November 28, 2008

भारत को रूस की तरह तोड़ना चाहते हैं आतंकी



आज आप दोस्तों को फिर कुछ महत्वपूर्ण जानकारियाँ देना चाहता हूँ। मुंबई में हुई आतंकी घटनाओँ के बारे में हालांकि देशी-विदेशी मीडिया काफी महत्वपूर्ण जानकारियाँ उपलब्ध करवा रहा है लेकिन मैं इसे कुछ अलग हटकर देख रहा हूँ। या कहें कि अपने हिसाब से एंगल निकाल रहा हूँ। नई खबर आतंकियों की मंशा को जाहिर करती हैं। ये निश्चित ही भविष्य में आपके और हमारे ऊपर गहरा असर डालेंगी। आपके साथ मेरा भी रोम-रोम जल रहा है कि इस्लामिक जिहादी जिन तीन धर्मों ईसाईयों, यहूदियों और हिन्दुओं को अपना विरोधी मानते हैं उनमें हम ही सबसे अधिक कमजोर क्यों हैं...?? और शायद इसलिए ही हमें बार-बार निशाना बनाया जा रहा है, तो मैं शुरू करता हूँ..।
दोस्तों, मुंबई में हुए आतंकी हमले की जिम्मेदारी डेक्कन मुजाहिदीन नामक एक आतंकी संगठन ने ली है। ये लश्कर-ए-तोएबा का ही अन्य रूप है। डेक्कन पाकिस्तान स्थित हैदराबाद का निजाम के समय का नाम है। तो इस संगठन की जरा भाषा देखिए.....

- भारत सरकार मुसलमानों पर अन्याय बंद करे। उनके छीने हुए राज्य वापस करे। अब हम अन्याय नहीं सहेंगे। हमें पता है भारत सरकार इस चेतावनी को गंभीरता से नहीं लेगी, इसलिए यह चेतावनी सिर्फ चेतावनी नहीं रहेगी। इसका जीता-जागता उदाहरण आप मुंबई में देख चुके हैं। हिन्दू यह ना समझें कि एटीएस और सेना बहुत आधुनिक हथियारों से लैस है और बहादुर भी। इसकी बहादुरी का अंदाजा आप नक्सल प्रभावित हिस्सों में देख रहे हैं। यह हमला १९४७ में भारत की आजादी के बाद से ढाए गए जुल्मों का बदला है। अब कोई क्रिया नहीं होगी, सिर्फ प्रतिक्रिया होगी और बार-बार होगी। हमारी हर जगह नजर है और हम बदला लेने के लिए सही वक्त का इंतजार कर रहे हैं। हाल ही में अंसारनगर, मोगरापाड़ा आदि इलाकों में छापा मारकर मुसलमानों को परेशान किया गया। इसकी दोषी मुंबई एटीएस, विलासराव देशमुख और आरआर पाटील हैं। याद रखो तुम दोनों की तुम हमारी हिटलिस्ट में हो और पूरी गंभीरता से हो। (कथित आतंकी संगठन डेक्कन मुजाहिदीन का मीडिया को भेजा ई-मेल)

रूस की तरह बाँट देंगे-पाकिस्तान से अपने खौफनाक कामों को अंजाम दे रहा लश्कर-ए-तोइबा का प्रमुख हाफिज सईद अपनी शुक्रवार की नमाज में भारत व पश्चिम विरोधी माहौल बनाने के लिए जाना जाता है। इसी क्रम में १३ अक्टूबर को उसने कहा था कि भारत केवल जेहाद की भाषा समझता है। भारत ने चिनाब नदी पर बगलिहार डैम बना लिया है और पाकिस्तान भारत के इन कामों को रोक नहीं पाता। लेकिन हमारे जिहाद को रोका नहीं जा सकता। अगर हमें थोड़ी और सहायता मिल गई तो हम भारत को के रूस जैसे टुकड़े कर देंगे।

