August 22, 2009

विभिषण बनते जसवंत!

अपने ही घर को ढहाने में लगे, भाजपा बैकफुट पर, आडवाणी की कई पोलें खुलीं

भाजपा के वरिष्ठ नेता (पूर्व) जसवंत सिंह अब विभिषण की भूमिका में आ गए हैं। वे अपना ही घर ढहाने में लग गए हैं इसलिए उनकी इतिहास में कभी ख्याति दर्ज नहीं की जाएगी। लेकिन हमें ध्यान रखना चाहिए कि विभिषण के बनने के पीछे रावण था और पूरी लंका भी थी। सो, भाजपा अब लंका की भूमिका में है और रावण की भूमिका में आडवाणी हैं। अपने पूरे चुनाव कार्यक्रम के दौरान आडवाणी ने कई मोर्चों पर झूठ बोला। यह बात अब धीरे से जसवंत सिंह खोल रहे हैं। आडवाणी ने कहा कि उन्हें कंधार में आतंकियों को छोड़े जाने की जानकारी नहीं थी। इन आतंकियों को तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह ही कंधार छोड़ने गए थे। तो सिंह ने बता दिया कि पहले दिन से ही आडवाणी को समस्त जानकारी थी और तथाकथित लौह पुरुष (आडवाणी) भारत में उतरे उस विमान पर एनएसजी कार्रवाई भी समय रहते नहीं करा पाए थे। भारतीय मीडिया की नजरों में खलनायक बने हुए नरेन्द्र मोदी के बारे में भी जसवंत ने जहर घोल दिया। उनका कहना है कि आडवाणी ने मोदी को कार्रवाई से बचाया जबकि वाजपेयी उनपर गुजरात दंगों के मामले में कार्रवाई करवाना चाहते थे। तब देश भर और दुनिया भर में भी यह संदेश गया था कि वाजपेयी ने कोई कार्रवाई नहीं की। जबकि आडवाणी ने वाजपेयी जी को यह कहकर डरा दिया था (बकौल जसवंत सिंह) कि अगर मोदी पर कार्रवाई हुई तो बवाल मच जाएगा। वाजपेयी गुजरात दंगों को लेकर बहुत परेशान थे। उन्होंने अपने संसदीय कार्यालय में प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा भी लिख दिया था। उस समय संसद सत्र चल रहा था। बकौल जसवंत वाजपेयी ने एक कागज उठाया और इस्तीफा लिखने लगे। मैंने उनका हाथ पकड़ लिया और उन्होंने मेरी ओर सख्ती से देखा, तब मैंने कहा आप यह क्या कर रहे हैं। ऐसा मत कीजिए। उन्होंने कहा छोड़ दो और मैंने बड़ी मुश्किल से उन्हें मनाया। हम उनके निवास गए। हम हालात को शांत करने में सफल हुए। उल्लेखनीय है कि जसवंत, वाजपेयी और आडवाणी के समकालीन हैं। भैरोसिंह शेखावत भी उतने ही पुराने हैं और बीच में उन्होंने भी राजनाथ सिंह और आडवाणी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था।

