November 23, 2008

क्या विकास का मतलब सिर्फ महानगर हैं?-भाग-1

आजकल टीवी पर विज्ञापनों का दौर चल रहा है, अलग-अलग कार्यक्रमों का दौर भी चल रहा है, भारत के सशक्त ३५ करोड़ लोगों के मध्यमवर्ग के यहाँ दर्शन हो रहे हैं (उसी मध्यमवर्ग के जिसके अच्छा खाने से आजकल अमेरिका को पेट में दर्द हो रहा है)...तो टीवी पर और उसके अनेक कार्यक्रमों में बताया जा रहा है कि कैसे भारत का चेहरा बदल रहा है...मैं भी रोजाना इन सब को देखता हूँ...यानी भारत के नए फैशनेबल चेहरे को देखता हूँ और सोचता हूँ कि वाह क्या स्टालिश जीवन जी रहे हैं भारतीय...तरक्की की क्या बयार बह रही है...???? वाह॥वाह...
लेकिन, अरे॥अरे रुकिए....अचानक मेरे मन में एक बात आती है कि जो कुछ भी दिखाया जा रहा है वह तो सिर्फ महानगरों को सामने रखकर दिखाया जा रहा है...यानी तरक्की की जो तस्वीर पेश की जा रही है वह दिखाने वाले चिकने चेहरे दिल्ली, मुंबई, बंगलौर आदि के हैं...। तो मैं दुखी हो गया....लगा कि कूड़े का ढेर बनते यह शहर तो मैंने भी देखे हैं इनमें जो तरक्की हो रही है इनकी आबादी का ही कुछ प्रतिशत है....तो क्यों ना इस बात की विवेचना की जाए। तो दोस्तों भारत की कुल आबादी यानी ११० करोड़ में से ७०-८० करोड़ लोग तो सिर्फ गाँवों और छोटे शहरों में ही रहते हैं....१०-२० करोड़ लोग मध्यम या कहें बी ग्रेड सिटीज में रहते हैं.....जैसे की मैं इंदौर शहर में रह रहा हूँ जहाँ की आबादी २५ लाख है...और बकाया १० करोड़ लोग देश के ५-६ महानगरों में रह रहे हैं....तो क्या असली भारत की तस्वीर ये १० करोड़ लोग हैं....और यह तो बड़े शहरों में रहने वाले ही ज्यादा अच्छी तरह बताएँगे कि उन दस करोड़ में से सुखपूर्वक जीवन कितने जी पा रहे हैं......दिल्ली-मुंबई जहाँ की कुल आबादी लगभग ४ करोड़ है में लोग किस तरह भेड़-बकरियों के बाड़े वाला जीवन जी रहे हैं यह मैंने देखा है....हाँ दिल्ली में जब मैं लाइफ स्टाइल दिखाने वाले चैनल की किसी खूबसूरत एंकर को टीवी कैमरे के सामने खड़े होकर बोलते हुए देखता था तो उसके पीछे मुझे कोई ना कोई मल्टीप्लेक्स, शापिंग कॉम्प्लेक्स या शापिंग मॉल जरूर दिख जाता था....तो क्या वो चेहरा वाकई विकास वाला है...?????
मैंने राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, बिहार और झारखंड के गाँवों और छोटे शहरों को काफी करीब से देखा है....यह इसलिए क्योंकि मैं मध्यप्रदेश में पैदा हुआ और यहाँ पत्रकारिता शुरू की....राजस्थान में चार साल रहकर घूम-घूमकर काम किया....उत्तरप्रदेश का मैं मूल रूप से रहने वाला हूँ, वहाँ परिवार के काफी लोग हैं.....जब दिल्ली में रहता था तो काम के सिलसिले में बिहार और झारखंड जाने का मौका मिलता था.....तो दोस्तों उन दिनों चीजों को बहुत ध्यान से देखा......बाकी जितना भी हिन्दुस्तान घूमा उसमें भी गाँवों और छोटे शहरों की तस्वीर को ध्यान से देखा-समझा...तो स्थिति वाकई चिंताजनक है.....राजनेताओं की बात लेख की अगली किश्त में करूँगा लेकिन जब हम शहरों में रहने वाले लोगों को वो लोग बेवकूफ बना देते हैं तो बेचारे गाँववालों और छोटे शहर में रहने वालों की क्या बिसात....?????? वो लोग अभावों में रह रहे हैं और अगर कोई उनके घर सेटेलाइट चैनल मय टीवी लगवा दे तभी उन्हें पता चलेगा कि उनका देश इतना विकास कर गया है और भारत के मध्यम वर्ग से अमेरिका भी डर रहा है.....यानी उन्हें नहीं मालूम कि हम लोग ख्वाब में जी रहे हैं....उन्हें नहीं पता कि लोगों की लाइफ स्टाइल बदल गई है....उन्हें नहीं पता कि महानगरों को दिखा-दिखा कर भारत की नकली पहचान बनाए जाने की कोशिश की जा रही है....उन्हें तो बस यही पता है कि आधारभूत संरचनाओं की कमी से जूझते वे कैसे तो भी अपना जीवन निकाले जा रहे हैं....उन्हें नहीं पता कि उनका देश कब आर्थिक महाशक्ति बन चुका है.....वे तो बस रोजी-रोटी के लिए अपनी जमीन से पलायन कर शहरों की ओर भाग रहे हैं....तो दोस्तों बकाया इस लेख के भाग-२ में.....
आपका ही सचिन......।

No comments: