आज ये दोनों गाँधी परिवार में शामिल ही नहीं...!!!!!
दोस्तों, चूँकी मैंने आप लोगों से कहा था कि बात वरुण गाँधी और मेनका पर भी लाऊँगा, तो अपना वादा निभा रहा हूँ। इन चुनावों में राहुल गाँधी से ज्यादा प्रसिद्ध वरुण गाँधी रहे हैं। कारण भी साफ है। वरुण में राहुल के मुकाबले कहीं ज्यादा फायर है और राहुल राजनीति में जो स्थान पाँच वर्षों में नहीं बना पाए वो वरुण ने पाँच महीनों में ही बना लिया है। अब वे उप्र के मुख्यमंत्री की दौड़ में हैं और मुझे उप्र के एक महत्वपूर्ण शहर के अमर उजाला के संपादक ने बताया कि वरुण की वजह से इस बार उप्र में भाजपा की सीटें भी बढ़ सकती हैं। कोई कह सकता है कि आग उगल कर लाइम लाइट में आना तो किसी के लिए भी आसान हो सकता है। तो दोस्तों, मैं यहाँ कहना चाहता हूँ कि आप और हम में से कई लोग टेलेंटेड हैं, लेकिन आगे नहीं आ पाते...इसका कारण है कि भारतीय राजनीति में शुरुआती स्थान तो फायर ब्राण्ड अपनाकर ही बनाया जा सकता है। नरेन्द्र मोदी का उदाहरण आपके-हमारे सामने है। शुरुआत में उन्होंने फायर दिखाकर ही राजनीति में स्थान बनाया, बाद में योजनाओं, विकास और प्लानिंग के बलबूते पर अच्छी तरह जमे और इंडिया टुडे की पिछले तीन सालों से सर्वेश्रेष्ठ मुख्यमंत्री की सूची में पहले स्थान पर बने हुए हैं औऱ यह तय है कि अगले लोकसभा चुनाव यानी 2014 में वे ही भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे।
दोस्तों, बात वरुण और मेनका की चल रही थी। तो मैं यहाँ बताना चाहता हूँ कि तीस साल पहले इंदिरा गाँधी के मन में सिर्फ संजय गाँधी थे। राजीव गाँधी तब हवाई जहाज उड़ा रहे थे और संजय देश की राजनीति को समझ रहे थे। वो भी फायर ब्राण्ड थे और वही फायर वरुण के चेहरे और क्रिया से भी नजर आता है। तो संजय के दौर में इंदिरा को कोई चिंता नहीं थी। वो व्यक्ति सबको ठिकाने लगा सकता था। तभी इंदिरा जी इमरजेंसी के बाद हुए चुनावों में बुरी तरह हार गईं। उन्हें जेल हुई। उस समय संजय गाँधी ने ही मेनका गाँधी के साथ उन्हें जेल से बाहर निकालने के लिए हो-हल्ला मचा दिया था। उस पूरे एपिसोड में मेनका उनके साथ रही थी। इन दोनों ने मिलकर इंदिरा जी के लिए आंदोलन चलाया। कोर्ट में केस किए और तब तक लगे रहे जब तक कि वे बाहर नहीं आ गईं। लेकिन इस दौरान इंदिरा जी की बड़ी बहू यानी सोनिया जी कहाँ थीं...??? सोनिया उस समय विदेश में थीं। इटली में अपने वीजा रीनीवल के लिए लगी हुई थीं। सनद रहे कि सोनिया ने हाल के कुछ वर्षों पहले ही भारत की नागरिकता ली है और इस देश की जनभाषा हिन्दी सीखी है। हालांकि वो हिन्दी कितना अच्छा सीख पाई हैं इस बारे में आप लोग ही तय करें... :)
तो दोस्तों, संजय गाँधी की मौत के समय वरुण कुछ महीने के थे। तीन महीने के। उसने अपने पिता को लगभग नहीं देखा। मेनका ने शुरुआती संघर्ष किए लेकिन इंदिरा गाँधी उनसे चिढ़ती थीं। क्योंकि मेनका एक सिख लड़की थी और वो उन्हें अपनी बहू के रूप में स्वीकार नहीं कर रही थीं। तो मेनका अगर सिख थीं तो सोनिया तो पूरी तरह से विदेशी थीं। फिर क्या बात हुई...???? सोनिया ने काफी आगे की सोच रखी थी। इंदिरा जी के सामने ही सोनिया ने मेनका की उस घर से छुट्टी करा दी। सोनिया जानती थीं कि मेनका उस समय जनता के बीच सोनिया से अधिक जानी जाती थीं और देर-सबेर अपने फायरी व्यक्तित्व के कारण राजीव जी पर भी भारी पड़ सकती थीं। आज इंदिरा जी को गए 25 साल हो गए। इस ढाई दशक में सोनिया ने मेनका और उनके बेटे वरुण को इतने किनारे लगा दिया कि जब भी गाँधी परिवार का नाम आता है तो ये दोनों बेचारे तो सामने नजर ही नहीं आते। इन्हें तो ऐसे छाँट दिया गया जैसे ये खैराती हों, जबकि संजय गाँधी इंदिरा जी की आँखों के तारे थे और अगर वो जीवित होते, तो ना राजीव सामने आते और ना ही ये सोनिया। अब वरुण बड़े हो गए हैं। पूरे 29 साल के। पिछले लोकसभा चुनाव में वरुण की किस्मत साथ नहीं थी और वो तब 24 साल के ही थे नहीं तो वो तभी सांसद बन गए होते, ठीक सचिन पायलट की तरह (उल्लेखनीय है कि लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए 25 वर्ष की उम्र न्यूनतम है और सचिन 25 की उम्र में ही सांसद बने थे)। लेकिन वरुण को तब पूरे पाँच साल इंतजार करना पड़ा था लेकिन इस बार वो तैयारी के साथ सामने हैं। वरुण जानते हैं कि सोनिया ने किस प्रकार से उनके साथ खेल खेला है। वरुण की माँ मेनका ने उन्हें सब कुछ बता रखा है। गाँधी परिवार के घर की सभी अंदरुनी बातें। वरुण पिछले 30 सालों का हिसाब-किताब बराबर करना चाहते हैं। उन्हें जल्दी भी है और ध्यान रखें कि उन्होंने अभी तक अपने गाँधी होने की जिक्र नहीं किया है, हाँ वे हिन्दू होने की बात जरूर कहते हैं। वरुण उत्तरप्रदेश में भाजपा को वापस लेकर आएँगे और भाजपा यह बात जानती है कि उसके पास तुरुप का इक्का है। वो उन्हें वीआईपी की तरह ट्रीट करती है। ठीक गाँधी परिवार के सदस्य होने के नाते....।
आपका ही सचिन.....।
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