
दोस्तों, मेरी पिछली पोस्ट में आपने चीन से संबंधित भारत की चिंताओं पर मेरे विचार पढ़े थे। पिछली पोस्ट को पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें क्या चीन भारत पर हमला करेगा? (भाग-1)
अब बात आगे बढ़ाई जा सकती है...
जैसा कि आप जानते हैं कि सामरिक विशेषज्ञ किसी भी बात को बस यूँ ही नहीं कह देते। बल्कि कहें कि कोई भी विशेषज्ञ या शास्त्री (मसलन अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, मानवशास्त्री) भी झूठ क्यों बोलेगा। उसका अध्ययन जो इजाजत देगा वही वो भी बोलेगा। तो भरत कपूर के दावे को बस यूँ ही खारिज नहीं किया जा सकता। दूसरी बात, आपने मुंबई हमले के बाद ग्लोबल इंटेलीजेंस एजेंसी स्ट्रेटफोर की वो रिपोर्ट भी पढ़ी होगी जिसमें उसने कहा था कि इस हमले के बाद भारत को अपनी शक्ति दिखानी ही होगी और अपने को साबित करने के लिए भारत पाकिस्तान में कुछ चुनिंदा ठिकानों पर सैन्य कार्रवाई कर सकता है। हालांकि एजेंसी का यह दावा खाली गया क्योंकि हमने कुछ नहीं किया, चुप बैठे रहे और पाकिस्तान को डोजिएर (सुबूतों से भरे सूटकेस) देते रहे जिन्हें वह रद्दी की टोकरी में फैंकता रहा। बाद में सामरिक विशेषज्ञों ने कहा कि पाकिस्तान के पास परमाणु बम था इसलिए भारत चुप बैठा रहा क्योंकि क्षेत्र में परमाणु युद्ध छिड़ सकता था इसलिए शक्तिशाली देशों ने भारत पर हमला ना करने का जबरदस्त दबाव बनाया था। यह बात भारत के एक पूर्व थल सेना प्रमुख ने भी कही थी।
आज ही रूस के एक नामचीन प्रोफेसर ने कहा है कि 2020 तक अमेरिका भी ढह जाएगा। रूस के प्रसिद्ध शिक्षाविद प्रोफेसर आईगोर पानारिन ने यह बात काफी शोध के बात कही है। उन्होंने इसके पीछे का कारण अमेरिका की फिलहाल खस्ताहाल अर्थव्यवस्था और बराक प्रशासन के फेल्योर को बताया है। वैसे इस बात के लिए हर अमेरिकी उन्हें झक्की ही कहेगा लेकिन इतिहास गवाह है कि रूस के टूटने से पहले भी कोई वो सब नहीं सोचता था। इस खबर को आप यहाँ पढ़ सकते हैं 2020 तक ढह जाएगा अमेरिका: रूसी प्रोफेसर
रूस बिखर जाएगा यह सिर्फ कोई अर्थशास्त्री ही सोच सकता था क्योंकि अर्थव्यवस्था चरमराने के कारण ही रूस ने अलग हुए मुस्लिम राष्ट्रों पर से अपना नियंत्रण ढीला किया और उन्हें रूसी संघ में साथ रखने से मना कर दिया। आज उसी बात को लेकर हाफिज सईद जैसे आतंकी संगठनों के सरगना यह कहते फिरते हैं कि भारत को भी रूस की तरह से तोड़ना उनका एकमात्र मकसद है औऱ यह पूरा हो जाएगा क्योंकि रूस के लिए भी लोग असंभव शब्द का इस्तेमाल करते थे लेकिन हमने वो कर दिखाया।
