था कि कांग्रेस को फायदा मिलेगा, बुद्धिजीवी लोग कमरों में बैठकर बौद्धिक मैथुन (मंथन नहीं) करते रहे और थैले में बम फोड़ते रहे वहीं दूसरी ओर धूप में लंबी कतारों में वोट देकर आया देश का निचला तबका फिर से गाँधी-नेहरू परिवार की जय कर गया। आखिर हो भी क्यों ना, हमने बरसों गुलामी में बिताए, राजे-रजवाड़ों के पैरों तले रहे और कई शताब्दियों तक उनके शासन को ही स्वीकारा। उस आदत की जीत हुई।

दोस्तों, फिर से मेरे साथ बोलो, गाँधी-परिवार की जय...सोनिया मैया की जय..जय...जय हो।


- सचिन

May 15, 2009

सोनिया ने ही छाँटा वरुण और मेनका को!

आज ये दोनों गाँधी परिवार में शामिल ही नहीं...!!!!!

दोस्तों, चूँकी मैंने आप लोगों से कहा था कि बात वरुण गाँधी और मेनका पर भी लाऊँगा, तो अपना वादा निभा रहा हूँ। इन चुनावों में राहुल गाँधी से ज्यादा प्रसिद्ध वरुण गाँधी रहे हैं। कारण भी साफ है। वरुण में राहुल के मुकाबले कहीं ज्यादा फायर है और राहुल राजनीति में जो स्थान पाँच वर्षों में नहीं बना पाए वो वरुण ने पाँच महीनों में ही बना लिया है। अब वे उप्र के मुख्यमंत्री की दौड़ में हैं और मुझे उप्र के एक महत्वपूर्ण शहर के अमर उजाला के संपादक ने बताया कि वरुण की वजह से इस बार उप्र में भाजपा की सीटें भी बढ़ सकती हैं। कोई कह सकता है कि आग उगल कर लाइम लाइट में आना तो किसी के लिए भी आसान हो सकता है। तो दोस्तों, मैं यहाँ कहना चाहता हूँ कि आप और हम में से कई लोग टेलेंटेड हैं, लेकिन आगे नहीं आ पाते...इसका कारण है कि भारतीय राजनीति में शुरुआती स्थान तो फायर ब्राण्ड अपनाकर ही बनाया जा सकता है। नरेन्द्र मोदी का उदाहरण आपके-हमारे सामने है। शुरुआत में उन्होंने फायर दिखाकर ही राजनीति में स्थान बनाया, बाद में योजनाओं, विकास और प्लानिंग के बलबूते पर अच्छी तरह जमे और इंडिया टुडे की पिछले तीन सालों से सर्वेश्रेष्ठ मुख्यमंत्री की सूची में पहले स्थान पर बने हुए हैं औऱ यह तय है कि अगले लोकसभा चुनाव यानी 2014 में वे ही भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे।

दोस्तों, बात वरुण और मेनका की चल रही थी। तो मैं यहाँ बताना चाहता हूँ कि तीस साल पहले इंदिरा गाँधी के मन में सिर्फ संजय गाँधी थे। राजीव गाँधी तब हवाई जहाज उड़ा रहे थे और संजय देश की राजनीति को समझ रहे थे। वो भी फायर ब्राण्ड थे और वही फायर वरुण के चेहरे और क्रिया से भी नजर आता है। तो संजय के दौर में इंदिरा को कोई चिंता नहीं थी। वो व्यक्ति सबको ठिकाने लगा सकता था। तभी इंदिरा जी इमरजेंसी के बाद हुए चुनावों में बुरी तरह हार गईं। उन्हें जेल हुई। उस समय संजय गाँधी ने ही मेनका गाँधी के साथ उन्हें जेल से बाहर निकालने के लिए हो-हल्ला मचा दिया था। उस पूरे एपिसोड में मेनका उनके साथ रही थी। इन दोनों ने मिलकर इंदिरा जी के लिए आंदोलन चलाया। कोर्ट में केस किए और तब तक लगे रहे जब तक कि वे बाहर नहीं आ गईं। लेकिन इस दौरान इंदिरा जी की बड़ी बहू यानी सोनिया जी कहाँ थीं...??? सोनिया उस समय विदेश में थीं। इटली में अपने वीजा रीनीवल के लिए लगी हुई थीं। सनद रहे कि सोनिया ने हाल के कुछ वर्षों पहले ही भारत की नागरिकता ली है और इस देश की जनभाषा हिन्दी सीखी है। हालांकि वो हिन्दी कितना अच्छा सीख पाई हैं इस बारे में आप लोग ही तय करें... :)

