तो जिन दोस्तों ने मुझे पढ़ा उनका शुक्रिया। बात गंभीर थी इसलिए गंभीर लोगों ने ही इसे पढ़ा होगा ऐसी आशा है....
तो बात अमेरिका की हो रही थी और उसके ब्लूप्रिंट की...दुनिया को अपनी तरह से देखने और मोल्ड करने में जुटे अमेरिका ने अभी कुछ समय पहले भारतीय पाले में परमाणु समझौते की गुगली फैंकी थी....हमारे प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह और अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति जार्ज बुश ने जिद करके उस समझौते को मंजूर भी कर लिया और अब यह जल्दी ही लागू होगा। उस समझौते में ऐसा बहुत कुछ था जो आम लोगों को नहीं पता था। मैंने इस संबंध में वैबदुनिया पोर्टल के विचार मंथन कॉलम में दो लेख लिखे थे....जिनके लिंक मैं आप लोगों को नीचे दे रहा हूं। इन्हें कॉपी-पेस्ट करके इंटरनेट पर पढ़ा जा सकता है। इनमें से एक का विषय -परमाणु समझौते का काला सच- और दूसरे का -पहले भारत अपने परमाणु संयंत्र तो सुधारे- था।..... अगर समय मिले तो जरूर पढ़िएगा....और अपना नजरिया भी बताइएगा.....
http://hindi.webdunia.com/samayik/article/article/0708/02/1070802049_1.htm http://hindi.webdunia.com/samayik/article/article/0708/08/1070808138_1.htm
दूसरी बात.... मैंने अमेरिका द्वारा दुनिया की आबादी को डिप्लीट करने संबंधी बात भी कही थी। मुझे इस संबंध में २७ पेज का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज मिला है। यह मेरे पास है। जिस किसी को इसमें रुचि होगी उसे ये मेल किया जा सकता है क्योंकि ये अंग्रेजी में है। इसे अमेरिका के ही एक पत्रकार ने तैयार किया है। इससे पता चलता है कि भोपाल गैस कांड क्यों हुआ था। या अमेरिका अपने रासायनिक हथियारों और जहरीली गैसों का किस प्रकार अल्पविकसित या विकासशील देशों की आबादी पर प्रयोग करता है।
तो आगे अपनी बात जारी रखता हूं...... अमेरिका एक बहुत ही रोचक देश है। २५० साल पुरानी सभ्यता....... और वहां ५० साल पुरानी वस्तुओं को एंटीक का दर्जा दे दिया जाता है, जबकि इतनी पुरानी वस्तुएँ तो आपके-हमारे घरों में मिल जाती हैं। तो...इस देश ने बहुत ही तरीके से दुनिया को कब्जे में किया है....मुख्यतः धन और फिर बल के जरिए....सबसे ज्यादा धन वह अपनी सेना को दुनिया भर में तैनात करने में लगाता है। जापान अभी तक अपनी भूमि पर उसको सहने के लिए मजबूर है। जर्मनी में भी अमेरिका की सेनाएँ तैनात हैं। तीन महासागरों में उसके सैकड़ों वार-शिप्स घूम रहे हैं। वह अफगानिस्तान में है, पाकिस्तानी सीमावर्ती इलाकों में है। नाटो के जरिए रूस के आस-पास जमा है। अफ्रीका में है और आस्ट्रेलिया में तो उसके बड़े-बड़े बेस हैं। कुल मिलाकर उसने दुनिया को घेर रखा है। अंतरिक्ष में घूम रही उसकी सेटेलाइट रूपी आंखें सभी पर नजर रखे हुए हैं। बातें पलटने में कितना माहिर है यह बताने की जरूरत नहीं..... जब पाकिस्तान के साथ था तो उसके साथ हुए हमारे युद्ध में उसकी क्या मदद नहीं की....आज उसे हमारी जरूरत है तो ऐसे बयान देता है कि भारत को लगने लगता है कि वह उसकी गुडबुक में शामिल है।
