September 30, 2009
हड़ताल बड़ी या देश..??
सिर्फ वेतन बढ़वाने की चिंता
अभी पिछले साल की ही तो बात है जब मनमोहन सरकार ने छठवाँ वेतन आयोग लागू करके केन्द्रीय कर्मचारियों की वाह-वाही लूटी थी और हम निजी फर्मों में काम करने वाले लोगों का मुँह लटक कर पेट तक आ गया था क्योंकि सरकारी कर्मचारियों के वेतन अब हमसे कई गुना ज्यादा हो गए थे जबकि उनके पास काम कौड़ी का नहीं था। केन्द्र के इस फैसले के बाद राज्य सरकारों की शामत आ गई और उनपर भी छठवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करने का दबाव बन गया। लेकिन इस बीच कुछ खबरें भी आईं। वो खबरें थी लोकतांत्रिक अस्त्र कही जाने वाली हड़तालों की, जिनकी एकाएक झड़ी लग गई थी। इस हड़ताल से हुए नुकसान की बात तो करना छोड़िए, हड़ताली अपने को इस तरह से प्रदर्शित करते हुए प्रतीत हुए जैसे वे किसी जंग पर लड़ने निकले हों। इन हड़तालियों के लिए देश कोई मायने नहीं रखता, समाज कोई मायने नहीं रखता, सिर्फ अपना वेतन मायने रखता है।
मेरी इस पोस्ट को पढ़कर कुछ सरकारी नौकरी करने वाले लोगों को बुरा लग सकता है। हालांकि यह बात सभी पर लागू नहीं होती लेकिन अधिसंख्य पर लागू होती है। यकीन मानिए, मैंने सरकारी कर्मचारियों के काम करने के ढर्रे को बहुत करीब से देखा है (पत्रकारिता में रहते हुए), उनके ढीलेपने की हद इतनी होती है कि ना चाहते हुए भी चिढ़ और गुस्सा आने लगे। भ्रष्टाचार इतना की कुछ बार तो मुझसे भी रिश्वत माँग ली गई जबकि कुछ मामलों में तो रिश्वत माँगने वाले को पता भी था कि मैं अखबार या कहें पत्रकारिता से जुड़ा हुआ हूँ। दुस्साहस की ऐसी मिसाल मुझे कम ही देखने को मिली है और यह भी कि जब हमारी यह स्थिति है तो आम आदमी का क्या होता होगा, यह समझा जा सकता है। तो बात शुरू करते हैं मध्यप्रदेश से, क्योंकि मैं यहीं रहता हूँ, तो यहाँ कुछ दिनों से विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के प्राध्यापकों की हड़ताल चल रही थी। यह हड़ताल फिलहाल 12 अक्टूबर तक स्थगित की गई है क्योंकि हाईकोर्ट ने इसे एक जनहित याचिका की सुनवाई के बाद तत्काल बंद करने को कहा था। इस हड़ताल के कारण प्राध्यापकों ने कॉलेजों में पढ़ाई बंद कर दी और यह लगभग एक पखवाड़े तक चली। मजे की बात है कि प्राध्यापक अपना वेतन 25000 से बढ़ाकर 50000 करवाना चाह रहे हैं। हालांकि ये प्रोफेसर एक दिन में एक पीरियड भी नहीं लेते (यह मैंने इसलिए कहा क्योंकि मैं खुद कई कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में पढ़ा हूँ और सब जगह यही हाल देखा) और इनका टाइम सिर्फ पॉलिटिक्स करने में बीतता है। तो सरकार ने मना कर दिया कि भईया इतना रुपया मत माँगों की खर्च भी करते ना बने। इस ग्रेड के चलते तो सीनियर प्रोफेसर का वेतन 90000 पर पहुँचने वाला था।
इन प्रोफेसरों की देखा-देखी मध्यप्रदेश की ग्रामीण शालाओं के सवा लाख अध्यापकों ने भी 1 अक्टूबर से हड़ताल का ऐलान कर दिया है। इस हड़ताल की वजह से प्रदेश की 50 हजार से ज्यादा ग्रामीण शालाओं पर ताले डले रहेंगे। अब भाईसाहब क्योंकि खरबूजा खरबूजे को देखकर रंग बदलता है इसलिए ऊपर एक उल्लेख करना भूल गया था जो यहाँ कर रहा हूँ, कि प्रोफेसरों की हड़ताल से ठीक पहले स्कूली शिक्षकों ने आंदोलन एवं हड़ताल का दौर चलाया था और पुलिस की लाठियाँ खाईं थीं, इसके बाद प्रोफेसरों ने रंग बदला, अब सबसे छोटी इकाई ये ग्रामीण शालाओं के शिक्षकों ने हड़ताल की रूपरेखा तैयार की है।
दोस्तों, अभी कुछ दिन पहले की खबर है जब देश के फाइव स्टार शिक्षण संस्थान आईआईटी के 15000 प्रोफेसरों ने भी वेतन बढ़वाने के नाम पर हड़ताल कर दी थी। तब देश के एचआरडी मंत्री कपिल सिब्बल को कहना पड़ा था कि हम आपको इससे ज्यादा वेतन नहीं दे सकते। (विदित हो कि आईआईटी में प्रोफेसरों का वेतन पहले से ही 50000 से 1 लाख रुपए के बीच है) सिब्बल का कहना था कि आप विदेशों से रुपया लाइए तब कुछ बात बन सकती है क्योंकि हम विदेशों की स्टाइल में आप लोगों को 2 लाख रुपए महीना वेतन नहीं दे सकते। अगर आप बाहर से रुपया लाएँगे तो हम आपको अधिक स्वायत्ता दे सकते हैं, विकासशील देशों में इतना वेतन संभव नहीं है।
दोस्तों, यहाँ यह बताना भी ठीक रहेगा कि आईआईटी ने एक दूसरे सेवन स्टार संस्थान आईआईएम को देखकर रंग बदला था जब आईआईएम के प्रोफेसरों ने वेतन बढ़वाने को लेकर सरकार के ऊपर दबाव बनाया था और अहमदाबाद के आईआईएम ने अपने वेतन विदेशों की तर्ज पर बढ़वा भी लिए थे। ये सभी संस्थान छात्रों की फीस में तो पहले ही बेतहाशा वृद्धि कर चुके हैं और अब आपके या हमारे जैसे मध्यम वर्गीय परिवार के लोग तो अपने बच्चों को इन फाइव स्टार और सेवन स्टार संस्थानों में पढ़ावाने की सोच भी नहीं सकते।
दोस्तों, बात अभी खत्म नहीं हुई है। कुछ दिन पहले जब जेट एयरवेज के पायलट बीमारी का बहाना बनाकर सामूहिक रूप से छुट्टी पर चले गए थे तब सरकारी विमानन कंपनी एयर एंडिया ने खूब मुनाफा कूटा था। उसकी फ्लाइट फुल चल रहीं थीं और बूढ़े विमान, बूढ़ी परिचायिकाओं और बूढ़े स्टाफ को ढोने वाली ये एयरलाइन अचानक मुनाफा कूटने लगी थी। लेकिन सरकारी मूढ़ (या कहें कूढ़) मगज स्टाफ को यह कैसे सहन होता, तो जहाँ जेट एयरवेज के पायलटों की हड़ताल खत्म हुई वहीं एयर इंडिया के पायलटों की हड़ताल शुरू हो गई, उसी घटिया बहाने के साथ जिसमें 200 पायलटों ने एकसाथ बीमारी का नोटिस देकर नहीं आने की घोषणा कर दी। एयर इंडिया की 240 फ्लाइट रद्द हो गईं और उसे लगभग 100 करोड़ रुपए का घाटा उठाना पड़ा। यानी जो चार दिन चाँदनी के एयर इंडिया ने काटे थे वो उसके पायलटों से सहन नहीं हुए और भत्तों की कटौती का विरोध करते हुए उन्होंने इस पहले से ही ढीली चाल चल रही विमान कंपनी की वाट लगा दी।
मित्रों, मंदी के दौरान किसी भी सरकारी नौकरी में कोई छँटनी नहीं हुई है। निजी नौकरियों की तरह वहाँ टेंशन भी सिर पर सवार नहीं रहती और केन्द्रीय कर्मचारियों की पहले से ही दसों अंगुलियाँ घी में और सिर कढ़ाई में है। ऐसे में हड़ताल कर-करके देश को नुकसान पहुँचाने की यह नीति समझ नहीं आती। जहाँ एक ओर निजी क्षेत्र में काम करने वाले लोग अपना सिर नीचे किए हुए काम कर रहे हैं, अपनी कंपनियों से यह सुन रहे हैं कि भाई मंदी है, वेतन नहीं बढ़ सकता और भला मानो कि हमने तुम्हें नौकरी से नहीं निकाला, चुपचाप इसी वेतन में काम करो। कई कंपनियों ने अपने ढेर कर्मचारियों को मंदी के नाम पर नौकरी से निकाल दिया, उनके परिवार बिखर गए, सपने टूट गए, जिंदगी तबाह हो गई लेकिन कहीं कोई हड़ताल या आंदोलन की खबर नहीं आई, वहीं दूसरी ओर ये सरकारी कर्मचारी हैं, नासूर बने हुए हैं, वेतन को लेकर देश को कई सौ करोड़ रुपयों का झटका दे चुके हैं।
अगर एक बार सरकारी नौकरी करने वाले निजी नौकरी करने वालों से अपनी तुलना करेंगे तो पाएँगे कि वो कहाँ हैं। उनको दिवाली पर जो भत्ते मिलने वाले हैं उतने में कई निजी नौकरी करने वाले (बेचारे) लोग अपना वर्ष भर का राशन भरवाते हैं। अपने बच्चों की फीस जमा करवाते हैं। 2-3 हजार रुपए महीने में अपने घर का खर्च चलाने वाले कई लोगों को मैं जानता हूँ। इस महंगाई का सामना वे कैसे कर रहे हैं बस वो ही लोग जानते हैं...अभी झाबुआ में एक पिता ने सिर्फ इसलिए आत्महत्या कर ली क्योंकि वो अपने बीमार बेटे का इलाज रुपए की तंगी के कारण नहीं करवा पा रहा था, लेकिन सरकारी कर्मचारियों को यह सब नहीं दिखता, लालच के मारे मरे जा रहे हैं वो...अरे, जो निजी नौकरियों में हैं जरा उनकी सूरत भी तो देखो यार....यह कैसी हड़ताल जो देश को खोखला कर रही है सिर्फ इसलिए कि उनके वेतन बढ़ते जाएँ....देश को बर्बाद करने वाले इन हड़तालियों का स्थाई इलाज खोजा जाना चाहिए।
आपका ही सचिन....।
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September 17, 2009
क्या करें हम इस थरूर और मायावती का?
ये लोग देश और यहाँ की जनता को कुछ नहीं समझते
मित्रों, हमारे देश के गिरगिट नेता रोज नए-नए रंगों में सामने आते हैं। मैं खुद भी अचंभित रह जाता हूँ कि क्यों कोई डिसकवरी या एनिमल प्लेनेट चैनल यहाँ आकर इनपर फिल्में नहीं बनाता..?? अरे भाई, ये तो अनोखे जीव हैं...इनकी रंग बदलने की क्षमता का क्या कहना, गिरगिट भी शरमा जाए। तो सबसे पहले बात शशि थरूर पर..।
शशि थरूर ने क्या कहा ये बताने की जरूरत नहीं...आप सब लोग सुधिजन हैं और सब लोग अखबार, इंटरनेट और न्यूज चैनल देखते हैं। लेकिन ब्रीफ में बस इतना ही कि पिछले तीन माह से फाइव स्टार होटल में टिके (जिसे बाद में उन्होंने वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के कहने पर छोड़ा) भारतीय राजनीति के नवे-नवे राजनीतिज्ञ शशि थरूर का दिमाग अचानक फिर गया। वो जानते हैं कि जबान से निकले शब्द कभी वापस नहीं लौटते, बावजूद इसके उनकी जबान फिसल गई और जो फिसली तो उसके घेरे में भारत की जनता के साथ-साथ सर्वशक्तिमान सोनिया गाँधी और युवराज राहुल गाँधी भी आ गए। ऐसा क्या कह दिया था थरूर ने...?? तो एक अंग्रेजी पत्रकार ने शशि थरूर से सोशल नेटवर्किंग साइट “ट्विटर” पर व्यंग्य में पूछा कि क्या वे भी अब हवाई सफर की “कैटल क्लास” (इकोनोमिक क्लास) में यात्रा करेंगे जिसके जवाब में थरूर ने सार्वजनिक जवाब दिया-“ हां बिल्कुल, अपने साथ की सभी पवित्र गायों के साथ एकता दिखाते हुए अब मैं भी ‘मवेशी श्रेणी’ में यात्रा करूंगा। इन पवित्र गायों से उनका मतलब उनके साथी मंत्री थे और इत्तेफाक से सोनिया और राहुल भी पवित्र गायों की श्रेणियों में आ गए। कांग्रेस ने इसपर कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर की और इस बयान से अपने को अलग कर लिया। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस ने ही अपने मंत्रियों को इकोनॉमी क्लास में सफर करने की सलाह दी थी। फिलहाल थरूर अफ्रीकी देशों लाइबेरिया और घाना की यात्रा पर हैं और लौटने पर ही पता चलेगा कि उनका क्या हश्र होगा। लेकिन इन बातों से कुछ तथ्य तो बिल्कुल साफ हो गए हैं।
सबसे पहला यह कि यह थरूर भूरी चमड़ी में एक गोरा शख्स है जिसे अपने भारतीय होने पर ठीक उसी प्रकार से अफसोस है जैसा कि पंडित जवाहर लाल नेहरू को हुआ करता था। फटाफट अंग्रेजी बोलने वाले थरूर के साथ दूसरी दिक्कत यह है कि उसने हमेशा से विदेशों में काम किया है, लंबे समय तक संयुक्त राष्ट्र का अंडर सेक्रेटरी रहा है और वो भारत तथा यहाँ की जनता को नहीं समझता। मुझे लगता है कि यह आदमी जब किसी भारतीय ट्रेन की जनरल बोगी में सफर करेगा तो वहाँ सफर कर रहे लोगों को क्या कहेगा..?? इनसेक्ट (कीट) क्लास..??
क्योंकि हवाई सफर तो पहले से ही एलीट वर्ग के लिए माना जाता है और इकोनोमिक क्लास के लोगों को यह मवेशी बोल कर जतला चुके हैं कि वो भारतीय जनता को क्या समझते हैं। मुझे कुछ पुरानी बातें याद आ रही हैं। जब ये शख्स संयुक्त राष्ट्र में अंडर सेक्रेटरी था तब मैं इसके इंटरव्यू सुनकर बड़ा आल्हादित हुआ करता था। मुझे लगता था कि वाह, एक भारतीय संयुक्त राष्ट्र के इतने ऊँचे ओहदे पर है। फिर पिछली बार जब यह संयुक्त राष्ट्र के महासचिव पद पर लड़ने के लिए नामांकित हुआ तब भी मुझे लगता था कि हमें इसका सपोर्ट करना चाहिए। कांग्रेस सरकार की वजह से इन्हें पर्याप्त समर्थन नहीं मिल पाया और ये महासचिव बनने से रह गया और दक्षिण कोरिया के बान की मून महासचिव बने तब मुझे बहुत निराशा हुई थी। लेकिन आज मैं खुश हूँ कि अच्छा ही है जो ये आदमी उस पद तक नहीं पहुँच सका। जो व्यक्ति अपनी मातृभूमि और वहाँ के बाशिंदों का आदर करना नहीं जानता वो दुनिया से क्या प्यार करेगा और उस पद पर रहते हुए भारत का क्या भला करेगा। थरूर को उसके किए की सजा मिलनी चाहिए। हमें भूरी चमड़ी के नीचे छिपे हुए गोरे आदमी नहीं चाहिए। हमें प्योर भारतीय व्यक्ति ही अपने देश में शासन चलाने के लिए चाहिए। थरूर को उसके बोले की सजा मिलनी चाहिए। वो भारत का कतई भला नहीं कर सकता।
... दोस्तों, इसी संदर्भ में मुझे एक भारतीय राजकुमारी की भी अचानक याद हो आई। यह राजकुमारी अमर होने के अथक प्रयास कर रही है। करोड़ों रुपए खर्च करके अपनी मूर्तियाँ बनवा और लगवा रही है। ये हमारे देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती है। अरे, आप लोग सोच रहे होंगे कि मैंने मायावती का इंट्रोडक्शन इतने ड्रामेटिक अंदाज में क्यों करा, तो पहले यह पढ़िए..
