ओलिंपिक के इतिहास की सबसे दुर्भाग्यपूर्ण घटना है म्यूनिख हत्याकांड। 1972 में वेस्ट जर्मनी के म्यूनिख शहर में आयोजित समर ओलिंपिक के दौरान यह घटना घटी। इस जघन्य हत्याकांड में 11 इजराइली खिलाड़ी और कोचों को मौत के घाट उतार दिया गया था। इसके लिए यासिर अराफात के संगठन ' फतह ' से संबंधित संगठन ' ब्लैक सेपटेम्बर ' को जिम्मेदार माना गया था।
इजराइली टीम पर हमला- 1972 के म्यूनिख ओलिंपिक के दूसरे हफ्ते के दौरान 5 सितंबर को सुबह के 4:30 बजे ( लोकल टाइम के अनुसार ) जब ऐथलीट्स सो रहे थे , तभी उन पर अचानक हमला हुआ। ' ब्लैक सेपटेम्बर ' के 8 नकाबपोश हमलावर एके 47, पिस्टल्स और ग्रेनेड से लैस होकर इजराइली टीम के अपार्टमंट में घुस गए। वहां खून खराबा करने के बाद ये 9 लोगों को बंधक बनाकर ले गए। किड्नैपर्स की डिमांड- ये हमलावर फिलिस्तानी फिदाइन के सदस्य थे , जो लेबनान , सीरिया और जॉर्डन के रिफ्यूजी कैम्प से थे। इनकी डिमांड थी कि इजराइल की जेल में बंद दो जर्मन आतंकवादियों समेत 234 फिलिस्तानी और गैर अरबी लोगों को रिहा किया जाए और उन्हें निकलने का सुरक्षित रास्ता दिया जाए।
घटनाक्रम- किड्नैपर्स ने डिमांड रखने के बाद अपनी संकल्पता को दिखाने के लिए एक बंधक की लाश को बाहर फेंका। इजराइल ने उनसे निगोशिएशन करने से इंकार कर दिया। जर्मनी के उस समय के राजनैतिक हालात बहुत क्रिटिकल हो गए थे , क्योंकि बंधक बने लोग यहूदी जो थे। जर्मन ऑथॉरटीज ने इजराइली स्पेशल फोर्स को जर्मनी में आने के प्रस्ताव को नकार दिया। जर्मन पुलिस ने रेस्क्यू ऑपरेशन को अंजाम दिया , लेकिन माना जाता है कि जर्मन पुलिस को पास होस्टेज क्राइसिस ऑपरेशस से निपटने की कोई स्पेशल ट्रेनिंग नहीं थी। म्यूनिख के अधिकारियों ने किड्नैपर्स के साथ सीधे नेगोशिएट करते हुए उन्हें कितना भी पैसा मांगने का ऑफर दिया , पर इस ऑफर के किड्नैपर्स ने एक सिरे से नकार दिया। इंटरनैशनल ओलिंपिक कमिटी ने भी इसे सुलझाने की कोशिश की , मगर उन्हें भी सफलता नहीं मिली। यद्यपि वहीं दूसरी ओर ओलिंपिक खेल तब तक चलते रहे , जब तक कि पहले ऐथलीट की मौत के 12 घंटे बीतने के बाल इंटरनैशनन ओलिंपिक कमिटी ने उसका सस्पेंशन नहीं किया। उधर , जर्मन पुलिस ने ओलिंपिक विलेज को घेर लिया था और आगे की कार्रवाई के आदेश का इंतजार कर रही थी। इसी बीच टीवी चैनल पर पुलिस ऐक्टिविटी को लाइव दिखा दिया गया। यह देखकर किड्नैपर्स ने दो बंधकों को और मारने की धमकी दी और इसी कारण पुलिस को वहां से हटना पड़ा।
निगोशिएशन के अनेक दौरों के बाद किड्नैपर्स ने काहिरा जाने के लिए ट्रांसपोर्टेशन की मांग की। उनकी मांग मानते हुए उन्हें दो हेलिकॉप्टरों के माध्यम से नाटो एयरबेस फर्सटनफल्डबर्क ले जाया गया , जहां से उन्हें कहीं बाहर जाना था। उनके पीछे जर्मन अधिकारी भी एक हेलिकॉप्टर में आ रहे थे। ऐसा इसलिए किया गया था क्योंकि जर्मन अधिकारियों ने यहां किड्नैपर्स पर धावा बोलने का प्लान बनाया था।