तो दोस्तों, संजय गाँधी की मौत के समय वरुण कुछ महीने के थे। तीन महीने के। उसने अपने पिता को लगभग नहीं देखा। मेनका ने शुरुआती संघर्ष किए लेकिन इंदिरा गाँधी उनसे चिढ़ती थीं। क्योंकि मेनका एक सिख लड़की थी और वो उन्हें अपनी बहू के रूप में स्वीकार नहीं कर रही थीं। तो मेनका अगर सिख थीं तो सोनिया तो पूरी तरह से विदेशी थीं। फिर क्या बात हुई...???? सोनिया ने काफी आगे की सोच रखी थी। इंदिरा जी के सामने ही सोनिया ने मेनका की उस घर से छुट्टी करा दी। सोनिया जानती थीं कि मेनका उस समय जनता के बीच सोनिया से अधिक जानी जाती थीं और देर-सबेर अपने फायरी व्यक्तित्व के कारण राजीव जी पर भी भारी पड़ सकती थीं। आज इंदिरा जी को गए 25 साल हो गए। इस ढाई दशक में सोनिया ने मेनका और उनके बेटे वरुण को इतने किनारे लगा दिया कि जब भी गाँधी परिवार का नाम आता है तो ये दोनों बेचारे तो सामने नजर ही नहीं आते। इन्हें तो ऐसे छाँट दिया गया जैसे ये खैराती हों, जबकि संजय गाँधी इंदिरा जी की आँखों के तारे थे और अगर वो जीवित होते, तो ना राजीव सामने आते और ना ही ये सोनिया। अब वरुण बड़े हो गए हैं। पूरे 29 साल के। पिछले लोकसभा चुनाव में वरुण की किस्मत साथ नहीं थी और वो तब 24 साल के ही थे नहीं तो वो तभी सांसद बन गए होते, ठीक सचिन पायलट की तरह (उल्लेखनीय है कि लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए 25 वर्ष की उम्र न्यूनतम है और सचिन 25 की उम्र में ही सांसद बने थे)। लेकिन वरुण को तब पूरे पाँच साल इंतजार करना पड़ा था लेकिन इस बार वो तैयारी के साथ सामने हैं। वरुण जानते हैं कि सोनिया ने किस प्रकार से उनके साथ खेल खेला है। वरुण की माँ मेनका ने उन्हें सब कुछ बता रखा है। गाँधी परिवार के घर की सभी अंदरुनी बातें। वरुण पिछले 30 सालों का हिसाब-किताब बराबर करना चाहते हैं। उन्हें जल्दी भी है और ध्यान रखें कि उन्होंने अभी तक अपने गाँधी होने की जिक्र नहीं किया है, हाँ वे हिन्दू होने की बात जरूर कहते हैं। वरुण उत्तरप्रदेश में भाजपा को वापस लेकर आएँगे और भाजपा यह बात जानती है कि उसके पास तुरुप का इक्का है। वो उन्हें वीआईपी की तरह ट्रीट करती है। ठीक गाँधी परिवार के सदस्य होने के नाते....।


आपका ही सचिन.....।

May 14, 2009

सोनिया ने जो चाहा वो किया है!


भारतीय राजनीति को नई दिशा देने की है इच्छा..!!!!!!!!
दोस्तों, माफी चाहता हूँ कि वादा करके भी कल (बुधवार) को आप लोगों से मिल ना सका। अखबारी व्यस्तता तो आप लोग समझते ही हैं, और उस बीच टाइम निकालकर अपने दिल की बात आप लोगों के समक्ष रखने के लिए मुझे भारी श्रम करना पड़ता है। आज थोड़ा सा समय निकाला है। बात चूँकी सोनिया पर चल रही थी और उस बात को मैं जारी रखना चाह रहा था इसलिए इसे पिछली पोस्ट की अगली कड़ी ही समझिए..।

