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दोस्तों, आज सुबह आप लोगों ने एक खबर पढ़ी होगी। कि चीन के दो हेलीकॉप्टर लद्दाख में भारत की सीमा में घुस आए। पाँच मिनट तक भारतीय सीमा में मंडराते रहे और कुछ खाने के पैकेट गिराकर चले गए। उन पैकेटों में सूअर का जमा हुआ माँस था। पैकेट एक्सपायरी डेट को पार गए थे यानी खाने लायक नहीं थे। वैसे तो यह घटना कोई बहुत बड़ी नहीं मानी जा रही है और तीनों भारतीय सेना की संयुक्त कमान के नए अध्यक्ष थलसेना अध्यक्ष जनरल दीपक कपूर के अनुसार पेट्रोलिंग के दौरान अक्सर ऐसा हो जाता है क्योंकि भारत-चीन के बीच सीमा का निर्धारण नहीं है। इस घटना से मेरे मन में काफी बातें उठीं। मैंने इस बारे में अपने उन कुछ मित्रों से बात की जो सामरिक पृष्ठभूमि के हैं और जो चीन पर काफी शोध कर रहे हैं। उस बातचीत में ऐसे बहुत से मुद्दे निकले जिन्हें मैं यहाँ आपके साथ शेयर करना चाहता हूँ। आप लोगों ने भारत के सामरिक विशेषज्ञ भरत वर्मा का नाम तो सुना ही होगा। उन्होंने कुछ समय पहले घोषणा की थी कि चीन 2012 तक भारत पर हमला कर सकता है। उनके अनुसार यह चीन की कुण्ठा निकालने का भी एक जरिया हो सकता है क्योंकि भारत समेत विश्व के तमाम देश अपने बाजारों में चीनी माल की आवक बंद कर रहे हैं। उन पर बैन लगाया जा रहा है। भरत वर्मा के ये विचार आप यहाँ पढ़ सकते हैं। भारत पर 2012 तक हमला कर सकता है चीन
मित्रों यूँ तो मै चीन का उसके अनुशासन, सैन्य और आर्थिक प्रगति और तेजी से विश्व व्यवस्था में खुद के लिए जगह बनाने का प्रशंसक हूँ। उसने खेलों में भी उल्लेखनीय प्रगति की है और बीजींग ओलंपिक में उसने यह दिखा भी दिया। लेकिन मैं एकमात्र कारण से उससे नफरत करता हूँ और वह यह है कि वह हमारे देश का दुश्मन है और हमारी 90000 वर्ग किलीमीटर भूमि पर उसने अपना अवैध कब्जा जमा रखा है। तो चीन की आगे की प्लानिंग क्या है उसपर मैं बिंदुवार कुछ बातें आपके सामने रख रहा हूँ।
1. आप दुनिया के नक्शे पर भारत की स्थिति देखिए तो पता चलेगा कि हम (भारत) बहुत ही खतरनाक जगह पर पहुँच चुके हैं। हालांकि हम तो अपनी जगह से नहीं हिले हैं लेकिन दुश्मनों ने हमको धीरे-धीरे चारों ओर से घेर लिया है। इतना ही नहीं, वह हमारे घर के अंदर भी पहुँच चुका है। बानगी देखिए...
