मैं यहाँ आजतक चैनल से बात जरूर शुरू कर रहा है लेकिन फिलहाल ज्यादातर न्यूज चैनलों का हाल खस्ता है। वे खबरों के अलावा सबकुछ दिखाते हैं। हालांकि एनडीटीवी, स्टार न्यूज और जी न्यूज थोड़े ठीक है लेकिन हिन्दी समाचार सुनने की इच्छा रखने के बाद भी कई बार अंग्रेजी चैनलों की ओर जाना पड़ता है। क्या कहें, कि हिन्दी समाचार चैनल वाले हिन्दी दर्शकों का आईक्यू ही इतना गिरा हुआ समझते हैं कि बेहद बेहूदे कार्यक्रम न्यूज के नाम पर उन्हें दिखाते रहते हैं। ये सब नॉन न्यूज मसाला होता है जिसे ये हिन्दी न्यूज चैनल वाले दिखाते हैं। तो शुरू करता हूँ....
नवीन पीढ़ी के भारत के धुँआधार पत्रकार श्री सुरेन्द्र प्रताप सिंह (एसपी) के सपने को मैं आजकल मिट्टी में मिलता हुआ देख रहा हूं.......नवभारत टाइम्स में एक सफल और जानदार पारी खेलने के बाद एसपी ने जिस तेज और तीव्रता के साथ आजतक नाम को इलेक्ट्रानिक मीडिया में स्थापित किया था उसका उदाहरण लोग आज भी देते हैं........लेकिन अब उसी सबसे तेज चैनल को मैं धूल में मिलता देख रहा हूं....और देख रहा हूं कि ये आजतक, आजकल सिवाए चुटकुलेबाजी के अलावा और कुछ नहीं कर पा रहा है....ये अलग बात है कि दुर्भाग्य से नंबर वन ये अभी भी बना हुआ है।
तो मेरे अजीज दोस्तों, मैं अमूमन अपने अखबार में जिस समय काम कर रहा होता हूं वह देश का प्राइम टाइम होता है.....यानी शाम को छह बजे से लेकर रात बारह बजे तक मैं डेस्क पर काम रहता ही हूं.......प्राइम टाइम यानी शाम सात बजे से रात दस बजे तक का समय भी इसी दौरान आता है, जिसे कॉरपोरेट की टर्मिनोलॉजी में प्रतिदिन करोड़ों रुपए का आंका जाता है... मैं उसी समय देशी-विदेशी खबरों पर नजर रखता हूं.....और साथ ही मुझे टीवी पर भी नजर रखनी पड़ती है कि कहीं ये कोई नई खबर ब्रेक ना कर दे (?)......हालांकि आजकल न्यूज चैनल किस प्रकार की खबरों को ब्रेकिंग न्यूज कहते हैं इस बारे में मैं कहना नहीं चाहता क्योंकि अमूमन वो सारी खबरें निहायत वाहियात किस्म की होती हैं....तो साहब चूंकी आजतक चूँकी देश का नंबर वन चैनल है और पिछले कई सालों से इस बात का ढोल पीट रहा है तो मैं इसे जरूर देखता हूं....तो अब अपने पिछले छह माह का अनुभव आपको बताता हूं.......इस चैनल से सारे ढंग के लोग भाग गए हैं.....बस ज्यादा बोलने वाली कुछ लड़कियाँ और बड़बोले कुछ लड़के ही बचे हैं जो इत्तेफाक से न्यूज एंकर भी हैं....तो भाईसाहब, मैंने पिछले छह माह के दौरान उक्त समय यानी प्राइम टाइम में क्रिकेट, सिनेमा, तालीबान और अपराध के अलावा शायद ही किसी अन्य विषय को इस चैनल पर देखा होगा........