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी अध्यक्ष मायावती ने समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव को चेतावनी दी और कहा कि बसपा के सत्ता से जाने के बाद भी कांशीराम समेत अन्य (खुद मायावती) दलित महापुरुषों की मूर्तियों को तोड़ने की गलती न करें नहीं तो इसके गम्भीर परिणाम होंगे। उन्होंने कहा कांग्रेस के कुछ नेता और सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव कह रहे हैं कि उनकी सत्ता आई तो मूर्तियों पर बुलडोजर चला दिया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा, “भूल से ऐसी गलती कोई न करें नहीं तो देश में गृहयद्ध की स्थिति हो जाएगी।” उन्होंने कहा कि मूर्तियों से छेड़छाड़ होने पर पूरे देश में कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ेगी। देश में आग लग जाएगी।”
अम्बेडकर पार्क समेत अन्य स्मारकों और मूर्तियों के निर्माण पर उच्चतम न्यायालय के रोक के बाद सपा और कांग्रेस ने इस मामले में मायावती पर हमले तेज कर दिए थे। गौरतलब है कि सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि उनकी पार्टी सत्ता में आई तो मूर्तियों पर बुलडोजर चला दिया जाएगा।
पढ़ा दोस्तों, तो देश में गृहयुद्ध के लिए अन्य हालातों की जरूरत ही नहीं है। मायावती अपनी मूर्तियाँ तुड़वाने पर ही देश को गृहयुद्ध की आग में झोंक देंगी। देश में आग लगवा देंगी। मैं कहता हूँ कि ऐसी महिला पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलना चाहिए। इसे सार्वजनिक रूप से जेल में डाल देना चाहिए और इससे भी सब्र ना हो तो इसे ही क्यों नहीं जिंदा आग में झोंक देना चाहिए? देश को ऐसे नालायक नेताओं की जरूरत ही नहीं है। और यहाँ मैं माफी माँगकर कहना चाहूँगा कि उत्तरप्रदेश के नागरिकों को भी इस नालायक महिला के साथ सजा देना चाहिए जो इसे हर बार चुन लेते हैं। क्या उन्हें नहीं पता कि अमर होने वाले व्यक्तियों की मूर्तियाँ दुनिया सदियों तक खुद ही बनवाती रहती है। उन्हें खुद अपनी मूर्तियाँ बनवानी की जरूरत नहीं पड़ती। जनता की गाढ़ी कमाई से ये महिला जो खिलवाड़ कर रही है उसकी सार्वजनिक निंदा की जानी चाहिए और हर बसपा नेता और कार्यकर्ता को जनता को कटघरे में खड़ा करके पूछना चाहिए कि भईया ये तुम्हारी बहनजी हमारी जान लेंगी क्या, वो पागल हो गई हैं क्या, नहीं देखनी हमें उनकी मनहूस शक्ल और मूर्तियों के रूप में दशकों तक उसे कौन झेलेगा...बंद करो ये अंधेरगिर्दी....अगर यह सब अभी बंद नहीं हुआ तो अंदर से कमजोर समझकर हमारे ताकतवर दुश्मन तुरंत हमारा सफाया कर देंगे फिर देखते हैं कि कहाँ जाती हैं तुम्हारी मूर्तियाँ और 'कैटेल क्लास' कहने वाली एलिट मैंनटेलिटी...!!!!!!!
आपका ही सचिन....।
मित्रों, हमारे देश के गिरगिट नेता रोज नए-नए रंगों में सामने आते हैं। मैं खुद भी अचंभित रह जाता हूँ कि क्यों कोई डिसकवरी या एनिमल प्लेनेट चैनल यहाँ आकर इनपर फिल्में नहीं बनाता..?? अरे भाई, ये तो अनोखे जीव हैं...इनकी रंग बदलने की क्षमता का क्या कहना, गिरगिट भी शरमा जाए। तो सबसे पहले बात शशि थरूर पर..।
शशि थरूर ने क्या कहा ये बताने की जरूरत नहीं...आप सब लोग सुधिजन हैं और सब लोग अखबार, इंटरनेट और न्यूज चैनल देखते हैं। लेकिन ब्रीफ में बस इतना ही कि पिछले तीन माह से फाइव स्टार होटल में टिके (जिसे बाद में उन्होंने वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के कहने पर छोड़ा) भारतीय राजनीति के नवे-नवे राजनीतिज्ञ शशि थरूर का दिमाग अचानक फिर गया। वो जानते हैं कि जबान से निकले शब्द कभी वापस नहीं लौटते, बावजूद इसके उनकी जबान फिसल गई और जो फिसली तो उसके घेरे में भारत की जनता के साथ-साथ सर्वशक्तिमान सोनिया गाँधी और युवराज राहुल गाँधी भी आ गए। ऐसा क्या कह दिया था थरूर ने...?? तो एक अंग्रेजी पत्रकार ने शशि थरूर से सोशल नेटवर्किंग साइट “ट्विटर” पर व्यंग्य में पूछा कि क्या वे भी अब हवाई सफर की “कैटल क्लास” (इकोनोमिक क्लास) में यात्रा करेंगे जिसके जवाब में थरूर ने सार्वजनिक जवाब दिया-“ हां बिल्कुल, अपने साथ की सभी पवित्र गायों के साथ एकता दिखाते हुए अब मैं भी ‘मवेशी श्रेणी’ में यात्रा करूंगा। इन पवित्र गायों से उनका मतलब उनके साथी मंत्री थे और इत्तेफाक से सोनिया और राहुल भी पवित्र गायों की श्रेणियों में आ गए। कांग्रेस ने इसपर कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर की और इस बयान से अपने को अलग कर लिया। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस ने ही अपने मंत्रियों को इकोनॉमी क्लास में सफर करने की सलाह दी थी। फिलहाल थरूर अफ्रीकी देशों लाइबेरिया और घाना की यात्रा पर हैं और लौटने पर ही पता चलेगा कि उनका क्या हश्र होगा। लेकिन इन बातों से कुछ तथ्य तो बिल्कुल साफ हो गए हैं।
सबसे पहला यह कि यह थरूर भूरी चमड़ी में एक गोरा शख्स है जिसे अपने भारतीय होने पर ठीक उसी प्रकार से अफसोस है जैसा कि पंडित जवाहर लाल नेहरू को हुआ करता था। फटाफट अंग्रेजी बोलने वाले थरूर के साथ दूसरी दिक्कत यह है कि उसने हमेशा से विदेशों में काम किया है, लंबे समय तक संयुक्त राष्ट्र का अंडर सेक्रेटरी रहा है और वो भारत तथा यहाँ की जनता को नहीं समझता। मुझे लगता है कि यह आदमी जब किसी भारतीय ट्रेन की जनरल बोगी में सफर करेगा तो वहाँ सफर कर रहे लोगों को क्या कहेगा..?? इनसेक्ट (कीट) क्लास..??
क्योंकि हवाई सफर तो पहले से ही एलीट वर्ग के लिए माना जाता है और इकोनोमिक क्लास के लोगों को यह मवेशी बोल कर जतला चुके हैं कि वो भारतीय जनता को क्या समझते हैं। मुझे कुछ पुरानी बातें याद आ रही हैं। जब ये शख्स संयुक्त राष्ट्र में अंडर सेक्रेटरी था तब मैं इसके इंटरव्यू सुनकर बड़ा आल्हादित हुआ करता था। मुझे लगता था कि वाह, एक भारतीय संयुक्त राष्ट्र के इतने ऊँचे ओहदे पर है। फिर पिछली बार जब यह संयुक्त राष्ट्र के महासचिव पद पर लड़ने के लिए नामांकित हुआ तब भी मुझे लगता था कि हमें इसका सपोर्ट करना चाहिए। कांग्रेस सरकार की वजह से इन्हें पर्याप्त समर्थन नहीं मिल पाया और ये महासचिव बनने से रह गया और दक्षिण कोरिया के बान की मून महासचिव बने तब मुझे बहुत निराशा हुई थी। लेकिन आज मैं खुश हूँ कि अच्छा ही है जो ये आदमी उस पद तक नहीं पहुँच सका। जो व्यक्ति अपनी मातृभूमि और वहाँ के बाशिंदों का आदर करना नहीं जानता वो दुनिया से क्या प्यार करेगा और उस पद पर रहते हुए भारत का क्या भला करेगा। थरूर को उसके किए की सजा मिलनी चाहिए। हमें भूरी चमड़ी के नीचे छिपे हुए गोरे आदमी नहीं चाहिए। हमें प्योर भारतीय व्यक्ति ही अपने देश में शासन चलाने के लिए चाहिए। थरूर को उसके बोले की सजा मिलनी चाहिए। वो भारत का कतई भला नहीं कर सकता।
... दोस्तों, इसी संदर्भ में मुझे एक भारतीय राजकुमारी की भी अचानक याद हो आई। यह राजकुमारी अमर होने के अथक प्रयास कर रही है। करोड़ों रुपए खर्च करके अपनी मूर्तियाँ बनवा और लगवा रही है। ये हमारे देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती है। अरे, आप लोग सोच रहे होंगे कि मैंने मायावती का इंट्रोडक्शन इतने ड्रामेटिक अंदाज में क्यों करा, तो पहले यह पढ़िए..
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी अध्यक्ष मायावती ने समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव को चेतावनी दी और कहा कि बसपा के सत्ता से जाने के बाद भी कांशीराम समेत अन्य (खुद मायावती) दलित महापुरुषों की मूर्तियों को तोड़ने की गलती न करें नहीं तो इसके गम्भीर परिणाम होंगे। उन्होंने कहा कांग्रेस के कुछ नेता और सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव कह रहे हैं कि उनकी सत्ता आई तो मूर्तियों पर बुलडोजर चला दिया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा, “भूल से ऐसी गलती कोई न करें नहीं तो देश में गृहयद्ध की स्थिति हो जाएगी।” उन्होंने कहा कि मूर्तियों से छेड़छाड़ होने पर पूरे देश में कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ेगी। देश में आग लग जाएगी।”
अम्बेडकर पार्क समेत अन्य स्मारकों और मूर्तियों के निर्माण पर उच्चतम न्यायालय के रोक के बाद सपा और कांग्रेस ने इस मामले में मायावती पर हमले तेज कर दिए थे। गौरतलब है कि सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि उनकी पार्टी सत्ता में आई तो मूर्तियों पर बुलडोजर चला दिया जाएगा।
पढ़ा दोस्तों, तो देश में गृहयुद्ध के लिए अन्य हालातों की जरूरत ही नहीं है। मायावती अपनी मूर्तियाँ तुड़वाने पर ही देश को गृहयुद्ध की आग में झोंक देंगी। देश में आग लगवा देंगी। मैं कहता हूँ कि ऐसी महिला पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलना चाहिए। इसे सार्वजनिक रूप से जेल में डाल देना चाहिए और इससे भी सब्र ना हो तो इसे ही क्यों नहीं जिंदा आग में झोंक देना चाहिए? देश को ऐसे नालायक नेताओं की जरूरत ही नहीं है। और यहाँ मैं माफी माँगकर कहना चाहूँगा कि उत्तरप्रदेश के नागरिकों को भी इस नालायक महिला के साथ सजा देना चाहिए जो इसे हर बार चुन लेते हैं। क्या उन्हें नहीं पता कि अमर होने वाले व्यक्तियों की मूर्तियाँ दुनिया सदियों तक खुद ही बनवाती रहती है। उन्हें खुद अपनी मूर्तियाँ बनवानी की जरूरत नहीं पड़ती। जनता की गाढ़ी कमाई से ये महिला जो खिलवाड़ कर रही है उसकी सार्वजनिक निंदा की जानी चाहिए और हर बसपा नेता और कार्यकर्ता को जनता को कटघरे में खड़ा करके पूछना चाहिए कि भईया ये तुम्हारी बहनजी हमारी जान लेंगी क्या, वो पागल हो गई हैं क्या, नहीं देखनी हमें उनकी मनहूस शक्ल और मूर्तियों के रूप में दशकों तक उसे कौन झेलेगा...बंद करो ये अंधेरगिर्दी....अगर यह सब अभी बंद नहीं हुआ तो अंदर से कमजोर समझकर हमारे ताकतवर दुश्मन तुरंत हमारा सफाया कर देंगे फिर देखते हैं कि कहाँ जाती हैं तुम्हारी मूर्तियाँ और 'कैटेल क्लास' कहने वाली एलिट मैंनटेलिटी...!!!!!!!
आपका ही सचिन....।
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शशि थरूर
September 07, 2009
हमारे दुश्मनों के हाथों में हथियार पहुँचाता अमेरिका!
ओबामा प्रशासन से अब अमेरिकी-यूरोपीय ही असंतुष्ट
आज जब चीन हमारी सीमा में डेढ़ किलोमीटर अंदर तक घुस आया और वहाँ हमारी चट्टानों को लाल रंग से रंग गया, इसके साथ ही हमारे इलाके में कई जगह कैंटोनी भाषा में चीन शब्द लिख गया, तो ऐसे में हमें उसकी मंशा समझनी चाहिए क्योंकि चीन के साथ युद्ध के बाद से इस प्रकार की घटना पहली बार ही हुई है। यह इलाका हिमाचल से लगी चीनी सीमा में 22420 फीट की ऊँचाई पर है जहाँ चीन ने यह दुस्साहसी कार्रवाई की। माउंट ग्या के उस इलाके को फेयर प्रिसेंस आफ स्नो (बर्फ की गोरी राजकुमारी) भी कहा जाता है। यह घटना हाल ही में हुई है तथा खबरों में तो आज ही आई है। भारतीय सेना फिर से इस मामले में कुछ भी कहने से बच रही है क्योंकि हमारे तीन जनरल फिलहाल चीन की यात्रा पर हैं। भारतीय सेना का कहना है कि हम मामले को बातचीत से सुलझाएँगे, अब ये तो हमें भी नहीं पता कि ये बातचीत कब तक चलेगी..??
....लेकिन दोस्तों, यहाँ आज मेरा विषय चीन नहीं है। क्योंकि चीन पर पिछले कुछ दिनों में मैंने काफी कुछ लिखा है और आपने उसे पढ़ा और सराहा भी है इसलिए आज दूसरा एंगल..। ये एंगल अमेरिका, अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और कुछ मुस्लिम राष्ट्रों के इर्द-गिर्द घूमता है...फिलहाल तो मैं आपको कुछ खबरें पढ़वाऊँगा...फिर थोड़ी सी बात होगी, इन लिंक्स पर खबरें पढ़ने के बाद ही अपनी आगे की बात हो पाएगी...तो पढ़े..
हथियार बेचने में अव्वल रहा अमेरिका
दाल बना लेता हूं,लेकिन क्रिकेट नहीं आता: ओबामा
Obama's remarks at White House iftar
दोस्तों, मुझे लगता है कि आपने तीनों खबरें पढ़ ली होंगी। संभवतः पहले भी पढ़ी होंगी लेकिन इन तीनों के बीच की कहानी या कहें लिंक बड़ी मजेदार हैं। मेरे एक परिचित (वे पाकिस्तान के हैं) ने कुछ दिन पहले बताया था आज से 9 महीने पहले ओबामा के अमेरिकी राष्ट्रपति के तौर पर शपथ लेने को वहाँ जश्न के तौर पर मनाया गया था। वहाँ के अखबारों की लीड हैडलाइन थी कि बराक हुसैन ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति बने। एक मुसलमान अमेरिका का राष्ट्रपति बना। अखबारों ने वहाँ के कुछ मौलवियों के हवाले से खबरें भी छापीं कि अगले कुछ सालों में एक प्योर मुसलमान अमेरिका का राष्ट्रपति होगा क्योंकि ओबामा तो हाइब्रिड हैं।
मित्रों, इन खबरों में से पहली तो वही है जिसका मैंने पूर्व में अपनी एक पोस्ट में उल्लेख किया था कि अमेरिका हथियारों का संसार में सबसे बड़ा विक्रेता है और यह खबर यही बताती है कि उसका वैश्विक हथियार बाजार के 68 प्रतिशत पर कब्जा है। लेकिन खबर साथ ही यह भी बताती है कि विकासशील देशों में संयुक्त अरब अमीरात हथियार खरीदने वाले देशों में पहले स्थान पर है जिसने पिछले साल नौ अरब 70 करोड़ डॉलर के हथियार खरीद थे। दूसरे स्थान पर सउदी अरब ने आठ अरब 70 करोड़ डॉलर के हथियार खरीदे तो पांच अरब 40 करोड़ डॉलर के हथियार खरीद करके मोरक्को तीसरे स्थान पर रहा। ये तीनों की मुल्क इस्लामी हैं और ये लोग हथियारों का क्या करेंगे ये हमें पता है। हालांकि यूएई और सऊदी अरब ने हथियार खरीदे ये तो समझ आता है क्योंकि वहाँ तेल की खेती होती है और वहाँ पेट्रो डॉलर उग रहे हैं लेकिन भिखमंगे मोरक्को को इतने हथियारों की क्या जरूरत पड़ने वाली है यह समझ नहीं आता है।
दूसरी खबर से भी आप समझ ही गए होंगे कि ओबामा के घनिष्ट पाकिस्तानी मित्र रहे हैं, ओबामा खुद भी पाकिस्तान रहे हैं और ऊर्दू, कीमा, शायरी आदि से उनकी नजदीकियाँ भी रही हैं। तीसरी खबर से यह स्पष्ट है कि वाइट हाउस की उनकी इफ्तार पार्टी का अल-अरेबिया चैनल ने क्या मतलब निकाला है। ओबामा का यह भाषण योरप के कई देशों के लोगों ने अपने ब्लॉग पर चढ़ाया है और ओबामा को गालियाँ दी हैं। कई अमेरिकी लोगों ने भी यह काम किया है। देखिए बानगी.. Celebrating a Great Religion at 1600 Pennsylvania Avenue
यह भी आपको पता ही होगा कि ओबामा की लोकप्रियता अमेरिका में तेजी से कम हुई है और इसका सीधा सा कारण है कि अमेरिकियों को उनसे जितनी आशाएँ थीं पिछले 9 माह के दौरान वे उनमें से ज्यादातर को पूरा नहीं कर पाए हैं। इसके अलावा बुश प्रशासन के कई आलोचक भी अब ओबामा के खिलाफ उतरते हुए यह कह चुके हैं कि इससे बेहतर समय तो बुश के समय था क्योंकि तब अमेरिका अपनी स्वाभाविक नीति पर था जिससे आज वो सरकता हुआ प्रतीत हो रहा है।
दोस्तों, हम जिस ताकतवर चीन के सामने अमेरिका को अपना हितैषी तथा दोस्त मान रहे हैं वो हमारे दुश्मनों (अरब देश जो आतंकवाद के प्रायोजक हैं) को हथियारों से लाद रहा है वो भी सिर्फ अपने निजी हित के कारण...ऐसे में भारत कितनी लंबी रेस का घोड़ा सिद्ध हो पाएगा...??
