February 21, 2009

क्या कूनो हो पाएगा कभी शेरों से आबाद?


सचिन शर्मा
भारत में योजनाएँ किस तरह धरी रह जाती हैं और विशेषज्ञों की राय को किस प्रकार कूड़ेदान में फेंक दिया जाता है, इसका एक उदाहरण ग्वालियर के नजदीक श्योपुर जिले का 'कूनो अभयारण्य' है। अब से 20 वर्ष पहले इस जगह को एशियाटिक शेरों (एशिया में पाए जाने वाले सिंह) से बसाया जाने वाला था। ये शेर गुजरात से लाए जाने थे। यह योजना भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून और केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा बनाई गई थी। 

लेकिन 20 साल बाद और 20 करोड़ रुपए खर्च करने के बाद भी इस योजना पर फिलहाल कोई अमल नहीं हो पाया है। यह अभयारण्य अब भी एशियाई शेरों की दहाड़ के लिए तरस रहा है। तमाम प्रकार के दावों और योजनाओं के बाद भी 20 वर्षों से इन शेरों के लिए तैयार खड़ा यह अभयारण्य 'जंगल के राजा' की बाट जोह रहा है। कूनो अभयारण्य पर बात करने से पहले हमें इस मामले को पूरी तरह से समझना होगा। दरअसल गुजरात के जूनागढ़ जिले में स्थित गिर राष्ट्रीय उद्यान एशियाई शेरों का एकमात्र घर है। हालाँकि ये एशियाई शेर एक समय पूरे भारत में और एशिया के अन्य देशों में भी पाए जाते थे लेकिन धीरे-धीरे इनकी आबादी सिकुड़ती गई और ये सिमटकर सिर्फ गुजरात के इस जिले में बचे रह गए। इस बात को भारत सरकार ने गंभीरता से समझा और 1965 में गिरवन क्षेत्र को संरक्षित घोषित कर दिया। इन जंगलों का 258 वर्ग किमी क्षेत्र राष्ट्रीय उद्यान घोषित है जबकि 1153 वर्ग किमी क्षेत्र संरक्षित अभयारण्य घोषित है। 2005 की गणना के अनुसार गिर में 359 एशियाई शेर थे। 

हालाँकि कुछ स्वतंत्र वन्यजीव विशेषज्ञ इनकी संख्या फिलहाल 300 के आसपास मानते हैं लेकिन इनकी संख्या वहाँ पहले के मुकाबले बढ़ी है, लेकिन यह संख्या भी जंगल के हिसाब से ज्यादा है और ये शेर जंगल से बाहर निकलने लगे हैं। इन शेरों को सबसे बड़ा खतरा जंगल में बसे सहरिया आदिवासियों के 24 गाँवों से भी है जो शेरों को अपना दुश्मन समझते हैं। लेकिन इसके अलावा विशेषज्ञों की एक दूसरी चिंता भी है। भारतीय वन्यजीव संस्थान ने 25 साल पहले एक शोध किया था और बताया था कि इन शेरों में 'इन-ब्रीडिंग' के चलते अनुवांशिक बीमारी हो सकती है। अगर ये बीमारी हुई तो इन शेरों की मौत हो सकती है और उसके चलते एशिया से शेरों का अस्तित्व खत्म हो सकता है। उस बीमारी से धीरे-धीरे लेकिन कम समय में ये सभी शेर मारे जा सकते हैं। वन्यजीव संस्थान ने इन शेरों में से कुछ शेरों को किसी दूसरे जंगल में स्थानांतरित करने की योजना बनाकर दी थी। संस्थान का मानना था कि इनब्रीडिंग के चलते अगर एक जगह किसी बीमारी से शेरों की नस्ल नष्ट हो जाती है तो दूसरी जगह के शेर अपनी नस्ल और अस्तित्व को बचा लेंगे, लेकिन गुजरात को यह बात समझ नहीं आई और वो अपने शेर ना देने पर अड़ गया। 

गुजरात का अड़ियल रवैया : गुजरात सरकार और वहाँ के कई स्वयंसेवी संगठनों ने यह निश्चय कर लिया है कि वन्यजीव विशेषज्ञों और केन्द्र सरकार की बात पर कोई ध्यान नहीं देना है। कूनो अभयारण्य में शेरों को गिरवन से लाए जाने का विरोध वहाँ की सरकार काफी पहले से कर रही है। शुरू में तो गुजरात सरकार ने इसके लिए सकारात्मक रवैया दिखाया था, लेकिन स्थानीय दबाव के चलते वह पलट गई और शेरों को मध्यप्रदेश भेजने का अपना फैसला उलट दिया। इतना ही नहीं गुजरात सरकार ने मध्यप्रदेश सरकार पर तरह-तरह के हमले बोलना भी शुरू कर दिया। पिछले साल गुजरात ने मध्यप्रदेश को वन्यजीव संरक्षण में नाकाम बताते हुए कहा था कि वो अपने घड़ियालों को नहीं संभाल पा रहे हैं तो शेरों को कैसे संभालेंगे। 

चिड़ियाघरों के शेरों से करेंगे आबाद : इस बीच कूनो के लिए एक अच्छी खबर भी आई थी। शेरों की लुप्त होती जा रही प्रजाति को बचाने के लिए केन्द्रीय जू प्राधिकरण (सीजेडए) ने एक योजना बनाई। इसके अंतर्गत देशभर के चिड़ियाघरों के शेरों की डीएनए जाँच कराई गई। इनमें से हैदराबाद और दिल्ली में मिले शेरों को शुद्ध एशियाई शेर माना गया और इन्हें कूनो भेजने की स्वीकृति प्रदान की गई। केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने इस योजना के लिए 71 लाख रुपए की पहली किस्त देने की बात भी मान ली। योजना के अंतर्गत इन शेरों की पहली पीढ़ी को अभयारण्य में विकसित किया जाएगा। दूसरी और तीसरी पीढ़ी के नर शेरों को जंगल में छोड़ा जाएगा लेकिन एक साल बाद भी ये मामला जस का तस है। 
इस बारे में मध्यप्रदेश के पीसीसीएफ एवं मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक एचएस पाबला कहते हैं कि फिलहाल मामला अटका हुआ है। केन्द्र से इजाजत जरूर मिली थी लेकिन रुपया अभी नहीं आया है। हमसे 'एमओयू' माँगा गया था जो हमने दे दिया लेकिन कूनो अभी भी सूना है। पाबला के अनुसार अब अगली बैठक में ही योजना के भविष्य का पता चल पाएगा।

उल्लेखनीय है कि कूनो वन्यजीव अभयारण्य की स्थापना 1981 में हुई थी। यह 344 वर्ग किमी क्षेत्र में बसा हुआ है। इसके अलावा 900 वर्ग किमी क्षेत्र अभयारण्य के बफर जोन में आता है। इस खूबसूरत अभयारण्य में भेड़िए, बंदर, तेंदुए और नीलगाय बहुतायत में मिलते हैं। विशेषज्ञों द्वारा यहाँ कुछ बाघों के होने की भी आशा जताई जाती है।


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