यहाँ के कण-कण में है बापू का जीवनदर्शन
सचिन शर्मा
महात्मा गाँधी का साबरमती आश्रम (गुजरात) दुनिया भर में प्रसिद्ध है। लेकिन उतना ही प्रसिद्ध उनका सेवाग्राम आश्रम भी है जो वर्धा(महाराष्ट्र) में स्थित है। इस आश्रम की खासियत यह है कि गाँधीजी ने अपने संध्याकाल के अंतिम 12 वर्ष यहीं बिताए। वर्धा शहर से 8 किमी की दूरी पर 300 एकड़ की भूमि पर फैला यह आश्रम इतनी आत्मिक शांति देता है जिसको आप शब्दों में नहीं पिरो सकते। इस आश्रम की कई खासियत हैं। गाँधीजी ने यहाँ कई रणनीति बनाईं, कईयों से मिले और बहुतों के जीवन को नई दिशा दी। यहाँ आकर ऐसा लगता है जैसे आप किसी मंदिर में पहुँच गए हों। सबकुछ शांत और सौम्य। आश्रम को समझने पर गाँधीजी का व्यक्तित्व भी आप ही समझ आ जाता है। यह आश्रम बापू के व्यक्तित्व का दर्पण है। यहाँ आकर ही पता चल जाता है कि हम एक ऐसे महान शख्स का उठना-बैठना देख-समझ रहे हैं जिसने भारत की आजादी का नींव रखी। तो आइए देखते हैं कि कैसे हुई 'सेवाग्राम आश्रम' की स्थापना और नजर डालते हैं उसके इतिहास पर।
साबरमती से सेवाग्राम :
गाँधीजी के साबरमती से सेवाग्राम पहुँचने की कहानी भी काफी रोचक है। 12 मार्च 1930 को प्रसिद्ध नमक सत्याग्रह के लिए साबरमती आश्रम से अपने 78 साथियों के साथ गाँधीजी 'दांडी यात्रा' पर निकले थे। वहाँ से चलते समय उन्होंने संकल्प लिया था कि स्वराज्य लिए बिना आश्रम में नहीं लौटूँगा। 6 अप्रेल 1930 को गुजरात के दांडी समुद्र तट पर गाँधीजी ने नमक का कानून तोड़ा और 5 मई 1930 को उन्हें गिरफ्तार कर बिना मुकदमा चलाए यरवदा जेल में डाल दिया गया। 1933 में जेल से रिहा होने के बाद गाँधीजी देश व्यापी हरिजन यात्रा पर निकल गए। स्वराज्य मिला नहीं था इसलिए वे वापस साबरमती लौट नहीं सकते थे। अतः उन्होंने मध्य भारत के एक गाँव को अपना मुख्यालय बनाने का निश्चय किया। 1934 में जमनालाल बजाज एवं अन्य साथियों के आग्रह से वे वर्धा आए और मगनवाड़ी में रहने लगे। 30 अप्रेल 1936 को गाँधीजी पहली बार मगनवाड़ी से सेगाँव (सेवाग्राम) रहने चले आए। जिस दिन वे सेवाग्राम आए उन्होंने वहाँ छोटा सा भाषण देकर सेवाग्राम में बस जाने का अपना निश्चय गाँववालों को बताया।
यूँ हुआ सेवाग्राम का नामकरण :
आज के सेवाग्राम का नाम शुरू में सेगाँव था। इसी क्षेत्र में नागपुर-भुसावल रेलवे लाइन पर शेगाँव नाम के रेलवे स्टेशन वाला एक बड़ा गाँव होने से गाँधीजी की डाक में बहुत गड़बड़ी होती थी। अतः सुविधा के लिए 1940 में गाँधीजी की इच्छा एवं सलाह से 'सेगाँव' का नाम 'सेवाग्राम' कर दिया गया।
सेवाग्राम में विभिन्न कुटियाएँ :
सेवाग्राम में कई कुटियाएँ हैं जहाँ स्वयं गाँधीजी एवं उनके सहयोगी रहा करते थे। यह सब कुटिया अपने आप में अनोखी हैं और गाँधीजी की तत्कालीन जीवनशैली समेटी हुई हैं। उनका विवरण इस प्रकार है।
आदि निवास : यहाँ शुरुआत में गाँधीजी समेत सभी लोग रहा करते थे। तब यही एकमात्र कुटी थी। यहाँ बा-बापू के अलावा प्यारेलाल जी, संत तुकड़ोजी महाराज, खान अब्दुल गफ्फार खाँ के साथ दूसरे आश्रमवासी तथा मेहमान ठहरते थे। गाँधीजी से मिलने आने आने वाले सब नेता भी उनसे यहीं मिलते थे। 'भारत छोड़ो आंदोलन' की प्रथम सभा 1942 को इसी जगह हुई थी। 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह की प्राथमिक तैयारी भी इसी जगह हुई थी।
बापू कुटी और बापू दफ्तर : इन दोनों कुटियों में गाँधीजी रहते थे तथा लोगों से मिलते थे। बापू कुटी और बापू दफ्तर बाद में बनी। आज जैसी ये दिखती हैं पहले इसके मुकाबले यह कहीं अधिक छोटी थीं। बापू दफ्तर वाली कुटी में गाँधीजी लोगों से मंत्रणा करते थे। उनकी मदद करने वाले लोग उनके दाएँ ओर बैठते थे। महादेवभाई या दूसरे मंत्री उनकी बाईं ओर बैठते थे।
बा- कुटी : आश्रम में अनेक पुरुषों का रहना तथा आना-जाना होता था। इस वजह से बा की परेशानी को देखते हुए जमनालाल बजाज ने बा की सहमति से उनके लिए एक अलग कुटी बनवा दी। आज वह बा- कुटी के नाम से जानी जाती है।
