सिर्फ नाच-गाकर या गालियाँ देकर ही नामचीन हो जाना चाहती है नई पीढ़ी
दोस्तों, आजकल देर रात कभी टीवी खोलकर देखता हूँ तो वहाँ एमटीवी पर एक नंगा रियलिटी शो खड़ा मिलता है जिसका नाम है एमटीवी रोडीज। इस शो में भाग लेने के लिए हमारे देश के खूबसूरत और जवाँ युवा कतार में लगे खड़े मिलते हैं। जब वे आडिशन देने अंदर जाते हैं तो दो गंजे उनका गालियों से स्वागत करते हैं, भला बुरा कहते हैं। ये युवा जो अपने घरवालों को अपनी पेंट की जिप से लगाकर रखते हैं इन गंजों की बातें खून का घूँट पीकर और मुस्कुराते हुए सिर्फ इसलिए सह जाते हैं क्योंकि वो मशहूर होना चाहते हैं। पूरे सीरियल के दौरान अब ये गाली देने और सुनने का सिलसिला चलता रहेगा। मैंने उसकी फाड़ दी और उसने मेरी फाड़ दी। ये शब्द वहाँ लड़कियों से सुनने को मिलते रहेंगे। ये है हमारी नई पीढ़ी जो मशहूर होने की ललक में अपनी फड़वा रही है। दूसरी ओर एक जमात ऐसी भी है जो नाच-गाकर मशहूर होना चाहती है। नाच और गाना भी खुद का नहीं। किसी फिल्मी का। मतलब फिल्मों के गानों और नृत्यों की नकल पेश करके जजों का इम्प्रेस करने का सिलसिला चल रहा है। दोस्तों दुख होता है इस भांडपने को देखकर, आज आपके सामने इसी विषय पर अपने विचार रखूँगा। तो शुरू करता हूँ...।
वर्तमान दौर इलेक्ट्रॉनिक मी़डिया का है। यह टीवी मीडिया लोगों का चेहरा बना और बिगाड़ रहा है। लोग खुश हैं क्योंकि वे मशहूर हो रहे हैं, उन्हें लग रहा है कि दुनिया उन्हें देख रही है और खुशी और गम में उनका साथ दे रही है। इन बातों को भुनाने के लिए टीवी चैनल रियलिटी शो के भ्रम रच रहे हैं...इस मायाजाल में फँसकर हमारे युवा और बच्चे लगभग पगलाए जा रहे हैं....वे जोर-जोर से नाच रहे हैं....सुरीले बनकर गा रहे हैं....और अगले राउंड में ना पहुँच पाने पर आँखों में आंसू भर-भर कर रो रहे हैं....उनका साथ उनके माता-पिता भी दे रहे हैं....माएँ प्रतियोगिता के दौरान भगवान से आर्शीवाद माँगती हुई नजर आती हैं....सलेक्ट ना होने पर भीगी पलकों को अपने पल्लू से पोंछती नजर आती हैं....आखिर हो क्या गया है हमारे इस महान देश को......यहाँ के लोगों की आकांक्षाएँ इतनी छोटी तो ना थीं......वो कभी इतनी आसानी से तो जीवन की जंग जीतना नहीं चाहते थे.....????????
टीवी चैनलों पर कई प्रकार के रियलिटी शो हमेशा चलते रहते हैं....बच्चों के लिए इसपर लिटिल चैंप्स चला...इंडियन आईडल...फेम गुरूकुल.....सारेगामापा.....नच बलिए.....बिग बॉस......कितने ही हैं जिन्होंने इस भ्रम को जिलाए रखा......सबमें क्या फर्जीवाड़ा हुआ आप लोगों को पता है.......और कितने रियलिटी शो के विजेता स्थापित सितारा बन पाए यह भी पता है......इन शो के बहाने करोड़ों रुपए बटोरने वाले टीवी चैनलों ने उन विजेताओं के साथ क्या किया यह भी पता है.......कई विजेता गुमनामी के अंधेरे में खो गए तो कई इस बात की रिपोर्ट लिखाते फिरे कि उनके साथ किए गए वादे पूरे नहीं किए गए......जो हारे उन्होंने बेइमानी की शिकायत की.....और उन जजों को क्या कहूं जो पूरे शो के दौरान सब प्रतियोगियों के लिए कहते रहे कि वो महान कलाकार बनने वाले हैं........पानी पर चढ़ा-चढ़ाकर डुबो दिया बच्चों को......
