October 01, 2009
खोखला चीन..!!
शक्ति प्रदर्शन से रौब जमाना चाहता है मानसिक रूप से दिवालिया चीन
दोस्तों, आज का दिन (1 अक्टूबर 2009, गुरूवार ) चीन का था। उससे संबंधित कई खबरें इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर थीं। उसने आज अपनी स्थापना (माओ के नए चीन या कहें साम्यवादी शासन) के 60 वर्ष जो पूरे कर लिए थे। उसने आज बीजिंग की विख्यात (बदनाम) थ्येनआनमन चौक पर पुख्ता प्रबंध कर रखे थे। वहाँ आस-पास रहने वाले लोगों को घरों में बंद कर दिया गया था, उन्हें शुक्रवार को ही बाहर निकलने की इजाजत थी। चीनी सरकार ने कई एंगलों पर कैमरे फिट करवाए थे और इस परेड की विभिन्न कोणों से शूटिंग हो रही थी जो पूरे संसार में दिखाई जाने वाली थी। चीन ने इस परेड के लिए अपने सैनिकों को विशेष आदेश दे रखे थे जिनमें वे 40 सेकेण्ड में सिर्फ एक बार अपनी पलकें झपका सकते थे। बीजींग ओलंपिक की तर्ज पर इन इंतजामों को भव्यतम बनाने के लिए प्रयास किए गए थे जिससे पूरी दुनिया चीन का लोहा माने, अमेरिका उससे चमके और भारत खौफ खाए। चीन ने इस अवसर पर 52 अत्याधुनिक हथियारों का प्रदर्शन भी किया जो उसी के देश में निर्मित हैं। इनमें कई लड़ाकू विमान भी शामिल थे जिन्हें चीन ने खुद ही विकसित किया है।
चीन ने इतना ही नहीं किया, उसने आज के इस विशेष दिन एक और कमाल कर दिया। उसने बता दिया कि वो कश्मीरियों को भारतीय नहीं मानता है। ताजा मामला वीजा से जुड़ा है, जिसमें चीनी दूतावास द्वारा कश्मीरियों के लिए अलग आवेदन प्रक्रिया अपनाने की बात सामने आई है। समाचार चैनल एनडीटीवी इंडिया की मानें तो चीनी दूतावास में वीजा के लिए कश्मीरियों से अलग से आवेदन पत्र लिए जा रहे हैं। उन्हें दूतावास में पासपोर्ट पर स्टाम्प लगाने को भी कहा गया है। वीजा का आवंटन दूसरे पेपर किया जा रहा है। भारत सरकार ने इस पूरे मामले पर कड़ी आपत्ति जताई है। उसका कहना है कि चीन द्वारा जारी ऐसे किसी भी वीजा को वैधानिक नहीं माना जाएगा। सरकार ने इस संबंध में सारे एयरपोर्ट को अलर्ट कर दिया है, ताकि किसी भी प्रकार की गैरकानूनी गतिविधि को रोका जा सके।
हालांकि भारत की कड़ी आपत्ति मुझे कोरी बात ही लगती है क्योंकि चीन के 60वें राष्ट्रीय दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह ने चीन सरकार और वहां की जनता को बधाई देते हुए आज एक बार फिर दोहराया कि भारत अपने इस मित्र पडोसी देश के साथ अपने संबंधों को और बढाने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। डॉ. सिंह ने चीनी प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ को भेजे एक बधाई संदेश में कह दिया कि पिछले चार वर्षो में शांति और समृद्धि के लिए दोनों देशों के बीच सामरिक और सहयोग की साझेदारी बनी है और वैश्विक तथा अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दो पर दोनों देशो के बीच सहयोग और समन्वय भी हुआ है। उन्होंने कहा- “हमारे बीच संबंधों को और मजबूत बनाने के लिए भारत पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। “चीन के लोगों के लिए यह महत्वपूर्ण मौका है। पिछले 60 वर्षों में आपके इस महान देश ने कई उपलब्धियां हासिल की है। अच्छे पडोसी और विकासशील देश होने के नाते भारत में हम इस महत्वपूर्ण मौके पर आपके खुशी के पलों को बांट रहे है।”
अब हमारे प्रधानमंत्री के यह हाल हैं कि वो आँखें दिखा रहा है और हम गिड़गिड़ा रहे हैं जबकि हम जानते हैं कि शक्ति प्रदर्शन और एग्रेशन से ही शक्ति संतुलन बनता है नहीं तो पिछले 1000 सालों में हमने देख लिया है कि सज्जन और सहृदय बनने से क्या होता है..!!!!
