आज किसी काम से आईएमएस (इंदौर का मेनेजमेंट इंस्टीट्यूट) गया था......वहाँ तमाम प्रकार के लड़के-लड़कियाँ (सभी छात्र-छात्राएँ थे) दिखे। कई प्रकार की बातें भी चल रही थीं। सब संभ्रांत थे और मैनेजर्स बनने वाले थे.....लेकिन उन सबके बीच कॉमन बात पता है क्या हो रही थी...कि इस कोर्स (एमबीए) को करने के बाद किसे कितना पैकेज मिलेगा...
थोड़े दिन पूर्व अपने एक मित्र से मिलने जीएसआईटीएस (इंदौर का इंजीनियरिंग कॉलेज) गया था। मेरे मित्र वहां सहायक प्राध्यापक (मैकेनिकल) हैं... जबरदस्त मंदी के बावजूद वहां भी लड़के-लड़कियां उसी पैकेज की बातें कर रहे थे। मैं सोच रहा हूं कि क्या हमारी युवा पीढ़ी का वर्तमान ध्येय किसी मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी ढूंढना और अच्छे पैकेज पर ढूंढना भर रह गया है। इससे आगे सोचने की क्षमता क्या उनमें वाकई नहीं बची है।.......
अब कुछ गंभीर बात कहूंगा.....क्या हमारे देश में अच्छी अंग्रेजी बोलने और अच्छा पैकेज प्राप्त करने वाले युवा ही सर्वश्रेष्ठ माने जा रहे हैं.....अगर ऐसा है तो मामला बहुत चिंताजनक है और इस बात को अब हमें समझना होगा..... देश....इसकी मिट्टी...इसका कर्ज....समाज....परिवार....जिम्मेदारियां.....और प्रकृति क्या सब कुछ ऐसे ही पार्श्व में चली जाएँगे? सिर्फ इस मरे पैकेज की वजह से...... आश्चर्य है....हालांकि आप सब लोग विद्वान हैं फिर भी बता देना चाहता हूं कि अमेरिका के पहले राष्ट्रपति जार्ज वाशिंगटन एक राजसी परिवार वाले होते हुए भी अपने देश के स्वाधीनता संग्राम में कूदे.......कहा जाता है कि पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी में जिन आठ लड़कों ने नक्सलवादी आंदोलन शुरू किया था, अगर वो लोग उस आंदोलन को नहीं करते तो आईएएस अफसर होते....यानी सब बहुत पढ़े-लिखे और विद्वान लड़के थे। उन सबको बाद में गोली मार दी गई थी।..... भारतेंदु हरिश्चचन्द्र करोड़पति होते हुए भी अपनी सारी संपदा को हिंदी साहित्य के क्षेत्र में लगाकर प्रसन्न रहे। वे चाहते तो व्यापार-व्यवसाय करते हुए करोड़पति से अरबपति बनने की कोशिश करते लेकिन वो अलग थे....इसलिए उन्हें सम्राट और पॉयनियर जैसी उपाधियां मिलीं (हिंदी साहित्य क्षेत्र के संदर्भ में)....
भगतसिंह २४ वर्ष में और उनके सलाहकार और गुरू चंद्रशेखर आजाद २५ वर्ष की उम्र में शहीद हो गए थे। उस उम्र में जिसमें आज के युवा लड़कियों के पीछे भागने में समय जाया करते रहते हैं।....... मैं किसी को भगतसिंह या चंद्रशेखर बनने की नहीं कह रहा लेकिन अंग्रेजी और पैकेज से बाहर कुछ तो सोचो भई....नहीं तो हमारे देश का क्या होगा..??
आपको बताता हूं.... एक दिन विकीपीडीया पर चन्द्रशेखर आजाद के बारे में पढ़ रहा था....उसमें उनका वो फोटो है जिसमें अंग्रेजों ने उन्हें गोली मार कर अल्फ्रेड पार्क में प्रदर्शन के लिए रखा हुआ था। आप यकीन नहीं मानेंगे भरे आफिस में बैठे हुए मेरी आंखों में उस दृश्य को देखकर आंसू आ गए थे। अब के युवाओं में ना जाने कितनी जान बची है....हां वो डोले तो बनाते हैं लेकिन फिर वही बात दोहराउंगा...सिर्फ विपरीत लिंगी को फुसलाने के लिए.....
मशहूर क्रांतिकारी और विकट विद्वान लाला हरदयाल ने अपनी बेस्ट सेलर किताब -हिंट्स फॉर सेल्फ कल्चर- में लिखा है कि हम अपने जीवन का ज्यादातर समय फालतू बातें करने और विपरीत लिंगी को बहलाने-फुसलाने में जाया कर देते हैं....लेकिन विद्वानों की बातें आजकल का युवा कहां समझ रहा है......
आप कह सकते हैं कि मैं एकतरफा लिख रहा हूं.....विषय से भटक रहा हूं....आज की युवा पीढ़ी तो बेहद होशियार है और जबर्दस्त तरक्की कर रही है..सही है...मैं भी इंकार नहीं कर रहा....लेकिन किसके लिए, क्योंकि वह तरक्की तो अमेरिका जाकर कर रही है...... एक साल पहले दिल्ली में रह रहा था....तब जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में आने-जाने का मौका मिला था....वहां का वातावरण कह सकता हूं कि थोड़ा विचारशील था....लेकिन उन छात्रों का प्रायोगिक दुनिया में जाकर क्या होता होगा ये आप समझ सकते हैं क्योंकि वे सब बाद में दुनिया की प्रैक्टिकैलिटी में पिछड़ जाते होंगे।.....
बस इतना जानता हूं कि संवेदनशील लोग आजकल पीछे रह जाते हैं अगर वे अंग्रेजी नहीं बोल पाते और पैकेज के बारे में बात नहीं कर पाते.....
समझ नहीं आ रहा कि इतनी गंभीर बात लोग समझ ही नहीं रहे हैं...जिस देश की भावी पीढ़ी में अपनी भाषा और अपने देश के प्रति प्रेम नहीं है वो आखिर कहां तक जाएगी....??
आपका ही सचिन......।
3 comments:
कितनी अच्छी बातें कही आपने....युवा सिर्फ पैकेज के बारे में ही सोंच रहे हैं .....और कोई बात नहीं.....क्या होगा ऐसे देश में ?
आपका कहना सही तो है किन्तु हमारे युवाओं को इस दिशा में हमने ही तो ढकेला है। यह भी एक दौर है - सर्वथा अस्थायी। एक काल खण्ड के रूप में इतिहास में दर्ज हो कर रह जाएगा। तब तक यह सब झेलना ही पडेगा।
U r a best writer.I m ur great fan of yours.
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