November 23, 2008

बच्चों पर दुनिया को बचाने का बोझ!



आजकल हर घर में आपको बच्चे टीवी से चिपके मिल जाएँगे। टीवी पर क्या चल रहा होगा, यह बताने की जरूरत नहीं है। निश्चित रूप से वो कार्टून सीरियल ही हैं। अगर आप उन कार्टूनों की समीक्षा करेंगे तो यह साफतौर पर पता चलेगा कि उनका सिर-पैर कुछ नहीं होता है। कुछ कार्टून सीरियलों को छोड़ा जा सकता है लेकिन अधिकतर की हालत यही है। इनमें जो हंसी-मजाक वाले हैं उनकी तो खैर कोई बात नहीं लेकिन एक्शन और वो भी बिना वजह खतरनाक साबित हो सकते हैं। एक्शन से यहाँ मेरा तात्पर्य हिंसा से है। लेकिन मैं यह बात कहने इस मंच पर नहीं आया हूँ। यह हम सबको पता है, कई अध्ययनों से साबित हो चुका है कि अगर बच्चों को हिंसा वाले कार्टून ज्यादा दिखाए जाएं तो वह भी हिंसक प्रवृत्ति वाले हो सकते हैं। अमेरिका के कई स्कूलों में हुई हिंसक घटनाएँ (जिनमें बच्चों ने बंदूकों से अपने टीचर और सहपाठियों को भून दिया था) इस बात की गवाह भी हैं......लेकिन दोस्तों मेरा पक्ष यहाँ दूसरा है।

आजकल मैं टीवी को थोड़ा विवेचनात्मक दृष्टि से देख रहा हूँ। कई चैनलों को भेदने की कोशिश कर रहा हूँ। बच्चों वाले कार्टून सीरियलों पर भी मेरी नजर पड़ी। तो मैंने पाया कि कार्टून सीरियल भले ही कितना ही अलग किस्म का क्यों ना हो, उसमें मुख्य नायक और नायिका (जो निश्चित तौर पर बच्चे ही होते हैं) पर एक ही दबाव मुख्य रूप से काम करता है, और वो है दुनिया को बचाने का दबाव। तो दोस्तों आपने भारतीय फिल्मों में यह बीमारी नहीं देखी होगी लेकिन अमेरिकी या कहें हॉलीवुड फिल्मों में यह बीमारी काफी देखने को मिलती है कि वो लोग अमूमन दुनिया को बचाते फिरते हैं। कहीं एलियन्स का हमला हो रहा है तो कहीं कोई सनकी वैज्ञानिक है, तो कभी भूत-पिशाच है तो कभी किसी देश का भयानक षडयंत्र लेकिन इस सबसे दुनिया पर तुरंत संकट आ जाता है और अमेरिकी अमूमन दुनिया को बचाने में लग जाते हैं और सफल भी हो जाते हैं। तो पिछले लगभग दो दशकों से ऐसा चल रहा है। पिछला एक दशक भारत में सेटेलाइट टीवी का स्वर्णिम युग था जब यह घर-घर तक पहुँचा। कार्टूनों की बाढ़ सी आ गई इस दौर में......दुनिया भर के बच्चों को बताया गया कि योग्य बच्चे दुनिया को बचाते हैं।

तो इस सबका एक कुप्रभाव है। बच्चों के मन में गहरी पैठी यह बात बड़ेपन तक भी समाहित रहती है कि उन्हें इस जीवन में कम से कम इतनी बड़ी जिम्मेदारी तो एक बार मिलनी ही चाहिए कि वो दुनिया को बचा सकें। ये अलग बात है कि बाद में उन्हें पता चलता है कि घर चलाना ही कितना मुश्किल गुजर रहा है, इस दुनिया को क्या खाकर बचाएँगे। आप जिस कार्टून सीरियल को देखेंगे यह पाएँगे कि ये बच्चों को ऐसी शिक्षा दे रहे हैं जिनसे वो सीखेंगे तो कुछ नहीं हाँ, इस डिप्रेशन में जरूर आ जाएँगे कि भगवान ने उनकी भूमिका इस संसार में बहुत छोटी लिखी। इस दृष्टि से अगर कार्टून सीरियल वाले सोचें और कुछ ऐसा करें कि ये बच्चे दुनिया बचाने के अलावा एक बेहतर इंसान बनने के सपने देखें तो शायद संसार सुधर जाएगा..........और वाकई ये दुनिया भी बचेगी।

आपका ही सचिन.......।

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