आपका ही सचिन....।
आज जब चीन हमारी सीमा में डेढ़ किलोमीटर अंदर तक घुस आया और वहाँ हमारी चट्टानों को लाल रंग से रंग गया, इसके साथ ही हमारे इलाके में कई जगह कैंटोनी भाषा में चीन शब्द लिख गया, तो ऐसे में हमें उसकी मंशा समझनी चाहिए क्योंकि चीन के साथ युद्ध के बाद से इस प्रकार की घटना पहली बार ही हुई है। यह इलाका हिमाचल से लगी चीनी सीमा में 22420 फीट की ऊँचाई पर है जहाँ चीन ने यह दुस्साहसी कार्रवाई की। माउंट ग्या के उस इलाके को फेयर प्रिसेंस आफ स्नो (बर्फ की गोरी राजकुमारी) भी कहा जाता है। यह घटना हाल ही में हुई है तथा खबरों में तो आज ही आई है। भारतीय सेना फिर से इस मामले में कुछ भी कहने से बच रही है क्योंकि हमारे तीन जनरल फिलहाल चीन की यात्रा पर हैं। भारतीय सेना का कहना है कि हम मामले को बातचीत से सुलझाएँगे, अब ये तो हमें भी नहीं पता कि ये बातचीत कब तक चलेगी..??
....लेकिन दोस्तों, यहाँ आज मेरा विषय चीन नहीं है। क्योंकि चीन पर पिछले कुछ दिनों में मैंने काफी कुछ लिखा है और आपने उसे पढ़ा और सराहा भी है इसलिए आज दूसरा एंगल..। ये एंगल अमेरिका, अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और कुछ मुस्लिम राष्ट्रों के इर्द-गिर्द घूमता है...फिलहाल तो मैं आपको कुछ खबरें पढ़वाऊँगा...फिर थोड़ी सी बात होगी, इन लिंक्स पर खबरें पढ़ने के बाद ही अपनी आगे की बात हो पाएगी...तो पढ़े..
हथियार बेचने में अव्वल रहा अमेरिका
दाल बना लेता हूं,लेकिन क्रिकेट नहीं आता: ओबामा
Obama's remarks at White House iftar
दोस्तों, मुझे लगता है कि आपने तीनों खबरें पढ़ ली होंगी। संभवतः पहले भी पढ़ी होंगी लेकिन इन तीनों के बीच की कहानी या कहें लिंक बड़ी मजेदार हैं। मेरे एक परिचित (वे पाकिस्तान के हैं) ने कुछ दिन पहले बताया था आज से 9 महीने पहले ओबामा के अमेरिकी राष्ट्रपति के तौर पर शपथ लेने को वहाँ जश्न के तौर पर मनाया गया था। वहाँ के अखबारों की लीड हैडलाइन थी कि बराक हुसैन ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति बने। एक मुसलमान अमेरिका का राष्ट्रपति बना। अखबारों ने वहाँ के कुछ मौलवियों के हवाले से खबरें भी छापीं कि अगले कुछ सालों में एक प्योर मुसलमान अमेरिका का राष्ट्रपति होगा क्योंकि ओबामा तो हाइब्रिड हैं।
मित्रों, इन खबरों में से पहली तो वही है जिसका मैंने पूर्व में अपनी एक पोस्ट में उल्लेख किया था कि अमेरिका हथियारों का संसार में सबसे बड़ा विक्रेता है और यह खबर यही बताती है कि उसका वैश्विक हथियार बाजार के 68 प्रतिशत पर कब्जा है। लेकिन खबर साथ ही यह भी बताती है कि विकासशील देशों में संयुक्त अरब अमीरात हथियार खरीदने वाले देशों में पहले स्थान पर है जिसने पिछले साल नौ अरब 70 करोड़ डॉलर के हथियार खरीद थे। दूसरे स्थान पर सउदी अरब ने आठ अरब 70 करोड़ डॉलर के हथियार खरीदे तो पांच अरब 40 करोड़ डॉलर के हथियार खरीद करके मोरक्को तीसरे स्थान पर रहा। ये तीनों की मुल्क इस्लामी हैं और ये लोग हथियारों का क्या करेंगे ये हमें पता है। हालांकि यूएई और सऊदी अरब ने हथियार खरीदे ये तो समझ आता है क्योंकि वहाँ तेल की खेती होती है और वहाँ पेट्रो डॉलर उग रहे हैं लेकिन भिखमंगे मोरक्को को इतने हथियारों की क्या जरूरत पड़ने वाली है यह समझ नहीं आता है।
दूसरी खबर से भी आप समझ ही गए होंगे कि ओबामा के घनिष्ट पाकिस्तानी मित्र रहे हैं, ओबामा खुद भी पाकिस्तान रहे हैं और ऊर्दू, कीमा, शायरी आदि से उनकी नजदीकियाँ भी रही हैं। तीसरी खबर से यह स्पष्ट है कि वाइट हाउस की उनकी इफ्तार पार्टी का अल-अरेबिया चैनल ने क्या मतलब निकाला है। ओबामा का यह भाषण योरप के कई देशों के लोगों ने अपने ब्लॉग पर चढ़ाया है और ओबामा को गालियाँ दी हैं। कई अमेरिकी लोगों ने भी यह काम किया है। देखिए बानगी.. Celebrating a Great Religion at 1600 Pennsylvania Avenue
यह भी आपको पता ही होगा कि ओबामा की लोकप्रियता अमेरिका में तेजी से कम हुई है और इसका सीधा सा कारण है कि अमेरिकियों को उनसे जितनी आशाएँ थीं पिछले 9 माह के दौरान वे उनमें से ज्यादातर को पूरा नहीं कर पाए हैं। इसके अलावा बुश प्रशासन के कई आलोचक भी अब ओबामा के खिलाफ उतरते हुए यह कह चुके हैं कि इससे बेहतर समय तो बुश के समय था क्योंकि तब अमेरिका अपनी स्वाभाविक नीति पर था जिससे आज वो सरकता हुआ प्रतीत हो रहा है।
दोस्तों, हम जिस ताकतवर चीन के सामने अमेरिका को अपना हितैषी तथा दोस्त मान रहे हैं वो हमारे दुश्मनों (अरब देश जो आतंकवाद के प्रायोजक हैं) को हथियारों से लाद रहा है वो भी सिर्फ अपने निजी हित के कारण...ऐसे में भारत कितनी लंबी रेस का घोड़ा सिद्ध हो पाएगा...??
आपका ही सचिन....।
September 05, 2009
फिर कौन करेगा जनता की सुरक्षा?
ऐसे गृहमंत्री और कृषि मंत्री से तो भगवान बचाए
दोस्तों, आजकल जब भी मैं देश के गृह मंत्री पी. चिदंबरम और कृषि मंत्री शरद पवार की तस्वीर देखता हूँ या टीवी पर उनकी फुटेज देखता हूँ तो मुझे उनके बोले गए दो अनमोल वचन अचानक याद आ जाते हैं। मुझे लगने लगता है कि हाँ, हमारे देश को ऐसे बहादुर और जीवट वाले नेताओं की ही तो जरूरत है...!!!!!!!!!!
ये दोनों वचन या कहें बयान क्या थे, वो आप भी जानिए...कुछ समय पहले गृहमंत्री चिदंबरम ने कह दिया था ऐसा संभव नहीं है कि देश के हरेक नागरिक की सुरक्षा की जा सके। केन्द्र सरकार या गृह मंत्रालय ऐसा नहीं कर सकता। लोगों को खुद भी अपनी सुरक्षा का ख्याल रखना चाहिए।
दूसरे बयान में केन्द्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने कह दिया था कि अगर देश के प्रदेशों (राज्यों) में सूखे की स्थिति है तो यह राज्यों का निजी मामला है और राज्य सरकारों को इससे निपटने के लिए विस्तृत तैयारियाँ करनी चाहिए। दोस्तों, इसमें मेरा मत है, कि वाह...बहुत अच्छे, हमें ऐसे नेताओं की ही तो जरूरत है.....!!!!!!!!!!
वैसे तो इस मुद्दे पर आप लोग मेरा पक्ष समझ ही गए होंगे क्योंकि मेरा पक्ष भी वही है जो आप लोगों का है। मतलब हमें इस बात से पता चल गया कि हम कितने सुरक्षित हैं। चिदंबरम जी ने हमें यह समझा दिया है कि हमें अपनी सुरक्षा खुद ही करनी चाहिए और बंदूकें, तलवारें, तोप, गोले आदि भी खरीद लेने चाहिए क्योंकि भारत में आतंकवाद का खतरा दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है और भारत सरकार उसके खिलाफ कुछ भी प्रभावी कदम नहीं उठा पा रही है। क्या आपने इतना नाकारा गृहमंत्री कहीं देखा है जो संकट के समय अपने देश के नागरिकों को अकेला छोड़ दे..?? भई, मैंने तो नहीं देखा, देखना भी नहीं चाहता, क्योंकि अगर सुरक्षा के नाम पर भारत के हर घर में हथियारों का जखीरा रहने लगा तो फिर अपराध कैसे रुकेंगे..?? दूसरा, देश में हथियारों का लाइसेंस और हथियार खरीदने की प्रक्रिया इतनी टेढ़ी और महंगी है कि हम और आप बिना सुरक्षित ही रह लेंगे और यूँ ही आतंकी हमलों में मारे जाते रहेंगे। अपने देश में एक रिवाल्वर लाइसेंस समेत कम से कम 1 लाख रुपए में आती है। तो हम कैसे करेंगे अपनी सुरक्षा..?? मतलब, सरकार हमें अपनी सुरक्षा के लिए हथियार भी नहीं लेने देती और सुरक्षा भी मुहैया नहीं कराती। फिर मुझे किसी भी संदर्भ में यह भी याद नहीं आया कि किसी और देश के गृहमंत्री ने इतनी हल्की बात की हो। अमेरिका में अगर 9/11 के बाद वहाँ का डिफेंस मिनिस्टर इस प्रकार का बयान दे देता तो लोग उस देश से ही भाग जाते। अरे, ऐसी जगह रहने से भी क्या फायदा जहाँ की सरकार को आपसे मतलब ही नहीं और वो पहली फुरसत में ही आपसे पल्ला झाड़ना चाहती हो...!!!!!!!
दोस्तों, शरद पवार भी कम नहीं हैं। वो मराठा नेता फिलहाल सिर्फ रुपए कमाने में लगा है और देश में किसी से भी पूछ लीजिए उनकी पहचान कृषि मंत्री से ज्यादा बीसीसीआई अध्यक्ष के रूप में है। भारत का किसान तो उन्हें जानता ही नहीं....तो, पवार साहब ने कह दिया कि हमें राज्यों में पड़ने वाले सूखे से मतलब नहीं....!!!!!!!! अरे, तो आप केन्द्रीय कृषि मंत्री क्यों हैं..?? आपको तो सिर्फ दिल्ली का कृषि मंत्री होना चाहिए था...और आपकी सरकार क्या सिर्फ वोट कबाड़ने के लिए किसानों का कर्ज माफ करेगी.....कभी ऐसी स्थिति पैदा नहीं करेगी जिसमें किसानों को कर्ज लेने की जरूरत ही ना पड़े....!!!!!! और फिर देश की जनता जो लाखों, करोड़ों, अरबों रुपए टैक्स के रूप में देती है वो किसलिए हैं...?? क्या ये राज्य भारत देश के अंग नहीं हैं और अगर हैं तो केन्द्रीयकृत लोकतांत्रिक सरकार यह कहकर कैसे पीछे हट सकती है कि सूखा या बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएँ राज्य सरकारों का अपना मामला है। अब तो ये कांग्रेस सरकार लोगों को वक्त की दलील भी नहीं दे सकती जो हमेशा भाजपा देकर बचती रहती है। कांग्रेस को इस बार देश की जनता ने लगातार दूसरी बार चुना है और भारतीय लोकतंत्र के 63 में से 50 से ज्यादा सालों तक उसने ही देश पर शासन किया है। तो अब उसे क्या समय देना, किसी राजनीतिक पार्टी को शताब्दियों का समय दिया जाता है क्या..?? अरे भाई दशकों का भी नहीं दिया जाना चाहिए लेकिन हमने तो कांग्रेस को पूरी आधी शताब्दी से ज्यादा समय दिया और देश फिर भी वहीं का वहीं है, जहाँ सूखे-बाढ़ के कारण आज भी लोग संकट में आ जाते हैं एवं नागरिकों की सुरक्षा की कोई जिम्मेदारी नहीं उठाई जाती...अब आप ही बताईए कि हम अपनी सरकार पर कितना भरोसा करें, उससे क्या आशा रखें और यह भी कि अपनी सुरक्षा के लिए क्या बंदोबस्त करें...??
क्योंकि हमारे देश का गृहमंत्री तो अपनी धोती संभालने में ही व्यस्त रहता है जबकि कृषि मंत्री को आईपीएल, फिल्मी सितारें और कमाई से फुरसत नहीं है।
आपका ही सचिन.......।
दोस्तों, आजकल जब भी मैं देश के गृह मंत्री पी. चिदंबरम और कृषि मंत्री शरद पवार की तस्वीर देखता हूँ या टीवी पर उनकी फुटेज देखता हूँ तो मुझे उनके बोले गए दो अनमोल वचन अचानक याद आ जाते हैं। मुझे लगने लगता है कि हाँ, हमारे देश को ऐसे बहादुर और जीवट वाले नेताओं की ही तो जरूरत है...!!!!!!!!!!
ये दोनों वचन या कहें बयान क्या थे, वो आप भी जानिए...कुछ समय पहले गृहमंत्री चिदंबरम ने कह दिया था ऐसा संभव नहीं है कि देश के हरेक नागरिक की सुरक्षा की जा सके। केन्द्र सरकार या गृह मंत्रालय ऐसा नहीं कर सकता। लोगों को खुद भी अपनी सुरक्षा का ख्याल रखना चाहिए।
दूसरे बयान में केन्द्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने कह दिया था कि अगर देश के प्रदेशों (राज्यों) में सूखे की स्थिति है तो यह राज्यों का निजी मामला है और राज्य सरकारों को इससे निपटने के लिए विस्तृत तैयारियाँ करनी चाहिए। दोस्तों, इसमें मेरा मत है, कि वाह...बहुत अच्छे, हमें ऐसे नेताओं की ही तो जरूरत है.....!!!!!!!!!!
वैसे तो इस मुद्दे पर आप लोग मेरा पक्ष समझ ही गए होंगे क्योंकि मेरा पक्ष भी वही है जो आप लोगों का है। मतलब हमें इस बात से पता चल गया कि हम कितने सुरक्षित हैं। चिदंबरम जी ने हमें यह समझा दिया है कि हमें अपनी सुरक्षा खुद ही करनी चाहिए और बंदूकें, तलवारें, तोप, गोले आदि भी खरीद लेने चाहिए क्योंकि भारत में आतंकवाद का खतरा दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है और भारत सरकार उसके खिलाफ कुछ भी प्रभावी कदम नहीं उठा पा रही है। क्या आपने इतना नाकारा गृहमंत्री कहीं देखा है जो संकट के समय अपने देश के नागरिकों को अकेला छोड़ दे..?? भई, मैंने तो नहीं देखा, देखना भी नहीं चाहता, क्योंकि अगर सुरक्षा के नाम पर भारत के हर घर में हथियारों का जखीरा रहने लगा तो फिर अपराध कैसे रुकेंगे..?? दूसरा, देश में हथियारों का लाइसेंस और हथियार खरीदने की प्रक्रिया इतनी टेढ़ी और महंगी है कि हम और आप बिना सुरक्षित ही रह लेंगे और यूँ ही आतंकी हमलों में मारे जाते रहेंगे। अपने देश में एक रिवाल्वर लाइसेंस समेत कम से कम 1 लाख रुपए में आती है। तो हम कैसे करेंगे अपनी सुरक्षा..?? मतलब, सरकार हमें अपनी सुरक्षा के लिए हथियार भी नहीं लेने देती और सुरक्षा भी मुहैया नहीं कराती। फिर मुझे किसी भी संदर्भ में यह भी याद नहीं आया कि किसी और देश के गृहमंत्री ने इतनी हल्की बात की हो। अमेरिका में अगर 9/11 के बाद वहाँ का डिफेंस मिनिस्टर इस प्रकार का बयान दे देता तो लोग उस देश से ही भाग जाते। अरे, ऐसी जगह रहने से भी क्या फायदा जहाँ की सरकार को आपसे मतलब ही नहीं और वो पहली फुरसत में ही आपसे पल्ला झाड़ना चाहती हो...!!!!!!!
