September 30, 2009

हड़ताल बड़ी या देश..??


सिर्फ वेतन बढ़वाने की चिंता

अभी पिछले साल की ही तो बात है जब मनमोहन सरकार ने छठवाँ वेतन आयोग लागू करके केन्द्रीय कर्मचारियों की वाह-वाही लूटी थी और हम निजी फर्मों में काम करने वाले लोगों का मुँह लटक कर पेट तक आ गया था क्योंकि सरकारी कर्मचारियों के वेतन अब हमसे कई गुना ज्यादा हो गए थे जबकि उनके पास काम कौड़ी का नहीं था। केन्द्र के इस फैसले के बाद राज्य सरकारों की शामत आ गई और उनपर भी छठवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करने का दबाव बन गया। लेकिन इस बीच कुछ खबरें भी आईं। वो खबरें थी लोकतांत्रिक अस्त्र कही जाने वाली हड़तालों की, जिनकी एकाएक झड़ी लग गई थी। इस हड़ताल से हुए नुकसान की बात तो करना छोड़िए, हड़ताली अपने को इस तरह से प्रदर्शित करते हुए प्रतीत हुए जैसे वे किसी जंग पर लड़ने निकले हों। इन हड़तालियों के लिए देश कोई मायने नहीं रखता, समाज कोई मायने नहीं रखता, सिर्फ अपना वेतन मायने रखता है।

मेरी इस पोस्ट को पढ़कर कुछ सरकारी नौकरी करने वाले लोगों को बुरा लग सकता है। हालांकि यह बात सभी पर लागू नहीं होती लेकिन अधिसंख्य पर लागू होती है। यकीन मानिए, मैंने सरकारी कर्मचारियों के काम करने के ढर्रे को बहुत करीब से देखा है (पत्रकारिता में रहते हुए), उनके ढीलेपने की हद इतनी होती है कि ना चाहते हुए भी चिढ़ और गुस्सा आने लगे। भ्रष्टाचार इतना की कुछ बार तो मुझसे भी रिश्वत माँग ली गई जबकि कुछ मामलों में तो रिश्वत माँगने वाले को पता भी था कि मैं अखबार या कहें पत्रकारिता से जुड़ा हुआ हूँ। दुस्साहस की ऐसी मिसाल मुझे कम ही देखने को मिली है और यह भी कि जब हमारी यह स्थिति है तो आम आदमी का क्या होता होगा, यह समझा जा सकता है। तो बात शुरू करते हैं मध्यप्रदेश से, क्योंकि मैं यहीं रहता हूँ, तो यहाँ कुछ दिनों से विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के प्राध्यापकों की हड़ताल चल रही थी। यह हड़ताल फिलहाल 12 अक्टूबर तक स्थगित की गई है क्योंकि हाईकोर्ट ने इसे एक जनहित याचिका की सुनवाई के बाद तत्काल बंद करने को कहा था। इस हड़ताल के कारण प्राध्यापकों ने कॉलेजों में पढ़ाई बंद कर दी और यह लगभग एक पखवाड़े तक चली। मजे की बात है कि प्राध्यापक अपना वेतन 25000 से बढ़ाकर 50000 करवाना चाह रहे हैं। हालांकि ये प्रोफेसर एक दिन में एक पीरियड भी नहीं लेते (यह मैंने इसलिए कहा क्योंकि मैं खुद कई कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में पढ़ा हूँ और सब जगह यही हाल देखा) और इनका टाइम सिर्फ पॉलिटिक्स करने में बीतता है। तो सरकार ने मना कर दिया कि भईया इतना रुपया मत माँगों की खर्च भी करते ना बने। इस ग्रेड के चलते तो सीनियर प्रोफेसर का वेतन 90000 पर पहुँचने वाला था।
इन प्रोफेसरों की देखा-देखी मध्यप्रदेश की ग्रामीण शालाओं के सवा लाख अध्यापकों ने भी 1 अक्टूबर से हड़ताल का ऐलान कर दिया है। इस हड़ताल की वजह से प्रदेश की 50 हजार से ज्यादा ग्रामीण शालाओं पर ताले डले रहेंगे। अब भाईसाहब क्योंकि खरबूजा खरबूजे को देखकर रंग बदलता है इसलिए ऊपर एक उल्लेख करना भूल गया था जो यहाँ कर रहा हूँ, कि प्रोफेसरों की हड़ताल से ठीक पहले स्कूली शिक्षकों ने आंदोलन एवं हड़ताल का दौर चलाया था और पुलिस की लाठियाँ खाईं थीं, इसके बाद प्रोफेसरों ने रंग बदला, अब सबसे छोटी इकाई ये ग्रामीण शालाओं के शिक्षकों ने हड़ताल की रूपरेखा तैयार की है।

दोस्तों, अभी कुछ दिन पहले की खबर है जब देश के फाइव स्टार शिक्षण संस्थान आईआईटी के 15000 प्रोफेसरों ने भी वेतन बढ़वाने के नाम पर हड़ताल कर दी थी। तब देश के एचआरडी मंत्री कपिल सिब्बल को कहना पड़ा था कि हम आपको इससे ज्यादा वेतन नहीं दे सकते। (विदित हो कि आईआईटी में प्रोफेसरों का वेतन पहले से ही 50000 से 1 लाख रुपए के बीच है) सिब्बल का कहना था कि आप विदेशों से रुपया लाइए तब कुछ बात बन सकती है क्योंकि हम विदेशों की स्टाइल में आप लोगों को 2 लाख रुपए महीना वेतन नहीं दे सकते। अगर आप बाहर से रुपया लाएँगे तो हम आपको अधिक स्वायत्ता दे सकते हैं, विकासशील देशों में इतना वेतन संभव नहीं है।
दोस्तों, यहाँ यह बताना भी ठीक रहेगा कि आईआईटी ने एक दूसरे सेवन स्टार संस्थान आईआईएम को देखकर रंग बदला था जब आईआईएम के प्रोफेसरों ने वेतन बढ़वाने को लेकर सरकार के ऊपर दबाव बनाया था और अहमदाबाद के आईआईएम ने अपने वेतन विदेशों की तर्ज पर बढ़वा भी लिए थे। ये सभी संस्थान छात्रों की फीस में तो पहले ही बेतहाशा वृद्धि कर चुके हैं और अब आपके या हमारे जैसे मध्यम वर्गीय परिवार के लोग तो अपने बच्चों को इन फाइव स्टार और सेवन स्टार संस्थानों में पढ़ावाने की सोच भी नहीं सकते।

