August 18, 2009

न्यूज चैनल्स के न्यूज रूम और राखी सावंत

दर्शकों पर मुझे तरस आता है
मित्रों, राखी सावंत का स्वयंवर खत्म हो गया। बात पुरानी हो गई। लेकिन इस पागल लड़की का चेहरा अचानक मैंने आज किसी न्यूज चैनल पर देख लिया। वो बता रहा था कि अब वे बच्चे पालेंगी। हालांकि यह खबर भी पुरानी है लेकिन शायद फॉलोअप चल रहा होगा। इस फॉलोअप को देखकर मेरे तन-मन में आग लग गई। राखी के तथाकथित स्वयंवर को देखने वाले और दिखाने वाले पहले दिन से ही जानते थे कि ये वाहियात लड़की किसी से शादी-वादी नहीं करने वाली। अगर ये राजी हो भी जाए तो उससे ढंग के लड़के शादी नहीं करेंगे। लेकिन इस सबके बावजूद यह शो चला, इसे दर्शक भी मिले और सबसे बड़ी लेकिन दुखदायी बात कि हमारे देश के घटिया टीआरपी बटोरू और विज्ञापन जुगाड़ू न्यूज चैनल्स ने इसके बारे में जरूरत से ज्यादा दिखाया। इन न्यूज चैनलों को दर्शकों को राखी की नाभि दिखाने में ही मजा आता है। रियेलिटी शो की रियेलिटी क्या होती है इसके बारे में बताने की जरूरत नहीं। हम सब जानते हैं। इसपर मैं पहले भी लिख चुका हूँ लेकिन अब तो गुस्सा दर्शकों पर आता है। अरे अगर दर्शक किसी शो का बहिष्कार कर दें तो क्या मजाल न्यूज चैनल वाले और खुद शो दिखाने वाले एनटरटेनमेंट चैनल का कि वो उसे लेकर दर्शकों को झिलाते रहें। लेकिन हम आजकल चुप रहकर बैठना सीख गए हैं।

दोस्तों, मैंने न्यूज चैनलों के न्यूज रूम की बात की है। तो उन न्यूज रूम का बस नाम ही न्यूज रूम रह गया है। दरअसल वो तो सब 'न्यूड रूम' हैं। अश्लील कार्यक्रम दिखाएँगे (मसलन बालीवुड), नहीं तो हँसी के कार्यक्रम दिखाएँगे (जिन्हें देखकर रोना आता है), नहीं तो अपराध दिखाएँगे। कोई काम की चीज नहीं दिखाएँगे। बीच में एक और रियेलिटी शो शुरू हुआ। इस जंगल से मुझे बचाओ। विदेशी रियेलिटी शो की तर्ज पर। लेकिन भारतीय संस्करण शर्मनाक था। नंगी लड़कियों को जंगल में एक वाहियात और नकली झरने के नीचे नहाते दिखाया गया इसमें। कमाल है यार, इतनी तरक्की कर ली हमने, लेकिन नकल करने की भी अकल नहीं आई। जंगलों के ऊपर जो रियेलिटी शो एएक्सएन, डिस्कवरी, नेटजियो या एनिमल प्लेनेट पर बनते हैं उसके बाल बराबर भी नहीं था ये। बस लफ्फाजी करवा लो, गालियाँ सुनवा लो, बीच-बीच में टूँ-टूँ की आवाज सुनवा लो, अरे यार दो ना गाली, क्योंकि इन सीरियलों को देखना गाली खाने से कम नहीं है। इससे हमें पता चलता है कि भारतीय मीडिया और ऐसे शो मेकर दर्शकों को मूर्ख ही समझते हैं।

राखी सावंत के फर्जी स्वयंवर के बारे में न्यूज चैनलों ने देश के सैंकड़ों अहम घंटे बर्बाद कर दिए। इस देश की 110 करोड़ की आबादी है। विकराल समस्याएँ हमारे आगे मुंह बाए खड़ी रहती हैं, लेकिन इन दो कौड़ी के न्यूज चैनलों को वो सब नहीं दिखता। उन्हें सिर्फ माँस दिखता है। हिराइनों के नितंबों के रूप में, कमर या उरोजों पर जमा हुआ या हीरो-हिरोइनों के मुखड़ों पर। बाकायदा दोपहर में तो टीवी सीरियलों के ऊपर तथा सुबह-शाम फिल्मों के ऊपर न्यूज चैनल्स मसाला कार्यक्रम दिखाते हैं। कई बार तो प्राइम टाइम का 'विशेष' भी इसी के इर्द-गिर्द घूमकर चकरघिन्नी हो जाता है। चमड़ी का यह कैसा मायाजाल कि असल मुद्दे परदे के पीछे समाते चले जा रहे हैं। आम आदमी हैरान-परेशान है लेकिन देश के कमजोर चरित्र के मीडिया को वह सब नहीं दिखता। एनटरटेनमेंट चैनल विलेन महिलाओं से लबालब सीरियल बना रहे हैं और न्यूज चैनल उनकी हाँ में हाँ मिलाते हुए उनके प्रोमो, प्रमोशन इवेंट और उनपर विशेष कार्यक्रम दिखा रहे हैं। यह सब बताता है कि न्यूज चैनल हमारे देश में दरअसल नॉन न्यूज हैं, फर्जी हैं, टेलेंट विहीन हैं और 24 घंटे के नाम पर सिर्फ टाइम पास कर रहे हैं। तभी तो कभी इन्हें रावण और श्रीलंका याद आ जाते हैं, तो कभी कोई उड़नतश्तरी दिख जाती हैं, कभी कोई ऐसा आदमी मिल जाता है जो मरकर फिर से जी उठा हो। दर्शकों को ऐसे चैनल्स का बहिष्कार करना चाहिए नहीं तो यह धमकी देना चाहिए कि ऐसे चैनलों पर विज्ञापन देने वाली कंपनियों के प्रोडक्ट वह नहीं खरीदेंगे, ऐसे में उन चैनलों के विज्ञापन बैठ जाएँगे और उनका भट्टा भी देर-सबेर बैठ जाएगा। इससे उनको कम से कम कुछ सबक तो मिलेगा।

रियेलिटी शो के नाम पर इतना रुपया बर्बाद करने वाले मीडिया को देश की साधारण समस्याओं और आम आदमी का शो दिखाना चाहिए जो वाकई रियल होगा और देश की रियेलिटी को सामने लाएगा। लेकिन अपने मूल फर्ज से भटके हुए न्यूज चैनलों ने आम आदमी को तो अपने पर्दे से गायब ही कर दिया है। उन्हें उनका फर्ज याद दिलाना हमारी जिम्मेदारी है नहीं तो हम दर्शक सिर्फ तरस खाने के लायक रह जाएँगे और हमें सिर्फ वही दिखलाया जाता रहेगा जो हम वाकई देखना नहीं चाहते। हमें अपने को लाचार नहीं बनाए रखना है।

आपका ही सचिन........।

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