तो आजतक पर जब भी मेरी नजर गई.....या तो नग्न लड़कियाँ (ये मॉडल, हिरोइनें या अपराध कथाओं पर बनाई गई स्टोरी की कलाकारों में से कोई भी हो सकती हैं) दिखीं या लफ्फाजी करते वे लोग दिखे जो क्रिकेट के बारे में तरह-तरह की अटकलें लगाते रहते हैं। उसके बाद नंबर आता है फिल्मी गॉसिप का.....जो हीरो-हीरोइनों की निजी जिंदगी में झांकने की इतने अति दर्जे की कोशिश होती है कि हमें वहाँ भी सबकुछ नंगा दिखाई देने लगता है.........इन फिल्मी चक्करों को इतना महत्व दिया जाता है कि नई पीढ़ी का दिमाग डोलने लगता है, मुंबई हमलों के बार अब आजतक वाले तालीबान के पीछे पड़ गए हैं और दिनरात ऊलजूलूल कुछ भी उनके बारे में दिखाते रहते हैं। यह सब इतना चलता रहता है कि कई बार माथा कूटने का मन करता है......यह वही चैनल है जिसने देश के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को खोजी पत्रकारिता और शानदार रिपोर्टिंग करनी सिखाई थी.......एसपी को न्यूज मैन और दीपक चौरसिया को बतौर अच्छा रिपोर्टर स्थापित किया था....वैसे भी आजतक के लिए पूरा भारत दिल्ली में ही सिमटा हुआ है और वह कहीं बाहर की खबरों तक जा ही नहीं पाता, सिवाए उन जुर्म और वारादातों को छोड़कर जो उसके क्राइम शोज में आते रहते हैं........ और वो प्रसारण के २४ घंटे क्या हैं यह तब पता चल जाता है जब अभिषेक-एश्वर्य सरीखी कोई शादी हो या भारतीय क्रिकेट टीम का कोई अंतरराष्ट्रीय मैच हो....बस आजतक की पूरी खोजी पत्रकारिता इसी में लग जाती है बिना ये समझे और जाने की भारत के लोग उसकी इस तथाकथित पत्रकारिता पर थूक रहे हैं और हम जैसे बेचारे लोगों को ट्रेनों में.....बसों में.....सड़कों पर.....घेरकर पूछ रहे हैं कि क्या यही पत्रकारिता है....मैंने खुद कईयों को जवाब दिया है और यह कहकर अपनी चांद गंजी होने से बचाई है कि भाई मैं तो प्रिंट मीडिया से हूं......यह बातें किसी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया वाले से ही पूछना।
हालांकि आजतक का नाम मैंने लिया जरूर है लेकिन स्थापित होने के चक्कर में ज्यादातर नए चैनल यही सब दिखा रहे हैं और एनडीटीवी या सीएनएन-आईबीएन जैसी संवेदनशीलता कम ही देखने को मिल रही है। आजतक में जब अच्छे लोग थे तो इसका काम देखते ही बनता था लेकिन वो अपनी सेवाशर्तों के पूरी ना हो पाने की वजह से यहाँ से चले गए...नए लोग आए....माना भले ही वे स्थापित नहीं हैं लेकिन उनको ढंग का काम तो सिखाया जा सकता था.....उनको नए विषयों पर कार्य करना भी सिखाया जा सकता था लेकिन अपने समय के पायनियर इस चैनल ने अपनी दिशा ही बदल ली और बेहूदेपने पर आ गया.......अब ये चैनल यह सबकुछ दिखाकर हमारे देश को २४ घंटे तक लगातार.....प्रतिदिन क्यों झिला रहा है यह तो मैं नहीं कह सकता लेकिन इतना जरूर कहना चाहता हूं कि हमें बल्कि कहें आम आदमी को तो इस तमाशेबाजी और चुटकुलेबाजी की बिल्कुल जरूरत नहीं है.....हम क्राइम की खबरें इतना डूबकर देखना नहीं चाहते हैं आप (न्यूज चैनल वाले) उनपर बाकायदा फिल्में बनाकर हमें दिखाएँ......
अपनी बात खत्म करते-करते एक दूसरे चैनल का जिक्र करना नहीं भूलना चाहता। यह चैनल उस शख्स का है जिसे देखकर हम जैसे लोग पत्रकारिता में आए। लेकिन अब उस चैनल को देखना भी मैं गुनाह मानता हूँ। ये है इंडिया टीवी...जिसे वहाँ के मैनेजिंग एडिटर विनोद कापड़ी और मालिक रजत शर्मा मिलकर बर्बाद कर रहे हैं। सच पूछो तो पत्रकारिता को बर्बाद कर रहे हैं। यह चैनल तो झुग्गी-झोपड़ी वालों के स्तर से भी नीचे गिर गया। अरे भाई, इतनी भी क्या सनसनी कि तुम लोग पत्रकारिता को ही सनसना दिए जा रहे हो। गुनाह है इंडिया टीवी देखना। किसी बात का बतंगड़, या राई का पहाड़ बनाना तो कोई इंडिया टीवी से सीखे। अरे, हद है बेशर्माई की, टीआरपी रेटिंग के खेल में इतना भी क्या गिरना की रेंगना पड़ जाए। इस चैनल पर तो दोस्तों, मुझे अलग से लिखना पड़ेगा। यहाँ शब्द कम पड़ रहे हैं। फिलहाल इतने से ही काम चलाइए।
आपका ही सचिन.....।
3 comments:
सच कहा, यही
हाल रहा तो.........
आज तक -
कल हो न हो !
आज तक का भविष्य उज्जवल है|! हमारे रहते कौन कुछ बिगाड़ लेगा? आदत है तेज मसाले की|!! भाई मैंने तो हिन्दी न्यूज़ देखना ही छोड़ दिया, नेट पर थोड़ा बहुत पढ़कर संतुष्ट हूँ| नेट पर कम से कम अपनी मर्जी तो चलती है|
कोई किसी से कम नहीं है । एनडीटीवी के पदमश्री विनोद दुआ और आई बीएन के सुमित अवस्थी ,आशुतोष जो परोस रहे हैं क्या वो पत्रकारिता है ? दरासल सब अपने - अपने तरीके से दर्शकों को मूर्ख बनाकर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं । ये एक चैनल के धूल में मिलने का सवाल नहीं है ये पत्रकारिता की मौत का तमाशा है ।
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