November 29, 2008

आखिर चाहते क्या हैं ये जिहादी?????- भाग 2





दोस्तों, इसी विषय पर मैंने अपना पहला आलेख लिखा था जो इसी लेख के नीचे है,या फिर आप उसे मेरे होमपेज पर देख सकते हैं। पेश है इसका दूसरा दूसरा और अंतिम भाग...
......अभी पिछले कुछ दिनों से विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और अखबारों में मुंबई की घटना के साथ-साथ इससे पहले भारत में हुए विस्फोटों के बारे में पढ़ रहा हूँ। इनमें से एक आलेख में सटीक टिप्पणी की गई थी कि भारत आतंकवाद का इस स्तर पर भुगतभोगी पहला देश है क्योंकि बाकी जो देश इस प्रकार की मौतों का शिकार होते रहे हैं वे गृहयुद्ध की सी स्थिति या हालात वाले हैं। मसलन कई अफ्रीकी देश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, इराक वगैरह। तो दोस्तों, इसी के आगे यह भी लिखा हुआ था कि भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जिसके राजनीतिक दल आतंकवाद के खिलाफ एकमत नहीं हैं और अलग-अलग टुकड़ों में बयान देते हैं। हालांकि हम सेक्युलर स्टेट हैं लेकिन इसका खामियाजा हमारे देश की जनता को उठाना पड़ रहा है।
तो दोस्तों बात फिर वहीं से शुरू करता हूँ जहाँ से खत्म की थी। कि कांग्रेस आतंकवाद के खिलाफ माइल्ड है, जैसा कि दिख रहा है और जैसा की जम्मू कश्मीर में उसने प्रदर्शित किया। वहाँ उस बदमाश और देशद्रोही मुफ्ती मोहम्मद सईद और उसकी लड़की रूबीना सईद (जो १३ आतंकवादियों की कीमत पर छूटी थी, आप लोगों को याद होगा) से कांग्रेस ने हाथ मिलाया और अमरनाथ श्राइन बोर्ड वाले मामले पर इसी कांग्रेस ने उन देशद्रोहियों से पटखनी खा ली और जम्मू को आग में झोंका, इंदौर जैसे शहरों में दंगे करवाए जिसमें १० लोग मारे गए। तो साहब कांग्रेस को लगता है कि अगर वो आतंकवादियों के खिलाफ बोलेगी तो इस देश के मुसलमान बुरा मान जाएँगे। भई वाह, यानी कांग्रेस यह साबित करने पर लगी हुई है कि इस देश का पूरा मुसलमान आतंकवाद के साथ है। क्या कांग्रेसी नेताओं को नहीं पता कि जब-जब इस प्रकार के विस्फोट या आतंकी हमले होते हैं तो मुख्य समाज में रहने वाले मुख्य धारा के मुस्लिम सबसे अधिक शर्मिंदगी महसूस करते हैं क्योंकि उन्हें पता रहता है कि उनका आतंकवाद से कोई वास्ता नहीं है फिर भी लोग उनको कटघरे में खड़ा करने से बाज नहीं आएँगे। इसलिए अहमदाबाद और जयपुर में विस्फोटों के बाद इस मुस्लिम संगठन ही विरोध करने के लिए सबसे पहले आगे आए। मुंबई आतंकी हमले के बाद भी ऐसा ही हुआ और इस बार तो पाकिस्तान तक में आतंकवाद के विरोध में प्रदर्शन हुए जिसमें मुंबई हमले को उठाया गया था।
तो कांग्रेस को समझना चाहिए कि उन्होंने एक समाज (मुस्लिम) की भारत में ऐसी-तैसी कर दी, उन्हें शिक्षा और सरकारी नौकरियों से दूर करके रखा, उन्हें निचले स्तर पर ला दिया, उनसे भाजपा का डर दिखा-दिखाकर लगातार वोट झटके और इसका दोष वह भाजपा पर मढ़ती रहती है। जबकि आजादी के बाद ६० में से ५० साल तो राज इस देश पर कांग्रेस का ही रहा है जबकि भाजपा सिर्फ साल सत्ता में रही है। तो कांग्रेस सच्चर समिति की रिपोर्ट आगे करके इस देश के मुस्लिमों की हमदर्द बन रही है जबकि उसने इस समाज का सबसे अधिक नुकसान किया है। पिछले ६० साल से लगातार मुस्लिम इस पार्टी को वोट देते रहे हैं, सिर्फ इस डर से कि कहीं भाजपा टाइप पार्टियाँ सत्ता में नहीं जाएँ....तो कोई कांग्रेस से पूछता क्यों नहीं है कि उन्होंने मुस्लिमों के इस विश्वास के बदले उन्हें वापसी में क्या दिया..............कुछ नहीं।
कांग्रेस आतंकवाद की आलोचना ना करके मुस्लिमों का नुकसान करती है क्योंकि देश के सभी मुस्लिम आतंकवाद के साथ नहीं हैं, तो फिर ऐसा कांग्रेस को क्यों लग रहा है। तो कांग्रेस को चाहिए कि वो अपने बुद्धि कौशल का सही उपयोग करे। ऐसा इसलिए कह रहा हूँ कि इस बुद्धि कौशल का हाल ही में उसने अपनी सरकार बचाने के लिए उपयोग किया है (?????) लेकिन वो आतंकवाद के खात्मे के लिए ऐसा क्यों नहीं कर रही। हालांकि इस बार संसद में भाजपा ने भी दिखा दिया कि उसकी पार्टी में भी चोर और मक्कारों की कमी नहीं है लेकिन एक ऐसे मुद्दे पर तो इन दोनों पार्टियों के कपटी एकमत हो ही सकते हैं कि देश की जनता को इन आतंकी गतिविधियों से बचाया जाए। कांग्रेस और भाजपा को अपनी सत्ता की भूख एक तरफ रखकर ही इस विषय पर सोचना होगा नहीं तो इकोनॉमिक रिफार्म्स क्या कर लेंगे, तब जब विदेशी कंपनियाँ इस देश की खतरनाक होती स्थिति में यहाँ कदम रखने से ही मना कर देंगी। हमारे राजनेताओं को शायद अभी भी इस विषय की गंभीरता समझ नहीं रही है। भारत के ये ()पूत नेता इस महान देश का क्या बंटाधार करेंगे ये तो अभी से नहीं कहा जा सकता लेकिन इतना तय है कि राजनीति के इस काले तवे पर वोटों की सफेद रोटी सेंकने की इसी प्रकार कोशिशें की जाती रहीं तो विश्व में महाशक्ति बनने का हमारा ख्वाब कभी पूरा नहीं हो पाएगा और यही इस देश में रहने वाले जिहादी चाहते हैं जो उसी थाली में छेद कर रहे हैं जो उन्हें खाना दे रही है।
आपका ही सचिन........