धावा बोलने की स्ट्रैटजी -जर्मन अधिकारियों ने छिपकर गोली चलाने वाले 5 शूटर्स को किड्नैपर्स पर घात लगाकर धावा बोलने के लिए तैयार किया। ये लोग एयरपोर्ट पर छिप गए। किड्नैपर्स के साथ हुई बातचीत के अनुसार वहां खड़े बोइंग 727 जेट को दो किड्नैपर्स चेक करेंगे। जबकि जर्मन अधिकारियों का प्लान था कि वह इन दोनों पर काबू करेंगे और इसी समय में शूटर्स बाकी किड्नैपर्स को मारेंगे। लेकिन इस प्लान में पुलिस ने थोड़ी लापरवाही बरती और वह हेलिकॉप्टरों में सवार किड्नैपर्स की सही संख्यी का पता नहीं लगा पाई। रात 10 : 30 बजे हेलिकॉप्टर्स लैंड हुए। उसमें से 4 पायलट और 6 किड्नैपर्स बाहर निकले। 4 किड्नैपर्स पायलट्स को गनपॉइंट पर लिए थे। दो किड्नैपर्स प्लेन को चेक करने के लिए आगे बढ़े , लेकिन उन्हें अहसास हो गया कि वह जर्मन अधिकारियों की किसी चाल में फंस रहे हैं। यही सोचकर वै दोनों फिदाइन वापस हेलिकॉप्टर की ओर भागे।
यह देखकर एक शूटर ने गोली चला दी। इसी बीच जर्मन अधिकारियों ने बाकी शूटर्स को भी फायरिंग का आदेश दिया। यह वाकया रात के 11 बजे हुआ था। इस गोलीबारी में पायलट्स को गनपॉइंट पर लिए 2 किड्नैपर्स मौके पर ही ढेर हो गए। इस सबसे हड़बड़ाकर 2 किड्नैपर्स ने 2 इजराइलों को मौत के घाट उतार दिया। फिर भी उन पर शिकंजा कसता जा रहा था। बचने का कोई मौका न देखते हुए एक किडनैपर ने बंधकों को शूट करना शुरू कर दिया। और एक किडनैपर ने कॉकपिट में ग्रेनेड फेंक दिया , जिस कारण हुए विस्फोट से हेलिकॉप्टर के अंदर घायल पड़े बंधकों की भी मौत हो गई। 5 किड्नैपर्स भी इस मुठभेड़ में मारे गए। जर्मन पुलिस के एक ऑफिसर की भी इस मुठभेड़ में शहादत हुई।
सालों चली इजराइली कार्रवाई
इस जघन्य घटना का बदला लेने के लिए इजराइल ने स्प्रिंग ऑफ यूथ और रैथ ऑफ गॉड नाम से दो ऑपरेशन शुरू किए। इन ऑपरेशंस के लिए अनेकों स्पेशल टीमें नियुक्त की गईं। 1973 में एहूद बराक की अगुवाई में पहले ऑपरेशन स्प्रिंग ऑफ यूथ के अंतर्गत फतह के चीफ मोहम्मद यूसुफ समेत अनेक आतंकवादियों का टारगिट बनाया गया। इसके बाद 1975 में भी यह ऑपरेशन चलता रहा । फिर 1979 में अली हसन को कार बम से मार गिराया गया। इजराइल के तमाम ऑपरेशन बीस साल तक दुनिया के अलग-अलग देशों में चलते रहे। 1992 में ऑपरेशन रैथ ऑफ गॉड के अंतर्गत फिलिस्तीनियों से एक बार फिर इजराइलों ने बदला लिया। वास्तव में, म्यूनिख हादसे ने इजराइल को इतना झंझोर के रख दिया था कि वह सालों इस हमले को अपने जेहन से मिटा नहीं पाया। यहां तक कि कहा जाता है कि एक अपहरणकर्ता जमाल अल आज भी अंडरग्राउंड है, जिसकी तलाश जारी है।
ओलिंपिक पर प्रभाव- 5 सितंबर को ओलिंपिक गेम्स पूरे दिन के लिए सस्पेंड रहे। ऐसा इससे पहले कभी नहीं हुआ था। अगले दिन ओलिंपिक स्टेडियम में मेमोरियल सभा आयोजित की गई , जिसमें 3,000 ऐथलीट्स और 80,000 दर्शकों ने हिस्सा लिया। लेकिन ‘ द गेम्स मस्ट गो ऑन ’ की सोच के साथ ओलिंपिक चलता रहा , मगर इजराइली खिलाड़ी वापस लौट गए। साथ ही , उस समय के स्टार ऑलिंपियन अमेरिकी मार्क स्पिट्ज भी ओलिंपिक को बीच में छोड़ कर चले गए। इसके अलावा , कुछ और टीमें और खिलाड़ी भी मारे गए ऐथलीट्स के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हुए ओलिंपिक से लौट गए। साभार- नवभारत टाइम्स
7 comments:
अच्छी जानकारी, इसराइल ने कल भी मदद की पेशकश की थी, लेकिन भारत सरकार ने वह मदद ठुकरा दी (यह सोचकर कि इससे मुसलमान नाराज हो जायेंगे), जबकि उन्हें इस प्रकार की कार्यवाहियों का खासा अनुभव है…
यह वाक्या आतंकवाद से लड़ाई की क्लास में पढ़ाया जाता है.