दोस्तों, सोनिया जिस देश इटली की हैं उस देश ने एक समय पूरे संसार पर राज किया है। वहाँ के लोगों की क्रूरता भी बहुत मशहूर है और आप ग्लेडिएटर फिल्म देखकर इतना तो जान ही गए होंगे कि वहाँ के लोग लड़ने के कितने शौकीन थे (हैं) और उस शौक के लिए उन्होंने किस प्रकार के खेलों को ईजाद कर रखा था। खैर, इटली से मुझे याद आया कि सोनिया की भारत में कोई संपत्ति नहीं है। उन्होंने चुनाव लड़ते समय अपनी संपत्ति की घोषणा की जो महज 18 लाख रुपए थी। कमाल है। जिस कांग्रेस पार्टी की सोनिया अध्यक्ष हैं उस पार्टी ने इस बार के लोकसभा चुनाव लड़ने में 1000 करोड़ रुपए का खर्चा किया है। लेकिन सोनिया के पास ना कार है और ना मकान। क्योंकि उन्होंने अपना मकान भी इटली में ही दिखाया है। दूसरे, उनके सुपुत्र राहुल गाँधी ने भी अपनी संपत्ति एक करोड़ 80 लाख रुपए बताई जबकि राहुल ने दिल्ली में अपने जिस प्लाट की कीमत १० लाख रुपए बताई है वो दरअसल 35 करोड़ रुपए का है। अरे, आप ही बताइए भला, दिल्ली में १० लाख रुपए में कुछ आता है क्या...???? इतने रुपए से तो वहाँ गुसलखाना भी ना बन सके। इन नेताओं की घोषित संपत्ति की भी जाँच होनी चाहिए।

खैर, अब मुद्दे की बात..... ये बात कुछ पुरानी है। तब इस देश के राष्ट्रपति श्री आर.वेंकटरमण थे। भले आदमी थे। दक्षिण के ब्राह्मण थे। तो उनका राष्ट्रपति के तौर पर एक टर्म पूरा हो चुका था। और राजेनद्र प्रसाद तथा राधाकृष्णन जी के बाद वो तीसरे राष्ट्रपति बनने जा रहे थे जिनके दूसरे टर्म को लेकर गंभीरता से विचार किया जा रहा था। हालांकि राधाकृष्णन जी दो टर्म उपराष्ट्रपति रहे थे। खैर, राजीव जी तब जिंदा थे और वेंकटरमण को पसंद करते थे। तो वेंकटरमण ने राष्ट्रपति भवन के आखिरी दिनों के दौरान राजीव जी को सोनिया के साथ अपने आवास पर आमंत्रित किया। वहाँ कोई पूजा-अनुष्ठान था। राजीव जी गए, उनके साथ सोनिया भी थी। तब वेंकटरमण उन्हें वही तमिल लुंगी और माथे पर त्रिपुंड लगाए मिले। नाक के दोनों ओर चंदन लगा हुआ था। पूरी दक्षिण भारत वेशभूषा थी। राष्ट्रपति जी की पत्नी भी उनके साथ थीं। उसी प्रकार की वेशभूषा में। बस, फिर क्या था। सोनिया ने यह सब देखा और चिढ़ गईं। उन्होंने सोचा ये कैसा आदमी है। अजीब सा। इससे पहले सोनिया ने वेंकटरमण को हमेशा काले सूट में ही देखा था। लौटते समय घर जाते-जाते सोनिया ने राजीव जी का मूड बदल दिया और फरमान जारी कर दिया कि ये आदमी दूसरी बार तो राष्ट्रपति नहीं बनेगा। अब बेचारा पति क्या करता, पत्नी की तो सुनना ही है। वेंकटरमण की छुट्टी हो गई। राजीव जी चाहते हुए भी कुछ नहीं कर पाए।

