January 03, 2009

बर्बर भारतीय..!!

ना इंसान में फर्क, ना तेंदुए में
दोस्तों, आज सुबह टीवी पर एक घटना के फुटेज देख रहा था। उसमें दिखाया जा रहा था कि कैसे सैंकड़ों लोगों ने घेरकर एक तेंदुए को मार दिया। बेरहमी से उसे लाठियों से पीटा, सिर फोड़ दिया और तब तक उसपर डंडे बरसाए गए जब तक कि वो मर नहीं गया। घटना मध्यप्रदेश के धार जिले की है जो यहाँ के मालवा क्षेत्र में ही आता है। फिर चैनल बदला, दूसरे चैनल पर आ रहा था कि उत्तरप्रदेश के औरेया में जिस इंजीनियर मनोज गुप्ता को मारा गया उस हत्या के अपराधी शेखर तिवारी ने कैसे उसे मारा। ये तिवारी विधायक है और आज उसके खिलाफ चार्जशीट दर्ज हुई है। तो तिवारी का बयान पुलिस दिखा रही थी। तिवारी बता रहा था कि वो उस दिन नशे में धुत था और कैसे उसने तथा उसके छह साथियों ने उस निरीह इंजीनियर को मारा। सिर्फ इसलिए कि वो इंजीनियर उस विधायक के घर पर ढोक बजाने नहीं जाता था, उसे रिश्वत नहीं देता था। तो तिवारी ने उस इंजीनियर की पसलियाँ तोड़ दीं, हड्डियाँ तोड़ दीं। उसे करंट लगाया। बाद में पास के थाने में छोड़ दिया जहाँ थानेदार ने भी उसे मारा...तब तक, जब तक कि वो मर नहीं गया। तिवारी का कहना है कि अगर वो इंजीनियर बच भी जाता तो वो उसे बलात्कार के केस में फँसा देता जिसका कि उसने इंतजाम कर रखा था। हद है संवेदनहीनता की....। 
दोस्तों, इन खबरों को देखकर मन खट्टा हो गया। क्या इस महान देश में रहने वाले यही वो लोग हैं जिनके लिए मन हमेशा कुछ कर गुजरने को करता रहता है। ये लोग कैसे हैं, जो एक इंसान को भी वैसे ही मार देते हैं जैसे कि एक जानवर को। उस जानवर बेचारे की क्या गलती जो अपने इलाके में रह रहा था कि इंसान आया और उसे वहाँ से बेदखल कर दिया। वो मूक पशु अपना विरोध कैसे जताएगा...??? क्या उसके लिए कोई अदालत है..?? उसने विरोध जताया तो उसे घेरकर मार दिया गया....और हमारे महान देश में जहाँ सार्वजनिक रूप से मुंबई में २०० लोगों की हत्या करने वालों को कुछ नहीं हुआ तो इस तेंदुए को मारने वालों को भला क्या होगा...??
फिर उत्तरप्रदेश की दिल दहला देने वाली घटना। उफ....हद है हरामीपने की। ये मायावती क्या है और इसकी सोशल इंजीनियरिंग क्या है, हमें पता है लेकिन क्या कोई इंसान इतना गिर सकता है। हमने भ्रष्टता को अपना लिया है, उसका विरोध करना छोड़ दिया है नहीं तो उस तिवारी जैसे आदमी को सड़क किनारे कुत्ते की मौत मारना चाहिए। वो तिवारी एक ब्राह्मण है, उसके वो सभी साथी भी ब्राह्मण ही हैं जिन्होंने उसका हत्या करने में साथ दिया। यह जानकर मुझे और अधिक दुख हुआ। हमारा धर्म क्यों भ्रष्ट हुआ जा रहा है ये उदाहरण हैं उसके। जिन ब्राह्मणों को शालीन आचरण और पढ़ने-पढ़ाने में अपना समय तथा जीवन लगाना चाहिए वो गुंडागिर्दी और हत्याएं कर रहे हैं। आश्चर्य है...ऐसे जनप्रतिनिधियों और उन्हें चुनने वाली जनता से मैं नाराज हूँ और इनके समर्थन में कुछ भी बोलना नहीं चाहता। आखिर मैं मायावती को क्यों गाली दूँ...उसे मैंने तो नहीं चुना है...उसे और उसके इस पिठ्ठू तिवारी को जहाँ के लोगों ने चुना है ये उनका फर्ज है कि वो उन्हें जूते मारें...उन्हें उखाड़ फैंके। इस देश में जहाँ निर्जीव पत्थरों, नदियों, पेड़ों और पहाड़ों से प्यार करना सिखाया जाता हैं वहाँ जीवित इंसान और जानवर इस बेहरमी से मारे जाएँगे, किसने सोचा था ऐसा। हमें समझना चाहिए कि इन बातों का भगवान हमें दंड देगा, आज नहीं तो कभी और......
और हाँ मेरी बातों को यूँ ही मत समझिए....संसार को देखिए अपने आप समझ आएगा कि जो जितने अधिक संवेदनहीन होते हैं उन्हें भगवान की ओर से उतना ही अधिक दंड मिलता है। मैं नहीं चाहता कि हमारे देश के लोगों को भी वैसा ही दंड मिले।

आपका ही सचिन.....।

4 comments:

Unknown said...

बहुत ही शर्म की बात है, फ़िर वही सवाल बार-बार आता है कि "हम क्या करें…", कानून-व्यवस्था की मशीनरी ऊपर से नीचे तक खराब हो चुकी है, अब तो आमूलचूल परिवर्तन ही करना होगा… एक बात और, लेख में "ब्राह्मणों" का उल्लेख अनावश्यक लगा… जब पतन चारों ओर हो रहा हो तो ब्राह्मण कब तक बचेगा? और मुझे लगता है कि वैसे भी ब्राह्मण तो शुरु से ही हिंसक और आक्रामक रहा है…
एक देशभक्त ब्राह्मण - सुरेश चिपलूनकर :) :)

kumar Dheeraj said...

आपने जिस संवेदनशीलता से इन मुद्दो को जगाया है इन मुद्दो को सोचने का वक्त लोगो के लिए नही है । खासकर उत्तरप्रदेश की जो घटना आपने बताई है उसपर सोचना ही गलत है । ये लोग तो ईंसान का खून पीने ही धरती पर आये है इनसे उम्मीद कैसी । राजनीति तो महज इनके लिए एक दिखावा है । असली चेहरा तो आजकल दिखाई नही देता मै कब से नकाबो की तहें खोल रहा हू ।आपका शुक्रिया

Vivek Gupta said...

कुल मिला कर कारन दूसरे के प्रति संवेदन शील न होना है | "मैं" की अत्यावाश्कता ने सारा खेल ख़राब कर रखा है |

तरूश्री शर्मा said...

बेहद ह्रदयविदारक होता है सचिन... वो दृश्य टेलीविजन पर भी देख पाना, जहां उसे बंद करने का विकल्प हमारे हाथ के रिमोट में कैद होता है। शायद सामने से तो मैं यह सब देख भी ना पाउं। ऐसे में इंसान और जानवरों को इस तरह से मारना, वो भी अपने तुच्छ अहंकारों, स्वार्थों या यूं कहें कि किसी अन्य अस्तित्व के हावी होने के भय के चलते। कैसे लोग हैं हम.... ऊपर से राजनीति का तड़का। करेला और नीम चढ़ा।