January 08, 2009

शेखावत और सोरेन में क्या अंतर..??

वर्तमान राजनीति में हर उम्र के धूर्त भरे हैं
दोस्तों, गुरूवार का दिन भारतीय राजनीति के कुछ चेहरे खोलने वाला रहा। हम कहते हैं कि हमारी वर्तमान पीढ़ी नालायक है। संस्कार भूलती जा रही है। दिशाविहीन और भटकाव वाली हो रही है। लेकिन ये बुजुर्ग रानीतिज्ञों को क्या हो गया। भाजपा के वरिष्ठ एवं कद्दावर नेता भैंरोसिंह शेखावत का दिशा भटकना और बदमाश-मक्कार उस दढ़ियल शिबू सोरेन का चुनाव हारना भारतीय राजनीति के असर चेहरे को सबके सामने ला रहा है। दोस्तों, लोग कहते हैं कि युवा महत्वाकांक्षी होते हैं। लेकिन ये बुड्ढे किस स्तर के महत्वाकांक्षी हैं देखा आपने। एक बुढऊ के पाँव कब्र में लटक रहे हैं लेकिन वो सपने देखना नहीं छोड़ रहा। शेखावत दिल्ली में अपनी प्रेस कांफ्रेस में कह रहे हैं कि देश की जनता चाह रही है कि वे चुनाव लड़े....और हवाला दे रहे हैं कोटा, टोंक, बूँदी आदि जगहों का जो सिर्फ राजस्थान में हैं। दूसरी ओर दढ़ियल शिबू सोरेन है। हत्या का मुकदमा चला, जेल गए, मुंह पर थूका गया लेकिन बाज नहीं आए, सौदेबाजी कर ली और कांग्रेस की केन्द्र सरकार बचाने के एवज में झारखंड के मुख्यमंत्री बनाए गए। लेकिन बकरे की माँ आखिर कब तक खैर मनाएगी..?? इस बार जनता ने निपटा दिया....ऐसा निपटाया कि राजनीति के इतिहास में दूसरे ऐसे मुख्यमंत्री बने जो अपनी सीट नहीं बचा पाया और चुनाव हार गया। लेकिन क्या कहें, सोरेन के पिछवाड़े पर फैवीकॉल चिपका हुआ है...मजबूत जोड़ वाला जो आसानी से छूटता नहीं....तो वो बेशर्म दढ़ियल अब भी अपनी कुर्सी छोड़ने को तैयार नहीं.......अरे हद है यार, इस देश में लोकतंत्र है...जनता नहीं चाह रही तो जाओ ना भाई, क्यों अपना मुंह हमें दिखाए जा रहे हो...हम जानते हैं कि तुम मक्कार, घोटालेबाज और हत्यारे हो, हम नहीं चाहते तुम्हें मुख्यमंत्री बने देखना...समझे, भ्रष्ट गुरूजी...। दूसरी ओर शेखावत हैं। इनकी मैं इज्जत करता था। राजस्थान में रहा था तब वहाँ इन्हें लोग चाणक्य कहते थे। एकाएक बुढ़ापे में दिमाग चकरा गया। पाँव कब्र में लटक रहे हैं लेकिन प्रधानमंत्री बनने की इच्छा नहीं छोड़ पा रहे। सक्रिय राजनीति में रहना चाहते हैं भले ही चलते ना बनता हो। अरे उस ओबामा को देखो, नंगे बदन हवाई के समुद्र तटों पर धूम रहा है, फिर भी सुंदर दिख रहा है। एक आप लोग हो, भारतीय आश्रम व्यवस्था को तो मानो....८५ साल की उम्र हो गई, अब तो वानप्रस्थाश्रम भी गया...मोक्ष या कहें सन्यास आश्रम का समय भी १० साल ऊपर बीत गया, लेकिन भगवान का नाम लेना नहीं चाह रहे हो...सीनियरटी की दुहाई दी जा रही है...अरे इस दुहाई की मानें तो देश के सबसे उम्रदराज आदमी को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री बनाना पड़े। दूसरों के लिए भी काम छोड़ो, जब आपका समय था तो खूब मक्कारी की, जमकर रुपया कूटा, नाम-दाम सब कमाया.....दशकों तक मुख्यमंत्री रहे....देश के उपराष्ट्रपति भी रहे....बाबुजियों इतनी भी महत्वाकांक्षा अच्छी नहीं....नहीं तो नई पीढ़ी को क्या संदेश जाएगा...????? आपका ही सचिन.....।

6 comments:

ss said...

वैसे तो शेखावत साहब और आडवाणी जी कि उम्र में ज्यादा फर्क नही है, पर अडवानी जी जोश से भरे लगते हैं| शेखावत का तो पिछले कई सालों से राजनीति में अता पता ही नही था, चुनाव आने लगे तो जनता याद आ गई|

शिबू को कुछ कहना शब्दों का अपमान करना है| कांग्रेस जो न कराये, पहले गोवा फ़िर झारखण्ड, आगे देखते हैं|

आप राहुल गांधी स्टार सन पर कुछ क्यूँ नही लिखते!

Jayram Viplav said...

bhai sachin aapki duniya wakai sach ki duniya hai ....blog ke alawa bhi un logon tak aapki bat pahunchni chahiye jo blog nahi padh pate yani aam janta .......us disha main bhi kuchh prayatn kijiye .

संजय बेंगाणी said...

शेखावतजी को मतिभ्रम हो रहा है, वे कुछ सालों में 90 के हो जाएंगे. शोरेन को तो लोग "गाँधी!" कह रहे है...कमाल का है गाँधी. लगता है बेशर्मी ही राजनेता का पहला गुण है.

Unknown said...

bahut sahi kaha aapne.....

Sachin said...

आप सब दोस्तों का शुक्रिया....कि आप सब मेरे साथ बने हुए हैं।

sarita argarey said...

मेरी राय में देश की गरीबी हटाने के लिए सभी को पांच - पांच साल तक राजनीति में आने का मौका दिया जाना चाहिए । पांच साल बाद अगले को मौका ....। इससे देश में आर्थिक संतुलन कायम होगा और साठ पार के नेताओं से निजात मिल सकेगी...।