February 02, 2009

पुत्र की महिमा और भारतीय समाज!

पुत्रियों की महिमा समझने में शायद अब भी देर है
दोस्तों, कुछ दिन पहले बालिका दिवस मनाया गया था। इस उपलक्ष्य में हमारे अखबार ने भी बालिका शिक्षा और उनकी जन्मदर पर कई लेख छापे थे। बताया गया था कि लोग बहू तो चाहते हैं लेकिन बेटियाँ नहीं। बालिकाएँ पहले के मुकाबले काफी कम पैदा हो रही हैं। ठीक भी है। लेकिन इस बारे में मेरे पास भी आप लोगों से कहने के लिए कुछ है।

मेरे परिचय में एक युवती है, अविवाहित है, उम्र यही कोई ३१ साल....पता चला कि वे कुछ दिनों से दफ्तर नहीं आ रही हैं..... कारण था माँ की तबीयत खराब है और उनका आपरेशन था, आपरेशन सफल रहा.....उनकी छुट्टियाँ लगभग १५ दिनों की हो चलीं थीं....मुझे लगा कि आखिर उन्होंने इतनी लंबी छुट्टियां क्यों लीं.....पूछा तो पता चला कि वे कुल छह बहनें हैं.....वे सबसे बड़ी हैं और इस वजह से जिम्मेदार भी हैं......एक कसक मन में पैदा हुई.....कि छह लड़कियाँ क्यों...????? उत्तर आपको, हमको और सबको पता है.....वही घिसी-पिटी बात....लड़के की चाह....ठीक है अगर छह लड़कियों के बाद अगर लड़का पैदा हो गया होता तो क्या तोप मार लेता...और नहीं हुआ है तो क्या बेटियां काम नहीं आ रही हैं.....??
अब बात विस्तार से....आशा है मेरी बातें लड़कियों को अच्छी लगेंगी....आशंका है कि कुछ लड़कों को बुरी भी लग सकती हैं....कुछ का शायद समर्थन भी मिले.....
तो दोस्तों, भारत के देव ग्रंथों और पुराणों में पुत्र की महिमा अपरंपार बताई गई है....वह वंश चलाता है.....पिता के अधूरे कार्यों और दायित्वों को पूरा करता है..... जिम्मेदारियां उठाता है...और फिल्मी स्टाइल में कभी-कभार अपने पिता या परिजनों के ऊपर हुए अत्याचारों का बदला भी ले लेता है...लड़कियां या कहें पुत्रियां बेचारी कमजोर होती हैं....माता-पिता के सिर पर बोझ होती हैं...पराया धन होती हैं और कहीं ना कहीं अपने पिता की मूँछ नीचे करने का कारण बनती हैं.......
तो साहब इस देश में उक्त बात इतने दिल से मानी गई कि प्रति हजार पर लड़कियां सिमट कर आठ सौ के आसपास रह गईं.....कहीं-कहीं नौ सौ के आस-पास भी हैं...लेकिन कुल मिलाकर हालत बहुत बुरी है....मैं कहता हूं कि रूस जो एक समय महाशक्ति बना, वहां की आबादी १२ करोड़ है, ब्रिटेन और जापान भी कमोबेश नौ और १२ करोड़ के देश हैं.....दुनिया को आंख दिखाने वाली शक्ति अमेरिका में ३२ करोड़ लोग हैं तो हमारे यहां के १०० करोड़ लोग जिनमें से ५० करोड़ पुरुष हैं ऐसा क्या कर रहे हैं जो हमने लड़कियों को कई हजार साल तक मनहूस बना दिया...राजस्थान में लड़कियों को मारने या सती करने की परंपरा के बारे में मैं बात करना नहीं चाहता, क्योंकि वो सबको पता है..... लड़कियों से आखिर देश को या हमारे घर को ऐसा क्या नुकसान हो गया जो उनकी हजारों सालों से गर्दन दबाई जा रही है........
