वाईसी हालन
चीन हमेशा सुर्खियों में रहता है। दुनिया का कोई भी राष्ट्र चीन की अनदेखी नहीं कर सकता, यहाँ तक कि सबसे बड़ी ताक़त संयुक्त राज्य अमेरिका भी नहीं। इसीलिए अमेरिका, चीन की गतिविधियों और राजनीति पर हमेशा कड़ी निगाह रखता है। हाल ही में पेंटागन द्वारा जारी 2009 की सालाना रपट में चीन की बढ़ती सैन्य शक्ति के प्रति आगाह किया गया है।
रपट में बताया गया है कि सैन्य शक्ति में भारी निवेश के अलावा चीन अत्याधुनिक हथियार हासिल करने में भी तेजी से प्रगति कर रहा है, जिसके चलते इस इलाके में वह बाकी देशों को बहुत पीछे छोड़ देगा। इस रपट में चेतावनी दी गई है कि चीन नाभिकीय, अंतरिक्ष और साइबर युद्ध हेतु नई तकनीकों का विकास कर रहा है। इससे क्षेत्रीय सैन्य संतुलन बदल जाएगा और इसके परिणाम एशिया-प्रशांत क्षेत्र से भी परे जाकर विश्व को प्रभावित करेंगे।
इस रपट का भारत के संदर्भ में विशेष महत्व है, इसलिए इसे गंभीरता से लेना चाहिए। सन् 1949 में कम्युनिस्ट सरकार आते ही चीन ने विस्तारवादी नीतियों पर अमल शुरू किया। पश्चिमी और दक्षिण पूर्वी देशों को उसने अपना लक्ष्य बनाया। हालाँकि यदाकदा चीन भारत से गहरी मित्रता प्रदर्शित करता रहता है। 1950 में आरंभ हुए भारत-चीन संबंधों में बीजिंग का उद्देश्य हमेशा यह रहा है कि भारत को दक्षिण एशिया तक ही सीमित रखा जाए, यहाँ तक कि भारत अपने पड़ोसी देशों को भी प्रभावित न कर सके। इसके लिए चीन ने पाकिस्तान, नेपाल, म्यांमार, बांग्लादेश और श्रीलंका को सैन्य संसाधन मुहैया कराए हैं। यदि वर्तमान स्थितियों का विश्लेषण किया जाए तो श्रीलंका, म्यांमार व नेपाल में चीन का प्रभाव बढ़ रहा है।
म्यांमार व कजाकिस्तान में हाइड्रोकार्बन संसाधनों के ठेके हासिल करने के भारत के रास्ते में भी चीन जानबूझकर आड़े आ रहा है। चीन, म्यांमार, पाकिस्तान और अफ्रीका में प्राकृतिक संसाधनों पर काबू पाने के लिए भारी निवेश कर रहा है। ऐसा लगता है की भारत की दृष्टि कमजोर है जो वह इन संकेतों को पढ़ नहीं पा रहा है और आर्थिक, कूटनीतिक व राजनीतिक रूप से कोई कदम नहीं उठा रहा है।
पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था में चीन की दिलचस्पी और उसका नियंत्रण चिंताजनक है। चीन को पाकिस्तान की रणनीतिक अहमियत तब समझ आई, जब 2001 में तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ ने माकरान में ग्वादार पोर्ट को विकसित करने का ठेका चीन को दिया। तब चीनी नेताओं ने केन्द्रीय एशिया, जिंगजियांग तथा चीन के लगते इलाकों में कारोबार करने के लिए ग्वादार बंदरगाह की अहमियत पर गौर किया।
इस जगह से न केवल चीनी नौसेना ईंधन व अन्य सुविधाएँ हासिल कर सकेगी बल्कि महत्वपूर्ण होरमुज जलडमरूमध्य के लिए भी यह खास रास्ता होगा। चीन ने तुरंत ग्वादार में आधुनिक बंदरगाह बनाने का काम अपने हाथों में ले लिया। निर्माण का प्रथम चरण 29.80 करोड़ डॉलर की लागत से पूरा हो चुका है। इस खर्च का एक बड़ा हिस्सा चीन ने वहन किया है। फिलहाल यह केवल कारोबारी कामों के लिए इस्तेमाल होगा।
निर्माण का दूसरा चरण 86.50 करोड़ डॉलर का होगा। इसमें चीन 50 करोड़ डॉलर लगाएगा। 2010 में इसके पूरा होने के बाद दोनों देशों की नौसेनाएँ इसका प्रयोग कर सकेंगी। बंदरगाह बन जाने के साथ ही पाकिस्तानी जल सेना भारत के खिलाफ काफी मजबूती हासिल कर लेगी। चीन हिन्द महासागर में अपनी जल सेना की ताकत दिखा चुका है, बहाना था अपने जहाजों की सोमालियाई लुटेरों से रक्षा करना।
अब चीन ग्वादार से जिंगजियांग तक कच्चे तेल की पाइपलाइन बिछाने की योजना बना रहा है। इसके अलावा एक और पाइपलाइन विकसित की जाएगी जो अराकान के समुद्र तट से म्यांमार में स्थित युन्नान तक होगी। चीन, श्रीलंका के दक्षिण में एक अरब डॉलर वाला व्यापारिक पत्तन भी बना रहा है।