चीन ने 50 साल पहले शांत और धीर-गंभीर तिब्बत को अचानक हड़प लिया और दुनिया देखती ही रह गई और कुछ नहीं कर पाई। तिब्बत चीन और भारत के बीच रक्षा दीवार था। लेकिन उसको हड़पने के बाद वह सीधे हमारे सिर के ऊपर आ गया। इसके बाद 1962 के भारत-चीन सीमा विवाद (इसे युद्ध समझें) में उसने हमारी 90 हजार वर्ग किमी भूमि हड़प ली। यह युद्ध उसने दो मोर्चों पर लड़ा। एक तो जम्मू कश्मीर, हिमाचल और उत्तरांचल से जुड़ा हिस्सा और दूसरी अरुणाचल वाला हिस्सा। उस युद्ध में हम हारे और चीन ने हमारा एक बड़ा हिस्सा हड़प लिया। कैलाश मानसरोवर जैसा तीर्थ हमारे हाथ से निकल गया और उस दिन के बाद से चीन तवांग और अरुणाचल प्रदेश को भी अपना हिस्सा बताने से नहीं चूकता।
चीन ने इतना करने पर अगला कदम कूटनितिक उठाया। उसने पाकिस्तान को हर संभव मदद मुहैया कराई। उसे भारत के खिलाफ ताकतवर बनाया और इस काम में अपने दूसरे सहयोगी उत्तर कोरिया को भी लगा दिया। पाकिस्तान के पास जितनी भी मिसाइलें और परमाणु हथियार हैं वो सब मेड इन चाइना और मेन इन ईस्ट कोरिया ही हैं। चीन ने पाकिस्तान को साधने के बाद नेपाल में माओवादियों के मार्फत अपनी पकड़ बनाई और संसार के एकमात्र घोषित हिन्दू राष्ट्र को माओवादियों का अड्डा बना दिया। इसके बाद उसने बांग्लादेश की ओर रुख किया और वहाँ खूब संसाधन भिजवाए। आतंकियों को भारत के खिलाफ मदद पहुँचाई। और उसे भारत विरोधी कर दिया जबकि बांग्लादेश को भारत ने ही पाकिस्तान के चंगुल से आजाद करवाया था।
चीन ने मालद्वीप को भी साध रखा है और वहाँ की इस्लामिक सरकार को भारत के खिलाफ इस्तेमाल कर रहा है। वहाँ उसका सैन्य अड्डा भी है और हवाई तथा नौसेना तैनाती भी है।
बर्मा की जुंटा सैन्य सरकार भी चीन की मित्र है क्योंकि दोनों ही राष्ट्र अपने को कम्युनिस्ट कहते हैं। हम सिर्फ अंडमान में इसलिए ही कोई विकास नहीं कर पाते क्योंकि भारत सरकार को पता है कि चीन किसी भी दिन अंडमान को हड़प सकता है।
चीन ने हाल ही में श्रीलंका में भी भारी मात्रा में निवेश किया है और लिट्टे के सफाए के बाद चीन श्रीलंका को पाकिस्तान के करीब लाकर भारत के खिलाफ इस्तेमाल करने की योजना बना रहा है।
दोस्तों, इस पूरी स्टोरी में एक दूसरा पहलू भी है। चीन ने भारत को अंदर से भी कमजोर करना शुरू कर दिया है। भारत के आधे राज्यों में नक्सली समस्या है। इनसे उलझने में हमारे काफी सारे अर्धसैनिक बल लगे रहते हैं। इनमें सीआरपीएफ प्रमुख है जो दशकों से जंगलों में इनके खिलाफ कैंप लगाए पड़ी हुई है। ये नक्सली भी चीन द्वारा प्रायोजित हैं और हम इनका कुछ नहीं बिगाड़ पा रहे हैं। इनका खौफ इतना अधिक है कि ये पुलिस के जवानों और कभी-कभी उसके बड़े अधिकारियों को तो चूहे-बिल्ली की तरह मार देते हैं। आंध्रप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू पर यह जानलेवा हमला कर चुके हैं, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के पुत्र को जान से मार चुके हैं और देश के पहाड़ी इलाकों में अपनी अलग सत्ता चलाते हैं। देश के 27 में से 7 प्रोजेक्ट टाइगर रिजर्व पर इनका कब्जा है और वहाँ सिर्फ इसी कारण प्रतिवर्ष होने वाली वन्यजीवों की गणना नहीं हो पाती।
