April 07, 2009

प्यार की घनी छाँव हैं ये बेटियाँ











(उर्मि कृष्ण)

प्यार की घनी छाँव हैं ये बेटियाँ

भर देती जिंदगी के अभाव ये बेटियाँ

बापू की आन में

पति की शान में

चाचा, ताऊ और जेठ, देवर

के भार में

मन के गुबार को, सद्‍भावना के नीचे

दफना रही हैं ये बेटियाँ

कुल की लाज में

सपूतों के निर्माण में 

अपने अरमान को

मौन में

पी रही हैं ये बेटियाँ

कला की आड़ में

सौंदर्य के गुमान में

रंगमंच हो या टीवी 

बेटी हो या बीवी

अखबार हो या पत्रिका

उघाड़ी जा रही हैं ये बेटियाँ

आग की आँच पर

चौपड़ की बिसात पर

सीता सावित्री के नाम पर

हर युग में दाँव पर 

लगी हैं ये बेटियाँ

तुम कुछ भी कहो

कुछ भी करो

हर युग में मिटती आई है बेटियाँ

घर को सँवारती

जग को सुधारती

कभी न हारती 

नया जन्म फिर फिर

लेती हैं बेटियाँ

नया जन्म फिर फिर

देती हैं बेटियाँ

5 comments:

अनिल कान्त said...

bhai behtreen likha hai aapne

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

शुभतारिका की सम्पादक उर्मीकृष्ण की सुंदर कविता प्रेषित करने लिए धन्यवाद।

mehek said...

aisi hi hoti hai betiya,ek sunder rachana padhwane ka shukran.

संगीता पुरी said...

बहुत बढिया रचना पढायी ... धन्‍यवाद।

ss said...

bahut achi rachna....dhanyavaad