दोस्तों, शरद पवार भी कम नहीं हैं। वो मराठा नेता फिलहाल सिर्फ रुपए कमाने में लगा है और देश में किसी से भी पूछ लीजिए उनकी पहचान कृषि मंत्री से ज्यादा बीसीसीआई अध्यक्ष के रूप में है। भारत का किसान तो उन्हें जानता ही नहीं....तो, पवार साहब ने कह दिया कि हमें राज्यों में पड़ने वाले सूखे से मतलब नहीं....!!!!!!!! अरे, तो आप केन्द्रीय कृषि मंत्री क्यों हैं..?? आपको तो सिर्फ दिल्ली का कृषि मंत्री होना चाहिए था...और आपकी सरकार क्या सिर्फ वोट कबाड़ने के लिए किसानों का कर्ज माफ करेगी.....कभी ऐसी स्थिति पैदा नहीं करेगी जिसमें किसानों को कर्ज लेने की जरूरत ही ना पड़े....!!!!!! और फिर देश की जनता जो लाखों, करोड़ों, अरबों रुपए टैक्स के रूप में देती है वो किसलिए हैं...?? क्या ये राज्य भारत देश के अंग नहीं हैं और अगर हैं तो केन्द्रीयकृत लोकतांत्रिक सरकार यह कहकर कैसे पीछे हट सकती है कि सूखा या बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएँ राज्य सरकारों का अपना मामला है। अब तो ये कांग्रेस सरकार लोगों को वक्त की दलील भी नहीं दे सकती जो हमेशा भाजपा देकर बचती रहती है। कांग्रेस को इस बार देश की जनता ने लगातार दूसरी बार चुना है और भारतीय लोकतंत्र के 63 में से 50 से ज्यादा सालों तक उसने ही देश पर शासन किया है। तो अब उसे क्या समय देना, किसी राजनीतिक पार्टी को शताब्दियों का समय दिया जाता है क्या..?? अरे भाई दशकों का भी नहीं दिया जाना चाहिए लेकिन हमने तो कांग्रेस को पूरी आधी शताब्दी से ज्यादा समय दिया और देश फिर भी वहीं का वहीं है, जहाँ सूखे-बाढ़ के कारण आज भी लोग संकट में आ जाते हैं एवं नागरिकों की सुरक्षा की कोई जिम्मेदारी नहीं उठाई जाती...अब आप ही बताईए कि हम अपनी सरकार पर कितना भरोसा करें, उससे क्या आशा रखें और यह भी कि अपनी सुरक्षा के लिए क्या बंदोबस्त करें...??
क्योंकि हमारे देश का गृहमंत्री तो अपनी धोती संभालने में ही व्यस्त रहता है जबकि कृषि मंत्री को आईपीएल, फिल्मी सितारें और कमाई से फुरसत नहीं है।
आपका ही सचिन.......।
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September 04, 2009
भारत को समेटने के प्रयास में एकजुट दुश्मन
हमें पड़ोसियों की हर चाल पर नजर रखनी होगी
दोस्तों, कुछ दिनों से भारत को लेकर कुछ मनहूस खबरें सामने आ रही हैं। सबसे पहले पता चला कि हमारे दुश्मन नंबर 1 चीन ने भारत के खिलाफ अपनी कूटनीतिक चालें तेज कर दी हैं। फिर पता चला कि पाकिस्तान ने अमेरिका से मिली हारपून मिसाइलों में कुछ छेड़छाड़ कर उन्हें भारत के खिलाफ प्रभावी बनाने के लिए तैयार किया है। बाद में इसी टुच्चे पाकिस्तान की ओर से एक खबर यह भी आई कि वह अपने परमाणु हथियारों का जखीरा बढ़ाने में लगा है। वह अपने परमाणु कार्यक्रम का विस्तार कर रहा है और यह भी कि वह अपने परमाणु हथियारों की तैनाती की तैयारी में भी जुटा हुआ है। साथ ही यह भी कि वह सोमालियाई लुटेरों का भी साथ दे रहा है और हिन्द महासागर में जहाजों को लुटवाने में मदद कर रहा है और हाल ही में इस मामले में 12 पाकिस्तानी नागरिकों को पकड़ा भी गया है। सबसे बड़ा तुर्रा यह कि पकड़े गए जहाजों को छुड़वाने या अपने जहाजों को लूट से बचाने वाली बात कहकर चीन अपने नौसेना बेड़े की हिन्द महासागर में तैनाती कर चुका है और कुल मिलाकर बात भारत को घेरने की है। एक अनुमान के मुताबिक पाकिस्तान के पास 70-80 परमाणु बम हैं जबकि चीन के पास कितने हैं उनकी तो गिनती ही नहीं है और यह सिर्फ उसे ही पता है। उसकी सब बातों की तरह यह भी एक रहस्य ही है। इनमें से ज्यादातर बातों का खुलासा दूर बैठे अमेरिका ने किया है। आखिर हम क्यों मेहनत करें जब अमेरिका खुद ही सबकुछ पता करके हमें बता देता है (!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!)...
दोस्तों, यह खबरें तब आई हैं जब हमारे यहाँ राजनीतिक हल्ला मचा हुआ है। भाजपा में घमासान मचा हुआ है, जसवंत सिंह आडवाणी की पोलें खोले जा रहे हैं और कांग्रेस ने हाल ही में अपना एक प्रभावी मुख्यमंत्री खो दिया है। इससे पहले एक और घमासान मच चुका था। लेकिन यह दूसरे मगर रिलेटेड टॉपिक पर था। भारत के रज्ञा वैज्ञानिक संथानम जी ने यह मुद्दा उछाला था। उनका कहना है कि भारत द्वारा किया गया फ्यूजन बम या कहें हाईड्रोजन बम फुस्स था। इसे इस तरह से भी कह सकते हैं कि वो उतनी शक्ति का नहीं था जितना की दावा किया गया था। भारत को अपनी शक्ति सुनिश्चित करने के लिए और विस्फोट करने चाहिए। उल्लेखनीय है कि फिजन तकनीक से अणु बम (एटम बम) बनाया जाता है जबकि फ्यूजन तकनीक हाईड्रोजन बम में काम आती है। इस खबर से जहाँ भारत में हंगामा मच गया वहीं हमारे दुश्मनों की बाँछें खिल गईं। वो नई तैयारियों में लग गए जबकि हमारे यहाँ सफाई देने का सिलसिला चल पड़ा। संथानम के इस दावे को पूर्व राष्ट्रपति डॉ. कलाम और विख्यात परमाणु वैज्ञानिक डॉ. अनिल काकोड़कर ने तुरंत खारिज किया। लेकिन मीन-मेख निकालने वाले तत्कालीन भाजपा सरकार को घेरे में लेने लगे, बिना ये सोचे कि इससे दुनिया में हमारी क्या छवि प्रस्तुत होगी और ये भी कि हमारे बनाए हुए बमों की ताकत पर फिर कौन विश्वास करेगा और क्योंकर हमसे डरेगा..?? इस बीच हमारे वित्तीय दिमाग के रक्षामंत्री चिदंबरम ने तो यह तक कह दिया कि संथानम के इस दावे की जाँच कराई जाएगी जबकि हमारे प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह बात को संभाला और कहा कि इस बात पर बहस नहीं होनी चाहिए और डॉ. कलाम के बोलने के बाद इस बहस को समाप्त माना जाना चाहिए।
दोस्तों, इस पूरे घटनाक्रम को मैं दुर्भाग्यपूर्ण मानता हूँ लेकिन संथानम की एक बात का मैं समर्थक हूँ। मुझे लगता है कि भारत को और अधिक परमाणु विस्फोट करने चाहिए। उसे अपनी ताकत लगातार बढ़ाते रहना चाहिए और उसे समय-समय पर जाँचते भी रहना चाहिए क्योंकि हम चारों ओर दुश्मनों से घिरे हुए हैं। इस ताकत की कब जरूरत पड़ जाए यह कहा नहीं जा सकता। दूसरे, हमारे चारों ओर अमेरिका भी अपना शिकंजा कस रहा है। ठीक रेटीक्युलेटेड पाइथन (अजगर की संसार का सबसे बड़ी प्रजाति जो 10 मीटर तक लंबी होती है) की तरह। हालांकि फिलहाल हमारे उससे संबंध अच्छे चल रहे हैं लेकिन वो हमारी तरफ सिर्फ दो कारणों से झुका हुआ है। एक तो उसे चीन से खतरा है और दूसरे इस्लामिक आतंकवाद से। ये दोनों ही हमारे आस-पास हैं। पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश जहाँ इस्लामिक आतंकवाद का गढ़ हैं वहीं चीन तो हमारे सिर से ही लगा हुआ है। ऐसे में अमेरिका का हमारे साथ रहना लाजिमी है। लेकिन परमाणु समझौते के बाद हमारे सभी परमाणु रिएक्टर उसकी नजरों में आ जाएँगे और एक बार इन रिएक्टरों का काम शुरू होने के बाद हमारा आगे परमाणु विस्फोट करने का रास्ता मुश्किल भरा या कहें असंभव हो जाएगा। ऐसे में हमें ये कदम तुरंत उठाना होगा।
हालांकि भारत जैसे सघन आबादी वाले देश में मैं परमाणु संयंत्रों को लगाने का विरोधी हूँ। इसके कुछ अपने कारण भी हैं। मैंने हमारे हिन्दी वैब पोर्टल पर इस विषय पर तीन विस्तृत लेख लिखें हैं। आप भी इन्हें पढ़ सकते हैं और इसके बाद अपनी राय भी जाहिर कर सकते हैं। ये रहीं इनकी लिंक्स..।
परमाणु समझौते के पीछे का काला सच
पहले भारत के परमाणु संयंत्र तो सुधरें
परमाणु ऊर्जा से पीछा छुड़ा रहा है अमेरिका
दोस्तों, अमेरिका पाकिस्तानी मंसूबों को भाँपकर उसे जल्दी ही दी जाने वाली 7.5 अरब डॉलर की सहायता को रोक सकता है लेकिन इससे क्या हो जाएगा..?? वो पहले ही पाकिस्तान के पाले में 20 अरब डॉलर की मदद फैंक चुका है और इससे पाक ने दो नए प्लूटोनियम रिएक्टर और उपयोग में आने वाले रासायनिक पदार्थों का निमार्ण शुरू कर दिया है। उसके विनाशक हथियारों का जखीरा उसकी राजधानी इस्लामाबाद के नजदीक ही जमा हो रहा है। वो इन्हें बंकरों में जमा कर रहा है और अमेरिका ने तो इन बंकरों की उपग्रह से ली गई तस्वीरें भी जारी कर दी हैं। इसके अलावा पाक शाहीन-2 का विकास, बैलेस्टिक मिसाइल वाली पनडुब्बी निर्माण, दो नई परमाणुचालित क्रूज मिसाइल और बाबर व राड मिसाइलों के उन्नतीकरण में लगा हुआ है। पाकिस्तान किस कदर दोगला है यह तो हम पिछले 60 सालों से जान-समझ रहे हैं। उसके लिए तैयारी भी कर रहे हैं लेकिन दिन पर दिन वह फिर भी नए उदाहरण पेश करता रहता है। हाल ही उसने अपने 15 मोस्ट वांडेट आतंकियों की सूची तैयार की है। लेकिन इसमें लश्कर-ए-तयैबा का सर्वेसर्वा वो हाफिज सईद शामिल नहीं है जिसने पिछले वर्ष मुंबई पर हमला करवाया था। इसके भी दो कारण हैं। पहला तो यह कि सईद को पाकिस्तान में धर्म गुरू समझा जाता है ना कि आतंकवादी सरगना। दूसरे, सईद ने फिलहाल अमेरिका का कुछ नहीं बिगाडा़ है इसलिए वो लिस्ट से बाहर है क्योंकि इस लिस्ट में वही आतंकी शामिल हैं जो अमेरिका और उसकी फौजों के लिए खतरा बने हुए हैं।
हम इस समय इतिहास के सबसे मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं जब हमारे चारों ओर शुत्रओं का जमावड़ा है और जिसमें से दो शत्रु परमाणु शस्त्रों से लैस हैं। भारत और यहाँ की राजनीतिक पार्टियों और अपनी दैनंदिन राजनीति से ऊपर आकर हाल फिलहाल भारत और उसके भविष्य के बारे में सोचना चाहिए क्योंकि हर बार हमें खतरे के प्रति अमेरिका ही आगाह नहीं करेगा......!!!!!!!!!!!!!
आपका ही सचिन....।
दोस्तों, कुछ दिनों से भारत को लेकर कुछ मनहूस खबरें सामने आ रही हैं। सबसे पहले पता चला कि हमारे दुश्मन नंबर 1 चीन ने भारत के खिलाफ अपनी कूटनीतिक चालें तेज कर दी हैं। फिर पता चला कि पाकिस्तान ने अमेरिका से मिली हारपून मिसाइलों में कुछ छेड़छाड़ कर उन्हें भारत के खिलाफ प्रभावी बनाने के लिए तैयार किया है। बाद में इसी टुच्चे पाकिस्तान की ओर से एक खबर यह भी आई कि वह अपने परमाणु हथियारों का जखीरा बढ़ाने में लगा है। वह अपने परमाणु कार्यक्रम का विस्तार कर रहा है और यह भी कि वह अपने परमाणु हथियारों की तैनाती की तैयारी में भी जुटा हुआ है। साथ ही यह भी कि वह सोमालियाई लुटेरों का भी साथ दे रहा है और हिन्द महासागर में जहाजों को लुटवाने में मदद कर रहा है और हाल ही में इस मामले में 12 पाकिस्तानी नागरिकों को पकड़ा भी गया है। सबसे बड़ा तुर्रा यह कि पकड़े गए जहाजों को छुड़वाने या अपने जहाजों को लूट से बचाने वाली बात कहकर चीन अपने नौसेना बेड़े की हिन्द महासागर में तैनाती कर चुका है और कुल मिलाकर बात भारत को घेरने की है। एक अनुमान के मुताबिक पाकिस्तान के पास 70-80 परमाणु बम हैं जबकि चीन के पास कितने हैं उनकी तो गिनती ही नहीं है और यह सिर्फ उसे ही पता है। उसकी सब बातों की तरह यह भी एक रहस्य ही है। इनमें से ज्यादातर बातों का खुलासा दूर बैठे अमेरिका ने किया है। आखिर हम क्यों मेहनत करें जब अमेरिका खुद ही सबकुछ पता करके हमें बता देता है (!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!)...
