युवाओं को इसके लिए मानस बनाना ही पड़ेगा
दोस्तों, कल बात राजनीति पर चल रही थी इसलिए लोगों को बोझिल लगी होगी। लेकिन मैं अपनी बात जारी रखूँगा क्योंकि उसमें बिंदु अभी बाकी रह गए थे। तो कल अपनी बात वैकल्पिक राजनीति पर चल रही थी.....
दोस्तों, वे सब निर्णय जिनसे हम या हमारा समाज प्रभावित होता है अगर कहीं अटकते हैं तो बस राजनीति पर जाकर.......अगर अच्छे निर्णय नहीं हो पाते तो समझो जाहिल राजनेताओं के कारण और अगर हो पाते हैं तो समझो इने-गिने अच्छे राजनेताओं के कारण.....कांग्रेस शुरूआत कर रही है युवा नेताओं को आगे बढ़ाने की.......राहुल गांधी के किचन कैबिनेट में दाखिल करवाकर.......उसपर वैसे लंबी बहस हो सकती है कि २०१४ में सोनिया जी राहुल को प्रधानमंत्री के तौर पर देखना चाहती हैं....इसलिए राहुल को ताकतवर बनाया जा रहा है..फिर इस मामले में परिवारवाद पर भी बहस हो सकती है....अब ज्योतिरादित्य सिंधिया को केन्द्र में ले जाया गया है। कुछ माह पहले मप्र के कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर भी सिंधिया का नाम चला था.....खैर, ऐसी कई बातें हैं.....लेकिन ध्यान देने पर पता चलता है कि जो भी युवा राजनीति में जा रहे हैं सब संपन्न या स्थापित राजनैतिक घरानों या खानदानों से हैं......इस ग्रुप में भी मुरली देवड़ा के बेटे हैं.... जितेन्द्र प्रसाद के बेटे हैं.... माधवराव सिंधिया और राजेश पायलट के बेटे हैं.......मुलायम सिंह यादव के बेटे हैं...राजीव गांधी भी ४० साल में प्रधानमंत्री बन गए थे लेकिन वह इसलिए कि वो इंदिरा गांधी के बेटे थे...
तो सवाल है कि ऐसे में हम कहाँ हैं.......हमारी भी आकांक्षा होनी चाहिए क्योंकि देश में राजनेताओं की जरूरत है और फुल टाइम राजनेताओं की.....इसे कैरियर के तौर पर भी अपनाया जा सकता है.....मुंबई के एक विश्वविद्यालय का इस संबंध में विज्ञापन छपा था...वहाँ बाकायदा प्रोफेशनल पोलिटिक्स का कोर्स शुरू हो रहा था.......अब यह देश के युवाओं पर निर्भर करता है कि वे आईआईटी और आईआईएम से बाहर निकलकर खालिस मिट्टी की गंध सूंघना चाहते हैं या नहीं.......। अब जमाना काफी बदला है समाज सेवक भी राजनीति में आ रहे हैं क्योंकि यह भी एक तरह की समाजसेवा ही है......उदाहरण दे रहा हूं......एक समय वकील झूरकर राजनेता बनते थे......आडवाणी जी..अटलजी...कपिल सिब्बल...अरुण जेटली...रामजेठमलानी...कितने ही बने....पुरानों में तो काफी हैं....... फिर दौर चला जब पत्रकार राजनीति में आए.......अटलजी पत्रकार भी रहे, लखनऊ स्वदेश के संपादक थे..... अरुण शौरी भी विनिवेश मंत्री रहे.....और भी कई रहे....राज्यसभाओं में भी पहुँचे....दैनिक जागरण के मालिक और प्रधानसंपादक भी राज्यसभा सांसद रहे.... पॉयनियर के चंदन मित्रा हैं.....हिन्दू वाले एन राम हैं, लोकमत समाचार के विजय डरडा हैं.....वर्तमान में भाजपा राष्ट्रीय कार्रकारिणी के सचिव और राज्यसभा सांसद प्रभात झा स्वदेश ग्वालियर में १६ साल पत्रकार रहे....लंबी लिस्ट है........
