November 21, 2008

चुनाव प्रक्रिया सुधरी लेकिन नेता नहीं



हमारे देश भारत के पाँच राज्यों में इस समय चुनावी बयार बह रही है। निर्वाचन आयोग की सख्ती के कारण अब चुनावों का वो रंग तो नहीं रहा लेकिन अब भी यह देश का सबसे बड़ा मंच होता है जहाँ इतने किरदार एक साथ इतनी भूमिकाओं में होते हैं। हालांकि ये तय है कि ये किरदार सब नाटक ही कर रहे होते हैं लेकिन वो बराबर महसूस करवाते रहते हैं कि वो सब कुछ सच-सच कर रहे हैं।
दोस्तों, मैं जो बात कहना चाह रहा हूँ वो ऊपर वाले पैराग्राफ में नहीं है। चूँकी मेरी नौकरी ही इस प्रकार की है कि सबसे अधिक राजनीति देखने को मिलती है इसलिए इसे थोड़ा करीब से देख पा रहा हूँ। सोचा कि कुछ आप लोगों से भी शेयर कर लूँ। तो इस देश में पहले जो चुनाव होते थे उनके बारे में आज सोचकर भी रूह कांप जाती है। अगर बच्चों की उस दौरान परीक्षाएँ हैं तो समझो वो गए। पढ़ नहीं सकते। भोंपूओं की चीख और देशभक्ति के वो गीत (सब झूठ-झूठ) मुझे आज तक याद हैं......उन्होंने मेरे कितने पेपर बिगड़वाए ये भी मुझे याद है। टीएन शेषन के बाद कुछ बदला और निर्वाचन आयोग ठीक वैसे ही उठ खड़ा हुआ जैसे चीनी ड्रेगन के उठने की कथाएं प्रचलित हैं। आयोग का शिकंजा कसते-कसते इतना कस गया कि आज ये ग्रेट इंडियन ड्रामा सिमटकर सिर्फ १५ दिन का रह गया है जबकि पहले कई महीनों का हुआ करता था। १५ दिन इसलिए क्योंकि अब नामांकन भरने, उम्मीदवारों द्वारा नाम वापस लेने और चुनाव प्रचार के थमने के बीच सिर्फ १५ दिनों का अंतर रह गया है। तो मतलब हम चैन में हैं.....। लेकिन रुकिए बात अभी खत्म नहीं हुई है....
कुछ दशक पहले चुनावी शोर भले ही ज्यादा था लेकिन नेता भी अपेक्षाकृत ईमानदार थे। १९८० के दशक से नेताओं ने अपने गिरेबान में झांकना बंद कर दिया। १९९० के दशक में नेता अरबपति हो गए और नई शताब्दी में ये खरबपति हैं। यानी इतनी दौलत कि आप सोच भी नहीं सकते। कई हजार करोड़ों रुपए के आसामी हैं ये नेता। ये लालची जानते हैं कि सत्ता परिवर्तन के बाद ये पकड़े जाएँगे लेकिन ये डरते नहीं हैं बल्कि अपनी विपक्षी पार्टी वालों को पटा भी लेते हैं। ये उन्हें समझा देते हैं कि जब हम सत्ता में आएँगे तो हम तुम्हारा ख्याल रखेंगे इसलिए अभी तुम हमारा ख्याल रखो। मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के लिए यही कहा जाता है कि वह अपनी पार्टी वालों का काम बाद में और विपक्षी पार्टी वालों का काम पहले करते थे। अब सब अपने रिटायरमेंट का ख्याल पहले रखते हैं।
खैर, इस समय मध्यप्रदेश में विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं...कोई मीडिया को पटा रहा है तो कोई जनता को। पहले कांग्रेस वोट कबाड़ने के लिए शराब के पव्वे बाँटवाया करती थी, इस बार भाजपा उससे आगे निकल गई है। उसका एक नेता देहाती इलाकों में चाँदी की पायजेब (पायल) और ५०० के नोट बँटवा रहा है। चुनावी सभाओं में वैसे ही बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं जैसे कि पहले होते थे....अंतर बस इतना था कि पहले के मुकाबले ये वादे करने वाले नेता इस बार कहीं अधिक धूर्त, मक्कार, फरेबी और जालसाज हो गए हैं। खैर, जनता को आदत हो गई है ये सब देखने की, हमें भी है लेकिन बस टीस और ठंडी आह के साथ ये सब देखते रहते हैं। चुनाव में अभी सप्ताह भर और है। नेताओं की खाल की कुछ परतें इस दौरान और देखने को मिलेंगी। हम उन परतों को भी देखना चाहते हैं ताकि अपने बच्चों को इनसे सावधान कर सकें। हम इस सर्कस को बड़े ध्यान से देख रहे हैं। हम मायूसी और लाचारी से देख रहे हैं कि हमारा देश कैसे लोगों के हाथों में जा रहा है........हम निराशा से इन धूर्तों के हाथ अपने देश का भविष्य जाते देख रहे हैं क्योंकि सभी पार्टियों में बुरे लोग हैं। कोई अधिक बुरा है तो कोई कम बुरा, लेकिन हैं सभी। पता नहीं कोई अच्छा व्यक्ति इस राजनीति में क्यों नहीं आ रहा है......?? हम उनका इंतजार कर रहे हैं।
आपका ही सचिन........।

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