January 13, 2009

स्वरोजगार की ओर जाना होगा हमें..

दोस्तों, बात सत्यम से शुरू हुई थी लेकिन थोड़ी लंबी जा रही है। कुछ मित्रों को मेरा बोलना बुरा भी लग रहा है। उन्हें लगता है कि मैं उनकी तरक्की से जल रहा हूँ। लेकिन ऐसा नहीं है भाई, आप लोग खूब रुपया कमाओ मेरी बला से। मुझे कोई दिक्कत नहीं है लेकिन मैं देश हित में अपनी बात कह रहा हूँ। और यह भी कि कुछ लोगों के अच्छा कमाने से इस देश का कोई भला नहीं होने वाला। खैर, 

अपनी बात शेखर पाठक की बात से शुरू करूंगा......आप पूछेंगे शेखर पाठक कौन...???? ....भई, पाठक साहब प्रसिद्ध समाजसेवी और घुमक्कड़ हैं, हिमालय के कई चक्कर लगा चुके हैं.....उत्तराखंड के विकास के लिए जी-जान से जुटे हुए हैं और इसके लिए समय-समय पर कई जनआंदोलनों का हिस्सा बने हैं.....उन्हें एनसाइक्लोपीडिया आफ हिमालया भी कहा जाता है.......तो पाठक साहब से किसी ने रोजगार से संबंधित प्रश्न पूछ लिया था, उत्तराखण्ड के संदर्भ में...... जवाब प्रस्तुत है.....

सरकार के पास रोजगार की समस्या का पूरा समाधान नहीं है। उत्तराखण्ड में कम से कम 10-12 लाख शिक्षित बेरोजगार हैं। किसी क्रान्तिकारी / गांधीवादी सरकार के लिए भी यह असंभव है कि सबको रोजगार मिल जाय। हमारी सरकारें तो बेरोजगार भत्तों की कल्पना भी नहीं करती है। हमारे यहां तो अग्निदाह में युवाओं के मरने, भूख-हड़ताल कर प्राण त्यागने, बलात्कार का शिकार होने या दुर्घटना में मारे जाने या कुछ जाल-फरेब करने पर आर्थिक या अन्य मदद आती है। अत: हमारे समाज को रोजगार के वैकल्पिक रास्ते ढूंढने के साथ स्वरोजगार के प्रयोग करने होंगे। उद्यमिता का विकास हमारी अपरिहार्य जरूरत है। पर्यटन, तीर्थाटन, परिवहन, पर्वतारोहण, वृक्षारोपण, पौधशाला-जड़ी-बूटी कार्य आदि ऐसे रास्ते हैं। लकड़ी-पत्थर, ऊन, धातु आदि से जुड़े कुटीर उद्योग भी ऐसे रास्ते खोलते हैं….. सोद्देश्य और उदार शिक्षा कितने ही रास्ते खोल सकती है।

......तो दोस्तों मैं भी बस यही बात कहना चाहता हूं जो पाठक साहब ने कही.....हम अपनी सरकारों के द्वारा दी गई सब्सिडी का लाभ उठाकर ऊँची-२ डिग्रीयां करके विदेशों में नौकरियां करने चले जाते हैं.....भारत हाथ मलता रह जाता है.....तो यह ब्रेन ड्रेन कब तक चलेगा..??? हमें विदेश जाना तो चाहिए लेकिन घूमने-समझने नाकि पूरी तरह से वहीं बस जाने के लिए....नहीं तो हमारी भूमि को कौन सुधारेगा.....यह ससुरी आईटी तो बेटों को अपनी माँ से अलग किए दे रही है......अगर भारत में रहकर करो तो ठीक है लेकिन इतनी दूर जाकर मातृभूमि का ऋण कैसे चुकाओगे..??