तो अमेरिकी शताब्दी के ब्लूप्रिंट वाली बात पर आते हैं...... जब अमेरिका के ट्रेड सेंटर की इमारतें गिर गई तो कुछ लोगों के मन में शक उत्पन्न हुआ कि स्टार वार्स प्रोग्राम और एंटी मिसाइल सिस्टम (इनमें कोई भी मिसाइल अमेरिका की एयरस्पेस में एंट्री करते स्वतः ही खत्म हो जाएगी) विकसित करने वाला देश कुछ हवाईजहाजों के घेरे में कैसे आ गया.....उन लोगों को बुश की नियती पर शक पहले से ही था.....तब एक ऐसी बात बाजार में आई जिसको मुस्लिम दुनिया आज भी अपने लेखन और बोलचाल में इस्तेमाल कर रही है.....कि अमेरिका ने खुद ही उन ट्रेड सेंटरों की इमारतों पर हमला करवा लिया.....उन्हें गिरवा दिया... ताकि इसके बाद उसे मुस्लिम दुनिया को घेरने और उनकी बढ़ती ताकत को कुचलने का मौका मिल जाए.....क्योंकि गिनती में इस र्धम की पालना करने वाले देश ५६ हैं.......यह बात मैं यूं ही नहीं कह रहा हूं......इन तथ्यों को बताने और इनका खुलासा करने के लिए अमेरिकी बाजार में एक किताब आई और बाद में तो उसपर हॉलीवुड ने फिल्म भी बनाई.... उस किताब और फिल्म का नाम एक ही है यानी -फैरेनहाइट ९-११ (नाइन इलेवन)...... इसमें उन सभी बातों को खुलकर बताया गया है और ऐसे कई तथ्य बताए गए हैं जो बुश की ऐसी सोच के प्रति मन में संशय पैदा करते हैं।...हालांकि मुझे इस बात में संशय है लेकिन जब अमेरिकी खुद ही संशय जता रहे हैं तो क्या किया जा सकता है।
यह तो दुनिया मानती है कि सितंबर नौ-ग्यारह के बाद दुनिया बदली है.....यह सही भी है क्योंकि उस दिन ने विश्व में अमेरिका को अपनी मनमानी करने का मौका मुहैया कराया है......उसके बाद वो अपनी आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के नाम पर जो चाहे वो करता है.....और निश्चित तौर पर दुनिया पर हावी हुआ है....... भारत को अमेरिका इस समय मित्र के तौर पर इसलिए देख रहा है क्योंकि आतंकवाद के भुगतभोगी हम लंबे समय से रहे हैं......और उसे लग रहा है कि हम उसका साथ देंगे.....लेकिन उन इमारतों के गिरने से पहले क्या उसे हमारी बातें झूठी लगती थीं????? भारत से काम निकलने के बाद उसका हमारे प्रति क्या नजरिया रहेगा, तय नहीं है.......इस बारे में बातें बहुत हैं....अमेरिका के निशाने पर भी अभी बहुत कुछ है...हालांकि बराक ओबामा के राष्ट्रपति बनने के बाद लोग मान रहे हैं कि अमेरिका की नीतियों में बदलाव आएगा लेकिन सनद रहे कि अमेरिका का कोई भी राष्ट्रपति क्यों ना बन जाए उसकी नीतियाँ वही होती हैं जो अमेरिका के हित में हों। फिर भले ही वो राष्ट्रपति डेमोक्रेट हो या रिपब्लिकन....बिल क्लिंटन और जार्ज बुश का शासन काल हम देख चुके हैं और हमने ये भी देखा है कि उन्होंने कितनी लॉलीपॉप भारत को चूसने के लिए दी थीं। दोस्तों, इस मुद्दे पर बात आगे भी की जा सकती है....बताने के लिए अभी बहुत कुछ है। लेकिन यह सब बातें करना तभी अच्छा लगेगा जब आप लोग इस विषय में मेरा साथ देंगे......अभी बस इतना ही......बाकि बातें बाद में
आपका ही सचिन.....।
7 comments:
बहुत धारदार और सही लिखा है आपने| कृपया दस्तावेज मुझे मेल कर दें| shekhar.shashwat@gmail.com
मान गए जी !
अगर असुविधा न हो तो कृपया दस्तावेज ईमेल करने की कृपा करें, nrohilla@gmail.com
आभार,
कृपया वह दस्तावेज़ मुझे भी भेज दें।
amarjyoti55@gmail.com.
यह बातें व और भी कई बातें वेब पर जहाँ तहां बिखरी हुईं हैं, अमेरिका हर स्तर और बहुत बड़े स्तर पर हर सम्भव प्रयास कर रहा है. आपके टूथपेस्ट में मौजूद केमिकल्स से लेकर टेलिविज़न और मीडिया के द्वारा आपका दिमाग कुंद किया जा रहा है.