दोस्तों, माफी चाहता हूँ कि ऊपर की बात का उल्लेख थोड़ा जल्दी कर दिया। लेकिन मैं थोड़ा सोनिया की डोमिनेन्सी की आदत बताना चाह रहा था। असल में अपनी बात प्रियंका को लेकर चल रही थी। तो कुछ लोगों ने मुझसे पूछ लिया कि प्रियंका हाथ से गई तो इसमें क्या है, सोनिया राहुल को तो प्रधानमंत्री बनवा ही सकती हैं। आखिर उनके हाथ में ही तो सबकुछ है। मैं भी ये मानता हूँ। लेकिन इसमें भी एक पेंच है। सोनिया इतने सालों में शायद थोड़ी सी हिन्दुस्तानी भी हो गई हैं, या कहें थोड़ी ओरथोडॉक्स....सोनिया को गाँधी परिवार के एक खास और पारिवारिक ज्योतिषी ने बता रखा है कि राहुल के तारे (स्टार्स) उतने सशक्त नहीं हैं कि वे प्रधानमंत्री बन सकें। अगर बनवा भी दिया तो घोर असफल हो सकते है। आपके घर से तो प्रियंका का ही योग है इस उच्च पद पर पहुँचने का। इसी ज्योतिषी ने सोनिया को यह भी बताया था कि वे खुद कभी प्रधानमंत्री नहीं बनें, नहीं तो उनके बच्चे अनाथ हो सकते हैं। यानी सोनिया को प्रधानमंत्री पद ग्रहण करने के बाद जान का जबरदस्त खतरा हो सकता है। तो सोनिया ने अपने मामले में तुरंत उदारता दिखाई और डॉ. मनमोहन सिंह को अचानक कहीं से ले आईं और प्रधानमंत्री बना दिया। अब वे प्रियंका को लेकर चिंतित हैं क्योंकि प्रियंका अपने परिवार की वजह से राजनीति में आने की हमेशा ना-ना करती रहती हैं। हालांकि बीच में कई बार प्रियंका सकारात्मक संकेत देती हैं लेकिन कांग्रेस में खुशी की लहर उमड़े इससे पहले ही वे वापस ना-ना करने लगती हैं। तो वो सकारात्मक संकेत सोनिया के प्रेशर की वजह से ही आते हैं। अब सोनिया इस बात को लेकर असमंजय में हैं कि प्रियंका वाले मामले में क्या किया जाए...सही लांच पैड की तलाशी की जा रही है। और यह भी तय है कि सोनिया धीरे-धीरे उन सभी काँटों को कांग्रेस से निकाल रही हैं या निकाल देंगी जो उनके परिवार के आगे बढ़ने के बीच में आएँगे। फिर भले ही वो कितने ताकतवर ही क्यों ना हों..?? वो शरद पवार, पी.ए.संगमा और अर्जुनसिंह तो याद हैं ना आपको, जिन्हें सोनिया ने अलग-अलग तरीके से निपटाया है।

दोस्तों, फिर से एक ब्रेक लेते हैं...ये बातें होती रहेंगी। शेष अगली मुलाकात के लिए मैंने रख लिया है। अभी बहुत है आप लोगों से शेयर करने को। तब तक कयासों और चटखारों का दौर चलने दिया जाए..। फिर मुलाकात होती है गाँधी परिवार को लेकर..। अगली किश्त में मेनका और वरुण को किनारे करने की कहानी लेकर आउँगा। तब तक के लिए विदा।

आपका ही सचिन...।

May 12, 2009

प्रियंका को फिर भी ना बचा सकीं सोनिया!



सयानी सोनिया की मनमानी सभी जगह नहीं चली
दोस्तों, मैं एक बार फिर से आपके सामने हूँ। मेरी पिछली पोस्ट अमिताभ बच्चन पर थी। उससे पिछली सोनिया गाँधी पर..लेकिन इस बार मैं इन दोनों लोगों को आपके लिए जोड़ सकता हूँ।

तो दोस्तों, अब मुद्दे की बात। कि सोनिया गाँधी सयानी या कहें चतुर महिला हैं यह किसी को बताने की जरूरत नहीं। लेकिन उन्होंने कुछ मामलों में जीवन में मात भी खाई है। सबसे बड़ा उदाहरण हैं प्रियंका गाँधी। सोनिया ने प्रियंका को लेकर बहुत ख्वाब संजो रखे थे लेकिन प्रियंका ने 12 साल पहले उन ख्वाबों को पलीता लगा दिया उस राबर्ट वाडरा से शादी करके। कम ही लोगों को पता होगा कि आखिर राबर्ट में ऐसी क्या बात थी कि परी सी लगने वाली प्रियंका ने उस भुजंग से दिखने वाले राबर्ट के साथ ब्याह रचा लिया और राजनीतिक जीवन से अभी तक सिर्फ उस शादी की वजह से दूरी बना रखी है। जबकि वो जानती हैं कि वो राजानिती में आईं तो जबरदस्त सफल होंगी क्योंकि भारत की जनता उनमें उनके पिता राजीव गाँधी की छवि देखती हैं। तो सुनिए, प्रियंका और राबर्ट स्कूल के समय से दोस्त हैं। राबर्ट एक बहुत अच्छा सालसा डांसर है और उसकी इसी अदा पर प्रियंका मर मिटीं। स्कूल के समय से ही दोनों जोड़ा बनाकर सालसा करते थे। हालांकि इससे पहले सोनिया ने कई लोगों की नजरों से प्रियंका को बचाए रखा लेकिन यहाँ आकर वो गच्चा खा गईं।

