January 17, 2009

फिल्मी सितारे और भारतीय राजनीति

राजनीति को ग्लैमर के तौर पर आजमाने वालों की कमी नहीं


दोस्तों, आज सुबह से टीवी चैनल वालों ने फिर से अपने खटकर्म शुरू कर दिए थे और लगातार दिखाए जा रहे थे कि संजय दत्त लखनऊ से सपा के टिकट पर चुनाव लड़ने की अपनी घोषणा के बाद वहाँ पहुँच गए हैं और कैसे उनका धुँआधार स्वागत किया जा रहा है। लोग पागल हो रहे हैं संजय को देखकर, वे खुश हैं कि संजय लखनऊ से चुनाव लड़ रहे हैं आदि-आदि। तमाम प्रकार की फालतू की अटकलें लगाई जा रही हैं। उस नायक (?) के लिए जो १.५ साल जेल में एके ५६ राइफल रखने के कारण बंद रहा और जिसपर टाडा और फिर पोटा लगाया गया। हालांकि आजकल राजनीतिज्ञों के लिए तो ये क्वालिफिकेशन ही है लेकिन मैं फिल्मी सितारों और राजनीति की बातें करना चाहता हूँ। इस वाक्ये से मेरे मन में एकदम से कई सारी बातें आईं....दोस्त लोगों से बाँटना चाहता हूँ.....
तो गोविंदा सांसद हैं साहब.....फिल्मी सितारे धर्मेन्द्र भी सांसद हैं बीकानेर से.....अपने बिहारी बाबू शत्रुघ्न सिन्हा भी सांसद हैं.....बीच में स्वास्थ्य और फिर जहाजरानी मंत्री बन गए थे एनडीए सरकार में....स्वर साम्राज्ञी लतामंगेशकर राज्यसभा सांसद हैं..... हेमा मालिनी सांसद हैं...... स्मृति इरानी ( सास भी कभी बहू थी वाली) भी सांसद हैं......नवजोत सिंह सिद्धू भी सांसद हैं.....विनोद खन्ना भी लोकसभा सांसद हैं.... अमिताभ बच्चन भी लोकसभा का स्वाद चखकर देख चुके हैं.....

यह तो हुए फिल्मी सितारे....... अब दूसरी ओर देखें..... तो अनिल अंबानी सांसद थे....उन्होंने इस्तीफा दे दिया था....विजय माल्या भी सांसद हैं.... और..और कितने गिनाऊँ.....यह बात आगे बताता हूं कि यह सब क्यों हैं जबकि राजनीति और आम जनता से इन्हें कोई लेना-देना नहीं है.......

तो अब आप कहेंगे कि यह ज्ञान क्यों, यह सबको पता है......... लेकिन मैं आप सबसे एक प्रश्न पूछना चाहता हूं (युवक और युवतियों दोनो के लिए है) कि अगर आपको किसी लड़के या लड़की की आवाज पसंद आई या फिर किसी के सिर के बाल पसंद आए या किसी की टाँगे या घुटने पसंद आए तो क्या आप उससे शादी कर लेंगे??????? शायद नहीं....शायद इसलिए लगाया क्योंकि सबकी सोच एकसी नहीं होती....

तो इन फिल्मी सितारों को लोकसभा में चुनकर हम क्यों अपना मजाक बनवाते हैं जबकि हमें पता है कि ये लोग जब तक नाच-गाना नहीं कर लेंगे इन्हें जीवन जीने में मजा नहीं आएगा......एशो-आराम से फुर्सत नहीं निकाल पाएँगे....फिर भी भावनाओं में बहकर हम इन्हें चुन लेते हैं.....धर्मेन्द्र बीकानेर में शोले के डायलॉग सुना-सुनाकर चुनाव जीत गए जबकि बाद के पाँच साल में एक बार भी वहाँ झांकने नहीं गए.... अब वहां के लोग उन्हें गालियां दे रहे हैं.....इसी प्रकार गोविंदा भी ठुकमे लगा-लगाकर चुनाव जीते लिए अब उन्हें फिल्मों में सलमान के साथ ठुमके लगाने से फुर्सत नहीं है। उनके संसदीय क्षेत्र की जनता उन्हें अब तक का सबसे नाकारा सांसद घोषित कर चुकी है.....शत्रुघ्न सिन्हा भी चुने जाने के तुरंत बाद फिल्म की शूटिग में व्यस्त हो गए थे......हेमा मालिनी और अन्य पुरानी अभिनेत्रियाँ संसद में हैं जरूर लेकिन वे क्या रोल निभाती हैं यह बताने की जरूरत नहीं है......लताजी भी राज्यसभा में चुने जाने के बाद अभी तक सिर्फ एक ही बार वहाँ गई हैं.....