दोस्तों, आप लोग सोच रहे होंगे कि इतनी देर की बात में भी अभी तक चीन का जिक्र क्यों नहीं आया, तो मैं आपको याद दिलाना चाहूँगा कि यह सब बातें एक दूसरे से इंटरलिंक हैं। इस बात को पुख्ता करते हुए चीन के एक सामरिक विशेषज्ञ ने हाल ही में कह दिया था कि भारत को 20-30 टुकड़ों में तोड़ देना चाहिए। तो क्या इस्लामिक आतंकी संगठन, हाफिज सईद जैसे आतंकी सरगना और चीन की टोन (बातचीत का ढंग) एक जैसा नहीं है। दूसरा यह कि अमेरिका के लिए कहा जाता है कि जब भी उसकी अर्थव्यवस्था लड़खड़ाती है वह युद्ध करता है। क्या ऐसा चीन नहीं कर सकता जबकि उसके प्रोडक्ट (जिनकी क्वालिटी बेहद ही खराब होती है) को पूरी दुनिया में बैन किया जा रहा है। चीन और पाकिस्तान की मंशा एक जैसी है। दोनों रूस को अपना दुश्मन मानते थे और उसके टूटने पर दोनों ही खुशियाँ मनाते हैं और उसी उदाहरण को भारत जैसे देश के साथ दोहराने का ख्वाब देखते हैं।
चीन बहुत तेज है। वो अरुणाचल प्रदेश पर इसलिए नजर गड़ाए रहता है क्योंकि वहाँ से भारत के उस हिस्से तक आसानी से पहुँचा जा सकता है जहाँ से नॉर्थ-ईस्ट के सेवन सिस्टर्स कहे जाने वाले राज्य अलग होते हैं। उस हिस्से को चिकन नेक या बॉटल नेक (चूजे या बॉटल की गर्दन) कहा जाता है। वहाँ से वो सातों राज्य शेष भारत से अलग होते हैं। वहाँ से हमला कर वो भारत के सात राज्यों को तो एक ही झटके में अलग कर सकता है जैसे भारत ने पाकिस्तान से अलग बने पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) को 1971 में एक ही झटके से अलग कर दिया था। भारत ने हाल ही में अरुणाचल प्रदेश और तेजपुर (असम) में सुखोई और अपनी टैंक स्क्वेड्रन की तैनाती की है। वो इसी संभावित हमले से निपटने के लिए है। चीन उत्तर पूर्व में हमारी गर्दन दबोचने के प्रयास में है और नक्सलवाद से जूझ रहे उन इलाकों में उसकी मंशा पूरी करने में बांग्लादेश भी उसका साथ दे सकता है। (वो बीएसएफ जवान की डंडे पर लटकी हुई लाश वाली तस्वीर तो याद है ना आपको जो टाइम्स आफ इंडिया में प्रथम पेज पर छपी थी और जिसने हमारे साथ-साथ भारत सरकार की भी नींद उड़ाकर रख दी थी, टुच्चे बांग्लादेशियों के दुस्साहस पर)
दूसरे, मैंने ऊपर कहा था कि अमेरिका जब भी अर्थ संकट में फँसता है तो वह युद्ध करता है। ये इस तरह से समझा जा सकता है कि अमेरिका दुनिया को एक तो यह याद दिलाता रहता है कि तुम लोग भी युद्ध में फँस सकते हो इसलिए तैयार रहो। सनद रहे कि अमेरिका की जीडीपी का सबसे बड़ा हिस्सा उसके हथियार बेचने से आता है। आईटी-वाईटी सब गईं किनारे...। जिस अमेरिकी हारपून मिसाइल की पाकिस्तान को लेकर आजकल चर्चा चल रही है वो एक जरा सी मिसाइल 70 लाख अमेरिकी डॉलर में आती है। ऐसी 165 मिसाइलों की खेप पाकिस्तान ने अमेरिका से खरीदी थीं। ऐसे लाखों उपकरण वो हर वर्ष विकासशील और विकसित देशों को बेच देता है। उसके सबसे बड़े खरीदारों में सऊदी अरब भी शामिल है। कुल मिलाकर अमेरिका दुनिया में हथियारों का सबसे बड़ा सप्लायर है, उसके बाद रूस का और फिर चीन का