दोस्तों, यह खबरें तब आई हैं जब हमारे यहाँ राजनीतिक हल्ला मचा हुआ है। भाजपा में घमासान मचा हुआ है, जसवंत सिंह आडवाणी की पोलें खोले जा रहे हैं और कांग्रेस ने हाल ही में अपना एक प्रभावी मुख्यमंत्री खो दिया है। इससे पहले एक और घमासान मच चुका था। लेकिन यह दूसरे मगर रिलेटेड टॉपिक पर था। भारत के रज्ञा वैज्ञानिक संथानम जी ने यह मुद्दा उछाला था। उनका कहना है कि भारत द्वारा किया गया फ्यूजन बम या कहें हाईड्रोजन बम फुस्स था। इसे इस तरह से भी कह सकते हैं कि वो उतनी शक्ति का नहीं था जितना की दावा किया गया था। भारत को अपनी शक्ति सुनिश्चित करने के लिए और विस्फोट करने चाहिए। उल्लेखनीय है कि फिजन तकनीक से अणु बम (एटम बम) बनाया जाता है जबकि फ्यूजन तकनीक हाईड्रोजन बम में काम आती है। इस खबर से जहाँ भारत में हंगामा मच गया वहीं हमारे दुश्मनों की बाँछें खिल गईं। वो नई तैयारियों में लग गए जबकि हमारे यहाँ सफाई देने का सिलसिला चल पड़ा। संथानम के इस दावे को पूर्व राष्ट्रपति डॉ. कलाम और विख्यात परमाणु वैज्ञानिक डॉ. अनिल काकोड़कर ने तुरंत खारिज किया। लेकिन मीन-मेख निकालने वाले तत्कालीन भाजपा सरकार को घेरे में लेने लगे, बिना ये सोचे कि इससे दुनिया में हमारी क्या छवि प्रस्तुत होगी और ये भी कि हमारे बनाए हुए बमों की ताकत पर फिर कौन विश्वास करेगा और क्योंकर हमसे डरेगा..?? इस बीच हमारे वित्तीय दिमाग के रक्षामंत्री चिदंबरम ने तो यह तक कह दिया कि संथानम के इस दावे की जाँच कराई जाएगी जबकि हमारे प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह बात को संभाला और कहा कि इस बात पर बहस नहीं होनी चाहिए और डॉ. कलाम के बोलने के बाद इस बहस को समाप्त माना जाना चाहिए।
दोस्तों, इस पूरे घटनाक्रम को मैं दुर्भाग्यपूर्ण मानता हूँ लेकिन संथानम की एक बात का मैं समर्थक हूँ। मुझे लगता है कि भारत को और अधिक परमाणु विस्फोट करने चाहिए। उसे अपनी ताकत लगातार बढ़ाते रहना चाहिए और उसे समय-समय पर जाँचते भी रहना चाहिए क्योंकि हम चारों ओर दुश्मनों से घिरे हुए हैं। इस ताकत की कब जरूरत पड़ जाए यह कहा नहीं जा सकता। दूसरे, हमारे चारों ओर अमेरिका भी अपना शिकंजा कस रहा है। ठीक रेटीक्युलेटेड पाइथन (अजगर की संसार का सबसे बड़ी प्रजाति जो 10 मीटर तक लंबी होती है) की तरह। हालांकि फिलहाल हमारे उससे संबंध अच्छे चल रहे हैं लेकिन वो हमारी तरफ सिर्फ दो कारणों से झुका हुआ है। एक तो उसे चीन से खतरा है और दूसरे इस्लामिक आतंकवाद से। ये दोनों ही हमारे आस-पास हैं। पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश जहाँ इस्लामिक आतंकवाद का गढ़ हैं वहीं चीन तो हमारे सिर से ही लगा हुआ है। ऐसे में अमेरिका का हमारे साथ रहना लाजिमी है। लेकिन परमाणु समझौते के बाद हमारे सभी परमाणु रिएक्टर उसकी नजरों में आ जाएँगे और एक बार इन रिएक्टरों का काम शुरू होने के बाद हमारा आगे परमाणु विस्फोट करने का रास्ता मुश्किल भरा या कहें असंभव हो जाएगा। ऐसे में हमें ये कदम तुरंत उठाना होगा।
हालांकि भारत जैसे सघन आबादी वाले देश में मैं परमाणु संयंत्रों को लगाने का विरोधी हूँ। इसके कुछ अपने कारण भी हैं। मैंने हमारे हिन्दी वैब पोर्टल पर इस विषय पर तीन विस्तृत लेख लिखें हैं। आप भी इन्हें पढ़ सकते हैं और इसके बाद अपनी राय भी जाहिर कर सकते हैं। ये रहीं इनकी लिंक्स..।
परमाणु समझौते के पीछे का काला सच
पहले भारत के परमाणु संयंत्र तो सुधरें
परमाणु ऊर्जा से पीछा छुड़ा रहा है अमेरिका
दोस्तों, अमेरिका पाकिस्तानी मंसूबों को भाँपकर उसे जल्दी ही दी जाने वाली 7.5 अरब डॉलर की सहायता को रोक सकता है लेकिन इससे क्या हो जाएगा..?? वो पहले ही पाकिस्तान के पाले में 20 अरब डॉलर की मदद फैंक चुका है और इससे पाक ने दो नए प्लूटोनियम रिएक्टर और उपयोग में आने वाले रासायनिक पदार्थों का निमार्ण शुरू कर दिया है। उसके विनाशक हथियारों का जखीरा उसकी राजधानी इस्लामाबाद के नजदीक ही जमा हो रहा है। वो इन्हें बंकरों में जमा कर रहा है और अमेरिका ने तो इन बंकरों की उपग्रह से ली गई तस्वीरें भी जारी कर दी हैं। इसके अलावा पाक शाहीन-2 का विकास, बैलेस्टिक मिसाइल वाली पनडुब्बी निर्माण, दो नई परमाणुचालित क्रूज मिसाइल और बाबर व राड मिसाइलों के उन्नतीकरण में लगा हुआ है। पाकिस्तान किस कदर दोगला है यह तो हम पिछले 60 सालों से जान-समझ रहे हैं। उसके लिए तैयारी भी कर रहे हैं लेकिन दिन पर दिन वह फिर भी नए उदाहरण पेश करता रहता है। हाल ही उसने अपने 15 मोस्ट वांडेट आतंकियों की सूची तैयार की है। लेकिन इसमें लश्कर-ए-तयैबा का सर्वेसर्वा वो हाफिज सईद शामिल नहीं है जिसने पिछले वर्ष मुंबई पर हमला करवाया था। इसके भी दो कारण हैं। पहला तो यह कि सईद को पाकिस्तान में धर्म गुरू समझा जाता है ना कि आतंकवादी सरगना। दूसरे, सईद ने फिलहाल अमेरिका का कुछ नहीं बिगाडा़ है इसलिए वो लिस्ट से बाहर है क्योंकि इस लिस्ट में वही आतंकी शामिल हैं जो अमेरिका और उसकी फौजों के लिए खतरा बने हुए हैं।
हम इस समय इतिहास के सबसे मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं जब हमारे चारों ओर शुत्रओं का जमावड़ा है और जिसमें से दो शत्रु परमाणु शस्त्रों से लैस हैं। भारत और यहाँ की राजनीतिक पार्टियों और अपनी दैनंदिन राजनीति से ऊपर आकर हाल फिलहाल भारत और उसके भविष्य के बारे में सोचना चाहिए क्योंकि हर बार हमें खतरे के प्रति अमेरिका ही आगाह नहीं करेगा......!!!!!!!!!!!!!
आपका ही सचिन....।
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September 03, 2009
भारत की घेराबंदी में जुटा चीन!
वाईसी हालन
चीन हमेशा सुर्खियों में रहता है। दुनिया का कोई भी राष्ट्र चीन की अनदेखी नहीं कर सकता, यहाँ तक कि सबसे बड़ी ताक़त संयुक्त राज्य अमेरिका भी नहीं। इसीलिए अमेरिका, चीन की गतिविधियों और राजनीति पर हमेशा कड़ी निगाह रखता है। हाल ही में पेंटागन द्वारा जारी 2009 की सालाना रपट में चीन की बढ़ती सैन्य शक्ति के प्रति आगाह किया गया है।
रपट में बताया गया है कि सैन्य शक्ति में भारी निवेश के अलावा चीन अत्याधुनिक हथियार हासिल करने में भी तेजी से प्रगति कर रहा है, जिसके चलते इस इलाके में वह बाकी देशों को बहुत पीछे छोड़ देगा। इस रपट में चेतावनी दी गई है कि चीन नाभिकीय, अंतरिक्ष और साइबर युद्ध हेतु नई तकनीकों का विकास कर रहा है। इससे क्षेत्रीय सैन्य संतुलन बदल जाएगा और इसके परिणाम एशिया-प्रशांत क्षेत्र से भी परे जाकर विश्व को प्रभावित करेंगे।
इस रपट का भारत के संदर्भ में विशेष महत्व है, इसलिए इसे गंभीरता से लेना चाहिए। सन् 1949 में कम्युनिस्ट सरकार आते ही चीन ने विस्तारवादी नीतियों पर अमल शुरू किया। पश्चिमी और दक्षिण पूर्वी देशों को उसने अपना लक्ष्य बनाया। हालाँकि यदाकदा चीन भारत से गहरी मित्रता प्रदर्शित करता रहता है। 1950 में आरंभ हुए भारत-चीन संबंधों में बीजिंग का उद्देश्य हमेशा यह रहा है कि भारत को दक्षिण एशिया तक ही सीमित रखा जाए, यहाँ तक कि भारत अपने पड़ोसी देशों को भी प्रभावित न कर सके। इसके लिए चीन ने पाकिस्तान, नेपाल, म्यांमार, बांग्लादेश और श्रीलंका को सैन्य संसाधन मुहैया कराए हैं। यदि वर्तमान स्थितियों का विश्लेषण किया जाए तो श्रीलंका, म्यांमार व नेपाल में चीन का प्रभाव बढ़ रहा है।
म्यांमार व कजाकिस्तान में हाइड्रोकार्बन संसाधनों के ठेके हासिल करने के भारत के रास्ते में भी चीन जानबूझकर आड़े आ रहा है। चीन, म्यांमार, पाकिस्तान और अफ्रीका में प्राकृतिक संसाधनों पर काबू पाने के लिए भारी निवेश कर रहा है। ऐसा लगता है की भारत की दृष्टि कमजोर है जो वह इन संकेतों को पढ़ नहीं पा रहा है और आर्थिक, कूटनीतिक व राजनीतिक रूप से कोई कदम नहीं उठा रहा है।
पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था में चीन की दिलचस्पी और उसका नियंत्रण चिंताजनक है। चीन को पाकिस्तान की रणनीतिक अहमियत तब समझ आई, जब 2001 में तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ ने माकरान में ग्वादार पोर्ट को विकसित करने का ठेका चीन को दिया। तब चीनी नेताओं ने केन्द्रीय एशिया, जिंगजियांग तथा चीन के लगते इलाकों में कारोबार करने के लिए ग्वादार बंदरगाह की अहमियत पर गौर किया।
इस जगह से न केवल चीनी नौसेना ईंधन व अन्य सुविधाएँ हासिल कर सकेगी बल्कि महत्वपूर्ण होरमुज जलडमरूमध्य के लिए भी यह खास रास्ता होगा। चीन ने तुरंत ग्वादार में आधुनिक बंदरगाह बनाने का काम अपने हाथों में ले लिया। निर्माण का प्रथम चरण 29.80 करोड़ डॉलर की लागत से पूरा हो चुका है। इस खर्च का एक बड़ा हिस्सा चीन ने वहन किया है। फिलहाल यह केवल कारोबारी कामों के लिए इस्तेमाल होगा।
निर्माण का दूसरा चरण 86.50 करोड़ डॉलर का होगा। इसमें चीन 50 करोड़ डॉलर लगाएगा। 2010 में इसके पूरा होने के बाद दोनों देशों की नौसेनाएँ इसका प्रयोग कर सकेंगी। बंदरगाह बन जाने के साथ ही पाकिस्तानी जल सेना भारत के खिलाफ काफी मजबूती हासिल कर लेगी। चीन हिन्द महासागर में अपनी जल सेना की ताकत दिखा चुका है, बहाना था अपने जहाजों की सोमालियाई लुटेरों से रक्षा करना।
अब चीन ग्वादार से जिंगजियांग तक कच्चे तेल की पाइपलाइन बिछाने की योजना बना रहा है। इसके अलावा एक और पाइपलाइन विकसित की जाएगी जो अराकान के समुद्र तट से म्यांमार में स्थित युन्नान तक होगी। चीन, श्रीलंका के दक्षिण में एक अरब डॉलर वाला व्यापारिक पत्तन भी बना रहा है।
बलूचिस्तान में चल रही अन्य परियोजनाएँ हैं- ग्वादार में एक रिफाइनरी कॉम्प्लेक्स बनेगा, जो पाकिस्तान एवं चीन के जिंगजियांग क्षेत्र में इस्तेमाल किया जाएगा। ग्वादार को कराकोरम हाइवे से जोड़ने वाली एक सड़क बनाई जाएगी। ग्वादार एवं जिंगजियांग के बीच रेलमार्ग बनेगा। ग्वादार में एक स्पेशल इकॉनॉमिक जोन बनाया जाएगा जो सिर्फ चीनी कंपनियों के लिए होगा। इसकी मदद से चीनी कंपनियाँ पश्चिम एशियाई व अफ्रीकी देशों में कम लागत से अपना माल निर्यात कर सकेंगी।
बांग्लादेश को छोटे हथियार देने वाला चीन सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है, लेकिन वह यहीं तक सीमित नहीं रहना चाहता। वह बांग्लादेश को और भी उच्च किस्म के हथियार देना चाहता है। चीन ने बांग्लादेश में बिजली उत्पादन के लिए परमाणु संयंत्र लगाने में मदद की पेशकश भी की है। पिछले वर्ष जब चीनी विदेश मंत्री यांग जियेची बांग्लादेश गए थे तो द्विपक्षीय आर्थिक एवं कारोबारी रिश्तों पर सहमति बनाकर आए थे।
चीन अपना शिकंजा श्रीलंका तक भी फैला रहा है। चीन ने श्रीलंका को वित्तीय, सैन्य तथा कूटनीतिक सहयोग व समर्थन दिया है। इसके अलावा लिट्टे पर अंतिम हमले के समय पश्चिम से उठे विरोध से निपटने में भी मदद की थी। चीन ने सदैव श्रीलंका का बचाव किया, उसने संयुक्त राष्ट्र में वहाँ की संकटपूर्ण स्थिति को एजेंडे से बाहर रखने में श्रीलंका की मदद की ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि श्रीलंका के विरुद्ध कोई कड़ा प्रस्ताव पास न हो। चीन ने हिन्द महासागर में महत्वपूर्ण शिपिंग लेन का रणनीतिक अधिग्रहण कर लिया है जो मध्य एशिया से तेल लेकर आती है।
चीन, म्यांमार को अपना एक महत्वपूर्ण सहयोगी मानता है। दोनों देशों ने मार्च में एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए जिसका मसौदा था- दोनों देशों के बीच तेल व गैस की पाइप लाइन बिछाना ताकि चीन को तेल के जहाज ले जाने के लिए मलक्का जलडमरूमध्य का लंबा रास्ता न अख्तियार करना पड़े। म्यांमार की सैनिक सरकार अपने विरोधियों को दबाने के लिए चीन से हथियार लेती है। जब संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद ने म्यांमार में मध्यस्थता और राहत का प्रस्ताव रखा तो चीन ने वीटो का इस्तेमाल करते हुए इसका विरोध किया और कहा कि संयुक्त राष्ट्र को म्यांमार के अंदरूनी मामलों में दखलअंदाज़ी नहीं करनी चाहिए।
चीन न केवल भारत की पश्चिमी और पूर्वी सीमाओं को कमजोर करने में लगा है बल्कि अन्य देशों में भारत की छवि भी बिगाड़ने की साजिश कर रहा है। इसकी सबसे ताज़ा मिसाल है अफ्रीकी देशों में 'मेड इन इंडिया' के टैग के साथ नकली दवाओं की खेप का पकड़ा जाना, जो कि चीन में बनाकर भेजी गई थी। भारत सरकार को काफी पहले से चीन की हरकतों पर शक था, यह घटना इस शक को पुख्ता करती है।
यह सच्चाई तब उजागर हुई, जब नेशनल एजेंसी फॉर फूड एंड ड्रग ऐडमिनिस्ट्रेशन एंड कंट्रोल (एनएएफडीएसी) ऑफ नाइजीरिया ने जून के आरंभ में एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की जिसमें बताया गया कि मलेरिया की जिन नकली दवाओं को 'मेड इन इंडिया' टैग के साथ पकड़ा गया है, वे वास्तव में चीन में बनी हैं। चीन की ऐसी हरकतें भारतीय उत्पादों की विश्वसनीयता को बहुत नुकसान पहुँचा रही हैं। इससे न सिर्फ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमारी छवि बिगड़ती है बल्कि भारतीय कंपनियों का मार्केट शेयर भी मारा जाता है।
वर्तमान अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में जब अमेरिका, चीन और पाकिस्तान के नजदीक आ रहा है और उन्हें लुभाने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार है, भारत को भी कूटनीतिक प्रयास करने होंगे। भारत को विनम्रता की भाषा बोलते हुए अपनी प्राथमिकताओं पर केन्द्रित रहना होगा। कड़वा सच यही है कि भारत कई क्षेत्रों में चीन से मुकाबला नहीं कर सकता। अंतरराष्ट्रीय प्रभाव, सकल राष्ट्रीय शक्ति और आर्थिक पैमाने पर चीन हमसे कहीं ज्यादा ताकतवर है।
(लेखक फाइनेंशियल एक्सप्रेस के पूर्व संपादक हैं) (साभार- वैबदुनिया)
चीन हमेशा सुर्खियों में रहता है। दुनिया का कोई भी राष्ट्र चीन की अनदेखी नहीं कर सकता, यहाँ तक कि सबसे बड़ी ताक़त संयुक्त राज्य अमेरिका भी नहीं। इसीलिए अमेरिका, चीन की गतिविधियों और राजनीति पर हमेशा कड़ी निगाह रखता है। हाल ही में पेंटागन द्वारा जारी 2009 की सालाना रपट में चीन की बढ़ती सैन्य शक्ति के प्रति आगाह किया गया है।
रपट में बताया गया है कि सैन्य शक्ति में भारी निवेश के अलावा चीन अत्याधुनिक हथियार हासिल करने में भी तेजी से प्रगति कर रहा है, जिसके चलते इस इलाके में वह बाकी देशों को बहुत पीछे छोड़ देगा। इस रपट में चेतावनी दी गई है कि चीन नाभिकीय, अंतरिक्ष और साइबर युद्ध हेतु नई तकनीकों का विकास कर रहा है। इससे क्षेत्रीय सैन्य संतुलन बदल जाएगा और इसके परिणाम एशिया-प्रशांत क्षेत्र से भी परे जाकर विश्व को प्रभावित करेंगे।
इस रपट का भारत के संदर्भ में विशेष महत्व है, इसलिए इसे गंभीरता से लेना चाहिए। सन् 1949 में कम्युनिस्ट सरकार आते ही चीन ने विस्तारवादी नीतियों पर अमल शुरू किया। पश्चिमी और दक्षिण पूर्वी देशों को उसने अपना लक्ष्य बनाया। हालाँकि यदाकदा चीन भारत से गहरी मित्रता प्रदर्शित करता रहता है। 1950 में आरंभ हुए भारत-चीन संबंधों में बीजिंग का उद्देश्य हमेशा यह रहा है कि भारत को दक्षिण एशिया तक ही सीमित रखा जाए, यहाँ तक कि भारत अपने पड़ोसी देशों को भी प्रभावित न कर सके। इसके लिए चीन ने पाकिस्तान, नेपाल, म्यांमार, बांग्लादेश और श्रीलंका को सैन्य संसाधन मुहैया कराए हैं। यदि वर्तमान स्थितियों का विश्लेषण किया जाए तो श्रीलंका, म्यांमार व नेपाल में चीन का प्रभाव बढ़ रहा है।
म्यांमार व कजाकिस्तान में हाइड्रोकार्बन संसाधनों के ठेके हासिल करने के भारत के रास्ते में भी चीन जानबूझकर आड़े आ रहा है। चीन, म्यांमार, पाकिस्तान और अफ्रीका में प्राकृतिक संसाधनों पर काबू पाने के लिए भारी निवेश कर रहा है। ऐसा लगता है की भारत की दृष्टि कमजोर है जो वह इन संकेतों को पढ़ नहीं पा रहा है और आर्थिक, कूटनीतिक व राजनीतिक रूप से कोई कदम नहीं उठा रहा है।
पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था में चीन की दिलचस्पी और उसका नियंत्रण चिंताजनक है। चीन को पाकिस्तान की रणनीतिक अहमियत तब समझ आई, जब 2001 में तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ ने माकरान में ग्वादार पोर्ट को विकसित करने का ठेका चीन को दिया। तब चीनी नेताओं ने केन्द्रीय एशिया, जिंगजियांग तथा चीन के लगते इलाकों में कारोबार करने के लिए ग्वादार बंदरगाह की अहमियत पर गौर किया।
इस जगह से न केवल चीनी नौसेना ईंधन व अन्य सुविधाएँ हासिल कर सकेगी बल्कि महत्वपूर्ण होरमुज जलडमरूमध्य के लिए भी यह खास रास्ता होगा। चीन ने तुरंत ग्वादार में आधुनिक बंदरगाह बनाने का काम अपने हाथों में ले लिया। निर्माण का प्रथम चरण 29.80 करोड़ डॉलर की लागत से पूरा हो चुका है। इस खर्च का एक बड़ा हिस्सा चीन ने वहन किया है। फिलहाल यह केवल कारोबारी कामों के लिए इस्तेमाल होगा।
निर्माण का दूसरा चरण 86.50 करोड़ डॉलर का होगा। इसमें चीन 50 करोड़ डॉलर लगाएगा। 2010 में इसके पूरा होने के बाद दोनों देशों की नौसेनाएँ इसका प्रयोग कर सकेंगी। बंदरगाह बन जाने के साथ ही पाकिस्तानी जल सेना भारत के खिलाफ काफी मजबूती हासिल कर लेगी। चीन हिन्द महासागर में अपनी जल सेना की ताकत दिखा चुका है, बहाना था अपने जहाजों की सोमालियाई लुटेरों से रक्षा करना।
अब चीन ग्वादार से जिंगजियांग तक कच्चे तेल की पाइपलाइन बिछाने की योजना बना रहा है। इसके अलावा एक और पाइपलाइन विकसित की जाएगी जो अराकान के समुद्र तट से म्यांमार में स्थित युन्नान तक होगी। चीन, श्रीलंका के दक्षिण में एक अरब डॉलर वाला व्यापारिक पत्तन भी बना रहा है।
बलूचिस्तान में चल रही अन्य परियोजनाएँ हैं- ग्वादार में एक रिफाइनरी कॉम्प्लेक्स बनेगा, जो पाकिस्तान एवं चीन के जिंगजियांग क्षेत्र में इस्तेमाल किया जाएगा। ग्वादार को कराकोरम हाइवे से जोड़ने वाली एक सड़क बनाई जाएगी। ग्वादार एवं जिंगजियांग के बीच रेलमार्ग बनेगा। ग्वादार में एक स्पेशल इकॉनॉमिक जोन बनाया जाएगा जो सिर्फ चीनी कंपनियों के लिए होगा। इसकी मदद से चीनी कंपनियाँ पश्चिम एशियाई व अफ्रीकी देशों में कम लागत से अपना माल निर्यात कर सकेंगी।
बांग्लादेश को छोटे हथियार देने वाला चीन सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है, लेकिन वह यहीं तक सीमित नहीं रहना चाहता। वह बांग्लादेश को और भी उच्च किस्म के हथियार देना चाहता है। चीन ने बांग्लादेश में बिजली उत्पादन के लिए परमाणु संयंत्र लगाने में मदद की पेशकश भी की है। पिछले वर्ष जब चीनी विदेश मंत्री यांग जियेची बांग्लादेश गए थे तो द्विपक्षीय आर्थिक एवं कारोबारी रिश्तों पर सहमति बनाकर आए थे।
चीन अपना शिकंजा श्रीलंका तक भी फैला रहा है। चीन ने श्रीलंका को वित्तीय, सैन्य तथा कूटनीतिक सहयोग व समर्थन दिया है। इसके अलावा लिट्टे पर अंतिम हमले के समय पश्चिम से उठे विरोध से निपटने में भी मदद की थी। चीन ने सदैव श्रीलंका का बचाव किया, उसने संयुक्त राष्ट्र में वहाँ की संकटपूर्ण स्थिति को एजेंडे से बाहर रखने में श्रीलंका की मदद की ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि श्रीलंका के विरुद्ध कोई कड़ा प्रस्ताव पास न हो। चीन ने हिन्द महासागर में महत्वपूर्ण शिपिंग लेन का रणनीतिक अधिग्रहण कर लिया है जो मध्य एशिया से तेल लेकर आती है।
चीन, म्यांमार को अपना एक महत्वपूर्ण सहयोगी मानता है। दोनों देशों ने मार्च में एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए जिसका मसौदा था- दोनों देशों के बीच तेल व गैस की पाइप लाइन बिछाना ताकि चीन को तेल के जहाज ले जाने के लिए मलक्का जलडमरूमध्य का लंबा रास्ता न अख्तियार करना पड़े। म्यांमार की सैनिक सरकार अपने विरोधियों को दबाने के लिए चीन से हथियार लेती है। जब संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद ने म्यांमार में मध्यस्थता और राहत का प्रस्ताव रखा तो चीन ने वीटो का इस्तेमाल करते हुए इसका विरोध किया और कहा कि संयुक्त राष्ट्र को म्यांमार के अंदरूनी मामलों में दखलअंदाज़ी नहीं करनी चाहिए।
चीन न केवल भारत की पश्चिमी और पूर्वी सीमाओं को कमजोर करने में लगा है बल्कि अन्य देशों में भारत की छवि भी बिगाड़ने की साजिश कर रहा है। इसकी सबसे ताज़ा मिसाल है अफ्रीकी देशों में 'मेड इन इंडिया' के टैग के साथ नकली दवाओं की खेप का पकड़ा जाना, जो कि चीन में बनाकर भेजी गई थी। भारत सरकार को काफी पहले से चीन की हरकतों पर शक था, यह घटना इस शक को पुख्ता करती है।
यह सच्चाई तब उजागर हुई, जब नेशनल एजेंसी फॉर फूड एंड ड्रग ऐडमिनिस्ट्रेशन एंड कंट्रोल (एनएएफडीएसी) ऑफ नाइजीरिया ने जून के आरंभ में एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की जिसमें बताया गया कि मलेरिया की जिन नकली दवाओं को 'मेड इन इंडिया' टैग के साथ पकड़ा गया है, वे वास्तव में चीन में बनी हैं। चीन की ऐसी हरकतें भारतीय उत्पादों की विश्वसनीयता को बहुत नुकसान पहुँचा रही हैं। इससे न सिर्फ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमारी छवि बिगड़ती है बल्कि भारतीय कंपनियों का मार्केट शेयर भी मारा जाता है।
वर्तमान अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में जब अमेरिका, चीन और पाकिस्तान के नजदीक आ रहा है और उन्हें लुभाने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार है, भारत को भी कूटनीतिक प्रयास करने होंगे। भारत को विनम्रता की भाषा बोलते हुए अपनी प्राथमिकताओं पर केन्द्रित रहना होगा। कड़वा सच यही है कि भारत कई क्षेत्रों में चीन से मुकाबला नहीं कर सकता। अंतरराष्ट्रीय प्रभाव, सकल राष्ट्रीय शक्ति और आर्थिक पैमाने पर चीन हमसे कहीं ज्यादा ताकतवर है।
(लेखक फाइनेंशियल एक्सप्रेस के पूर्व संपादक हैं) (साभार- वैबदुनिया)
September 02, 2009
भारतीय लड़कियों की यह कैसी समझ?
देश, धर्म और समाज विरोधी कार्य करते हुए जरा भी नहीं हिचकतीं..!!
दोस्तों, सबसे पहले आप लोगों से एक खबर शेयर करना चाहूँगा, उसके बाद ही बात आगे बढ़ सकेगी..।
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केरल में लड़कियों को बना रहे जिहादी, हाईकोर्ट के सामने आए मामले के बाद पुलिस समेत सब सकते में
तिरुअंनतपुरम। केरल में जिहादी संगठन के कार्यकर्ता कॉलेज में पढ़ने वाली युवतियों को प्रेमजाल में फँसाकर उन्हें अपने आतंकी संगठनों से जोड़ रहे हैं। इसकी सूचना मिलने के बाद पुलिस ने जाँच के लिए स्पेशल टीम बनाई है।
यूँ आया मामला सामने
खुफिया सूत्रों के कान तब खड़े हो गए जब एमबीए में पढ़ने वाली दो लड़कियों के पिता ने केरल हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की। दोनों ही लड़कियाँ पतनमथिट्टा जिले के सेंट जॉन कॉलेज हॉस्टल में रहती थीं। यहीं इनकी मुलाकात एक कॉलेज सीनियर मुस्लिम युवक से हुई। इनमें आपस में नजदीकियाँ बढ़ गईं लेकिन लड़के को अनुशासनहीनता के आरोप में कुछ साल पहले कॉलेज से निकाल दिया गया था।
इस बारे में कॉलेज के प्राचार्य श्रीकुमारन नायर ने बताया कि सस्पेंड होने के बावजूद वह दोनों लड़कियों समेत चार जूनियर लड़कियों के संपर्क में रहा और सबसे प्यार का नाटक करता रहा। इसके बाद वह इनमें से दो लड़कियों को अपने आतंकी संगठन में शामिल करने में सफल रहा। अब अपनी बेटियों की कोई खबर ना पाकर परिजनों ने केरल हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर दी। इसके बाद दोनों लड़कियों को कोर्ट में पेश किया गया। जब लड़कियाँ कोर्ट में पेश हुईं तो उन्होंने जो कहानियाँ बयाँ की वह पुलिस और प्रशासन को हिला देने के लिए काफी था। उन्हें इस दौरान लड़के ने जिहादी वीडियो दिखाया और अपने आतंकी काम में शामिल कर लिया। पूरे घटनाक्रम के चिंतित हाईकोर्ट ने पुलिस को जाँच का आदेश दिया है।
( दोस्तों, ये दोनों लड़कियाँ ईसाई थीं। उल्लेखनीय है कि दुनिया में इस समय अमेरिका और एलाइज जो युद्ध अफगानिस्तान और इराक में लड़ रहे हैं उस युद्ध को ईसाई बनाम इस्लाम के रूप में ही देखा जा रहा है)
... अब जरा एक दूसरी खबर के ऊपर भी नजर डालिए...
अभी कुछ दिन पहले मध्यप्रदेश के सभी अखबारों में एक खबर छपी। वह यह कि डबरा से एक नाबालिग लड़की (उम्र 17 साल) अपने घर से भाग गई है। वह एक संपन्न जैन परिवार से थी और अपने साथ साढ़े नौ किलो सोना (कीमत लगभग एक करोड़ रुपए) और एक लाख रुपए नकद भी लेकर भागी थी। इसे एक जावेद नामक युवक भगाकर ले गया था जिसके कंप्यूटर सेंटर पर यह पढ़ने जाया करती थी। चूँकी लड़की का परिवार संपन्न और रसूख वाला था इसलिए शिवपुरी और ग्वालियर पुलिस ने तगड़ी घेराबंदी की और ट्रेन चलने के थोड़ी ही देर बाद लड़के को उक्त घेराबंदी की खबर लगी और वह लड़की को ट्रेन में छोड़कर ही भाग गया। भोपाल में लड़की महिला आयोग के समक्ष इस्माइल कुरैशी नामक एक वकील के साथ पेश हुई(यानी उस वाहियात लड़के की पूरी तैयारी थी लड़की के साथ तुरत-फुरत शादी करने की और वकील इसलिए ही तैनात करवाया गया था, क्या पता ये लड़का भी इस लड़की को एक करोड़ रुपए के साथ-साथ किसी गैर कानूनी काम में इस्तेमाल करता। बहरहाल, लड़की ने आयोग में बताया कि उसके घरवाले उसे बहुत मारते हैं जिस वजह से उसे जान का खतरा है और वह प्रेमी के साथ भाग गई है। इसके बाद भोपाल पहुँची ग्वालियर पुलिस ने आयोग के समक्ष पूरा मामला खोला और लड़की की कीमती कपड़ों में खिंचावाई गईं कई फोटो पेश कीं और बताया कि लड़की जो चाहती थी उसे घर से वो मिलता था और यह पट्टी लड़के द्वारा पढ़ाई हुई है। इसके बाद महिला आयोग की शीर्ष सदस्यों ने लड़की की कई चरणों में सफल काउंसलिंग की और लड़की को समझाया कि जो प्रेम करता है वो ना घर छुड़वाता है, ना चोरी करवाता है और ना बीच में छोड़कर भागता है। कुल मिलाकर लड़की को वापस उसके अभिभावकों को सौंप दिया गया क्योंकि वो नाबालिग थी और सोना फिलहाल पुलिस की गिरफ्त में ही है। लड़की के पिता स्वर्ण आभूषणों का काम करते हैं और काफी संपन्न हैं।
(उल्लेखनीय है कि लड़की जैन परिवार से थी जो किसी और धर्म को तो छोड़िए हिन्दूओं तक से अपनी लड़कियों की शादियाँ नहीं करते और सिर्फ जैन परिवार में ही कन्याएँ ब्याही जाती हैं)
इसके अलावा कुछ दिन पहले कुछ इलेक्ट्रॉनिक न्यूज चैनलों ने कुछ आतंकी मुस्लिम युवकों के बारे में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी जिसमें बताया गया था कि उन्होंने सोशल नेटवर्किंग साइट आरकुट का सराहा लेकर कुछ युवतियों (जाहिर है हिन्दू) को अपने फर्जी हिन्दू नाम रखकर फँसाया था और उनको भी अपनी जिहादी गतिविधियों में शामिल करने की कोशिश की थी जिसमें कुछ मामलों में वे सफल भी हो गए थे।
दोस्तों, यहाँ से मैं अपनी बात शुरू करता हूँ..........चूँकी उक्त सभी घटनाएँ पिछले कुछ दिनों में ही हुई हैं इसलिए इनपर बात की जा सकती है। सबसे अहम यह कि क्या हम अभी तक अपने घर की लड़कियों को ये संस्कार नहीं दे पाएँ हैं कि प्यार क्या होता है, उसे कैसे ढूँढा जाए और किस पर यकीन किया जाए और किस पर नहीं.....और यह भी कि कौन से धर्म के लोगों को कौन से धर्म के लोगों से प्यार करना सीखना चाहिए क्योंकि शादी ब्याह सिर्फ रिश्ता बनाने के लिए या सिर्फ दिल-विल का खेल नहीं बल्कि पूरे समाज निर्माण के लिए होते हैं। ये कौन सी आग है जो ये लड़कियाँ इतने विपरित कदम उठा लेती हैं, बिना ये सोचे कि इससे हमारे अभिभावकों की समाज में इज्जत खत्म हो जाएगी, उनकी नाक कट जाएगी, उनका जीना मुहाल हो जाएगा। जिसने पाल-पोसकर इतना बड़ा किया उनके खिलाफ ये कैसी बयानबाजी, वो भी एक ऐसे लड़के के कहने पर जो सिर्फ अपना उल्लू सीधा करना चाहता है। नहीं तो कौन सा प्रेमी अपनी प्रेमिका को एक करोड़ रुपए का सोना लेकर भागने की सलाह देता। वाकई बड़ी हिम्मत का काम है, उन्हें पता है ना कि इस देश में कुछ नहीं बिगड़ने वाला। यही पाकिस्तान होता तो उसे वहाँ पचास टुकड़ों में काटकर फैंक दिया जा। गैरत के नाम पर पाकिस्तान में कत्ल को जायज माना जाता है और उसकी सजा नाममात्र की है, सिर्फ दो वर्ष....। अरब में तो ऐसे लड़के-लड़की की सजा क्या होती है ये आप और हम लोग बचपन से ही जानते हैं।
पहले वाली खबर में एक लड़के के चक्कर में चार-पाँच लड़कियाँ फँसी हुई थीं। अरे, ऐसी भी क्या दीवानगी, क्या इस देश में शरीफ लड़कों की कमी हो गई है जो आतंकवादी को चुना। ऐसा कैसा प्रेम जो तुम्हें भी डुबा रहा है, देश भी डुबा रहा है और धर्म भी डुबा रहा है। क्या उन्हें नहीं पता कि इस्लाम में महिलाओं के साथ कैसा सुलूक होता है? उक्त दोनों ही मामलों में ईसाई और हिन्दू (जैन) लड़कियों के उदाहरण हैं। सिर्फ यदूही नहीं हैं। जबकि इस्लाम में ईसाई, हिन्दू और यहूदी तीनों को ही दुश्मन माना जा रहा है। तो फिर क्या कारण है कि भगाने के लिए सिर्फ विपरीत धर्म की लड़कियों को ही निशाना बनाया जा रहा है। इसपर चर्चा करने की जरूरत नहीं है। मुझे लगता है हम सबको यह बात पता है। जैसा कि कश्मीर में हुआ जहाँ कश्मीरी पंडितों (पुरुषों) को तो चुन-चुनकर मारा गया जबकि उनकी लड़कियों को भगाया गया, उनके साथ बलात्कार किया गया, उनसे शादियाँ की गईं और अपने धर्म में मिलाया गया ताकि वे उनकी वंशवद्धि और धर्मवृद्धि के काम आएँ। ऐसा भी नहीं है कि ऐसा सिर्फ भारत में ही हो रहा है। पूरे विश्व में ऐसा चल रहा है। इसकी बानगी तो लेख में लिखी जा सकती है लेकिन सबकुछ नहीं लिखा जा सकता इसलिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें। बहुसंस्कृति की कीमत चुकातीं ब्रिटिश महिलाएँ
और हाँ भारत की लड़कियों को तो यह जरूर पढ़ना चाहिए।
आपका ही सचिन...।
दोस्तों, सबसे पहले आप लोगों से एक खबर शेयर करना चाहूँगा, उसके बाद ही बात आगे बढ़ सकेगी..।
आज एक खबर पढ़ी... आप भी पढ़िए...खबर का शीर्षक था
केरल में लड़कियों को बना रहे जिहादी, हाईकोर्ट के सामने आए मामले के बाद पुलिस समेत सब सकते में
तिरुअंनतपुरम। केरल में जिहादी संगठन के कार्यकर्ता कॉलेज में पढ़ने वाली युवतियों को प्रेमजाल में फँसाकर उन्हें अपने आतंकी संगठनों से जोड़ रहे हैं। इसकी सूचना मिलने के बाद पुलिस ने जाँच के लिए स्पेशल टीम बनाई है।
यूँ आया मामला सामने
खुफिया सूत्रों के कान तब खड़े हो गए जब एमबीए में पढ़ने वाली दो लड़कियों के पिता ने केरल हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की। दोनों ही लड़कियाँ पतनमथिट्टा जिले के सेंट जॉन कॉलेज हॉस्टल में रहती थीं। यहीं इनकी मुलाकात एक कॉलेज सीनियर मुस्लिम युवक से हुई। इनमें आपस में नजदीकियाँ बढ़ गईं लेकिन लड़के को अनुशासनहीनता के आरोप में कुछ साल पहले कॉलेज से निकाल दिया गया था।
इस बारे में कॉलेज के प्राचार्य श्रीकुमारन नायर ने बताया कि सस्पेंड होने के बावजूद वह दोनों लड़कियों समेत चार जूनियर लड़कियों के संपर्क में रहा और सबसे प्यार का नाटक करता रहा। इसके बाद वह इनमें से दो लड़कियों को अपने आतंकी संगठन में शामिल करने में सफल रहा। अब अपनी बेटियों की कोई खबर ना पाकर परिजनों ने केरल हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर दी। इसके बाद दोनों लड़कियों को कोर्ट में पेश किया गया। जब लड़कियाँ कोर्ट में पेश हुईं तो उन्होंने जो कहानियाँ बयाँ की वह पुलिस और प्रशासन को हिला देने के लिए काफी था। उन्हें इस दौरान लड़के ने जिहादी वीडियो दिखाया और अपने आतंकी काम में शामिल कर लिया। पूरे घटनाक्रम के चिंतित हाईकोर्ट ने पुलिस को जाँच का आदेश दिया है।
( दोस्तों, ये दोनों लड़कियाँ ईसाई थीं। उल्लेखनीय है कि दुनिया में इस समय अमेरिका और एलाइज जो युद्ध अफगानिस्तान और इराक में लड़ रहे हैं उस युद्ध को ईसाई बनाम इस्लाम के रूप में ही देखा जा रहा है)
... अब जरा एक दूसरी खबर के ऊपर भी नजर डालिए...