आखिर चाहते क्या हैं ये जिहादी?????- भाग 1



हमारे देश की जान मुंबई ६० घंटे तक बंधक बनी रही। इस हमले में १७५ लोग मरे गए और ३०० से ज्यादा घायल हो गए, इससे पहले बंगलौर और बाद में अहमदाबाद में बम विस्फोट हुए। अभी गए मई में जयपुर जैसे शांत, धीर-गंभीर और ऐतिहासिक नगर में भी बम धमाके हुए थे जिनमें ६८ लोगों की जानें गई थीं। इसके बाद देश की सिलीकॉन वैली कहे जाने वाले नगर बैंगलौर पर आतंकवादियों ने निशाना साधा था और फिर अपनी व्यापारिक जीवटता के लिए मशहूर गुजरात की राजधानी अहमदाबाद को निशाना बनाया। आतंकवादियों ने इस बार वहाँ के सिविल अस्पताल को भी निशाना बनाया। अस्पताल में हुए धमाके में २३ लोग एक ही झटके में मारे गए। मुंबई में होटल में खाना खा रहे, कॉफी शॉप में कॉफी पी रहे और स्टेशनों पर ट्रेन का इंतजार कर रहे बेकसूर लोगों को निशाना बनाया गया। वाह क्या शैली है आतंकवादियों की और उन तथाकथित जिहादियों की जो इस्लाम के नाम पर ऐसा वहशियाना खेल खेल रहे हैं। उन्होंने उस जगहों को भी नहीं बक्शा जहाँ जो लोग ठीक होने की, अपने जीवन को बचाए रखने, आराम करने की या नए सफर को शुरू करने की कामना के साथ आते हैं।
शायद इस देश के मुस्लिम मेरी बातों से सहमत होंगे, कि मैं इन जिहादियों को हिजड़ा मानता हूँ। ये इस्लाम के नाम पर इस देश के सीधे-सच्चे नागरिकों पर कहर बरपा रहे हैं और एक धर्म विशेष को इतना बदनाम किए दे रहे हैं कि आम समाज में उस धर्म के लोगों को जब-तब ये सफाई देनी पड़ती रहती है कि उनका आतंकवाद से कोई संबंध नहीं हैं। मैं उन जिहादियों की तरह इस देश की सरकार और उसमें बैठे नेताओं को भी हिजड़ा मानता हूँ जो हर वहिशियाना घटना के बाद ये कहकर चुप रह जाते हैं कि आतंकवाद को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। भई वाह, क्या कदम उठाया है इन नेताओं ने आतंकवाद के खिलाफ। इन नेताओं के घर का आज तक कोई सदस्य आतंकवाद की सूली पर चढ़ा नहीं है, नहीं तो ये लोग ऐसे छक्कों की तरह बातें नहीं करते।
एक रिपोर्ट के मुताबिक अभी तक सिर्फ जम्मू-कश्मीर में ही आतंकवाद की सूली पर एक लाख से ज्यादा लोग चढ़ककर अपनी जान गंवा चुके हैं। इनमें से लगभग ३० हजार तो सुरक्षा बलों के जवान हैं। इतने जवान तो भारत ने अभी तक लड़े चारों युद्धों में भी नहीं खोए हैं। इसी प्रकार देश के अन्य हिस्सों में भी पिछले दशक में लगभग ५००० लोग आतंकवाद का शिकार होकर काल के गाल में समा गए हैं। भारत सरकार और क्या बुरा देखना चाहती है। वहीं दूसरी ओर अमेरिका है, जिसकी दो इमारतें गिरी, ३५०० लोग मरे कि वो पगला गया। उसने अफगानिस्तान में तालिबानों की सारी खंदकें खोद मारीं और उन्हें बिलों में से चूहों की तरह निकाल-निकाल कर मारा। फिर वो इराक पर चढ़ बैठा, अब ईरान की तैयारी कर रहा है। पिछले एक दशक में जो मुस्लिम राष्ट्र अमेरिका को इराक या ईरान की शह पर आँखें दिखाते थे वो अब चुप हैं क्योंकि उन्होंने देख लिया है कि अमेरिका के ३००० लोग मरे तो उसने बदले में इराक और अफगानिस्तान में १५ लाख लोग मार दिए। अब लड़ाई सिर्फ ईरान और अमेरिका के बीच की रह गई है। यहाँ अमेरिका के पक्ष की बात नहीं हो रही है। बात हो रही है तुरत-फुरत कार्रवाई करने की। हमारे देश की जनसंख्या ज्यादा है तो इसका यह मतलब तो नहीं कि कोई भी यहाँ मारा जाता रहे और हम सिर्फ अफसोस जताकर रह जाएँ। इस देश की एक करोड़ ११ लाख की संख्या वाली सेना और सुरक्षा बल क्या कर रहे हैं जो चीन के बाद पूरे विश्व में सबसे ज्यादा हैं। इस सेना का वार्षिक बजट एक लाख करोड़ है और इसके पास एटम बम तथा हाइड्रोजन बम हैं। अगर अभियान चलाकर यह सोच लिया जाए कि इन आतंकवादियों को ढूँढकर सरेराह, खुले चौराहे पर गोली मार दी जाएगी या उनके समस्य स्त्रोतों को उड़ा दिया जाएगा तो कौन है जो फिर इस तरह की हरकत करेगा?????......... लेकिन ये हम भी जानते हैं कि ऐसा हो नहीं पाएगा, आतंकी पकड़े भी जाएँगे तो उनपर मुकदमा चलेगा और या तो वे छूट जाएँगे या फिर हमारे देश की रोटियाँ तोड़ेंगे। ज्यादा बुरा हुआ तो ठीक उसी तरह छूट जाएँगे जैसे भारत का आईसी ८१४ विमान काबुल में अपह्रत करके ले जाया गया था और देश को जिन तीन आतंकियों को छोड़ना पड़ा वो आजतक पूरी दुनिया में कहर ढहा रहे हैं। ना तो वो पकड़े गए और ना ही उन्हें छुड़ाने वाले और उस जहाज को बंधक बनाने वाले वो छह अन्य आतंकी जिनके लिए भारत कहता रहा है कि वो पाकिस्तान में रह रहे हैं।
हमारे देश का रक्षा बजट इस वर्ष एक लाख ५ हजार करोड़ का है। यह रकम कितनी है यह बताने की जरूरत नहीं लेकिन यह रुपया है तो हमारी यानी जनता की जेब का ही ना????........ तो क्यों ना हम सरकार से हिसाब पूछें कि जब इस देश की सेना और सुरक्षा बल आम नागरिकों की रक्षा करने में समर्थ ही नहीं हैं तो क्या फायदा इतनी विशालकाय सेना का पेट भरने से। और अगर आप उस सेना को मौका नहीं दे रहे हो तो दो लेकिन देश के नागरिकों को मरने से तो रोको। अब बाहर से हमले नहीं होने वाले, पहले देश के अंदर से हो रहे हमलों से तो हम बचें। जैसे कहा जा रहा है कि मुंबई में आतंकियों की मदद कई स्थानीय लोगों ने ही की है।
दोस्तों, मन उद्वेलित है कि क्या हम लोकतंत्र के काबिल नहीं हैं। अगर हैं तो हम क्यों अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी या इटली जैसे अनुशासित नहीं है और अगर यहाँ वोटतंत्र हावी है तो क्यों ना यहाँ चीन जैसा तानाशाही तंत्र स्थापित कर दिया जाए जो वोटों की नहीं फिर सिर्फ और सिर्फ अनुशासन की बात करेगा। इस देश में इंदिरा गाँधी के हत्यारों की फाँसी लगभग २० साल बाद हुई। संसद पर हमले का मुख्य आरोपी हमारे यहाँ की रोटी अभी तक तोड़ रहा है। क्या हम हमेशा पॉपुलर डिसीजन लेने के चक्कर में ही लगे रहेंगे। जब तक हम आतंकवादियों के मन में खौफ नहीं भरेंगे तब तक उन्हें शह मिलती रहेगी।
इस कांग्रेसी सरकार को देखिए, टाडा बनाया जो बाद में हटा दिया, भाजपा ने पोटा बनाया तो उसे भी हटा दिया। अब बैठो हाथ पर हाथ धरे। आतंकवादी ई-मेल करते हैं और बम से कुछ लोगों को उड़ा देते हैं। आपको याद आया कि अभी तक हुई बम विस्फोटों की घटनाओं के बाद कितने लोग पकड़े गए या कितनों को सजा हुई। हमें बीमारी है भूलने की। इतनी भयानक बातें हम भूल जाते हैं। हमें उन मासूम परिवारों की सिसकियाँ सुनाई ही नहीं देतीं जिन्होंने अपने सदस्य इन गैर जरूरी विस्फोटों में खोए हैं। क्या पता ये इंडियन मुजाहिदीन और हैदराबाद डेक्कन मुजाहिदीन सरीखे आतंकी संगठन इन विस्फोटों को करके और चंद लोगों की जानें लेकर कैसे इस संसार में इस्लाम को स्थापित कर पाएँगे। और मान भी लेते हैं कि अगर उन्होंने ऐसा कर भी लिया तो वो संसार सिर्फ आतंकवादियों का ही होकर रह जाएगा और उसमें इस्लाम को मानने वाले सच्चे लोग भी नहीं रह पाएँगे। लाशों पर सजा संसार सुखी लोगों के लिए नहीं हो सकता।
आपका ही सचिन......।

November 28, 2008

भारत को रूस की तरह तोड़ना चाहते हैं आतंकी



आज आप दोस्तों को फिर कुछ महत्वपूर्ण जानकारियाँ देना चाहता हूँ। मुंबई में हुई आतंकी घटनाओँ के बारे में हालांकि देशी-विदेशी मीडिया काफी महत्वपूर्ण जानकारियाँ उपलब्ध करवा रहा है लेकिन मैं इसे कुछ अलग हटकर देख रहा हूँ। या कहें कि अपने हिसाब से एंगल निकाल रहा हूँ। नई खबर आतंकियों की मंशा को जाहिर करती हैं। ये निश्चित ही भविष्य में आपके और हमारे ऊपर गहरा असर डालेंगी। आपके साथ मेरा भी रोम-रोम जल रहा है कि इस्लामिक जिहादी जिन तीन धर्मों ईसाईयों, यहूदियों और हिन्दुओं को अपना विरोधी मानते हैं उनमें हम ही सबसे अधिक कमजोर क्यों हैं...?? और शायद इसलिए ही हमें बार-बार निशाना बनाया जा रहा है, तो मैं शुरू करता हूँ..।
दोस्तों, मुंबई में हुए आतंकी हमले की जिम्मेदारी डेक्कन मुजाहिदीन नामक एक आतंकी संगठन ने ली है। ये लश्कर-ए-तोएबा का ही अन्य रूप है। डेक्कन पाकिस्तान स्थित हैदराबाद का निजाम के समय का नाम है। तो इस संगठन की जरा भाषा देखिए.....