दोस्तों, मैंने आज दरअसल अपनी पोस्ट का हैडिंग कुछ अलग रखा था। मैंने चीन को खोखला यूँ ही नहीं कहा। चीन के इतिहास में झाँकें तो हम कुछ ये बातें पाएँगे...
- जो लोग चीन को अच्छी तरह से जानते हैं उनके अनुसार चीन ने भले ही विकास किया हो, परंतु अब भी वहाँ पर लोकतंत्र नहीं है। लोगों पर आदेश थोपे जाते हैं।
- 1949 से 79 तक चीन में माओवाद छाया रहा। इस दौरान चीन ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी राजनीतिक पहचान बनाई और अमेरिका व नाटो से दोस्ती बढ़ाकर रूस का विरोध किया।
- माओ ने अपने समय केवल सांस्कृतिक क्रांति के नाम पर अरबों रुपए खर्च कर दिए थे। 1979 में स्थिति यह थी कि एक-तिहाई चीन अनपढ़ था तथा गरीबी बहुत थी। 1959-62 में पड़े सूखे से लाखों लोग मारे गए तथा उसमें माओ सरकार ने कितना पैसा खर्च किया इसका कोई हिसाब ही नहीं था।
- माओ के समय बेरोजगारी चरम पर थी तथा अर्थव्यवस्था ग्रामीण आधारित ही थी।
- चीन में टेक्नोलॉजी के बारे में मदद ताईवान द्वारा की गई। ताईवान ने चीन को कई प्रकार की विश्व टेक्नोलॉजियों से अवगत करवाया।
- 1979 से अब तक डेंग जियाओपिंग ने समाजवाद के चीनी तरीके को अपनाया तथा कानून व्यवस्था से लेकर आर्थिक सुधार कानून लागू किए।
- चीन के ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार की अनुमति के बाद किसान अपने लिए फसल का कुछ हिस्सा रखने लगे।
- शहरी क्षेत्रों में 'स्पेशल इकोनॉमिक जोन" बनाए गए जहाँ सस्ते मजदूर उपलब्ध थे और पर्यावरण की चिंता करने जैसी कोई बात नहीं थी। साथ ही टेक्स हॉलिडे भी दिए गए।
- चीन में पर्यावरण की अनदेखी की गई तथा वहाँ पर ऐसी टेक्नोलॉजी से उत्पादन किया गया जो कि विश्व में कही पर भी उपयोग नहीं की जाती थी। इससे प्रदूषण काफी फैला। आज भी चीन में जंगल साफ हैं और वन्यजीवों के नाम पर कुछ नहीं है। चीनी सबकुछ खा गए। मारकर और पकाकर। वहाँ से बाघों का सफाया कर दिया गया और अब चीनी लोग भारत के बाघों को मरवा रहे हैं। यहाँ के मरे हुए बाघ वहीं जाकर बेचे जाते हैं। वहाँ उनकी हड्डियों और अन्य अंगों को यौन उत्तेजक दवाइयों के रूप में काम में लिया जाता है।
- आज चीन भारत से 2.5 गुना ज्यादा तथा जापान से 7 गुना ज्यादा ऊर्जा का उपभोग कर रहा है।
- चीन की गिनती विश्व के सबसे प्रदूषित देशों में होती है। क्योंकि वहाँ पेड़ नहीं है, बहुत बड़ा रेगिस्तान है और पर्यावरण संरक्षण की चिंता ना के बराबर है।
- एक अनुमान के मुताबिक चीन को प्रदूषण के कारण अब तक 60 बिलियन डॉलर्स का नुकसान हो चुका है।