अब आप मुझसे पूछ सकते हैं कि किन लोगों की नजरों से सोनिया ने प्रियंका को बचाए रखा। तो मैं अभी सिर्फ दो नाम लूँगा। सबसे पहला कि राजीव गाँधी के घनिष्ट मित्र होने के नाते खुद अमिताभ बच्चन अभिषेक के लिए प्रियंका को (यहाँ उम्र का बंधन ना देखें..बड़े परिवारों में सब चलता है और ऐश भी अभिषेक से बड़ी है) पसंद बनाए हुए थे। जया भी यह रिश्ता चाहती थीं लेकिन सोनिया नहीं मानीं। फिर माधवराव सिंधिया भी ज्योतिरादित्य के लिए प्रियंका को चाहते थे लेकिन यहाँ भी दाल नहीं गलने दी गई। सोनिया प्रियंका के लिए किसे चाहती थीं यह बात तो ओपन नहीं हो सकी लेकिन राजीव जी की हत्या के बाद सोनिया ने सारी लगामें अपने हाथ में ले लीं और उनके सभी दोस्तों की धीरे-धीरे छुट्टी कर दी। 1998 में सोनिया ने कांग्रेस की कमान संभाली और बहुत ताकतवर होकर सामने आईं लेकिन तब तक देर हो चुकी थी और प्रियंका राबर्ट का हाथ 1997 में थाम चुकी थीं, नहीं तो प्रियंका के लिए सोनिया ने बहुत ऊँचे सपने देखे थे। सोनिया प्रियंका को उस जगह पर बैठातीं जहाँ मजबूरी में उन्होंने राहुल को बैठाया, सोनिया हमेशा से जानती थीं कि प्रियंका में पब्लिक अपील राहुल से ज्यादा है, लेकिन भाग्य को कौन टाल सकता है। सोनिया राबर्ट से बहुत चिढ़ती थीं लेकिन प्रियंका का परिवार बढ़ा, दो बच्चे पैदा हो गए और हर पारिवारिक इंसान की तरह सोनिया ने भी राबर्ट को अपना लिया। लेकिन राबर्ट अभिषेक, ज्योतिरादित्य से कमजोर कैडिंडेट साबित हुए।

तो मेरे दोस्तों, यहीं मैं आपको एक ऐसी बात बताने जा रहा हूँ जिससे आपको पता चलेगा कि क्यों गाँधी परिवार और बच्चन परिवार का तीन पीढ़ियों का घनिष्ट रिश्ता टूट गया। आगे सुनिए, जब प्रियंका ने राबर्ट से शादी की तब इस बात से झल्लाई जया बच्चन ने नंदा फैमिली (जो बच्चन परिवार के साथ ही गाँधी परिवार के रिश्ते में भी है) में यह कह दिया कि आखिर प्रियंका गई तो एक कबाड़ी के साथ ही ना..!!!!!!! (विदित है कि राबर्ट का पारिवारिक धंधा एंटीक बर्तन-भांडों के व्यापार से संबंधित है)

