November 22, 2008

बराक ओबामा की जीत के मायने



बुधवार का दिन अमेरिकी इतिहास में अगले २१९ सालों तक याद रखा जाएगा। यह आंकड़ा इसलिए दिया क्योंकि अमेरिका को आजाद हुए इतने ही साल हो चुके हैं। आज के दिन अमेरिकी जनता ने अपना नया राष्ट्रपति एक अश्वेत को चुना है। एक ऐसे व्यक्ति को जो राष्ट्रपति के लिए चर्चा में नाम आने के बाद से ही लग रहा था कि वो जीतेगा। ओबामा को जिताकर अमेरिकी जनता ने अपने माथे से वो कलंक भी साफ कर दिया है कि वहाँ अश्वेतों को दोयम दर्जे का नागरिक माना जाता है। ओबामा और अमेरिकी जनता ने इतिहास रचा है। यह इतिहास संयुक्त रूप से अर्जित किया गया है। लेकिन हम इस बात का विश्लेषण कैसे कर सकते हैं। हम भारतीय, अमेरिका के इन चुनावों से क्या सीख ले सकते हैं यह देखने वाली बात हो सकती है। तो आइए इस पर जरा गौर करें.....।

ओबामा ने जीत के बाद अपने पहले भाषण में जो शब्द कहे वो अमर हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिका में सबकुछ संभव है। बस यही एक बात है जो बताती है कि क्यों अमेरिका दुनिया का बिग बॉस है। इसके बाद की तो समस्त लाइनें और बाद में जो मेक्कन ने बोला सब अमर हैं। यह लाइनें, वो शब्द कभी मर नहीं सकते। मेक्कन ने कहा कि ओबामा हम सबके राष्ट्रपति हैं, हम उन्हें सहयोग करेंगे। ओबामा ने कहा कि दुनिया ने अमेरिका को आज बदलते हुए देखा है। तो हम भारतीयों को सोचना चाहिए कि ओबामा की बातों का क्या मर्म है। ओबामा ने कहा कि यहाँ सबकुछ संभव है। इसका मतलब यह है कि वे राष्ट्रपति बन गए यह किसी हैरतअंगेज बात से कम नहीं है। ओबामा अश्वेत हैं जो कुछ समय पहले तक अमेरिका में मारे जाते रहे हैं, जिनसे घृणा की जाती रही है और वे गोरे लोगों पर रंग भेद का आरोप लगाते आ रहे हैं। ओबामा का पूरा नाम बराक हुसैन ओबामा है। यानी ओबामा ना सिर्फ केन्याई अफ्रीकी मूल के हैं बल्कि उनके पिता मुस्लिम हैं। हालांकि ओबामा स्वयं कैथोलिक ईसाई हैं लेकिन उनके पिता उस धर्म (इस्लाम) को अपना चुके थे जिसके लिए माना जाता है कि उससे सबसे ज्यादा घृणा अमेरिकी ही करते हैं। खासतौर से वर्ल्ड ट्रेड सेंटर वाले हादसे के बाद से। फिर ओबामा राजनीति में बहुत जूनियर हैं और कुछ समय पहले ही उनकी राजनीति में आमद हुई है। वो इलिनोइस से जूनियर सीनेटर थे और अब सीधे ही अमेरिका के राष्ट्रपति बने हैं। लेकिन अमेरिकी जनता ने उक्त बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया।

तो दोस्तों, कहा जाता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव बहुत बुद्धिमत्ता से होता है। कई विश्वविद्यालय अपने इलेक्टोरल वोट्स के माध्यम से उसमें भाग लेते हैं। बहुत जटिल प्रक्रिया है इन चुनावों की। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में रिब्लिकन उम्मीदवार अपने धन-बल, जोड़-तोड़ के बल पर जीतते रहे हैं क्योंकि वो पूँजीवादी मानसिकता के होते हैं जबकि डेमोक्रेट उम्मीदवार वही जीत पाते हैं जो जबरदस्त और आकर्षक व्यक्तित्व वाले होते हैं। जनता के चहेते होते हैं। अमेरिका के डेमोक्रेट्स राष्ट्रपति दुनिया भर में बहुत मशहूर रहे हैं जैसे बिल क्लिंटन, जॉन एफ केनेडी और अब बराक ओबामा। यानी ओबामा ने अमेरिकी जनता को बाँधकर रखा और दुनिया ने पहले से ही मान लिया था कि ओबामा राष्ट्रपति बनेंगे।