देश की भोली जनता रात को टीवी के सामने बैठ जाती है और जिसकी शक्ल, सूरत, नाच या गाना पसंद आता है उसे हाथ में मोबाइल लेकर एसएमएस करने लग जाती है.....टीवी चैनल भी दर्शकों से एसएमएस करने की माँग बहुत भावुक अंदाज में करते हैं....भोली जनता उनकी बातों में आ जाती है बिना यह बात जाने की इन एसएमएस की कीमत वो क्या चुकाने वाली है......बीच में अखबारों में एक खबर भी आई थी कि इसी प्रकार के एक कार्यक्रम में एसएमएस करते रहने से एक घर में मोबाइल का बिल ३० हजार रुपए आ गया था........इन कार्यक्रमों की सच्चाई का आलम यह है कि बिग बॉस को भी लोगों ने लाखों एसएमएस किए और बाद में उसी सीरियल की एक प्रतियोगी ने (यह एक मॉडल थी) ने अपने एक साक्षात्कार में कह दिया था कि वे लोग इस कार्यक्रम की शूटिंग की रिहर्सल ठीक वैसे ही करते थे जैसे किसी नाटक की होती है.....यानी सबकुछ पहले से सेट था, निर्धारित था और हम समझते रहे कि सब ओरिजनल हो रहा है........
अब उन जजों की भी बात करते हैं जो इन कार्यक्रम में प्रतियोगियों को चने के झाड़ पर चढ़ाने का काम करते हैं......जावेद अख्तर को मैं पसंद करता हूं.....वो टू द पाइंट बात करते हैं इसलिए कई लोग उन्हें पसंद करते हैं......लेकिन समझ नहीं आता कि वो इस भीड़ में बैठकर क्या कर रहे हैं.......धीरे-धीरे इन रियलिटी शो की रियलिटी खुलने लगी है......इस पर खुद मीडिया में भी काफी कुछ छप चुका है.......ऐसे में जावेद अख्तर जैसे गंभीर लोगों को इन शो से हट जाना चाहिए.......जो अन्य बड़े नाम इन शो से जुड़े दिखते हैं वो टीवी चैनलों की ताकत को सिर्फ नमन करने आते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि वो इन्हीं चैनलों की बदौलत स्टार हैं.....इस छोटे परदे की वजह से ही उनके चेहरे हर घर में पहचाने जाते हैं....ये अलग बात है कि उन जजों को यह नहीं पता होता कि उनकी नकली बातें कितने युवाओं और बच्चों के मन में गंभीर महत्वाकांक्षाएँ पैदा कर देती हैं और कई बार इन कोमल मनों पर हार का बोझ जरूरत से ज्यादा दबाव बना देता है....
हमारे महान देश के माता-पिता को चाहिए वे बच्चों को जीवन के भावी संघर्ष के लिए तैयार करें.....उन्हें जिंदगी के कठोर पथ के बारे में जानकारी दें....उन्हें ताकतवर और मजबूत बनाएं....लेकिन वें हैं कि अपने बच्चों को अदनान सामी और हिमेश रेशमिया के सामने ले जाकर खड़ा कर देते हैं......फेम गुरूकुल के विजेता काजी तौकीर का क्या हुआ.......उसे ४० लाख एसएमएस मिले......अब वो कहीं नहीं है क्योंकि हम सब जानते थे कि वो ढंग से गाना ही नहीं जानता था.......उसे भावानात्मक बहाव ने जिताया.......इस बारे में बाद में चर्चाएं भी हुई थीं.....हम हमेशा श्रेष्ठ प्रतिभा को ही जिताएँ ऐसा जरूरी नहीं......और जो श्रेष्ठ प्रतिभा होगी वो खुद ही जीवन में सफलता का रास्ता बनाएगी....जैसे नदी अपना रास्ता बनाती है.....
आपका ही सचिन......।
4 comments:
नाच , गाने और क्विज में रूचि रखनेवाले हमेशा इस फिराक में होते हैं कि वे किसी रियलिटी शो का हिस्सा बनें और एक ही बार में प्रसिद्धि और पैसा कमा लें....वे यह नहीं जानते कि इससे प्रतिभा बढती नहीं , समाप्त होती है.....प्रतिभा मात्र संघर्ष से बढती है।
बहुत बडिया और सच लिखा है आपने जब इस देश के युवाओं कि सोच आप जेसी होगी और जम कर एक अभियान छिडेगा तभी कुछ हो सकता है
जो बिकता है वो दिखता है या इसे यूं कह लें जो दिखता है वो बिकता है । बाज़ारवाद के दौर का यही चलन है । सामाजिक व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है लोगों के पास वक्त की कमी नहीं । आखिर समय काटने के लिए भी तो कुछ शगल चाहिए । मानसिक तौर पर दीवालिया होती जा रही नई पीढी के लिए ये सब आदर्श मनोरंजन है ,क्या कीजिएगा ?
तुम वही सचिन हो जो ...
सन २००० में स्वदेश (सांध्यवार्ता) के लिए रिपोर्टिंग...... कर रहे थे.
अपने राम भी तब वहीँ धुनी रमाए थे.
आजकल इंदौर में हूँ. वक्त ने इजाजत दी तो होगी मुलाक़ात.
आदाब अर्ज़.
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अवधेश प्रताप सिंह
# ०९३२९२ ३१९०९
इंदौर मप्र
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