- भारत सरकार मुसलमानों पर अन्याय बंद करे। उनके छीने हुए राज्य वापस करे। अब हम अन्याय नहीं सहेंगे। हमें पता है भारत सरकार इस चेतावनी को गंभीरता से नहीं लेगी, इसलिए यह चेतावनी सिर्फ चेतावनी नहीं रहेगी। इसका जीता-जागता उदाहरण आप मुंबई में देख चुके हैं। हिन्दू यह ना समझें कि एटीएस और सेना बहुत आधुनिक हथियारों से लैस है और बहादुर भी। इसकी बहादुरी का अंदाजा आप नक्सल प्रभावित हिस्सों में देख रहे हैं। यह हमला १९४७ में भारत की आजादी के बाद से ढाए गए जुल्मों का बदला है। अब कोई क्रिया नहीं होगी, सिर्फ प्रतिक्रिया होगी और बार-बार होगी। हमारी हर जगह नजर है और हम बदला लेने के लिए सही वक्त का इंतजार कर रहे हैं। हाल ही में अंसारनगर, मोगरापाड़ा आदि इलाकों में छापा मारकर मुसलमानों को परेशान किया गया। इसकी दोषी मुंबई एटीएस, विलासराव देशमुख और आरआर पाटील हैं। याद रखो तुम दोनों की तुम हमारी हिटलिस्ट में हो और पूरी गंभीरता से हो। (कथित आतंकी संगठन डेक्कन मुजाहिदीन का मीडिया को भेजा ई-मेल)

रूस की तरह बाँट देंगे-पाकिस्तान से अपने खौफनाक कामों को अंजाम दे रहा लश्कर-ए-तोइबा का प्रमुख हाफिज सईद अपनी शुक्रवार की नमाज में भारत व पश्चिम विरोधी माहौल बनाने के लिए जाना जाता है। इसी क्रम में १३ अक्टूबर को उसने कहा था कि भारत केवल जेहाद की भाषा समझता है। भारत ने चिनाब नदी पर बगलिहार डैम बना लिया है और पाकिस्तान भारत के इन कामों को रोक नहीं पाता। लेकिन हमारे जिहाद को रोका नहीं जा सकता। अगर हमें थोड़ी और सहायता मिल गई तो हम भारत को के रूस जैसे टुकड़े कर देंगे।

अब हमारे देश के बारे में अमेरिका की राय

न्यूयार्क। मुंबई आतंकी हमले के लिए अमेरिका के प्रतिष्ठित अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल ने संप्रग सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। अखबार ने अपने संपादकीय में लिखा है कि संप्रग सरकार ने आगामी लोकसभा चुनावों में लाभ लेने के लिए आतंकवाद से निपटने के प्रभावशील कदम नहीं उठाए। इसी ढिलाई की कीमत मुंबई को चुकानी पड़ी। अखबार ने संपादकीय में लिखा है, मुंबई कई आतंकी कार्रवाईयों को सहन कर चुकी है। बुधवार की घटना में शहर के १० स्थानों पर आतंकी हमला हुआ। इसके बावजूद सरकार ने सही कदम उठाने में देर लगाई। अखबार ने हमले की तस्वीरों व खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया है। प्रधानमंत्री डॉ। मनमोहन सिंह के संदेश - हम इस हमले का मुंहतोड़ जवाब देंगे- पर अखबार ने कहा है कि पिछले पाँच वर्षों से लेकर अभी तक संप्रग सरकार में शामिल दल आतंकवाद से सख्ती से निपटने की बातें करके आपस में झगड़ रहे हैं। लेकिन कोई सख्त उपाय नहीं किए गए। भारत हमेशा से ही आतंकी कार्रवाईयों के लिए टॉप लिस्ट में रहता है क्योंकि यहाँ किसी भी घटना को अंजाम देना आसान होता है। देश में कई आतंकी हमलों के बावजूद ऐसा कोई तंत्र नहीं बना, जिससे ऐसे हमलों को रोका जा सके।
दोस्तों, देखा आपने....दुनिया हमें कितने हल्के से ले रही है। कुछ टुच्चे भाड़े के टट्टुओं को भेजकर लश्कर-ए-तोएबा ने पूरी दुनिया को यह संदेश दे दिया कि भारत कितना हल्का-फुल्का देश है और अब अमेरिका भी हमारे देश की सरकार की हंसी उड़ा रहा है। जिन आतंकियों ने अमेरिका और ब्रिटेन पर एक बार हमला करने के बाद दूसरी बार हमला करने की हिम्मत नहीं दिखाई वो हमारे देश को रूस की तरह तोड़ना चाह रहे हैं। धर्म की बहुलता के आधार पर उसके टुकड़े करना चाह रहे हैं और भारत सरकार वोट की राजनीति में पड़कर इस ओर जरा भी ध्यान नहीं दे रही है। क्या ये नेता लोग भूल गए कि ६० साल पहले हम १००० सालों की गुलामी के बाद आजाद हुए हैं। क्या ये नेता उस आजादी का मोल नहीं पहचान रहे हैं। जिन आतंकियों ने ताज होटल पर कब्जा किया वो २०-२२ साल के लौंडे थे जिनकी अभी दाढ़ी-मूछें भी नहीं उगी थीं और वो रुपए की खातिर यहाँ मरने आ गए थे। ताज में एटीएस के एक कर्मचारी ने उन्हें रुपयों के लिए लड़ते हुए भी सुना था। वो कोई इस्लाम के लिए लड़ने नहीं आए थे बस कुछ रुपयों के लिए बिके हुए छोरे थे। उनकी औकात नहीं कि वो हमारे देश को तोड़ सकें। लेकिन हाँ उन्होंने पूरे विश्व का ध्यान जरूर अपनी ओर खींच लिया।
दूसरे, भारत में रह रहे सारे मुसलमानों के लिए भी ये नहीं कहा जा सकता कि वो उन जलील आतंकियों के साथ हैं, लेकिन फिर भी देश की सरकार ऐसा क्यों सोच रही है और आतंक के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने से क्यों बच रही है..?? इन देश के नेताओं को यह याद रखना चाहिए कि अगर हमारे देश के साथ कुछ गड़बड़ हुई तो उन्हें चुन-चुनकर मारा जाएगा, फिर भले ही वो किसी भी पार्टी के क्यों ना हों....???? आजादी और ऐसा देश हर जन्म में नहीं मिलता, हमें इसे सहेज के रखना चाहिए, सीने से लगाकर रखना चाहिए....।
आपका ही सचिन.....।

आतंक का एक जवाब यह भी,बीस साल तक चुन-चुनकर मारा आतंकियों को...


ओलिंपिक के इतिहास की सबसे दुर्भाग्यपूर्ण घटना है म्यूनिख हत्याकांड। 1972 में वेस्ट जर्मनी के म्यूनिख शहर में आयोजित समर ओलिंपिक के दौरान यह घटना घटी। इस जघन्य हत्याकांड में 11 इजराइली खिलाड़ी और कोचों को मौत के घाट उतार दिया गया था। इसके लिए यासिर अराफात के संगठन ' फतह ' से संबंधित संगठन ' ब्लैक सेपटेम्बर ' को जिम्मेदार माना गया था।


इजराइली टीम पर हमला- 1972 के म्यूनिख ओलिंपिक के दूसरे हफ्ते के दौरान 5 सितंबर को सुबह के 4:30 बजे ( लोकल टाइम के अनुसार ) जब ऐथलीट्स सो रहे थे , तभी उन पर अचानक हमला हुआ। ' ब्लैक सेपटेम्बर ' के 8 नकाबपोश हमलावर एके 47, पिस्टल्स और ग्रेनेड से लैस होकर इजराइली टीम के अपार्टमंट में घुस गए। वहां खून खराबा करने के बाद ये 9 लोगों को बंधक बनाकर ले गए। किड्नैपर्स की डिमांड- ये हमलावर फिलिस्तानी फिदाइन के सदस्य थे , जो लेबनान , सीरिया और जॉर्डन के रिफ्यूजी कैम्प से थे। इनकी डिमांड थी कि इजराइल की जेल में बंद दो जर्मन आतंकवादियों समेत 234 फिलिस्तानी और गैर अरबी लोगों को रिहा किया जाए और उन्हें निकलने का सुरक्षित रास्ता दिया जाए।


