May 26, 2009

प्रभाकरण के मरने पर अफसोस क्यों..??

पिछले दस दिनों में कुछ महत्वपूर्ण घटना हुईं जिनका मैं चाहते हुए भी उल्लेख नहीं कर पाया। कई बार काम की व्यस्तता इतनी ज्यादा होती है कि आप अपने सामने कम्प्यूटर को रखे देखते रहते हैं और कुछ नहीं कर पाते। यानी पंगु हो जाते हैं। समय निकालना मुश्किल हो जाता है। लेकिन आज मैंने निकाल ही लिया दोस्तों से अपनी मन की बात कहने के लिए समय। लेकिन उन सब घटनाओं में से यहाँ मैं सिर्फ एक घटना के ऊपर आपसे बात करूँगा।

कुछ दिनों पहले मैंने प्रभाकरण का वो चित्र देखा जिसमें उसके भेजे को चीरकर निकली गोली का निशान बना हुआ था। उस फोटो के आसपास कई खबरों को मैंने देखा। कईयों को मैंने सजा (डेकोरेट) हुआ भी पाया। इनमें से कई को तो मैंने ही सजाया था अपने अखबार के पन्ने पर। मेरा मन इस दौरान काफी कुछ सोच रहा था। मैं बचपन से प्रभाकरण का नाम सुन रहा था। मुझे लगता था कि वो हीरो है। तमिलों के लिए लड़ रहा है जो मूल रूप से हिन्दू हैं और हमारे देश से ही उनकी उपज है। फिर जब मैं थोड़ा बड़ा हुआ तो पता चला कि हमारे देश के एक युवा प्रधानमंत्री (जो वाकई कई मायनों में अच्छे थे) राजीव गाँधी को इस प्रभाकरण ने मरवा दिया। मुझे इस प्रभाकरण से चिढ़ हो गई। लेकिन मैं खबरों में लगातार पढ़ता रहा कि वो सिंहलियों के खिलाफ संघर्षरत तमिलों का सर्वमान्य नेता है और उनके अत्याचार के विरोध में डटा हुआ है। लेकिन मेरी बुद्धि फिर भी इतनी कार्य नहीं करती थी कि मैं ये सोच पाऊँ कि मैं प्रभाकरण से संवेदना क्यों रखूँ। एक भारतीय होने के नाते या एक हिन्दू होने के नाते। फिर मैंने तमिलनाडु के काला चश्मा पहनने वाले उस पागल मुख्यमंत्री एम करुणानिधी के बयानों पर गौर करना शुरू किया। वो टुकड़ों-टुकड़ों में जहर उगलता है। वो हिन्दी और हिन्दूओं का विरोध करता है। वह कहता है कि क्या राम कोई इंजीनियर थे जो उन्होंने रामसेतु का निर्माण करा दिया। और अगर वाकई इंजीनियर थे तो कौन से इंजीनियरिंग कॉलेज से उन्हें डिग्री मिली थी? कई बार वो बोला कि अगर हिम्मत है तो तमिलनाडु में आकर हिन्दी बोलकर दिखाओ। मैं चकरा गया। सोचा कि ये तो हमारे ही देश और धर्म का है फिर ये ऐसी बातें क्यों कर रहा है? लेकिन वो असल में द्रविड़ है और बकौल करुणानिधी उसका हमारे धर्म से और हमारे देवताओं से कोई ताल्लुक नहीं। खैर, ठीक है भाई...