तो मैं यहाँ बात भारत की भी करना चाहता हूँ। एक ओर जब अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों का कैम्पेन चल रहा होता है, उम्मीदवारों के भाषण चल रहे होते हैं तो भव्य गेटअप में पढ़ी-लिखी जनता उन्हें सुनने के लिए खड़ी रहती है। दूसरी ओर हमारे देश में जब कोई नेता या किसी जनप्रतिनिधि का भाषण होता है तो एलीट क्लास उससे दूर रहती है, गरीब और अनपढ़ लोग उसे सुनने के लिए जमा होते हैं और वही उस नेता को जितवा भी देते हैं। जो लोग नेतागिरी में आते हैं वो साम-दाम-दंड-भेद की नीति पर चलने वाले होते हैं। गुंडे-मवाली-बदमाश-बाहुबली होते हैं। कई बार तो अंगूठा टेक भी होते हैं। यानी चुनावों में खड़ा होने वाला भी अंगूठा टेक, सुनने वाला भी अंगूठा टेक और वोट देने तथा जिताने वाला भा अंगूठा टेक। आप-हम जैसे पढ़े लिखे लोग चुनावी प्रक्रिया को बोझिल, नेताओं को जाहिल मानते हैं और उन्हें सुनना तो दूर की बात, वोट देने भी नहीं जाते। यही कारण है कि भारत में उसी स्तर के जनप्रतिनिधि चुने जाते हैं जिस स्तर के लोग उन्हें वोट देते हैं। हमारे यहाँ के चुनाव क्षेत्रवाद, जातिवाद, धर्म के आधार पर बंटे होते हैं। योग्यता के यहाँ कोई मायने नहीं। तो आप लोग मेरी बात समझे होंगे कि अमेरिका के चुनाव और वहाँ का राष्ट्रपति क्यों हमारे यहाँ से भिन्न है।

मेक्कन ने कहा कि ओबामा हम सबके राष्ट्रपति हैं। विपक्षी पार्टी के मेक्कन ने बहुत सही कहा, लेकिन हमारे यहाँ प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने वाले नेता की पहले दिन से ही विपक्षी टांग खींचने लग जाते हैं, इतना ही नहीं उसके सहयोगी भी उसे जब-तब धमकाते रहते हैं और कई बार उसकी प्रधानमंत्री की कुर्सी खींच भी लेते हैं। हाल ही में ऐसी कोशिश कम्युनिस्ट पार्टी कर चुकी है। तब मनमोहन सिंह गिरते-गिरते बचे थे। हमारे यहाँ की लीचड़ राजनीति को समझना चाहिए कि जब हम खुद ही एकता में नहीं रहेंगे, संयुक्त नहीं होंगे तो कैसे संयुक्त राज्य अमेरिका का मुकाबला करेंगे। क्योंकि वो तो संयुक्त हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति कोई भी बने दुनिया को देखने की उसकी दृष्टि ठीक वैसी ही रहती है जो उससे पहले के राष्ट्रपतियों की रही है। वो किसी पार्टी का नहीं सिर्फ अमेरिका का राष्ट्रपति होता है। शायद ओबामा से हमारे देश की राजनीति कुछ सीख पाए। आमीन।

आपका ही सचिन......।

5 comments:

संगीता पुरी said...

आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है। आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करें। हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

Sachin said...

रचना जी और संगीता जी, आप दोनों का ही मैं शुक्रिया अदा करता हूँ। आशा करता हूँ कि आपसे सतत संपर्क बना रहेगा और आप लोगों की आशाओं पर मैं खरा उतर सकूँगा। ...सचिन

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

kharbuje ko dekh kharbuja rang badal hee leta hai.
narayan narayan

अभिषेक मिश्र said...

अच्छा प्रयास है आपका, यात्रा के क्रम में स्वागत मेरे ब्लॉग पर भी.

Amit K Sagar said...

खूबसूरत. जारी रहें. शुभकामनाएं.

मेरे ब्लॉग पर आप सादर आमंत्रित हैं.