March 25, 2009

भोपाल का वन-विहार राष्ट्रीय उद्यान

झील किनारे प्रकृति का सुंदर नजारा

सचिन शर्मा
वन विहार सड़क
WD WD
यूँ तो किसी भी राष्ट्रीय उद्यान (नेशनल पार्क) का नाम सुनते ही आँखों के सामने दूर तक फैला घना जंगल और खुले घूमते जंगली जानवरों का दृश्य उभर आता है। लेकिन अगर आप कभी मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल जाएँ तो वहाँ शहर के बीचोंबीच बना 'वन विहार' राष्ट्रीय उद्यान इन सब बातों को गलत साबित करता प्रतीत होगा। यह 'थ्री इन वन' राष्ट्रीय उद्यान है।

यह अनोखा उद्यान नेशनल पार्क होने के साथ-साथ एक चिड़ियाघर (जू) तथा जंगली जानवरों का रेस्क्यू सेंटर (बचाव केन्द्र) भी है। 445 हैक्टेयर क्षेत्र में फैले इस राष्ट्रीय उद्यान में मिलने वाले जानवरों को जंगल से पकड़कर नहीं लाया गया है। यहाँ ज्यादातर वो जानवर हैं जो लावारिस, कमजोर, रोगी, घायल अथवा बूढ़े थे या फिर जंगलों से भटक-कर ग्रामीण-शहरी क्षेत्रों में आ गए थे तथा बाद में उन्हें पकड़कर यहाँ लाया गया। कुछ जानवर दूसरे प्राणी संग्रहालयों से भी यहाँ लाए गए हैं जबकि कुछ सर्कसों से छुड़ाकर यहाँ रखे गए हैं।

वन विहार अद्भुत है। पाँच किलोमीटर लंबे इस राष्ट्रीय उद्यान के एक तरफ पूरा पहाड़ और हराभरा मैदानी क्षेत्र है जो जंगलों तथा हरियाली से आच्छादित है। दूसरी ओर भोपाल का मशहूर तथा खूबसूरत बड़ा तालाब (ताल) है। ये संगम अपने आप में बहुत सुंदर लगता है। वन विहार विस्तृत फैला हुआ चिड़ियाघर है। यह प्रदेश का एकमात्र 'लार्ज जू' यानी विशाल चिड़ियाघर है। इससे पहले यह मध्यम श्रेणी के चिड़ियाघर में आता था। यह प्रदेश का एकमात्र ऐसा चिड़ियाघर भी है जिसकी देखरेख वन विभाग करता है।

प्रदेश में दो अन्य चिड़ियाघर भी हैं। ये इंदौर और ग्वालियर में स्थित हैं। लेकिन ये दोनों ही चिड़ियाघर 'स्मॉल जू' यानी छोटे चिड़ियाघरों की श्रेणी में आते हैं और इनकी देखरेख स्थानीय नगर-निगम करता है। ये दोनों ही चिड़ियाघर किसी भी मामले में वन विहार के आस-पास नहीं ठहरते। वन विहार की शानदार खासियतों की वजह से ही इसे 18 जनवरी 1983 को राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया जो अपने आप में एक उपलब्धि है।

वन विहार हिरण
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वन विहार के अंदर घुसने से पहले लगता ही नहीं है कि आप एक खूबसूरत जंगल में प्रवेश करने वाले हैं। इस राष्ट्रीय उद्यान का मुख्य द्वार बोट क्लब के पास से है। इसका नाम रामू गेट है। इस गेट से दूसरी ओर भदभदा क्षेत्र स्थित चीकू गेट तक की कुल दूरी 5 किलोमीटर है। इस रास्ते को पार करते हुए आपको कई खूबसूरत तथा कभी ना भूलने वाले दृश्य दिखाई देंगे। आप इस विहार में इच्छानुसार पैदल, साइकिल, मोटरसाइकिल, कार या फिर बस से भी घूम सकते हैं। आपको इसके लिए वन विभाग द्वारा निर्धारित किया गया शुल्क चुकाना होगा।

इसके बाद आपकी बाँई ओर जानवरों के खुले तथा विशाल बाड़े मिलते जाएँगे जहाँ उनको उनके प्राकृतिक आवास में देखा जा सकता है। शुरुआत सियार तथा हाइना (लगड़बग्घे) के बाड़ों से होती है। इसके बाद भालू, शेर, हिमालयी भालू, तेंदुए और बाघ के बाड़े आते हैं। इन सब बड़े जानवरों को देखने के लिए पार्क में सुबह या शाम का समय सबसे अधिक मुफीद रहता है। दोपहर के समय ये सब जानवर धूप से बचने के लिए कहीं छाँव तलाशकर आराम करते रहते हैं। पानी वाले क्षेत्र में आपको पहाड़ी कछुए, मगरमच्छ और घड़ियाल देखने को मिलेंगे। पार्क के बीचोंबीच स्नेक पार्क भी मिलेगा वहाँ विभिन्न प्रकार के साँप देखने को मिलते हैं।