अब थोड़ा लड़कों का पक्ष रखता हूं.....इससे पहले बता देना चाहता हूं कि मैं खुद तीन बहनों के बाद पैदा हुआ...... तो आम बात करता हूँ जो कई परिवारों में मैंने महसूस की गई है....मैंने अपनी आंखों से देखी है.....तो साहब माता-पिता के यहां अगर तीन-चार या पाँच लड़कियों के बाद कोई लड़का होता था तो ढोल-ताशे पीटे जाते थे......कई सालों तक भाई की तवज्जो रहती.....उसको खाने को ज्यादा मिलता.....अच्छे स्कूलों में जाता....हर चीज में ज्यादा हिस्सा मिलता....बहनों से कहा जाता कि भइया को जरूरत है इस सब की....जैसे भइया ना जाने क्या निहाल कर देगा......तो साहब, भइया बड़ा हो रहा है.....उधर माता-पिता लड़कियों की शादी करते-करते कंगले हुए जा रहे हैं......अब उनकी आशा है कि भइया सब कुछ अच्छा कर देगा......भइया इस बोझ तले दबकर आड़ा-टेढ़ा हुआ जाता है......तो कई घरों को मैंने लगभग टूटने की सी कगार पर देखा.....अंततः लड़का इतने दबाव में रहता है कि उसे लगने लगता है कि इस घर में पैदा नहीं हुआ होता तो ही अच्छा रहता....मैंने इस बात को थोड़ा सा महसूस किया.....हालांकि मैं संपन्न घर से हूँ और अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह भी अच्छे से कर रहा हूं लेकिन कई बार लगता है कि कहीं मेरी वजह से मेरी बहनों के साथ अन्याय तो नहीं हुआ......खैर
तो बेटियां क्या होती हैं, इसके ऊपर आता हूँ....तो अब नया जमाना आ गया है...लोग घरों में लड़कियों के आने पर भी खुशी मना लेते हैं...कईयों के यहां सिंगल गर्ल चाइल्ड है और वे दुनिया जीत रहे हैं.....भारतीय सेना के एक कर्नल जो ग्वालियर में पोस्टेड हैं और मेरे मित्र हैं, ने मुझे बताया था कि भारतीय सेना के अस्सी प्रतिशत जर्नल दो बेटियों (कोई लड़का नहीं) के पिता ही बने हैं.....इसलिए सेना में तो कहावत बन गई है कि जिसके दो बेटियां हैं वह जनरल (सेना का सर्वोच्च पद) बनेगा.....उनको भी सब ऐसा ही कहते हैं क्योंकि उन्हें भी दो बेटियां हैं....इसी प्रकार पत्रकारिता में भी है...कई बड़े पत्रकार एक या दो बेटियों के पिता बने हैं.......राजस्थान में ऐसा कहा जाता था.......राजस्थान पत्रिका के ग्रुप एडीटर भुवनेश जैन समेत कई सूरमा पत्रकारों की वहां दो बेटियां हैं.....अपने मध्यप्रदेश के कल्पेश याग्निक और यशवंत व्यास भी सिर्फ बेटियों के पिता हैं......पत्रकारों के लिए यह बात मैंने दिल्ली में भी सुनी थी....यह अच्छा संकेत है.....कुछ अमेरिकी राष्ट्रपतियों की भी बात कर लें। बिल क्लिंटन के एक बेटी है। निवृतमान राष्ट्रपति जार्ज बुश की दो बेटियाँ हैं, हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति बने बराक ओबामा की भी दो बेटियाँ हैं। यानी पिछले १६ सालों से अमेरिका के ऊपर राज करने वाले लोगों के यहाँ सिर्फ बेटियाँ हैं।.....लेकिन सवाल यह है कि कितने लोग इन बातों को मानते हैं....मैंने विदेशों और भारतीय हायर क्लास सोसायटी के उदाहरण दिए हैं....मिडिल और लोअर क्लास में अभी भी पुरानी लकीर ही पीटी जा रही है...यह मैं नहीं आप खुद भी महसूस करते होंगे......बात के ढेरों उदाहरण हैं...जितने कहें उतने थोड़े हैं...मेरे मन में कुछ बातें थीं सो कह दीं......आशा है कि दोस्त मेरी बातों से सहमत होंगे....
आपका ही सचिन..........।

2 comments:

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

मेरी एक बेटी है और मुझे गर्व है . आजतक मुझे कोई परेशानी नही न मेरे परिवार को . हां कुछ ग्रामीण प्रष्टभूमि के रिश्तेदार कहते है लड़का होना चाहिए सम्पति का क्या होगा .

संगीता पुरी said...

मध्‍यम परिवार में दो बेटे हो तो बेटी के लिए कोई परिवार नहीं बढाता.....पर दो बेटियां हो.....तो बेटे के लिए परिवार बढा लेते हैं.....निम्‍न परिवार में तो कई कई बेटियों के बाद भी इंतजार करते हैं लोग बेटों का।