हमारे देश की जान मुंबई ६० घंटे तक बंधक बनी रही। इस हमले में १७५ लोग मरे गए और ३०० से ज्यादा घायल हो गए, इससे पहले बंगलौर और बाद में अहमदाबाद में बम विस्फोट हुए। अभी गए मई में जयपुर जैसे शांत, धीर-गंभीर और ऐतिहासिक नगर में भी बम धमाके हुए थे जिनमें ६८ लोगों की जानें गई थीं। इसके बाद देश की सिलीकॉन वैली कहे जाने वाले नगर बैंगलौर पर आतंकवादियों ने निशाना साधा था और फिर अपनी व्यापारिक जीवटता के लिए मशहूर गुजरात की राजधानी अहमदाबाद को निशाना बनाया। आतंकवादियों ने इस बार वहाँ के सिविल अस्पताल को भी निशाना बनाया। अस्पताल में हुए धमाके में २३ लोग एक ही झटके में मारे गए। मुंबई में होटल में खाना खा रहे, कॉफी शॉप में कॉफी पी रहे और स्टेशनों पर ट्रेन का इंतजार कर रहे बेकसूर लोगों को निशाना बनाया गया। वाह क्या शैली है आतंकवादियों की और उन तथाकथित जिहादियों की जो इस्लाम के नाम पर ऐसा वहशियाना खेल खेल रहे हैं। उन्होंने उस जगहों को भी नहीं बक्शा जहाँ जो लोग ठीक होने की, अपने जीवन को बचाए रखने, आराम करने की या नए सफर को शुरू करने की कामना के साथ आते हैं।
शायद इस देश के मुस्लिम मेरी बातों से सहमत होंगे, कि मैं इन जिहादियों को हिजड़ा मानता हूँ। ये इस्लाम के नाम पर इस देश के सीधे-सच्चे नागरिकों पर कहर बरपा रहे हैं और एक धर्म विशेष को इतना बदनाम किए दे रहे हैं कि आम समाज में उस धर्म के लोगों को जब-तब ये सफाई देनी पड़ती रहती है कि उनका आतंकवाद से कोई संबंध नहीं हैं। मैं उन जिहादियों की तरह इस देश की सरकार और उसमें बैठे नेताओं को भी हिजड़ा मानता हूँ जो हर वहिशियाना घटना के बाद ये कहकर चुप रह जाते हैं कि आतंकवाद को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। भई वाह, क्या कदम उठाया है इन नेताओं ने आतंकवाद के खिलाफ। इन नेताओं के घर का आज तक कोई सदस्य आतंकवाद की सूली पर चढ़ा नहीं है, नहीं तो ये लोग ऐसे छक्कों की तरह बातें नहीं करते।
एक रिपोर्ट के मुताबिक अभी तक सिर्फ जम्मू-कश्मीर में ही आतंकवाद की सूली पर एक लाख से ज्यादा लोग चढ़ककर अपनी जान गंवा चुके हैं। इनमें से लगभग ३० हजार तो सुरक्षा बलों के जवान हैं। इतने जवान तो भारत ने अभी तक लड़े चारों युद्धों में भी नहीं खोए हैं। इसी प्रकार देश के अन्य हिस्सों में भी पिछले दशक में लगभग ५००० लोग आतंकवाद का शिकार होकर काल के गाल में समा गए हैं। भारत सरकार और क्या बुरा देखना चाहती है। वहीं दूसरी ओर अमेरिका है, जिसकी दो इमारतें गिरी, ३५०० लोग मरे कि वो पगला गया। उसने अफगानिस्तान में तालिबानों की सारी खंदकें खोद मारीं और उन्हें बिलों में से चूहों की तरह निकाल-निकाल कर मारा। फिर वो इराक पर चढ़ बैठा, अब ईरान की तैयारी कर रहा है। पिछले एक दशक में जो मुस्लिम राष्ट्र अमेरिका को इराक या ईरान की शह पर आँखें दिखाते थे वो अब चुप हैं क्योंकि उन्होंने देख लिया है कि अमेरिका के ३००० लोग मरे तो उसने बदले में इराक और अफगानिस्तान में १५ लाख लोग मार दिए। अब लड़ाई सिर्फ ईरान और अमेरिका के बीच की रह गई है। यहाँ अमेरिका के पक्ष की बात नहीं हो रही है। बात हो रही है तुरत-फुरत कार्रवाई करने की। हमारे देश की जनसंख्या ज्यादा है तो इसका यह मतलब तो नहीं कि कोई भी यहाँ मारा जाता रहे और हम सिर्फ अफसोस जताकर रह जाएँ। इस देश की एक करोड़ ११ लाख की संख्या वाली सेना और सुरक्षा बल क्या कर रहे हैं जो चीन के बाद पूरे विश्व में सबसे ज्यादा हैं। इस सेना का वार्षिक बजट एक लाख करोड़ है और इसके पास एटम बम तथा हाइड्रोजन बम हैं। अगर अभियान चलाकर यह सोच लिया जाए कि इन आतंकवादियों को ढूँढकर सरेराह, खुले चौराहे पर गोली मार दी जाएगी या उनके समस्य स्त्रोतों को उड़ा दिया जाएगा तो कौन है जो फिर इस तरह की हरकत करेगा?????......... लेकिन