बस यही वो बात थी जिसने सोनिया का खून खौला दिया। उस दिन से आज का दिन है कि दोनों परिवारों में पड़ी दरार चौड़ी होती गई और अमिताभ यह कहते सफाई देते रहे कि वो (गाँधी परिवार) राजा हैं और हम (बच्चन परिवार) रंक हैं। अमिताभ अपनी लिमिट जानते हैं इसलिए झुक जाते हैं लेकिन जया बच्चन ने इस पूरे एपिसोड में द्रोपदी का किरदार निभाया और इन दो पुराने परिचित परिवारों में ऐसी आग लगाई जो समय के साथ बुझने के बजाए बढ़ती जा रही है। सोनिया को पता है कि प्रियंका ने गलती की है लेकिन वो ना तो इसे स्वीकारना चाहती हैं और ना ही किसी से सुनना चाहती हैं। जया बच्चन ने बर्र के छत्ते में हाथ दे दिया था। जबकि अमिताभ का मानना था कि वे राजीव जी के मित्र थे तो क्यों तो बाहरी महिलाओ (बहुओं) ने इस रिश्ते को खत्म कर दिया।

.........दोस्तों, लिखते-लिखते थोड़ा थक गया हूँ। सोनिया के विजन या चतुराई को बताना आगे भी जारी रखूँगा...अब कल तक का इंतजार किजिए...अचानक थोड़ा काम भी आ गया है। तब तक के लिए विदा..

आपका ही सचिन.....।

May 11, 2009

अमिताभ बच्चन गंजे हैं!

दोस्तों, शताब्दी के मेगास्टार अमिताभ बच्चन के बारे में हम रोजाना कुछ ना कुछ पढ़ते रहते हैं। आज खबर है कि उन्हें मकाऊ में अपना एक प्रशंसक मिला जिसने उन्हें बताया कि २५ साल पहले उसने उन्हें छूकर यह देखा था कि अमिताभ सच में एक हकीकत हैं या कोई भ्रम..। फिर खबर आई की उनकी आने वाली फिल्म रण का गाना जन..जण...मन...रण विवादित हो गया है और इसे फिल्म से हटाने की माँग की जा रही है। फिर कभी अमिताभ कहते हैं कि उनका ब्लॉग पढ़ने वाले पाठक उनके परिवार समान ही हैं। लेकिन इन सब बातों को पढ़ते हुए मुझे एक ख्याल आता है कि अमिताभ ने अपने ब्लॉग के माध्यम से अपने बारे में सभी बातें लोगों को बताना सीख लिया है। वो जानते हैं कि उनकी लिखी बातें खबर भी बनती हैं। लेकिन मैं उनके बारे में आपको कुछ अन्य रोचक बातें बताउँगा। जैसे, अमिताभ ने किसी को यह कभी क्यों नहीं बताया कि वे गंजे हैं...!!!!!!!

जी हाँ, ये सच है कि अमिताभ गंजे हैं..। यकीन नहीं हुआ आपको..?? तो आप अमिताभ की सभी तस्वीरें सामने रखकर देखिए...उसमें आप एक समानता पाएँगे। एक बाल भी इधर से उधर हुआ कभी नहीं पाएँगे। हाँ, वे बालों का रंग थोड़ा बदलवा लेते हैं लेकिन अब तो काफी समय से उनके विग का रंग भी एक ही है। मेरी बात आजमाकर देखिएगा आप। दूसरा तर्क, अमिताभ की उम्र 66 वर्ष है। क्या इस उम्र में किसी व्यक्ति के बाल इतने स्टाइलिश और इतने घने हो सकते हैं जैसे कि अमिताभ के हैं। फिर बीच में आप लोगों को याद होगा कि अमिताभ थोड़े दिन पहले फिर बीमार हो गए थे और लीलावती अस्पताल में भर्ती रहे थे। जब वे बाहर आए तो भरी दोपहर बंदर टोपा लगाए थे। नहीं समझ आया आप लोगों को, कि वो उस टोपे को क्यों पहने थे...????? अरे भाई, अपना गंजापन छुपाने के लिए, और काएके लिए..। एक और तर्क सुन लीजिए..अमिताभ के बालों के देखिए..वो सभी एक सीध में हैं, खड़े हुए से...जबकि आपके-हमारे बाल बड़े होने पर स्वतः थोड़ा मुड़ जाते हैं...तो यह फर्क है असली और नकली बालों में...अब आप लोग शिकायत ना कीजिए, अमिताभ बच्चन को आपने पिछले कई सालों से बड़े बालों में नहीं देखा होगा..तो उसका यही कारण है....आप मित्रों में से कोई मुझसे पूछ सकता है कि वे कब से गंजे हैं...तो यह भी सुन लीजिए..वो 1982 में कुली फिल्म के सेट पर हुई दुर्घटना के बाद से गंजे हैं। उस दौरान ली गई स्टेराइड्स ने उनके शरीर की हालत खराब कर दी, बाल उड़ा दिए..और आज उनके साथ २० हजार रुपए महीना लेने वाला एक आदमी रहता है जो उन्हें समय पर दवाइयाँ देता है। ये दवाइयाँ प्रत्येक माह लाखों रुपए की होती हैं। यानी बच्चन साहव पूरी तरह से दवाइयों पर चल रहे हैं..कारण वही पुरानी चोट...। हाँ ये बात अलग है कि उनकी लंबी उम्र के पीछे हरिवंशराय बच्चन और तेजी बच्चन का हाथ है। कारण..कि लंबी उम्र का मामला हैरिडिटी का होता है। जिस व्यक्ति के माता-पिता लंबी उम्र के होते हैं....बहुत संभव है कि वह व्यक्ति भी लंबी उम्र का ही हो....। सो बच्चन साहब भी जी रहे हैं...। तो अमित जी के गंजे होने की बात अब भी दोस्त लोग ना माने तो मैं क्या कर सकता हूँ...। :-)