अब हमारे देश के बारे में अमेरिका की राय

न्यूयार्क। मुंबई आतंकी हमले के लिए अमेरिका के प्रतिष्ठित अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल ने संप्रग सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। अखबार ने अपने संपादकीय में लिखा है कि संप्रग सरकार ने आगामी लोकसभा चुनावों में लाभ लेने के लिए आतंकवाद से निपटने के प्रभावशील कदम नहीं उठाए। इसी ढिलाई की कीमत मुंबई को चुकानी पड़ी। अखबार ने संपादकीय में लिखा है, मुंबई कई आतंकी कार्रवाईयों को सहन कर चुकी है। बुधवार की घटना में शहर के १० स्थानों पर आतंकी हमला हुआ। इसके बावजूद सरकार ने सही कदम उठाने में देर लगाई। अखबार ने हमले की तस्वीरों व खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया है। प्रधानमंत्री डॉ। मनमोहन सिंह के संदेश - हम इस हमले का मुंहतोड़ जवाब देंगे- पर अखबार ने कहा है कि पिछले पाँच वर्षों से लेकर अभी तक संप्रग सरकार में शामिल दल आतंकवाद से सख्ती से निपटने की बातें करके आपस में झगड़ रहे हैं। लेकिन कोई सख्त उपाय नहीं किए गए। भारत हमेशा से ही आतंकी कार्रवाईयों के लिए टॉप लिस्ट में रहता है क्योंकि यहाँ किसी भी घटना को अंजाम देना आसान होता है। देश में कई आतंकी हमलों के बावजूद ऐसा कोई तंत्र नहीं बना, जिससे ऐसे हमलों को रोका जा सके।
दोस्तों, देखा आपने....दुनिया हमें कितने हल्के से ले रही है। कुछ टुच्चे भाड़े के टट्टुओं को भेजकर लश्कर-ए-तोएबा ने पूरी दुनिया को यह संदेश दे दिया कि भारत कितना हल्का-फुल्का देश है और अब अमेरिका भी हमारे देश की सरकार की हंसी उड़ा रहा है। जिन आतंकियों ने अमेरिका और ब्रिटेन पर एक बार हमला करने के बाद दूसरी बार हमला करने की हिम्मत नहीं दिखाई वो हमारे देश को रूस की तरह तोड़ना चाह रहे हैं। धर्म की बहुलता के आधार पर उसके टुकड़े करना चाह रहे हैं और भारत सरकार वोट की राजनीति में पड़कर इस ओर जरा भी ध्यान नहीं दे रही है। क्या ये नेता लोग भूल गए कि ६० साल पहले हम १००० सालों की गुलामी के बाद आजाद हुए हैं। क्या ये नेता उस आजादी का मोल नहीं पहचान रहे हैं। जिन आतंकियों ने ताज होटल पर कब्जा किया वो २०-२२ साल के लौंडे थे जिनकी अभी दाढ़ी-मूछें भी नहीं उगी थीं और वो रुपए की खातिर यहाँ मरने आ गए थे। ताज में एटीएस के एक कर्मचारी ने उन्हें रुपयों के लिए लड़ते हुए भी सुना था। वो कोई इस्लाम के लिए लड़ने नहीं आए थे बस कुछ रुपयों के लिए बिके हुए छोरे थे। उनकी औकात नहीं कि वो हमारे देश को तोड़ सकें। लेकिन हाँ उन्होंने पूरे विश्व का ध्यान जरूर अपनी ओर खींच लिया।
दूसरे, भारत में रह रहे सारे मुसलमानों के लिए भी ये नहीं कहा जा सकता कि वो उन जलील आतंकियों के साथ हैं, लेकिन फिर भी देश की सरकार ऐसा क्यों सोच रही है और आतंक के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने से क्यों बच रही है..?? इन देश के नेताओं को यह याद रखना चाहिए कि अगर हमारे देश के साथ कुछ गड़बड़ हुई तो उन्हें चुन-चुनकर मारा जाएगा, फिर भले ही वो किसी भी पार्टी के क्यों ना हों....???? आजादी और ऐसा देश हर जन्म में नहीं मिलता, हमें इसे सहेज के रखना चाहिए, सीने से लगाकर रखना चाहिए....।
आपका ही सचिन.....।