ऐसा नहीं है कि फिल्म में काम करने वालों को राजनीति नहीं आती.....जयललिता अभिनेत्री थीं.... एमजी रामचंद्रन भी अभिनेता थे.....स्व. सुनील दत्त अभिनेता थे......और तो और अमेरिका के राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन भी हॉलीवुड अभिनेता थे.....कैलीफोर्निया के वर्तमान गर्वनर आरनोल्ड श्वाजनेगर मशहूर हॉलीवुड एक्शन हीरो थे........लेकिन एक बार राजनीति में आने के बाद उन्होंने अपना सबकुछ राजनीति और देश को दे दिया......कम से कम समय तो दिया ही यानी पूर्णकालिक रहे.....लेकिन दूसरी ओर कई अभिनेता फिल्मों में व्यस्त रहकर अपने क्षेत्र की जनता को छलते रहते हैं.......उन्हें राजनीति से जुड़ने में सिर्फ एक प्रकार का ग्लैमर नजर आता है।

असल में ग्लैमर या उद्योग क्षेत्र के लोग राजनीति में आते क्यों हैं.....समझने वाली बात है......एक बार मैंने खबर पढ़ी थी कि अमेरिका में बुद्ध धर्म को ग्रहण करने वालों की संख्या बढ़ी है......लेकिन साथ ही यह भी बताया गया था कि अमेरिकी लोग उस धर्म के मूल को कुछ नहीं मानते....सारी बदमाशी करते हैं (वो शिल्पा शेट्टी वाला भूरा रिचर्ड गेरे भी याद है ना आपको, वो भी बौद्ध है) बस थोड़ा चेंज के लिए उन्होंने अपना धर्म बदल लिया.....बस अपनी राजनीति वाली बात में भी वहीं चेंज है.........संसद में जाने का शौक है, दुनिया के सारे ऐश कर लेते हैं तब सोचते हैं क्यों ना संसद में भी चक्कर लगाके देख लिया जाए.....और हमारे देश की जनता तो चकरघिन्नी है ही..... जो इनके चक्कर में आ जाती है....

विजय माल्या के लिए तो इंडिया टुडे ने छापा भी था कि उन्होंने रुपए देकर अपने लिए राज्यसभा की सीट बुक करवा ली और जद को रुपयों का ढेर दे दिया....इसी प्रकार का काम अनिल अंबानी ने भी किया था लेकिन बीच में उनका जमीर जाग गया और उन्होंने अपनी संसदीय सदस्यता से इस्तीफा दे दिया (वो लाभ के पद वाले मामले के दिनों में)....

इस प्रकार की तमाम बातें हमारे सामने आती रहती हैं लेकिन हम उनपर रिएक्ट ही नहीं करते......और लोकतंत्र की इस खामी का फायदा इस प्रकार के लोगों को मिल जाता है....हमें अपने को राष्ट्रीय परिदृश्य में इतना परिपक्व दिखाने की जरूरत है कि कोई राजनैतिक पार्टी किसी लफ्फाज या नौटंकी छाप व्यक्ति को पार्टी का टिकट देने की जुर्रत ना करे और संसद में पहुँचाने की तो कम से कम सोचे भी नहीं.....तभी हमें और हमारे लोकतंत्र को सही मायनों में परिपक्व माना जाएगा.....हमारी राजनीति पहले से ही उस नौटंकी छाप अमर सिंह को झेल रही है और वो पगला राजनेता अपने जैसे नौटंकीछापों का ही संसद में मजमा लगाए दे रहा है। आज तो संजय दत्त के साथ वो जिस जीप में सवार था उसमें भोजपुरी फिल्मों का प्रसिद्ध हीरो मनोज तिवारी और पूर्व अभिनेत्री तथा सांसद जया प्रदा और उनकी नामराशि की दूसरी सांसद जया बच्चन भी सवार थीं। हद है, पूरी फिल्म इंडस्ट्री ही संसद में पहुँच जाएगी तो वहाँ गंभीर राजनीति होगी या फिर नाच-गाना। दोस्तों से मेरा आव्हान है कि इन नचैयों को राजनीति से उखाड़ फैंको, हम तो इन्हें शो बिज में ही देख-देखकर बोर हो चुके हैं, अब संसद में नहीं देखना चाहते।

आशा है दोस्त मेरी बातों से सहमत होंगे.....

आपका ही सचिन....।

3 comments:

दीपक बाबा said...

शर्म आती है जब टीवी पर गोविंदा तो ठुमके लगते देखता । टीवी प्रोग्राम में द्विअर्थी संवादों पर सरदार जी दिल खोल कर हंस रहे होते है। आखिर इनको संसद में बैठने का क्या अख्तियार है। फिर बाकि दागी सांसदों को देखता हूँ तो मन में टीस उत्पन होती है। धन्यवाद् दूँगा उस कोंग्रेस पार्टी को जिन्होंने अमिताभ को इलाहाबाद से चुनाव लड़वा कर एक नइ प्रथा की शुरुवात की ।

Unknown said...

bilkul sahi...

sarita argarey said...

असली इम्तेहान तो लखनऊ के मतदाताओं को देना है । यदि उन्होंने गांधीबाज़ मुना भाई को संसद में पहुंचा दिया ,तो लोकतंत्र की करारी शिकस्त होगी । लखनऊ के लोगों और तहज़ीब की मात होगी संजय दत्त की जीत ।