तीसरी दुनिया की आबादी अपरम्परागत तरीकों से ख़त्म करने की इस तैयारी के पीछे सोच नस्लीय श्रेष्ठता व शुद्धता वाली है (यही व्हाइट मैन बर्डन थ्योरी), और इसके पीछे एक सोच और शामिल है जो की आयन रेंड ने उत्तराधुनिक दार्शनिक उपन्यास 'एटलस श्रग्ड" में दिखाई है.
और है तो और भी बहुत कुछ बताने को पर इन कोंपिरेसी थ्योरीस का ज़िक्र भी किसी सयाने के सामने करेंगे तो वह पागल ही समझेगा. तो जो कुछ जानते समझते भी हैं वे चुप बैठे रहते हैं. पर इतना ज़रूर है की छोटे बड़े कई साधनों द्वारा दुनिया के हर इन्सान की सोचने की शक्ति क्षीण की जा रही है. आपने दी गई लिंक्स को पढ़ा होगा तो आप समझ सकेंगे. और भारतीय मीडिया (और तीसरी दुनिया के मिडिया को भी) तथा व्यवस्था को दीर्घावधि की योजना के तहत खरीदना और पंगु करना इसी मास्टरप्लान का एक छोटा हिस्सा है.
पर एक ज़रूरी बात (concerned with your last post): मैं भी डिस्लेक्सिक हूँ, और कुछ हद तक चिडचिडा और अवसादग्रस्त भी, पर बस इतना ही! मैं भेड़िया नहीं हूँ, जैसा की अपने दुनिया के सारे डिस्लेक्सिया के मारों को बुश के साथ घोषित कर दिया. हम लोग अगर थोड़े से अलग होते हैं तो इसका यह मतलब नहीं की हम जानवर हो गए. ये सर्वकालिक महान विभूतियाँ (except bush) भी मेरे ख्याल से भेड़िया तो नहीं ही थीं/हैं. बाकि आपका दृष्टिकोण. आप तथ्यों के आधार पर ही अपनी बात कहते हैं, सम्भव है आप सही हों, पर मेरी बुद्धि में यह बात नहीं घुसती.
मित्र ( ab inconvenienti), क्योंकि मुझे आपका असली नाम नहीं पता इसलिए मुझे यह संबोधन उपयोग करना पड़ रहा है। मैं माफी चाहता हूँ कि मेरी बात से आपको ठेस पहुँची। लेकिन भेड़िए वाली बात भावावेश में कही गई थी जिसे आप सिर्फ बुश के लिए ही समझें। मेरा कतई यह उद्देश्य नहीं था कि मैं संसार के सारे डिस्लेक्सिया पीड़ितों को भेड़िया कह दूँ। चूँकि मैंने यह तुलना (बुश और भेड़िए के बीच और वो भी डिस्लेक्सिया को लेकर) कहीं पढ़ी थी इसलिए उसका उल्लेख मैं यहाँ कर गया लेकिन इसे आप व्यक्तिगत अपने ऊपर या दूसरे डिस्लेक्सिसों के ऊपर लेकर ना पढ़ें। आगे से मैं ऐसी सार्वजनिक टिप्पणियाँ करने से पहले सोचूँगा। ध्यान दिलाने के लिए धन्यवाद। और हाँ, आपके द्वारा उपलब्ध कराई गई सभी लिंक्स महत्वपूर्ण हैं जिनका मैं अवश्य उपयोग करूँगा। आपका आभार। - सचिन
धन्यवाद, ठेस जैसी कोई बात नहीं थी पर अतार्किक ब्रांडिंग से बचना चाहिए. इस वीडियो को पूरा देखिये, कैमिकल माइंड कंट्रोल के पुरजोर प्रयास विकसित देशों से दक्षिण अमेरिका तक में सफलतापूर्वक पूरे करने के बाद, अब विश्व शक्ति का अगला निशाना एशिया है.
इसे देखकर पोलियो वेक्सिन, बहुराष्ट्रीय फार्मा कंपनियों द्वारा प्रायोजित सरकारी टीकाकरण अभियान, टूथपेस्ट और नगर निगम के पानी के बारे में कुछ ख्याल आया? यही बात दुनिया के सबसे बड़े मेडिकल होक्स एड्स के बारे में भी सच है.
Post a Comment