February 27, 2009

कैसे बचेगा मध्यप्रदेश के 'टाइगर स्टेट' का दर्जा

बाघों की कम संख्या से धूमिल हुई छवि

सचिन शर्मा
भारत का हृदय स्थल मध्यप्रदेश अपने शानदार जंगलों और राष्ट्रीय पशु बाघ की 'दहाड़दार' मौजूदगी के कारण जाना जाता है। बाघों की शानदार आबादी के कारण मध्यप्रदेश को 'टाइगर स्टेट' का दर्जा मिला हुआ है। प्रदेश में आने वाले देशी-विदेशी पर्यटकों के लिए बाघ मुख्य आकर्षण का केन्द्र रहता है। कान्हा, बाँधवगढ़, पेंच, पन्ना और सतपुड़ा जैसी बाघ परियोजनाएँ और राष्ट्रीय उद्यान मध्यप्रदेश में हैं और यहाँ के आकर्षण में चार चाँद लगाते हैं।

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लेकिन अब इन सब पर खतरे के बादल मँडरा रहे हैं। ठीक वैसे ही जैसे यहाँ के जंगलों पर संकट है। आजादी के बाद इस प्रदेश में जंगल जहाँ कुल भूभाग का 40 प्रतिशत से ज्यादा थे वहीं अब ये सिमटकर 20 प्रतिशत से भी कम रह गए हैं। यही हाल कुछ शानदार जानवर बाघ का भी हो रहा है। पिछले दशक के अंत तक मध्यप्रदेश में बाघों की संख्या 700 से भी ज्यादा थी। वहीं अब ये घटकर 300 के आसपास रह गए हैं।

बारीकी से देखें तो प्रदेश में वयस्क बाघों की संख्या 264 है और बच्चों को मिलाकर इनकी संख्या 336 है। यह भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा पिछले साल की गई गणना पर आधारित आँकड़े हैं। हालाँकि वन्यजीव विशेषज्ञ अब भी मध्यप्रदेश के जंगलों को बाघों के हिसाब से सर्वश्रेष्ठ मानते हैं लेकिन इस प्रदेश का वन विभाग और सरकार इस खूबसूरत जानवर को लेकर गंभीर नहीं है और इसे खोने पर तुली है। 

अब तो मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने भी प्रदेश सरकार से पूछ लिया है कि वो बाघों को बचाने के प्रति कितनी गंभीर है और इस दिशा में उसने क्या कदम उठाया। प्रदेश सरकार को हाईकोर्ट के इस प्रश्न का उत्तर देना अभी बाकी है। कहा जा सकता है कि अगर लापरवाही का यही हाल चलता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब मध्यप्रदेश अपने 'टाइगर स्टेट' का दर्जा खो बैठेगा।

देशभर में हो रही है बाघों की संख्या में कमी : पिछले साल देश में बाघों की संख्या में उल्लेखनीय कमी दर्ज की गई थी। भारत के इतिहास में अब तक सबसे कम बाघ पिछले साल ही दर्ज हुए थे। 1997 में देश में जहाँ 3508 बाघ थे, वहीं दस साल बाद 2008 में इनकी संख्या घटकर मात्र 1411 हो गई। यह अभूतपूर्व कमी थी। 

यह संख्या 1972 में हुई बाघ गणना के आँकड़ों से भी कम थी जब देश में इस राष्ट्रीय पशु की संख्या घटकर महज 1827 रह गई थी। उस दौर में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने तुरंत कदम उठाते हुए देश में 'प्रोजेक्ट टाइगर' परियोजना शुरू करवाई थी। देश में अब 28 'प्रोजेक्ट टाइगर' रिजर्व हैं। इसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आए थे और 1997 में बाघों की संख्या बढ़कर साढ़े तीन हजार से भी ज्यादा हो गई।

2001-02 में भी ये 3642 बनी रही लेकिन अंततः नई शताब्दी का पहला दशक इस धारीदार जानवर के लिए घातक सिद्ध हुआ और इस दशक के अंत तक ये सिमटकर सिर्फ 1411 रह गए। फरवरी 2008 में बाघों की यह गणना देशभर में भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून ने की थी।