बात हो रही थी सत्यम के व्याभिचार की, और यही कि इस दौर में टीसीएस और विप्रो ने छंटनी कर दी, माइक्रोसॉफ्ट भी करती रहती है.....इनके तिमाही के लाभ पूरे नहीं हो पा रहे हैं लिहाजा गाज कर्मचारियों पर गिर रही है......हालांकि ऐसा लगभग सभी सेक्टर्स में होता है लेकिन लीजेंड्री आईटी में हो रहा है तो खबर बन रही है.............फिर तो सोचना होगा। हालांकि आज इंफोसिस ने लाभ दिखाया है लेकिन सत्यम वाले कांड के बाद अब लोग लाभ वाली बात पर थोड़ी देर में विश्वास कर पाएँगे। 

भारत विश्व की तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है.......लेकिन अंतरराष्ट्रीय सर्वे बता रहे हैं कि संसार में फिलहाल चीन ही ऐसा देश है जो दो-चार दशकों में तरक्की के मामले में अमेरिका को पीछे छोड़ देगा.......भारत की विकास दर जहां ९ फीसदी है वहीं चीन १२-१३ फीसदी की दर से कुलांचे भर रहा है......कारण मालूम है??.......आप बाजार में पटाखे खरीदने जाइए......मेड इन चाइना मिल जाएंगे.......बच्चों के खिलौने लेने जाइए....वे भी चीन के मिल जाएंगे....दीवाली पर लक्ष्मी-गणेशजी और नवदुर्गा में देवी की मूर्तियां तक मेड इन चाइना मिल रही हैं...क्यों??.....वहां बतौर कुटीर उद्योग यह सब लिया जाता है.....अब तो भारत में वहां से फर्नीचर तक बनकर आ रहा है......यानी चीन अपनी तो जरूरत पूरी कर ही रहा है विश्व को भी अपने सामान से पाटे दे रहा है......लेकिन हम हैं कि विदेशी सामानों के दीवाने हैं और खुद कुछ बनाते नहीं....मार्केट फ्री हो रहा है....उद्यम करने के लिए इससे उचित मौका और कोई नहीं.....हमें अपनी नौकरी करने खासकर विदेश में जाकर नौकरी करने की आदत से छुटकारा पाना होगा.......देश की तरक्की कर्मचारियों से नहीं उद्यमियों से होगी.....डॉ. कलाम ने भी यह बात कही है.....कि देश के युवा नौकरी के बजाए उद्यम करें तो देश तरक्की करेगा......मुझे लगता है कि अब जल्दी ही ऐसा समय आने वाला है जब हमारे युवा अमेरिका की ऊँची इमारतों के मोह से छुटकारा पाकर भारत की मिट्टी को महत्व देंगे और उनके स्वागत के लिए ढेरों सेक्टर्स यहीं तैयार मिलेंगे.....

और हाँ दोस्तों, बात अभी खत्म नहीं हुई है, तर्क जारी रहेंगे, पढ़ने वालों का स्वागत, प्रशंसा करने वालों का भी स्वागत और नापसंद करने वालों का भी स्वागत (क्योंकि वो कम से कम मुझे यहाँ आकर पढ़ तो रहे हैं)....बाकी बात अगले पृष्ठ में..

आपका ही सचिन....।

2 comments:

अक्षत विचार said...

sahi rasta hai.....

sarita argarey said...

उद्यमशील बनने के लिए लाल फ़ीताशाही सबसे बडी रुकावट है । बडे उद्योग के साथ छोटे - छोटे उद्योग भी खडे होना ज़रुरी हैं । आपने देश की विकास दर नौ फ़ीसदी बताई है । लेकिन इसका चिंताजनक पहलू ये भी है कि खेती की विकास दर महज़ दो से ढाई फ़ीसदी और उद्योगों की दर भी शायद इसी आंकडे के आसपास है । केवल सेवा प्रदाताओं के दम पर विकास दर का सरकारी दावा एकदम खोखला मालूम होता है । आप तो बिज़नेस मैनेजमेंट पढ रहे हैं । शायद मुझसे बेहतर बता सकते हैं ,लेकिन गांधी की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की ओर लौटकर ही हर हाथ को काम और हर मुंह को निवाला दिया जा सकता है । और हां आलोचना प्रशंसा से ज़्यादा अच्छी होती है ,जो हमें नया नज़रिया देती है । किसी भी मुद्दे के वो पहलू जो शायद हमसे छूट गये हों उन्हें जानने समझने में मददगार होती हैं ।