खैर, अब बात अमिताभ की ब्लॉगिंग की....अमिताभ अपना ब्लॉग पढ़ने वाले पाठकों को अपना परिवार कहते हैं। लेकिन मुझे लगता है कि वो परिवार उपेक्षित है। अमिताभ अपनी छोटी-मोटी पोस्ट पर भी 500 से 1000 कमेन्ट्स पा लेते हैं....लेकिन अमिताभ ने उन कमेन्ट्स को इतना धुंधला कर रखा है कि कोई भी उन्हें आँखें गड़ाकर भी नहीं पढ़ सकता और फिर अमिताभ को तो खुद चश्मा लगा हुआ है। वे क्या पढ़ पाते होंगे जब हम ही नहीं पढ़ पा रहे हैं। दूसरी बात, जिस प्रकार अमिताभ अपनी दवाइयाँ खुद नहीं ले पाते तो वे खुद ब्लॉग लिखने जैसा कष्टकारी काम कैसे कर पाते होंगे। अनिल अंबानी को पता है कि बिग अड्डा की अच्छी शुरुआत अमित जी के ब्लॉग लिखने के वजह से ही हुई है। तो एक मातहत रखवा दिया होगा (महीने के वेतन पर) जो अमित जी से सुनकर उनका ब्लॉग लिख देता होगा, ठीक वैसे ही जैसे आडवाणी जी या अन्य बड़ी हस्तियाँ लिख (?) रही हैं। तो अमित जी के ब्लॉग पर दोबारा जाइए...और इन सब बातों को महसूस कीजिए..। मैं तबतक के लिए आपसे विदा लेता हूँ।

आपका ही सचिन...।

May 09, 2009

प्रतिभा पाटील के काम आने का समय नजदीक है!


सोनिया ने दूर की सोची थी

दोस्तो, लोकसभा चुनाव अपने शबाब से गुजर चुके हैं। काफी कुछ हो चुका है। इस बीच कई रोचक और राष्ट्रीय स्तर की घटनाएँ भी हुईं। मुलायम ने कम्प्यूटर और अंग्रेजी पर पाबंदी की बात कही तो प्रियंका ने मोदी को जवाब दिए जबकि मोदी ने भी कांग्रेस को बुढ़िया और फिर गुड़िया पार्टी कहा। वरुण का एपिसोड भी हुआ। लेकिन क्या करें इन सब विषयों पर लिखने की इच्छा होते हुए भी कुछ नहीं लिख पाया। कारण यही लोकसभा चुनाव और इनसे जुड़ी अखबारी व्यस्तता, लगता है कि मुझे पढ़ने वाले पाठक भी छूट गए होंगे। लेकिन वापसी तो करनी ही है। सो, आज थोड़ा सा समय निकाल कर बैठा हूँ। संदर्भ कल पढ़े एक एनालिसिस का है जिसमें कहा गया था कि इस बार भी पिछली बार की तरह सिंगल लारजेस्ट पार्टी को ही राष्ट्रपति द्वारा सरकार बनाने के लिए न्यौता दिया जाएगा। जबकि अगर पिछली बार सबसे बड़े गठबंधन को सरकार बनाने के लिए बुलाया जाता तो वह एनडीए होना चाहिए था क्योंकि वो तब सबसे बड़ा था और संप्रग ने तो राष्ट्रपति से बुलावे के बाद अपना आकार लिया था। या कहें ओपरचुनिस्ट लोगों की जमात इक्ट्ठी हो गई थी। विश्लेषण में इस बार भी कांग्रेस को बुलावे की बात कही गई थी अगर वो सिंगल लारजेस्ट पार्टी हुई और अगर ना हुई तो संप्रग को बुलाया जा सकता है बड़े, गठबंधन होने के नाते क्योंकि राष्ट्रपति भवन में जो महिला राष्ट्रपति बैठी हैं वो आधा झुककर सोनिया गाँधी को नमस्ते करती हैं....!!!!!!