घटनाक्रम- किड्नैपर्स ने डिमांड रखने के बाद अपनी संकल्पता को दिखाने के लिए एक बंधक की लाश को बाहर फेंका। इजराइल ने उनसे निगोशिएशन करने से इंकार कर दिया। जर्मनी के उस समय के राजनैतिक हालात बहुत क्रिटिकल हो गए थे , क्योंकि बंधक बने लोग यहूदी जो थे। जर्मन ऑथॉरटीज ने इजराइली स्पेशल फोर्स को जर्मनी में आने के प्रस्ताव को नकार दिया। जर्मन पुलिस ने रेस्क्यू ऑपरेशन को अंजाम दिया , लेकिन माना जाता है कि जर्मन पुलिस को पास होस्टेज क्राइसिस ऑपरेशस से निपटने की कोई स्पेशल ट्रेनिंग नहीं थी। म्यूनिख के अधिकारियों ने किड्नैपर्स के साथ सीधे नेगोशिएट करते हुए उन्हें कितना भी पैसा मांगने का ऑफर दिया , पर इस ऑफर के किड्नैपर्स ने एक सिरे से नकार दिया। इंटरनैशनल ओलिंपिक कमिटी ने भी इसे सुलझाने की कोशिश की , मगर उन्हें भी सफलता नहीं मिली। यद्यपि वहीं दूसरी ओर ओलिंपिक खेल तब तक चलते रहे , जब तक कि पहले ऐथलीट की मौत के 12 घंटे बीतने के बाल इंटरनैशनन ओलिंपिक कमिटी ने उसका सस्पेंशन नहीं किया। उधर , जर्मन पुलिस ने ओलिंपिक विलेज को घेर लिया था और आगे की कार्रवाई के आदेश का इंतजार कर रही थी। इसी बीच टीवी चैनल पर पुलिस ऐक्टिविटी को लाइव दिखा दिया गया। यह देखकर किड्नैपर्स ने दो बंधकों को और मारने की धमकी दी और इसी कारण पुलिस को वहां से हटना पड़ा।
निगोशिएशन के अनेक दौरों के बाद किड्नैपर्स ने काहिरा जाने के लिए ट्रांसपोर्टेशन की मांग की। उनकी मांग मानते हुए उन्हें दो हेलिकॉप्टरों के माध्यम से नाटो एयरबेस फर्सटनफल्डबर्क ले जाया गया , जहां से उन्हें कहीं बाहर जाना था। उनके पीछे जर्मन अधिकारी भी एक हेलिकॉप्टर में आ रहे थे। ऐसा इसलिए किया गया था क्योंकि जर्मन अधिकारियों ने यहां किड्नैपर्स पर धावा बोलने का प्लान बनाया था।


धावा बोलने की स्ट्रैटजी -जर्मन अधिकारियों ने छिपकर गोली चलाने वाले 5 शूटर्स को किड्नैपर्स पर घात लगाकर धावा बोलने के लिए तैयार किया। ये लोग एयरपोर्ट पर छिप गए। किड्नैपर्स के साथ हुई बातचीत के अनुसार वहां खड़े बोइंग 727 जेट को दो किड्नैपर्स चेक करेंगे। जबकि जर्मन अधिकारियों का प्लान था कि वह इन दोनों पर काबू करेंगे और इसी समय में शूटर्स बाकी किड्नैपर्स को मारेंगे। लेकिन इस प्लान में पुलिस ने थोड़ी लापरवाही बरती और वह हेलिकॉप्टरों में सवार किड्नैपर्स की सही संख्यी का पता नहीं लगा पाई। रात 10 : 30 बजे हेलिकॉप्टर्स लैंड हुए। उसमें से 4 पायलट और 6 किड्नैपर्स बाहर निकले। 4 किड्नैपर्स पायलट्स को गनपॉइंट पर लिए थे। दो किड्नैपर्स प्लेन को चेक करने के लिए आगे बढ़े , लेकिन उन्हें अहसास हो गया कि वह जर्मन अधिकारियों की किसी चाल में फंस रहे हैं। यही सोचकर वै दोनों फिदाइन वापस हेलिकॉप्टर की ओर भागे।
यह देखकर एक शूटर ने गोली चला दी। इसी बीच जर्मन अधिकारियों ने बाकी शूटर्स को भी फायरिंग का आदेश दिया। यह वाकया रात के 11 बजे हुआ था। इस गोलीबारी में पायलट्स को गनपॉइंट पर लिए 2 किड्नैपर्स मौके पर ही ढेर हो गए। इस सबसे हड़बड़ाकर 2 किड्नैपर्स ने 2 इजराइलों को मौत के घाट उतार दिया। फिर भी उन पर शिकंजा कसता जा रहा था। बचने का कोई मौका न देखते हुए एक किडनैपर ने बंधकों को शूट करना शुरू कर दिया। और एक किडनैपर ने कॉकपिट में ग्रेनेड फेंक दिया , जिस कारण हुए विस्फोट से हेलिकॉप्टर के अंदर घायल पड़े बंधकों की भी मौत हो गई। 5 किड्नैपर्स भी इस मुठभेड़ में मारे गए। जर्मन पुलिस के एक ऑफिसर की भी इस मुठभेड़ में शहादत हुई।
सालों चली इजराइली कार्रवाई
इस जघन्य घटना का बदला लेने के लिए इजराइल ने स्प्रिंग ऑफ यूथ और रैथ ऑफ गॉड नाम से दो ऑपरेशन शुरू किए। इन ऑपरेशंस के लिए अनेकों स्पेशल टीमें नियुक्त की गईं। 1973 में एहूद बराक की अगुवाई में पहले ऑपरेशन स्प्रिंग ऑफ यूथ के अंतर्गत फतह के चीफ मोहम्मद यूसुफ समेत अनेक आतंकवादियों का टारगिट बनाया गया। इसके बाद 1975 में भी यह ऑपरेशन चलता रहा । फिर 1979 में अली हसन को कार बम से मार गिराया गया। इजराइल के तमाम ऑपरेशन बीस साल तक दुनिया के अलग-अलग देशों में चलते रहे। 1992 में ऑपरेशन रैथ ऑफ गॉड के अंतर्गत फिलिस्तीनियों से एक बार फिर इजराइलों ने बदला लिया। वास्तव में, म्यूनिख हादसे ने इजराइल को इतना झंझोर के रख दिया था कि वह सालों इस हमले को अपने जेहन से मिटा नहीं पाया। यहां तक कि कहा जाता है कि एक अपहरणकर्ता जमाल अल आज भी अंडरग्राउंड है, जिसकी तलाश जारी है।
ओलिंपिक पर प्रभाव- 5 सितंबर को ओलिंपिक गेम्स पूरे दिन के लिए सस्पेंड रहे। ऐसा इससे पहले कभी नहीं हुआ था। अगले दिन ओलिंपिक स्टेडियम में मेमोरियल सभा आयोजित की गई , जिसमें 3,000 ऐथलीट्स और 80,000 दर्शकों ने हिस्सा लिया। लेकिन ‘ द गेम्स मस्ट गो ऑन ’ की सोच के साथ ओलिंपिक चलता रहा , मगर इजराइली खिलाड़ी वापस लौट गए। साथ ही , उस समय के स्टार ऑलिंपियन अमेरिकी मार्क स्पिट्ज भी ओलिंपिक को बीच में छोड़ कर चले गए। इसके अलावा , कुछ और टीमें और खिलाड़ी भी मारे गए ऐथलीट्स के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हुए ओलिंपिक से लौट गए। साभार- नवभारत टाइम्स

