November 22, 2008

राजनीति में टिकट बिकने में नया क्या है??

कांग्रेस के बाद अब राजस्थान भाजपा में टिकिट बिकने के आरोप लगे हैं। कांग्रेस में जहाँ पार्टी महासचिव मारग्रेट अल्वा ने उक्त आरोप लगाया था वहीं भाजपा में भरतपुर के सांसद विश्वेन्द्र सिंह ने यह मुद्दा उछाला है। सिंह के अनुसार राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के कार्यकाल में कुछ लोगों ने करोड़ों-अरबों रुपए बनाए हैं। उन्होंने भाजपा को घेरे में लिया, कई आरोप लगाए और बाद में इस्तीफा दे दिया। ऐसा ही कुछ मारग्रेट अल्वा के साथ भी हुआ। उक्त दोनों नेताओं की पार्टियों की अनुशासन समिति उनपर कोई कार्रवाई करती, इससे पहले ही दोनों ने मैदान छोड़ दिया।
तो दोस्तों, उक्त दोनों ही बहादुरों को हमारा सलाम। लेकिन इस सब में भी कई पेंच हैं। पहला ये कि पार्टी के इन दोनों वरिष्ठ नेताओं ने जो बात इतनी ताकत लगाकर कही वो हमें पिछले १५ साल से पता है। हमें तो यह भी पता है किस पार्टी में कौन सी पोजीशन पर लड़ने के लिए कितना रुपया लिया जाता है। जिस शहर इंदौर में हम रह रहे हैं, हमें यह भी पता है कि यहाँ चल रहे विधानसभा चुनावों के लिए कौन सी पार्टी का नेता अपने लिए कितने में टिकिट लाया है। तो दोस्तों, हम सोच रहे थे कि मारग्रेट अल्वा और विश्वेन्द्र सिंह ने कोई नई बात कही होगी लेकिन ये तो बहुत बासी खबर निकली। खैर, आगे सुनिए। इन दोनों नेताओं ने पार्टी क्यों छोड़ी, या क्यों टिकिट के बदले रुपए वाली बात कह दी????? इसको खोजना होगा......ना हम नहीं खोज रहे। टीवी चैनलों और अन्य पत्रकारों ने ही इसे खोज लिया। अल्वा जहाँ इसलिए नाराज थीं कि उनके बेटे को कर्नाटक विधानसभा के लिए टिकिट नहीं दिया गया वहीं विश्वेन्द्र सिंह के लिए भाजपा हाईकमान ने कह दिया कि वो पार्टी से कुछ ज्यादा ही माँग कर रहे थे और मामला नहीं जमने पर उन्होंने ईमानदारी की दुहाई देते हुए किनारा कर लिया। विश्वेन्द्र को यह सब तब दिखाई दिया जब वसुंधरा की तथाकथित भ्रष्ट सरकार ने पूरे पाँच साल निकाल लिए। अरे भइया विश्वेन्द्र आपकी आंखें पिछले पाँच सालों तक क्यों बंद रहीं? इतनी लंबी नींद तो अच्छी नहीं होती है भाई।
खैर, ये तो तय हो गया कि टिकिटों के बिकने वाली बात समझने में विश्वेन्द्र को जहाँ कई साल लग गए वहीं मारग्रेट अल्वा की तो पूरी जिंदगी ही निकल गई। सोनिया गाँधी की पिछले कई सालों से खास बनी होने के बाद भी उन्हें ये सब इतनी देर से समझ आया। लेकिन हाल फिलहाल मैं ये नहीं समझ पा रहा हूँ कि क्यों कोई भी नेता इन बातों से तभी तड़पता है जब उसके व्यक्तिगत हितों पर गाज गिरती है। कोई क्यों इस देश की खातिर इन धांधलियों को नहीं देखता। अगर उक्त दोनों नेताओं ने भी ईमानदारी से अपनी आँखें खुली रखी होतीं तो इन्हें ये बिकते हुए टिकिट बरसों पहले से दिखाई देने शुरू हो जाते। हम आशा करें कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब हमारे देश के नेताओं की आँखों के ऊपर से बेईमानी की ये काली पट्टी उतरेगी और उन्हें सब साफ-साफ दिखाई देने लगेगा।
आपका ही सचिन....।

1 comment:

Sadhak Ummedsingh Baid "Saadhak " said...

राजनीति में चल रहा, स्वार्थ का नंगा नाच.
बुरा हाल है देश का, बाँच सके तो बाँच.
बाँच सके तो बाँच,यहाँ सब कुछ बिकता है.
व्यक्ति-विचार-पार्टी सब पे भाव चिपका है.
कह साधक कवि, देश-धर्म है बिकने वाला.
स्वार्थ का नंगा नाच, राजनीति में चल रहा.