आखिरी निवास : यह कुटी जमनालाल बजाज ने स्वयं के रहने के लिए बनवाई थी। लेकिन ऐसा अवसर ना आ सका। यह कुटी अन्य कई मेहमानों के रहने के काम में आती रही।
प्रार्थना भूमि : यह आश्रम के बीचोंबीच एक बड़ी भूमि है जो प्रार्थना के लिए काम आती थी। इसपर आज भी प्राथर्ना होती है।
इन कुछ प्रमुख कुटियों और स्थानों के अलावा भी यहाँ कई स्थान हैं। इनमें महादेव कुटी, भोजन स्थान, रसोई घर, किशोर निवास, परचुरे कुटी, रुस्तम भवन, नई तालीम परिसर, गौशाला, अंतरराष्ट्रीय छात्रावास, डाकघर, यात्री निवास शामिल हैं।
गाँधी चित्र प्रदर्शनी :
आश्रम के पश्चिम में, मुख्य सड़क के उस पार स्थित गाँधी चित्र प्रदर्शनी में बापू का संपूर्ण जीवनक्रम चित्रों के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है। यह चित्र प्रदर्शनी काफी अद्भुत है और इसे जरूर देखा जाना चाहिए। इसे देखते समय बापू का पूरा जीवन आपके सामने जीवन्त हो उठेगा।
यहाँ चित्रों के अतिरिक्त बापू के जीवन में घटित घटनाओं को मूर्तियों द्वारा तथा उनके आवास आदि को प्रतिकृति के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है। इससे बापू के जीवनक्रम व कार्य को समझने व जानने में बहुत आसानी होती है।
सेवाग्राम सेवकों के लिए :
गाँधीजी एक पोथी में समय-समय पर आश्रमवासियों के लिए सूचनाएँ लिख कर रखा करते थे। पोथी के प्रारंभ में लिखा रहता था - 'सेगाँव सेवकों के लिए'। इस पोथी में बहुत ही अद्भुत बातें लिखी रहती थीं जो अनुकरणीय हैं। पेश हैं उनमें से कुछ बातें..
यह बात हम ध्यान रखें
- थूक भी मल है। इसलिए जिस जगह हम थूकें या मैले हाथ धोवें वहाँ बर्तन कभी साफ ना करें।
(दिनांक : 6.8.1936)
- मेरी सलाह है कि सब नियमपूर्वक सूत्रयज्ञ करें। उस बात में हमें बहुत सावधान रहना चाहिए।
(दिनांक 6.1.1940)
- सब काम सावधानी से होना चाहिए, हम सब एक कुटुम्ब हैं, इसी भावना से काम लेना आवश्यक है। ( दिनांक : 21.1.1940)
- नमक भी चाहिए उतना ही लेवें। पानी तक निकम्मा खर्च न करें। मैं आशा करता हूँ कि सब (लोग) आश्रम की हर एक चीज अपनी और गरीब की है ऐसा समझकर चलेंगे।
(दिनांक : 30.1.1940)
हम यह कैसे कह सकते हैं कि सेवाग्राम आश्रम मात्र को देखने से हम बापू और उनके जीवन को समझ सकते हैं। तो स्वयं गाँधीजी ने इस बारे में लिखा है।
यहाँ रहते एक बार महात्मा गाँधी ने कहा था, 'मेरा जीवन ही मेरा संदेश है'...सेवाग्राम में रहते हुए 1937 में उन्होंने कहा था..
' आप यह विश्वास रखें कि मैं जिस तरह से रहना चाहता हूँ ठीक उसी तरह से आज रह रहा हूँ। जीवन के प्रारंभ में ही अगर मुझे अधिक स्पष्ट दर्शन होता तो मैं शायद जो करता वह अब जीवन के संध्याकाल में कर रहा हूँ। यह मेरे जीवन की अंतिम अवस्था है। मैं तो नींव से निर्माण करके ऊपर तक जाने के प्रयास में लगा हूँ। मैं क्या हूँ, यह यदि आप जानना चाहते हैं तो मेरा यहाँ (सेवाग्राम) का जीवन आप देखिए तथा यहाँ के वातावरण का अध्ययन कीजिए। '
अगर वाकई कोई गाँधीजी को, उनके दर्शन को और उनके जीवन को समझना चाहता है तो उसे सेवाग्राम आश्रम जाकर जरूर देखना चाहिए। वहाँ अब भी चरखे पर सूत काता जाता है। पारंपरिकता वहाँ जीवन्त है। स्वयं गाँधीजी भी वहाँ जीवन्त हैं। आश्रम देखकर सहसा विश्वास करना मुश्किल हो जाता है कि कोई महान पुरुष इस सादगी से भी रह सकता है।
तभी तो अल्बर्ट आइन्सटीन ने एक बार गाँधीजी के बारे में कहा था - 'मैं गाँधी को हमारे युग का एकमात्र सच्चा महापुरुष मानता हूँ। आने वाली पीढ़ियाँ कठिनाई से यह विश्वास कर पाएँगी कि गाँधी जैसा हाड़-माँस का बना व्यक्ति सचमुच इस धरती पर कभी टहलता था।'
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1 comment:
Sabarmati to ghuma hun, magar aaj aapke sath Vardha bhi ghum liya, Dhanyavad.
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