दोस्तों, आखिर आप लोग समझ गए होंगे कि मैं किस बात को लेकर निशाना साध रहा हूँ। कांग्रेस ने पिछले दिनों बेशर्मी से कह दिया कि देश के अगले मुख्य चुनाव आयुक्त नवीन चावला ही होंगे। वह चावला जिनके ऊपर हाल ही में वर्तमान मुख्य चुनाव आयुक्त गोपालास्वामी ने आरोप लगाया था कि ये कांग्रेसी मानसिकता के व्यक्ति हैं, कांग्रेस को फेवर करते हैं, महत्वपूर्ण बैठकों को बीच में छोड़कर बाथरूम जाते हैं और बैठकों की गुप्त जानकारी कांग्रेसी नेताओं को देते हैं। जाहिर है, गोपालस्वामी एक ईमानदार अधिकारी हैं। उन्होंने इस आशय की समस्त जानकारी राष्ट्रपति को दी। राष्ट्रपति से यह भी गुजारिश की महत्वपूर्ण सरकारी पदों पर बैठे व्यक्तियों को सेवानिवृति के १० वर्ष बाद तक राजनीति में जाने की इजाजत नहीं होनी चाहिए। क्योंकि राजनीति में अपनी सीट पक्की करने के चक्कर में ये अधिकारी अपने वर्तमान दायित्व के प्रति बेइमान हो जाते हैं और किसी एक पार्टी विशेष के प्रति वफादार बनकर रह जाते हैं।
लेकिन हमारी योग्य राष्ट्रपति ने इस पत्र या कहें आरोप पत्र के तुरंत बाद सोनिया गाँधी को फोन लगाया होगा (क्योंकि हमारी वर्तमान राष्ट्रपति महोदया इंदिरा गाँधी के समय सोनिया गाँधी को किचन में खाना बनाना सिखा चुकी हैं और तभी से उनकी किचन कैबीनेट का हिस्सा हैं, यही शायद उनकी योग्यता का पैमाना भी है) और पूछा होगा कि क्या किया जाए मैडम...सोनिया ने उन्हें डपट दिया होगा और कह दिया होगा कि ये कैसी बात कर रही हैं आप....क्या आपको हमारी सासू माँ याद नहीं जिन्होंने २५ अप्रैल १९७३ को इसी प्रकार का जोखिम लिया था और तत्कालीन तीन जजों की सीनियरेटी को दरकिनार करते हुए एएन रे को चीफ जस्टिस बनाया था। इस नियुक्ति के ठीक दो साल बाद इंदिरा गाँधी ने इमरजेंसी लगा दी थी और रे उनके काम आए थे। तो अपने वफादार नवीन चावला को मुख्य चुनाव आयुक्त की सीट दिलवाने (वो भी ठीक चुनावों के शुरू होने के चार दिन बाद) के लिए सोनिया ने राष्ट्रपति के पास मंजूरी पत्र भेजा और राष्ट्रपति ने अपने नाम के अनुरुप उसपर अपनी रबर स्टाम्प टिका दी।
दुर्भाग्य है कि हम एक ऐसे देश में रहते हैं जिसके नेता अराजक पाकिस्तान को दिखाकर हमें यह बताते रहते हैं कि देखो हम उससे कितने बेहतर हैं, लेकिन वो हमें योरप या अमेरिका के वो देश कभी नहीं दिखाते या उनका उदाहरण देते हैं जो हमसे कई गुना ज्यादा ईमानदार हैं। कांग्रेस ने यह बेशर्म चाल चली है और इससे टीएन शेषन जैसे कद्दावर मुख्य चुनाव आयुक्त वाली कुर्सी की परंपरा पर दाग लग गया है। चावला अब कांग्रेस के लिए काम करेंगे। भाजपा भी इस मुद्दे को उच्चतम न्यायालय में घसीट कर ले जा सकती है। कुल मिलाकर एक पवित्र चुनावी महाआयोजन को (जिसको चुनाव आयोग के सख्त रवैए ने वाकई पवित्र बना दिया है नहीं तो पहले यह क्या था बताने की जरूरत नहीं) इस बार एक भ्रष्ट अधिकारी और एक पुरानी भ्रष्ट पार्टी ने मिलजुलकर इसे कलुषित बनाने की ठान ली है। अब देखना है कि एक माह चलने वाले चुनावी महासमर में इस नियुक्ति का क्या और कितना असर पड़ता है।
