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दोस्तों, शुक्रवार 30 अक्टूबर को इंदौर के दैनिक भास्कर में एक खबर पढ़ रहा था। यह खबर अखबार की एंकर स्टोरी (यानी बॉटम में लगने वाली खबर) बनाई गई थी। इसमें जो लिखा था वो दरअसल मेरे मन की बात थी जिसे मैं कई दिनों से सोच रहा था। इस स्टोरी ने जैसे मेरी सोच को शब्द दिए। यह सोच इस साल जुलाई से शुरू होने वाले नए शैक्षणिक सत्र से ही चल रही थी जब मैं काले मन के व्यापारियों को कॉलेज खोले बैठे हुए देख रहा था। वो कॉलेज मुझे सुरसा के मुंह जैसे दिखाई दे रहे थे जिनमें किसी छात्र का प्रवेश लेना उसके कैरियर के लिए काल जैसा ही दिख रहा था। इस समय भारत में शिक्षा ने जिस कदर काली चादर ओढ़ रखी है वैसी इससे पहले वह कभी नहीं दिखी। अब प्रोफेशनल और टेक्नीकल इंस्टीट्यूट्स में आने वाला छात्र शिष्य कम और ग्राहक अधिक होता है जिससे ये तथाकथित शिक्षा के मंदिर ज्यादा से ज्यादा रुपए लूटने की फिराक में रहते हैं और दो या चार साल के बाद एक ऐसी डिग्री पकड़ा देते हैं जिसकी कहीं कोई कीमत नहीं होती।
तो बात शुरू की जाए। असल में मैंने पिछले साल पढ़ा था कि मध्यप्रदेश में इंजीनियरिंग के इतने कॉलेज हैं कि पिछले वर्ष उसमें सीटें बच गईं। मतलब पूरे प्रदेश में इंजीनियरिंग कॉलेजों में सीटें 60 हजार थीं जबकि बच्चे सिर्फ 53 हजार। पीईटी (प्री इंजीनियरिंग टेस्ट) में शून्य अंक लाने वालों को भी इन कॉलेजों ने एडमिशन दे दिया, उसके बाद भी सात हजार सीटें बच गईं। इस बार स्थिति और अधिक रोचक हो गई। इस बार हमारे प्रदेश की एबली सरकार ने और अधिक कॉलेज खोलने के लिए लाइसेंस दे दिए, नतीजतन इस साल इंजीनियरिंग कॉलेजों में 29 हजार सीटें खाली रह गईं। ओफ, कमाल हो गया। ये कॉलेज हैं या रेवड़ी बाँटने के सेंटर। इन्होंने इंजीनियरिंग डिग्री की यह गत कर दी है कि अगर आप बीच बाजार आसमान में पत्थर उछालें और अगर वो नीचे किसी युवक के सिर पर जाकर गिरे, तो यकीन मानिए वो युवक इंजीनियरिंग ही कर रहा होगा।
लेकिन मैंने लेख के शुरू में जिस खबर का जिक्र किया था वो मेरी अपेक्षा से एक कदम आगे की निकली। इस खबर में बताया गया था कि प्रदेश भर में इंजीनियरिंग के साथ-साथ अन्य प्रोफेशनल कोर्सेस की भी बुरी हालत है। एक समय कैरियर के लिए इंजन माने जाने वाले एमबीए और एमसीए कोर्से भी इसमें शामिल हैं। इसके साथ-साथ फार्मेसी जैसा विषय भी शामिल है जो एक समय बहुत पॉपुलर था। इसका सिर्फ एक ही मुख्य कारण है, कि हमारे बाकी सरकारी विभागों की तरह ही एआईसीटी (ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन) जैसे संस्थान भी भ्रष्ट हो गए हैं। वो काली कमाई वाले ताकतवर लोगों को अपनी कमाई को सफेद करने का मौका दे रहे हैं और इसके लिए एआईसीटी और आरजीपीवी (मध्यप्रदेश की टेक्नीकल यूनिवरसिटी) जैसे संस्थान उनको मदद कर रहे हैं। अब जब इस देश की शिक्षा ही बिगड़ने लगी है, नाकाबिलों को डिग्री बाँट रही है तो ऐसे युवाओं से देश के निर्माण की क्या अपेक्षा की जा सकती है?
