January 27, 2009

इंसान से ज्यादा कीमती, रईसों के कुत्ते..!!

जिनके पास रुपया है उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि खर्च कहाँ करें? आज एक खबर पढ़ी...कि दिल्ली में डॉग पार्लर यानी कुत्तों को सजाने-संवारने की दुकानों का चलन काफी बढ़ गया है। इस चलन ने पिछले कुछ वर्षों में अधिक जोर पकड़ा है।... इस शहर में रईस अपने कुत्तों को इन पार्लरों में लेकर आते हैं और एक सत्र यानी एकाध घंटे के एक हजार रुपए से लेकर बीस हजार रुपए तक अपने कुत्तों पर खर्च कर देते हैं। कुत्तों के मालिक चाहते हैं कि उनका कुत्ता किसी रॉक स्टार से कम ना दिखे और इसके लिए वो उसे शैंपू से नहलवाते हैं। उनका हेयर कट, मसाज और पॉ यानी पंजों की मालिश आदि करवाते हैं.....??? 
दोस्तों, मैंने जबसे इस खबर को पढ़ा है बैचेनी से बैठा हुआ हूँ.....समझ नहीं आ रहा कि इसपर क्या कहूँ......बीस हजार रुपए अपने कुत्ते पर....... वो भी कुछ घंटों के......इतने रुपए में आपका या हमारा बच्चा सालभर एक अच्छे स्कूल में पढ़ सकता है......किसी गरीब के बच्चे की पूरे जीवन की शिक्षा इतने रुपयों में हो सकती है और किसी गरीब की बेटी का ब्याह भी इतने रुपयों में हो सकता है.......तो हमारे देश को तो देखिए और देखिए उस नवधनाढ्य पीढ़ी को जो अपने कुत्तों पर हजारों-लाखों रुपया खर्च कर रही है........उस भारत देश में जिसमें आज भी २६ करोड़ लोग गरीबी की रेखा से नीचे जीवन-यापन करने को मजबूर हैं.....गरीबी की रेखा यानी वो लोग जो अपना रोज का खर्चा एक डॉलर यानी ५० रुपए से भी कम रुपए में चला रहे हैं.......उस देश में जहाँ आज भी कई जानें ठीक से पेट ना भरने और छोटी-मोटी बीमारियों का इलाज ना करवा सकने के कारण चली जाती हैं...अब हमारे देश में कुत्तों की कीमत इंसानी जान से ज्यादा हो गई है......अब यह भी तय होता जा रहा है कि स्थितियाँ अगर ऐसी ही रहीं तो देर-सबेर यहाँ मैक्सिको जैसी हालत होगी और रईसों के घर बुरी तरह लूटे जाएँगे......
आप लोग कह सकते हैं कि मैं कुछ ज्यादा ही निगेटिव बातें कर रहा हूँ.....लेकिन क्या करूं, जान जलती है जब पता चलता है कि हमारे देश में अर्थ की असामनता बढ़ती ही जा रही है.....यह खाई इतनी गहरी और चौड़ी होती जा रही है कि आम आदमी इसे ना तो कभी लांघ पाएगा और ना ही पाट पाएगा....इसके बाद क्या होगा, इसका अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि देश में नक्सली गतिविधियाँ सात राज्यों में फैल चुकी हैं....नक्सलियों का ध्येय क्या है यह आप लोगों को बताने की जरूरत नहीं.....बस इतना ही कि वे अतिसंपन्न लोगों के जान के दुश्मन हैं....माओ को मानते हैं और बंदूक की नली से क्रांति किए जा रहे हैं....मैं उस आंदोलन को बिल्कुल उचित तो नहीं ठहरा रहा हूं लेकिन यह तय है कि अगर हालात ऐसे ही चलते रहे तो एक समय देश का बेरोजगार युवा भूखा मरने के बजाए उनके साथ मिलकर बंदूक उठाने से नहीं चूकेगा और फिर हमारे अतिप्राचीन समाज का क्या होगा यह डिबेटेबेल बात हो सकती है......
बात कुत्तों से शुरू हुई थी तो उन्हीं पर खत्म करूंगा कि आजकल बाजार में एक हजार से लेकर पाँच लाख रुपए तक के कुत्ते के पिल्ले आ रहे हैं, रईस उन्हें झूरकर खरीद भी रहे हैं......आम आदमी अपने आशियाने का सपना पूरा नहीं कर पा रहा है और इस देश की एक पीढ़ी उतनी कीमत के कुत्ते के पिल्ले खरीद रही है.....ये कुत्ते के पिल्ले इंसानों पर इतने ज्यादा भारी पड़ेंगे पता नहीं था.....क्या ही अच्छा होता कि ये रईस किसी गरीब का बच्चा गोद लेकर उसका जीवन संवार देते...शायद वो उनके लिए कुत्ते से तो अधिक बेहतर सिद्ध होकर दिखा ही देता...लेकिन मुझे नहीं लगता कि रईस ऐसा करेंगे, उन्हें गरीबों से ज्यादा कुत्तों में रुचि है....!!!!!!
आपका ही सचिन......।

4 comments:

Arvind Mishra said...