आतंकवादः अब तो सिर्फ भगवान का ही सहारा है...राजनीतिज्ञों का नहीं



मुंबई में जो कुछ आपने और हमने देखा उसे दोहराने की जरूरत नहीं है। इससे पहले दिल्ली में धमाके हो चुके हैं। उससे पहले वैसे ही धमाके जयपुर, बंगलोर, अहमदाबाद में हो चुके हैं तो यह उन धमाकों और हमलों की छठवीं कड़ी मानी जानी चाहिए। इन धमाकों पर मन बहुत उद्वेलित हुआ है। पहले के धमाकों पर भी हुआ था और मैंने जमकर देश की नीतियों को कोसा था लेकिन इस बार बात इन नेताओं की करेंगे।
कुछ महीने पहले दूरदर्शन चैनल देख रहा था, उस पर गुजरात दंगों पर एक कार्यक्रम आ रहा था, ये प्रोग्राम केन्द्र सरकार यानी कांग्रेस सरकार ने तैयार करवाया था जिसमें दंगों से पीड़ित मुस्लिम परिवारों को दिखाया गया था और बताया गया था कि हिन्दुओं और उनके वहशी नेता नरेन्द्र मोदी ने कैसे उन बेचारे मुसलमानों पर गुजरात में कहर बरपाया। सीधे-सीधे भाजपा पर तमाम आरोप लगाए जा रहे थे और बताया जा रहा था कि कांग्रेस जैसी धर्मनिरपेक्ष पार्टी दूसरी कोई और नहीं है। यह प्रोग्राम काफी लंबा था। तो साहब जैसा कि कांग्रेस पर अपना वोट बैंक बनाने-बचाने और मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप लगते रहते हैं ठीक उसी तर्ज पर मेरा यह भी कहना है कि हर कुछ महीने बाद जो भारत के सीधे लोगों पर आतंकवादियों द्वारा बम ठोंक दिए जाते हैं उनमें मरने वालों और पीड़ित परिवारों पर ये कांग्रेस सरकार कोई कार्यक्रम क्यों नहीं बनवाती। क्योंकि उस कार्यक्रम में मुस्लिम घेरे में आएंगे और कांग्रेस अपना वोट बैंक खोना नहीं चाहती। तो क्या कांग्रेस मानती है कि मुस्लिम आतंकवाद के साथ हैं और आतंकवाद पर वार करना यानी मुसलमानों की नाराजी मोल लेना है..............क्या कांग्रेस यह नहीं देख रही कि भारत का हर पाँचवा आदमी मुसलमान है और अहमदाबाद तथा दिल्ली के धमाकों में मुसलमान भी मारे गए हैं। और यह भी कि जिन दो कचरा बीनने वाले लड़कों ने दिल्ली में कचरों की पेटियों में बम होने की बात सार्वजनिक की और दूसरे कई लोगों की जानें बचाई वो दोनों लड़के भी मुसलमान हैं। तो क्या कांग्रेस पगला गई है जो इस तरह की बेहूदी बातें सोचते और करते हुए हमारे देश का बंटाधार करने पर तुली है।
आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं होता। वे मुसलमान तो कतई नहीं हैं, वो सिर्फ हरामी है। वो पाकिस्तान में बम विस्फोट कर रहे हैं जिनमें सिर्फ मुसलमान ही मारे जा रहे हैं। इराक में भी धमाके हो रहे हैं जिनमें अमेरिकियों के अलावा इराकी लोग (मुख्यतः इराकी सेना में शामिल मुसलमान) और शिया मुसलमान मर रहे हैं। तालीबानी पाकिस्तान के अलावा अफगानिस्तान में भी धमाके कर रहे हैं जिनमें सैंकड़ों-हजारों मुसलमान हलाक हो रहे हैं (ये अलग बात है कि उन्हें अमेरिका परस्त माना जा रहा है और इसलिए वे जिहादियों के निशाने पर हैं)।..... और अगर आतंकवादियों में दम है तो अमेरिका और ब्रिटेन में एक-एक आतंकी हमले करके वो क्यों चुप बैठ गए। क्या उनमें दम खत्म हो गई। नहीं ऐसा नहीं है, वो जानते हैं कि अमेरिका पर एक बड़ा हमला उन्होंने किया और उनके दो गढ़ (अफगानिस्तान और इराक) उनके हाथ से निकल गए। ब्रिटेन में किया तो कईयों को पकड़कर मार दिया गया। इसराइल में जो हो रहा है वो जगजाहिर है लेकिन हमरी तो वैसी स्थिति नहीं है ना। हम इसराइल की तरह मुसलमानों पर ना तो अत्याचार कर रहे हैं और ना ही उनकी जमीन हड़पे बैठे हैं तो फिर हम यानी भारत क्यों निशाने पर है। तो मतलब आतंकी मुसलमान नहीं है। वो सिर्फ आतंकी हैं। ये आतंकी जानते हैं कि इंडिया एक सॉफ्ट और माइल्ड स्टेट हैं यहाँ ११० करोड़ लोग रहते हैं और १००-५० के मरने का यहाँ कोई असर नहीं होता (होता भी हो तो शायद हमारी मोटी चमड़ी की सरकार पर तो बिल्कुल ही नहीं होता), इन विस्फोटों को करने से आतंकियों की बात भी बन जाती है और सरकार तो हमारी है ही ऐसी जो बयान देने के अलावा कोई और काम नहीं कर पाती। क्या हम इतने कमजोर हैं या फिर भावशून्य और संवेदनहीन बन गए हैं.....??????
संसद में हमले के आरोपी हमारे देश की रोटियाँ तोड़ रहे हैं। आखिर कब तक चलेगा ऐसा? क्या हम इन भ्रष्ट नेताओं के रहते कभी कोई काम नहीं कर पाएँगे। एक अदद आतंक विरोधी कानून नहीं ला पाएँगे, क्या किसी को फाँसी पर नहीं लटका पाएँगे, क्या किसी आतंकी का खुलेआम एनकाउंटर नहीं कर पाएँगे, क्या सिर्फ ऐसे ही अपने परिवारजनों और प्रियजनों को विस्फोटों में खोते रहेंगे, क्या हम कुछ नहीं कर पाएँगे.........हाय.... हमारे इस महान, सभ्य, सौम्य और शौय से भरपूर देश को यह क्या हो गया है कि हम कुछ अदने से लोगों से पिट रहे हैं, कुछ कर नहीं पा रहे हैं, क्या देश के नेता ऐसे होते हैं.......हम क्या करें क्योंकि ये सारे दोगले नेता हमारे ही तो चुने हुए हैं.........!!!!!!!!!भगवान अब तो सिर्फ आपका ही आसरा है।
आपका ही सचिन......।

November 27, 2008

अब नहीं देखा जाता भारतीयों को मरते



जैसा कि मैंने आप दोस्तों से कहा था कि हम सब लोगों की सुबह काली होने वाली है। गुरुवार का दिन सुबह से ही काला था। पाँच राज्यों में हो रहे चुनावों का तो उत्साह ही समाप्त हो गया। आखिर क्यों ना हो, जब हमारी चमड़ी के रंग के लोग मर रहे हों.....भले ही वो राज ठाकरे की जमीन पर रहने वाले मराठी मानुष ही क्यों ना हों....लेकिन वो देखेंगे कि उनके इस दुख में पूरा देश उनके साथ खड़ा है। लेकिन वो मनसे (महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना) के हिजड़े कार्यकर्ता कहाँ चले गए, जो ठेले और आटो रिक्शा वाले निहत्थे लोगों को तो पीटते थे लेकिन गोलियों की आवाजें सुनकर अपने बिलों में दुबक गए हैं। दोस्तों, मुंबई में देश का अभी तक का सबसे बड़ा आतंकी हमला हुआ है। आप लोगों ने काफी कुछ टीवी पर सुन लिया होगा, लेकिन फिर भी थोड़े में आतंकी १६ थे....२-२ के झुंड में आए थे, समुद्री रास्ते से आए थे, सुनियोजित आए थे और अब मरने वालों की संख्या १०० से ज्यादा और घायलों की संख्या ३०० से ज्यादा हो चुकी है। उन्होंने सब जगह निशाना साधा, होटलों में, रेलवे स्टेशनों में, कैफे में, सड़क पर...सब जगह। वे अभी जमे हुए हैं, पुलिस उनके साथ अभी भी उलझी हुई है। इस हमले में अभी तक १५ पुलिस के जवान शहीद हो गए जिनमें सात अधिकारी और तीन आईपीएस अधिकारी शामिल हैं। जो मुंबई एटीएस देश भर में घूम-घूमकर साधु-संतों को आतंकियों के नाम पर पकड़ रही थी उसके भी तीन अधिकारियों को आतंकियों ने शहीद कर दिया है। इनमें एटीएस प्रमुख हेमन्त करकरे और मुंबई पुलिस का जाबांज एनकाउंटर स्पेशलिस्ट विजय सालस्कर भी शामिल है। हालांकि मुझे इस बात का दुख है लेकिन सोच रहा हूँ कि ये लोग इतनी आसानी से कैसे मारे गए.....जैसे दिल्ली में मोहन चंद शर्मा भी इसी प्रकार मारे गए थे। या तो ये पुलिस अफसर सोच रहे थे कि वो साधु-संतों को ही गिरफ्तार करने जा रहे हैं और उन्होंने पर्याप्त सुरक्षा नहीं अपनाई, या फिर उन्हें अंतरराष्ट्रीय आतंकियों को पकड़ने की सही ट्रेनिंग नहीं मिली थी।....लेकिन वो वाकई के आतंकी थे भाई, कोई साधु-संत नहीं....इसलिए पहली फुरसत में ही इन अधिकारियों को मार दिया गया। वैसे मैं पूछना चाहता हूँ कि पूरे देश भर में आतंकियों की धरपकड़ के नाम पर घूम रही एटीएस को यह नहीं पता चला कि उसकी नाक के नीचे एक इतना बड़ा हमला होने वाला है जिसमें उसके प्रमुख को सड़क के बीचोंबीच मार दिया जाएगा।
दूसरी बात, मैं दैनिक भास्कर अखबार में नियमित छपने वाले जयप्रकाश चौकसे के कॉलम परदे के पीछे को पढ़ता रहता हूँ, चौकसे साहब को हमेशा ये शिकायत रहती है कि आतंकी देश के आम आदमी को ही शिकार बनाते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि हाईप्रोफाइल और रईस आदमियों को मारने के बाद पुलिस उनके पीछे हाथ धोकर पड़ जाएगी। तो मुझे ऐसा लगता है कि चौकसे साहब की बात इस बार आतंकियों को लग गई। उन्होंने मुंबई के दो सबसे महंगे होटलों ताज और ओबेरॉय को निशाना बनाया जहाँ करोड़पति और विदेशियों को छोड़कर कोई रुकता ही नहीं है। वहाँ आतंकियों ने कई लोग मारे। इस घटना से दहशत इतनी फैल गई है कि टीम इंग्लैण्ड ने तो घर का रास्ता ही पकड़ लिया। इस हमले से आने वाले कई दिनों तक देश का पर्यटन व्यवसाय और अन्य हाई प्रोफाइल आयोजन खटाई में पड़ जाएँगे।
तो मैं सुबह से टीवी पर चिपका हुआ यह सब देख रहा था, गुस्से से खौल रहा था, अपने देश के राजनीतिज्ञों पर। तभी खबर आई कि हमारे लचर प्रधानमंत्री ने उक्त मुद्दे पर कैबिनेट की बैठक ली है, जो खत्म हो चुकी है। उस बैठक की ब्रीफिंग करने हमारे दूसरे लचर राजनीतिज्ञ गृहमंत्री शिवराज पाटील मीडिया के सामने आए। हालांकि मैं काफी पढ़ा-लिखा हूँ (अपने मुंह से नहीं बोलना चाहिए) फिर भी मुझे पाटील साहब की कोई बात पल्ले नहीं पड़ी, जबकि मैं उन्हें काफी ध्यान से सुन रहा था। फिर धीरे से टीवी पर नीचे फ्लैश आया कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह नहीं रहे। सिंह साहब के नाम पर मुझे याद आया कि अगर संसद में कोई आरक्षण का बिल होता तो किसी भी सिंह ने ( मसलन अर्जुन सिंह ), उसे हाल ही पास कर दिया होता लेकिन आतंकवाद बिल के नाम पर इन लोगों की पेंट सरकती रहती है।
दोस्तों, अब नहीं देखा जाता अपने हमवतन भारतीयों को यूँ ही मरते हुए.....जब अमेरिका १०००० मील दूर से आकर पाकिस्तानी सीमा स्थित आतंकी शिविरों पर यह कहकर हमला कर सकता है कि वो उसके लिए खतरनाक हैं तो वो शिविर हमारे लिए तो बहुत पास हैं क्योंकि उनमें से ज्यादातर तो पाक अधिकृत काश्मीर में हैं, या पाकिस्तानी और अफगानी सीमा पर। तो क्या हम ऐसा कोई निर्णय नहीं ले सकते। और अब अगर कुछ नहीं हुआ तो दोस्तों, मैं गारंटी दे सकता हूँ कि अगला हमला इतना बड़ा होगा जिसमें कई हजार लोग मारे जाएँगे, क्योंकि आतंकियों को पता चल चुका है कि इस देश में भले ही संसद पर हमला करो या ट्रेन, होटल, बस और कैफे में.....सजा किसी को नहीं होनी है, फाँसी किसी को नहीं होनी है। सिर्फ राजनीति होनी है, और दोस्तों आतंकियों को राजनीति से जरा भी डर नहीं लगता।
आपका ही सचिन....।

