November 19, 2008

क्या ये भी है मंदिर की राजनीति..??




दोस्तों, आज की एक बड़ी खबर है। वो दिन में टीवी चैनलों पर चल रही थी लेकिन आप लोगों को गुरुवार सुबह के अखबारों में वो शायद ही दिखे। खबर में बताया जा रहा था कि गुजरात की राजधानी गाँधीनगर में हाईकोर्ट के आदेश की पालना करते हुए मंदिरों को तोड़ा जा रहा है। इसी के तहत कल देर रात वहाँ के एक मशहूर साईं बाबा मंदिर को तोड़ दिया गया है। इस मंदिर के तोड़ने का स्थानीय रहवासियों ने विरोध भी किया था लेकिन प्रशासनिक अमले ने उनकी एक ना सुनी। खबर में आगे बताया गया कि गाँधीनगर में ऐसे एक-दो मंदिर नहीं बल्कि अभी तक १२४ मंदिर तोड़े जा चुके हैं। ये वो मंदिर हैं जो अवैध अतिक्रमण करके बनाए गए थे और या तो वो बीच सड़क-चौराहे पर बने थे या किसी सरकारी जमीन पर बना लिए गए थे।

दोस्तों जब मैं इस खबर को देख रहा था तो मुझे लग रहा था कि इस खबर की न्यूजवैल्यू फिलहाल किसी भी टीवी के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं होगी। कारण, कि ये सब मंदिर हैं....हाँ अगर कोई मस्जिद होती तो हमारा मीडिया पागल हो गया होता। वो टूट पड़ता गुजरात की सरकार पर और वहाँ के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी पर। पहले से ही मीडिया के घेरे में रहे मोदी पर तमाम तीर चलाए जाते, उन्हें खूँखार और सांप्रदायिक कहा जाता। लेकिन उसी हिन्दूवादी मोदी को अब क्या कहा जाए॥??हालांकि इन मंदिरों को तोड़े जाने का मैं बिल्कुल विरोधी नहीं हूँ और मानता हूँ कि अवैध वस्तुओं को ऐसे ही नेस्तानाबूद कर दिया जाना चाहिए...लेकिन वो सिर्फ मंदिर ही ना हों, मस्जिदें और मजारें भी हों। गिरजेघर और लोगों के खुद के भी घर हों। क्योंकि ऐसे निर्माण आस्था के चलते नहीं होते, बल्कि अवैध संपत्ति बनाने या अतिक्रमण के लिए ही किए जाते हैं। इसमें मेरा एक पक्ष और है.......जो टीवी चैनल इस खबर को दिखा रहा था उसने अपनी खबर की हैडिंग दी थी, कि भगवान को भी नहीं बक्शा......अरे भाई, भगवान कहाँ से बीच में आ गए.........क्या अपने भक्तों से स्वयं भगवान ने कहा था कि मेरा मंदिर बीच सड़क पर बना दो। और भगवान इतना छोटा भी नहीं है कि बीच सड़क पर बने एक मंदिर के अंदर घुसकर बैठे। मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे और चर्च भगवान को याद करने के स्थान हैं, उनके रहने के नहीं॥। मैं इस बात का हामी हूँ कि ये स्थान आबादी से कुछ दूर हटकर या थोड़ी खुली जगह पर बनाए जाएँ ताकि जब हम उनको याद करने के उद्देश्य से किसी धार्मिक स्थल में प्रवेश करें तो हमारा ध्यान शोर या भीड़ की वजह से भटके नहीं।

खैर, मोदी सरकार ने जो किया उसकी तारीफ की जानी चाहिए, लेकिन हमारे देश के मीडिया ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। हमारे देश का मीडिया हमेशा सनसनी की खोज में रहता है और इस वाक्ये में उसे सनसनी कहीं भी दिखाई नहीं दी। वो जनता है कि नरेन्द्र मोदी घनघोर हिन्दूवादी नेता हैं फिर भी प्रशासनिक सच्चाई से उन्होंने मुंह नहीं मोड़ा और गुजरात हाईकोर्ट के आदेश जस के तस मनवाए....लेकिन मीडिया को यह सब नहीं दिखा। जबकि इसी प्रकार के आदेश लगभग सभी राज्यों में वहाँ के हाईकोर्ट ने दे रखे हैं लेकिन कोई भी सरकार उन आदेशों को पूरा करवाने के लिए कभी हिम्मत नहीं दिखा पाती। गुजरात सरकार ने यह काम करके दिखाया है लेकिन किसी का भी ध्यान उसपर नहीं गया।दोस्तों, ये एक ताजा उदाहरण है जिससे हमें पता चलता है कि इस देश में घटनाओं को देखने का तरीका किस तरह का है। खैर, देखना ये है कि जब इसी प्रकार की कार्रवाई के चलते गुजरात या अन्य किसी प्रदेश में मस्जिदें, दरगाहें या गिरजेघर टूँटेंगे तो हमारे देश का मीडिया उन्हें किस दृष्टि से देखेगा॥????

आपका ही सचिन....।

1 comment:

rafik visaal said...

हाँ,ये भी मन्दिर की ही राजनीति है क्योंकि नरेंद्र मोदी एक राजनेता हैं कोई संत नहीं हैं .और मेरे ख़याल से राजनीति में जो भी क़दम उठाया जाता है उसमें नफ़ा -नुक़सान भी शामिल होता है .रहा सवाल मीडिया का तो उन्हें सिर्फ़ गरमा -गरम खबरें ही दिखाई देती है .वैसे भी मीडिया की निगाह में मोदी साहब की छवि दूध की धुली नहीं है .उनके बुरे कामों पर अच्छाई की सफेदी नहीं पोती जा सकती .नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली ये बिल्कुल वैसा ही है .