March 04, 2009

ऊर्जा का सर्वश्रेष्ठ विकल्प 'सौर ऊर्जा'

भारत नहीं उठा पा रहा है सूर्य के तेज का लाभ

सचिन शर्मा
वर्तमान में हमारा देश ऊर्जा की समस्या से जूझ रहा है। सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य उत्तरप्रदेश में बिजली रहती ही नहीं है। ग्रामीण इलाकों की तो छोड़िए वहाँ के ज्यादातर बड़े शहर भी बिजली से महरूम हैं और छोटे-बड़े घरों में जनरेटर तथा इनवर्टर मिलना आम बात है।

इसी प्रकार मध्यप्रदेश जैसे बड़े प्रदेशों में भी बिजली का संकट है। यहाँ ग्रामीण इलाकों में 18 घंटे बिजली गुल रहती है। जिला मुख्यालय और संभागीय मुख्यालय भी 'बिजली कट' की चपेट में जब-तब आते रहते हैं। यह स्थिति कमोबेश सभी प्रदेशों में है। इतनी समस्या के बावजूद हमारे देश में वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों पर कम ही चर्चा होती है। अगर वैकल्पिक ऊर्जा की बात की जाए तो भारत की ऊर्जा समस्या के लिए 'सौर ऊर्जा' एक बेहतर और जोरदार विकल्प साबित हो सकती है।

भारत संसार के कुछ उन गिने-चुने देशों में शामिल है, जहाँ 1700 किलोवॉट सौर ऊर्जा प्रति वर्गमीटर प्रति वर्ष की दर से गिरती है। सूर्य की यह तेजी पूरे भारत में लगभग वर्ष भर रहती है और सर्दी तथा गर्मी में इसकी तेजी में ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। इस देश में बारिश के मौसम में भी कई जगह अच्छी-खासी धूप पड़ती है। भारत सरकार अगर चाहे तो इस वैकल्पिक और ताकतवर ऊर्जा का सही उपयोग कर देश की ऊर्जा समस्या को काफी हद तक सुलझा सकती है।

सौर ऊर्जा इतनी ताकतवर होती है कि इससे एक लाख मेगावाट ऊर्जा मात्र 8000 वर्ग किमी क्षेत्र से हासिल की जा सकती है। मतलब भारत के हिसाब से उपयुक्त सौर ऊर्जा संयंत्र लगाकर यह उपलब्धि हासिल की जा सकती है। भारत की कुल ऊर्जा जरूरत (इंस्टॉल्ड कैपेसिटी) वर्तमान में एक लाख 45000 मेगावॉट है। मतलब मात्र 8000 वर्ग किमी क्षेत्र से हम इतनी सौर ऊर्जा प्राप्त कर सकते हैं कि वह भारत की कुल ऊर्जा जरूरत का एक बड़ा भाग पूरा कर सकती है। जबकि हम एक लाख 45000 मेगावॉट ऊर्जा को कई प्रकार से प्राप्त करते हैं। इनमें पन (पानी) ऊर्जा, ताप ऊर्जा, परमाणु ऊर्जा और पवन ऊर्जा आदि शामिल हैं।

अगर हम 8000 वर्ग किमी भूमि का विश्लेषण करें तो यह भारत के हिसाब से बहुत कम है। यह मध्यप्रदेश की कुल भूमि का मात्र ढाई
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प्रतिशत है। ऐसे में अगर सौर ऊर्जा को एक विकल्प के तौर पर परखा जाए तो यह बाकी ऊर्जा के मुकाबले कहीं अधिक आसान और सस्ती पड़ेगी।


विभिन्न ऊर्जा प्रकार का संस्थापन खर्च (इंस्टॉल्ड कॉस्ट)
-परमाणु ऊर्जा : 25 रुपए प्रति इलेक्ट्रिकल यूनिट (प्रथम वर्ष के लिए)
-पन (पानी) ऊर्जा : 11 रुपए प्रति इलेक्ट्रिकल यूनिट (प्रथम वर्ष के लिए)
-ताप ऊर्जा : 4.50 रुपए प्रति इलेक्ट्रिकल यूनिट (प्रथम वर्ष के लिए)
-सौर ऊर्जा : 9 रुपए प्रति यूनिट (प्रथम वर्ष के लिए)

(इन सबमें सौर ऊर्जा सिर्फ ताप ऊर्जा से महँगी पड़ती है, लेकिन इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि ताप ऊर्जा की तरह न तो इसमें कोयले का इस्तेमाल रहता है और न ही प्रदूषण फैलता है।)

सौर ऊर्जा विकास प्रणालिया
थर्मल कॉन्सनट्रेटर : यह प्रणाली अपेक्षाकृत आसान है और सस्ती भी पड़ती है। इसमें सूर्य की रोशनी से पानी गर्म कर भाप बनाई जाती है। उस भाप की शक्ति से ऊर्जा उत्पन्न की जाती है। यह भाप स्टीम टरबाइन को घुमाती है और उससे बिजली बनती है। इस आशय का संयंत्र केलीफोर्निया में लगा है। उसका नाम 'क्रेमर जंक्शन' है और यह 350 मेगावॉट की शक्ति का है। ऐसे संयंत्रों की ताकत किसी भी हद तक बढ़ाई जा सकती है।

फोटो वोल्टिक : इस प्रणाली में सिलिकॉन के वैफर्स इस्तेमाल किए जाते हैं। ये मोड्यूल के रूप में इस्तेमाल होते हैं। यह सौर ऊर्जा को सीधे ही बिजली में तब्दील कर देते हैं, लेकिन यह प्रणाली महँगी होती है तथा इसका रख-रखाव भी बहुत महँगा पड़ता है। विशेषज्ञों के अनुसार थर्मल कॉन्सनट्रेटर भारत के लिए अधिक उपयुक्त प्रणाली है। 

2 comments:

Udan Tashtari said...

शायद शुरुवाती पूँजीनिवेश ज्यादा होने की वजह से यह अब तक प्रचलित नहीं हो पा रहा है. मुझे विशेष जकारी तो नहीं है इस विषय में.

आपने अच्छी जनकारी दी.

Science Bloggers Association said...

अच्‍छी जानकारी दी है, पर यह मंहगी होने के कारण आम आदमी की पहुंच में नहीं आ रही है।