खबर के अनुसार मध्यप्रदेश में एमबीए, एमसीए और फार्मेसी की कुल सीटों की लगभग आधी खाली रह गई हैं। यह हालात शर्मनाक हैं। जिन कोर्सेस के लिए मारा-मारी मची रहती थी वो कोर्सेस अपनी साख खोते जा रहे हैं और मर रहे हैं। यह सब सिर्फ निजी इंस्टीट्यूट्स की वजह से ही हो रहा है। अब ऐसे फर्जी कॉलेज अपने स्टाफ पर दबाव बना रहे हैं और कह रहे हैं कि वो कहीं से भी कॉलेज में भर्ती के लिए छात्र ढूँढकर लाएँ नहीं तो उनकी नौकरी गई समझो। मध्यप्रदेश के ग्वालियर शहर का एक रोचक किस्सा है मेरे पास। वहाँ के ऐसे ही एक निजी कॉलेज में मेरे एक परिचित काम करते हैं। कुछ रोज पहले उनके यहाँ पूरे स्टॉफ को बुलाकर कह दिया गया कि कॉलेज की 750 सीटों में से सिर्फ 250 सीटें भरी हैं। ऐसे में आप लोगों को वेतन देना मुश्किल हो सकता है इसलिए आप सब लोग कैसे भी करके 2-2 छात्रों का कॉलेज में एडमिशन करवाइए। अगर नहीं करवा पाते हैं तो आप लोगों की नौकरी चलना मुश्किल हो जाएगी। अब उस कॉलेज का पूरा स्टाफ परेशान है कि कैसे छात्रों को ढूँढा जाए क्योंकि कॉलेज की प्रति सेमेस्टर फीस ही 45000 रुपए है और किसी से हर छह माह में इतनी बड़ी रकम खर्च करवाना कोई आसान काम नहीं है। अब कई लोग उस कॉलेज को मजबूरी में छोड़ने की योजना बना रहे हैं।
कमोबेश ऐसी ही हालत कई शहरों के कई इंजीनियरिंग कॉलेजों की है। एक-एक शहर में 70-80 कॉलेजों का जमावड़ा लग गया है। जिसे देखो वो अपनी काली कमाई को सफेद करने के लिए शिक्षा में धन लगा रहा है। कुछ साल पहले पता चला था कि मध्यप्रदेश सरकार के कई मंत्रियों ने नर्सिंग कॉलेज खोल लिए थे। फिर गाज बीएड कॉलेजों पर गिरी और उनके गिरे हुए स्तर को देखकर हाईकोर्ट ने कई बार उन कॉलेजों को परीक्षा लेने पर ही बैन लगा दिया। कुल मिलाकर जिस विषय की जितनी ज्यादा माँग होती है उसके पीछे ये काली कमाई वाले मक्कार उतने ही ज्यादा पड़ जाते हैं और उस कोर्स की दम निकालकर ही दम लेते हैं। अब बारी इंजीनियरिंग और प्रोफेशनल कोर्सेस की चल रही है।
देश के पूर्व मानव संसाधन मंत्री माननीय अर्जुन सिंह ने जहाँ आईआईटी-आईआईएम जैसे संस्थानों में कोटा सिस्टम लागू करके उनकी जो दुर्गति की थी वही काम अब बाकी नेता और अन्य रैकेटियर्स निजी संस्थानों द्वारा कर रहे हैं और हमारी शिक्षा का कबाड़ा किए दे रहे हैं। ये संस्थान अपने यहाँ पढाने वालों की भी दुर्गति करके रखते हैं। उनसे 20000 वेतन पर साइन लेते हैं और देते 8000 रुपए हैं। इन संस्थानों में शिक्षकों की हालत चपरासियों जैसी होती हैं और रुतबे वाले छात्र उन्हें कुछ नहीं समझते क्योंकि वो जानते हैं कि उन्हीं की दी हुई फीस से वो कॉलेज चल रहा है और इन शिक्षकों का वेतन निकल रहा है। अब बाजार बनते जा रहे इन कॉलेजों के आगे बहुत बड़ा गड्ढा खुद चुका है। वो अपने ही बनाए मायाजाल में फँसते जा रहे हैं। येन केन प्रकारेण संबंद्धता बेची जा रही है, कॉलेजों के झुंड खुल रहे हैं और छात्रों के जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। कुल मिलाकर शिक्षा का ये काला धंधा गहरी धुंध में बदलता जा रहा है और ऐसा सिर्फ हमारे मध्यप्रदेश में ही नहीं बल्कि देश के हर उस राज्य में है जहाँ शिक्षा देना कर्तव्य नहीं सिर्फ धंधा समझा जा रहा है।
आपका ही सचिन...।