वर्तमान चलन समाजसेवियों का है.....अब नाम क्या गिनाऊं लेकिन दिल्ली के इंडियन इंटरनेशनल सेंटर और इंडिया हैबिटाट सेंटर में आपको इस कांबिनेशन के हजारों लोग मिल जाएँगे, आप वहां जाकर देख सकते हैं...... लेकिन कमी सिर्फ युवाओं की है, हालांकि उनकी संख्या बढ़ रही है लेकिन पूरी नहीं है.....पढ़े-लिखे लोग तो मिल रहे हैं लेकिन राजनीति से घृणा करना हमें खत्म करना होगा...। लेकिन यह घृणा है कि खत्म ही नहीं हो रही है। लोग पॉलिटिकल कैरियर की ओर ध्यान ही नहीं दे रहे हैं। पोलिटिक्स कैरियर भी हो सकता है यह हम सोचते तक नहीं। हालांकि मैं मानता हूँ कि इस देश में फिलहाल यह मुश्किल कार्य है लेकिन असंभव नहीं। वैकल्पिक राजनीति की ओर हमें देखना ही होगा। बॉलीवुड इस इश्यू पर फिल्म बना रहा है, युवाओं की आवाज उठा रहा है लेकिन हम युवा फिलहाल राजनेताओं को गाली देने में व्यस्त हैं। जब मौका आता है तो हम फिल्म स्टार या स्पोर्ट्स स्टार तो बनना चाहते हैं लेकिन पोलिटिकल स्टार बनना अछूत शब्द सा लगता है। जब तक हम इस विकल्प की ओर ध्यान नहीं देंगे ये देश नहीं सुधर सकता क्योंकि फिलहाल जो सत्ता में हैं वो इस देश को वैसा कतई नहीं बनने देंगे जैसा कि हम चाहते हैं। इस अपेक्षा को पूरा करने के लिए तो मैदान में हमें ही उतरना होगा।
नोटः (प्रसिद्ध पुस्तक जीत आपकी के लेखक शिव खेड़ा ने हाल ही में अपनी पॉलिटिकल पार्टी बनाकर एक सकारात्मक शुरुआत की है, कई और भी बुद्धिजीवी हस्तियाँ ये दुस्साहस कर रही हैं, मैं आशा करता हूँ कि आप और हम में से भी लोग ऐसा दुस्साहस करने के लिए राजी होंगे)
आपका ही सचिन....।
7 comments:
"लेकिन पोलिटिकल स्टार बनना अछूत शब्द सा लगता है"
नमस्ते सचिन भैया, लेकिन मुझे ऐसा नही लगता है.
मैं भी शिव खेड़ा जी की पार्टी बी आर एस पी में शामिल हो गया हूं.
परिवर्तन के लिए राजनीति में आना ही आवश्यक नहीं है बल्कि लोगों को जागरुक करना आवश्यक है कि सही और गलत क्या है। वैसे भी आप ही के दिए हुए उदाहरणों से स्पष्ट है कि एक आम आदमी का इस धारा/धंधे/रोजगार/पुश्तैनी व्यापार में आना कितना मुश्किल है। और यदि आ भी गए तो दूर खडे होकर बरसों तक किसी नेता की जय जयकार ही करते रहना पडेगा। और अहम मुददा यह कि आप किन वजहों से आ रहे हैं राजनीति में । पैसा कमाने या नाम कमाने। यदि यह दोनों ही उददेश्य नहीं हैं तो कर्म करिए और ऐसा रास्ता मुझे भी सुझाइए कि केवल राजनीति में ही न आएं बल्कि उस साध्य का हिस्सा बनें जिसे बेहतर भारत बन सके और राह चलते हुए सबको गौरव का अहसास हो कि हम भारतीय है।
बात तो आपकी सही है| कुछ और मार्गदर्शन करें| कल किसी पार्टी में शामिल तो हो जाएँ...उसके बाद आगे कैसे बढ़ें?
bilkul sahi kaha bhai !
jaari rakhe!
baat to sahi hai....
दोस्तों, यहाँ मैं एक बात कहना और चाहता हूँ। हालांकि हमें लिखी गई बातें सही लगती हैं लेकिन जब उन्हें प्रैक्टिकल तौर पर किया जाता है तो थोड़ी मुश्किल आ सकती है। अतुल भाई को यह लग रहा है कि इस रास्ते पर परेशानी ज्यादा है। दोस्त, ऐसा है इसलिए ही तो मैं इसपर बात करना चाहता हूँ। हम में से कई तो इस असाध्य से इतना दूर होते हैं कि इसपर बात भी नहीं करना चाहते। और अगर इससे दूर रहकर देश सुधारा जा सकता तो कभी का सुधर गया होगा। एक यह राजनीति ही तो है कि इसका सब-दूर हस्तक्षेप है। हर किसी बद-व्यक्ति के सिर पर किसी राजनीतिज्ञ का हाथ रहता है। जिस प्रकार सिंगापुर में वहाँ के ब्यूरोक्रेट्स ही राजनीतिज्ञ हैं और ईमानदारी वहाँ अनिवार्य पैमाना है उसी प्रकार हमें भारत में भी कुछ करना होगा। क्या करें, ये सोचा जा सकता है मिलजुलकर। लेकिन याद रखें, भाजपा का गठन १९८४ में हुआ और १९९८ में वह केन्द्र की प्रमुख सत्ता में आ गई। कारण भले ही कुछ भी रहा हो। मेरा यहाँ ये कहना है कि अगर सोच लें तो हम भी १५-२० साल में परिवर्तन की लहर ला सकते हैं बस हाथ से हाथ मिलाना होगा। इसे कैरियर बनाना होगा। अपने लिए ना सही तो मातृभूमि के लिए सही।
आज की मलाईदार राजनीति में मुझे नहीं लगता कि कोई नहीं जाना चाहता हो । बस रास्ता नहीं सूझता । आपने बताया कि मंत्री पुत्रों का दौर रहा है । समाजसेवियों ,पत्रकारों और उद्योगपतियों के राजनीतिज्ञ बनने का सिलसिला भी चल पडा है । इनमें तो हम जैसों का चांस लगना नामुमकिन है।कोई नया ट्रेंड बताइये ताकि हम भी इसी जन्म में राजनीतिज्ञ बनने की अपनी हसरत पूरी कर सकें ।
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