4 comments:

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

यह शोक का दिन नहीं,
यह आक्रोश का दिन भी नहीं है।
यह युद्ध का आरंभ है,
भारत और भारत-वासियों के विरुद्ध
हमला हुआ है।
समूचा भारत और भारत-वासी
हमलावरों के विरुद्ध
युद्ध पर हैं।
तब तक युद्ध पर हैं,
जब तक आतंकवाद के विरुद्ध
हासिल नहीं कर ली जाती
अंतिम विजय ।
जब युद्ध होता है
तब ड्यूटी पर होता है
पूरा देश ।
ड्यूटी में होता है
न कोई शोक और
न ही कोई हर्ष।
बस होता है अहसास
अपने कर्तव्य का।
यह कोई भावनात्मक बात नहीं है,
वास्तविकता है।
देश का एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री,
एक कवि, एक चित्रकार,
एक संवेदनशील व्यक्तित्व
विश्वनाथ प्रताप सिंह चला गया
लेकिन कहीं कोई शोक नही,
हम नहीं मना सकते शोक
कोई भी शोक
हम युद्ध पर हैं,
हम ड्यूटी पर हैं।
युद्ध में कोई हिन्दू नहीं है,
कोई मुसलमान नहीं है,
कोई मराठी, राजस्थानी,
बिहारी, तमिल या तेलुगू नहीं है।
हमारे अंदर बसे इन सभी
सज्जनों/दुर्जनों को
कत्ल कर दिया गया है।
हमें वक्त नहीं है
शोक का।
हम सिर्फ भारतीय हैं, और
युद्ध के मोर्चे पर हैं
तब तक हैं जब तक
विजय प्राप्त नहीं कर लेते
आतंकवाद पर।
एक बार जीत लें, युद्ध
विजय प्राप्त कर लें
शत्रु पर।
फिर देखेंगे
कौन बचा है? और
खेत रहा है कौन ?
कौन कौन इस बीच
कभी न आने के लिए चला गया
जीवन यात्रा छोड़ कर।
हम तभी याद करेंगे
हमारे शहीदों को,
हम तभी याद करेंगे
अपने बिछुड़ों को।
तभी मना लेंगे हम शोक,
एक साथ
विजय की खुशी के साथ।
याद रहे एक भी आंसू
छलके नहीं आँख से, तब तक
जब तक जारी है युद्ध।
आंसू जो गिरा एक भी, तो
शत्रु समझेगा, कमजोर हैं हम।
इसे कविता न समझें
यह कविता नहीं,
बयान है युद्ध की घोषणा का
युद्ध में कविता नहीं होती।
चिपकाया जाए इसे
हर चौराहा, नुक्कड़ पर
मोहल्ला और हर खंबे पर
हर ब्लाग पर
हर एक ब्लाग पर।
- कविता वाचक्नवी
साभार इस कविता को इस निवेदन के साथ कि मान्धाता सिंह के इन विचारों को आप भी अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचकर ब्लॉग की एकता को देश की एकता बना दे.

Sadhak Ummedsingh Baid "Saadhak " said...

मान लिया है सचिन ने,आतंक का नहीं धर्म.
भारत रहता भरम में, ना समझा यह मर्म.
ना समझा यह मर्म,ना जाना है कुरान को.
कुरान क्या इन्डिया भुला बैठा पुराण को.
कह साधक कवि, सबने ऐसा मान लिया है.
सारे धरम समान, भरम से मान लिया है.

We hate Pakistan said...

जिहाद के नाम पर ये फैलाता है जूनून

मासूमों का खून बहाकर पाक को सुकून


आप भी, अपना आक्रोश व्यक्त करे


http://wehatepakistan.blogspot.com/

abhishek said...

badiya likha hai,,
jara idhar bhi ghum aaiye ,,