May 09, 2009

प्रतिभा पाटील के काम आने का समय नजदीक है!


सोनिया ने दूर की सोची थी

दोस्तो, लोकसभा चुनाव अपने शबाब से गुजर चुके हैं। काफी कुछ हो चुका है। इस बीच कई रोचक और राष्ट्रीय स्तर की घटनाएँ भी हुईं। मुलायम ने कम्प्यूटर और अंग्रेजी पर पाबंदी की बात कही तो प्रियंका ने मोदी को जवाब दिए जबकि मोदी ने भी कांग्रेस को बुढ़िया और फिर गुड़िया पार्टी कहा। वरुण का एपिसोड भी हुआ। लेकिन क्या करें इन सब विषयों पर लिखने की इच्छा होते हुए भी कुछ नहीं लिख पाया। कारण यही लोकसभा चुनाव और इनसे जुड़ी अखबारी व्यस्तता, लगता है कि मुझे पढ़ने वाले पाठक भी छूट गए होंगे। लेकिन वापसी तो करनी ही है। सो, आज थोड़ा सा समय निकाल कर बैठा हूँ। संदर्भ कल पढ़े एक एनालिसिस का है जिसमें कहा गया था कि इस बार भी पिछली बार की तरह सिंगल लारजेस्ट पार्टी को ही राष्ट्रपति द्वारा सरकार बनाने के लिए न्यौता दिया जाएगा। जबकि अगर पिछली बार सबसे बड़े गठबंधन को सरकार बनाने के लिए बुलाया जाता तो वह एनडीए होना चाहिए था क्योंकि वो तब सबसे बड़ा था और संप्रग ने तो राष्ट्रपति से बुलावे के बाद अपना आकार लिया था। या कहें ओपरचुनिस्ट लोगों की जमात इक्ट्ठी हो गई थी। विश्लेषण में इस बार भी कांग्रेस को बुलावे की बात कही गई थी अगर वो सिंगल लारजेस्ट पार्टी हुई और अगर ना हुई तो संप्रग को बुलाया जा सकता है बड़े, गठबंधन होने के नाते क्योंकि राष्ट्रपति भवन में जो महिला राष्ट्रपति बैठी हैं वो आधा झुककर सोनिया गाँधी को नमस्ते करती हैं....!!!!!!

दोस्तों, अब मैं कुछ आपको बताना चाहता हूँ, हालांकि वो विवादास्पद हो सकता है लेकिन सोनिया गाँधी शांत रहने वाली बेहद ही चतुर तथा सयानी महिला हैं। उन्होंने ये गुण अपनी सास इंदिरा गाँधी के करीब रहते सीखे और राजनीति में सोनिया को फिलहाल कोई नहीं पकड़ सकता। ये हमें उनके पिछले १० साल के कार्यकाल से समझ लेना चाहिए जिसमें उन्होंने कांग्रेस की कमान संभाली हुई है। मुझे राजनीति की एक विशेषज्ञ (महिला) ने बताया कि श्रीमती प्रतिभा पाटील राष्ट्रपति कैसे बनीं। प्रतिभा पाटील जब राजस्थान की राज्यपाल थीं तब वहाँ गुर्जर और मीणाओं के बीच संघर्ष की स्थिति बनी हुई थी। आंदोलन चल रहा था और वसुंधरा राजे वहाँ की मुख्यमंत्री थीं। तो श्रीमती पाटील दिल्ली सोनिया गाँधी से मिलने पहुँची यह पूछने की मैडम मेरी वहाँ क्या भूमिका हो और मेरा क्या स्टेण्ड होना चाहिए, इस एपिसोड में। वसुंधरा सरकार को लेकर और पूरे आंदोलन को लेकर। उस समय एपीजे अब्दुल कलाम का कार्यकाल पूरा होने जा रहा था और सोनिया उनके दूसरे कार्यकाल के बारे में विचार तो दूर की बात अपने किसी व्यक्ति को राष्ट्रपति भवन में बैठाने की गहन चिंता में खोई हुई थीं। तभी प्रतिभा पाटील वहाँ पहुँच गईं थीं। इन्हें देखते ही सोनिया ने सोचा, लो बन गई बात। एक महिला को राष्ट्रपति पद पर बैठाने के फैसले को नया माना जाएगा और इसका कोई विरोध भी नहीं करेगा, तथा उनका एक विश्वसनीय व्यक्ति सर्वोच्च पद पर बैठ जाएगा जो २००९ के चुनावों में उनके सीधे तौर पर काम आएगा। सोनिया को बैठे-बैठे ही समस्या का हल मिल गया था और प्रतिभा पाटील ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि वो महाराष्ट्र से उठकर कहाँ पहुँचने वाली हैं। यहाँ मैं दोस्तों को बताना चाहता हूँ कि श्रीमती पाटील ने इमरजेंसी के समय इंदिरा गाँधी की बहुत सेवा की थी, उनके जेल जाने के दौरान उनका घर (या कहें किचन) संभाला था और सोनिया भी उनको कई दशकों से जानती हैं। तो अब उनको उनकी सेवा का रिवार्ड मिला। अब इस एहसान को वो १६ मई के बाद चुकाएँगी जब राष्ट्रपति के हाथ सत्ता आ जाती है और वो जिसे चाहे सरकार बनाने के लिए बुला सकता है। निश्चित ही वो सोनिया से उस दौरान पूछेंगी कि मैडम मैं आपको कब बुलावा भेंजू..मुझसे मिलने के लिए..या मैडम आपके पास कब समय है मुझसे मिलने का...मैं आपको सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करना चाहती हूँ......!!!!!!!!!

आपका ही सचिन.......।

1 comment:

अनुनाद सिंह said...

मुझे तो डर है कि सोनिया 'आजाद भारत' की 'लेडी क्लाइव' न साबित हो।