नंबर आता है। लेकिन चीन बहुत जल्दी रूस को इसमें पीछे छोड़ देगा क्योंकि रूसी हथियारों की अब वो इज्जत नहीं रही जो शीत युद्ध के समय थी। इसलिए चीन अमेरिकी स्टाइल में चलते हुए सभी इस्लामिक देशों को हथियार सप्लाई करता है और युद्ध का महौल बनाए रखता है। जब भी भारत की ओर से चीन के व्यापार के खिलाफ कोई स्टेटमेंट जारी होता है चीन तुरंत सीमा विवाद को हवा देता है और कूटनीतिक सफलता पाते हुए भारत को पीछे हटने पर मजबूर कर देता है।
चीन हमेशा कुछ दूसरी ही बात समझता है। वो सोचता है कि अमेरिका उसे कुछ देशों के बीच कस रहा है जिन्हें वो कैंकड़े का पंजा कहता है। चीन का तर्क है कि जापान, भारत, ताइवान, दक्षिण कोरिया से वह घिरा हुआ है और आस्ट्रेलिया को भी अमेरिका उसके खिलाफ इस्तेमाल करता है। ऐसे में उसका सतर्क रहना जरूरी है जबकि चीन अगर थोड़ी समझदारी दिखाए तो सामरिक विशेषज्ञों के अनुसार अगर भारत, चीन और रूस मिल जाएँ तो अमेरिका का वर्चस्व दुनिया से खत्म कर सकते हैं। लेकिन हमारा स्वाभाविक शत्रु चीन यह बात कभी नहीं समझेगा और वही करेगा जिसे वह सही मानता है।
भारत के पास ज्यादातर हथियार रूस से खरीदे हुए हैं, अब वो अमेरिका और इसराइल के हथियार खरीद रहा है लेकिन चीन खुद ही हथियार बनाता है और उन्हें विकसित कर अन्य देशों को भी बेचता है। यहाँ सनद रहे कि चीन के पास दुनिया की सबसे बड़ी सेना है, हथियारों के मामले में चीन आत्मनिर्भर है और भारत पर भारी पड़ता है। अमेरिकी स्टाइल में वो अपने दुश्मन (फिलहाल नंबर एक पर अमेरिका और दूसरे नंबर पर भारत आता है) को शत्रुओं से घिरा रखना चाहता है लेकिन अमेरिका उससे काफी दूर है इसलिए फिलहाल उसका कांस्ट्रेशन भारत पर ही है। अमेरिका के लिए तो उसने आईसीबीएम (इंटर कॉन्टिनेंटल बैलियास्टिक मिसाइल) बना रखी हैं जो किसी भी महाद्वीप के किसी भी देश को अपना शिकार बना सकती हैं और वे परमाणु हथियार भी ले जा सकती हैं। ऐसी मिसाइलों की मारक क्षमता 5000 से 12000 किलोमीटर तक होती है। भारत भी अग्नि का अगला स्वरूप आईसीबीएम के रूप में ही बना रहा है।
दोस्तों, चाणक्य ने कहा था कि जिस देश की सीमा आपसे मिलती हो वो आपका स्वाभाविक शत्रु होता है। पूरे विश्व में अमेरिका-कनाडा को छोड़ दिया जाए तो सीमा मिले देशों की दोस्ती की कोई मिसाल नहीं मिलती। कोई ज्यादा तीव्र शत्रु है तो कोई कम तीव्र है। लेकिन शत्रु होना तय है। दुर्भाग्य से हम सभी ओर से शत्रुओं से घिरे हुए हैं। प्रकृति ने हमारी रक्षा के लिए हिंद महासागर और अरब सागर को तीन ओर रखा था और एक ओर हिमालय था लेकिन हमारा सबसे शक्तिशाली शत्रु चीन फिलहाल हमें हिमालय पर चढ़कर ही घूर रहा है।
(मित्रों इस विषय पर आगे जो कुछ मेरे हाथ लगेगा मैं उसे निश्चित ही आप लोगों से शेयर करता रहूँगा)
आपका ही सचिन...।