ये हम भी जानते हैं कि ऐसा हो नहीं पाएगा, आतंकी पकड़े भी जाएँगे तो उनपर मुकदमा चलेगा और या तो वे छूट जाएँगे या फिर हमारे देश की रोटियाँ तोड़ेंगे। ज्यादा बुरा हुआ तो ठीक उसी तरह छूट जाएँगे जैसे भारत का आईसी ८१४ विमान काबुल में अपह्रत करके ले जाया गया था और देश को जिन तीन आतंकियों को छोड़ना पड़ा वो आजतक पूरी दुनिया में कहर ढहा रहे हैं। ना तो वो पकड़े गए और ना ही उन्हें छुड़ाने वाले और उस जहाज को बंधक बनाने वाले वो छह अन्य आतंकी जिनके लिए भारत कहता रहा है कि वो पाकिस्तान में रह रहे हैं।
हमारे देश का रक्षा बजट इस वर्ष एक लाख ५ हजार करोड़ का है। यह रकम कितनी है यह बताने की जरूरत नहीं लेकिन यह रुपया है तो हमारी यानी जनता की जेब का ही ना????........ तो क्यों ना हम सरकार से हिसाब पूछें कि जब इस देश की सेना और सुरक्षा बल आम नागरिकों की रक्षा करने में समर्थ ही नहीं हैं तो क्या फायदा इतनी विशालकाय सेना का पेट भरने से। और अगर आप उस सेना को मौका नहीं दे रहे हो तो दो लेकिन देश के नागरिकों को मरने से तो रोको। अब बाहर से हमले नहीं होने वाले, पहले देश के अंदर से हो रहे हमलों से तो हम बचें। जैसे कहा जा रहा है कि मुंबई में आतंकियों की मदद कई स्थानीय लोगों ने ही की है।
दोस्तों, मन उद्वेलित है कि क्या हम लोकतंत्र के काबिल नहीं हैं। अगर हैं तो हम क्यों अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी या इटली जैसे अनुशासित नहीं है और अगर यहाँ वोटतंत्र हावी है तो क्यों ना यहाँ चीन जैसा तानाशाही तंत्र स्थापित कर दिया जाए जो वोटों की नहीं फिर सिर्फ और सिर्फ अनुशासन की बात करेगा। इस देश में इंदिरा गाँधी के हत्यारों की फाँसी लगभग २० साल बाद हुई। संसद पर हमले का मुख्य आरोपी हमारे यहाँ की रोटी अभी तक तोड़ रहा है। क्या हम हमेशा पॉपुलर डिसीजन लेने के चक्कर में ही लगे रहेंगे। जब तक हम आतंकवादियों के मन में खौफ नहीं भरेंगे तब तक उन्हें शह मिलती रहेगी।
इस कांग्रेसी सरकार को देखिए, टाडा बनाया जो बाद में हटा दिया, भाजपा ने पोटा बनाया तो उसे भी हटा दिया। अब बैठो हाथ पर हाथ धरे। आतंकवादी ई-मेल करते हैं और बम से कुछ लोगों को उड़ा देते हैं। आपको याद आया कि अभी तक हुई बम विस्फोटों की घटनाओं के बाद कितने लोग पकड़े गए या कितनों को सजा हुई। हमें बीमारी है भूलने की। इतनी भयानक बातें हम भूल जाते हैं। हमें उन मासूम परिवारों की सिसकियाँ सुनाई ही नहीं देतीं जिन्होंने अपने सदस्य इन गैर जरूरी विस्फोटों में खोए हैं। क्या पता ये इंडियन मुजाहिदीन और हैदराबाद डेक्कन मुजाहिदीन सरीखे आतंकी संगठन इन विस्फोटों को करके और चंद लोगों की जानें लेकर कैसे इस संसार में इस्लाम को स्थापित कर पाएँगे। और मान भी लेते हैं कि अगर उन्होंने ऐसा कर भी लिया तो वो संसार सिर्फ आतंकवादियों का ही होकर रह जाएगा और उसमें इस्लाम को मानने वाले सच्चे लोग भी नहीं रह पाएँगे। लाशों पर सजा संसार सुखी लोगों के लिए नहीं हो सकता।
आपका ही सचिन......।
November 29, 2008
आखिर चाहते क्या हैं ये जिहादी?????- भाग 1
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2 comments:
इस दुखद और घुटन भरी घड़ी में क्या कहा जाये या किया जाये - मात्र एक घुटन भरे समुदाय का एक इजाफा बने पात्र की भूमिका निभाने के.
कैसे हैं हम??
बस एक बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह खुद के सामने ही लगा लेता हूँ मैं!!!
बता रहे वे दुनियाँ को, मोह-मद-पंथ महान.
आप मोह को छोङ दें, तभी सकेंगे जान.
तब ही सकेंगे जान,कि वे क्या करना चाहते.
जान के उनको आप, सही उत्तर दे पाते.
कह साधक कवि,सता रहे हैं वे दुनियाँ को.
मोह-मद-पंथ महान, बताते वे दुनियाँ को.
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