दोस्तों, बात अभी खत्म नहीं हुई है। कुछ दिन पहले जब जेट एयरवेज के पायलट बीमारी का बहाना बनाकर सामूहिक रूप से छुट्टी पर चले गए थे तब सरकारी विमानन कंपनी एयर एंडिया ने खूब मुनाफा कूटा था। उसकी फ्लाइट फुल चल रहीं थीं और बूढ़े विमान, बूढ़ी परिचायिकाओं और बूढ़े स्टाफ को ढोने वाली ये एयरलाइन अचानक मुनाफा कूटने लगी थी। लेकिन सरकारी मूढ़ (या कहें कूढ़) मगज स्टाफ को यह कैसे सहन होता, तो जहाँ जेट एयरवेज के पायलटों की हड़ताल खत्म हुई वहीं एयर इंडिया के पायलटों की हड़ताल शुरू हो गई, उसी घटिया बहाने के साथ जिसमें 200 पायलटों ने एकसाथ बीमारी का नोटिस देकर नहीं आने की घोषणा कर दी। एयर इंडिया की 240 फ्लाइट रद्द हो गईं और उसे लगभग 100 करोड़ रुपए का घाटा उठाना पड़ा। यानी जो चार दिन चाँदनी के एयर इंडिया ने काटे थे वो उसके पायलटों से सहन नहीं हुए और भत्तों की कटौती का विरोध करते हुए उन्होंने इस पहले से ही ढीली चाल चल रही विमान कंपनी की वाट लगा दी।

मित्रों, मंदी के दौरान किसी भी सरकारी नौकरी में कोई छँटनी नहीं हुई है। निजी नौकरियों की तरह वहाँ टेंशन भी सिर पर सवार नहीं रहती और केन्द्रीय कर्मचारियों की पहले से ही दसों अंगुलियाँ घी में और सिर कढ़ाई में है। ऐसे में हड़ताल कर-करके देश को नुकसान पहुँचाने की यह नीति समझ नहीं आती। जहाँ एक ओर निजी क्षेत्र में काम करने वाले लोग अपना सिर नीचे किए हुए काम कर रहे हैं, अपनी कंपनियों से यह सुन रहे हैं कि भाई मंदी है, वेतन नहीं बढ़ सकता और भला मानो कि हमने तुम्हें नौकरी से नहीं निकाला, चुपचाप इसी वेतन में काम करो। कई कंपनियों ने अपने ढेर कर्मचारियों को मंदी के नाम पर नौकरी से निकाल दिया, उनके परिवार बिखर गए, सपने टूट गए, जिंदगी तबाह हो गई लेकिन कहीं कोई हड़ताल या आंदोलन की खबर नहीं आई, वहीं दूसरी ओर ये सरकारी कर्मचारी हैं, नासूर बने हुए हैं, वेतन को लेकर देश को कई सौ करोड़ रुपयों का झटका दे चुके हैं।
अगर एक बार सरकारी नौकरी करने वाले निजी नौकरी करने वालों से अपनी तुलना करेंगे तो पाएँगे कि वो कहाँ हैं। उनको दिवाली पर जो भत्ते मिलने वाले हैं उतने में कई निजी नौकरी करने वाले (बेचारे) लोग अपना वर्ष भर का राशन भरवाते हैं। अपने बच्चों की फीस जमा करवाते हैं। 2-3 हजार रुपए महीने में अपने घर का खर्च चलाने वाले कई लोगों को मैं जानता हूँ। इस महंगाई का सामना वे कैसे कर रहे हैं बस वो ही लोग जानते हैं...अभी झाबुआ में एक पिता ने सिर्फ इसलिए आत्महत्या कर ली क्योंकि वो अपने बीमार बेटे का इलाज रुपए की तंगी के कारण नहीं करवा पा रहा था, लेकिन सरकारी कर्मचारियों को यह सब नहीं दिखता, लालच के मारे मरे जा रहे हैं वो...अरे, जो निजी नौकरियों में हैं जरा उनकी सूरत भी तो देखो यार....यह कैसी हड़ताल जो देश को खोखला कर रही है सिर्फ इसलिए कि उनके वेतन बढ़ते जाएँ....देश को बर्बाद करने वाले इन हड़तालियों का स्थाई इलाज खोजा जाना चाहिए।

आपका ही सचिन....।

4 comments:

निर्मला कपिला said...

सचिन जी आपकी हर बात सोलह आने सही है। आज देश की चिन्ता किसे है? सब अपने हित साधने मे लगे हुये हैं । बहुत बडिया आलेख है बधाई

kishore ghildiyal said...

solah aane sachhi baat

ss said...

एक एक हर्फ़ सच्चाई से भरा हुआ है। सरकारी कर्मचारी पहले निजी कर्मचारियों की तरह काम करके दिखायें।

महेन्द्र मिश्र said...

सोलह आने सही कंपनी वालो की भी सुनना चाहिए ....