हिरण के बाड़े बच्चों को बहुत आकर्षित करते हैं और मुझे तो वहाँ हिरण सड़क पर हमारे साथ-साथ चलते-घूमते दिखे। इतना ही नहीं वन विहार में बहुतायत में सांभर, चीतल, नीलगाय, कृष्णमृग, लंगूर, लाल मुंह वाले बंदर, जंगली सुअर, सेही और खरगोश हैं। विहार में पक्षियों की 250 से अधिक प्रजातियों को चिन्हित किया गया है। यहाँ कई प्रकार की वनस्पति है जो यहाँ के जंगल को समृद्ध बनाती है। भोपाल के बड़े तालाब का 50 हेक्टेयर हिस्सा वन विहार के साथ-साथ चलता है। यह पूरे भूदृश्य को बहुत मनोरम बना देता है। शाम को यहाँ पक्षियों की चहचहाहट देखने लायक होती है। पर्यटकों के लिए यहाँ ट्रेकिंग का भी इंतजाम है जिसे करके पूरे उद्यान की भौगोलिक स्थिति को पास से देखा तथा महसूस किया जा सकता है।

रुकिए, अगर इतना सब घूमकर आप थक गए हैं, थोड़ा विश्राम करना चाहते हैं और आपको भूख भी लगी है तो यहाँ आपके लिए शानदार 'वाइल्ड कैफे' मौजूद है। इस खूबसूरत कैफे में बैठकर आप प्रकृति के साथ लजीज भोजन या नाश्ते का लुत्फ ले सकते हैं। बारिश के समय तो लकड़ियों की ऊँची बल्लियों पर बने इस कैफे के नीचे से पानी भी बहता है जो एक मनोरम वातावरण पैदा कर देता है। नाश्ता कर चुकने के बाद आप कैफे के साथ ही बने 'विहार वीथिका' में जा सकते हैं। वहाँ आपको चित्रों तथा कुछ वास्तविक चीजों के माध्यम से जंगलों तथा जंगली जानवरों के विषय में महत्वपूर्ण जानकारियाँ मिलेंगी।

छुट्टियों के दिन :
- पार्क सभी शुक्रवार बंद रहता है।
- इसके अलावा होली तथा रंगपंचमी को भी पार्क बंद रहता है।

महत्वपूर्ण जानकारियाँ :
- कब जाएँ : उद्यान पूरे साल भर खुला रहता है।
- समय : 1 अप्रैल से 30 सितंबर तक सुबह 7 से शाम 6:30 तक
1 अक्टूबर से 31 मार्च तक सुबह 7 से शाम 6 बजे तक

3 comments:

संगीता पुरी said...

अतनी ज्ञानवर्द्धक जानकारी देने का आभार।

Rajeev (राजीव) said...

यह आपने अच्छी जानकारी दी। कभी भोपाल जाने पर इसका भ्रमण किया जायेगा। क्या इस विहार के शहर के बीच होने से वन्य प्राणियों को उनके जैसा नैसर्गिक वातावरण दिया जाता है - जो कि शायद अति विरल जनसंख्या वाले क्षेत्रों में सम्भव है और पास ही शहरी आबादी और आवागमन भी वन्य प्राणियों के लिये इस प्रकार के वातावरण को बनाये रखने में आड़े आता है क्या?

Sachin said...

राजीव जी, जैसा कि मैंने इस यात्रा संस्मरण में जानकारी दी है कि ये राष्ट्रीय उद्यान एक बड़ा चिड़ियाघर भी है और यहाँ जानवरों को बाड़े में ही रखा गया है लेकिन उनका साइज बहुत बड़ा है। तो यह राष्ट्रीय उद्यान इस मायने में भी विलक्षण है। फिर यहाँ एक तरफ तो भोपाल का बड़ा तालाब ही है इसलिए मनुष्य का कोलाहल यहाँ ज्यादा महसूस नहीं होता। मैं देश के कई राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य घूमा हूँ लेकिन यह उन सबसे छोटा है लेकिन साथ ही अलग भी है। मुझे यह अच्छा लगा। आप भी घूमिए और हमें बताइए।