दोस्तों, यह तो हुई जसवंत सिंह की बातें। लेकिन मैं यहाँ सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ कि जसवंत सिंह की इन बातों ने यहाँ बहुत से गूढ़ रहस्यों पर से भी परदा उठा दिया। सबसे पहला कि अटल बिहारी वाजपेयी क्या थे वो उन्होंने बता दिया है। आज राजनाथ सिंह या अरुण जेटली कितना भी हवा में उड़ लें लेकिन उन्हें यह पता होना चाहिए कि सिर्फ एक भाजपा में अटल बिहारी वाजपेयी के ना होने से क्यों उसकी 100 सीटें कम हो गईं जबकि कांग्रेस के शासन से देश की जनता त्रस्त थी। अटल जी लखनऊ से पिछले बीस वर्षों से चुनाव जीत रहे थे। सिर्फ उनके नाम भर से ही इस बार लालजी टंडन भी वहाँ से चुनाव जीत गए जबकि मायावती तो उन्हें लालची टंडन तक कह चुकी हैं। लखनऊ काफी मुस्लिम आबादी वाला क्षेत्र है। लेकिन कट्टर भाजपाई और संघ के प्रचारक रहे वाजपेयी वहाँ से सिर्फ इसलिए जीत जाया करते थे क्योंकि उनमें कभी उतनी कट्टरता नहीं रही। वे हमेशा शांत चित्त और धैर्यवान बने रहे और जसवंत सिंह इस प्रकरण में बार-बार उन्हें याद कर कह रहे हैं कि अगर वाजपेयी होते तो उन्हें सफाई देने का मौका दिया होता और इस तरह बेइज्जत करके नहीं निकाला जाता। वाजपेयी का कद इसलिए भी बड़ा था क्योंकि उन्होंने पार्टी के भीतर कभी राजनीति नहीं की और सभी लोगों को बराबर मानकर अपने साथ रखा। आज जबकि राजनाथ सिंह और अरुण जेटली भयानक राजनीति कर रहे हैं, और पहले उमा भारती अब जसवंत सिंह जैसे पुराने पार्टी दिग्गज एक-एक करके पार्टी से निकाले जा रहे हैं। वसुंधरा राजे को भी हाशिए पर डालने की तैयारी है। जार्ज फर्नांडीस पहले ही कहीं उड़ा दिए जा चुके हैं, तब वाजपेयी की याद आना लाजमी है। वाजपेयी इन सबको रोके रखने में सक्षम थे। वो ममता बनर्जी, जयललिता और मायावती सरीखी आग का शोला रूपी महिला नेताओं को भी अपने साथ जोड़े रखते थे। उनकी लोकप्रियता इतनी जबरदस्त थी कि नितांत बंगाली, मराठी, मलयाली या कन्नड़ क्षेत्रों में भी लाखों की संख्या में जनता उन्हें सुनने आती थी।

जसवंत की दूसरी टीस यह भी है कि इसी जिन्ना की वजह से आडवाणी भी मुसीबत में फँसे थे लेकिन उनका सिर्फ भाजपा अध्यक्ष का पद गया जबकि उन्हें एक फोन कॉल कर राजनाथ सिंह ने उनकी पार्टी से ही निकाल दिया। उस पार्टी से जिसके वो संस्थापक सदस्य थे और जिसमें उन्होंने 30 साल दिए थे। जसवंत सिंह के अनुसार उनके साथ ऐसा व्यवहार किया गया जैसा कि किसी चपरासी के साथ भी नहीं किया जाता। जसवंत सिंह की बात सही है, लेकिन अब मंथन का समय भाजपा और उसके पितृ संगठन आरएसएस का है कि ऐसा क्या हो रहा है कि इन लोगों की जमीन खिसक रही है, जनाधार कम हो रहा है और ये खिसियाकर बौराए जा रहे हैं। इस सबमें मजे की बात यह है कि पार्टी के दो शीर्ष लोगों (आडवाणी और जसवंत सिंह) को मुसीबत में डालने का काम उस जिन्ना ने किया है जिसकी दशकों पूर्व मौत हो चुकी है और जो मरने से पहले यह कह गया था कि पाकिस्तान बनवाना मेरे जीवन की कुछ सबसे बड़ी गलतियों में से एक रहा। अब उस जिन्ना का भूत भाजपा के लिए नित नए गड्ढे खोद रहा है और वो उन गड्ढ़ों में लड़खड़ाकर गिर भी रही है। फिलहाल इस कठिन समय में भाजपा को मार्गदर्शन देने वाला वाजपेयी जैसा कोई दूरगामी सोच वाला शीर्ष पुरुष मौजूद नहीं है (वाजपेयी जी का स्वास्थ्य ऐसा नहीं कि वे किसी से बोल-सुन सकें)। इस समय में पार्टी को खुद ही अपनी करनी से उबरना होगा। लेकिन जसवंत सिंह प्रकरण के बाद पार्टी को नुकसान होना तय है। फिलहाल तो लोकसभा चुनावों में पहले ही अपनी दुर्दशा करवाने वाली भाजपा का इस कठिन समय में कोई खेवनहार दिख नहीं रहा।

आपका ही सचिन...।

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