आपका ही सचिन....।
लेकिन हमारी योग्य राष्ट्रपति ने इस पत्र या कहें आरोप पत्र के तुरंत बाद सोनिया गाँधी को फोन लगाया होगा (क्योंकि हमारी वर्तमान राष्ट्रपति महोदया इंदिरा गाँधी के समय सोनिया गाँधी को किचन में खाना बनाना सिखा चुकी हैं और तभी से उनकी किचन कैबीनेट का हिस्सा हैं, यही शायद उनकी योग्यता का पैमाना भी है) और पूछा होगा कि क्या किया जाए मैडम...सोनिया ने उन्हें डपट दिया होगा और कह दिया होगा कि ये कैसी बात कर रही हैं आप....क्या आपको हमारी सासू माँ याद नहीं जिन्होंने २५ अप्रैल १९७३ को इसी प्रकार का जोखिम लिया था और तत्कालीन तीन जजों की सीनियरेटी को दरकिनार करते हुए एएन रे को चीफ जस्टिस बनाया था। इस नियुक्ति के ठीक दो साल बाद इंदिरा गाँधी ने इमरजेंसी लगा दी थी और रे उनके काम आए थे। तो अपने वफादार नवीन चावला को मुख्य चुनाव आयुक्त की सीट दिलवाने (वो भी ठीक चुनावों के शुरू होने के चार दिन बाद) के लिए सोनिया ने राष्ट्रपति के पास मंजूरी पत्र भेजा और राष्ट्रपति ने अपने नाम के अनुरुप उसपर अपनी रबर स्टाम्प टिका दी।
दुर्भाग्य है कि हम एक ऐसे देश में रहते हैं जिसके नेता अराजक पाकिस्तान को दिखाकर हमें यह बताते रहते हैं कि देखो हम उससे कितने बेहतर हैं, लेकिन वो हमें योरप या अमेरिका के वो देश कभी नहीं दिखाते या उनका उदाहरण देते हैं जो हमसे कई गुना ज्यादा ईमानदार हैं। कांग्रेस ने यह बेशर्म चाल चली है और इससे टीएन शेषन जैसे कद्दावर मुख्य चुनाव आयुक्त वाली कुर्सी की परंपरा पर दाग लग गया है। चावला अब कांग्रेस के लिए काम करेंगे। भाजपा भी इस मुद्दे को उच्चतम न्यायालय में घसीट कर ले जा सकती है। कुल मिलाकर एक पवित्र चुनावी महाआयोजन को (जिसको चुनाव आयोग के सख्त रवैए ने वाकई पवित्र बना दिया है नहीं तो पहले यह क्या था बताने की जरूरत नहीं) इस बार एक भ्रष्ट अधिकारी और एक पुरानी भ्रष्ट पार्टी ने मिलजुलकर इसे कलुषित बनाने की ठान ली है। अब देखना है कि एक माह चलने वाले चुनावी महासमर में इस नियुक्ति का क्या और कितना असर पड़ता है।
आपका ही सचिन....।
2 comments:
haan bhai baat to sahi kah rahe ho
भाई, गोपालस्वामी BJP से प्रभावित नहीं है/थे... और उन्होने उनके प्रभाव में चिट्ठी नहीं लिखी.. क्या पता..
ये राजनैतिक दल (सभी)नौकरशा्हों को ्मोहरा बनाते है और उल्टे सिधे काम करवाते है.. हमाम में सभी नंगें है..
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