November 26, 2008

कांग्रेसी राज में मरते भारतीय!

हमारे देश में एक बार फिर हड़कंप मच गया है। मुंबई के कोलाबा और अन्य स्थानों पर आतंकवादियों ने सिलसिलेवार फायरिंग की है। ये फायरिंग बुधवार २६ तारीख की रात १० बजे की गई, और एके-४७ से से की गई है। कुछ चैनल बता रहे हैं कि विस्फोट भी हुआ है। शुरुआती जानकारी में ४५ लोग घायल बताए जा रहे हैं। कल सुबह जब अखबार छपेंगे तब इनमें से कई मौत के मुंह में समा चुके होंगे।
कहाँ गई वो महाराष्ट्र की एटीएस..और वो राज ठाकरे भी, जो उत्तर भारतीयों ( या कहें अपने भाईयों) से ही लड़ने में अपना समय जाया कर रहा है। कहाँ गया कांग्रेस का वो र्निलज्ज और लिजलिजा गृहमंत्री शिवराज पाटील जो आतंकवादी घटना पर अपने बयान देने से पहले कई-कई जोड़ी कपड़े बदलता है। कहाँ गई वो कांग्रेस की केन्द्र सरकार जो आतंकवादी विरोधी कानून बनाने से जब-तब बचती रहती है और सोचती है कि इसे बनाने से देश का एक वर्ग विशेष नाराज हो जाएगा....। दोस्तों, इस देश को गर्त में जाते देख दुख हो रहा है। रात में आफिस में टीवी पर ये दुखद समाचार देखकर मन नहीं माना और सोचा कि आप लोगों से इसे शेयर कर लिया जाए। खून से रंगे हुए लोगों को देखकर भी हमारे देश की नपुंसक सरकार पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। वो बस राजनीति कर रही है, चुनावों में जीतने के लिए नए-नए पैंतरे दिखा रही है। उसे आम आदमी से कोई मतलब नहीं है। प्रधानमंत्री जी को तेल, डॉलर, मंदी, शेयर बाजार, कॉरपोरेट आदि से फुरसत नहीं मिलती है......गृहमंत्री किसी लायक नहीं हैं और होपलैस हैं। धर्म के नाम पर सब चल रहा है। कड़ा निर्णय लेने की हिम्मत हमारे राजनेताओं और राजनीतिक पार्टियों में नहीं है। हम उत्तर भारत में रहते हैं लेकिन मुंबई को झुलसते हुए देखकर हमें दुख होता है। इस आतंकवाद को देखकर दुख होता है। कल की सुबह आपके साथ हमारी भी काली होने वाली है। आपका ही सचिन...।

अपयश से बेहतर तो मृत्यु है

सनातन धर्म और साधु-संतों को बदनाम कर रही है कांग्रेस सरकार-

मित्रों, आज आपके लिए दो खबरें लेकर हाजिर हुआ हूँ। पहले इन्हें सुनाऊँगा, फिर अपनी बात आपके सामने रखूँगा। तो कृपया मेरे साथ बने रहिए....।
पहली ख़बर
नई दिल्ली। अपयश की तुलना में मृत्यु को बेहतर बताने संबंधी गीता के श्लोक का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी व्यक्ति को पर्याप्त कारण के बिना पुलिस गिरफ्तार या हिरासत में नहीं ले सकती। ऐसा करने पर गिरफ्तार हुए व्यक्ति की प्रतिष्ठा को गहरा नुकसान पहुँचता है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिसद्वय न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर और न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू की पीठ ने कहा कि गिरफ्तार करने के अधिकार की मौजूदगी एक चीज है और इसके क्रियान्वयन की न्यायोचितता काफी अलग है। पुलिस अधिकारी जब किसी को गिरफ्तार करे तो यह भी सुनिश्चित करे कि अदालत में वह उसकी गिरफ्तारी को सही साबित भी कर सकेगा। पुलिस कार्रवाई से किसी भी व्यक्ति के आत्मसम्मान को गंभीर क्षति हो सकती है।
दूसरी ख़बर
नई दिल्ली। भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा है कि कांग्रेस सरकार द्वारा भारत में साधु-संतों को बदनाम करने का जो अभियान चलाया जा रहा है उसपर वे चुप नहीं बैठेंगे। राजनाथ का कहना है कि जिनके दिशा-निर्देशों पर यह सब हो रहा है उनसे वे पूछना चाहते हैं कि आतंकवाद के नाम पर हिन्दुओं के आस्था के केन्द्रों को चोट पहुँचाने की जैसी कोशिश हो रही है ऐसा किसी दूसरे धर्म के धर्मगुरुओं के साथ करने की कोई जुर्रत कर सकता है॥?? इसके साथ ही राजनाथ ने भारतीय सेना को शामिल करते हुए कहा कि धर्म के साथ-साथ सेना के अधिकारियों को भी बदनाम किया जा रहा है। राजनाथ ने इतना सब कहने के बाद कड़े लेकिन भावुक अंदाज में कहा कि मेरा स्पष्ट मत है कि यदि कोई आतंकवादी घटना में शामिल है और उससे पूछताछ करनी है तो करो लेकिन बदनाम मत करो। राजनाथ ने भावुक अंदाज में कहा कि आतंकी वारदातों के लिए साधु-संतों पर शक किया जा रहा है। बहुत हो चुका, कब तक चुप्पी साधे रहें। उन्होंने केन्द्र सरकार को ललकारते हुए कहा कि यदि साधु-संतों को आतंकवादी कहना बंद नहीं किया तो हम भी अब चुप बैठने वाले नहीं हैं।
दोस्तों, अब मैं आपसे अपने मन की बातें कहना चाहता हूँ। हालांकि आप लोग समझ गए होंगे कि मैं कहना क्या चाहता हूँ लेकिन पिछले कुछ दिनों में हुए घटनाक्रम के चलते हमारे देश की जनता ने जिस तरह से चुप्पी साध रही है उसे मैं धिक्कारता हूँ। दूर देश डेनमार्क में किसी ने मुस्लिम पैगम्बर मौहम्मद के आपत्तिजनक कार्टून बना दिए और पूरा विश्व जल उठा। भारत में भी तमाम सरकारी-गैरसरकारी संपत्ति की क्षति की गई। मुस्लिम धर्मावलंबियों में इतना आक्रोश उभरा कि पूरा संसार हिल उठा। एक हम हैं। एक ही देश में बचे हैं लेकिन भाजपा हिन्दू है और कांग्रेस धर्मनिरपेक्ष। वाह, राजनीति। इसके चलते हमारे इकलौते देश में भी हमारा धर्म नहीं बचेगा। दूर किसी देश में किसी मंदिर या किसी हिन्दू देवी-देवता का अपमान कर दिया जाता है तो वहाँ के मुट्ठी भर हिन्दू उस अपमान के लिए लड़-मरते हैं लेकिन हमारे देश में हमारी छाती के ही ऊपर बैठकर ये कांग्रेस सरकार मूँग दल रही है, हमारे साधु-संतों का अपमान कर रही है और हम चुप हैं। और ये सब किस नाम पर हो रहा है....आतंकवाद के नाम पर। उसी आतंकवाद के नाम पर जिसके सबसे ज्यादा भुगतभोगी हम हिन्दू ही हैं। अपने साधु-संतों को यूँ गिरफ्तार होते, जलील होते देखकर भी हम चुप हैं। सिर्फ एक धर्मनिरपेक्षता के नाम पर। शर्म है हमपर। ऊपर की दोनों खबरों को आपने पढ़ा। गीता के श्लोक वाली बात भी पढ़ी। तो जिन साधु-संतों को बिना सुबूत के गिरफ्तार किया गया है (कांग्रेस हाईकमान और सोनिया गाँधी को खुश करने के लिए) उनकी समझ लीजिए मृत्यु हो गई। हमारी देखा-देखी, आँखों के सामने.....और उन्हें मारने वाले शुद्ध राजनीतिज्ञ हैं, बहुसंख्य हमारे धर्म के और एक अन्य धर्म का है। लेकिन वो सशक्त है। हम कमजोर हैं। कांग्रेस में भी कई हिन्दू हैं लेकिन या तो वे अंधे हैं या फिर उनकी आत्मा बिकी हुई है जो सोनिया गाँधी का उसके दुष्कर्मों में साथ दे रहे हैं। हम आज अपने आस्था के केन्द्रों को मरते हुए देख रहे हैं। राजनाथ सिंह ने जो कहा उस पर भी राजनीति होना संभव है लेकिन हमें तो अपनी आँखें खुली रखनी चाहिए। हम क्यों दूसरों की सरपरस्ती में इतने रम गए हैं कि हमें भी वही दिख रहा है जो हमें दिखाया जा रहा है। याद रखिए जिसका धर्म सुरक्षित नहीं, उसका देश सुरक्षित नहीं, उसका घर सुरक्षित नहीं। और इस एक वाक्य में हम सब आते हैं।
आपका ही सचिन.....।

