हमारी तरह सिकुड़े दिमाग का नहीं है वो
दोस्तों, हर किसी में अच्छाई और बुराई होती है। अमेरिका में भी है। उसने लंबे समय तक या कहें कई शताब्दियों तक काले लोगों का अपने यहाँ शोषण किया। उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक बनाकर रखा लेकिन आज उन्हीं दोयम दर्जे के नागरिकों में से एक बराक ओबामा अमेरिका का राष्ट्रपति है। वो शानदार वक्ता हैं और जाने हैं कि दिल खुला रखना कितना जरूरी है। वह कम उम्र में ऊँचाई पर पहुँचने वाले राजनेता है। अमेरिका की जनता ने उन्हें चुनकर अपने खुले दिमाग का परिचय दिया है। तो दोस्तों, उक्त निर्णय ओबामा का ही है। जब में दो दिन पूर्व इस खबर को पढ़ रहा था तो मुझे अपने देश की याद हो आई थी। हमारा महान देश जहाँ पिछले साल से भाषा को लेकर दंगा चल रहा है कहाँ....मुंबई में, और राज ठाकरे नाम का एक सिकुड़े दिमाग का आदमी इस दंगे को संचालित कर रहा है। वो चाहता है कि भारत देश के एक राज्य महाराष्ट्र में रहने वाला कोई भी आदमी (शायद उत्तर भारतीय ज्यादा) मराठी ही बोलें। बहुत ठीक बात है भईया....राज ठाकरे को पूरा देश जब गाली दे रहा था तब मैंने उसके फेवर में एक मराठी भाई का संदेश कहीं पढ़ा था। वो कह रहे थे कि हिन्दी-हिन्दी करने वाले लोगों को जरा तमिलनाडु में जाना चाहिए। वहाँ या तो उनसे तमिल बुलवा ली जाएगी नहीं तो मारकर भगा दिया जाएगा। सही है भईया, बिल्कुल सही है। वहाँ यही स्थिति है।
फिर एक दशक पहले मैं एक बंगाली सज्जन से मंसूरी में मिला था। वो भी वहाँ घूम रहे थे, मैं भी घूम रहा था। बात भाषा पर चल पड़ी। वे बोले कि देश की राष्ट्रभाषा बनने की क्षमता हिन्दी में नहीं है। इसके लिए संस्कृत का समर्थन किया जा सकता है लेकिन हिन्दी का नहीं क्योंकि हिन्दी से ज्यादा समृद्ध तो उनकी भाषा बंगाली है। ये भी सही है भईया। काश अमेरिका भी ऐसा सोच लेता क्योंकि उसकी बोली जाने वाली भाषा अंग्रेजी सबदूर बोली जा रही है। हिन्दुस्तानी तो उस भाषा के चरण धो-धो कर पी रहे हैं। अपने बच्चे को पैदा होने के तुरंत बाद अंग्रेजी सिखाना चाहते हैं। इसके लिए वे औकात से बढ़कर स्कूली शिक्षा पर भी खर्च कर रहे हैं ताकि उनका बच्चा अच्छी अंग्रेजी बोल सके। ऐसे में भारतीय भाषाओं को जानने की क्या जरूरत है। लेकिन अमेरिका ने ऐसा नहीं सोचा। शायद इसलिए वो अमेरिका है, दुनिया की महाशक्ति है, सबको समझना चाहता है, चाहे अंग्रेजी में हो या खुद उस पराए देश की भाषा में। लेकिन हमें तो अभी अपने को ही समझना बाकी है। अपनी भाषाओं को समझना बाकी है। ना जाने कब हम अपने को विस्तार दे पाएँगे, अपनी सोच को बड़ा बना पाएँगे, ना जाने कब हम महाशक्ति बन पाएँगे।
आपका ही सचिन....।
1 comment:
बहुत सही कहना है आपका....
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