उल्लेखनीय है कि आजादी के ठीक बाद यानी 1947 में भारत में 40000 बाघ थे। बाघों की इस संख्या को लेकर भारत पूरी दुनिया में प्रसिद्ध था लेकिन बढ़ती आबादी, लगातार हो रहे शहरीकरण, कम हो रहे जंगल और बाघ के शरीर की अंतरराष्ट्रीय कीमत में भारी बढ़ोतरी इस खूबसूरत जानवर की जान की दुश्मन बन गई।

सबसे ज्यादा मध्यप्रदेश में घटे : 2008 में हुई गणना से पहले मध्यप्रदेश वन विभाग प्रदेश में 700 से ज्यादा बाघ होने के दावे किया करता था लेकिन इस गणना के बाद उन सब दावों की हवा निकल गई और असली संख्या 264 से 336 सामने आई।

भारतीय वन्यजीव संस्थान के अनुसार इस गणना में पता चला है कि सबसे ज्यादा बाघ मध्यप्रदेश में ही कम हुए हैं। कम होने या गायब होने वाले बाघों की संख्या 400 के आसपास है। आशंका जताई गई कि इनमें से ज्यादातर का शिकार कर लिया गया और उनके अंग दूसरे देशों को बेच दिए गए। 2009 इस जानवर के लिए और भी कड़ी परीक्षा वाला साबित होने वाला है क्योंकि शिकारियों की संख्या जहाँ लगातार बढ़ रही है वहीं बाघों की संख्या और उनका इलाका लगातार कम हो रहा है।

पन्ना में हुआ घोटाला सामने आया : मध्यप्रदेश का राष्ट्रीय उद्यान पन्ना बाघों के खत्म होने का सबसे पहला प्रतीक बना है। 2007 में वन विभाग ने यहाँ 24 बाघ होने का दावा किया था। पिछले साल भारतीय वन्यजीव संस्थान की टीम ने यहाँ 8 बाघ होने की बात कही लेकिन रघु चंदावत जैसे स्वतंत्र बाघ विशेषज्ञ ने यहाँ सिर्फ एक बाघ की मौजूदगी बताई। बाघिन का यहाँ नामोनिशान तक नहीं मिला।

वन्यजीव संस्थान के कैमरों में भी सिर्फ एक बाघ की तस्वीर आई। विशेषज्ञों के अनुसार ये अकेला बाघ यहाँ अपना परिवार नहीं बढ़ा पाएगा और पन्ना भी सरिस्का की राह चलकर अपने बाघों से हाथ धो बैठेगा। अब प्रदेश का वन विभाग सरिस्का की तर्ज पर यहाँ बाँघवगढ़ से एक बाघिन लाकर छोड़ने पर विचार कर रहा है ताकि ये बाघ-बाघिन प्रजनन कर अपनी आबादी बढ़ा सकें और ये राष्ट्रीय उद्यान 'बाघविहीन' होने से बच सके।

इस बारे में मध्यप्रदेश के पीसीसीएफ और मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक एचएस पाबला कहते हैं कि हमने मध्यप्रदेश में बाघों की संख्या बढ़ाने की व्यापक कार्ययोजना बनाई है। हम इसके लिए प्रयासरत हैं। पन्ना में बाँधवगढ़ से बाघिन को लाकर छोड़ने की कार्ययोजना पर भी काम चल रहा है। इस साल हम बाघों की संख्या बढ़ाने में जरूर कामयाब होंगे।

2 comments:

Anonymous said...

शायद आप जैसे लोगों के चींखने से बाघ बच जाए। लेकिन जब जंगल ही न बचेंगे तो बाघ कैसे बचेगा। अच्‍छी पोस्‍ट लिखी है आपने। आपके ब्‍लाग पर आना सार्थक हुआ।

संगीता पुरी said...

सचमुच चिंताजनक खबर है ... बाघों को बचाने के लिए जंगलों को बचाना आवश्‍यक है ... तभी अन्‍य उपाय भी किए जा सकते हैं।