December 08, 2008

बिना मुद्दे के लड़े गए विधानसभा चुनाव

निहायत ही निजी मुद्दों पर हारे-जीते नेता
दोस्तों, आज देश की १५ करोड़ जनता ने अपनी राजनीतिक पसंद जाहिर की है। मौका था विधानसभा चुनावों का जिनमें कांग्रेस और भाजपा के बीच कड़ी टक्कर थी। कई मुद्दे बीच में थे मसलन आतंकवाद, महंगाई आदि लेकिन जनता ने अपना मत हमेशा की तरह इस प्रकार दिया कि सारे एक्सिट पोल टाइप सर्वेक्षण फीके पड़ गए और अब कई दिनों तक इस मसले पर बहस होती रहेगी कि जनता ने क्या सोचकर अपने मत का प्रयोग किया। मैं थोड़ा स्पष्ट कर दूँ कि चीजें साफ हो गई हैं जो इस तरह से हैं....
भारत के कुछ बड़े राज्यों में शुमार मध्यप्रदेश, राजस्थान तथा मझोले राज्य दिल्ली और छत्तीसगढ़ के अलावा मिजोरम सरीखे छोटे राज्य में भी इस बार विधानसभा चुनाव थे। अब रुझान स्पष्ट हैं कि मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा आगे चल रही है। राजस्थान, मिजोरम और दिल्ली में कांग्रेस की गद्दी पक्की हो गई है। कुल मिलाकर कांग्रेस ने मुकाबला तीन के मुकाबले दो से जीत लिया है। कांग्रेस की झोली में सत्ता के इस सेमीफाइनल में तीन राज्यों की सत्ता आई जबकि दिल्ली में वो लगातार तीसरी बार चुनी गई है। यानी देश की राजधानी में वो १५ साल के लिए सत्तासीन हुई है।
दोस्तों, इनमें से काफी बातें आपको टीवी पर पता चल चुकी होंगी और काफी मैं भी बताउँगा लेकिन अपनी तरफ से मैं कल बताऊँगा....आज सिर्फ इतना बताना चाहता हूँ कि ये चुनाव जिन मुद्दों पर लड़े गए वो किसी विकासशील देश के ही हो सकते हैं किसी महाशक्ति के नहीं। मैं ऐसा क्यों बोल रहा हूँ इसके पीछे कारण हैं। आप देखिए कि ये फालतू बात नहीं है।
मैं मध्यप्रदेश का निवासी हूँ। फिलहाल इंदौर में रह रहा हूँ। तो मुझे राजनीति को पास से देखते रहने के दौरान एक बात महसूस हुई कि हमारे देश में राजनीति ने सबकुछ जस का तस रखा हुआ है जैसा कि उसे आजादी के समय मिला था। मसलन इंदौर को हमारे प्रदेश का सबसे अधिक विकसित शहर माना जाता है लेकिन यहाँ नौ विधानसभा सीटों के लिए खड़े भाजपा-कांग्रेस के १८ उम्मीदवारों के वादे और घोषणाएँ सुनकर माथा पकड़ने का जी करता है। ज्यादातर ने शहर और उसके आस-पास के क्षेत्रों में पीने का पानी, चलने लायक सड़कें और बिजली मुहैया कराने के वायदे किए हैं। हालांकि मैंने कुछ दूसरे मुद्दों को जिक्र नहीं किया, क्योंकि मैं बताऊँगा तो आप लोग हँसेंगे। वो मुद्दे हैं चंदा वसूली बंद करवाना, शमशान घाट बनवाना, गुण्डागिर्दी खत्म कराना आदि। इन मुद्दों को सुनकर बिल्कुल नहीं लगता कि यहाँ एक विकसित शहर की बात हो रही है। मैं इन मुद्दों को तब से सुन रहा हूँ जब से मैंने होश संभाला है और मुझे लगता है कि मेरे माता-पिता ने भी इन वायदों को ताउम्र सुना होगा। तो हम कैसी महाशक्ति हुए भाई जहाँ बिजली, पानी और सड़क अभी तक मुख्य मुद्दे ही बने हुए हैं। क्या हम इनके आगे की बात कभी कर पाएँगे...??? ऐसा मैं सिर्फ इंदौर के लिए ही नहीं कह रहा हूँ, ये मैंने एक उदाहरण दिया कि जब इस विकसित शहर में ये स्थिति है तो अन्य जगह क्या स्थिति होगी इसका आप लोग अंदाजा लगा सकते हैं। ऐसी स्थिति पूरे मध्यप्रदेश की है...राजस्थान में भी यही हालात हैं और सुदूर मिजोरम में क्या होता होगा वो तो राम ही जाने क्योंकि इतनी दूर तक तो मैं देख ही नहीं पा रहा हूँ...शायद आप देख पाएँ....।तो दोस्तों, चुनाव तो पाँच राज्यों में हुए लेकिन मुद्दे विहीन....मुख्य मुद्दे गायब थे और स्थानीय मुद्दे टापू सरीखे हैं जिनकी चर्चा सर्वत्र नहीं की जा सकती। लेकिन इन सबमें राजस्थान में भाजपा की हार और कांग्रेस की दिल्ली में जीत का विश्लेषण किया जा सकता है, लेकिन ये अगली पोस्ट में...तब तक के लिए आप लोगों का समर्थन....।
आपका ही सचिन....।

1 comment:

तरूश्री शर्मा said...

सचिन,
जहां तक मेरी समझ है इस बार का चुनाव मुद्दों पर आधारित कम व्यक्तित्व आधारित ज्यादा लग रहा है। इस बार दोनों ही पार्टियों के पास मुद्दों का अभाव था.... मजबूत मुद्दों के अभाव में हुए इन चुनावों में उम्मीदवार की अपने क्षेत्र पर पकड़ और छवि दोनों ही हावी रही है। इसीलिए शायद इने गिने नेताओं द्वारा उठाए गए ये लचर मुद्दे हास्यास्पद लग रहे हैं।