अभी कुछ दिन पहले मध्यप्रदेश के सभी अखबारों में एक खबर छपी। वह यह कि डबरा से एक नाबालिग लड़की (उम्र 17 साल) अपने घर से भाग गई है। वह एक संपन्न जैन परिवार से थी और अपने साथ साढ़े नौ किलो सोना (कीमत लगभग एक करोड़ रुपए) और एक लाख रुपए नकद भी लेकर भागी थी। इसे एक जावेद नामक युवक भगाकर ले गया था जिसके कंप्यूटर सेंटर पर यह पढ़ने जाया करती थी। चूँकी लड़की का परिवार संपन्न और रसूख वाला था इसलिए शिवपुरी और ग्वालियर पुलिस ने तगड़ी घेराबंदी की और ट्रेन चलने के थोड़ी ही देर बाद लड़के को उक्त घेराबंदी की खबर लगी और वह लड़की को ट्रेन में छोड़कर ही भाग गया। भोपाल में लड़की महिला आयोग के समक्ष इस्माइल कुरैशी नामक एक वकील के साथ पेश हुई(यानी उस वाहियात लड़के की पूरी तैयारी थी लड़की के साथ तुरत-फुरत शादी करने की और वकील इसलिए ही तैनात करवाया गया था, क्या पता ये लड़का भी इस लड़की को एक करोड़ रुपए के साथ-साथ किसी गैर कानूनी काम में इस्तेमाल करता। बहरहाल, लड़की ने आयोग में बताया कि उसके घरवाले उसे बहुत मारते हैं जिस वजह से उसे जान का खतरा है और वह प्रेमी के साथ भाग गई है। इसके बाद भोपाल पहुँची ग्वालियर पुलिस ने आयोग के समक्ष पूरा मामला खोला और लड़की की कीमती कपड़ों में खिंचावाई गईं कई फोटो पेश कीं और बताया कि लड़की जो चाहती थी उसे घर से वो मिलता था और यह पट्टी लड़के द्वारा पढ़ाई हुई है। इसके बाद महिला आयोग की शीर्ष सदस्यों ने लड़की की कई चरणों में सफल काउंसलिंग की और लड़की को समझाया कि जो प्रेम करता है वो ना घर छुड़वाता है, ना चोरी करवाता है और ना बीच में छोड़कर भागता है। कुल मिलाकर लड़की को वापस उसके अभिभावकों को सौंप दिया गया क्योंकि वो नाबालिग थी और सोना फिलहाल पुलिस की गिरफ्त में ही है। लड़की के पिता स्वर्ण आभूषणों का काम करते हैं और काफी संपन्न हैं।
(उल्लेखनीय है कि लड़की जैन परिवार से थी जो किसी और धर्म को तो छोड़िए हिन्दूओं तक से अपनी लड़कियों की शादियाँ नहीं करते और सिर्फ जैन परिवार में ही कन्याएँ ब्याही जाती हैं)
इसके अलावा कुछ दिन पहले कुछ इलेक्ट्रॉनिक न्यूज चैनलों ने कुछ आतंकी मुस्लिम युवकों के बारे में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी जिसमें बताया गया था कि उन्होंने सोशल नेटवर्किंग साइट आरकुट का सराहा लेकर कुछ युवतियों (जाहिर है हिन्दू) को अपने फर्जी हिन्दू नाम रखकर फँसाया था और उनको भी अपनी जिहादी गतिविधियों में शामिल करने की कोशिश की थी जिसमें कुछ मामलों में वे सफल भी हो गए थे।
दोस्तों, यहाँ से मैं अपनी बात शुरू करता हूँ..........चूँकी उक्त सभी घटनाएँ पिछले कुछ दिनों में ही हुई हैं इसलिए इनपर बात की जा सकती है। सबसे अहम यह कि क्या हम अभी तक अपने घर की लड़कियों को ये संस्कार नहीं दे पाएँ हैं कि प्यार क्या होता है, उसे कैसे ढूँढा जाए और किस पर यकीन किया जाए और किस पर नहीं.....और यह भी कि कौन से धर्म के लोगों को कौन से धर्म के लोगों से प्यार करना सीखना चाहिए क्योंकि शादी ब्याह सिर्फ रिश्ता बनाने के लिए या सिर्फ दिल-विल का खेल नहीं बल्कि पूरे समाज निर्माण के लिए होते हैं। ये कौन सी आग है जो ये लड़कियाँ इतने विपरित कदम उठा लेती हैं, बिना ये सोचे कि इससे हमारे अभिभावकों की समाज में इज्जत खत्म हो जाएगी, उनकी नाक कट जाएगी, उनका जीना मुहाल हो जाएगा। जिसने पाल-पोसकर इतना बड़ा किया उनके खिलाफ ये कैसी बयानबाजी, वो भी एक ऐसे लड़के के कहने पर जो सिर्फ अपना उल्लू सीधा करना चाहता है। नहीं तो कौन सा प्रेमी अपनी प्रेमिका को एक करोड़ रुपए का सोना लेकर भागने की सलाह देता। वाकई बड़ी हिम्मत का काम है, उन्हें पता है ना कि इस देश में कुछ नहीं बिगड़ने वाला। यही पाकिस्तान होता तो उसे वहाँ पचास टुकड़ों में काटकर फैंक दिया जा। गैरत के नाम पर पाकिस्तान में कत्ल को जायज माना जाता है और उसकी सजा नाममात्र की है, सिर्फ दो वर्ष....। अरब में तो ऐसे लड़के-लड़की की सजा क्या होती है ये आप और हम लोग बचपन से ही जानते हैं।
पहले वाली खबर में एक लड़के के चक्कर में चार-पाँच लड़कियाँ फँसी हुई थीं। अरे, ऐसी भी क्या दीवानगी, क्या इस देश में शरीफ लड़कों की कमी हो गई है जो आतंकवादी को चुना। ऐसा कैसा प्रेम जो तुम्हें भी डुबा रहा है, देश भी डुबा रहा है और धर्म भी डुबा रहा है। क्या उन्हें नहीं पता कि इस्लाम में महिलाओं के साथ कैसा सुलूक होता है? उक्त दोनों ही मामलों में ईसाई और हिन्दू (जैन) लड़कियों के उदाहरण हैं। सिर्फ यदूही नहीं हैं। जबकि इस्लाम में ईसाई, हिन्दू और यहूदी तीनों को ही दुश्मन माना जा रहा है। तो फिर क्या कारण है कि भगाने के लिए सिर्फ विपरीत धर्म की लड़कियों को ही निशाना बनाया जा रहा है। इसपर चर्चा करने की जरूरत नहीं है। मुझे लगता है हम सबको यह बात पता है। जैसा कि कश्मीर में हुआ जहाँ कश्मीरी पंडितों (पुरुषों) को तो चुन-चुनकर मारा गया जबकि उनकी लड़कियों को भगाया गया, उनके साथ बलात्कार किया गया, उनसे शादियाँ की गईं और अपने धर्म में मिलाया गया ताकि वे उनकी वंशवद्धि और धर्मवृद्धि के काम आएँ। ऐसा भी नहीं है कि ऐसा सिर्फ भारत में ही हो रहा है। पूरे विश्व में ऐसा चल रहा है। इसकी बानगी तो लेख में लिखी जा सकती है लेकिन सबकुछ नहीं लिखा जा सकता इसलिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें। बहुसंस्कृति की कीमत चुकातीं ब्रिटिश महिलाएँ
और हाँ भारत की लड़कियों को तो यह जरूर पढ़ना चाहिए।
आपका ही सचिन...।
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भारतीय लड़कियाँ
September 01, 2009
क्या चीन भारत पर हमला करेगा? (भाग-2)
उसकी तैयारी देखकर तो ऐसा ही लगता है
दोस्तों, मेरी पिछली पोस्ट में आपने चीन से संबंधित भारत की चिंताओं पर मेरे विचार पढ़े थे। पिछली पोस्ट को पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें क्या चीन भारत पर हमला करेगा? (भाग-1)
अब बात आगे बढ़ाई जा सकती है...
जैसा कि आप जानते हैं कि सामरिक विशेषज्ञ किसी भी बात को बस यूँ ही नहीं कह देते। बल्कि कहें कि कोई भी विशेषज्ञ या शास्त्री (मसलन अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, मानवशास्त्री) भी झूठ क्यों बोलेगा। उसका अध्ययन जो इजाजत देगा वही वो भी बोलेगा। तो भरत कपूर के दावे को बस यूँ ही खारिज नहीं किया जा सकता। दूसरी बात, आपने मुंबई हमले के बाद ग्लोबल इंटेलीजेंस एजेंसी स्ट्रेटफोर की वो रिपोर्ट भी पढ़ी होगी जिसमें उसने कहा था कि इस हमले के बाद भारत को अपनी शक्ति दिखानी ही होगी और अपने को साबित करने के लिए भारत पाकिस्तान में कुछ चुनिंदा ठिकानों पर सैन्य कार्रवाई कर सकता है। हालांकि एजेंसी का यह दावा खाली गया क्योंकि हमने कुछ नहीं किया, चुप बैठे रहे और पाकिस्तान को डोजिएर (सुबूतों से भरे सूटकेस) देते रहे जिन्हें वह रद्दी की टोकरी में फैंकता रहा। बाद में सामरिक विशेषज्ञों ने कहा कि पाकिस्तान के पास परमाणु बम था इसलिए भारत चुप बैठा रहा क्योंकि क्षेत्र में परमाणु युद्ध छिड़ सकता था इसलिए शक्तिशाली देशों ने भारत पर हमला ना करने का जबरदस्त दबाव बनाया था। यह बात भारत के एक पूर्व थल सेना प्रमुख ने भी कही थी।
आज ही रूस के एक नामचीन प्रोफेसर ने कहा है कि 2020 तक अमेरिका भी ढह जाएगा। रूस के प्रसिद्ध शिक्षाविद प्रोफेसर आईगोर पानारिन ने यह बात काफी शोध के बात कही है। उन्होंने इसके पीछे का कारण अमेरिका की फिलहाल खस्ताहाल अर्थव्यवस्था और बराक प्रशासन के फेल्योर को बताया है। वैसे इस बात के लिए हर अमेरिकी उन्हें झक्की ही कहेगा लेकिन इतिहास गवाह है कि रूस के टूटने से पहले भी कोई वो सब नहीं सोचता था। इस खबर को आप यहाँ पढ़ सकते हैं 2020 तक ढह जाएगा अमेरिका: रूसी प्रोफेसर
रूस बिखर जाएगा यह सिर्फ कोई अर्थशास्त्री ही सोच सकता था क्योंकि अर्थव्यवस्था चरमराने के कारण ही रूस ने अलग हुए मुस्लिम राष्ट्रों पर से अपना नियंत्रण ढीला किया और उन्हें रूसी संघ में साथ रखने से मना कर दिया। आज उसी बात को लेकर हाफिज सईद जैसे आतंकी संगठनों के सरगना यह कहते फिरते हैं कि भारत को भी रूस की तरह से तोड़ना उनका एकमात्र मकसद है औऱ यह पूरा हो जाएगा क्योंकि रूस के लिए भी लोग असंभव शब्द का इस्तेमाल करते थे लेकिन हमने वो कर दिखाया।
दोस्तों, आप लोग सोच रहे होंगे कि इतनी देर की बात में भी अभी तक चीन का जिक्र क्यों नहीं आया, तो मैं आपको याद दिलाना चाहूँगा कि यह सब बातें एक दूसरे से इंटरलिंक हैं। इस बात को पुख्ता करते हुए चीन के एक सामरिक विशेषज्ञ ने हाल ही में कह दिया था कि भारत को 20-30 टुकड़ों में तोड़ देना चाहिए। तो क्या इस्लामिक आतंकी संगठन, हाफिज सईद जैसे आतंकी सरगना और चीन की टोन (बातचीत का ढंग) एक जैसा नहीं है। दूसरा यह कि अमेरिका के लिए कहा जाता है कि जब भी उसकी अर्थव्यवस्था लड़खड़ाती है वह युद्ध करता है। क्या ऐसा चीन नहीं कर सकता जबकि उसके प्रोडक्ट (जिनकी क्वालिटी बेहद ही खराब होती है) को पूरी दुनिया में बैन किया जा रहा है। चीन और पाकिस्तान की मंशा एक जैसी है। दोनों रूस को अपना दुश्मन मानते थे और उसके टूटने पर दोनों ही खुशियाँ मनाते हैं और उसी उदाहरण को भारत जैसे देश के साथ दोहराने का ख्वाब देखते हैं।
चीन बहुत तेज है। वो अरुणाचल प्रदेश पर इसलिए नजर गड़ाए रहता है क्योंकि वहाँ से भारत के उस हिस्से तक आसानी से पहुँचा जा सकता है जहाँ से नॉर्थ-ईस्ट के सेवन सिस्टर्स कहे जाने वाले राज्य अलग होते हैं। उस हिस्से को चिकन नेक या बॉटल नेक (चूजे या बॉटल की गर्दन) कहा जाता है। वहाँ से वो सातों राज्य शेष भारत से अलग होते हैं। वहाँ से हमला कर वो भारत के सात राज्यों को तो एक ही झटके में अलग कर सकता है जैसे भारत ने पाकिस्तान से अलग बने पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) को 1971 में एक ही झटके से अलग कर दिया था। भारत ने हाल ही में अरुणाचल प्रदेश और तेजपुर (असम) में सुखोई और अपनी टैंक स्क्वेड्रन की तैनाती की है। वो इसी संभावित हमले से निपटने के लिए है। चीन उत्तर पूर्व में हमारी गर्दन दबोचने के प्रयास में है और नक्सलवाद से जूझ रहे उन इलाकों में उसकी मंशा पूरी करने में बांग्लादेश भी उसका साथ दे सकता है। (वो बीएसएफ जवान की डंडे पर लटकी हुई लाश वाली तस्वीर तो याद है ना आपको जो टाइम्स आफ इंडिया में प्रथम पेज पर छपी थी और जिसने हमारे साथ-साथ भारत सरकार की भी नींद उड़ाकर रख दी थी, टुच्चे बांग्लादेशियों के दुस्साहस पर)
दूसरे, मैंने ऊपर कहा था कि अमेरिका जब भी अर्थ संकट में फँसता है तो वह युद्ध करता है। ये इस तरह से समझा जा सकता है कि अमेरिका दुनिया को एक तो यह याद दिलाता रहता है कि तुम लोग भी युद्ध में फँस सकते हो इसलिए तैयार रहो। सनद रहे कि अमेरिका की जीडीपी का सबसे बड़ा हिस्सा उसके हथियार बेचने से आता है। आईटी-वाईटी सब गईं किनारे...। जिस अमेरिकी हारपून मिसाइल की पाकिस्तान को लेकर आजकल चर्चा चल रही है वो एक जरा सी मिसाइल 70 लाख अमेरिकी डॉलर में आती है। ऐसी 165 मिसाइलों की खेप पाकिस्तान ने अमेरिका से खरीदी थीं। ऐसे लाखों उपकरण वो हर वर्ष विकासशील और विकसित देशों को बेच देता है। उसके सबसे बड़े खरीदारों में सऊदी अरब भी शामिल है। कुल मिलाकर अमेरिका दुनिया में हथियारों का सबसे बड़ा सप्लायर है, उसके बाद रूस का और फिर चीन का नंबर आता है। लेकिन चीन बहुत जल्दी रूस को इसमें पीछे छोड़ देगा क्योंकि रूसी हथियारों की अब वो इज्जत नहीं रही जो शीत युद्ध के समय थी। इसलिए चीन अमेरिकी स्टाइल में चलते हुए सभी इस्लामिक देशों को हथियार सप्लाई करता है और युद्ध का महौल बनाए रखता है। जब भी भारत की ओर से चीन के व्यापार के खिलाफ कोई स्टेटमेंट जारी होता है चीन तुरंत सीमा विवाद को हवा देता है और कूटनीतिक सफलता पाते हुए भारत को पीछे हटने पर मजबूर कर देता है।