सचिन भाई लिखा तो आपने सोचने लायक है -पर मैं बता दूँ कि यह कुत्ता ही है और केवल कुत्ता जो आदमी का कम से कम दस हजार वर्ष पुराना साथी है .आदमी और कुत्तों के बारे में मेरे ख्याल भी पहले आप जैसे ही थे जो दरअसल एक आम भारतीय की सोच का प्रतिनिधित्व करते हैं ! मगर एक बार आप कोई भी कुत्ता पूरे समर्पित भाव से पाल कर तो देखिये आपके विचार बदल जायेंगे !
कुता आदमीं से ज्यादा वफादार है -वहा आपसे ज्यादा जुड़ता है .घर में आपके घुसते ही वह आपका शानदार स्वागत करता है -जब कि घर के कई सदस्य यह जान भी नही पते की आपकी इंट्री घर में हो गयी है .
कभी कभी लगता है यह पूरी दुनिया केवल दो लोगों से आबाद है -कुत्ता प्रेमी और कुत्ता द्वेषी ! आप एक बार तो अपने सारे पूर्वाग्रह छोड़ कुत्ता प्रेमियों की जमात में शामिल हो जायं तब देखिये दुनिया कैसी बदले बदली सी लगने लगती है -
सकल राम माय सब जग जानी .......फिर कुत्ता द्वेष क्यों ? भौं.... भौं .....(यह प्यार की भौं है .....)

मैथिली गुप्त said...

इस पशु का महत्व सिर्फ उसी को पता होता है जिसके पास ये होता है.
हमारे धर्मग्रंथो के अनुसार युधिष्ठर के सात केवल कुत्ते को ही तो स्वर्ग में प्रवेश मिला था :)
शेष अरविन्द जी ने लिख दिया है उसे मेरी ओर मान लें.

Sachin said...

माफ कीजिएगा दोस्तों, लेकिन अफसोस हुआ कि मेरी इस पोस्ट पर इतने उथले कमेन्ट आए। उक्त आप दोनों ही सज्जन मेरी बात नहीं समझे शायद। बात कुत्तों की नहीं हो रही थी। ये जानवर वफादार है इसे बताने की जरूरत नहीं...बात हो रही थी कि अमीर इस गरीब देश में कैसे रुपयों का अपव्यय कर रहे हैं। बात हमारे समाज की हो रही थी। कुत्ता सिर्फ माध्यम था, लेकिन आप लोगों ने सिर्फ कुत्तों को पकड़ लिया। मुझे लगता है कि बात का मर्म समझना चाहिए था। - सचिन

तरूश्री शर्मा said...

सचिन, इसमें कुछ नया तो नहीं है। हमेशा से अमीर-गरीब, राजा-रंक आदि का भेद रहा है। जीवन जीने के अपने तरीके हो सकते हैं और अपने अपने शौक भी। क्या एक अमीर को अपने कुत्ते पालने का शौक भी पूरा करने का अधिकार नहीं.. क्योंकि दुनिया की आधी जनता गरीब है? माफ करना इस पोस्ट में मुझे तुम कुछ अतिवादी लगे। हालांकि तुम मूल में कहना ये चाहते थे कि धनाढ्यों को भी अपने सामाजिक ढांचे की विषमताओं को दूर करने की कोशिश करनी चाहिए और गरीब वर्ग के प्रति अपने दायित्व निभाने चाहिए लेकिन ये 'चाहिए' ही दुखों का मूल है। व्यावहारिक सोच रखना जरूरी है... ये होना चाहिए ये नहीं...यहीं से हमारे दुख शुरु होते हैं तो यही से विद्रोह भी। हालांकि आदर्शवाद हमेशा प्रेरणादायी होता है...लेकिन कई बार शब्दों के भंवर में उलझा भी देता है। वैसे सिर्फ कुत्ता रखने को ही निशाना बनाकर तुमने उपरोक्त कमेंट्स को जन्म दिया, कुछ अन्य उदाहरण भी हो सकते थे जैसे दिखावे के लिए खर्च, खाने का दुरुपयोग, ब्रांड्स का क्रेज आदि। खैर....