दोस्तों, अब मैं कुछ आपको बताना चाहता हूँ, हालांकि वो विवादास्पद हो सकता है लेकिन सोनिया गाँधी शांत रहने वाली बेहद ही चतुर तथा सयानी महिला हैं। उन्होंने ये गुण अपनी सास इंदिरा गाँधी के करीब रहते सीखे और राजनीति में सोनिया को फिलहाल कोई नहीं पकड़ सकता। ये हमें उनके पिछले १० साल के कार्यकाल से समझ लेना चाहिए जिसमें उन्होंने कांग्रेस की कमान संभाली हुई है। मुझे राजनीति की एक विशेषज्ञ (महिला) ने बताया कि श्रीमती प्रतिभा पाटील राष्ट्रपति कैसे बनीं। प्रतिभा पाटील जब राजस्थान की राज्यपाल थीं तब वहाँ गुर्जर और मीणाओं के बीच संघर्ष की स्थिति बनी हुई थी। आंदोलन चल रहा था और वसुंधरा राजे वहाँ की मुख्यमंत्री थीं। तो श्रीमती पाटील दिल्ली सोनिया गाँधी से मिलने पहुँची यह पूछने की मैडम मेरी वहाँ क्या भूमिका हो और मेरा क्या स्टेण्ड होना चाहिए, इस एपिसोड में। वसुंधरा सरकार को लेकर और पूरे आंदोलन को लेकर। उस समय एपीजे अब्दुल कलाम का कार्यकाल पूरा होने जा रहा था और सोनिया उनके दूसरे कार्यकाल के बारे में विचार तो दूर की बात अपने किसी व्यक्ति को राष्ट्रपति भवन में बैठाने की गहन चिंता में खोई हुई थीं। तभी प्रतिभा पाटील वहाँ पहुँच गईं थीं। इन्हें देखते ही सोनिया ने सोचा, लो बन गई बात। एक महिला को राष्ट्रपति पद पर बैठाने के फैसले को नया माना जाएगा और इसका कोई विरोध भी नहीं करेगा, तथा उनका एक विश्वसनीय व्यक्ति सर्वोच्च पद पर बैठ जाएगा जो २००९ के चुनावों में उनके सीधे तौर पर काम आएगा। सोनिया को बैठे-बैठे ही समस्या का हल मिल गया था और प्रतिभा पाटील ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि वो महाराष्ट्र से उठकर कहाँ पहुँचने वाली हैं। यहाँ मैं दोस्तों को बताना चाहता हूँ कि श्रीमती पाटील ने इमरजेंसी के समय इंदिरा गाँधी की बहुत सेवा की थी, उनके जेल जाने के दौरान उनका घर (या कहें किचन) संभाला था और सोनिया भी उनको कई दशकों से जानती हैं। तो अब उनको उनकी सेवा का रिवार्ड मिला। अब इस एहसान को वो १६ मई के बाद चुकाएँगी जब राष्ट्रपति के हाथ सत्ता आ जाती है और वो जिसे चाहे सरकार बनाने के लिए बुला सकता है। निश्चित ही वो सोनिया से उस दौरान पूछेंगी कि मैडम मैं आपको कब बुलावा भेंजू..मुझसे मिलने के लिए..या मैडम आपके पास कब समय है मुझसे मिलने का...मैं आपको सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करना चाहती हूँ......!!!!!!!!!

आपका ही सचिन.......।