इस बात से एक बात का और लिंक है जिसका मैं यहाँ उल्लेख कर देना उचित समझता हूँ। भारत के पास अग्नि, पृथ्वी जैसी मिसाइलें हैं। ये परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम हैं और चीन अग्नि की रेंज में आता है। ये मिसाइलें बहुत महंगी होती हैं और कम संख्या में बनाई जाती हैं। आसमानी पहरे या कहें सेटेलाइट की नजर से बचाने के लिए इन्हें हमेशा मोबाइल रखा जाता है। यानी रेलवे के माध्यम से या हैवी आर्मी व्हीकल के माध्यम से यह हमेशा चलती रहती हैं, एक जगह से दूसरी जगह। अगर इन्हें इस तरह से नहीं घुमाया जाए तो ये बड़े पहाड़ी क्षेत्रों में छुपाकर रखी जा सकती हैं। इसका एकमात्र कारण है कि युद्ध के समय सेटेलाइट से ट्रेक होकर चीन या अन्य कोई भी शक्तिशाली देश इनके जखीरे पर हमला कर इन्हें समूल नष्ट कर सकता है। लेकिन यहाँ दिक्कत यह है कि देश के पहाड़ी इलाके धीरे-धीरे नक्सलियों के कब्जे में आते जा रहे हैं। ऐसे में यकीन करना मुश्किल है कि हम पहाड़ों के बीच अपनी बेशकीमती मिसाइलों को सुरक्षित तरीके से छुपा पाएँगे।
2. क्या आपको नास्त्रेदमस की वो भविष्यवाणी याद है जिसमें उन्होंने कहा था कि तीसरा विश्वयुद्ध चीन और इस्लामिक देश मिलकर भड़काएँगे। दक्षिण एशिया से शुरुआत होगी और ओरियेंट (उन्होंने भारत का इसी नाम से उल्लेख किया है) सबसे पहले गुलाम बना लिया जाएगा। बाद में अमेरिका, जापान, ब्रिटेन और फ्रांस मिलकर भारत का साथ देंगे और अंत में विजयी होंगे। भारत भी विजेता बनेगा और बाद में महाशक्ति के तौर पर स्थापित होगा लेकिन सभी मित्र राष्ट्रों को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।
मैंने आज ही वो खबर भी पढ़ी है जिसमें लिखा है कि भारत पर निशाना साधने के लिए पाकिस्तान ने अमेरिका से मिली हारपून मिसाइलों में कुछ परिवर्तन किए हैं और इसमें चीन ने निश्चित तौर से मदद की है। अमेरिका ने मिसाइलों की मूल डिजाइन के साथ छेड़खानी करने के लिए पाकिस्तान को चेताया भी है। दरअसल चीन के साथ पाकिस्तान भी भारत को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानता है। चीन पाकिस्तानी मानस को समझते हुए यह भी मानता है कि इस क्षेत्र में एकमात्र महाशक्ति बने रहने के लिए उसे भारत को हराना ही होगा क्योंकि रूस के टूटने के बाद भारत से ही उसे खतरा है। दूसरा वह यह भी मानता है कि अगर वो पाकिस्तान या बांग्लादेश के मार्फत भारत के खिलाफ बड़ा युद्ध छेड़ता है तो भारत के अंदर रह रहे 20 करोड़ मुसलमान भी उसका साथ देंगे और फिर नक्सली तो हैं ही। ऐसे में समझना मुश्किल नहीं है कि स्थिति विकट है और हम उस तरह से तैयार नहीं हैं। हम सिर्फ अपने घर में बैठकर अपने को सुरक्षित नहीं मान सकते। चीन का रक्षा बजट हमारे बजट से तीन गुणा ज्यादा है। इस वर्ष भारत जहाँ अपने डिफेंस बजट पर 27 अरब अमेरिकी डॉलर खर्च कर रहा है, वहीं चीन इस साल 70 अरब अमेरिकी डॉलर खर्च कर रहा है। हमारे पास कई शो-पीस हैं जैसे एयरक्राफ्ट कैरियर विराट, जो हमारे पास इकलौता है और ठीक से काम भी नहीं करता। प्रस्तावित कैरियर एडमिरल गोर्शकोव को रूस ने कई सालों से अटका रखा है, जबकि चीन के पास 12-13 एयरक्राफ्ट कैरियर हैं। टैंकों में भी वो सुविधा और संख्या के मामले में भारत से कहीं आगे है। ऐसे में हमारी शक्तिशाली और साथ ही बदमाश चीन के खिलाफ क्या स्ट्रेटेजी होगी इसपर कोई सोच नहीं रहा। हालांकि भारत ने हाल ही में कुछ कदम उठाए हैं लेकिन वो अपर्याप्त हैं।
(दोस्तों, अब बाकी अगली किश्त में, लेख लंबा हुआ जा रहा है, कहीं पढ़ना मुश्किल ना हो जाए)
आपका ही सचिन...।