October 25, 2009
बम विस्फोट आखिर पाकिस्तान में क्यों..??
दहशतगर्दी का दर्द समझ आ रहा होगा पाकिस्तान को
पिछले कुछ दिनों से लगातार कुछ खबरें सुन रहा हूँ। यह खबरें वैसे तो हम मानसिक सुकून देने वाली कह सकते हैं लेकिन फिर भी मैं इनपर कुछ सोचने के लिए विवश हुआ। आप दोस्तों से शेयर करना चाहता हूँ जैसी कि मेरी आदत है। यहाँ मैं बात कर रहा हूँ पाकिस्तान में लगातार हो रहे बम विस्फोटों की। कई बार तो इन विस्फोटों की भयावहता देखकर लगता है कि ओफ..अगर यह सब भारत में हुआ होता तो कितना भयानक मंजर होता...!!!! भारत की आशंका इसलिए जागी क्योंकि जिस तरह से पाकिस्तान में विस्फोट किए जा रहे हैं और जो लोग विस्फोट कर रहे हैं वो वही लोग हैं जो भारत में आतंक फैलाते रहे हैं। यहाँ की तर्ज पर ही वहाँ भी विस्फोट हो रहे हैं। कारण भी वही है....बहुचर्चित धर्म.....।
दोस्तों, जब पाकिस्तान में विस्फोट होते हैं तो वहाँ के मुस्लिम बाशिंदों के भी उसी तरह फटे हुए बदन आसमान में उड़ते हैं जैसे यहाँ हिन्दुओं के उड़े थे। दोनों ही इंसान हैं लेकिन दहशतगर्दों को यह नहीं दिखाई देता। उन्हें दिखता है कि उनकी धर्मांधता और उसके फैलाव में रोड़ा कौन बन रहा है। पाकिस्तान ने आतंकवाद को लंबे समय तक प्रशय दिया। उसे पाला पोसा। बहुचर्चित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (खुदा की पवित्र फौज) का कई एकड़ों में फैला मुख्यालय पाक राजधानी इस्लामाबाद से कुछ ही सौ किमी दूर है। ऐसे में पाकिस्तानी आवाम को माँस के लोथड़ों में तब्दील होता हुआ देख आश्चर्य होता है। हालांकि इसके स्पष्ट कारण हैं जो आपको और हमको दोनों को पता हैं लेकिन असमंजस की स्थिति देखिए कि खुदा (?) के लिए काम करने वाली दो फौजें आपस में लड़ रही हैं और मर रही हैं। पाकिस्तान फौज और उसकी इंटेलीजेंस एजेंसी आईएसआई ने लंबे समय तक (लगभग दो दशक) आतंकियों का साथ दिया। उन्हें इतना मजबूत बनाया कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार अरब से पनपे अल कायदा से ज्यादा धन-संपदा और संसाधन पाकिस्तान और अफगानिस्तान से पनपे तालीबान के पास है। अमेरिकी वर्ल्ड ट्रेड टॉवरों को ध्वस्त करने के बाद अमेरिका ने पाकिस्तान को पुचकारने और लताड़ने का काम शुरू किया। पुचकारने का ऐसे कि उसे भरपूर आर्थिक सहायता दी गई जिससे उसकी सामाजिक जरूरतें पूरी हो सकें। लताड़ने का ऐसे कि पाकिस्तान को इसके एवज में तालीबान के खिलाफ जंग छेड़नी थी। उसी तालीबान के खिलाफ जो पाकिस्तानी फौज का बच्चा था। अब यह बच्चा बड़ा हो गया है और बाप को टक्कर दे रहा है।
तालीबान के पास कभी निर्दोषों की जान लेने के अलावा कोई विकल्प रहा ही नहीं। वो डराकर अपने धर्म को दूसरों के ऊपर हावी करना चाहता है। लेकिन उसे यह समझ नहीं आता कि आधुनिक दुनिया में यह काम उतना आसान नहीं रहा जितना 500 या 1000 साल पहले था। आज तालीबान के पास जितने संसाधन या धन होगा उतने समूचे धन की तो अमेरिका, जापान या चीन में एक अकेली अत्याधुनिक इमारत होगी। जहाँ तक हथियारों की बात है तो एके-47 या रूस से लूटे हुए टैंकों के बल पर दुनिया भी फतह नहीं की जा सकती। हाँ, एक यक्ष प्रश्न जरूर हमारे सामने खड़ा है कि पाकिस्तान के परमाणु बमों पर तालीबान कहीं कब्जा करके उन्हें भारत या अन्य योरपीय या अमेरिकी देशों के लिए इस्तेमाल ना कर दे। तो यह आशंका समूचे विश्व के मानस पर अंकित है और आए दिन अमेरिकी