जिस प्रकार प्रभाकरण श्रीलंका में अलग से तमिल-ईलम की माँग करता आ रहा था ठीक उसी प्रकार से अलगाववादी बयान करुणानिधी और उसके मंत्रियों के भी आते हैं। एक ने इसी झोंक में कह दिया कि प्रभाकरण मारा गया तो भारत में खून की नदियों बह जाएँगी। कमाल है। हमारा देश और यहाँ की सरकार नाकारा है., क्यों???...कोई कहीं भी मरे यहाँ रहने वाले पहले पागल हो जाते हैं। पंजाब और हरियाणा में सिख ग्रंथी के मरने के बाद सिखों ने जो किया मैं उसका खुले मंच से विरोध करता हूँ। आखिर हमारे देश की संपत्ति को नुकसान पहुँचाने की उनकी हिम्मत कैसे हुई। वो संपत्ति सार्वजनिक थी किसी के बाप की नहीं थी। इसी प्रकार मैं डेनमार्क में नबी मोहम्मद के ऊपर बने कार्टून के विरोध में भारत में मुसलमानों द्वारा की गई हिंसा और विरोध का भी खुले तौर पर सार्वजनिक मंच से विरोध करता हूँ। उनके द्वारा मचाया गया दंगा गलत था और सार्वजनिक संपत्ति को पहुँचाया गया नुकसान भी गलत था। इन्हीं दोनों प्रकार की घटनाओं को मैं तमिलनाडु के संदर्भ में भी देखता हूँ कि जिन द्रमुक नेताओं ने ऐसी गलतबयानी की उन्हें उसी प्रकार उनकी धोती उतरवाकर पिटवाया जाना चाहिए जैसे जयललिता ने इस करुणानिधी को पिटवाया था। आखिर क्यों हम ऐसे किसी नेता को स्वीकार करें जिसे इस देश की राष्ट्रभाषा, सर्वमान्य भगवान और सर्वप्रथम इस देश और यहाँ के लोगों से प्यार नहीं है। मैं धिक्कारता हूँ करुणानिधी को, उसके मंत्रियों को और सबसे बड़े उस प्रभाकरण को जो कुत्ते की मौत मरा क्योंकि उसने हमारे देश का एक युवा तथा स्वप्नदर्शी प्रधानमंत्री छीन लिया था। हालांकि हम भारतीय किस्मत को मानने वाले हैं और हम प्रभाकरण को कभी नहीं पकड़ सकते थे वो तो श्रीलंकाई सेना ने उसे मार दिया तो हम खुश हो रहे हैं। लेकिन कांग्रेस ने इस पूरे मामले पर चुप्पी साधे रखी और धीरे से यह बतला दिया कि प्रभाकरण से मरने पर उसे कतई दुख नहीं है। इस मामले में मैं कांग्रेस के साथ हूँ।

श्रीलंका के राष्ट्रपति महिन्द्रा राजपक्षे कैसे भी हों लेकिन वो बाहर कहीं से जब भी आते हैं तो विमान से उतरने के बाद सबसे पहले घुटनों के बल बैठकर अपनी मातृभूमि को प्रणाम करते हैं। उनकी इस भावना का मैं सम्मान करता हूँ और इस बात का भी कि उन्होंने दिखा दिया है कि आंतकवाद से कैसे निपटा जाता है। 26 साल पुराने आतंकवाद को उन्होंने कुछ महीनों में ही निपटा दिया और एक हम हैं कि आतंकवादियों का सफाया करने से पहले कई सारे गणित करने में उलझे रहते हैं, मसलन फलाँ धर्म के लोगों को तो बुरा नहीं लग जाएगा या हमारी फलाँ सहयोगी राजनीतिक पार्टी को तो बुरा नहीं लग जाएगा। भारत सरकार को महिन्द्रा राजपक्षे से कुछ सीखना चाहिए और यह भी कि जब आप कुछ करने की ठान लें तो दुनिया की कोई भी शक्ति आपको रोक नहीं सकती। श्रीलंका तो भारत के मुकाबले बहुत छोटा है लेकिन उसने असीम दृढ़ता का परिचय दिया है। हमें उससे कुछ सीख लेनी होगी। मैं प्रभाकरण के मरने से खुश हूँ।

आपका ही सचिन......।

2 comments:

मनोज खलतकर said...

सटीक विश्लेषण किया आपने, शुभकामनाए आशा है आप आगे भी ऐसे तथ्यपूर्ण आलेख लिखते रहेगें

अभिषेक मिश्र said...

Is baar sahmat hun aapse sachin.