महाराष्ट्र एटीएस कितनी पाक-साफ..??



महाराष्ट्र पुलिस और वहाँ की एटीएस (एंटी टेरेरिज्म स्क्वाड) पूरे देश में तहलका मचा रही है। ये एटीएस हमें बता रही है कि मालेगाँव में हुए बम विस्फोटों में भारत के सभी साधु-संतों का हाथ था फिर भले ही वो महाराष्ट्र-मध्यप्रदेश के हों या फिर उत्तरप्रदेश और जम्मू के। एटीएस कमाल का काम कर रही है। उसने राज ठाकरे के उत्तर भारतीयों वाले मामले को भी पीछे छोड़ दिया है। मतलब अब लोगों की जुबान से उस मामले का जिक्र ही नहीं हो रहा है। सिर्फ मालेगाँव का मामला सामने आ रहा है। महाराष्ट्र का मक्कार मुख्यमंत्री विलासराव देखमुख (वही जिसका लड़का रितेश देखमुख फिल्मों में कूल्हे मटकाती हिरोइनों के इर्द-गिर्द चक्कर काटता रहता है) यह सब करवा रहा है। ये वही मुख्यमंत्री है जिसने सोनिया गाँधी से फिलहाल कांट्रेक्ट कर रखा है कि वो भारतीय जनता को ना सिर्फ उत्तर भारतीयों की पिटाई वाला मामला भुलवा देगा, बल्कि यह भी कि मुसलमान वर्तमान घटनाक्रम के बाद कांग्रेस के पूरी तरह पक्ष में हो जाएँगे। महाराष्ट्र के मराठियों का भी मुंह कांग्रेस की ओर से नहीं मुड़ेगा और अगले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस फिर सत्तासीन होगी।

दोस्तों, भारत की राजनीति कितनी जहरीली है इसका अंदाजा तो मुझे उम्र बढ़ने के साथ ही हो पा रहा है। यहाँ कुछ भी हो सकता है। नेता देश तो दूर की बात है अपनी माँ-बहनों को भी सत्ता की खातिर बेच सकते हैं। महाराष्ट्र एटीएस की फुर्ती इस देश के लिए कितनी घातक सिद्ध होने वाली है ये उस विलासराव देशमुख को फिलहाल समझ नहीं आने वाला है। ये देशमुख वही है जो उस राज ठाकरे का उस समय भी कुछ नहीं बिगाड़ पाया जब वह पुलिस वालों के बीच बैठकर प्रेस कांफ्रेस में उत्तर भारतीयों को धमका रहा था। हाँ, देशमुख ने एक काम और किया, कि उसने उस दौरान टीवी चैनलों को दिए जा रहे इंटरव्यू में मराठी भाषा में अपने वर्जन देना शुरू कर दिए। उसने सोचा कि कहीं राज ठाकरे उससे भी अधिक बड़ा ना बन जाए, इस मराठी भाषा के चलते। देश को ताक पर रखकर बैठे इस मुख्यमंत्री का अगला कदम इतना घातक होगा ये किसी ने भी नहीं सोचा था। १९९३ में मुंबई बम विस्फोट मामले में आजतक किसी को सजा नहीं हुई। इस शहर में बम धमाके यूँ होते रहे जैसे पटाखे छूट रहे हों। सैंकड़ो लोग मर गए। किसी शासन-प्रशासन ने आज तक कुछ नहीं किया। भारत में तमाम मुल्ले-काजी आए-दिन आतंकवाद के समर्थन में बोलते रहे, उनके सिरफिरे अनुयायी भी उनकी हाँ में हाँ मिलाते रहे लेकिन तब हमारी हिजड़ा पुलिस और तमाम राज्यों की एटीएस अपना लंगोट पकड़े बैठी रही। किसी भी मुल्ला-मौलवी को कभी गिरफ्तार तक नहीं किया। लेकिन जैसे ही मालेगाँव की घटना ने आकार लेना शुरू किया वैसे ही इस एटीएस को जैसे पंख लग गए। उसने ऐसी धरपकड़ करनी शुरू की जैसे उसके पास सारे सुबूत जमा हों। ये एटीएस इस तरह से अध्यात्मिक गुरुओं को पकड़ रही है जैसे देश के सारे साधु-संतों ने ही माँलेगाँव बम धमाकों में प्रमुख भूमिका निभाई हो। वाह री देश की राजनीति....यहाँ कुछ भी हो सकता है।

मालेगांव मामले को लेकर महाराष्ट्र की कांग्रेस सरकार एक तीर से कई निशाने साधने में लगी हुई है। उसे अगला लोकसभा चुनाव दिख रहा है। लेकिन उसे ये नहीं दिख रहा कि उसने कितने लोगों को घायल किया है। अपने धर्म में बुराई देखने वालों की इस देश में और हिन्दू धर्म में कमी नहीं। जब मुस्लिम आतंकवादी पकड़े जा रहे थे तब किसी ने भी उसे धर्म से नहीं जोड़ा। कहा कि आतंकवाद का धर्म नहीं होता। और अब जब कुछ हिन्दुओं को आतंकवादी कहकर पकड़ लिया है तो कांग्रेस सरकार उसे हिन्दू आतंकवाद कह रही है। उसे मालेगांव धमाकों के सारे तार भाजपा शासित राज्यों गुजरात और मध्यप्रदेश में ही मिल रहे हैं। भ्रष्ट है ये सरकार। इसका मजा इसे लोकसभा चुनावों में ही चखने को मिलेगा। तब शायद इसे समझ आएगा कि राजनीति असल मुद्दों की करनी चाहिए.....नकली मुद्दों की नहीं। भगवान उस लंपट विलासराव देशमुख को सदबुद्धि दे।

आपका ही सचिन....।

November 25, 2008

शर्मविहीन मायावती!



