November 27, 2008

अब नहीं देखा जाता भारतीयों को मरते



जैसा कि मैंने आप दोस्तों से कहा था कि हम सब लोगों की सुबह काली होने वाली है। गुरुवार का दिन सुबह से ही काला था। पाँच राज्यों में हो रहे चुनावों का तो उत्साह ही समाप्त हो गया। आखिर क्यों ना हो, जब हमारी चमड़ी के रंग के लोग मर रहे हों.....भले ही वो राज ठाकरे की जमीन पर रहने वाले मराठी मानुष ही क्यों ना हों....लेकिन वो देखेंगे कि उनके इस दुख में पूरा देश उनके साथ खड़ा है। लेकिन वो मनसे (महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना) के हिजड़े कार्यकर्ता कहाँ चले गए, जो ठेले और आटो रिक्शा वाले निहत्थे लोगों को तो पीटते थे लेकिन गोलियों की आवाजें सुनकर अपने बिलों में दुबक गए हैं। दोस्तों, मुंबई में देश का अभी तक का सबसे बड़ा आतंकी हमला हुआ है। आप लोगों ने काफी कुछ टीवी पर सुन लिया होगा, लेकिन फिर भी थोड़े में आतंकी १६ थे....२-२ के झुंड में आए थे, समुद्री रास्ते से आए थे, सुनियोजित आए थे और अब मरने वालों की संख्या १०० से ज्यादा और घायलों की संख्या ३०० से ज्यादा हो चुकी है। उन्होंने सब जगह निशाना साधा, होटलों में, रेलवे स्टेशनों में, कैफे में, सड़क पर...सब जगह। वे अभी जमे हुए हैं, पुलिस उनके साथ अभी भी उलझी हुई है। इस हमले में अभी तक १५ पुलिस के जवान शहीद हो गए जिनमें सात अधिकारी और तीन आईपीएस अधिकारी शामिल हैं। जो मुंबई एटीएस देश भर में घूम-घूमकर साधु-संतों को आतंकियों के नाम पर पकड़ रही थी उसके भी तीन अधिकारियों को आतंकियों ने शहीद कर दिया है। इनमें एटीएस प्रमुख हेमन्त करकरे और मुंबई पुलिस का जाबांज एनकाउंटर स्पेशलिस्ट विजय सालस्कर भी शामिल है। हालांकि मुझे इस बात का दुख है लेकिन सोच रहा हूँ कि ये लोग इतनी आसानी से कैसे मारे गए.....जैसे दिल्ली में मोहन चंद शर्मा भी इसी प्रकार मारे गए थे। या तो ये पुलिस अफसर सोच रहे थे कि वो साधु-संतों को ही गिरफ्तार करने जा रहे हैं और उन्होंने पर्याप्त सुरक्षा नहीं अपनाई, या फिर उन्हें अंतरराष्ट्रीय आतंकियों को पकड़ने की सही ट्रेनिंग नहीं मिली थी।....लेकिन वो वाकई के आतंकी थे भाई, कोई साधु-संत नहीं....इसलिए पहली फुरसत में ही इन अधिकारियों को मार दिया गया। वैसे मैं पूछना चाहता हूँ कि पूरे देश भर में आतंकियों की धरपकड़ के नाम पर घूम रही एटीएस को यह नहीं पता चला कि उसकी नाक के नीचे एक इतना बड़ा हमला होने वाला है जिसमें उसके प्रमुख को सड़क के बीचोंबीच मार दिया जाएगा।
दूसरी बात, मैं दैनिक भास्कर अखबार में नियमित छपने वाले जयप्रकाश चौकसे के कॉलम परदे के पीछे को पढ़ता रहता हूँ, चौकसे साहब को हमेशा ये शिकायत रहती है कि आतंकी देश के आम आदमी को ही शिकार बनाते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि हाईप्रोफाइल और रईस आदमियों को मारने के बाद पुलिस उनके पीछे हाथ धोकर पड़ जाएगी। तो मुझे ऐसा लगता है कि चौकसे साहब की बात इस बार आतंकियों को लग गई। उन्होंने मुंबई के दो सबसे महंगे होटलों ताज और ओबेरॉय को निशाना बनाया जहाँ करोड़पति और विदेशियों को छोड़कर कोई रुकता ही नहीं है। वहाँ आतंकियों ने कई लोग मारे। इस घटना से दहशत इतनी फैल गई है कि टीम इंग्लैण्ड ने तो घर का रास्ता ही पकड़ लिया। इस हमले से आने वाले कई दिनों तक देश का पर्यटन व्यवसाय और अन्य हाई प्रोफाइल आयोजन खटाई में पड़ जाएँगे।
तो मैं सुबह से टीवी पर चिपका हुआ यह सब देख रहा था, गुस्से से खौल रहा था, अपने देश के राजनीतिज्ञों पर। तभी खबर आई कि हमारे लचर प्रधानमंत्री ने उक्त मुद्दे पर कैबिनेट की बैठक ली है, जो खत्म हो चुकी है। उस बैठक की ब्रीफिंग करने हमारे दूसरे लचर राजनीतिज्ञ गृहमंत्री शिवराज पाटील मीडिया के सामने आए। हालांकि मैं काफी पढ़ा-लिखा हूँ (अपने मुंह से नहीं बोलना चाहिए) फिर भी मुझे पाटील साहब की कोई बात पल्ले नहीं पड़ी, जबकि मैं उन्हें काफी ध्यान से सुन रहा था। फिर धीरे से टीवी पर नीचे फ्लैश आया कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह नहीं रहे। सिंह साहब के नाम पर मुझे याद आया कि अगर संसद में कोई आरक्षण का बिल होता तो किसी भी सिंह ने ( मसलन अर्जुन सिंह ), उसे हाल ही पास कर दिया होता लेकिन आतंकवाद बिल के नाम पर इन लोगों की पेंट सरकती रहती है।
दोस्तों, अब नहीं देखा जाता अपने हमवतन भारतीयों को यूँ ही मरते हुए.....जब अमेरिका १०००० मील दूर से आकर पाकिस्तानी सीमा स्थित आतंकी शिविरों पर यह कहकर हमला कर सकता है कि वो उसके लिए खतरनाक हैं तो वो शिविर हमारे लिए तो बहुत पास हैं क्योंकि उनमें से ज्यादातर तो पाक अधिकृत काश्मीर में हैं, या पाकिस्तानी और अफगानी सीमा पर। तो क्या हम ऐसा कोई निर्णय नहीं ले सकते। और अब अगर कुछ नहीं हुआ तो दोस्तों, मैं गारंटी दे सकता हूँ कि अगला हमला इतना बड़ा होगा जिसमें कई हजार लोग मारे जाएँगे, क्योंकि आतंकियों को पता चल चुका है कि इस देश में भले ही संसद पर हमला करो या ट्रेन, होटल, बस और कैफे में.....सजा किसी को नहीं होनी है, फाँसी किसी को नहीं होनी है। सिर्फ राजनीति होनी है, और दोस्तों आतंकियों को राजनीति से जरा भी डर नहीं लगता।
आपका ही सचिन....।