बलूचिस्तान में चल रही अन्य परियोजनाएँ हैं- ग्वादार में एक रिफाइनरी कॉम्प्लेक्स बनेगा, जो पाकिस्तान एवं चीन के जिंगजियांग क्षेत्र में इस्तेमाल किया जाएगा। ग्वादार को कराकोरम हाइवे से जोड़ने वाली एक सड़क बनाई जाएगी। ग्वादार एवं जिंगजियांग के बीच रेलमार्ग बनेगा। ग्वादार में एक स्पेशल इकॉनॉमिक जोन बनाया जाएगा जो सिर्फ चीनी कंपनियों के लिए होगा। इसकी मदद से चीनी कंपनियाँ पश्चिम एशियाई व अफ्रीकी देशों में कम लागत से अपना माल निर्यात कर सकेंगी।
बांग्लादेश को छोटे हथियार देने वाला चीन सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है, लेकिन वह यहीं तक सीमित नहीं रहना चाहता। वह बांग्लादेश को और भी उच्च किस्म के हथियार देना चाहता है। चीन ने बांग्लादेश में बिजली उत्पादन के लिए परमाणु संयंत्र लगाने में मदद की पेशकश भी की है। पिछले वर्ष जब चीनी विदेश मंत्री यांग जियेची बांग्लादेश गए थे तो द्विपक्षीय आर्थिक एवं कारोबारी रिश्तों पर सहमति बनाकर आए थे।
चीन अपना शिकंजा श्रीलंका तक भी फैला रहा है। चीन ने श्रीलंका को वित्तीय, सैन्य तथा कूटनीतिक सहयोग व समर्थन दिया है। इसके अलावा लिट्टे पर अंतिम हमले के समय पश्चिम से उठे विरोध से निपटने में भी मदद की थी। चीन ने सदैव श्रीलंका का बचाव किया, उसने संयुक्त राष्ट्र में वहाँ की संकटपूर्ण स्थिति को एजेंडे से बाहर रखने में श्रीलंका की मदद की ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि श्रीलंका के विरुद्ध कोई कड़ा प्रस्ताव पास न हो। चीन ने हिन्द महासागर में महत्वपूर्ण शिपिंग लेन का रणनीतिक अधिग्रहण कर लिया है जो मध्य एशिया से तेल लेकर आती है।
चीन, म्यांमार को अपना एक महत्वपूर्ण सहयोगी मानता है। दोनों देशों ने मार्च में एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए जिसका मसौदा था- दोनों देशों के बीच तेल व गैस की पाइप लाइन बिछाना ताकि चीन को तेल के जहाज ले जाने के लिए मलक्का जलडमरूमध्य का लंबा रास्ता न अख्तियार करना पड़े। म्यांमार की सैनिक सरकार अपने विरोधियों को दबाने के लिए चीन से हथियार लेती है। जब संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद ने म्यांमार में मध्यस्थता और राहत का प्रस्ताव रखा तो चीन ने वीटो का इस्तेमाल करते हुए इसका विरोध किया और कहा कि संयुक्त राष्ट्र को म्यांमार के अंदरूनी मामलों में दखलअंदाज़ी नहीं करनी चाहिए।
चीन न केवल भारत की पश्चिमी और पूर्वी सीमाओं को कमजोर करने में लगा है बल्कि अन्य देशों में भारत की छवि भी बिगाड़ने की साजिश कर रहा है। इसकी सबसे ताज़ा मिसाल है अफ्रीकी देशों में 'मेड इन इंडिया' के टैग के साथ नकली दवाओं की खेप का पकड़ा जाना, जो कि चीन में बनाकर भेजी गई थी। भारत सरकार को काफी पहले से चीन की हरकतों पर शक था, यह घटना इस शक को पुख्ता करती है।
यह सच्चाई तब उजागर हुई, जब नेशनल एजेंसी फॉर फूड एंड ड्रग ऐडमिनिस्ट्रेशन एंड कंट्रोल (एनएएफडीएसी) ऑफ नाइजीरिया ने जून के आरंभ में एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की जिसमें बताया गया कि मलेरिया की जिन नकली दवाओं को 'मेड इन इंडिया' टैग के साथ पकड़ा गया है, वे वास्तव में चीन में बनी हैं। चीन की ऐसी हरकतें भारतीय उत्पादों की विश्वसनीयता को बहुत नुकसान पहुँचा रही हैं। इससे न सिर्फ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमारी छवि बिगड़ती है बल्कि भारतीय कंपनियों का मार्केट शेयर भी मारा जाता है।
वर्तमान अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में जब अमेरिका, चीन और पाकिस्तान के नजदीक आ रहा है और उन्हें लुभाने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार है, भारत को भी कूटनीतिक प्रयास करने होंगे। भारत को विनम्रता की भाषा बोलते हुए अपनी प्राथमिकताओं पर केन्द्रित रहना होगा। कड़वा सच यही है कि भारत कई क्षेत्रों में चीन से मुकाबला नहीं कर सकता। अंतरराष्ट्रीय प्रभाव, सकल राष्ट्रीय शक्ति और आर्थिक पैमाने पर चीन हमसे कहीं ज्यादा ताकतवर है।
(लेखक फाइनेंशियल एक्सप्रेस के पूर्व संपादक हैं) (साभार- वैबदुनिया)
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