" शोक व्यक्त करने के रस्म अदायगी करने को जी नहीं चाहता. गुस्सा व्यक्त करने का अधिकार खोया सा लगता है जबआप अपने सपोर्ट सिस्टम को अक्षम पाते हैं. शायद इसीलिये घुटन !!!! नामक चीज बनाई गई होगी जिसमें कितनेही बुजुर्ग अपना जीवन सामान्यतः गुजारते हैं........बच्चों के सपोर्ट सिस्टम को अक्षम पा कर. फिर हम उस दौर सेअब गुजरें तो क्या फरक पड़ता है..शायद भविष्य के लिए रियाज ही कहलायेगा।"
समीर जी की इस टिपण्णी में मेरा सुर भी शामिल!!!!!!!
प्राइमरी का मास्टर
आज एक खबर सुनी की भारत सरकार ने मुम्बई आतंकी हमले मे जांच मे सहयोग के लिए इजराईल का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया है। जबकी जेहादी आतंकीयो से निपटने मे इजरायल का लम्बा सफल अनुभव रहा है। सोनिया नेतृत्व वाली संप्रग सरकार ने यह सिर्फ इसलिए किया ताकी उनका मुस्लीम वोट बैंक रुष्ट न हो जाए। आज देश पर ऐसे लोग सत्ता मे बैठे है जो देशहित से ज्यादा वोटबैंक को महत्व देते है। लालु यादव पिछले चुनाव मे मुस्लमानो को रिझाने के लिए ओसामा बिन लादेन के हमशक्ल को साथ ले कर घुमते थे। ऐसे दुष्टो से देश रक्षा की उम्मीद कैसे की जा सकती है ।
दोस्तों, यहाँ बात थोड़ी दूसरी है। इसराइल बीच में इसलिए आना चाह रहा है क्योंकि नरीमन हाउस एक यहूदी मंदिर है जहाँ इसराइली नागरिक आकर रुकते हैं। दूसरे ये कि भारत की सेना हर तरह से कार्रवाई करने में सक्षम है लेकिन कमी सिर्फ राजनीतिक इच्छाशक्ति की है। ऐसा नहीं है कि हमारे कंमाडो इसराइल जैसा काम नहीं कर सकते लेकिन उन्हें ऊपर से पहले आदेश तो मिले.....इसराइल में ऐसे आदेश मिलने में कुछ सेकण्ड लगते होंगे।
सचिन जी ख्याल अच्छा है पर आपने यहूदियो का नाम लिया है थोडी देर मे ही कुछ रोशन ख्याल लोग आपके ब्लोग पर आपको हाफ़ पेंट वाला बताने के लिये आ जायेगे .
लोग पता नही क्यू इतनी जल्दी भूल जाते है जिस सेना को हमारे ए टी सी के महानायक साठ किलो आर डी एक्स गायब होने देने के गुनाह मे घसीट कर पूरी दुनिया के सामने गैरजिम्मेदार लापरवाह साबित कर रहे थे वही सेना आखिर संकटमोचन बन काम आई .
आपके इस कमेंट को नौ साल हो गये हैं नौ साल बाद छ्प्प्न इंचि भी आया और फ़ेल भी हो गया. देश के लोगों के कर्म ही ऐसे हैं
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