चीन हमेशा कुछ दूसरी ही बात समझता है। वो सोचता है कि अमेरिका उसे कुछ देशों के बीच कस रहा है जिन्हें वो कैंकड़े का पंजा कहता है। चीन का तर्क है कि जापान, भारत, ताइवान, दक्षिण कोरिया से वह घिरा हुआ है और आस्ट्रेलिया को भी अमेरिका उसके खिलाफ इस्तेमाल करता है। ऐसे में उसका सतर्क रहना जरूरी है जबकि चीन अगर थोड़ी समझदारी दिखाए तो सामरिक विशेषज्ञों के अनुसार अगर भारत, चीन और रूस मिल जाएँ तो अमेरिका का वर्चस्व दुनिया से खत्म कर सकते हैं। लेकिन हमारा स्वाभाविक शत्रु चीन यह बात कभी नहीं समझेगा और वही करेगा जिसे वह सही मानता है।
भारत के पास ज्यादातर हथियार रूस से खरीदे हुए हैं, अब वो अमेरिका और इसराइल के हथियार खरीद रहा है लेकिन चीन खुद ही हथियार बनाता है और उन्हें विकसित कर अन्य देशों को भी बेचता है। यहाँ सनद रहे कि चीन के पास दुनिया की सबसे बड़ी सेना है, हथियारों के मामले में चीन आत्मनिर्भर है और भारत पर भारी पड़ता है। अमेरिकी स्टाइल में वो अपने दुश्मन (फिलहाल नंबर एक पर अमेरिका और दूसरे नंबर पर भारत आता है) को शत्रुओं से घिरा रखना चाहता है लेकिन अमेरिका उससे काफी दूर है इसलिए फिलहाल उसका कांस्ट्रेशन भारत पर ही है। अमेरिका के लिए तो उसने आईसीबीएम (इंटर कॉन्टिनेंटल बैलियास्टिक मिसाइल) बना रखी हैं जो किसी भी महाद्वीप के किसी भी देश को अपना शिकार बना सकती हैं और वे परमाणु हथियार भी ले जा सकती हैं। ऐसी मिसाइलों की मारक क्षमता 5000 से 12000 किलोमीटर तक होती है। भारत भी अग्नि का अगला स्वरूप आईसीबीएम के रूप में ही बना रहा है।
दोस्तों, चाणक्य ने कहा था कि जिस देश की सीमा आपसे मिलती हो वो आपका स्वाभाविक शत्रु होता है। पूरे विश्व में अमेरिका-कनाडा को छोड़ दिया जाए तो सीमा मिले देशों की दोस्ती की कोई मिसाल नहीं मिलती। कोई ज्यादा तीव्र शत्रु है तो कोई कम तीव्र है। लेकिन शत्रु होना तय है। दुर्भाग्य से हम सभी ओर से शत्रुओं से घिरे हुए हैं। प्रकृति ने हमारी रक्षा के लिए हिंद महासागर और अरब सागर को तीन ओर रखा था और एक ओर हिमालय था लेकिन हमारा सबसे शक्तिशाली शत्रु चीन फिलहाल हमें हिमालय पर चढ़कर ही घूर रहा है।
(मित्रों इस विषय पर आगे जो कुछ मेरे हाथ लगेगा मैं उसे निश्चित ही आप लोगों से शेयर करता रहूँगा)
आपका ही सचिन...।
दोस्तों, मेरी पिछली पोस्ट में आपने चीन से संबंधित भारत की चिंताओं पर मेरे विचार पढ़े थे। पिछली पोस्ट को पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें क्या चीन भारत पर हमला करेगा? (भाग-1)
अब बात आगे बढ़ाई जा सकती है...
जैसा कि आप जानते हैं कि सामरिक विशेषज्ञ किसी भी बात को बस यूँ ही नहीं कह देते। बल्कि कहें कि कोई भी विशेषज्ञ या शास्त्री (मसलन अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, मानवशास्त्री) भी झूठ क्यों बोलेगा। उसका अध्ययन जो इजाजत देगा वही वो भी बोलेगा। तो भरत कपूर के दावे को बस यूँ ही खारिज नहीं किया जा सकता। दूसरी बात, आपने मुंबई हमले के बाद ग्लोबल इंटेलीजेंस एजेंसी स्ट्रेटफोर की वो रिपोर्ट भी पढ़ी होगी जिसमें उसने कहा था कि इस हमले के बाद भारत को अपनी शक्ति दिखानी ही होगी और अपने को साबित करने के लिए भारत पाकिस्तान में कुछ चुनिंदा ठिकानों पर सैन्य कार्रवाई कर सकता है। हालांकि एजेंसी का यह दावा खाली गया क्योंकि हमने कुछ नहीं किया, चुप बैठे रहे और पाकिस्तान को डोजिएर (सुबूतों से भरे सूटकेस) देते रहे जिन्हें वह रद्दी की टोकरी में फैंकता रहा। बाद में सामरिक विशेषज्ञों ने कहा कि पाकिस्तान के पास परमाणु बम था इसलिए भारत चुप बैठा रहा क्योंकि क्षेत्र में परमाणु युद्ध छिड़ सकता था इसलिए शक्तिशाली देशों ने भारत पर हमला ना करने का जबरदस्त दबाव बनाया था। यह बात भारत के एक पूर्व थल सेना प्रमुख ने भी कही थी।
आज ही रूस के एक नामचीन प्रोफेसर ने कहा है कि 2020 तक अमेरिका भी ढह जाएगा। रूस के प्रसिद्ध शिक्षाविद प्रोफेसर आईगोर पानारिन ने यह बात काफी शोध के बात कही है। उन्होंने इसके पीछे का कारण अमेरिका की फिलहाल खस्ताहाल अर्थव्यवस्था और बराक प्रशासन के फेल्योर को बताया है। वैसे इस बात के लिए हर अमेरिकी उन्हें झक्की ही कहेगा लेकिन इतिहास गवाह है कि रूस के टूटने से पहले भी कोई वो सब नहीं सोचता था। इस खबर को आप यहाँ पढ़ सकते हैं 2020 तक ढह जाएगा अमेरिका: रूसी प्रोफेसर
रूस बिखर जाएगा यह सिर्फ कोई अर्थशास्त्री ही सोच सकता था क्योंकि अर्थव्यवस्था चरमराने के कारण ही रूस ने अलग हुए मुस्लिम राष्ट्रों पर से अपना नियंत्रण ढीला किया और उन्हें रूसी संघ में साथ रखने से मना कर दिया। आज उसी बात को लेकर हाफिज सईद जैसे आतंकी संगठनों के सरगना यह कहते फिरते हैं कि भारत को भी रूस की तरह से तोड़ना उनका एकमात्र मकसद है औऱ यह पूरा हो जाएगा क्योंकि रूस के लिए भी लोग असंभव शब्द का इस्तेमाल करते थे लेकिन हमने वो कर दिखाया।
दोस्तों, आप लोग सोच रहे होंगे कि इतनी देर की बात में भी अभी तक चीन का जिक्र क्यों नहीं आया, तो मैं आपको याद दिलाना चाहूँगा कि यह सब बातें एक दूसरे से इंटरलिंक हैं। इस बात को पुख्ता करते हुए चीन के एक सामरिक विशेषज्ञ ने हाल ही में कह दिया था कि भारत को 20-30 टुकड़ों में तोड़ देना चाहिए। तो क्या इस्लामिक आतंकी संगठन, हाफिज सईद जैसे आतंकी सरगना और चीन की टोन (बातचीत का ढंग) एक जैसा नहीं है। दूसरा यह कि अमेरिका के लिए कहा जाता है कि जब भी उसकी अर्थव्यवस्था लड़खड़ाती है वह युद्ध करता है। क्या ऐसा चीन नहीं कर सकता जबकि उसके प्रोडक्ट (जिनकी क्वालिटी बेहद ही खराब होती है) को पूरी दुनिया में बैन किया जा रहा है। चीन और पाकिस्तान की मंशा एक जैसी है। दोनों रूस को अपना दुश्मन मानते थे और उसके टूटने पर दोनों ही खुशियाँ मनाते हैं और उसी उदाहरण को भारत जैसे देश के साथ दोहराने का ख्वाब देखते हैं।
चीन बहुत तेज है। वो अरुणाचल प्रदेश पर इसलिए नजर गड़ाए रहता है क्योंकि वहाँ से भारत के उस हिस्से तक आसानी से पहुँचा जा सकता है जहाँ से नॉर्थ-ईस्ट के सेवन सिस्टर्स कहे जाने वाले राज्य अलग होते हैं। उस हिस्से को चिकन नेक या बॉटल नेक (चूजे या बॉटल की गर्दन) कहा जाता है। वहाँ से वो सातों राज्य शेष भारत से अलग होते हैं। वहाँ से हमला कर वो भारत के सात राज्यों को तो एक ही झटके में अलग कर सकता है जैसे भारत ने पाकिस्तान से अलग बने पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) को 1971 में एक ही झटके से अलग कर दिया था। भारत ने हाल ही में अरुणाचल प्रदेश और तेजपुर (असम) में सुखोई और अपनी टैंक स्क्वेड्रन की तैनाती की है। वो इसी संभावित हमले से निपटने के लिए है। चीन उत्तर पूर्व में हमारी गर्दन दबोचने के प्रयास में है और नक्सलवाद से जूझ रहे उन इलाकों में उसकी मंशा पूरी करने में बांग्लादेश भी उसका साथ दे सकता है। (वो बीएसएफ जवान की डंडे पर लटकी हुई लाश वाली तस्वीर तो याद है ना आपको जो टाइम्स आफ इंडिया में प्रथम पेज पर छपी थी और जिसने हमारे साथ-साथ भारत सरकार की भी नींद उड़ाकर रख दी थी, टुच्चे बांग्लादेशियों के दुस्साहस पर)
दूसरे, मैंने ऊपर कहा था कि अमेरिका जब भी अर्थ संकट में फँसता है तो वह युद्ध करता है। ये इस तरह से समझा जा सकता है कि अमेरिका दुनिया को एक तो यह याद दिलाता रहता है कि तुम लोग भी युद्ध में फँस सकते हो इसलिए तैयार रहो। सनद रहे कि अमेरिका की जीडीपी का सबसे बड़ा हिस्सा उसके हथियार बेचने से आता है। आईटी-वाईटी सब गईं किनारे...। जिस अमेरिकी हारपून मिसाइल की पाकिस्तान को लेकर आजकल चर्चा चल रही है वो एक जरा सी मिसाइल 70 लाख अमेरिकी डॉलर में आती है। ऐसी 165 मिसाइलों की खेप पाकिस्तान ने अमेरिका से खरीदी थीं। ऐसे लाखों उपकरण वो हर वर्ष विकासशील और विकसित देशों को बेच देता है। उसके सबसे बड़े खरीदारों में सऊदी अरब भी शामिल है। कुल मिलाकर अमेरिका दुनिया में हथियारों का सबसे बड़ा सप्लायर है, उसके बाद रूस का और फिर चीन का नंबर आता है। लेकिन चीन बहुत जल्दी रूस को इसमें पीछे छोड़ देगा क्योंकि रूसी हथियारों की अब वो इज्जत नहीं रही जो शीत युद्ध के समय थी। इसलिए चीन अमेरिकी स्टाइल में चलते हुए सभी इस्लामिक देशों को हथियार सप्लाई करता है और युद्ध का महौल बनाए रखता है। जब भी भारत की ओर से चीन के व्यापार के खिलाफ कोई स्टेटमेंट जारी होता है चीन तुरंत सीमा विवाद को हवा देता है और कूटनीतिक सफलता पाते हुए भारत को पीछे हटने पर मजबूर कर देता है।
चीन हमेशा कुछ दूसरी ही बात समझता है। वो सोचता है कि अमेरिका उसे कुछ देशों के बीच कस रहा है जिन्हें वो कैंकड़े का पंजा कहता है। चीन का तर्क है कि जापान, भारत, ताइवान, दक्षिण कोरिया से वह घिरा हुआ है और आस्ट्रेलिया को भी अमेरिका उसके खिलाफ इस्तेमाल करता है। ऐसे में उसका सतर्क रहना जरूरी है जबकि चीन अगर थोड़ी समझदारी दिखाए तो सामरिक विशेषज्ञों के अनुसार अगर भारत, चीन और रूस मिल जाएँ तो अमेरिका का वर्चस्व दुनिया से खत्म कर सकते हैं। लेकिन हमारा स्वाभाविक शत्रु चीन यह बात कभी नहीं समझेगा और वही करेगा जिसे वह सही मानता है।
भारत के पास ज्यादातर हथियार रूस से खरीदे हुए हैं, अब वो अमेरिका और इसराइल के हथियार खरीद रहा है लेकिन चीन खुद ही हथियार बनाता है और उन्हें विकसित कर अन्य देशों को भी बेचता है। यहाँ सनद रहे कि चीन के पास दुनिया की सबसे बड़ी सेना है, हथियारों के मामले में चीन आत्मनिर्भर है और भारत पर भारी पड़ता है। अमेरिकी स्टाइल में वो अपने दुश्मन (फिलहाल नंबर एक पर अमेरिका और दूसरे नंबर पर भारत आता है) को शत्रुओं से घिरा रखना चाहता है लेकिन अमेरिका उससे काफी दूर है इसलिए फिलहाल उसका कांस्ट्रेशन भारत पर ही है। अमेरिका के लिए तो उसने आईसीबीएम (इंटर कॉन्टिनेंटल बैलियास्टिक मिसाइल) बना रखी हैं जो किसी भी महाद्वीप के किसी भी देश को अपना शिकार बना सकती हैं और वे परमाणु हथियार भी ले जा सकती हैं। ऐसी मिसाइलों की मारक क्षमता 5000 से 12000 किलोमीटर तक होती है। भारत भी अग्नि का अगला स्वरूप आईसीबीएम के रूप में ही बना रहा है।
दोस्तों, चाणक्य ने कहा था कि जिस देश की सीमा आपसे मिलती हो वो आपका स्वाभाविक शत्रु होता है। पूरे विश्व में अमेरिका-कनाडा को छोड़ दिया जाए तो सीमा मिले देशों की दोस्ती की कोई मिसाल नहीं मिलती। कोई ज्यादा तीव्र शत्रु है तो कोई कम तीव्र है। लेकिन शत्रु होना तय है। दुर्भाग्य से हम सभी ओर से शत्रुओं से घिरे हुए हैं। प्रकृति ने हमारी रक्षा के लिए हिंद महासागर और अरब सागर को तीन ओर रखा था और एक ओर हिमालय था लेकिन हमारा सबसे शक्तिशाली शत्रु चीन फिलहाल हमें हिमालय पर चढ़कर ही घूर रहा है।
(मित्रों इस विषय पर आगे जो कुछ मेरे हाथ लगेगा मैं उसे निश्चित ही आप लोगों से शेयर करता रहूँगा)
आपका ही सचिन...।
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