- सामाजिक और आर्थिक दोनों स्तरों पर चीन के ग्रामीण व शहरी क्षेत्र में काफी अंतर है। वहाँ ग्रामों में व्यवस्था बहुत खराब है। सब गाँव आबादी की समस्या से जूझ रहे हैं और महानगरों में भी स्लम एरिया बहुत हैं। इन्हीं सबको छुपाने के लिए चीन ने ओलंपिक और स्थापना दिवस पर विशेष इंतजाम किए थे।
- चीन में सामाजिक पतन काफी तेजी से हो रहा है और लाखों की संख्या में परिवारों में विघटन देखने में आ रहा है। यह सब पश्चिम के प्रभाव से हो रहा है क्योंकि समाज का मॉर्डनाइजेशन बहुत तेजी से बढ़ा है।
कुल मिलाकर चीन ऊपर से खूबसूरत लेकिन अंदर से बदसूरत है। इस देश से संसार में चिढ़ने वाले देशों की संख्या भी बहुत अधिक है क्योंकि पीठ में खंजर घोंपने का इसका इतिहास काफी पुराना है। ताइवान की मदद का सिला भी इसने इसी प्रकार दिया कि उस पूरे देश पर ही अपना अधिकार जताने लगा। आज चीन के बने नकली और सस्ते सामान पर ज्यादातर देश प्रतिबंध लगा रहे हैं और सिर्फ इस्लामी देश ही चीन के साथ मित्रता निभा रहे हैं क्योंकि यूएई और सऊदी अरब के ज्यादातर बड़े कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट्स जो अरबों डॉलर के हैं, सिर्फ चीन को दिए जा रहे हैं। पहले ये अमेरिका और योरपीय देशों को दिए जाते थे लेकिन विश्व के धर्म के आधार (मुस्लिम, ईसाई, यहूदी) पर बँटने के बाद इसका सीधा फायदा चीन को मिला है। अब चीन अपना शक्ति प्रदर्शन कर रहा है। अपने लोगों की जबरन आँखें खुली रख रहा है, उन्हें पलकें नहीं झपकाने दे रहा है। लेकिन अब चीन को समझना चाहिए कि वो बंधन में अपने समाज को कब तक बाँधकर रखेगा। कब तक खूबसूरत चेहरों को संसार के सामने लाता रहेगा (वो बीजिंग ओलंपिक वाली घटना याद है आपको जिसमें उदघाटन अवसर पर एक खूबसूरत लड़की को गाना गाते दिखाया गया था जबकि आवाज एक दूसरी लड़की की थी जो दिखने में उतनी सुंदर नहीं थी इसलिए चीन ने उसे पार्श्व में रखा था, बाद में ये मामला खुला था)। चीन को अब अपने नागरिकों को सुपरपॉवर वाले दिग्भ्रम से बाहर निकालना चाहिए क्योंकि वो आजादी चाहते हैं, जो हर समाज का सपना होता है। चीन को मानवाधिकारों के लिए कुछ करना चाहिए क्योंकि वहाँ की जनता का दम घुट रहा है। इस जनता में चीन, हांगकांग और तिब्बत की जनता शामिल है ।जिस दिन वहाँ इन अर्थों में आजादी होगी उसी दिन यह माना जाएगा कि वाकई चीन सुपरपॉवर बन गया है क्योंकि वहाँ की जनता तब अपने को स्वतंत्र मान सकेगी, और वो स्वतंत्रता जबरदस्ती की नहीं होगी।
(नोटः यहाँ जब भी चीन का उल्लेख किया गया है वह वहाँ की सरकार के संदर्भ में माना जाए क्योंकि किसी देश की एकमुश्त जनता कभी खराब हो ही नहीं सकती, वो तो सरकार की नीतियाँ ही होती हैं जो उस देश की छवि को बनाती और बिगाड़ती हैं)
आपका ही सचिन....।
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