सैन्य विशेषज्ञ यह आशंका जाहिर करते भी रहते हैं और पाकिस्तान उस आशंका पर अपना यह कहकर स्पष्टीकरण भी देता रहता है कि उसके कंट्रोल में सबकुछ है और उसके परमाणु बम पूरी तरह सुरक्षित हैं। दूसरी एक आशंका यह भी है कि चीन तालीबान को उन परमाणु हथियारों को हड़पने या बनाने में मदद करे क्योंकि उसके दुश्मन लगभग वही देश हैं जिन्हें मुस्लिम दुनिया अपना दुश्मन मानती है। हालांकि इस्लामिक दुनिया के कई राष्ट्र प्रोग्रेसिव हैं और आतंकवाद की निंदा करते हैं लेकिन तालीबान को लगता है कि वो राष्ट्र अंततः उसी का साथ देंगे और अगर नहीं देंगे तो धर्म के फैलाव के आड़े आने के कारण उनका हर्ष भी वही किया जाएगा जो वर्तमान में पाकिस्तान का किया जा रहा है।
पाकिस्तान में हो रहे लगातार धमाके और चिंदे-चिंदे हो रहे वहाँ के नागरिक और मानवता को लेकर यह अब साफ हो गया है कि तालीबान किसी का नहीं है। जिस देश के लोगों के रूपयों से उसने संसाधन जुटाए उसी देश के लोगों (जो उसके समान धर्म के भी हैं) का नाश करने से वो नहीं चूक रहा। अब उसकी प्रायरोरिटी पर भारत नहीं बल्कि पाकिस्तान है और अब वहाँ के आत्मघाती लड़ाकों को यह बताया जा रहा है कि अगर अल्लाह की बनाई जन्नत में जाना है तो अमेरिका का साथ देने वाले पाकिस्तान के लोगों को लाशों में बदलो। पाकिस्तान दुविधा में है, वो ना चाहते हुए भी तालीबानी आतंकवादियों के खिलाफ बड़ी लड़ाई लड़ रहा है और हजारों तालीबानियों को मौत के घाट उतार चुका है। उसके कई सैनिक और कई मासूम बाशिंदे भी इस लड़ाई में मारे जा रहे हैं लेकिन पीओके और अफगानिस्तान से सटी पाकिस्तानी सीमा पर बसे गाँव के लोग मानते हैं कि इस धर्मांध तालीबान का नाश होना ही चाहिए। वो त्रस्त हो चुके हैं ऐसे वातावरण से जिसमें वो सिर्फ नमाज पढ़ने वाले बनकर रह गए हैं। उन्हें सिर्फ वही करने की इजाजत है जो 1400 पहले थी। आधुनिक दुनिया में उनको झाँकने तक की इजाजत नहीं है। ऐसे में उनका दम घुट रहा है। पाकिस्तान के लोगों को यह अहसास हो रहा होगा कि दहशतगर्दी में जीने पर कैसा महसूस होता है।
आपका ही सचिन....।
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3 comments:
khoon-khraba dekhkar apko mansik sukoon milta he............ap manush to nahi ho sakte............
बहुत गलत सोच है मेरे दोस्त "यह खबरें वैसे तो हम मानसिक सुकून देन वाली कह सकते हैं लेकिन...." सत्य तो ये है कि पड़ोसी के घर में लगी आग हमारे घर की तरफ कभी कभी रुख कर सकती है।
@ कबीरा भाई...मैं मनुष्य ही हूँ इसलिए तो बदले की आग में जलकर यह सब लिखा है मैंने। क्योंकि भारत की र्दुगति देखकर हमेशा पाकिस्तान को मानसिक सकून ही तो मिलता है। लेकिन अगर मैं मनुष्य नहीं होता तो शायद इस भयावहता का विष्लेषण भी नहीं करता। आपने सिर्फ एक पैरा पढ़कर यह निष्कर्ष निकाल लिया कि मैं मनुष्य नहीं हूँ।
@ कुलवंत....पड़ोसी की आग हमारे यहाँ नहीं आई कुलवंत, बल्कि हमारी आग पड़ोसी के घर पहुँची है। आतंकवाद ने भारत में अब तक 10 लाख लोगों की जान ली है जिसमें 40000 लोग तो हमारे सुरक्षाबलों के थे। पाकिस्तान तो आतंकवाद ही आग अब झेल रहा है। और क्यों झेल रहा है इसी बात पर यह पोस्ट लिखी गई है। सुकून वहाँ मरने वालों को देखकर नहीं बल्कि इस बात का है की आतंकवाद का स्वाद आखिरकार उन्होंने भी चखा।
- सचिन
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