2 comments:

सागर नाहर said...

सचिनजी आज मन बहुत खिन्न है, एक आम आदमी खिन्न होने के सिवाय कुछ कर भी तो नहीं सकता।
ए वेड्नस डे फिल्म देखकर खून खौलता है कि सभी @#$%^&* आतंकवादियों, भ्रष्ट अधिकारियों और नेताओं को पकड़कर एक साथ उड़ा दें, पर सच तो यह है कि वह एक फिल्म थी और सच्चाई उससे कोसों दूर।
आपने एकदम सही कहा अगले हमले में शायद एक सो तीन नहीं तेरहसौ लोग इसी तरह इन चूहों के शिकार बन जायें, और सिर्फ नाम के सिंह (असल में एक बड़े चूहे) फिर संसद में बयान देंगे, किसी को छोड़ा नहीं जायेगा। फिर कल अखबार वाले लिखेंगे मुंबई का जन जीवन फिर पटरी पर लौतने लगा- धन्य है मुंबई वाले... आदि आदि।
क्या लिखूं और क्या छोड़ूं, यही सोच नहीं पाता।

तरूश्री शर्मा said...

सचिन,
बढ़िया तेवर है आपका। धारदार लिखा है। राज ठाकरे के कार्यकर्ताओं से सवाल भी सटीक है। आतंकवाद के बिल के नाम पर पेंट सरकने वाली बात भी ठीक कही है। जब दर्द चोट करता है तो अभिव्यक्ति में धार स्वतः आ जाती है। बढ़िया तेवर के लिए वंदे।