आज अखबार में एक खबर पढ़ी। मन खट्टा हो गया। हालांकि मुझे मालूम है कि भारत का लोकतंत्र कितना भ्रष्ट है लेकिन फिर भी कई बार कलम उठाने को जी चाहता है। सोचते हैं कोसकर कुछ तो मन को राहत मिले, नहीं तो ये नेता लोग तो हाथ ही नहीं धरने दे रहे हैं। खैर, खबर के बारे में बात करना चाहता हूँ। खबर का शीर्षक था मायावती की सुरक्षा में ३५० कमांडो....। यहाँ उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती की बात हो रही है। वही मायावती जो दलितों और बहुजनों की बात करती हैं। समाज के उस पिछड़े वर्ग की बात करती हैं जिसको दो जून की रोटी खाना भी नसीब नहीं है। मैं आपको थोड़ी सी खबर सुना रहा हूँ।

उप्र की मुख्यमंत्री मायावती की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर आजकल तमाम सवाल उठाए जा रहे हैं। फिलहाल उनकी सुरक्षा में ३५० सुरक्षा अफसर और ३४ वाहन लगे हुए हैं। आलम यह है कि जिस सड़क से मायावती गुजर जाती हैं वहाँ से जाम हटाने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है। इस संबंध में मायावती का कहना है कि कुछ लोग मेरी हत्या करना चाहते हैं। मुझे सुरक्षा की बेहद जरूरत है। मैंने अफसरों से कहा है कि वे इसराइली सुरक्षा एजेंसियों से संपर्क कर उनके कामकाज के तरीकों को जानें। पिछले साल देश के सबसे चुस्त-दुरुस्त स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप (एसपीजी) ने मायावती को सुरक्षा देने से मना कर दिया था। मायावती ने इसे कांग्रेस की चाल कहा था। चुनाव के मद्देनजर आजकल मायावती कई इलाकों में दौरे कर रही हैं। इस दौरान उनकी सुरक्षा अचानक बढ़ा दी गई है। इन दिनों वे बड़ी संख्या में वाहनों के साथ मुख्यमंत्री निवास से एयरपोर्ट के कई चक्कर लगा रही हैं।

फूँका जनता का धन

मायावती पर पहले भी भ्रष्टाचार के कई आरोप लगते रहे हैं। लेकिन इस महान (?) भारतीय लोकतंत्र में ऐसे नेताओं को ना पहले कुछ हुआ था और ना अभी कुछ होना है। पता चला है कि मायावती ने अपने आधिकारिक निवास की साज-सज्जा में कोई कमी नहीं की है। उनके प्रवेश और निकास द्वारों पर आधुनिक इलीवेटर लगे हैं। इसी तरह ग्रेनाइट के पत्थर वाला उनका खास कमरा भी सर्वसुविधायुक्त है। जनता के धन से हुए इस बदलाव के बारे में बताया जाता है कि मायावती का घर किसी सात सितारा होटल से कम नहीं है। इतना ही नहीं जिस सड़क पर मायावती का घर है, उस पर भी काफी बदलाव किए गए हैं। वे यहाँ हेलीपेड भी बनवाना चाहती हैं। उल्लेखनीय है कि मायावती जब भी दिल्ली जाती हैं तो वहाँ के सबसे महंगे होटलों में सबसे अधिक महंगे इंपीरियल सुएट अपने लिए बुक करवाती हैं। इनका एक दिन का किराया एक लाख रुपए तक का होता है। इस बार दिल्ली से जो प्रत्याशी बसपा के लिए विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं वो सब करोड़पति हैं। उन्होंने ५० लाख रुपयों से ज्यादा की रकम देकर अपने लिए टिकिट लिया है। (वाह मायावती जी....बहुजन समाज का बहुत ही अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं आप और आपकी पार्टी...???)

जनता की जान पर बनी

अपने मुख्यमंत्री निवास से मायावती जब एयरपोर्ट के लिए निकलती हैं तो उनका काफिला इस बीच १४ किलोमीटर का रास्ता तय करता है। बस दौरान उस दायरे में रहने वाले लोगों की वाट लग जाती है। इतने बड़े सुरक्षा दस्ते से वहाँ रहने वाले लोग हैरान-परेशान हैं। कई कहते हैं कि इतनी सुरक्षा तो प्रधानमंत्री भी नहीं रखते होंगे। मायावती के डर से घबराए लोग अपना नाम तक मीडिया में नहीं बताते, बस इतना बताते हैं कि उस दौरान क्षेत्र में अघोषित कर्फ्यू लग जाता है। दुकानदारों से जबरन दुकानें बंद करा दी जाती हैं। घंटों ट्रेफिक भी जाम रहता है। पुलिस वालों का व्यवहार भी इस दौरान ठीक नहीं रहता और वो खुली हुई दुकानों में बैठे ग्राहकों पर डंडे बरसाने लग जाते हैं। इस डर से दुकानदार अपनी दुकानें बंद रखने में ही भलाई समझते हैं।

दोस्तों, मायावती की असलियत तो हम बरसों से जानते हैं लेकिन उत्तरप्रदेश की जनता पर तरस भी आता है। मायावती को उन्होंने ही डंडे खाने के लिए चुना है। पिछले २० सालों में उप्र की जनता ने कांग्रेस और भाजपा को धीरे-धीरे अपने प्रदेश से उखाड़ दिया। उसके बाद आए मुलायमसिंह और बहन (?) मायावती॥। आज हालात यह हैं कि जनता जिसे चुने वो गुंडागिर्दी करता है। दोनों ही नेताओं की पार्टी में भयानक गुंडे लोग विधायक, मंत्री और सांसद हैं। डीपी यादव, राजा भैया, अमरमणि त्रिपाठी की बानगी हम देख चुके हैं। लिस्ट इतनी लंबी है कि लिखने लगा तो पोस्ट इसी में पूरी हो जाएगी। लेकिन मुझे याद है कि जब मायावती ने राजनीति में प्रवेश किया था। कांशीराम भी मुझे याद हैं। यह भी याद है कि इन दोनों ने तब ब्राह्मणों, राजपूतों और वैश्यों को जूते मारने की बात कही थी। ये लोग तब सिर्फ पिछड़े, दलित और बहुजन समाज की बात करते थे। निचली और पिछड़ी जातियों का इन्हें समर्थन मिला, सत्ता मिली लेकिन स्थाई नहीं। मायावती को भी देवेगौड़ा की तरह पीठ में छुरा भौंकने की आदत है। इसके चलते इन्होंने कई बार सत्ता की कुर्सी हथियाई, कई बार छोड़ी। इनपर मात्र १९ करोड़ (वैसे हजारों करोड़) के ताज घोटाले का आरोप लगा। भारतीय लोकतंत्र है, कुछ नहीं हुआ। फिर इन्हें सोशल इंजीनियरिंग की दीक्षा मिली, ना जाने कहाँ से॥?? ये ब्राह्रणों, ठाकुरों और बनियों को साथ लेकर चलने लगीं। इन्हें कामयाबी भी मिली लेकिन क्या करें आदत नहीं गई॥। कहते हैं ना कि अगर किसी को उसकी औकात से ज्यादा मिल जाए तो वो पगला जाता है, बहन मायावती के साथ भी यही हुआ। शायद कभी नहीं सोचा था कि इतनी ऊँचाई मिलेगी। वो भी गालियाँ बक-बक कर। तो वो पगला गई हैं। वो काम कर रही हैं जो अमेरिका का राष्ट्रपति भी ना करे। अपने जन्मदिन पर केक काट रही हैं, गले में करोड़ों रुपयों का हार पहने...। विधायक, पार्टी कार्यकर्ताओं से गिफ्ट ले रही हैं, वो भी लाखों की। खुले आम सब कर रही हैं लेकिन भारत की जागरुक जनता की आँखों में तो रतोंधी है ना॥

विकसित देश कनाडा में ब्यूरोक्रेट बसों में सफर करते हैं। फ्रांस के राष्ट्रपति की कार लाल बत्ती पर रुकती है लेकिन ये बहनजी हैं कि पूरी दुनिया को अपने पैरों तले रौंदना चाहती हैं। इन्हें किसी सुरक्षा की जरूरत नहीं है, और ना ही इनकी ऐसी शक्ल है कि कोई इन्हें मारने के लिए घूमे, लेकिन ये सबकुछ करना चाहती हैं। बिना बात के ही इसराइली एजेंसियों की मदद लेने की बात करती हैं। जानती नहीं कि वहाँ इतनी सुरक्षा में नेता क्यों रहते हैं। हत्या का नाम ले-लेकर अपना रुतबा झाड़ रही हैं। उप्र के बाद अब हमारे मध्यप्रदेश पर भी इनकी नजर है। ये भारत की प्रधानमंत्री भी बनना चाहती हैं। अगर बन गईं तब तो मैं इस देश को ही छोड़ दूँगा.......अरे भाई आखिर कब तक झेलेंगे ऐसे शर्मविहीन नेताओं को.....?? क्या तब हमें खुद अपने आप पर शर्म नहीं आने लगेगी...??

आपका ही सचिन....।