तो दोस्तों, अपनी बात हो रही थी भारत के असल को लेकर यानी गाँवों और छोटे शहरों को लेकर और उनमें हो रही तरक्की को लेकर॥तो बड़े शहरों को देश का इस मायने में आईना माना जा सकता है कि दुनिया में किसी भी देश के कुछ मुख्य शहर ही अपनी पहचान बना पाते हैं...मसलन अगर मैं कहूँ कि लियोन कहाँ है तो आप शायद नहीं बता पाएँगे लेकिन पूछूँ कि पेरिस कहाँ है तो आप तुरंत बता देंगे कि वह फ्रांस की राजधानी है...जबकि लियोन भी फ्रांस का एक महत्वपूर्ण शहर है...इसी तरह आप ब्रिटेन, इटली, स्पेन या अन्य किसी भी देश के दो-तीन शहरों के ही नाम बता पाएँगे...तो मतलब कि महानगर ही किसी देश को बाहर पहचान दिलाते हैं....
तो नई दिल्ली भारत की राजधानी है, मुंबई व्यावसायिक राजधानी है, कोलकाता सांस्कृतिक राजधानी है और बैंगलोर देश की आईटी कैपिटल है...इस शहर को इसलिए बीच में लाना पड़ा क्योंकि यही वो शहर है जो इस समय अमेरिका या अन्य योरपीय देशों में अधिक लोकप्रिय है...क्योंकि यह भारत के आईटी इंजीनियरों की खदान है.....तो अगर इन दो-चार शहरों का सरकार ने विकास कर भी लिया तो क्या बड़ी बात है....असल विकास छोटे स्तर तक भी होना चाहिए....माना भारत के पाँच लाख गाँवों में विकास होना इतनी जल्दी संभव नहीं है लेकिन १५ हजार छोटे शहरों में तो कीजिए.....चलिए यहाँ भी नहीं कीजिए तो बी ग्रेड नगरों में तो कीजिए, उनकी संख्या तो १०० के अंदर ही है.....अब एक मजेदार उदाहरण देता हूँ......चूँकी मैं आजकल इंदौर में रह रहा हूँ तो यहीं की बात करूँगा.....तो राजनेताओं की यह सोच होती है कि शहर हो या यहाँ के लोग वो जाएँ सब भाड़ में, बस उन्हें चार साल तक हाशिए पर रखकर सिर्फ चुनावी साल में खुश कर दिया जाए.....(इस विषय पर मैंने एक लेख भी लिखा है जो मेरे इसी पोर्टल पर विचार पृष्ठ सेक्शन में बढ़ती महंगाई और सरकारी पैंतरे हैडिंग से उपलब्ध है).....तो इंदौर में भी कुछ एेसा ही हो रहा है.....पूरा शहर खुदा पड़ा है.....तमाम चौराहे बंद पड़े हैं.....सब जगह जाम लगा रहता है......आप सोचेंगे कि एेसा क्यों हो रहा है तो मैं बताता हूँ....एकसाथ पूरे शहर की सड़कें बनवाई जा रही हैं.....नगर निगम, इंदौर विकास प्राधिकरण, और राज्य सरकार सब एकसाथ एशियन विकास बैंक का रुपया शहर में झोंक रही हैं.....यह रूटीन वर्क कभी का हो जाना चाहिए था लेकिन हो रहा है चुनावी वर्ष में.....नवंबर २००८ यानी इसी साल के अंत में एसेंबली इलेक्शन हैं तो राज्य सरकार ये काम करा रही है और साथ ही कह रही है कि सबकुछ वो ही करा रही है......मतलब एशियन विकास बैंक या केन्द्र सरकार कहीं हैं ही नहीं दावों में, जबकि रुपया सब उन्हीं का है.....तो एेसी मीठी गोली जनता को मिलती रहती है....इसमें एक बात जोड़ना चाहता हूँ कि जून का महीना बारिश का है लेकिन फिर भी कई जगह खुदाई चालू है.....अगर इस बीच बारिश आ गई तो सरकारी कोशिशों का रायता सड़कों पर फैला मिलेगा और लोगों की परेशानी पहले के मुकाबले कहीं अधिक बढ़ जाएगी, लेकिन सरकारें नहीं मानतीं....तो यह हाल इस शहर का तब है जब मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान जब-तब इंदौर को प्रदेश का सिंगापुर बनाने की दम भरते रहते हैं.....अब वे अपने शासनकाल के आखिरी वर्ष में इंदौर को दो महीने के भीतर सिंगापुर बनाना चाहते हैं.....तो यह उदाहरण आप सभी शहरों पर धरकर रख सकते हैं....सबकुछ बिल्कुल सटीक ही बैठेगा....इसी प्रकार उत्तरप्रदेश के बी-ग्रेड शहरों की तो बात ही छोड़िए....वहाँ मायावती मुख्यमंत्री हैं....इसलिए मैं मानता हूँ कि मेरे बिना लिखे ही आप लोग मेरी बात समझ रहे होंगे.....एेसे में गाँवों का विकास और भारत का विकास संबंधी दावे सिर्फ बेमाने स्वप्न ही नजर आते हैं.....महानगरों की नुमाइश और उनकी तरक्की असली भारत और उसकी तरक्की नहीं है बंधु....।आशा करता हूँ कि आप लोग मेरी बातों से सहमत होंगे॥
आपका ही सचिन.........।
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